कश्मीर पर UNSC प्रस्ताव 47
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर राज्य से अनुच्छेद 370 को भंग किये जाने के फैसले के संबंध में पाकिस्तान में आक्रोश का माहौल बना हुआ है। जहाँ एक ओर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इस फैसले को अवैध करार दे रहे है वहीं दूसरी ओर ऐसा कहा गया है कि भारत सरकार द्वारा उठाया गया कोई भी एकतरफा कदम विवादित स्थिति को बदल नहीं सकता है, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council-UNSC) के प्रस्तावों में निहित है। इस समस्त प्रकरण में UNSC प्रस्ताव 47 भी चर्चा का विषय बना हुआ है, यह प्रस्ताव क्या है? इसकी पृष्ठभूमि एवं अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों के विषय में इस लेख में संक्षेप में चर्चा की गई है।
कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 47
UNSC Resolution 47
- भारत के इस फैसले के संबंध में पाकिस्तान ने अपनी दलीलों में UNSC के प्रस्ताव 47 का उल्लेख किया है जो जम्मू-कश्मीर राज्य के विवाद के संबंध में भारत सरकार की शिकायत पर केंद्रित है, भारत ने जनवरी 1948 में सुरक्षा परिषद के समक्ष यह प्रस्ताव पेश किया था।
- अक्तूबर 1947 में पाकिस्तानी कबीलाईयों द्वारा आक्रमण किये जाने के बाद कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत से सहायता माँगी तथा इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेस (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर किये।
- कश्मीर में प्रथम युद्ध (1947-1948) के बाद भारत ने कश्मीर विवाद को सुरक्षा परिषद के सदस्यों के मद्देनज़र लाने हेतु संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से संपर्क किया।
UNSC के किन सदस्यों ने इस मुद्दे का निरीक्षण किया?
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने UNSC के स्थायी सदस्यों के साथ छह सदस्यों को शामिल कर जाँच परिषद में विस्तार किया।
- इसमें पाँच स्थाई सदस्यों जिनमें चीन, फ्राँस, ब्रिटेन, अमेरिका और रूस शामिल थे तथा अस्थाई सदस्यों में अर्जेंटीना, बेल्ज़ियम, कनाडा, कोलंबिया, सीरिया एवं यूक्रेनी सोवियत संघ गणराज्य शामिल थे।
सुरक्षा परिषद में क्या हुआ?
- भारत जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छा जानने हेतु विशिष्ट प्रस्ताव पर जनमत संग्रह कराने तथा उसके परिणामों को स्वीकार करने के लिये तैयार था।
- पाकिस्तान ने इस विवाद में अपनी भागीदारी से इनकार कर दिया तथा भारत को ही इसके लिये ज़िम्मेदार ठहराया।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने संघर्ष को रोकने एवं स्वतंत्र तथा निष्पक्ष जनमत हेतु परिस्थितियाँ तैयार करने का आदेश दिया ताकि यह तय किया जा सके कि जम्मू- कश्मीर का भारत या पाकिस्तान में से किसके साथ विलय किया जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने पाकिस्तान को क्या आदेश दिया?
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने पाकिस्तान को आदिवसियों और अन्य पाकिस्तानी नागरिक, जिन्होंने युद्ध के उद्देश्य से कश्मीर की सीमा में प्रवेश किया, को वापस बुलाने का आदेश दिया।
- इसने पाकिस्तान को भविष्य में घुसपैठ रोकने एवं राज्य में युद्ध करने वाले लोगों को भौतिक सहायता प्रदान नहीं करने का आदेश दिया।
- UNSC ने राज्य के सभी विषयों को पूर्ण स्वतंत्रता दी। पंथ, जाति या राजनितिक दल की परवाह किये बिना अपने विचारों को व्यक्त करने के लिये भी स्वतंत्रता प्रदान की गई और राज्य को विलय के मुद्दे पर मतदान करने की स्वतंत्रता दी गई।
- पाकिस्तान को शांति और व्यवस्था बनाए रखने में सहयोग करने का भी आदेश दिया गया।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भारत को क्या आदेश दिये?
- इसमें कहा गया कि राज्य से पाकिस्तानी लोगों की वापसी और युद्ध बंद हो जाने के बाद जम्मू-कश्मीर से अपनी सेना वापस बुलाने के लिये UNSC आयोग को एक योजना प्रस्तुत करनी होगी तथा सैन्य शक्ति को उस सीमा तक कम करना होगा जितना कानून और व्यवस्था बनाए रखने हेतु आवश्यक था।
- भारत को आदेश दिया गया कि वह आयोग को उन चरणों से अवगत कराए जो सैन्य बल को कम करने तथा आयोग के परामर्श के बाद शेष सैनिकों की व्यवस्था करने के लिये भारत को अनुपालित करने थे।
- अन्य निर्देशों के साथ भारत को इस बात पर सहमत होने का आदेश दिया गया कि जब तक जनमत संग्रह प्रशासक (Plebiscite Administrator) आवश्यक समझे राज्य के सैन्य बलों और पुलिस को दिशा निर्देश दे सके एवं उनका पर्यवेक्षण करें।
- इन सैन्य बलों को उन क्षेत्रों में नियुक्त किया जाएगा जिन पर जनमत प्रशासक की सहमति हो।
- इसने भारत को कानून और व्यवस्था हेतु स्थानीय कर्मियों की भर्ती करने एवं अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने का भी निर्देश दिया।
भारत की प्रतिक्रिया
- भारत ने प्रस्ताव 47 को नकार दिया।
- भारत का तर्क था कि प्रस्ताव में पाकिस्तान द्वारा किये गए सैन्य आक्रमण को नज़रअंदाज़ किया गया, साथ ही दोनों देशों को एक समान राजनयिक आधार पर रखना पाकिस्तान के आक्रामक रवैये को खारिज करता है।
- कश्मीर के महाराजा हरी सिंह द्वारा इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेस पर हस्ताक्षर किये गए थे, स्पष्ट रूप से इस संदर्भ में भारत के पास वैध अधिकार थे।
- भारत ने इस प्रस्ताव के उस खंड पर भी आपत्ति जताई जिसमें भारत को कश्मीर में सैन्य उपस्थिति बनाए रखने की अनुमति न होने की बात कही गई, जबकि भारत अपनी रक्षा रणनीति के दृष्टिकोण इसे आवश्यक मानता था।
- भारत का यह भी मानना था कि जनमत संग्रह के आधार पर सत्ता का निर्धारण राज्य की संप्रभुता को प्रभावित करेगा।
पाकिस्तान का पक्ष
- भारत का पक्ष यह था कि पाकिस्तान को जनमत संग्रह के संचालन से बाहर रखा जाए।
- दूसरी ओर पाकिस्तान को कश्मीर में न्यूनतम भारतीय सैन्य बलों की उपस्थिति (प्रस्ताव द्वारा प्रदत्त अनुमति के आधार पर) पर भी आपत्ति थी।
- पाकिस्तान कश्मीर की राज्य सरकार में मुस्लिम कॉन्फ्रेंस का समान प्रतिनिधित्त्व चाहता था, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की प्रमुख पार्टी थी।
- प्रस्ताव 47 के प्रावधानों में मतभेदों के बावज़ूद भारत और पाकिस्तान दोनों ने संयुक्त राष्ट्र आयोग का स्वागत किया और इसके साथ काम करने हेतु सहमति व्यक्त की।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अनुच्छेद 370 पर संयुक्त राष्ट्र का पक्ष
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस (Antonio Guterres) ने जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान से संयम बरतने तथा कोई ऐसा कदम न उठाने का आग्रह किया जो जम्मू-कश्मीर की स्थिति को प्रभावित करे।
प्रमुख बिंदु :
- UN प्रमुख ने इस विषय पर शिमला समझौते को भी रेखांकित किया, जो कि इस मुद्दे पर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को खारिज करता है।
- एंटोनियो ने इस विषय पर भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी प्रकार की मध्यस्थता का कोई प्रस्ताव नहीं रखा है, उन्होंने इस विषय को शिमला समझौते के आधार पर हल करने का सुझाव दिया है। शिमला समझौते के अनुसार, कश्मीर के मुद्दे को अंततः शांतिपूर्ण ढंग से ही हल किया जाना चाहिये और मध्यस्थता के लिये कोई तीसरा पक्ष नहीं होना चाहिये।
- ज्ञातव्य है कि इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत तब हुई जब भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा हटाने के उद्देश्य से अनुच्छेद 370 के खंड 2 व खंड 3 को समाप्त कर दिया गया।
- पाकिस्तान ने भारत की कार्यवाही को पूर्णतः एकतरफा और अवैध करार दिया था तथा यह भी कहा था कि वह इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के समक्ष रखेगा।
- इसी के साथ पाकिस्तान ने जवाबी कार्यवाही के तौर पर भारतीय राजदूत को देश छोड़ने का आदेश दिया है और भारत के साथ अपने राजनयिक संबंधों को भी कम कर दिया है।
क्या है पूरा मामला?
- हाल ही में केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जम्मू-कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन दो केंद्रशासित क्षेत्रों- जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के रूप में करने का निर्णय किया है।
- केंद्र सरकार का प्रस्ताव जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को समाप्त करने, जम्मू कश्मीर को विधायिका वाला केंद्रशासित क्षेत्र और लद्दाख को बिना विधायिका वाला केंद्रशासित क्षेत्र बनाने का प्रावधान करता है।
- अब राज्य में अनुच्छेद 370 (1) ही लागू रहेगा, जो संसद द्वारा जम्मू-कश्मीर के लिये कानून बनाने से संबंधित है।
अनुच्छेद 370 का इतिहास?
- अनुच्छेद 370 भारत के संविधान में 17 अक्तूबर, 1949 को शामिल किया गया था।
- यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर को भारत के संविधान से अलग करता है और राज्य को अपना संविधान खुद तैयार करने का अधिकार देता है
- नवंबर 1956 में जम्मू-कश्मीर में अलग संविधान बनाने का काम पूरा हुआ और 26 जनवरी, 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया।
- अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देता है। इसके तहत भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर के मामले में सिर्फ तीन क्षेत्रों- रक्षा, विदेश मामले और संचार के लिये कानून बना सकती है।
क्या बदलेगा इस फैसले के बाद?
- जम्मू-कश्मीर को दो भागों में विभाजित कर दिया गया है- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अब ये दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेश होंगे।
- जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान रद्द हो गया है, अब वहाँ भारत का संविधान लागू होगा। जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा भी नहीं होगा।
- जम्मू-कश्मीर में स्थानीय लोगों की दोहरी नागरिकता समाप्त हो जाएगी।
- जम्मू-कश्मीर सरकार का कार्यकाल अब छह साल का नहीं, बल्कि पाँच साल का होगा।
- रणबीर दंड संहिता के स्थान पर भारतीय दंड संहिता प्रभावी होगी तथा नए कानून या कानूनों में होने वाले बदलाव स्वतः जम्मू-कश्मीर में भी लागू हो जाएंगे।
क्या है शिमला समझौता?
- शिमला समझौते पर 2 जुलाई, 1972 को भारत की ओर से इंदिरा गांधी व पाकिस्तान की ओर से ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किये थे।
- यह समझौता भारत और पाकिस्तान के मध्य बेहतर संबंधों हेतु एक व्यापक ब्लू प्रिंट है।
- समझौते के मुख्य बिंदु :
- दोनों देशों के विवाद में किसी भी अन्य देश की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
- सभी विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने का प्रयास किया जाएगा।
- दोनों देशों के बीच संबंधों का संचालन संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के माध्यम से किया जाएगा।
- दोनों देश एक-दूसरे की राष्ट्रीय एकता, क्षेत्रीय अखंडता, राजनीतिक स्वतंत्रता और संप्रभुता का बराबर सम्मान करेंगे।
- विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र में आदान-प्रदान को प्रोत्साहित किया जाएगा।
स्रोत: द हिंदू
चीन में टाइफून को लेकर रेड अलर्ट
चर्चा में क्यों?
चीन के राष्ट्रीय मौसम विज्ञान केंद्र ने टाइफून तूफ़ान की वजह से रेड अलर्ट जारी किया।
प्रमुख बिंदु:
- इस सुपर टाइफून को लेकीमा (Lekima ) नाम दिया गया है।
- राष्ट्रीय मौसम विज्ञान केंद्र ने अनुमान व्यक्त किया है कि वर्ष 2014 के बाद से इस वर्ष का टाइफून सबसे विनाशकारी होगा
- चीन के मौसम ब्यूरो के अनुसार, यह सबसे पहले झेजियांग प्रांत के पूर्वी तट से टकराएगा। मुख्य भूमि से टकराने के बाद इसके उत्तर की ओर बढ़ने की संभावना है। टाइफून के प्रभाव को देखते हुए यांग्त्ज़ी नदी डेल्टा क्षेत्र में अलर्ट जारी किया गया है, इसी डेल्टा क्षेत्र में शंघाई स्थित है।
- ताइवान में भी टाइफून के प्रभाव को देखते हुए उड़ानों को रद्द कर दिया है। इस तूफ़ान की गति 55-63 प्रति मील अनुमानित की गई है।
चीन के जल संसाधन मंत्रालय ने भी यांग्त्ज़ी और पीली नदियों के पूर्वी, निचले क्षेत्रों में बाढ़ के लिए अलर्ट पहले ही जारी कर दिया है।
टाइफून:
- टाइफून एक उष्णकटिबंधीय चक्रवात है जो उत्तरी गोलार्ध्द में 100° से 180° पूर्वी देशांतर के बीच विकसित होता है।
- इस क्षेत्र को पश्चिमोत्तर प्रशांत बेसिन के नाम से जाना जाता है और यह पृथ्वी पर सबसे सक्रिय उष्णकटिबंधीय चक्रवात बेसिन है।
- पश्चिमोत्तर प्रशांत बेसिन में टाइफून का कोई निश्चित समय नही होता है। अधिकांश टाइफून जून से नवंबर के बीच आते हैं एवं दिसंबर से मई के बीच भी सीमित टाइफून आते हैं।
- अन्य उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के समान ही टाइफून के गठन और विकास की मुख्य दशाएँ-
(1) समुद्री सतह का पर्याप्त तापमान
(2) वायुमंडलीय अस्थिरता
(3) क्षोभमंडल में उच्च आर्द्रता
(4) निम्न वायु दाब केंद्र
(5) कोरिओलिस बल की उपस्थिति
(6) कम ऊर्ध्वाधर पवन कर्तन ( Wind Shear )
स्रोत: द हिंदू
पशु आधार
चर्चा में क्यों?
भारत में दुनिया की सबसे बड़ी पशुधन आबादी है और विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक भी है। वर्तमान में भारत में पशुधन की जानकारी से संबंधित एक विशाल डेटाबेस बनाया जा रहा है। यह पशुओं के लिये एक UID या पशु आधार (Pashu Aadhaar) जारी करता है। अभी तक लगभग 22.3 मिलियन गायों और भैंसों के लिये UIDs जारी किये जा चुके हैं।
प्रमुख बिंदु
- पशु उत्पादकता और स्वास्थ्य के लिये सूचना नेटवर्क (Information Network for Animal Productivity and Health-INAPH) के लिये नोडल एजेंसी ‘राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड’ (National Dairy Development Board-NDDB) है।
- आधार के साथ समानताएँ हैं:
- INAPH भी प्रत्येक पशु को एक विशिष्ट यादृच्छिक पहचान संख्या प्रदान करता है।
- यह भारत के पशुधन संसाधनों के प्रभावी और वैज्ञानिक प्रबंधन के लिये उपयोगी डेटा एवं सूचनाओं का संकलन करता है।
- पूरी तरह से तैयार होने के बाद यह पशुओं का सबसे बड़ा वैश्विक डेटाबेस होगा।
- इसमें निहित डेटा में पशुओं की नस्ल और वंशावली, दूध उत्पादन, कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination-AI), टीकाकरण और पोषण इतिहास से संबंधित समस्त जानकारी शामिल होगी।
- INAPH परियोजना के पहले चरण में देश की 94 मिलियन ‘दूध देने वाली’ मादा गायों (अर्थात् ऐसी गाय, जो वर्तमान में दूध उत्पादित करने की अवस्था में नहीं है) और भैंसों की आबादी को शामिल किया जाएगा।
- इसमें सभी स्वदेशी, क्रॉसब्रीड के साथ-साथ विदेशी दुधारू पशुओं को भी शामिल किया गया है।
- कुछ समय बाद इसे सभी गोजातीय पशुओं तक विस्तारित किया जाएगा जिनमें नर, बछड़े और बछिया, बूढ़े और आवारा पशु भी शामिल हैं।
- प्रत्येक पशु के कान पर एक 12-अंकीय UID वाला थर्मोप्लास्टिक पॉलीयूरेथेन (Thermoplastic Polyurethane) टैग लगाया जाएगा।
चुनौतियाँ
कम उत्पादकता, खराब पशु स्वास्थ्य, आर्थिक रूप से कमज़ोर बनाने वाली बीमारियों की व्यापकता और गैर-वैज्ञानिक और उपाख्यान (Anecdotal) प्रणाली के आधार पर जीनोम चयन इसकी प्रमुख चुनौतियाँ है।
उद्देश्य
- पशुओं की उचित पहचान तथा उनके उत्पादों चाहे वह दूध हो या मांस के बारे में, जानकारी प्राप्त करने की क्षमता को सक्षम बनाना।
- यदि भारतीय डेयरी और पशुधन उद्योग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत स्वास्थ्यकर एवं फाइटोसैनेटरी मानकों का अनुपालन करना है, तो इसके लिये एक मज़बूत तथा व्यापक पशु सूचना प्रणाली, जो उत्पादों को उनके स्रोत के विषय में जानने की अनुमति देती है, का होना अनिवार्य है।
- स्वस्थ या प्रीमियम पशुओं से प्राप्त उत्पादों को रोगग्रस्त या गैर-विशिष्ट पशुओं से प्राप्त उत्पादों से अलग किया जा सकता है।
- रोग-मुक्त, उच्च आनुवंशिक योग्यता वाले बैलों और दूध उत्पादक गायों की स्वदेशी नस्लों के प्रजनन के लिये इस डेटा का उपयोग किया जा सकता है। वर्तमान में स्वदेशी नस्लों की दूध उत्पादकता बहुत कम हैं।
आगे की राह
अभी तक समग्र पशु उत्पादकता को बढ़ाने के मामले में कृत्रिम गर्भाधान से सीमित सफलता ही मिली है। इसका एक प्रमुख कारण कृत्रिम गर्भाधान के लिये निम्न-आनुवांशिक गुणों वाले वीर्य का उपयोग किया जाना है। अधिकांश गायों या दाता बैल की AI स्थिति का खराब रिकॉर्ड एक अन्य कारण है, जिसके चलते कृत्रिम गर्भाधान में समस्या आती है। प्रत्येक पशु के गर्भाधान के इतिहास पर अधिक विश्वसनीय डेटा उपलब्ध होने से AI कार्यक्रम को सफल बनाया जा सकेगा। प्रत्येक पशु की पोषण संबंधी जानकारी मिलने से पशुओं के लिये प्रभावी पोषण प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सकेगा। इस डेटाबेस को अगली श्वेत क्रांति को प्रोत्साहित करने और पशुधन को ग्रामीण समृद्धि का माध्यम बनाने के एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जाना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
CITES में भारत का प्रस्ताव
चर्चा में क्यों?
भारत ने अगस्त के अंत में स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में होने वाली CITES सचिवालय (Secretariat) की बैठक में विभिन्न वन्यजीव प्रजातियों की सूची में बदलाव संबंधी एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है।
प्रमुख बिंदु
- प्रस्तुत प्रस्ताव में Smooth-Coated Otter, छोटे-पंजे वाले ओटर (Small-Clawed Otter), भारतीय स्टार कछुआ, टोके गेको (Tokay Gecko), वेजफिश (Wedgefish) और भारतीय शीशम (Indian Rosewood) की सूची में बदलाव के बारे में बात की गई हैं।
- भारत उक्त सभी पाँच वन्यजीवों की प्रजातियों के संरक्षण को बढ़ावा देना चाहता है क्योंकि ये सभी प्रजातियाँ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के उच्च जोखिम का सामना कर रही हैं।
- भारतीय शीशम को CITES परिशिष्ट II से हटाने का प्रस्ताव किया गया है। CITES द्वारा सुरक्षा की आवश्यकता के आधार पर प्रजातियों को तीन परिशिष्टों में सूचीबद्ध किया गया है।
- TRAFFIC इंडिया के अनुसार, भारत अन्य देशों द्वारा चिह्नित प्रजातियों की सुरक्षा की स्थिति को बढ़ावा देने वाले प्रस्तावों का भी समर्थन करेगा।
CITES
- CITES ( The Convention of International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora) वन्यजीवों और वनस्पतियों की संकटापन्न प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर देशों के बीच एक समझौता है।
- यह समझौता 1 जुलाई, 1975 से लागू है। लेकिन भारत इस समझौते के लागू होने के लगभग एक साल बाद 18 अक्तूबर, 1976 को इसमें शामिल हुआ और इस समझौते में शामिल होने वाला 25वाँ सदस्य बना।
- वर्तमान में CITES के पक्षकारों की संख्या 183 है।
- समझौते के तहत संकटापन्न प्रजातियों को तीन परिशिष्टों में शामिल किया जाता है:
परिशिष्ट I: इसमें शामिल प्रजातियाँ ‘लुप्तप्राय’ हैं, जिन्हें व्यापार से और भी अधिक खतरा हो सकता है।
परिशिष्ट II: इसमें ऐसी प्रजातियाँ शामिल हैं जिनके निकट भविष्य में लुप्त होने का खतरा नहीं नहीं है लेकिन ऐसी आशंका है कि यदि इन प्रजातियों के व्यापार को सख्त तरीके से नियंत्रित नहीं किया गया तो ये लुप्तप्राय की श्रेणी में आ सकती हैं।
परिशिष्ट III: इसमें वे प्रजातियाँ शामिल हैं जिसकी किसी एक पक्ष/देश द्वारा नियंत्रण/संरक्षण के लिये पहचान की गई है। इस परिशिष्ट में शामिल प्रजातियों के व्यापार को नियंत्रित करने के लिये दूसरे पक्षों का सहयोग अपेक्षित है।
CITES की संरचना
TRAFFIC
- ट्रैफिक WWF एवं IUCN का संयुक्त संरक्षण कार्यक्रम है। जिसकी स्थापना वर्ष 1976 में IUCN के प्रजाति उत्तरजीविता आयोग द्वारा की गई थी।
- ट्रैफिक एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क है जिसका मुख्यालय कैम्ब्रिज यू.के. में है।
- ट्रैफिक सक्रिय रूप से वन्यजीव व्यापार की निगरानी और जाँच करता है तथा प्रभावी संरक्षण नीतियों तथा कार्यक्रमों के रूप में दुनिया भर की विभिन्न संस्थाओं को जानकारी प्रदान कराता है।
- यह गैर-सरकारी संगठन अपनी गतिविधियाँ विभिन्न राष्ट्रीय सरकारों तथा CITES मुख्यालय के सहयोग से चलाता है।
- भारत में ट्रैफिक की स्थापना वर्ष 1991 में WWF के एक विभाग के रूप में की गई।
TRAFFIC रणनीति
स्रोत: द हिंदू
आंध्र प्रदेश के निजी उद्योगों में स्थानीय लोगों के लिये कोटा तय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आंध्र प्रदेश सरकार ने राज्य के स्थानीय लोगों को प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया है। आंध्र प्रदेश सरकार के इस निर्णय के बाद वहाँ के निजी उद्योग से जुड़े कई उद्यमियों ने चिंता ज़ाहिर की हैं।
प्रमुख बिंदु :
- निजी उद्यमियों के अनुसार, आंध्र प्रदेश एक नया द्विभाजित राज्य है और यहाँ के स्थानीय लोगों में रोज़गार के लिये आवश्यक कौशल की कमी है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार के इस फैसले से सबसे ज़्यादा छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार और ओडिशा के वे श्रमिक प्रभावित होंगे जो बिजली संयंत्रों, आंध्र प्रदेश के विशेष आर्थिक क्षेत्रों और पोलावरम जैसी बड़ी परियोजना में कार्यरत हैं।
- आँकड़ों के अनुसार, राज्य के निजी उद्योगों में 5 लाख से अधिक श्रमिक प्रवासी हैं और आजीविका के उद्देश्य से वहाँ रह रहे हैं।
क्या हैं निर्णय के विपक्ष में तर्क?
- आंध्र प्रदेश सरकार के इस निर्णय की आलोचना में यह कहा जा रहा है कि “हाल ही में विभाजित हुआ आंध्र प्रदेश, पूर्णतः एक कृषि प्रधान राज्य है और इस प्रकार की किसी भी नीति का बोझ वहन नहीं कर सकता है। आंध्र प्रदेश सरकार का यह निर्णय भावनात्मक दृष्टिकोण से ज़रूर सही लग सकता है, परंतु यदि व्यवसाय और उद्योग की दृष्टि से देखें तो यह निर्णय राज्य के विकास में बड़ी बाधा है। इस संदर्भ में आंध्र प्रदेश को बंगलूरू के मॉडल का अनुसरण करना चाहिये, जहाँ राज्य श्रमिक कार्यबल का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा प्रवासियों का है।”
क्या कहते हैं निर्णय के समर्थक?
- इस निर्णय के समर्थकों का मानना है कि इसके फलस्वरूप राज्य में स्थानीय लोगों के लिये रोज़गार सुनिश्चित किया जा सकेगा।
- उनका मानना यह भी है कि इसका प्रभाव बहुत ही कम प्रवासियों पर पड़ेगा, क्योंकि इस प्रस्ताव में स्थानीय लोगों को 75 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है और बाकी 25 प्रतिशत रोज़गार प्रवासियों लिये है।
आंध्र प्रदेश सरकार के समक्ष चुनौतियाँ?
- निजी उद्योग क्षेत्र के उद्यमियों का कहना है कि स्थानीय लोग कई उद्योगों जैसे- हॉस्पिटैलिटी और कंस्ट्रक्शन उद्योग आदि में काम करने के इच्छुक नहीं होते और ऐसे उद्योगों में प्रवासियों का काफी ज़्यादा योगदान (75 से 90 प्रतिशत) है। इस प्रकार इन उद्योगों में कार्य करने के लिये स्थानीय लोगों को प्रेरित करना सरकार की सबसे बड़ी चुनौती होगी।
- इसके अलावा राज्य के सभी लोगों को अलग-अलग क्षेत्रों में कार्य करने के लिये प्रशिक्षित करना भी एक चुनौती होगी। सरकार ने उद्योगों को 3 वर्ष का समय दिया है और इस अवधि में सरकार का लक्ष्य राज्य में कार्य करने योग्य लगभग सभी लोगों को आवश्यकता के अनुसार प्रशिक्षण देना है।
आंध्र प्रदेश का उद्योग/कारखाना अधिनियम, 2019
- इस विधेयक के पारित होने से आंध्र प्रदेश ऐसा पहला राज्य बन गया है, जहाँ निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों के लिये रोज़गार में आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
- विधेयक के अनुसार, निजी औद्योगिक नौकरियों में आंध्र प्रदेश के स्थानीय युवाओं के लिये 75% कोटा निर्धारित किया गया है।
- विधेयक में कहा गया है कि यदि किसी औद्योगिक इकाई को कुशल स्थानीय श्रमिक नहीं मिल पाते हैं तो उस औद्योगिक इकाई को राज्य सरकार के सहयोग से स्थानीय लोगों को कार्य के लिये प्रशिक्षित करना होगा।
- सभी उद्योगों को इस कार्य को पूरा करने के लिये 3 वर्ष का समय दिया गया है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सरदार सरोवर बांध
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मध्य प्रदेश और गुजरात के बीच नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध में पानी छोड़ने को लेकर विवाद सामने आया है। मध्य प्रदेश ने गुजरात के साथ अपने अधिशेष पानी को साझा करने से इनकार कर दिया है।
सरदार सरोवर बांध:
- सरदार सरोवर बांध गुजरात के नवगाम के पास नर्मदा नदी पर बना एक गुरुत्व बांध है। यह बांध चार राज्यों गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में पानी तथा बिजली की आपूर्ति करते है।
- यह सरदार वल्लभ भाई पटेल की महत्त्वाकांक्षी परियोजना थी जिसकी संकल्पना को वर्ष 1960 के आसपास जवाहरलाल नेहरू द्वारा मूर्त रूप देने का प्रयास किया, लेकिन इस परियोजना हेतु कोई ठोस कदम नही उठाया जा सका।
- वर्ष 1980 के आसपास विश्व बैंक की सहायता से इस परियोजना पर ज़मीनी कार्यवाही प्रारंभ की गई।
- नर्मदा नदी दक्षिण-पश्चिम मालवा पठार के बाद एक लंबे गार्ज का निर्माण करती है। इस गार्ज का विस्तार गुजरात तक है जहाँ सरदार सरोवर बांध का निर्माण किया गया है।
- बांध के लिये भूमि अधिग्रहण के बाद लोगों के विस्थापन की चिंता को लेकर नर्मदा बचाओ आंदोलन की भी शुरुआत हुई।
सरदार सरोवर बांध का महत्त्व:
- बांध से निकली गई नर्मदा नहर के माध्यम से गुजरात के सूखा प्रभावित क्षेत्रों को सिंचाई और पेयजल हेतु पानी की की आपूर्ति की जाती है।
- राजस्थान के बाड़मेर और जालौर के शुष्क क्षेत्रों में भी सिंचाई और पेयजल के लिये नर्मदा नहर से पानी की आपूर्ति की जाती है।
- इस बांध के निर्माण से भरूच आदि ज़िलों में बाढ़ की स्थिति में भी सुधार हुआ है।
- गुजरात सरकार ने नहर के ऊपर सौर पैनल लगाकर सौर ऊर्जा उत्पन्न करने की योजना की घोषणा की है।
वर्तमान परिदृश्य:
- सरदार सरोवर परियोजना में रिवर बेड पावर हाउस ( 1,200 MW ) और कैनाल हेड पावर हाउस ( 250 MW ) नामक दो पावर हाउस शामिल हैं। इस परियोजना के तहत मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात को क्रमशः 57:27:16 के अनुपात में बिजली साझा की जाती है।
- रिवर बेड पावर हाउस वर्ष 2017 से ही पानी की कमी के कारण बंद है, इस जलाशय की ऊँचाई 138.63 मीटर है।
गुजरात का पक्ष:
- गुजरात में वर्ष 2017 और 2018 में कम वर्षा हुई इसलिये वह ज़्यादा पानी की मांग कर रहा है।
- गुजरात की मांग है कि जब तक पानी पूर्ण जलाशय स्तर तक नहीं पहुँचता, तब तक उत्पादन नहीं शुरू किया जाएगा; क्योंकि गुजरात के लिये बिजली से ज़्यादा पेयजल और सिंचाई प्राथमिक हैं।
- रिवर बेड पावर हाउस बंद होने पर ही जलाशय भरना संभव है क्योंकि बिजली के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले पानी का पुन: उपयोग नहीं किया जा सकता तथा इसे समुद्र में बहा दिया जाता है।
मध्य प्रदेश का पक्ष:
- मध्य प्रदेश सरकार ने कहा कि वह प्राधिकरण के दिशा-निर्देशों का पालन करने को तैयार है, लेकिन उसने एकतरफा करार पर आपत्ति जताई है।
- मध्य प्रदेश सरकार ने कहा कि पानी का मुख्य उद्देश्य बिजली उत्पादन करना था साथ ही गुजरात पानी का भंडारण भी कर सकता था।
- मध्य प्रदेश सरकार ने अधूरे नियमों और विनियमों का हवाला देते हुए कहा कि यदि जलाशय का स्तर बढ़ता है, तो पुनर्वासित लोग और भी प्रभावित होंगे।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
PMLA Act में संशोधन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने धन शोधन निवारण अधिनियम (Prevention of Money Laundering Act-PMLA) में संशोधन की अधिसूचना जारी की है। यह संशोधन धन शोधन के मामलों से निपटने के लिये प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) को सशक्त करेगा।
प्रमुख बिंदु
- यह संशोधन धन शोधन (Money Laundering) को स्वयमेव अपराध की श्रेणी में रखता है।
- अभी तक धन शोधन एक स्वतंत्र अपराध की श्रेणी में नहीं आता था अपितु यह किसी अन्य अपराध पर निर्भर करता है जिसे 'पूर्वगामी अपराध' या 'अनुसूचित अपराध' के रूप में जाना जाता है। इस प्रकार के अपराधों में आय को धन शोधन के अपराध का विषय बनाया जाता है।
- यह उन संपत्तियों को भी आपराधिक प्रक्रिया के क्षेत्र के अंतर्गत मानता है जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अनुसूचित अपराध (Scheduled Offence) से संबंधित गतिविधियों से प्राप्त की गयी हैं।
- सबसे महत्त्वपूर्ण संशोधन धारा 17 (तलाशी और गिरफ़्तारी) और धारा 18 (व्यक्तियों की तलाश) की उप-धारा (1) के प्रावधानों को हटाना है। इन प्रावधानों के अनुसार, PMLA Act के अंतर्गत अधिसूचित अपराधों में से किसी भी अपराध में जाँच करने में सक्षम एजेंसी द्वारा दर्ज़ प्राथमिक रिपोर्ट या चार्जशीट का होना आवश्यक था।
- धारा 45 में एक स्पष्टीकरण को जोड़ा गया है जिसके अनुसार, PMLA के अधीन सभी अपराध संज्ञेय और गैर जमानती होंगे जिससे ED को कुछ शर्तों के अधीन बिना किसी वारंट के अभियुक्त को गिरफ़्तार करने का अधिकार होगा।
- अन्य महतत्त्वपूर्ण संशोधनों में अपराध से प्राप्त आय के छिपाव, कब्ज़ा, अधिग्रहण, उपयोग, निष्कलंकित धन के रूप में पेश करना या निष्कलंकित धन के रूप में दावा करना इस अधिनियम के तहत स्वतंत्र और पूर्ण अपराध हैं।
- इस संशोधन के तहत धारा 72 केंद्र में एक अंतर-मंत्रालयी समन्वय समिति (Inter-Ministerial Coordination Committee) के गठन का प्रावधान करती है जो धन शोधन और आतंकवाद-रोधी वित्तपोषण की पहल पर परामर्श हेतु संचालनगत और नीतिगत स्तर पर सहयोग के लिये विभागीय और अंतर-एजेंसी समन्वय हेतु उत्तरदायी होगी।
प्रवर्तन निदेशालय
(Enforcement Directorate)
- प्रवर्तन निदेशालय एक बहु अनुशासनात्मक संगठन है जो वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग का हिस्सा है।
- यह दो विशेष राजकोषीय कानूनों - विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (FEMA) और धन की रोकथाम अधिनियम, 2002 (PMLA) के प्रावधानों को लागू करने का कार्य करता है। सीधी भर्ती द्वारा कर्मियों की नियुक्ति के अलावा निदेशालय प्रतिनियुक्ति पर विभिन्न जाँच एजेंसियों, सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क, आयकर, पुलिस आदि विभागों से भी अधिकारियों को नियुक्त करता है।
अधिकार एवं शक्तियाँ
एक बहुआयामी संगठन की भूमिका में निदेशालय दो कानूनों को लागू करता है, जो निम्नलिखित हैं:
- विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (Foreign Exchange Management Act-FEMA)– यह एक नागरिक कानून है, जो निदेशालय को अर्द्ध न्यायिक शक्तियाँ देता है।
- यह निदेशालय को विनिमय नियंत्रण कानून के संदिग्ध उल्लंघनों की जाँच करने के साथ दोषी पर जुर्माना लगाने की भी शक्ति देता है।
- धन शोधन निवारण अधिनियम (Prevention Of Money Laundering Act-PMLA)– यह एक आपराधिक कानून है, जो निदेशालय के अधिकारियों को अनंतिम रूप से जाँच पड़ताल करने, पूछताछ करने और जुर्माना लगाने का अधिकार देता है।
- यह कानून अधिकारियों को कालेधन के कारोबार में लिप्त व्यक्तियों की गिरफ्तारी और उन पर मुकदमा चलाने के अलावा अपराधिक कृत्यों से प्राप्त संपत्ति को संलग्न/ज़ब्त करने का अधिकार भी देता है।
स्रोत: द हिंदू
RACE: राजस्थान का नया उच्चतर शिक्षा मॉडल
चर्चा में क्यों?
ज़िला स्तर पर सरकारी कॉलेजों के बीच संसाधनों की उपलब्धता को तर्कसंगत बनाने (प्राध्यापकों और चल संपत्ति का उचित वितरण) के उद्देश्य से राजस्थान में एक नया उच्च शिक्षा मॉडल ‘उत्कृष्टता के साथ कॉलेजों के लिये संसाधन सहायता’ (Resource Assistance for Colleges with Excellence- RACE) शुरू किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- यह मॉडल सुविधाओं के वितरण के लिये एक पूल का निर्माण करेगा जिससे बुनियादी सुविधाओं की कमी वाले कॉलेज लाभान्वित होंगे।
- नए मॉडल को अपनाने से सभी कॉलेजों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के समान अवसर प्राप्त होंगे।
- यह मॉडल छोटे शहरों में स्थित उन कॉलेजों की मदद करेगा जो प्राध्यापकों और बुनियादी ढाँचे की कमी का सामना कर रहे हैं।
- नया मॉडल कॉलेजों की निर्णय लेने की शक्ति को प्रभावी रूप से विकेंद्रीकृत करेगा और उन्हें ज़िले के भीतर भौतिक एवं मानव संसाधनों को साझा करने के लिये प्रोत्साहित करेगा।
- RACE छोटे कॉलेजों को स्वायत्तता देगा और स्थानीय स्तर पर उनकी समस्याओं के समाधान खोजने में मदद करेगा।
प्रक्रिया
- ज़रूरतमंद कॉलेज अपने ज़िले के नोडल कॉलेज को अपनी आवश्यकता के बारे में सूचित करेंगे करेंगे, इसके बाद नोडल कॉलेज आवश्यकतानुसार शिक्षकों को प्रतिनियुक्ति पर भेजेगा साथ ही आवेदन करने वाले कॉलेज को प्रोजेक्टर, डिजिटल लाइब्रेरी, उपकरण और तकनीशियन जैसी सुविधाएँ प्रदान करेगा।
स्रोत: द हिंदू
स्टार्टअप के लिये कर नियमों में राहत
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board Of Direct Taxes-CBDT) द्वारा स्टार्टअप के लिये ऐंजल टैक्स (Angel tax) से संबंधित लंबित मामलों की जाँच में राहत प्रदान करने हेतु दिशा-निर्देश जारी किये गए।
प्रमुख बिंदु
- CBDT ने उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department For Promotion of Industry and Internal Trade-DPIIT) से मान्यता प्राप्त स्टार्टअप कंपनियों को कर की जाँच और आकलन से छूट प्रदान की है।
- इन पंजीकृत स्टार्टअप की तब तक ऐंजल टैक्स प्रावधानों के तहत जाँच नहीं की जाएगी जब तक वे और उनके निवेशक अधिसूचना में निर्धारित पात्रता मानदंडों को पूरा नहीं करते।
- ये दिशा-निर्देश स्टार्टअप को एंजेल इन्वेस्टर से प्राप्त धन की छानबीन को आसान बनाने के लिये हैं।
- ये दिशा-निर्देश वित्त मंत्री द्वारा वर्ष 2019-20 के बजट में की गई घोषणा के अनुरूप हैं जिसमें स्टार्टअप को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से सभी प्रकार की जानकारी उपलब्ध कराने वाली स्टार्टअप कंपनियों को किसी प्रकार के मूल्यांकन से छूट की घोषणा की गई है।
- नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, आकलन अधिकारी (Assessing Officer) ऐंजल टैक्स का आकलन करते समय कर की जानकारी का सत्यापन नहीं करेगा और इस संबंध में कंपनी द्वारा दी गई जानकारी ही मान्य होगी।
- जबकि जो स्टार्टअप कंपनियाँ DPIIT से मान्यता प्राप्त नहीं हैं उनकी ऐंजल टैक्स सहित किसी भी मुद्दे की जाँच या सत्यापन के लिये आकलन अधिकारी को अपने वरिष्ठ अधिकारियों की अनुमति लेनी आवश्यक होगी।
- इन दिशा-निर्देशों से कर से संबंधित जाँच का सामना कर रहे स्टार्टअप को राहत मिलेगी, साथ ही कर अधिकारियों के समक्ष भी निर्णय लेने हेतु स्थिति स्पष्ट होगी।
- यदि किसी स्टार्टअप को DPIIT द्वारा मान्यता प्राप्त है लेकिन आकलन अधिकारी कई मुद्दों के लिये इसकी जाँच कर रहे हैं तो वे अधिकारी अपनी मूल्यांकन कार्यवाही में आयकर अधिनियम, 1961 के तहत कर अपवंचन के प्रावधान के तहत जाँच नहीं कर सकते हैं।
क्या है एंजेल टैक्स?
- स्टार्टअप्स कंपनियाँ अपने बिज़नेस को बढ़ाने के लिये फंड जुटाती हैं और इसके लिये पैसे देने वाली कंपनी या किसी संस्था को शेयर जारी किये जाते हैं।
- ज़्यादातर मामलों में ये शेयर तय कीमत की तुलना में काफी अधिक कीमत पर जारी किये जाते हैं।
- इस प्रकार शेयर बेचने से प्राप्त हुई अतिरिक्त राशि को इनकम माना जाता है और इस इनकम पर जो टैक्स लगता है, उसे एंजेल टैक्स कहा जाता है।
- स्टार्टअप्स को इस तरह मिली राशि को एंजेल फंड कहते हैं, जिसके बाद आयकर विभाग एंजेल टैक्स वसूलता है।
- एंजेल टैक्स को वर्ष 2012 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य धन शोधन (Money Laundering) को रोकना है।
एंजेल निवेशक कौन है?
- एंजेल निवेशक धनवान व्यक्ति होता है जो ऐसी किसी छोटी स्टार्टअप कंपनी में निवेश करने के लिये सहमत होता है जिसके पास पूंजी की बेहद कमी होती है।
- आमतौर पर एंजेल निवेशक उद्यमी होते हैं, जो स्टार्टअप कंपनी शुरू करने वाले व्यक्ति के दोस्त या रिश्तेदार भी हो सकते हैं।
- एंजेल निवेशक कंपनी के संस्थापकों के साथ-साथ उनके व्यापार की अवधारणा में विश्वास करते हुए कंपनी को स्थापित करने के लिये आवश्यक पूंजी बतौर कर्ज़ देते हैं, जो आमतौर पर अन्य कर्ज़दाताओं की तुलना में आसान शर्तों पर दिया जाता है।
- सामान्यतः एंजेल निवेशक चाहते हैं कि निवेश पर उनका निजी स्वामित्व बना रहे। दिये गए कर्ज़ के एवज़ में एंजेल निवेशक आमतौर पर अपने पसंदीदा शेयरों के रूप में नई कंपनी में अपना हिस्सा प्राप्त करते हैं।
स्रोत: द हिंदू
Rapid Fire करेंट अफेयर्स 9 अगस्त
- राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 8 अगस्त को राष्ट्रपति भवन में आयोजित अलंकरण समारोह में नानाजी देशमुख (मरणोपरांत), डॉ. भूपेन्द्र कुमार हजारिका (मरणोपरांत) और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न से सम्मानित किया। विदित हो कि भारत रत्न सम्मान चार साल के अंतराल के बाद दिया गया। इससे पहले वर्ष 2015 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के संस्थापक मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न से नवाजा गया था। उपरोक्त तीन हस्तियों के साथ ही अब तक 48 प्रख्यात लोगों को भारत रत्न पुरस्कार मिल चुका है। प्रणब मुखर्जी यह सम्मान प्राप्त करने वाले पाँचवें पूर्व राष्ट्रपति हैं। उनसे पहले पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन, राजेंद्र प्रसाद, ज़ाकिर हुसैन और वी.वी. गिरि को यह सम्मान मिल चुका है। भारत रत्न से सम्मानित होने वालों को एक ताम्र पदक दिया जाता है। पीपल के पत्ते के आकार के ताम्र पदक पर प्लेटिनम का चमकता सूर्य बना होता है, जिसके नीचे चाँदी से 'भारत रत्न' लिखा रहता है। इस सम्मान के साथ कोई नकद धनराशि नहीं दी जाती। भारत रत्न देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।
- हर साल देश में 8 अगस्त का दिन अगस्त क्रांति दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसमें स्वाधीनता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाले क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि दी जाती है। इस वर्ष अगस्त क्रांति की 77वीं वर्षगाँठ मनाई गई। 8 अगस्त, 1942 का दिन भारतीय इतिहास में आज़ादी की अंतिम लड़ाई के ऐलान के रूप में याद किया जाता है। इसी दिन बंबई (अब मुंबई) के ग्वालिया टैंक मैदान पर अखिल भारतीय कॉन्ग्रेस महासमिति ने एक प्रस्ताव पारित किया था जिसे भारत छोड़ो प्रस्ताव कहा गया। महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) की नींव इसी दिन रखी गई थी, जिसके बाद सारा भारत अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट हो गया और ब्रिटिश हुकूमत को घुटने टेकने पड़े। आज़ादी के बाद से ही इस दिन को क्रांति दिवस तथा बंबई (अब मुंबई) के जिस मैदान में झंडा फहराकर इसकी शुरुआत की गई थी, उसे क्रांति मैदान के नाम से जाना जाता है।
- विश्व मूल निवासी दिवस (World Indigenous People's Day) 9 अगस्त को दुनियाभर में मनाया जाता है। विश्व मूल निवासी दिवस सभी देशों के उन लोगों के हितों और अधिकारों की सुरक्षा के लिये मनाया जाता है जो वहाँ के वास्तविक वासी यानी कि मूल निवासी हैं। मूल निवासियों के मानवाधिकारों को लागू करने और उनके संरक्षण के लिये 1982 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक कार्यदल United Nations Working Group on Indigenous Populations (UNWGIP) का गठन किया, जिसकी पहली बैठक 9 अगस्त, 1982 को हुई थी। इसलिये प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को विश्व मूल निवासी दिवस का आयोजन किया जाता है। UNWGIP कार्य दल के 11वें अधिवेशन में मूल निवासी घोषणा प्रारूप को मान्यता मिलने पर वर्ष 1994 को मूल निवासी वर्ष तथा 9 अगस्त को मूल निवासी दिवस घोषित किया गया। मूल निवासियों को उनके अधिकार दिलाने और उनकी समस्याओं का निराकरण, भाषा, संस्कृति, इतिहास के संरक्षण के लिये संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 9 अगस्त, 1994 को जिनेवा में विश्व के मूल निवासी प्रतिनिधियों का प्रथम अंतर्राष्ट्रीय मूल निवासी दिवस सम्मेलन आयोजित किया।
- उत्तर प्रदेश सरकार और नीदरलैंड्स विभिन्न क्षेत्रों में तकनीकी सहयोग के लिये पूर्व में हुए समझौतों को तेजी से आगे बढ़ाने पर सहमत हो गए हैं। दोनों पक्षों के बीच परस्पर सहयोग समझौते को 5 वर्ष के लिये बढ़ाने के पर भी हस्ताक्षर किये गए। अब यह समझौता वर्ष 2024 तक के लिये आगे बढ़ा दिया गया है। इससे उत्तर प्रदेश को नीदरलैंड्स से नई तकनीकें प्राप्त होंगी, जिसका लाभ जनता को मिलेगा। इस समझौते के तहत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, नगरीय विकास, परिवहन प्रबंधन व अवस्थापना के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में रिन्यूएबल एनर्जी को भी बढ़ावा देने का कार्य किया जाएगा। इसके तहत खाद्य प्रसंस्करण के साथ-साथ गन्ना, आलू, पुष्प उत्पादन एवं डेयरी उद्योग में आधुनिक तकनीक का प्रयोग करके किसानों की आय को दोगुना किया जा सकता है। नीदरलैंड्स सरकार गंगा नदी की सफाई तथा सीवेज ट्रीटमेंट में भी सहयोग प्रदान करेगी। इसके लिये नीदरलैंड्स और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच हुए समझौते के बाद गंगा बैराज के पास 1100 हेक्टेयर क्षेत्र में मॉडल सिटी का निर्माण किया जाएगा। वर्ष 2015 में बैराज पर नीदरलैंड्स सरकार के सहयोग से मॉडल सिटी बनाने की रूपरेखा बनाई गई । इसमें बैराज के बाए मार्जिनल बंध के समानांतर सात किलोमीटर लंबा बंध बनाकर बीच में मिलने वाली जगह पर मॉडल सिटी का निर्माण किया जाना है।
- यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के वैज्ञानिकों ने विश्व का सबसे बारीक (पतला) सोना तैयार किया है जो केवल 2 अणुओं के बराबर पतला है। यह सोना सामान्य मनुष्य के नाखून से 10 लाख गुना पतला है। वैज्ञानिकों ने इस सोने की मोटाई 0.47 नैनोमीटर मापी है। इस पदार्थ को 2D बताया गया है क्योंकि इसमें एक के ऊपर एक अणुओं की 2 परतें हैं। इस सोने का चिकित्सकीय उपकरणों और इलेक्ट्रॉनिक उद्योग में व्यापक अनुप्रयोग हो सकता है। कुछ औद्योगिक कार्यों में रासायनिक प्रक्रियाओं के उत्प्रेरण में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। प्रयोगशाला परीक्षणों में पता चला है कि यह सोना उत्प्रेरक के रूप में वर्तमान में इस्तेमाल किये जाने वाले स्वर्ण नैनो कणों की तुलना में अधिक प्रभावी है। इसका प्रयोग रोगों की जाँच करने वाले उपकरणों और पानी को साफ करने वाले वाटर प्यूरीफायर में भी किया जा सकेगा। सोने के नए प्रकार को एक विशेष रसायन की मदद से तैयार किया गया है। इसे तैयार करने में क्लोरिक एसिड का प्रयोग किया गया है, जिसके जलीय घोल में गोल्ड नैनोशीट को डुबाकर यह 2D सोना बनाया गया है।