डेली न्यूज़ (10 Sep, 2019)



घरेलू वायु प्रदूषण

चर्चा में क्यों?

सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट (Centre for Science & Environment-CSE) के अनुसार, वर्ष 2016-18 के दौरान PM2.5 का औसत स्तर वर्ष 2011-14 की तुलना में 25 प्रतिशत कम था।

  • PM का आशय उन कणों या छोटी बूँदों से है जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर (0.000025 मीटर) या उससे कम होता है और इसलिये इसे PM2.5 के नाम से भी जाना जाता है।
  • यद्यपि वर्तमान में PM2.5 के गंभीर स्तर वाले दिनों की संख्या वर्ष 2015 से कम हो गई है, परंतु अभी भी दिल्ली को वैश्विक वायु गुणवत्ता मानकों (Global Air Quality Standards) को पूरा करने के लिये प्रदूषण के स्तर में 65 फीसदी की कटौती करने की आवश्यकता है।

घरेलू वायु प्रदूषण

  • घरों में ठोस ईंधन के जलने से उत्पन्न PM2.5 का उत्सर्जन घरेलू वायु प्रदूषण कहलाता है।
  • पर्यावरणीय वायु प्रदूषण और घरेलू वायु प्रदूषण एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। फिर भी घरेलू वायु प्रदूषण को अधिक खतरनाक माना जाता है, क्योंकि अधिकतर लोग अपने समय का 90 प्रतिशत हिस्सा घर के अंदर व्यतीत करते हैं।
  • स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट (State Of Global Air Report), 2019 के अनुसार, वर्ष 2017 में भारत में अनुमानित 846 मिलियन लोग घरेलू वायु प्रदूषण के संपर्क में थे, जो कि देश की आबादी का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा है।
  • हवा में गैसों और कणों को मुख्यतः दो स्रोतों में विभाजित किया जा सकता है: प्राथमिक स्रोत और माध्यमिक स्रोत।
    • प्राथमिक स्रोत: इसमें उन गैसों को शामिल किया जाता है, जिनका उत्सर्जन निम्नलिखित स्रोतों से होता है।
      • घर या मकान
      • उपभोक्ता उत्पादों
      • माइक्रोबियल (Microbial) और मानव चयापचय उत्सर्जन (Human Metabolic Emissions)
    • माध्यमिक स्रोत: इस प्रकार की गैसों का उत्पादन हवा में रासायनिक प्रतिक्रियाओं (Chemical Reactions) के माध्यम से होता है। उदाहरण के लिये खाना पकाते समय बड़ी मात्रा में वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (Volatile Organic Compounds-VOCs), कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) या CO2, नाइट्रोजन ऑक्साइड (Nitrogen Oxide) या NOx आदि का उत्सर्जन होता है। VOCs तथा NOx सूर्य की उपस्थिति में प्रतिक्रिया कर सतही ओज़ोन का निर्माण करते हैं।
      • सतही ओज़ोन न केवल मानव स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव डालती है, बल्कि प्रदूषण का एक बड़ा कारण भी है।

घरेलू वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव

  • ज़मीनी स्तर के ओज़ोन के संपर्क में आने से श्वसन रोग (Respiratory Disease) तथा हृदय रोग (Cardiovascular Diseases) के कारण व्यक्ति के मरने की संभावना बढ़ जाती है।
  • वर्ष 2017 में टाइप 2 मधुमेह से होने वाली मौतों और विकलांगता के लिये PM2.5 तीसरा प्रमुख कारक था।
  • गोबर, लकड़ी और कोयले जैसे ईंधनों के उपयोग से पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter-PM), मीथेन (Methane) और कार्बन मोनोऑक्साइड (Carbon Monoxide) जैसे हानिकारक प्रदूषण कारकों का उत्सर्जन होता है, जिसके परिणामस्वरूप फेफड़ों का कैंसर, हृदय रोग और मोतियाबिंद आदि का खतरा बढ़ जाता है।
  • घरेलू वायु प्रदूषण ब्लैक कार्बन (Black Carbon) के उत्सर्जन में 25 प्रतिशत का योगदान देता है एवं कई अध्ययनों के मुताबिक ब्लैक कार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) के बाद जलवायु परिवर्तन का दूसरा सबसे बड़ा कारक है।
  • घरेलू वायु प्रदूषण का कृषि उत्पादन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ब्लैक कार्बन फसलों तक पहुँचने वाली सूर्य के प्रकाश की मात्रा को कम कर देता है एवं प्रकाश संश्लेषण को बाधित करता है जिसके कारण फसलों को काफी नुकसान पहुँचता है।

आगे की राह

  • साधारण उपायों को अपनाना जैसे- वेंटिलेशन की उपर्युक्त सुविधा के साथ खाना बनाना, अगरबत्ती और मोमबत्तियों के उपयोग से यथासंभव बचना, रूम फ्रेशनर जैसी चीज़ों का कम-से-कम उपयोग करना।
  • भारत में अक्सर घर काफी हद तक खुले होते हैं, जिसके कारण बाहरी वायु प्रदूषण का प्रवेश घर के अंदर तक हो जाता है। इसके लिये आवश्यक है कि घरों के निर्माण की उचित प्रक्रिया अपनाई जाए।
  • भारत में घरेलू वायु प्रदूषण को मापना भी एक बड़ी चुनौती है। इस संदर्भ में विचार किया जाना चाहिये और घरेलू वायु प्रदूषण के लिये नए मानकों की खोज कर इस समस्या को हल किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


भारत-चीन के बीच छठी रणनीतिक आर्थिक वार्ता

चर्चा में क्यों?

7 से 9 सितंबर, 2019 तक नई दिल्ली में भारत और चीन के बीच छठी रणनीतिक आर्थिक वार्ता (Strategic Economic Dialogue-SED) का आयोजन किया गया।

India-China

प्रमुख बिंदु

  • इस वार्ता में बुनियादी ढाँचा, ऊर्जा, उच्च तकनीक, संसाधन संरक्षण और नीति समन्वय पर संयुक्त कार्य समूहों की बैठकें आयोजित हुईं।
  • इस वार्ता में भारतीय पक्ष का नेतृत्व नीति आयोग (National Institution for Transforming India- NITI Aayog) के उपाध्यक्ष, डॉ. राजीव कुमार ने और चीनी पक्ष का नेतृत्व चीन के राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग (National Development and Reform Commission-NDRC) के अध्यक्ष, हे लिफेंग (He Lifeng) ने किया।
  • वार्ता के दौरान के दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन को दूर करने के लिये ठोस कदम उठाने पर बल दिया गया।
  • दोनों पक्षों द्वारा इस बात पर सहमत व्यक्त की गई कि द्विपक्षीय व्यापार और निवेश के प्रवाह को सुविधाजनक बनाने तथा दोनों पक्षों के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये रणनीतिक आर्थिक वार्ता (Strategic Economic Dialogue- SED) एक महत्त्वपूर्ण तंत्र के रूप में उभरा है।
  • दोनों पक्षों के बीच छह कार्य समूहों के व्यावहारिक और परिणाम उन्मुख विचार-विमर्श के माध्यम से निम्नलिखित विषयों पर आपसी सहमति बनी:

1. नीति समन्वय (Policy Coordination):

  • दोनों पक्षों ने व्यापार और निवेश के वातावरण की समीक्षा के लिये गहन विचार-विमर्श किया, जिससे कि भविष्य में होने वाली अनुबंधों के लिये पूरक और वास्तविक तालमेल की पहचान की जा सके।
  • नवाचार और निवेश में सहयोग के संभावित क्षेत्रों पर प्रकाश डाला गया जिसमें फिनटेक तथा उससे संबंधित प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • दोनों पक्षों ने संचार के नियमित चैनलों को सक्रिय करने के लिये अपनी गतिविधियों के वार्षिक कैलेंडरों का आदान-प्रदान करने पर सहमति व्यक्त की।

2. आधारिक संरचना पर कार्य समूह (Working Group on Infrastructure):

  • दोनों पक्षों द्वारा चेन्नई-बंगलूरु-मैसूर रेलवे उन्नयन परियोजना (Chennai-Bangalore-Mysore Railway Upgradation Project) के व्यावहारिक अध्ययन में उल्लेखनीय प्रगति और चीन द्वारा भारतीय रेलवे के वरिष्ठ प्रबंधन कर्मचारियों का व्यक्तिगत प्रशिक्षण का उल्लेख किया गया, उल्लेखनीय है कि ये दोनों कार्य पूरे किये जा चुके हैं।
  • सहयोग के सभी क्षेत्रों में अपने अगले कदमों की पहचान करने के साथ-साथ पायलट सेक्शन के रूप में दिल्ली-आगरा हाई स्पीड रेलवे सेवा (Delhi-Agra High Speed Railway) की संभावना को तलाश करने वाले प्रोजेक्ट के अध्ययन को आगे बढ़ाने पर भी विस्तृत चर्चा की गई। 
  • दोनों पक्षों ने परिवहन क्षेत्र में उद्यमों का समर्थन देने के साथ-साथ सहयोग के लिये नई परियोजनाओं की पहचान करने पर भी सहमति व्यक्त की।

3. हाई-टेक पर कार्य समूह (Working Group on High-Tech):

  • दोनों पक्षों ने 5वीं SED के बाद प्राप्त हुई उपलब्धियों का आकलन किया और व्यापार को आसान बनाने की नियामक प्रक्रियाओं, कृत्रिम बुद्धि का विकास, उच्च तकनीक निर्माण और दोनों देशों में अगली पीढ़ी के मोबाइल संचार पर विचारों का आदान-प्रदान किया।
  • तकनीकी नवाचार, औद्योगिक स्थिति और सहयोग को बढ़ावा देने वाले तंत्रों के साथ-साथ भारत-चीन की डिजिटल भागीदारी, डेटा गवर्नेंस और संबंधित उद्योग नीति पर चर्चा की गई।

4. संसाधन संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण पर कार्य समूह

(Working Group on Resource Conservation and Environmental Protection)

  • जल प्रबंधन, अपशिष्ट प्रबंधन, अपशिष्ट निर्माण और विध्वंस तथा संसाधन संरक्षण के क्षेत्र में हुई प्रगति पर चर्चा एवं समीक्षा की गई। दोनों पक्षों ने इस क्षेत्र में नवाचार की भूमिका पर भी विचार-विमर्श किया।
  • कम लागत वाली निर्माण तकनीक, बाढ़ और कटाव नियंत्रण, वायु प्रदूषण आदि में नई प्रकार की अवधारणाओं के प्रभावी उपयोग पर भी चर्चा की गई।
  • उन्होंने उभरते हुए क्षेत्रों, जैसे वेस्ट टू पावर (Waste to Power), सीवेज़ गाद के साथ सेप्टेज़ का सह-प्रसंस्करण (Co-processing of Septage with Sewage Sludge), झंझा जल प्रबंधन (Storm Water Management) आदि में सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकताओं पर भी बल दिया।
  • उपरोक्त क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये दोनों पक्षों ने निरंतर बातचीत और संबंधित सूचनाओं के आदान-प्रदान को लगातार बनाए रखने पर सहमति व्यक्त की।

5. ऊर्जा पर कार्य समूह (Working Group on Energy):

  • दोनों देशों ने भविष्य में सहयोग के लिये क्षेत्रों की पहचान की और अक्षय ऊर्जा, स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकी, स्मार्ट ग्रिड तथा ग्रिड एकीकरण, स्मार्ट मीटर एवं ई-मोबिलिटी क्षेत्रों पर काम करने का भी संकल्प लिया।
  • दोनों पक्षों ने वैकल्पिक सामग्री द्वारा सौर सेल के निर्माण के लिये नई तकनीक को विकसित करने और सौर सेलों की दक्षता में सुधार लाने के लिये अनुसंधान एवं विकास कार्यों में सहयोग पर सहमति व्यक्त की।
  • दोनों पक्ष ई-मोबिलिटी और ऊर्जा भंडारण के क्षेत्र में सहयोग करने पर भी सहमत हुए।

6. फार्मास्यूटिकल्स पर कार्य समूह (Working Group on Pharmaceuticals):

  • संयुक्त कार्य समूहों ने यह माना कि दोनों पक्षों में व्यावहारिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये संचार को और मज़बूत करना चाहिये।
  • यह भी तय किया गया कि दोनों पक्षों द्वारा व्यावहारिक सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये, दवा उद्योग में अनुपूरक लाभ को मज़बूत करना चाहिये और भारतीय जेनेरिक दवाओं एवं चीनी API को बढ़ावा देने के लिये सहयोग की खोज करनी चाहिये। इससे दोनों देशों में फॉर्मास्यूटिकल उद्योग के विकास को लाभ मिलेगा।

दोनों समकक्षों ने द्विपक्षीय व्यावहारिक सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया और व्यावहारिक एवं परिणाम-उन्मुख विचार-विमर्श के माध्यम से ठोस नतीजे प्राप्त किये। दोनों पक्षों ने अन्य प्रमुख मुद्दों के समाधान, सहयोग के संभावित क्षेत्रों की पहचान करने के लिये, दोनों पक्षों के बीच द्विपक्षीय आर्थिक और वाणिज्यिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण एवं स्थायी साधन के रूप में SED तंत्र का उपयोग अति प्रभावी ढंग से करने पर सहमति व्यक्त की।

पृष्ठभूमि:

  • रणनीतिक आर्थिक वार्ता (SED) की स्थापना, दिसंबर 2010 में चीनी प्रधानमंत्री, वेन जियाबाओ की भारत यात्रा के दौरान पूर्ववर्ती योजना आयोग और चीन के राष्ट्रीय विकास एवं सुधार आयोग (National Development and Reform Commission-NDRC) द्वारा की गई, SED ने तब से लेकर अब तक द्विपक्षीय व्यावहारिक सहयोग को बढ़ावा देने की दिशा में एक प्रभावी तंत्र के रूप में काम किया है। नीति आयोग ने अपने गठन के बाद इस संवाद को अधिक गति प्रदान करते हुए इसे आगे बढ़ाया है। SED के तत्त्वावधान में, दोनों पक्षों के वरिष्ठ प्रतिनिधि रचनात्मक विचार-विमर्श के लिये एक साथ आते हैं और व्यक्तिगत सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों को साझा करते हैं तथा सफलतापूर्वक व्यापार करने एवं द्विपक्षीय व्यापार तथा निवेश के प्रवाह को सुविधाजनक बनाने के लिये सेक्टर-विशिष्ट चुनौतियों और अवसरों की पहचान करते हैं।

संरचना:

  • भारतीय पक्ष में नीति आयोग (पूर्व में योजना आयोग) और चीनी पक्ष में राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग (NDRC) SED तंत्र का नेतृत्व करते हैं, जिसमें दोनों देशों की राजधानी में बारी-बारी से एक वार्षिक वार्ता का आयोजन किया जाता है।
  • नवंबर 2012 में नई दिल्ली में आयोजित किये गए दूसरे SED में, नीति समन्वय, अवसंरचना, पर्यावरण, ऊर्जा और उच्च प्रौद्योगिकी पर 5 स्थायी संयुक्त कार्यदलों का गठन करने का निर्णय लिया गया था ताकि SED के अंतर्गत इन क्षेत्रों में सहयोग को मज़बूत किया जा सके।
  • पाँचवें SED के बाद फॉर्मास्यूटिकल्स पर छठे संयुक्त कार्य समूह का भी गठन किया गया है।

स्रोत: पी.आई.बी.


आयोडीन युक्त नमक और भारत

चर्चा में क्यों?

आयोडीन युक्त नमक के कवरेज को मापने हेतु किये गए राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, देश में नमक का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद तमिलनाडु में आयोडीन युक्त नमक की सबसे कम खपत होती है।

सर्वेक्षण के मुख्य बिंदु:

  • अध्ययन में पाया गया है कि 76.3 प्रतिशत भारतीय परिवार पर्याप्त मात्रा में आयोडीन युक्त नमक का सेवन करते है।
  • आयोडीन युक्त नमक का सबसे कम प्रयोग करने वाले 5 राज्य निम्नलिखित हैं:
    • तमिलनाडु (61.90%)
    • आंध्र प्रदेश (63.90%)
    • राजस्थान (65.50%)
    • ओडिशा (65.80%)
    • झारखंड (68.80%)
  • आयोडीन युक्त नमक का सबसे अधिक प्रयोग करने वाले 5 राज्य निम्नलिखित हैं:
    • जम्मू-कश्मीर (99.80%)
    • नगालैंड (99.70%)
    • मणिपुर (99.50%)
    • मिज़ोरम (99.20%)
    • मेघालय (98.40%)
  • उपरोक्त सर्वेक्षण से ज्ञात होता है कि भारत के पूर्वोत्तर राज्य आयोडीन युक्त नमक का प्रयोग करने में सबसे आगे हैं।
  • गुजरात अकेले देश में 71 प्रतिशत नमक का उत्पादन करता है, जिसके कारण वह देश में नमक का सबसे बड़ा उत्पादक है। गुजरात के बाद राजस्थान (17%) तथा तमिलनाडु (11%) का स्थान आता है। शेष देश में नमक का उत्पादन मात्र 1 प्रतिशत है।

उल्लेखनीय है कि अक्तूबर 2018 से मार्च 2019 के बीच हुए इस सर्वेक्षण में भारत के 29 राज्यों और 7 केंद्रशासित प्रदेशों के कुल 21,406 परिवारों को शामिल किया गया था।

Worth the Salt

आयोडीन

  • आयोडीन एक खनिज पदार्थ है जो आमतौर पर समुद्री भोजन, डेयरी उत्पादों, अनाज और अंडे में पाया जाता है।
  • दुनिया भर में आयोडीन की कमी एक गंभीर समस्या है। वैश्विक स्तर पर 2 बिलियन लोग आयोडीन की कमी से होने वाली बीमारियों के खतरे में हैं।
  • आयोडीन की कमी को रोकने में मदद करने के लिये इसे घरेलू नमक में मिलाया जाता है।
  • भारत में वर्ष 1992 में मानव उपभोग के लिये आयोडीन युक्त नमक को अनिवार्य किया गया था। इस अनिवार्यता को वर्ष 2000 में शिथिल कर दिया गया, परंतु 2005 में इसे फिर से लागू कर दिया गया।
  • वर्ष 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने भी आयोडीन की कमी के नियंत्रण के लिये इसके उपयोग को अनिवार्य कर दिया था।

हमें आयोडीन की आवश्यकता क्यों

  • थायराइड ग्रंथि (Thyroid Gland) के माध्यम से हमारे शरीर के उचित कामकाज और विकास को पूरा करने के लिये हमें आयोडीन की आवश्यकता होती है।
  • हमारे शरीर में लगभग 70-80 प्रतिशत आयोडीन थायराइडग्रंथि में मौजूद होता है और इसका उपयोग थायराइडहार्मोन (Thyroid Hormones) बनाने के लिये किया जाता है।
  • भोजन से आयोडीन को थायराइडग्रंथि द्वारा अवशोषित किया जाता है ताकि थायराइड हार्मोन का उत्पादन किया जा सके जो हमारे शरीर में निम्नलिखित कार्यों को विनियमित करने हेतु ज़िम्मेदार है।
    • शरीर के विकास के लिये
    • शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिये
    • प्रजनन के लिये
    • मांसपेशियों और तंत्रिकाओं के लिये
    • हृदय की गति को नियंत्रित करने के लिये

आयोडीन की कमी के प्रभाव

  • आयोडीन की कमी से थायराइडग्रंथि की कार्यक्षमता बाधित होती है जिससे या तो थायराइडग्रंथि का आकार बढ़ जाता है या फिर उसकी गतिविधि अपेक्षाकृत कम हो जाती है। थायराइडग्रंथि की गतिविधि का कम हो जाना हाइपोथायराइडिज्म (Hypothyroidism) कहलाता है।
  • जो लोग हाइपोथायराइडिज्म से पीड़ित होते हैं उनका वज़न बढ़ने लगता है एवं उन्हें वज़न घटाने में भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे लोग जल्द ही थका हुआ महसूस करते हैं एवं उन्हें ठंड भी अपेक्षाकृत काफी जल्दी लगती है।
  • गर्भावस्था के दौरान माँ और बच्चे दोनों के लिये आयोडीन की कमी खतरनाक साबित हो सकती है।
  • गर्भावस्था के दौरान आयोडीन की गंभीर कमी के कारण गर्भपात की भी संभावना रहती है। शोधों के अनुसार, तकरीबन 100 में से 6 गर्भपात के मामले आयोडीन की अत्यधिक कमी के कारण होते हैं।

रोकथाम हेतु उपाय

  • चूँकि हमारा शरीर स्वाभाविक रूप से आयोडीन नहीं बनाता है, इसलिये हमारा आहार हमें आयोडीन की उचित मात्रा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) आयोडीन की कमी से निपटने के लिये अपने आहार में आयोडीन युक्त भोजन जैसे-समुद्री भोजन, डेयरी उत्पाद, अंडे और मांस को शामिल करने की सिफारिश करता है।

स्रोत: द हिंदू


पृथ्वी के वायुमंडल का फिंगरप्रिंट

चर्चा में क्यों?

कनाडा के मैकगिल विश्वविद्यालय (McGill University) के खगोलविदों ने पृथ्वी के वायुमंडल का एक फिंगरप्रिंट बनाया है, जिसका उद्देश्य बाह्य अंतरिक्ष में मानव के रहने के अनुकूल ग्रहों का पता लगाना है।

प्रमुख बिंदु:

  • पृथ्वी के वातावरण का SCISAT उपग्रह (SCISAT Satellite) द्वारा एक दशक से अधिक समय तक अवलोकन के बाद एकत्र किये गए डेटा का उपयोग करते हुए यह वायुमंडलीय फिंगरप्रिंट तैयार किया गया है।
  • वायुमंडलीय फिंगरप्रिंट पर किये गए अध्ययन का निष्कर्ष रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी (Royal Astronomical Society) नामक विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, इस प्रकार के अध्ययन से जैवहस्ताक्षर (Biosignatures) जैसे संकेतकों का निर्धारण किया जा सकेगा जिससे मानव वास योग्य ग्रहों को खोजने में खगोलविदों को आसानी होगी।
  • वैज्ञानिकों द्वारा विकिरण के प्रयोग से वायुमंडल में मौजूद गैसों का एक जैवहस्ताक्षर (Biosignatures) तैयार किया जाएगा। इस जैवहस्ताक्षर के माध्यम से बाह्य ग्रहों के वायुमंडल में उपस्थित गैसों के आधार पर जीवन की संभावना को व्यक्त किया जा सकेगा।
  • तैयार किये गए वायुमंडलीय फिंगरप्रिंट में ओज़ोन और मीथेन दोनों को एक साथ शामिल किया गया है। उल्लेखनीय है कि ऐसा तभी हो सकता है जब पृथ्वी पर इन यौगिकों का कोई कार्बनिक स्रोत उपलब्ध हो।
  • SCISAT उपग्रह को कैनेडियन स्पेस एजेंसी (Canadian Space Agency) ने ओज़ोन परत पर शोध के लिये विकसित किया था। इसका उद्देश्य वातावरण में मौजूद कणों पर गुज़रते हुए सूर्य के प्रकाश के प्रभावों का अध्ययन करना था।
  • SCISAT उपग्रह के माध्यम से खगोलविद वातावरण में सूर्य की किरणों की चमक में आने वाले बदलावों को देखकर यह अनुमान लगा सकते हैं कि वायुमंडल में कौन-सी गैस विद्यमान हैं।
  • इस अध्ययन के पश्चात् टेलीस्कोप के माध्यम से किसी ग्रह के वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन और जलवाष्प की उपस्थिति से वहाँ पर मानव के बसने की संभावनाओं का पता लगाया जा सकेगा।

ट्रांज़िट स्पेक्ट्रोस्कोपी (Transit Spectroscopy): किसी बाह्य ग्रह के अध्ययन के लिये विभिन्न तकनीकें विद्यमान हैं। ट्रांज़िट स्पेक्ट्रोस्कोपी (Transit Spectroscopy) भी इन्हीं तकनीकों में से एक है।

इसके तहत किसी बाह्य ग्रह के ग्रहण (Esclipe) के दौरान उसके तापीय उत्सर्जन स्पेक्ट्रम का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है जो उस ग्रह की वायुमंडलीय संरचना के संबंध में जानकारी प्रदान करता है।

TRAPPIST-1 सौरमंडल (TRAPPIST-1 Solar System):

  • जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप को वर्ष 2021 में लॉन्च किया जाएगा इसके माध्यम से TRAPPIST-1 सौरमंडल पर जीवन की संभावनाओं को तलाशा जाएगा।

TRAPPIST-1

  • TRAPPIST-1 सौरमंडल पृथ्वी से लगभग 40 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है, इसमें सात ग्रह क्रमशः TRAPPIST-1 b, c, d, e, f, g, h हैं। इन ग्रहों का आकार पृथ्वी के समान है।
  • सात में से तीन ग्रहों TRAPPIST-1 e, f, g के गोल्डीलॉक्स ज़ोन (Goldilocks Zone) में होने की संभावना है। इन ग्रहों का तापमान न तो बहुत गर्म है और न ही बहुत ठंडा इसलिये यहाँ पर तरल पानी के मिलने की संभावना बनी हुई है।
  • TRAPPIST-1e ग्रह पर समशीतोष्ण जलवायु के साथ पानी की उपलब्धता की सबसे प्रबल संभावना है।
  • इस सौरमंडल का तारा TRAPPIST-1A एक लाल बौना तारा है जो हमारे सूर्य से छोटा और ठंडा है।
  • TRAPPIST-1A लाल बौना तारा बेहद सक्रिय है जिसमें से पृथ्वी के अरोरा के समान भारी मात्रा में उच्च ऊर्जा वाले प्रोटॉन (Protons) का उत्सर्जन हो रहा है।
  • यह लाल बौना तारा अपने ग्रहों को ट्रांज़िट स्पेक्ट्रोस्कोपी (Transit Spectroscopy) के लिये सुलभ बनाता है।
  • इस सौरमंडल के ग्रहों की कक्षा इसके तारे के करीब है, इसलिये वे कम समय में तारे का परिक्रमण करते हैं।

जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के माध्यम से इस सौरमंडल पर मानव जीवन की आवश्यक परिस्थितियों की संभावनाओं का पता लगाया जाएगा ।

स्रोत: द हिंदू


फिनटेक से संबंधित मुद्दों हेतु संचालन समिति

चर्चा में क्यों?

फिनटेक से संबंधित मुद्दों पर गठित संचालन समिति ने वित्‍त मंत्रालय को अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपी।

प्रमुख बिंदु:

  • फिनटेक से संबंधित मुद्दों पर संचालन समिति का गठन वित्‍त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग द्वारा किया गया था।
  • इस रिपोर्ट में भारत और विश्व में फिनटेक के वर्तमान परिदृश्‍य की रूपरेखा की जानकारी दी गई है, साथ ही इसके विकास से जुड़े विभिन्‍न विषयों का अध्‍ययन किया गया है।
  • इस समिति ने फिनटेक संबंधी विनियमों को और लचीला बनाने, MSME के माध्यम से वित्‍तीय समावेशन को बढ़ाने की सिफारिशें की हैं।
  • समिति की रिपोर्ट में शासन और वित्‍तीय सेवाओं में लागू करने वाले क्षेत्रों की पहचान की गई है तथा फिनटेक सेवाओं को सक्षम बनाने वाले विनियमों को अपग्रेड करने का सुझाव दिया गया है।
  • समिति ने भारतीय रिज़र्व बैंक से MSME क्षेत्र में नकदी प्रवाह के माध्यम से वित्‍तपोषण बढ़ाने की सिफारिश की है। इसके अतिरिक्त समिति द्वारा अवसंरचना और मानकीकरण के महत्त्व को भी इंगित किया गया है।
  • बीमा कंपनियों और ऋण देने वाली एजेंसियों को प्रोत्‍साहित करने की सिफारिश की गई जिससे फसल क्षेत्र के नुकसान आकलन के लिये ड्रोन और रिमोट सेंसिंग टेक्‍नोलॉजी का इस्‍तेमाल किया जा सके।
  • आर्टिफिशियल इनटेलिजेंस के प्रयोग को बढ़ाने के साथ ही साइबर अपराध तथा जालसाजी से निपटने हेतु और बेहतर तंत्र विकसित करने की बात कही गई।
  • फिनटेक के माध्यम से ऋण रजिस्‍ट्री तैयार किये जाने की बात कही गई जिससे सहकारी समितियों सहित कृषि वित्‍तीय संस्‍थानों द्वारा कोर बैंकिंग समाधानों का प्रयोग किया जा सके।
  • राष्‍ट्रीय भूमि रिकॉर्ड मानकों पर आधारित एक समर्पित राष्‍ट्रीय डिजिटल भूमि रिकॉर्ड मिशन स्‍थापित करने की सिफारिश की गई।
  • समिति ने फिनटेक और डिजिटल सेवाओं में वृद्धि के बढ़ने को ध्‍यान में रखते हुए उपभोक्‍ता संरक्षण के लिये एक विस्‍तृत कानूनी ढांँचा तैयार करने की सिफारिश की है।

फिनटेक क्या है?

  • फिनटेक (FinTech) Financial Technology का संक्षिप्त रूप है। वित्तीय कार्यों में प्रौद्योगिकी के उपयोग को फिनटेक कहा जा सकता है।
  • दूसरे शब्दों में यह पारंपरिक वित्तीय सेवाओं और विभिन्न कंपनियों तथा व्यापार में वित्तीय पहलुओं के प्रबंधन में आधुनिक तकनीक का कार्यान्वयन है।
  • बैंक में पहले किसी विवरण को रजिस्टर पर लिखा जाता था जिसमें काफी समय भी लगता था। वर्तमान में अब बैंकिंग प्रणाली में प्रौद्योगिकी के प्रयोग से कोर बैंकिंग सिस्टम प्रचलन में आ गया है और इससे बैंकिंग प्रणाली आसान हो गई है। इस प्रकार की वित्तीय प्रौद्योगिकी को फिनटेक कहा जाता है।
  • बैंकों द्वारा फिनटेक के माध्यम से मोबाइल वॉलेट सर्विस तथा UPI और भीम एप लॉन्च करके बैंकिंग प्रणाली को आसान बनाया जा रहा है।
  • फिनटेक बैंकों के लिये भुगतान, नकद हस्तांतरण जैसी सेवाओं में काफी मददगार साबित हो रहा है, साथ ही यह देश के दूरदराज़ के इलाकों तक बैंकिंग सेवाएँ भी उपलब्ध करा रही है।
  • देश में आज पेटीएम, मोबीक्विक और फ्रीचार्ज जैसी कंपनियाँ तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं तथा बैंकों के साथ समन्वय से छोटी कंपनियों को भी अपने नए आइडिया पर काम करने का मौका मिल रहा है।
  • सरकार द्वारा देश की अर्थव्यवस्था को कैशलेस बनाने का प्रयास किया जा रहा है। फिनटेक कैशलेस अर्थव्यवस्था के प्रयासों में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करेगी।

स्रोत: द हिंदू


बायो-उत्प्रेरक

चर्चा में क्यों?

चेन्नई स्थित केंद्रीय चमड़ा अनुसंधान संस्थान (Central Leather Research Institute (CSIR-CLRI) के शोधकर्त्ताओं ने एमाइलेज-आधारित जैव उत्प्रेरक (Biocatalyst) विकसित किया है।

प्रमुख बिंदु

  • जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering) के माध्यम से एमाइलेज के एंजाइमी गुणों में सुधार किया गया।
  • इस प्रक्रिया में किसी भी रसायन का उपयोग नहीं किया जाएगा जिससे जल की रासायनिक ऑक्सीजन की मांग (Chemical Oxygen Demand) लगभग 35% कम हो जाएगी।
  • यह जैव-उत्प्रेरक चमड़े के प्रसंस्करण को पर्यावरण अनुकूल बनाने तथा इसके पूर्व-शोधन के चरण में लगने वाले समय में भी कटौती करने में सहायक होगा।
  • चमड़े के प्रसंस्करण के दौरान पूर्व-शोधन (Pre-Tanning) की प्रक्रिया कुल प्रदूषण का 60-70% उत्पन्न करती है।
  • इस जैव-उत्प्रेरक के प्रयोग से चमड़े के प्रसंस्करण के दौरान उपयोग की मात्रा में तिगुना तक कमी आएगी जिससे अपशिष्ट प्रवाह में भी कमी होगी।
  • जैव-उत्प्रेरक के प्रयोग से पर्यावरण में क्रोमियम (Chromium) की कम मात्रा का निर्वाह होगा। क्रोमियम का उपयोग कोलेजन (Collagen) की स्थिरता को बढ़ाने के लिये किया जाता है।

यह कैसे कार्य करेगा?

  • यह जैव-उत्प्रेरक त्वचा में मुख्य रूप से उपस्थित ग्लाइकन शुगर (Glycosaminoglycan) के साथ 120 गुना अधिक बंधकारी (Binding) होता है। एक बार जब उत्प्रेरक ग्लाइकन शुगर से बंध बनाता है तो हाइड्रोलिसिस (Hydrolysis) प्रक्रिया से ग्लाइकन शुगर चमड़े के फाइबर को मुक्त करती है।
  • इस जैव-उत्प्रेरक के प्रयोग से बंध बनाने और हाइड्रोलिसिस की प्रक्रिया त्वरित गति से होगी जबकि पारंपरिक एंजाइम फाइबर को मुक्त करने में 3 से 4 घंटे का समय लेते हैं।

glycosaminoglycan

लाभ

  • यह चमड़े से फाइबर को मुक्त करने की प्रक्रिया को तीव्र करेगा फलस्वरूप चमड़े के उत्पादन की प्रक्रिया में लगने वाले समय में कमी आएगी।
  • यह चमड़े में भीतर तक समाएगा जिसके दो लाभ होंगे-
    • यह कोलेजन (Collagen) की स्थिरता को बढ़ाने के लिये क्रोमियम के उपयोग को कम करेगा।
    • यह तैयार चमड़े की गुणवत्ता में वृद्धि करेगा।
  • जैव-उत्प्रेरक 90 डिग्री सेल्सियस के उच्च तापमान एवं pH10 तक स्थिर रहेगा, इसलिये 90% एंजाइम को एकल प्रक्रिया के द्वारा पुनः प्राप्त कर चमड़े का पुनः उपयोग किया जा सकेगा।

जैव-उत्प्रेरक

  • यह एक एंजाइम या प्रोटीन (Enzyme or Protein) होता है जो जैव रासायनिक प्रतिक्रिया (Biochemical Reaction) की दर को बढ़ाता है या उत्प्रेरित करता है।
  • एमाइलेज-आधारित जैव-उत्प्रेरक एक प्रोटीन की तरह होता है जो स्टार्च को सरल शुगर अणुओं में तोड़कर जैव रासायनिक प्रतिक्रिया की दर को बढ़ाता है।

रासायनिक ऑक्सीजन मांग (Chemical Oxygen Demand-COD)

  • यह जल में ऑक्सीजन की वह मात्रा है जो उपस्थित कुल कार्बनिक पदार्थो (घुलनशील अथवा अघुलनशील) के ऑक्सीकरण के लिये आवश्यक होती है।
  • यह जल प्रदूषण के मापन के लिये बेहतर विकल्प है।

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद- केंद्रीय चमड़ा अनुसंधान संस्थान

(Council of Scientific and Industrial Research- Central Leather Research Institute, CSIR-CLRI)

  • इसकी स्थापना वर्ष 1948 में हुई थी।
  • इसकी स्थापना का उद्देश्य चमड़ा उद्योग के लिये प्रौद्योगिकियों को विकसित करने, उन्हें आत्मसात करना और नवाचार के लिये देश को सक्षम बनाना था।
  • यह चमड़े से संबंधित क्षेत्रों में शिक्षा और प्रशिक्षण में प्रत्यक्ष भूमिका के माध्यम से मानव संसाधन का विकास तथा अनुसंधान में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिये अधिदेश प्राप्त है।

स्रोत: द हिंदू


सिंधु घाटी सभ्यता की स्वतंत्र वंशावली

चर्चा में क्यों?

हरियाणा स्थित हड़प्पा स्थल ‘राखीगढ़ी’ के कब्रिस्तान की खुदाई से निकले कंकाल के DNA (DeoxyriboNucleic Acid) पर किये गए अध्ययन के अनुसार, सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों की एक स्वतंत्र वंशावली है।

Rakhigarhi

प्रमुख बिंदु

  • इस अध्ययन ने हड़प्पावासियों की वंशावली के स्टेपी क्षेत्र के पशुपालकों (Steppe Pastoral) या प्राचीन ईरानी किसानों (Ancient Iranian Farmer Ancestry) से संबंधित होने की पूर्व अवधारणा को अस्वीकार कर दिया गया है।
  • अध्ययन के अनुसार, इन कंकालों के DNA में स्टेपी क्षेत्र या प्राचीन ईरानी किसानों की वंशावली से संबंधित कोई भी जीनोम (Genome) नहीं है।
  • यह अध्ययन दक्षिण एशिया के बाहर से हड़प्पा काल के दौरान हुए सामूहिक प्रवास (Mass Migration) की परिकल्पना को भी अस्वीकार करता है।
  • इसके अनुसार, शिकारी व संग्राहक जीवन से उतरोत्तर समय तक किये गए DNA परीक्षण के परिणामों में आनुवंशिक निरंतरता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। कालांतर में यही शिकारी व संग्राहक समुदाय (Hunter-Gatherers) कृषि समुदाय में परिवर्तित हुआ और हड़प्पा सभ्यता की शुरुआत हुई।
  • शोधकर्त्ताओं द्वारा दिये गए निष्कर्ष के अनुसार, दक्षिण एशिया में कृषि की शुरुआत का कारण पश्चिम से भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवास नहीं था, अपितु सिंधु सभ्यता के लोगों ने स्वयं कृषि संस्कृति विकसित की थी।
  • शोधकर्त्ताओं द्वारा दिये गए निष्कर्ष के अनुसार, हड़प्पा के लोगों की उपस्थिति तुर्कमेनिस्तान के गोनूर और ईरान में सहर-ए-सोख्ता जैसी जगहों पर भी पाई गई है जिससे पता चलता है कि पूर्व से पश्चिम तक लोगों की आवाजाही थी।
  • दक्षिण एशिया में 4000 वर्ष पूर्व इंडो-यूरोपियन भाषाओं को लाने वाले स्टेपी पशुपालकों के आगमन से पहले तक बड़े पैमाने पर मानवीय गतिविधियों का कोई प्रमाण नहीं मिलता है।

कृषि की उत्पत्ति

  • प्राचीन-DNA अध्ययनों से पता चलता है कि यूरोप में आधुनिक तुर्की स्थित अनातोलिया में वंश परंपरा की शुरुआत के साथ कृषि व्यवस्था का प्रसार हुआ।
  • नए अध्ययन में ईरान और तूरान (दक्षिणी मध्य एशिया) में एक समान मानवीय गतिविधियों दिखायी पड़ती है। यहाँ शोधकर्त्ताओं ने पाया कि अनातोलिया-संबंधित वंश और कृषि प्रसार यहाँ एक ही समय में हुआ था।

सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilisation-IVC)

  • यह हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी प्रसिद्ध है।
  • लगभग 2,500 ईसा पूर्व में यह समकालीन पाकिस्तान और पश्चिमी भारत में विकसित हुई।
  • सिंधु घाटी सभ्यता चार प्राचीन शहरी सभ्यताओं यथा; मिस्र, मेसोपोटामिया, भारत और चीन की में सबसे बड़ी थी।
  • वर्ष 1920 के दशक में भारतीय पुरातत्त्व विभाग (Indian Archeological Department) ने सिंधु घाटी में खुदाई की जिसमें दो पुराने शहरों मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा के खंडहर का पता चला।

स्रोत: द हिंदू


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (10 September)

  • गुवाहाटी में 8 और 9 सितंबर को पूर्वोत्तर परिषद के दो दिवसीय 68वें पूर्ण सत्र का आयोजन किया गया। बैठक में यह तय किया गया कि पूर्वोत्तर में समाज के वंचित वर्गों और प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के वित्त पोषण के लिये पूर्वोत्तर परिषद अपनी निधि के 30 प्रतिशत का प्रावधान करेगी। केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर परिषद को वर्ष 2019-20 के लिये 1476 करोड़ रुपए का बजटीय प्रावधान किया है। पूर्ण सत्र में आठ पूर्वोत्तर राज्यों के राज्यपालों तथा मुख्यमंत्रियों सहित अन्य सदस्यों ने हिस्सा लिया। केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में सरकार द्वारा किये जाने वाले प्रयासों के बारे में जानकारी दी। विदित हो कि राज्यों के बीच समन्वय स्थापित करने और अंतर-राज्य संबंधों को और अधिक मज़बूत बनाने के लिये राज्य पुनर्गठन कानून, 1956 के तहत पाँच क्षेत्रीय परिषदों (पश्चिमी, पूर्वी, उत्तरी, दक्षिणी और मध्य क्षेत्रीय परिषदों) का गठन किया गया। इन परिषदों का कार्य आर्थिक एवं सामाजिक योजना के क्षेत्र में साझा हितों से जुड़े मुद्दों, सीमा विवादों, भाषाई अल्पसंख्यकों या अंतर-राज्य परिवहन इत्यादि से जुड़े मुद्दों पर चर्चा और सिफारिश करना है।
  • बेंगलुरु के एक स्कूल में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का अनूठा प्रयोग हुआ है। स्कूल में बच्चों की फिजिक्स की क्लास ईगल 2.0 रोबोट ले रहा है। ईगल 2.0 रोबोट को 17 सदस्यों की एक टीम ने बनाया है और इसे बनाने में 8 लाख रुपए की लागत आई है। इस रोबोट को महिला की आवाज़ और लुक में तैयार किया गया है। इस रोबोट को कुछ इस तरह से तैयार किया गया है कि ये न सिर्फ छात्रों से सवाल पूछता है, बल्क‍ि उनके द्वारा पूछे हुए सवालों के जवाब भी देता है। बेंगलुरु के इंडस इंटरनेशनल स्कूल में कक्षा 7, 8 और 9 के छात्रों को फिजिक्स, केमेस्ट्री, बायोलॉजी के साथ जियोग्राफी व हिस्ट्री आदि सब्जेक्ट पढ़ाने के लिये सहायक शिक्षक के रूप में ह्यूमनॉइड रोबोट की मदद ली गई है। ईगल 2.0 में भी उसी मोटर का इस्तेमाल किया गया है, जो चर्चित मानव रोबोट सोफिया के लिये प्रयोग किया गया था।
  • दुनियाभर में 8 सितंबर को विश्व फिज़ियोथेरेपी दिवस का आयोजन किया गया। मानव के शरीर की क्षमता में ही शरीर का इलाज छुपा है। इस वर्ष की थीम है ‘क्रोनिक पेन’। फिजियोथेरेपी मेडिकल साइंस की ऐसी प्रणाली है, जिसकी सहायता से जटिल रोगों का इलाज आसानी से किया जाता है। इस दिन को वर्ष 1996 में World Confederation for Physical Therapy द्वारा नामित किया गया था।