मातृत्व मृत्यु दर

प्रीलिम्स के लिये

मातृत्व मृत्यु दर क्या है?

मेन्स के लिये

भारत में मातृत्व मृत्यु दर की वास्तविक स्थिति तथा इसके नियंत्रण के प्रयास

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा मातृत्व मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate-MMR) पर वर्ष 2015-17 के आँकड़े जारी किये गये।

मुख्य बिंदु

MMR पर जारी आँकड़ों के अनुसार, भारत में एक वर्ष में 8 अंकों (6.2%) की कमी दर्ज की गई है। इसका अर्थ है कि प्रसव के दौरान होने वाली मौतों में प्रत्येक वर्ष लगभग 2000 की कमी आई है।

MMR पर जारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2014-16 में प्रति एक लाख जीवित शिशुओं पर यह संख्या 130 थी वहीँ वर्ष 2015-17 में यह संख्या घटकर 122 प्रति एक लाख हो गई।

वर्ष (Year) 2011-13 2014-16 2015-17
मातृत्व मृत्यु दर (MMR) 167 130 122
  • भारत में मातृत्व मृत्यु दर की प्रकृति को क्षेत्रीय आधार पर समझने के लिये सरकार ने देश को तीन समूहों में विभाजित किया है। जिसमें पहला समूह - Empowered Action Group-EAG, दूसरा समूह - दक्षिणी राज्य तथा तीसरा समूह - अन्य राज्य है।
Empowered Action Group-EAG बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड तथा असम
दक्षिणी राज्य (Southern States) आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल तथा तमिलनाडु
अन्य राज्य (Other states) शेष राज्य व केंद्र शासित प्रदेश
  • MMR में सर्वाधिक कमी EAG राज्यों में आई है। जो की वर्ष 2014-16 में 188 था तथा वर्ष 2015-17 में घटकर 175 हो गया। दक्षिणी राज्यों में यह पिछली गणना (77) की तुलना में 5 की कमी के साथ 72 प्रति 1 लाख हो गया है। अन्य राज्यों के समूह में यह 93 से घटकर 90 हो गया है।
  • आँकड़ों के अनुसार राजस्थान के MMR में सर्वाधिक 13 अंकों की कमी की है। उसके बाद ओडिशा तथा कर्नाटक क्रमशः 12 तथा 11 अंकों की कमी की है। आंध्रप्रदेश, बिहार तथा पंजाब के आँकड़ों में कोई कमी नहीं आई है।
  • देश में न्यूनतम मातृत्व मृत्यु दर (Lowest MMR) में पहले स्थान पर केरल (46), दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र (55) तथा तीसरे स्थान पर तमिलनाडु (63) है।

मातृत्व मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate-MMR) :

प्रति एक लाख जीवित बच्चों के जन्म पर होने वाली माताओं की मृत्यु को मातृत्व मृत्यु दर (MMR) कहते हैं।

MMR में कमी के कारण

  • पिछले एक दशक में किये गए सुधारों की वजह से MMR में लगातार कमी आई है। जिसके अंतर्गत देश के सबसे पिछड़े तथा सीमान्त क्षेत्रों में संस्थागत प्रसव, आकांक्षी जिलों पर विशेष ध्यान तथा अंतर-क्षेत्रक कार्यक्रमों का विशेष योगदान रहा है।
  • स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता तथा उसकी व्यापक पहुँच में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसी सरकारी योजनाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इसके अंतर्गत लक्ष्य (LaQshya), पोषण अभियान, प्रधान मंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान, जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम, जननी सुरक्षा योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना तथा हाल ही में लॉन्च सुरक्षित मातृत्व आश्वासन इनिशिएटिव (SUMAN) योजना आदि शामिल है।

स्रोत : द हिंदू, पी. आई. बी.


भारत में बंधुआ मज़दूरी

प्रीलिम्स के लिये:

बंधुआ मज़दूरी, बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, बंधुआ मज़दूर पुनर्वास योजना

मेन्स के लिये:

भारत में बंधुआ मज़दूरी की वर्तमान स्थिति और संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी में ज़िक्र किया गया कि यदि देश में सती प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों को समाप्त किया जा सकता है, तो बंधुआ मज़दूरी को क्यों नहीं?

  • गौरतलब है कि भारत में बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 के माध्यम से बंधुआ मज़दूरी को पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया गया था।
  • श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय के आँकड़े बताते हैं कि बीते 4 वर्षों में 13,500 से अधिक बंधुआ मज़दूरों को रिहा करवाया गया और उनके पुनर्वास की व्यवस्था की गई।

बंधुआ मज़दूरी और भारत में उसकी स्थिति

  • बंधुआ मज़दूरी में व्यक्ति निश्चित समय तक सेवाएँ देने के लिये बाध्य होता है। ऐसा वह साहूकारों या ज़मींदारों से लिये गए ऋण को चुकाने के लिये करता है। एक अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2018 में भारत में लगभग 32 लाख बंधुआ मज़दूर थे और इनमें से अधिकांश ऋणग्रस्तता के शिकार थे।
  • वर्ष 2016 में जारी ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स के मुताबिक, भारत में तकरीबन 8 मिलियन लोग आधुनिक गुलामी में जी रहे हैं।
  • बंधुआ मज़दूरी मुख्यतः कृषि क्षेत्र तथा अनौपचारिक क्षेत्र, जैसे- सूती कपड़ा हथकरघा, ईंट भट्टे, विनिर्माण, पत्थर खदान, रेशमी साड़ियों का उत्पादन, चाँदी के आभूषण, सिंथेटिक रत्न आदि में प्रचलित है।
  • गौरतलब है कि कम आय वाले राज्य जैसे- झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश आदि बंधुआ मज़दूरी की दृष्टि से अधिक संवेदनशील हैं।

बंधुआ मज़दूरी के प्रसार के कारण

  • विशेषज्ञों के अनुसार, देशव्यापी स्तर पर फैली गरीबी और सामाजिक-आर्थिक असमानता बंधुआ श्रम के प्रसार के पीछे प्रमुख कारण है।
  • भूमिहीनता को भी बंधुआ मज़दूरी के प्रसार का बड़ा कारण माना जा सकता है। भूमि न होने के कारण लोगों को मज़दूरी के विकल्प का चुनाव करना पड़ता है और वे ऋण जाल में फँस जाते हैं।
  • औपचारिक ऋण की अनुपस्थिति में ग्रामीण गरीब धन उधारदाताओं से ऋण लेने के लिये मजबूर हो जाते हैं।
  • श्रमिकों और नियोक्ताओं के मध्य इस संबंध में जागरूकता की कमी भी देखी गई है।

बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976

  • बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 आर्थिक और सामाजिक रूप से कमज़ोर वर्गों के शोषण को रोकने के उद्देश्य वर्ष 1976 में इसे अधिनियमित किया गया था।
  • इस अधिनियम के तहत बंधुआ मज़दूरी को पूरी तरह से खत्म कर मज़दूरों को रिहा कर दिया गया और उनके कर्ज़ भी समाप्त कर दिये गए।
  • साथ ही इस अधिनियम के तहत बंधुआ मज़दूरी प्रथा को एक दंडनीय संज्ञेय अपराध भी घोषित किया गया।
  • विदित हो कि यह कानून श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय तथा संबंधित राज्य सरकार द्वारा प्रशासित और कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • मंत्रालय द्वारा बंधुआ मज़दूरी को पूर्णतः समाप्त करने के उद्देश्य से बंधुआ मज़दूरों के पुनर्वास से संबंधित भी कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं।

अधिनियम के मुख्य प्रावधान:

  • बंधुआ मज़दूरी प्रणाली को समाप्त कर प्रत्येक बंधुआ मज़दूर को मुक्त किया जाए।
  • कोई भी प्रथा, समझौता या अन्य साधन जिसके आधार पर किसी व्यक्ति को बंधुआ मज़दूरी जैसी कोई सेवा देने की आवश्यकता हो, को निरस्त किया गया है।
  • अधिनियम के लागू होने से पूर्व लिये गए ऋण को चुकाने के लिये बंधुआ मज़दूर के दायित्व को समाप्त किया जाता है।

पुनर्वास के प्रयास- बंधुआ मज़दूर पुनर्वास योजना 2016

  • इस योजना के तहत बंधुआ मज़दूरी से मुक्त किये गए वयस्क पुरुषों को 1 लाख रुपए तथा बाल बंधुआ मज़दूरों और महिला बंधुआ मज़दूरों को 2 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।
  • साथ ही योजना के तहत प्रत्येक राज्य को इस संबंध में सर्वेक्षण के लिये भी प्रति ज़िला 4.50 लाख रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

स्रोत: द हिंदू


नेशनल हेल्थ स्टैक तथा नेशनल डिजिटल हेल्थ ब्लूप्रिंट

प्रीलिम्स के लिये

नेशनल हेल्थ स्टैक, नेशनल डिजिटल हेल्थ ब्लूप्रिंट

मेन्स के लिये

यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज की दिशा में नेशनल हेल्थ स्टैक तथा नेशनल डिजिटल हेल्थ ब्लूप्रिंट का योगदान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आयुष्मान भारत योजना के सफल क्रियान्वयन में तकनीक के प्रयोग के लिये आई. टी. तथा संचार सचिव जे. सत्यनारायण की अध्यक्षता में गठित समिति ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी।

  • इस रिपोर्ट में नेशनल हेल्थ स्टैक (National Health Stack-NHS) तथा नेशनल डिजिटल हेल्थ ब्लूप्रिंट (National Digital Health Blueprint-NDHB) के प्रयोग का प्रस्ताव रखा गया।

नेशनल हेल्थ स्टैक

(National Health Stack-NHS)

वर्ष 2018 में नीति आयोग द्वारा प्रारंभ किया गया NHS एक डिजिटल अवसंरचना है जिसका निर्माण देश की स्वास्थ्य बीमा प्रणाली को अधिक पारदर्शी तथा मज़बूत बनाना है। NHS के पाँच मुख्य घटक हैं।

  1. एक इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय स्वास्थ्य रजिस्ट्री (National Health Registry) का निर्माण किया जाएगा जो पूरे देश के स्वास्थ्य आँकड़ों के लिये एकल स्रोत का कार्य करेगी।
  2. कवरेज तथा दावा प्लेटफॉर्म (Coverage and claims platform), यह बड़ी स्वास्थ्य सुरक्षा योजनाओं की विस्तृत पहुँच तथा उनसे संबंधित दावों के लिये एक मंच का कार्य करेगा। इसके साथ ही यह राज्यों को आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं के क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर विस्तार हेतु अनुमति देगा तथा इनके क्रियान्वयन में धोखाधड़ी का पता लगाने में एक मज़बूत भूमिका निभाएगा।
  3. मानव स्वास्थ्य की समझ को और अधिक विकसित करने के लिये एक एकीकृत व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड (Federated Personal Health Record) बनाया जाएगा। इसका प्रयोग मरीज़ द्वारा उसके स्वयं के स्वास्थ्य आँकड़ों को देखने तथा चिकित्सा क्षेत्र में शोध के लिये किया जा सकता है।
  4. इसके तहत एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य विश्लेषण प्लेटफॉर्म (National Health Analytics Platform) का निर्माण किया जाएगा जो कि विभिन्न स्वास्थ्य नवाचारों पर आधारित सूचनाओं को एकत्रित करेगा। इसके द्वारा भविष्य में स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं के नीति निर्माण में मदद मिलेगी।
  5. इसके अलावा कई अन्य घटक इसमें शामिल हैं। जैसे कि यूनिक हेल्थ आईडी (Unique Health ID-UHID), हेल्थ डेटा डिक्शनरी (Health Data Dictionary) तथा दवाओं की आपूर्ति शृंखला प्रबंधन (Supply Chain Management) और उससे संबंधित भुगतान प्रणाली का निर्माण आदि।

नेशनल डिजिटल हेल्थ ब्लूप्रिंट

(National Digital Health Blueprint-NDHB)

  • यह NHS के क्रियान्वयन के लिये तैयार किया गया एक संरचनात्मक दस्तावेज़ है। इसका लक्ष्य एक ऐसे राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी (Digital Health Ecosystem) का निर्माण करना है जिसके माध्यम से देश में दक्ष, सुलभ, समावेशी, सस्ता, समयोचित तथा सुरक्षित यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (Universal Health Coverage) को लागू किया जा सके।
  • इस ब्लूप्रिंट की मुख्य विशेषताओं में एक एकीकृत संरचना, संरचना से संबंधित सिद्धांत, पाँच स्तरीय संरचनात्मक इकाई (Building Blocks), यूनिक हेल्थ आईडी (UHID), निजता तथा सहमति प्रबंधन, स्वास्थ्य विश्लेषण आदि शामिल हैं।
  • इसके साथ ही इन सभी सुविधाओं तक आसानी से पहुँच के लिये इसे कॉल सेंटर, डिजिटल इंडिया हेल्थ पोर्टल (Digital India Health Portal) तथा माय हेल्थ मोबाइल एप (MyHealth App) से जोड़ा जाएगा।
  • NDHB के सफल क्रियान्वयन तथा प्रचार के लिये राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन National Digital Health Mission) की स्थापना की जाएगी।

NHS की आवश्यकता

  • वर्तमान में भारत में आयुष्मान भारत - प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) के अतिरिक्त अनेक योजनाएँ राज्यों के स्तर पर चल रही हैं। जैसे- पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य साथी, तेलंगाना में आरोग्यश्री, तमिलनाडु में मुख्यमंत्री व्यापक स्वास्थ्य बीमा योजना (Chief minister’s Comprehensive Health Insurance Scheme), महाराष्ट्र में महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना आदि। यूनिवर्सल हेल्थ केयर के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये आवश्यक है कि इन सभी योजनाओं को एकीकृत किया जाए जिसके लिये NHS एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
  • देश में संचालित अन्य सभी स्वास्थ्य योजनाओं के संचालन तथा अंतर-संचालनीयता (Inter-Operabilty) के लिये एक सामान्य भाषा की आवश्यकता होगी। NHS इसके लिये प्रभावी होगा।

आयुष्मान भारत - प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY)

  • यह भारत सरकार की एक फ्लैगशिप योजना है जिसका मुख्य उद्देश्य देश में यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज तथा सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ना है। इसकी स्थापना राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2017 के अनुदेशों पर की गई थी।
  • आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत इसकी दो शाखाएँ हैं। पहली शाखा है- हेल्‍थ एंड वेलनेस सेंटर जिसके अंतर्गत प्राथमिक उपचार शामिल है तथा दूसरी शाखा है- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) जिसके अंतर्गत 10.74 करोड़ परिवारों को 5 लाख रुपए की स्वास्थ्य सुविधा दी जाएगी।
  • पश्चिम बंगाल ने स्वयं को आयुष्मान भारत योजना से अलग कर लिया है। तेलंगाना तथा ओडिशा प्रारंभ से ही इसका हिस्सा नहीं थे।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


HIV के नए उप-प्रकार की खोज

प्रीलिम्स के लिये:

ह्यूमन इम्यूनोडिफ़िशिएंसी वायरस,एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने ह्यूमन इम्यूनोडिफ़िशिएंसी वायरस (Human Immunodeficiency Virus- HIV) का एक नया उप-प्रकार खोजा है जिसे HIV-1 ग्रुप M, उप-प्रकार L कहा गया है। यह पहली बार है जब लगभग दो दशकों में HIV के एक उप-प्रकार की खोज की गई है।

  • HIV दो प्रकार के होते हैं:
    • HIV-1
    • HIV-2
  • HIV-1 को विश्व भर में अधिकांश संक्रमणों का प्रतिनिधित्व करने वाला प्रमुख प्रकार माना जाता है, जबकि HIV-2 कम क्षेत्रों में पाया जाता है और यह मुख्यतः पश्चिम एवं मध्य अफ्रीकी क्षेत्रों में ही केंद्रित है।

प्रमुख बिंदु

  • शोधकर्त्ताओं ने इस नए उप-प्रकार की पहचान करने के लिये अगली पीढ़ी की जीनोम अनुक्रमण तकनीक की टेलर्ड विधि का प्रयोग किया।
    • जीनोम अनुक्रमण के तहत डीएनए अणु के भीतर न्यूक्लियोटाइड के सटीक क्रम का पता लगाया जाता है। इसके अंतर्गत डीएनए में मौज़ूद चारों तत्त्वों- एडानीन (A), गुआनीन (G), साइटोसीन (C) और थायामीन (T) के क्रम का पता लगाया जाता है।
    • यह तकनीक उत्परिवर्तित होने वाले विषाणुओं से एक कदम आगे की सुरक्षा प्रदान करती है तथा महामारियों से लड़ने में मदद करती है।
  • ग्रुप एम वायरस वैश्विक महामारी के लिये ज़िम्मेदार हैं। यह उप-सहारा अफ्रीका के कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में खोजा गया है।

ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस- एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम

  • HIV एक प्रकार का रेट्रोवायरस है। इसके इलाज में उपयोग की जाने वाली दवाओं के संयोजन को एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (Antiretroviral Therapy- ART) कहा जाता है।
  • HIV शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में सीडी 4 नामक श्वेत रक्त कोशिका (टी-सेल्स) पर हमला करता है।
  • यह रोग रक्त, वीर्य, ​​योनि स्राव, गुदा तरल पदार्थ और माँ के दूध सहित शारीरिक तरल पदार्थ के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है।
  • भारत में HIV संक्रमित व्यक्तियों की संख्या: विश्व में HIV ग्रस्त लोगों की कुल संख्या 2017 में 21.40 लाख थी। भारत में 2017 में 87,000 से अधिक नए मामले देखे गए तथा 1995 की तुलना में HIV के मामलों में 85% की गिरावट भी देखी गई है ।
  • विश्व एड्स दिवस 1 दिसंबर को मनाया जाता है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भारत में मृत्यु दर

प्रीलिम्स के लिये:

ग्रीनहाउस प्रभाव, वैश्विक तापन

मेन्स के लिये:

भारत में मृत्यु दर बढ़ने के कारण के रूप में जलवायु परिवर्तन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में क्लाइमेट इम्पैक्ट लैब द्वारा किये गए जलवायु परिवर्तन से संबंधित एक अध्ययन के अनुसार, भारत में औसत तापमान में वृद्धि से इस सदी के अंत तक मृत्यु दर में 10% की वृद्धि हो सकती है।

मुख्य बिंदु:

  • अमेरिका स्थित क्लाइमेट इम्पैक्ट लैब (Climate Impact Lab) ने जलवायु परिवर्तन से संबंधित एक अध्ययन में बताया है कि भारत में इस सदी के अंत तक मृत्यु दर में 10% की बढ़ोतरी के साथ मौतों की संख्या में लगभग डेढ़ मिलियन की वृद्धि होगी।
  • क्लाइमेट इम्पैक्ट ने भारत से संबंधित यह अध्ययन ‘क्लाइमेट चेंज एंड हीट इन्ड्यूज्ड मोर्टलिटी इन इंडिया’ (Climate Change and Heat Induced Mortality in India) नामक शीर्षक से किया है।
  • क्लाइमेट इम्पैक्ट लैब ने यह अध्ययन विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा संगठनों के सहयोग से किया है।
  • यह अध्ययन अधिक-से-अधिक लोगों को भविष्य के प्रति सचेत करके उन्हें वैश्विक तापन से लड़ने के लिये अनुकूल बनाता है।
  • अध्ययन के अनुसार, अगले 20 वर्षों में भारत का ऊर्जा उपयोग दोगुने से अधिक हो जाएगा, इस ऊर्जा उपयोग में बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधन का प्रयोग किया जाएगा। अगर उत्सर्जन अब भी उतना ही अधिक रहता है तो यह भारत में वर्ष 2100 तक प्रति 100,000 व्यक्तियों पर लगभग 64 व्यक्तियों की मौत का कारण बनेगा ।

अध्ययन संबंधी बिंदु:

  • शोधकर्त्ता ओं ने मौत के इन आँकड़ों को भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, यूरोपीय संघ, मैक्सिको, ब्राज़ील, जापान, चिली सहित 40 देशों से एकत्रित किया है।
  • इस अध्ययन का उद्देश्य कई विभिन्न प्रकार की जलवायु और आर्थिक स्थितियों की गणना करके तापन के कारण मृत्यु दर में होने वाली वृद्धि के बारे में बताना था।
  • मृत्यु दर में होने वाली यह वृद्धि ताप बढ़ने की वजह से हीट स्ट्रोक अथवा हृदय संबंधी बीमारियों के कारण हो सकती है।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, भविष्य में मृत्यु दर में वृद्धि की गणना जलवायु परिवर्तन अनुकूलन लागत के आधार पर की गई है।
  • इस अध्ययन के अनुसार, अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन इसी प्रकार निरंतर जारी रहता है तो वर्ष 2100 तक भारत का औसत तापमान 24°C से 28°C तक बढ़ने की आशंका है।
  • इस अध्ययन के अनुसार, वर्तमान में 35°C तापमान वाले दिनों के तापमान में वर्ष 2050 तक औसतन तीन गुना (5.1°C-15.8°C) वृद्धि की संभावना है, वहीं वर्ष 2100 तक इसमें 42.8°C की बढ़ोतरी हो सकती है।

भारत से संबंधित तथ्य:

Mortality Rate

  • पंजाब भारत में सर्वाधिक वार्षिक औसत तापमान वाला राज्य है परंतु हाल के विश्लेषण से ज्ञात हुआ है कि भारत में वर्तमान तापमान वृद्धि के मामले में लगभग 16 राज्यों में तापमान पंजाब से भी अधिक है।
  • ओडिशा में अत्यधिक गर्म दिनों की संख्या में सर्वाधिक वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
  • इस अध्ययन के अनुसार, भविष्य में तापमान के कारण होने वाली कुल मौतों में से उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में 64% मौतों के होने की आशंका है।
  • इस अध्ययन के अनुसार, अगर भारत ग्रीनहाउस गैस तथा कार्बन उत्सर्जन की दर में कमी करके वर्ष 2040 तक पूर्व औद्योगिक स्तर से 2°C तक की तापमान वृद्धि को रोक लेता है तो ताप के कारण होने वाली 1,00,000 मौतों पर 10 व्यक्तियों की मौत को रोका जा सकता है।

स्रोत- द हिंदू


बर्लिन की दीवार

प्रीलिम्स के लिये:

बर्लिन की दीवार और संबंधित तथ्य

मेन्स के लिये:

बर्लिन की दीवार क्यों बनाई गई, कैसे गिरी और उसके वैश्विक परिणाम

चर्चा में क्यों?

लगभग 30 वर्ष पूर्व आज ही के दिन (9 नवंबर) 1989 में बर्लिन की दीवार को ध्वस्त किया गया था। इस घटनाक्रम ने न केवल विभाजित जर्मनी के लोगों को एक करने का कार्य किया, बल्कि यह उस 'आयरन कर्टन’ के विरोध का प्रतीक भी था जिसने शीत युद्ध के दौरान पश्चिमी यूरोप से पूर्वी ब्लॉक को अलग किया।

  • बर्लिन की दीवार का निर्माण द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वर्ष 1961 में किया गया था और इसने बर्लिन को भौतिक एवं वैचारिक रूप से दो हिस्सों में विभाजित कर दिया था।

क्यों बनाई गई थी बर्लिन की दीवार?

  • द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी की हार के बाद मित्र राष्ट्रों- अमेरिका, यूके, फ्राँस और सोवियत संघ ने जर्मनी की क्षेत्रीय सीमाओं पर नियंत्रण कर लिया और इसे प्रत्येक मित्र शक्ति द्वारा प्रबंधित चार क्षेत्रों में विभाजित कर दिया गया।
  • प्रत्येक ने देश के एक अलग हिस्से की ज़िम्मेदारी ली। जर्मनी के पश्चिमी क्षेत्रों पर ब्रिटेन, अमेरिका और फ्राँस ने कब्ज़ा कर लिया, जबकि सोवियत संघ ने पूर्वी जर्मनी पर नियंत्रण स्थापित किया।
  • ध्यातव्य है कि बर्लिन सोवियत संघ के अधिकार क्षेत्र में आता था, परंतु जर्मनी की राजधानी होने के कारण यह तय किया गया कि इसे भी चार क्षेत्रों में भी विभाजित किया जाएगा।
    • बर्लिन विभाजन के पश्चात् अमेरिकी, ब्रिटिश और फ्राँसीसी क्षेत्र पश्चिम बर्लिन बन गए और सोवियत क्षेत्र पूर्वी बर्लिन बन गया।
  • मित्र देशों द्वारा जर्मनी पर नियंत्रण प्राप्त करने के दो वर्षों बाद कई सामाजिक-राजनीतिक पहलुओं पर मित्र राष्ट्रों और सोवियत संघ के बीच राजनीतिक मतभेद उत्पन्न होने लगे।
  • इनमें सबसे अधिक विवादास्पद अमेरिका द्वारा मार्शल प्लान का विस्तार था। गौरतलब है कि मार्शल प्लान वर्ष 1948 में अमेरिका द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पश्चिमी यूरोप के पुनर्निर्माण के लिये आर्थिक सहायता प्रदान करने से संबंधित था।
  • अमेरिकी प्रस्ताव पूर्वी ब्लाक के भीतर साम्यवादी जर्मनी के स्टालिन दृष्टि के साथ मेल नहीं खाता था और इसीलिये सोवियत संघ ने इस योजना को मंज़ूरी नहीं दी।
  • वर्ष 1948 में बर्लिन की नाकाबंदी ने बर्लिन की दीवार के निर्माण की ज़मीन तैयार कर दी जिसके बाद वर्ष 1949 में सोवियत संघ ने जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य के अस्तित्व की घोषणा की, जिसे पूर्वी जर्मनी भी कहा जाता है।
  • वर्ष 1961 में पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के मध्य की सीमा को पूरी तरह बंद कर दिया गया था और दोनों क्षेत्रों के बीच दीवार खड़ी कर दी गई। इस राजनीतिक घटना की कीमत वहाँ के स्थानीय लोगों को अपने घर, परिवार और नौकरी के रूप में चुकानी पड़ी तथा इसने उनके जीवन को पूरी तरह बदल दिया।

बर्लिन की दीवार क्यों गिरी?

  • पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी में नागरिकों के बीच फैली अशांति के कारण पूर्वी जर्मनी के प्रशासन पर दबाव पड़ा कि वे दोनों क्षेत्रों के मध्य यात्रा प्रतिबंधों को शिथिल करें।
  • पूर्वी जर्मनी के एक राजनीतिक नेता गुंटर शहाबॉस्की को यात्रा प्रतिबंधों में ढील देने की घोषणा करने का कार्य सौंपा गया था, परंतु इस संबंध में कोई जानकरी नहीं दी गई कि नए यात्रा नियमों को कब लागू किया जाएगा।
  • पूर्वी जर्मनी के लोगों को जब इस घोषणा के बारे में जानकारी हुई तो वे बड़ी तदाद में बर्लिन की दीवार के पास पहुँच गए और पश्चिमी जर्मनी में प्रवेश की मांग करने लगे।
  • बड़ी संख्या में होने के कारण लोग दीवार को कूदकर उस पार जाने लगे तथा माहौल पूरी तरह बदल गया। उस दिन यानी 9 नवंबर, 1989 को बर्लिन की दीवार को गिरा दिया गया।

घटनाक्रम के वैश्विक परिणाम

  • ज्ञातव्य है कि दशकों के अलगाव और असमान सामाजिक-आर्थिक विकास के कारण पूर्व और पश्चिम बर्लिन के बीच कई अंतर पैदा हो गए थे।
  • बर्लिन की दीवार गिरने के बाद 3 अक्तूबर, 1990 को पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी ने एक साथ मिलकर एकीकृत जर्मनी का निर्माण किया।
  • राजनीतिक परिवर्तनों के कारण पूर्वी यूरोप लगभग बदल चुका था और इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप वर्ष 1992 की मास्ट्रिच संधि हुई जिसके कारण वर्ष 1993 में यूरोपीय संघ का गठन किया गया।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध और कोरियाई युद्ध के अंत के बाद पूर्वी एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया धीरे-धीरे युद्धों के कहर से उबरने लगे थे।
  • सोवियत संघ के पतन के बाद चीन ने न केवल एशिया में बल्कि विश्व राजनीतिक व्यवस्था में भी अभूतपूर्व वृद्धि देखी।
  • इसके अलावा सोवियत संघ के पतन ने क्यूबा और उसकी अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित किया जो कि मास्को से प्राप्त वित्तीय सब्सिडी पर निर्भर था।
  • उल्लेखनीय है कि संयोगवश बर्लिन की दीवार का गिरना भी अफगानिस्तान से रूस की वापसी के साथ हुआ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (09 नवंबर)

  • महाराष्ट्र में कार्यवाहक मुख्यमंत्री: महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों के कई दिनों बाद भी वहाँ नई सरकार के बनाने का रास्ता अभी तक साफ नहीं हो पाया है। ऐसी स्थिति में राज्य के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस का इस्तीफा स्वीकार करते हुए उन्हें वैकल्पिक व्यवस्था होने तक ‘‘कार्यवाहक मुख्यमंत्री’’ के तौर पर बने रहने की ज़िम्मेदारी सौंपी है। फड़नवीस ने बताया कई वैकल्पिक व्यवस्था कुछ भी हो सकती है। इसके तहत या तो एक नई सरकार का गठन हो सकता है या फिर राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है।
  • भारत करेगा पुरुष हॉकी विश्व कप की मेज़बानी: अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ (एफआईएच) ने शुक्रवार को हुई अपनी बैठक में भारत को 2023 पुरुष हॉकी विश्व कप की मेजबानी के लिये चुना है, जिससे देश लगातार दूसरी बार इस प्रतियोगिता का आयोजन करेगा। एफआईएच के अनुसार, पुरुष हॉकी विश्व कप भारत में 13 से 29 जनवरी, 2023 तक खेला जाएगा। गौरतलब है कि यह फैसला एफआईएच के कार्यकारी बोर्ड द्वारा लिया गया है। इसी बैठक में फैसला किया गया कि स्पेन और नीदरलैंड एक से 22 जुलाई तक आयोजित होने वाले 2022 महिला विश्व कप के सह मेजबान होंगे। उल्लेखनीय है कि पुरुष और महिला दोनों विश्व कप के स्थलों की घोषणा बाद में मेज़बान देशों द्वारा की जाएगी। इस तरह भारत चार पुरुष हॉकी विश्व कप का आयोजन करने वाला पहला देश बन गया। वह इससे पहले 1982 में मुंबई में, 2010 में नयी दिल्ली और 2018 में भुवनेश्वर में इस टूर्नमेंट का आयोजन कर चुका है।
  • करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 09 नवंबर, 2019 को करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन किया। उन्होंने करतारपुर गलियारे के उद्घाटन के साथ ही गुरुनानक जी के 550 प्रकाशोत्सव के मौके पर 550 रुपए का विशेष स्मारक सिक्का भी जारी किया। विदित हो कि भारत और पाकिस्तान के बीच कॉरिडोर को लेकर पहले ही एक समझौते हो चुका है। इस समझौते के तहत भारतीय तीर्थयात्रियों को गुरुद्वारा आने हेतु पाकिस्तान वीज़ा मुक्त प्रवेश देगा। इस समझौते के तहत करीब 5,000 भारतीय श्रद्धालु रोज़ाना गुरुद्वारा दरबार साहिब जा सकेंगे। गौरतलब है कि करतारपुर कॉरिडोर सिखों हेतु सबसे पवित्र जगहों में से एक है। सिखों के पहले गुरु, गुरुनानक देव जी का निवास स्‍थान करतारपुर साहिब था. सिखों के पहले गुरु, गुरुनानक देव ने अपनी जिंदगी के अंतिम 18 साल यहीं गुजारे थे।
  • इन्फोसिस पुरस्कार 2019: इन्फोसिस विज्ञान फाउंडेशन ने अपनी 11वीं वर्षगाँठ के अवसर पर इन्फोसिस पुरस्कार 2019 की घोषणा की है। यह पुरस्कार 6 भिन्न-भिन्न श्रेणियों में प्रदान किया जायेगा। इन 6 पुरस्कारों के लिये प्राप्त की कुल 244 प्रविष्टियों में से विजेताओं को चुना गया है:
  1. इंजीनियरिंग व कंप्यूटर विज्ञान : सुनीता सरवागी (डेटाबेस, डाटा माइनिंग, मशीन लर्निंग तथा नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग में अनुसंधान के लिये)
  2. मानविकी : मनु एस. देवादेवन (प्रागैतिहासिक दक्षिण भारत पर विविध कार्य के लिये)
  3. जीव विज्ञान : मंजुला रेड्डी (बैक्टीरिया में कोशिका भीति के क्षेत्र में शोध के लिये)
  4. गणित : सिद्धार्थ मिश्रा (सिद्धार्थ मिश्रा को एप्लाइड मैथमेटिक्स के क्षेत्र में योगदान के लिये)
  5. भौतिक विज्ञान : मुगेश (मुगेश को नैनोमैटेरियल्स तथा सूक्ष्म मॉलिक्यूल के क्षेत्र में शोध के लिये)
  6. सामाजिक विज्ञान : आनंद पांडियन (आनंद पांडियन को नैतिकता इत्यादि पर कार्य के लिये)

इन्फोसिस पुरस्कार के बारे में:

इन्फोसिस पुरस्कार एक वार्षिक पुरस्कार है, यह पुरस्कार इन्फोसिस विज्ञान फाउंडेशन द्वारा अनुसंधानकर्त्ताओं, वैज्ञानिकों, सामाजिक वैज्ञानिकों और इंजिनियरों को प्रदान किया जाता है। प्रत्येक विजेता को पुरस्कार के रूप में 22 कैरट का स्वर्ण पदक, एक प्रशस्ति प्रमाण पत्र तथा 100000 डॉलर (72 लाख रुपये) दिए जाते हैं। यह भारत में वैज्ञानिक शोध के क्षेत्र में दिया सबसे अधिक धनराशि वाला पुरस्कार है।