डेली न्यूज़ (09 Sep, 2019)



उच्च शिक्षा में महिलाओं की स्थिति

चर्चा में क्यों?

चाइल्ड राइट्स एंड यू (Child Rights and You-CRY) नामक गैर-सरकारी संगठन द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन में उच्च माध्यमिक स्तर पर लड़कियों के पढ़ाई छोड़ने के पीछे के कारणों पर प्रकाश डाला गया है।

  • यह अध्ययन चार राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात और हरियाणा में लिये गए 3,000 साक्षात्कारों पर आधारित है।

लड़कियों द्वारा पढ़ाई छोड़ने के मुख्य कारण

  • उच्च शिक्षा हेतु भेजने पर अधिकतर अभिभावकों को लड़कियों की सुरक्षा संबंधी चिंता होती है।
  • लैंगिक कारण
    • स्कूल में महिला शिक्षक न होने के कारण भी कुछ माता-पिता लड़कियों को स्कूल भेजने से कतराते हैं।
    • कभी-कभी घरेलू काम भी लड़कियों को स्कूल जाने से हतोत्साहित करते हैं।
  • कुछ राज्यों में खराब सड़कें और परिवहन सुविधाओं की कमी भी एक प्रमुख कारण है।
  • अध्ययन के अंतर्गत मासिक धर्म (Menstruation) को भी स्कूल छोड़ने का एक प्रमुख कारण माना गया है।
    • देश के कई स्कूलों में पानी जैसी बुनियादी सुविधाएँ तक उपलब्ध नहीं हैं।
  • शिक्षा की लागत और बाल श्रम भी दो अन्य कारण हैं।
  • देश के कई हिस्सों में लोग बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाओं से परिचित नहीं हैं।
    • अध्ययन में यह भी पता चला है कि कई लड़कियाँ योजनाओं के लाभ के वितरण में देरी तथा अन्य कारणों जैसे - कठोर पात्रता मापदंड, लाभ प्राप्त करने की जटिल प्रक्रिया आदि के परिणामस्वरूप अब तक योजनाओं का पूर्ण लाभ नहीं उठा सकी हैं।
  • इसके अलावा लड़कियों की छोटी उम्र में विवाह भी पढ़ाई छोड़ने का एक प्रमुख कारण होती है।

सुझाव:

  • माता-पिता और समुदाय द्वारा दिये गए समर्थन तथा आत्म-प्रेरणा ने लड़कियों को स्कूल जाने के लिये प्रेरित किया है।
    • अध्ययन के अनुसार, उपरोक्त कारकों के परिणामस्वरूप 88 प्रतिशत लड़कियाँ स्कूल जाने के लिये अभिप्रेरित हुई हैं।
  • जिन चार राज्यों में यह अध्ययन किया गया उनमें रहने वाले 40 प्रतिशत अभिभावकों को लड़कियों की शिक्षा हेतु चल रहे अभियानों के बारे में पता ही नहीं है। अतः इस संदर्भ में उन्हें जागरूक किया जाना भी आवश्यक है।
    • उल्लेखनीय है कि वर्तमान में देश में लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित करने हेतु मुख्यमंत्री साइकिल योजना (Mukhya Mantri Cycle Yojana) तथा बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (Beti Bachao, Beti Padhao) सहित 21 अन्य योजनाएँ लागू हैं।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड


स्वालबार्ड:पृथ्वी पर सबसे तेज़ी से गर्म होने वाला क्षेत्र

चर्चा में क्यों?

पृथ्वी के सबसे उत्तरी क्षेत्र में स्थित नॉर्वे का स्वालबार्ड (SVALBARD) द्वीपसमूह जलवायु परिवर्तन के चरम परिणामों के कारण तेज़ी से प्रभावित हो रहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक का जल स्तर तेज़ी से बढ़ रहा है जिससे यहाँ पर चरम मौसमी गतिविधियाँ देखने को मिल रही हैं।
  • स्वालबार्ड का, वर्ष 1970 की तुलना में वर्तमान औसत वार्षिक तापमान 4 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है जबकि शीत ऋतु का तापमान सामान्य से 7 डिग्री अधिक हो गया है।
  • क्लाइमेट इन स्वालबार्ड वर्ष 2100 (Climate in Svalbard 2100) रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि इस सदी के अंत तक स्वालबार्ड में हवा का वार्षिक स्तर पर औसत तापमान (Annual Mean Air Temperature) 7 से 10 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।
  • आर्कटिक समुद्री बर्फ के स्तर में वर्ष 1979 की तुलना में प्रति दशक लगभग 12% की गिरावट आई है, जिसके परिणामस्वरूप स्वालबार्ड और बैरेंट्स सागर (Barents Sea) क्षेत्र में तापमान में बढ़ोत्तरी हुई है तथा शीत ऋतु की अवधि में कमी आई है।
  • स्वालबार्ड का मुख्य शहर लॉन्गइयरबेन (Longyearbyen) 2,000 से अधिक लोगों की जनसंख्या वाला पृथ्वी का सबसे उत्तरी शहर है और पृथ्वी पर सबसे तेज़ गति से गर्म होने वाला शहर भी है।

स्वालबार्ड (Svalbard)

  • स्वालबार्ड आर्कटिक महासागर में स्थित एक द्वीपसमूह है। यह यूरोप की मुख्य भूमि से करीब 400 मील दूर नार्वे और उत्तरी ध्रुव के बीच स्थित है। स्पिट्सबर्गन (Spitsbergen) इस समूह का सबसे बड़ा द्वीप है।
  • अट्ठारहवीं शताब्दी में डच और डेनमार्क के कैदियों को सज़ा देने के लिये एक विकल्प के तौर पर स्वालबार्ड भेजा जाता था। उन्हें व्हेल मछली के शिकार में उपयोग की जाने वाली बड़ी नौकाओं को चलाने की सज़ा दी जाती थी।
  • स्वालबार्ड बाद के वर्षों में एक पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित हो गया। स्वालबार्ड में ग्लोबल सीड वॉल्ट (Global Seed Vault) और ग्लोबल वार्मिंग तथा ध्रुवीय तकनीक पर एक शोध संस्थान स्थित है।
  • वर्तमान में इस द्वीपसमूह के दो-तिहाई क्षेत्र को 7 राष्ट्रीय उद्यानों और 23 प्राकृतिक संरक्षित क्षेत्रों में बाँटकर संरक्षण प्रदान किया जा रहा है। यहाँ ध्रुवीय भालू, रेनडियर, और कुछ समुद्री स्तनधारी पाए जाते हैं। इसका 60 प्रतिशत भू-भाग ग्लेशियर से ढका हुआ है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


राष्ट्रीय जीनोम ग्रिड

चर्चा में क्यों?

सरकार कैंसर अनुसंधान को और विकसित करने हेतु एक राष्ट्रीय जीनोम ग्रिड (National Genomic Grid) की स्थापना करेगी।

प्रमुख बिंदु:

  • राष्ट्रीय जीनोम ग्रिड भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास में स्थापित राष्ट्रीय कैंसर ऊतक बायोबैंक (National Cancer Tissue Biobank- NCTB) के अनुरूप होगा।
  • यह भारत में कैंसर से प्रभावित जीनोमिक कारकों का अध्ययन करने के लिये कैंसर रोगियों के नमूने एकत्र करेगा और इन नमूनों को ठीक से सत्यापित करेगा।
  • राष्ट्रीय कैंसर ऊतक बायोबैंक, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के साथ घनिष्ठ सहयोग करता है। राष्ट्रीय कैंसर ऊतक बायोबैंक में कैंसर रोगियों से प्राप्त 50,000 जीनोमिक नमूनों को संग्रहीत करने की क्षमता है,वर्तमान में इसमें 3,000 रोगियों के नमूने संग्रहीत हैं।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद

(Indian Council of Medical Research- ICMR)

  • जैव चिकित्सा अनुसंधान के संवर्द्धन हेतु भारत का यह शीर्ष निकाय विश्व के सबसे पुराने चिकित्सा अनुसंधान निकायों में से एक है।
  • भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Department of Health Research, Ministry of Health & Family Welfare) के माध्यम से इसका वित्त पोषण किया जाता है।
  • यह नई दिल्ली में स्थित है।

राष्ट्रीय कैंसर ऊतक बायोबैंक

(National Cancer Tissue Biobank- NCTB)

  • नेशनल कैंसर ऊतक बायोबैंक एक अत्याधुनिक गैर-लाभकारी समुदाय आधारित ऊतक बैंक है।
  • यह भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास की एक संयुक्त पहल है।
  • बायोबैंक, कैंसर के निदान हेतु रोगियों की सहमति से कैंसर के ऊतकों के नमूने एकत्र करता है।
  • NCTB भारत में अपनी तरह की पहली सुविधा है और इसका उद्देश्य कैंसर अनुसंधानों की उच्च गुणवत्ता तथा अनुसंधान को सुविधाजनक बनाने के लिये कैंसर का डेटा संग्रहण करना है जिससे कैंसर के उपचार में और सुधार किया जा सके।
  • सरकार सभी कैंसर उपचार संस्थानों को समग्रता से अखिल भारतीय संग्रह केंद्रों के साथ जोड़कर राष्ट्रीय जीनोम ग्रिड स्थापित करने की योजना बना रही है।
  • राष्ट्रीय जीनोम ग्रिड को चार भागों उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में विभाजित किया जाएगा।
  • राष्ट्रीय कैंसर ऊतक बायोबैंक में 3,000 नमूनों से विकसित पेट और स्तन कैंसर के रोगियों के 350 जीनोमिक डेटा का पहला सेट अक्तूबर के अंत तक जारी होने की संभावना है।
  • सरकार का लक्ष्य विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक 1,000 लोगों पर एक डॉक्टर की नियुक्ति को प्राप्त करना है जिसके लिये MBBS सीटों की संख्या 42,000 से बढ़ाकर एक लाख की जा रही है। वर्तमान में भारत में 1,400 रोगियों पर 1 डॉक्टर की उपलब्धता है।
  • MBBS स्नातकों की क्षमता और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में भर्ती को सरल बनाने हेतु राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ( National Medical Commission) का गठन किया जा रहा है।
  • राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाता और नेशनल एग्जिट टेस्ट (National Exit Test- NEXT) के माध्यम से चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में नए मानक स्थापित करेगा।

स्रोत: द हिंदू


एवियन इन्फ्लूएंजा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वर्ल्ड ऑर्गनाइज़ेशन फॉर एनिमल हेल्‍थ (World Organization for Animal Health-OIE) ने घोषणा की है कि भारत बर्ड फ्लू के नाम से पहचाने जाने वाले खतरनाक एवियन इन्फ्लूएंजा (Avian Influenza) यानि H5N1 वायरस से मुक्त हो गया है।

Avian Influenza

प्रमुख बिंदु

  • यह घोषणा कुछ समय पहले झारखंड, बिहार और ओडिशा में इस बीमारी के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिये किये गए उपायों का एक परिणाम है।
  • यह स्थिति केवल तब तक जारी रहेगी जब तक एवियन इन्फ्लूएंजा के एक और प्रकोप की सूचना जारी नहीं कर दी जाती है। इससे पहले वर्ष 2017 में भी भारत को इस बीमारी से मुक्त घोषित किया गया था।
  • यह घोषणा न केवल पोल्ट्री उद्योग के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि इसलिये भी अहम् है क्योंकि मनुष्य के भी इस बीमारी से संक्रमित होने की संभावना रहती है। हालाँकि इस बिमारी के रोगजनक मानव-से-मानव में संचरित होने में सक्षम नहीं होते है, यह केवल जानवरों से मनुष्यों में ही फ़ैल सकते हैं।

एवियन इन्फ्लूएंजा के बारे में

  • एवियन इन्फ्लूएंजा (Avian influenza-AI) एक अत्यधिक संक्रामक बीमारी है जो खाद्य-उत्पादन करने वाले पक्षियों (मुर्गियों, टर्की, बटेर, गिनी फाउल, आदि) सहित पालतू पक्षियों और जंगली पक्षियों की कई प्रजातियों को प्रभावित करती है।
  • यह विषाणु जिसे इन्फ्लूएंजा ए (Influenza- A) या टाइप ए (Type- A) विषाणु कहते है, सामान्यतः पक्षियों में पाया जाता है, लेकिन कभी-कभी यह मानव सहित अन्य कई स्तनधारियों को भी संक्रमित कर सकता है। जब यह मानव को संक्रमित करता है तो इसे इन्फ्लूएंजा (श्लेष्मिक ज्वर) कहा जाता है।

H 5 N 1

विषाणु

(Virus)

  • ‘विषाणु’ एक सूक्ष्मजीव है, जो जीवित कोशिकाओं के भीतर ही अपना विकास एवं प्रजनन करता है।
  • ‘विषाणु’ खुद को जीवित रखने एवं अपनी प्रतिकृति तैयार करने हेतु जीवित कोशिकाओं पर आक्रमण करते हैं तथा उनकी रासायनिक मशीनरी का उपयोग करते हैं।
  • ये मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं- DNA वायरस व RNA वायरस।
  • विषाणुओं के वर्गीकरण में ‘इन्फ्लूएंजा विषाणु’ RNA प्रकार के विषाणु होते हैं तथा ये ‘ऑर्थोमिक्सोविरिदे’ (Orthomyxoviridae) वर्ग से संबंधित होते हैं। इन्फ्लूएंजा विषाणु के तीन वर्ग निम्नलिखित हैं:-
  1. इन्फ्लूएंजा विषाणु A: यह एक संक्रामक बीमारी है। ‘जंगली जलीय पशु-पक्षी’ इसके प्राकृतिक धारक होते हैं। मानव में संचरित होने पर यह काफी घातक सिद्ध हो सकती है।
  2. इन्फ्लूएंजा विषाणु B: यह विशेष रूप से मनुष्यों को प्रभावित करता है तथा इन्फ्लुएन्ज़ा-ए से कम सामान्य तथा कम घातक होता है।
  3. इन्फ्लूएंजा विषाणु C: यह सामान्यतः मनुष्यों, कुत्तों एवं सूअरों को प्रभावित करता है। यह अन्य इन्फ्लूएंजा प्रकारों से कम सामान्य होता है तथा आमतौर पर केवल बच्चों में हल्के रोग का कारण बनता है।
  • इन्फ्लूएंजा A वायरस को दो प्रकार के प्रोटीन HA (Hemagglutinin) और NA (Neuraminidase) के आधार पर उप-प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है।
    • उदाहरण के लिये, एक वायरस जिसमें HA 7 प्रोटीन और NA 9 प्रोटीन पाया जाता है, उसे उप-प्रकार H7N9 के रूप में नामित किया जाता है।
    • एवियन इन्फ्लूएंजा वायरस के उप-प्रकार में A(H5N1), A(H7N9), और A(H9N2) शामिल हैं।
    • HPAI A (H5N1) वायरस मुख्य रूप से पक्षियों में होता है और उनके बीच अत्यधिक संक्रामक भी है।
    • HPAI एशियन H5N1 मुर्गी पालन के लिये विशेष रूप से घातक है।
  • एवियन इन्फ्लूएंजा के प्रकोप से पोल्ट्री उद्योग को (विशेष रूप से) विनाशकारी परिणामों का सामना करना पड़ता हैं।

निवारण (Prevention):

  • बीमारी के प्रकोप से बचाने के लिये सख्त जैव-सुरक्षा (Biosecurity) उपाय अपनाने और अच्छी स्वच्छता व्यवस्था को बनाए रखने की आवश्यकता होती है।

उन्मूलन (Eradication):

  • यदि जानवरों में इसके संक्रमण का पता चलता है, तो वायरस से संक्रमित और संपर्क वाले जानवरों को चुनकर अलग करने की नीति का अनुपालन किया जाना चाहिये ताकि वायरस के तेज़ी से प्रसार को नियंत्रित किया जा सकें और इसे नष्ट करने के प्रभावी उपाय अपनाए जा सकें।

वर्ल्ड ऑर्गनाइज़ेशन फॉर एनिमल हेल्‍थ

World Organization for Animal Health

  • यह दुनिया भर में पशुओं के स्वास्थ्य में सुधार हेतु उत्तरदाई एक अंतर सरकारी संगठन (Iintergovernmental Organisation) है।
  • इसे विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organizatio-(WTO) द्वारा संदर्भित संगठन (Reference Organisation) के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • वर्ष 2018 में कुल 182 देश इसके सदस्य थे।
  • इसका मुख्यालय पेरिस, फ्राँस में है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आर्द्रभूमियों की पुनर्स्थापना

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Enviroment, Forest and Climate Change) ने प्राथमिक रूप से 130 आर्द्रभूमियों को अगले 5 सालों में पुनर्स्थापित करने का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु

  • मंत्रालय ने 15 अक्तूबर तक सभी राज्यों से ‘एकीकृत प्रबंधन योजना (Integrated Management Plan)’ को प्रस्तुत करने के लिये कहा है।
  • इस योजना के तहत कई मापदंडों के आधार पर ‘आर्द्रभूमि स्वास्थ्य कार्ड’ (Wetland Health Card) जारी किया जाएगा। इस कार्ड की सहायता से आर्द्रभूमियों के पारिस्थितिकी तंत्र की निगरानी की जा सकेगी।
  • मंत्रालय उपरोक्त चिन्ह्र्त आर्द्रभूमियों की देखभाल के लिये समुदाय की भागीदारी को बढ़ाते हुए ‘आर्द्रभूमि मित्र समूह’ (Wetland Mitras) का गठन करेगा। यह समूह स्व-प्रेरित व्यक्तियों का समूह होगा।
  • वर्ष 2011 में देश की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (ISRO) ने उपग्रह से प्राप्त चित्रों के आधार पर एक ‘राष्ट्रीय वेटलैंड्स एटलस’ (National Wetland’s Atlas) तैयार किया था]। इस एटलस में भारत के दो लाख वेटलैंड्स की मैपिंग की गई है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 4.63% हिस्से को कवर करता हैं।

5 year plan

  • इन आर्द्रभूमियों की देखभाल ‘जलीय पारितंत्र के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना’ (National Plan for Conservation of Aquatic Ecosystems-NPCA) के अंतर्गत एक समग्र योजना द्वारा की जाएगी। NPCA का उद्देश्य झीलों एवं आर्द्रभूमियों का संरक्षण तथा इनकी पुनर्स्थापना करना है।
  • इन चिह्नित आर्द्रभूमियों की सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश (16) में है। इसके बाद आर्द्रभूमियों की सर्वाधिक संख्या मध्य प्रदेश (13), जम्मू और कश्मीर (12), गुजरात (8), कर्नाटक (7) और पश्चिम बंगाल (6) में है।

आर्द्रभूमि

  • नमी या दलदली भूमि वाले क्षेत्र को आर्द्रभूमि या वेटलैंड (Wetland) कहा जाता है। दरअसल, ये ऐसे क्षेत्र होते हैं जहाँ भरपूर नमी पाई जाती है और इसके कई लाभ भी हैं।
  • आर्द्रभूमि जल को प्रदूषण से मुक्त बनाती है। आर्द्रभूमि क्षेत्र वर्षभर आंशिक रूप से या पूर्णतः जल से भरा रहता है।
  • भारत में आर्द्रभूमि ठंडे और शुष्क इलाकों से लेकर मध्य भारत के कटिबंधीय मानसूनी इलाकों एवं दक्षिण के नमी वाले इलाकों तक फैली हुई है।

इनके लाभ निम्नलिखित हैं:

  • बायोलॉजिकल सुपर मार्केट: आर्द्रभूमियों को बायोलॉजिकल सुपर-मार्केट कहा जाता है, क्योंकि ये विस्तृत भोज्य-जाल (Food-Webs) का निर्माण करती हैं।
    • फूड-वेब्स यानी भोज्य-जाल में कई खाद्य शृंखलाएँ शामिल होती हैं और ऐसा माना जाता है कि फूड-वेब्स पारिस्थितिक तंत्र में जीवों के खाद्य व्यवहारों का वास्तविक प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • एक समृद्ध फूड-वेब समृद्ध जैव-विविधता का परिचायक है और यही कारण है कि इसे बायोलॉजिकल सुपर मार्केट कहा जाता है।
  • किडनीज ऑफ द लैंडस्केप: आर्द्रभूमियों को ‘किडनीज़ ऑफ द लैंडस्केप’ (Kidneys of the Landscape) यानी ‘भू-दृश्य के गुर्दे’ भी कहा जाता है।
    • जिस प्रकार से किडनी मानव के शरीर में जल को शुद्ध करने का कार्य करती है, ठीक उसी प्रकार आर्द्रभूमि तंत्र जल-चक्र द्वारा जल को शुद्ध करती है और प्रदूषणकारी अवयवों को बाहर करती है।
    • जल-चक्र पृथ्वी पर उपलब्ध जल के एक रूप से दूसरे में परिवर्तित होने और एक भंडार से दूसरे भंडार या एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने की चक्रीय प्रक्रिया है।
    • जलीय चक्र निरंतर चलता है तथा स्रोतों को स्वच्छ रखता है। पृथ्वी पर इसके अभाव में जीवन असंभव हो जाएगा।
  • उपयोगी वनस्पतियों एवं औषधीय पौधों के उत्पादन में सहायक: आर्द्रभूमियाँ जंतु ही नहीं बल्कि पादपों की दृष्टि से भी एक समृद्ध तंत्र है, जहाँ उपयोगी वनस्पतियाँ एवं औषधीय पौधे प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। अतः ये उपयोगी वनस्पतियों एवं औषधीय पौधों के उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • पर्यावरण सरंक्षण के लिये महत्त्वपूर्ण: आर्द्रभूमियाँ ऐसे पारिस्थितिक तंत्र हैं जो बाढ़ के दौरान जल के आधिक्य का अवशोषण कर लेते हैं।
    • इस तरह बाढ़ का पानी झीलों एवं तालाबों में एकत्रित हो जाता है, जिससे मानवीय आवास वाले क्षेत्र जलमग्न होने से बच जाते हैं।
    • इतना ही नहीं ‘कार्बन अवशोषण’ व ‘भू-जल स्तर’ में वृद्धि जैसी महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन कर आर्द्रभूमियाँ पर्यावरण संरक्षण में अहम योगदान देती हैं।

भारत की प्रमुख आर्द्रभूमि में चिलिका झील (ओडिशा), वुलर झील (कश्मीर), रेणुका (हिमाचल प्रदेश), सांभर झील (राजस्थान), दीपोर बील (असम), पूर्वी कोलकाता आर्द्रभूमि (पश्चिम बंगाल), नल सरोवर (गुजरात), हरिका (पंजाब), रुद्र सागर (त्रिपुरा) और भोज वेटलैंड (मध्य प्रदेश), आदि हैं। ये सभी रामसर कन्वेंशन के तहत भारत के 26 आर्द्रभूमियों की सूची में शामिल हैं।

रामसर कन्वेंशन

(Ramsar Convention)

  • रामसर कन्वेंशन एक अंतर-सरकारी संधि (Intergovernmental Treaty) है जो आर्द्रभूमियों और उनके संसाधनों के संरक्षण एवं कुशलतापूर्वक उपयोग के लिये राष्ट्रीय कार्रवाई त्तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये रूपरेखा प्रदान करती है। विश्व स्तर पर रामसर सूची में 2,220 आर्द्रभूमि हैं।
  • यह संधि वर्ष 1975 में लागू हुई एवं भारत इसमें वर्ष 1982 में शामिल हुआ।

‘जलीय पारितंत्र के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना’

(National Plan for Conservation of Aquatic Ecosystems- NPCA)

  • NPCA आर्द्रभूमियों और झीलों दोनों के लिये एक एकल संरक्षण कार्यक्रम है।
  • यह केंद्र प्रायोजित योजना (Central Sponsored Scheme) है जो वर्तमान में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित की जा रही है।
  • वर्ष 2015 में ‘राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना’ और ‘राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम’ के विलय से तैयार किया गया।
  • NPCA को विभिन्न विभागों के मध्य बेहतर तालमेल को बढ़ावा देने और प्रशासनिक कार्यों के ओवरलैपिंग से बचने के लिये तैयार किया गया।

स्रोत: टाइम्स ऑफ़ इंडिया


आयातित मुद्रास्फीति

संदर्भ

कमज़ोर स्थानीय और वैश्विक आर्थिक संकेतकों के प्रभाव से भारतीय रुपए की स्थिति 72 रुपए प्रति डॉलर तक पहुँच गई है। बीते कुछ दिनों में घरेलू मुद्रा के कमज़ोर होने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर आयातित मुद्रास्फीति (Imported Inflation) के बादल मंडरा रहे हैं।

कमज़ोर हैं अर्थव्यवस्था के हालात

  • वर्तमान में भारत काफी कमज़ोर आर्थिक स्थिति का सामना कर रहा है, वित्तीय वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में देश की GDP वृद्धि दर विगत 6 वर्षों के सबसे न्यूनतम स्तर अर्थात् 5 प्रतिशत पर पहुँच गई है।
  • देश की घरेलू मांग में भी काफी कमी देखने को मिली है, लगभग सभी सेक्टर स्लोडाउन (Slowdown) का सामना कर रहे हैं। देश के ऑटोमोबाइल सेक्टर व एफएमसीजी (FMCG) सेक्टर सहित कई अन्य क्षेत्रों के उत्पादन में गिरावट देखी गई है।
  • वहीं राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कारकों के प्रभाव से भारत की मुद्रा की स्थिति भी काफी कमज़ोर हो रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि भारतीय रुपए में गिरावट इसी प्रकार जारी रहती है, तो मुद्रास्फीति पर इसका काफी असर पड़ेगा।
    • आँकड़ों के अनुसार, घरेलू मुद्रा इस साल अब तक लगभग 2.72 प्रतिशत तक गिर गई है।

क्या होती है आयातित मुद्रास्फीति?

  • जब आयातित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के कारण किसी देश में सामान्य मूल्य स्तर बढ़ जाता है, तो इसे आयातित मुद्रास्फीति (Imported Inflation) कहा जाता है।
  • हालाँकि सदैव ऐसा नहीं होता कि आयातित वस्तुओं की कीमत में वृद्धि के कारण ही आयातित मुद्रास्फीति में वृद्धि हो। कभी-कभी घरेलू मुद्रा के मूल्यह्रास (Depreciation) के कारण भी आयातित मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
  • उदाहरण के लिये यदि किसी विशेष अवधि में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए में 20 प्रतिशत की गिरावट आती है, तो तेल की कीमत भी उसी अनुपात से बढ़ेगी और मूल्य स्तर तथा मुद्रास्फीति को प्रभावित करेगी।
  • भारत कच्चे तेल की अपनी ज़रूरतों का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा आयात करता है। यदि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि होती है तो स्वाभाविक है कि भारत को अधिक कीमत चुकानी होगी, जिसके कारण देश का व्यापार घाटा (Trade Deficit) बढ़ सकता है।

व्यापार घाटा

आयात और निर्यात के अंतर को व्यापार संतुलन (Balance of Trade) कहते हैं। जब कोई देश निर्यात की तुलना में आयात अधिक करता है तो उसे व्यापार घाटे (Trade Deficit) का सामना करना पड़ता है।

आयातित मुद्रास्फीति के कारण

  • घरेलू मुद्रा का मूल्यह्रास : आयातित मुद्रास्फीति का सबसे बड़ा कारण है घरेलू मुद्रा के मूल्य में गिरावट होती है। विदेशी मुद्रा बाज़ार में मुद्रा का जितना अधिक मूल्यह्रास होता है, आयात की कीमत भी उतनी ही अधिक होती है और परिणामस्वरूप देश के बाहर वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने के लिये अधिक धन की आवश्यकता होती है। जब देश में आयात करने वाली कंपनियों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में वस्तुएँ महँगी मिलेंगी तो वे भी उसी अनुपात में देश में वस्तुओं की कीमत में वृद्धि करेंगी और आम जनता के लिये वस्तु अपेक्षाकृत महँगी हो जाएगी।

मुद्रा के मूल्यह्रास का अर्थ

  • विदेशी मुद्रा भंडार के घटने या बढ़ने का असर किसी भी देश की मुद्रा पर पड़ता है। चूँकि अमेरिकी डॉलर को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा माना गया है जिसका अर्थ यह है कि निर्यात की जाने वाली सभी वस्तुओं की कीमत डॉलर में अदा की जाती है।
  • अतः भारत की विदेशी मुद्रा में कमी का तात्पर्य यह है कि भारत द्वारा किये जाने वाले वस्तुओं के आयात मूल्य में वृद्धि तथा निर्यात मूल्य में कमी।

भारत के संदर्भ में आयातित मुद्रास्फीति

  • भारत के आयात में दो प्रमुख योगदानकर्ता हैं: कच्चा तेल और सोना। सामान्यतः इन दोनों उत्पादों की कीमतों में वृद्धि से देश के आयात बिल में बढ़ोतरी होती है।
  • यह उम्मीद की जा रही है कि वैश्विक स्तर पर सुस्ती के कारण कच्चे तेल की कीमतें कम बनी रहेंगी, परंतु सोने की अधिक मांग के कारण उसकी कीमतों में तेज़ी आ सकती है।
  • उल्लेखनीय है कि सर्राफा बाज़ार में सोने की कीमत लगभग 1540 डॉलर प्रति औंस (1 औंस=28.3495 ग्राम) है, जो कि अपने सबसे अधिकतम स्तर पर है।

मुद्रास्फीति

(Inflation)

  • जब मांग और आपूर्ति में असंतुलन पैदा होता है तो वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। कीमतों में इस वृद्धि को मुद्रास्फीति कहते हैं। भारत अपनी मुद्रास्फीति की गणना दो मूल्य सूचकांकों के आधार पर करता है- थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI) एवं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI)।
  • अत्यधिक मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था के लिये हानिकारक होती है, जबकि 2-3% की मुद्रास्फीति दर अर्थव्यवस्था के लिये ठीक होती है।
  • मुद्रास्फीति मुख्यतः दो कारणों से होती है, मांगजनित कारक एवं लागतजनित कारक।
  • अगर मांग के बढ़ने से वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है तो वह मांगजनित मुद्रास्फीति (Demand-Pull Inflation) कहलाती है।
  • अगर उत्पादन के कारकों (भूमि, पूंजी, श्रम, कच्चा माल आदि) की लागत में वृद्धि से वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है तो वह लागतजनित मुद्रास्फीति (Cost-Push Inflation) कहलाती है।

स्रोत: लाइव मिंट


राष्ट्रीय अवसंरचना कार्यक्रम

चर्चा में क्यों?

वित्तीय वर्ष 2019-20 से लेकर वित्तीय वर्ष 2024-25 तक प्रत्येक वर्ष के लिये एक राष्ट्रीय अवसंरचना कार्यक्रम (National Infrastructure Pipeline) बनाने हेतु एक कार्यबल का गठन किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • केंद्रीय वित्त मंत्री ने आर्थिक मामलों के विभाग (Department of Economic Affairs- DEA) के सचिव की अध्यक्षता में इस कार्यबल का गठन किया गया है।
  • इस कार्यबल की संरचना इसप्रकार है:
1. सचिव, आर्थिक मामले विभाग (DEA) अध्‍यक्ष
2. मुख्‍य कार्यकारी अधिकारी, नीति आयोग अथवा उनके नामिती सदस्य
3. सचिव, व्यय विभाग, वित्त मंत्रालय अथवा उनके नामिती सदस्य
4. प्रशासनिक मंत्रालय के सचिव सदस्य
5. अपर सचिव (निवेश), आर्थिक मामले विभाग सदस्य
6. संयुक्त सचिव, अवसंरचना नीति और वित्त प्रभाग, डीईए सदस्य सचिव

  • यह कार्यबल वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिये पाइपलाइन परियोजनाओं पर 31 अक्तूबर, 2019 तक और वित्तीय वर्ष 2021-25 के लिये सांकेतिक पाइपलाइन पर 31 दिसंबर, 2019 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
  • राष्ट्रीय अवसंरचना से जुड़ी परियोजनाओं में ग्रीनफील्ड (Greenfield) और ब्राउनफील्ड (Brownfield) परियोजनाएँ भी शामिल होंगी, जिनमें से प्रत्येक पर 100 करोड़ रुपए से अधिक की लागत आएगी।

“ग्रीनफील्ड परियोजना का तात्पर्य ऐसी परियोजना से है जिसमें किसी पूर्व कार्य/परियोजना का अनुसरण नहीं किया जाता है। अवसंरचना में अप्रयुक्त भूमि पर तैयार की जाने वाली परियोजनाएँ जिनमें मौजूदा संरचना को फिर से तैयार करने या ध्वस्त करने की आवश्यकता नहीं होती है, उन्हें ग्रीन फील्ड परियोजना कहा जाता है। जिन परियोजनाओं को संशोधित या अपग्रेड किया जाता है, उन्हें ब्राउनफील्ड परियोजना कहा जाता है।

  • चालू वर्ष के लिये प्रगतिशील योजनाओं के लिये डीपीआर की उपलब्धता, कार्यान्वयन की व्यवहार्यता, वित्तपोषण योजना में समावेश और प्रशासनिक स्वीकृति की तत्परता/उपलब्धता भी शामिल होगी। प्रत्येक मंत्रालय/विभाग परियोजनाओं की निगरानी के लिये ज़िम्मेदार होगा ताकि उनके कार्यान्वयन को समय पर और लागत के अनुरूप सुनिश्चित किया जा सके। कार्यबल, इंडिया इनवेस्टमेंट ग्रिड (India Investment Grid-IIG) और राष्ट्रीय निवेश और अवसंरचना कोष (National Investment & Infrastructure Fund-NIIF), आदि के माध्यम से निजी निवेश की आवश्यकता वाली परियोजनाओं के मज़बूत विपणन को भी सक्षम बनाएगा।

राष्ट्रीय निवेश और अवसंरचना कोष (NIIF)

  • राष्ट्रीय निवेश और अवसंरचना कोष (NIIF) देश में अवसंरचना क्षेत्र की वित्तीय समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने वाला और वित्तपोषण सुनिश्चित करने वाला भारत सरकार द्वारा निर्मित किया गया एक कोष है।
  • NIIF की स्थापना 40,000 करोड़ रुपए की मूल राशि के साथ की गई थी, जिसमें आंशिक वित्त पोषण निजी निवेशकों द्वारा किया गया था।
  • इसका उद्देश्य अवसंरचना परियोजनाओं को वित्त पोषण प्रदान करना है जिनमें अटकी हुई परियोजनाएँ शामिल हैं।
  • NIIF में 49% हिस्सेदारी भारत सरकार की है तथा शेष हिस्सेदारी विदेशी और घरेलू निवेशकों की है।
  • केंद्र की अति महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी के साथ NIIF को भारत का अर्ध-संप्रभु धन कोष माना जाता है।
  • अपने तीन फंडों- मास्टर फंड, फंड ऑफ फंड्स और स्ट्रैटेजिक फंड से परे यह 3 बिलियन डॉलर से अधिक की पूंजी का प्रबंधन करता है।
  • इसका पंजीकृत कार्यालय नई दिल्ली में है।

इंडिया इन्वेस्टमेंट ग्रिड (IIG)

  • इंडिया इन्वेस्टमेंट ग्रिड (IIG) एक संवादात्मक और डायनामिक वेब पोर्टल है जो समग्र भारत, इसके राज्यों और क्षेत्रों में तथा विभिन्न योजनाओं के तहत शुरू की गई परियोजनाओं में निवेश या प्रौद्योगिकी की आवश्यकता के बारे में जानकारी उपलब्ध कराता है।
  • यह वाणिज्य मंत्रालय के उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry & Internal Trade- DPIIT) तथा राष्ट्रीय निवेश संवर्द्धन और सुविधा एजेंसी (National Investment Promotion and Facilitation Agency), इन्वेस्ट इंडिया (Invest India) की एक पहल है।
  • इसका उद्देश्य निवेश को बढ़ावा देना और परियोजना की खोज तथा संवर्द्धन को कारगर बनाना है।

कार्यबल की संदर्भ शर्तें

(Terms of Reference)

  1. वित्तीय वर्ष 2019-20 में शुरू हो सकने वाली तकनीकी रूप से व्यवहार्य और वित्तीय/आर्थिक रूप से व्यवहार्य अवसंरचना परियोजनाओं की पहचान करना।
  2. वित्तीय वर्ष 2021-25 के बीच शेष 5 वर्षों में से प्रत्येक के लिये प्रगतिपूर्ण परियोजनाओं को सूचीबद्ध करना।
  3. वार्षिक अवसंरचना निवेश/पूंजीगत लागत का अनुमान लगाना।
  4. वित्तपोषण के उपयुक्त स्रोतों की पहचान करने में मंत्रालयों का मार्गदर्शन करना।
  5. परियोजनाओं की निगरानी के लिये उपाय सुझाना, ताकि लागत और समय में कमी लाई जा सके।

आवश्यकता

  • स्थायी आधार पर एक व्यापक और समावेशी विकास हासिल करने के लिये गुणवत्तायुक्‍त बुनियादी ढाँचे की उपलब्धता एक पूर्व-आवश्यकता है।
  • भारत की उच्च विकास दर को बनाए रखने के लिये बुनियादी ढाँचे में निवेश भी आवश्यक है।
  • वर्ष 2024-25 तक 5 ट्रिलियन डॉलर का सकल घरेलू उत्पाद अर्जित करने के लिये, भारत को बुनियादी ढाँचे पर लगभग 1.4 ट्रिलियन डॉलर (100 लाख करोड़ रुपए) खर्च करने की आवश्यकता है। पिछले एक दशक (वित्त वर्ष 2008-17) में, भारत ने बुनियादी ढाँचे पर लगभग 1.1 ट्रिलियन डॉलर का निवेश किया है। अब चुनौती के तौर पर वार्षिक बुनियादी ढाँचे में निवेश को बढ़ाना है ताकि बुनियादी ढाँचे की कमी भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि पर बाधा न बन सके।

पृष्ठभूमि

  • भारत के प्रधानमंत्री ने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में कहा था कि अगले पाँच वर्षों में बुनियादी ढाँचे पर 100 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा। इन बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ शामिल होंगी।
  • इस स्‍तर पर एक बुनियादी ढाँचे के कार्यक्रम को लागू करने के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि परियोजनाएँ पर्याप्त रूप से तैयार की जाएँ और समयबद्ध रूप से इनकी शुरुआत की जाए। इसी श्रृंखला में एक वार्षिक बुनियादी ढाँचे का प्रारूप विकसित किया जाएगा। इस कार्य को पूर्ण करने के लिये ही वित्तीय वर्ष 2019-20 से लेकर वित्तीय वर्ष 2024-25 तक के प्रत्येक वर्ष के लिये एक राष्ट्रीय अवसंरचना कार्यक्रम (National Infrastructure Pipeline) बनाने हेतु इस कार्यबल का गठन किया गया है।

स्रोत: PIB


मध्य प्रदेश का टाइम बैंक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मध्य प्रदेश के आनंद विभाग (Happiness Department) ने एक टाइम बैंक (TimeBank) स्थापित करने की योजना बनाई है। इस टाइम बैंक के ज़रिये अर्जित समय का उपयोग बिना किसी कागज़ी मुद्रा या प्रत्ययी नोट का भुगतान किये किसी नए कौशल को सीखने के लिये किया जा सकता है।

अंतर्निहित विचार

  • इस विचार के पीछे मुख्य तर्क यह है कि सभी मानव स्वयं में संपत्ति हैं जो पारस्परिकता से प्रेरित हैं। प्रत्येक व्यक्ति पर ध्यान केंद्रित किये जाने से श्रम की समानता और गरिमा को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
  • यह सामाजिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिये अप्रयुक्त सामाजिक क्षमता को जोड़ने का एक नया तरीका है।
  • जब भी बैंक के किसी सदस्य को किसी सेवा की आवश्यकता होती है या वह किसी प्रकार का कौशल जैसे- बागवानी या गिटार बजाना, अर्जित करना चाहता है, तो वह विशेष कौशल प्राप्त किसी अन्य सदस्य के साथ एक घंटे के क्रेडिट का आदान-प्रदान कर सकता है।
  • शुरुआत में स्थानीय नेटवर्क के माध्यम से विभाग के साथ पंजीकृत 50,000 स्वयंसेवक सामुदायिक स्तर के बैंक बनाएंगे और उन सेवाओं तथा कौशल को सूचीबद्ध करेंगे जिन्हें वे प्रदान कर सकते हैं। इससे लोगों को आपसी विश्वास कायम करने में सहायता मिलेगी।
  • कुछ समय बाद एक अनुभवी स्वयंसेवक नए सदस्यों को शामिल करेगा और सभी लेन-देन का रिकॉर्ड रखेगा।
  • इसे आधुनिक वस्तु विनिमय प्रणाली (Modern Barter System) माना जा सकता है।

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1827 में टाइमबैंक की परिकल्पना की गई थी। लेकिन वर्ष 1973 में जापान में पहली बार टाइमबैंक स्थापित किये जाने के साथ इस अवधारणा को लोकप्रियता मिली।
  • बाद में अमेरिका में टाइम बैंक के CEO ने टाइम डॉलर के विचार को लोकप्रिय बनाया।
  • वर्तमान में 32 देशों में 500 से अधिक ऐसे समुदाय हैं।
  • यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि इससे पहले अक्तूबर 2018 में विकलांगता और बुज़ुर्ग व्यक्तियों पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission-NHRC) के एक पैनल ने “टाइम बैंक" योजना की सिफारिश की थी। पैनल का तर्क था कि इसकी सहायता से लोग ऐसे वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल कर सकेंगे जो बिना किसी सहायता या साथ के अपने परिवार से दूर अकेले रह रहे हैं।

आनंद विभाग

  • मध्य प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है जिसने वर्ष 2016 में आनंद विभाग का निर्माण किया।
  • वर्तमान में राज्‍य आनंद संस्‍थान, मध्‍य प्रदेश शासन के अध्‍यात्‍म विभाग के अंतर्गत संचालित है।
  • राज्य आनंद संस्थान एक स्वतंत्र पंजीयकृत सोसाईटी है जो विभाग के लक्ष्यों की पूर्ति के लिये कार्य करेगी।

विभाग के कार्य

  • आनंद एवं सकुशलता को मापने के पैमानों की पहचान करना तथा उन्हें परिभाषित करना।
  • राज्य में आनंद का प्रसार बढ़ाने की दिशा में विभिन्न विभागों के बीच समन्वयन के लिये दिशा-निर्देश तय करना।
  • आनंद की अवधारणा का नियोजन नीति निर्धारण और क्रियान्वयन की प्रक्रिया को मुख्यधारा में लाना।
  • आनंद की अनुभूति के लिये एक्शन प्लान एवं गतिविधियों का निर्धारण।
  • निरंतर अंतराल पर निर्धारित मापदण्डों पर राज्य के नागरिकों की मन:स्थिति का आंकलन करना।
  • आनंद की स्थिति पर सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार कर प्रकाशित करना।
  • आनंद के प्रसार के माध्‍यमों, उनके आंकलन के मापदण्डों में सुधार के लिये लगातार अनुसंधान करना।
  • आनंद के विषय पर एक ज्ञान संसाधन केंद्र के रुप में कार्य करना।

स्रोत: द हिंदू


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (09 September)

  • छत्तीसगढ़ सरकार ने न्याय (न्यूनतम आय योजना-NYAY) को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चलाने की शुरुआत की है। इस योजना के तहत सरकार राज्य के 20 प्रतिशत सबसे गरीब परिवारों को प्रति माह 6000 रुपए देने की घोषणा कर चुकी है। न्याय योजना की शुरुआत सबसे पहले राज्य के छोटे भागों से की जाएगी। योजना के बेहतर क्रियान्वयन के बाद इसे पूरे प्रदेश में लागू किया जा सकता है। इस योजना के तहत उन परिवारों को लाभ दिया जाएगा जिनकी मासिक आय 6000 रुपए से कम है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र-जल की एक नई रिपोर्ट में सशक्त पेयजल और स्वच्छता प्रणालियों में निवेश में तत्काल वृद्धि की बात कही गई है। रिपोर्ट में विश्व के सबसे गरीब देशों में जल और स्वच्छता सेवाओं के वितरण की चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार कमज़ोर सरकारी प्रणाली, मानव संसाधन एवं धन की कमी विश्व के सबसे गरीब देशों में जल तथा स्वच्छता सेवाओं की आपूर्ति के लिये संकट उत्पन्न कर रही हैं। हाल ही में समाप्त हुए विश्व जल सप्ताह के दौरान स्टॉकहोम में अंतर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र के वार्षिक सम्मेलन के दौरान यह रिपोर्ट जारी की गई। यूएन-वॉटर ग्लोबल एसेसमेंट एंड एनालिसिस ऑफ सैनिटेशन एंड ड्रिंकिंग-वाटर 2019 (The UN-Water Global Assessment and Analysis of Sanitation and Drinking-Water 2019) ने 115 देशों और क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया।
  • एयर इंडिया अपने यात्रियों के लिये नमस्कार सेवा नामक एक योजना शुरू कर रही है। इस मीट और ग्रीटिंग सेवा में एक एयरलाइन कर्मचारी हवाई अड्डे के प्रवेश द्वार से लेकर यात्रियों की विमान की सीट तक पहुँचने में सहायता करेगा/करेगी। इससे पहले ऐसी सेवा सिर्फ एयरइंडिया के बिज़नेस क्लास के यात्रियों के लिये उपलब्ध थी, लेकिन अब यह सभी के लिये उपलब्ध होगी। जल्द ही दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से इस सेवा को प्रायोगिक तौर पर शुरू किया जाएगा। 'नमस्कार सेवा' यात्रियों को मामूली शुल्क पर दी जाएगी। यह सेवा योजना विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों को उपलब्ध कराई जाएगी।
  • देश के प्रतिष्ठित वकील और पूर्व केंद्रीय मंत्री राम (मूलचंद) जेठमलानी का 8 सितंबर को नई दिल्ली में 95 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके नाम देश में सबसे कम (19 साल की उम्र में उन्होंने वकालत शुरू की) और सबसे अधिक उम्र (वे 77 साल इस पेशे में रहे) के वकील होने का रिकॉर्ड है। वर्ष 1999 में वे शहरी विकास मंत्री और विधि मंत्री के पद पर भी रहे। छठी व सातवीं लोकसभा में वे भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर मुंबई से दो बार सांसद चुने गए। वर्तमान में वे बिहार से राजद के राज्यसभा सांसद थे। मई 2010 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया। उन्हें सबसे अधिक फीस लेने वाला हाई-प्रोफाइल वकील माना जाता था।