विलुप्त होती प्रजातियों पर जैव विविधता रिपोर्ट
चर्चा में क्यों?
जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये अंतर-सरकारी विज्ञान नीति मंच (Intergovernmental Science-Policy Platform On Biodiversity and Ecosystem Services- IPBES) द्वारा प्रजातियों के विलुप्त होने के संदर्भ में रिपोर्ट जारी की गई है।
- उल्लेखनीय है कि इस रिपोर्ट के अंतर्गत हमारी प्रकृति की स्थिति पर अब तक का सबसे व्यापक वैज्ञानिक मूल्यांकन किया गया है। इस रिपोर्ट में धरती पर निवास करने वाली प्रजातियों के स्वास्थ्य एवं इनके आवासों की स्थिति का विस्तृत विवरण है।
प्रमुख बिंदु
- इस रिपोर्ट में संभावना जताई जा रही है कि आने वाले दशक के भीतर पृथ्वी पर अनुमानित 8 मिलियन पौधों और जानवरों की प्रजातियों में से लगभग 1 मिलियन के विलुप्त होने की संभावना है।
- प्रजातियों के विलुप्त होने की संभावना पिछले सभी समय की तुलना में सबसे अधिक है जिसका कारण मानव गतिविधियों द्वारा प्राकृतिक वातावरण में परिवर्तन लाना है।
- रिपोर्ट के अनुसार, पृथ्वी की 75% भूमि वातावरण (Land Environment) और 66% समुद्री वातावरण (Marine Environment) में काफी परिवर्तन हुआ है, साथ ही आर्द्रभूमि क्षेत्र (Wetland Area) का 85% से अधिक क्षेत्र समाप्त हो गया है।
- रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि देशज लोगों और स्थानीय समुदायों (जैसे भारत में आदिवासी समुदायों) द्वारा नियंत्रित या प्रबंधित क्षेत्रों पर विलुप्ति का प्रभाव कम है।
रिपोर्ट के कुछ उल्लेखनीय निष्कर्ष
Some of the report's notable findings
प्रजातियाँ
- पृथ्वी पर लगभग 8 मिलियन जंतुओं एवं वनस्पतियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार, 40% उभयचर तथा 33% जलीय स्तनधारी प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं। 16वीं शताब्दी से 680 कशेरुकी प्रजातियाँ मानवीय गतिविधियों के कारण विलुप्त होने के कगार पर हैं।
- कुल ज्ञात 5.5 मिलियन कीटों की प्रजातियों में से लगभग 10 प्रतिशत विलुप्त होने के कगार पर हैं। 3.5 प्रतिशत घरेलू प्रजाति के पक्षी लुप्त हो गए हैं।
वन
- कृषि तथा औद्योगीकरण के लिये वनों को काटा जा रहा है परिणाम स्वरुप वनों का क्षेत्रफल कम होता जा रहा है जिससे पर्यावरण एवं मौसम में परिवर्तन आदि विषम परिस्थियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
- 50 प्रतिशत से अधिक कृषि क्षेत्रों का विस्तार हुआ है। प्री-औद्योगिक स्तर से वर्तमान तक 68 प्रतिशत वैश्विक वन कम हुए हैं।
शहरीकरण
- वर्ष 1992 से शहरी क्षेत्रों का विकास हुआ, वर्ष 1970 से मानव जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हुई है। फलस्वरूप जीवाश्म ईंधन, जल, भोजन और भूमि के लिये वैश्विक स्तर पर विवाद बढ़े हैं।
समुद्र और इनमें पाई जाने वाली मछलियाँ
- जलवायु परिवर्तन के कारण शताब्दी के अंत तक मछलियों के उत्पादन में 3-10 प्रतिशत तक की कमी आने का अनुमान है क्योंकि वैश्विक तापन के कारण समुद्र से लगभग 3-25 प्रतिशत बायोमास के नष्ट हो जाने है संभावना है।
- 100-300 मिलियन लोग जो तटीय क्षेत्रों पर रहते हैं, पर जोखिम बढ़ने की संभावना है, क्योंकि तटीय आवास और सुरक्षा के नुकसान के कारण बाढ़ (Floods) और तूफान (Hurricanes) का खतरा बढ़ गया है।
स्वास्थ्य
- वैश्विक आबादी के लगभग 40 प्रतिशत लोग साफ़ और सुरक्षित जल से वंचित हैं जिससे जीव-जंतुओं के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
प्रदूषण और अपशिष्ट
- वर्ष 1980 से प्लास्टिक प्रदूषण लगभग दस गुना बढ़ गया है।
- 300-400 मिलियन टन भारी धातुओं (Heavy Metals), विलायक (Solvents), विषाक्त मल (Toxic Sludge) और अन्य औद्योगिक अपशिष्ट को विश्व की जल प्रणालियों में बहा दिया जाता है।
जलवायु परिवर्तन
- औद्योगीकरण के पूर्व से लेकर 2017 तक वैश्विक तापमान लगभग 1 प्रतिशत बढ़ गया है।
- पिछले दो दशकों में समुद्र का जल-स्तर लगभग 3 मिलीमीटर बढ़ गया है।
रिपोर्ट का महत्त्व (Significance of the report)
- रिपोर्ट में किया गया मूल्यांकन विलुप्ति पर अब तक का सबसे सटीक और व्यापक आकलन है जिसमें प्रकृति के ‘अभूतपूर्व’ (Unprecedented) दर से घटने तथा उससे होने वाले परिवर्तन से लोगों पर पड़ने वाले जोखिमपूर्ण प्रभावों के संदर्भ में चेतावनी दी गई है।
- रिपोर्ट में खाद्य फसलों के परागण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कीटों के गायब होने, प्रवाल भित्तियों का विनाश तथा इससे मछलियों पर पड़ने वाले प्रभावों एवं अन्य औषधीय पौधों के नुकसान सहित कई जोखिमों की पहचान की गई है।
- 1900 के बाद से अधिकांशतः भूमि आधारित आवासों में देशी प्रजातियों की गिरावट कम-से-कम 20% तक पाई गई है।
- इसके अनुसार, व्यापार और वित्तीय चिंताओं पर भी खतरा व्याप्त है, क्योंकि दुनिया भर में लोग अपनी अर्थव्यवस्थाओं, आजीविका, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता की नींव को समाप्त कर रहे हैं।
- प्रमुख वैश्विक खतरे: भूमि और समुद्री संसाधनों का मानव द्वारा उपयोग, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और आक्रामक प्रजातियाँ आदि हैं।
- तापमान के बढ़ने के साथ महासागर का पारिस्थितिकी तंत्र 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है। महासागरों के तापमान एवं अम्लीयता बढ़ने के फलस्वरूप प्रवाल भित्तियों की हानि होती है, साथ ही वाणिज्यिक और स्वदेशी मत्स्य पालन में गिरावट आ सकती है।
IPBES क्या है?
- IPBES जलवायु परिवर्तन पर बेहतर जानकारी हेतु एक वैश्विक वैज्ञानिक निकाय है।
- यह अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) की रचना और कार्यप्रणाली जैसा ही है।
- इसके अंतर्गत वैज्ञानिकों द्वारा पृथ्वी के जलवायु में होने वाले परिवर्तन संबंधी अनुमान लगाने तथा इसकी समय-समय पर समीक्षा की जाती है।
- IPBES, प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता के संदर्भ में कार्य करने के लिये प्रतिबद्ध है।
- वर्ष 2012 में गठित IPBES द्वारा पेश की गई यह पहली वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट है।
भारत से संबंध
- रिपोर्ट में किसी देश-विशेष की जानकारी नहीं दी गई है लेकिन रिपोर्ट में दिये गए विवरणों से भारत भी संबंधित है क्योंकि भारत में प्रमुख जैव विविधता हॉटस्पॉट, विस्तृत क्षेत्र, विशेष रूप से समुद्र तट अवस्थित हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार, 23% वैश्विक भूमि क्षेत्र में गिरावट के कारण उत्पादकता में कमी देखी गई, साथ ही तटीय निवास और सुरक्षा के नुकसान के कारण 100 से 300 मिलियन लोग बाढ़ और तूफान के बढ़ते जोखिम के अंतर्गत पाए गए।
- ये सभी प्रवृत्तियाँ भारत में स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं और रिपोर्ट में उजागर प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों से संबंधित जोखिम भारत में भी परिलक्षित हैं।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
डेंगू वैक्सीन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सनोफी पाश्चर (Sanofi Pasteur) के विवादास्पद वैक्सीन डेंगवाक्सिया (Dengvaxia) को यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (US Food & Drug Administration) द्वारा मंज़ूरी दी गई है, लेकिन साथ ही इस पर कुछ प्रतिबंध भी लगाए गए हैं।
- उल्लेखनीय है कि अमेरिका में रेगुलेटरी नोड (Regulatory Nod) प्राप्त करने वाला यह पहला डेंगू वैक्सीन है।
पृष्ठभूमि
- डेंगवाक्सिया मूल रूप से एक जीवित, एटेन्यूयेटेड (Attenuated) डेंगू वायरस है।
- एटेन्यूयेटेड वायरस एक ऐसा वायरस है जो शरीर में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को सक्रिय करने के अपने गुणों को बनाए रखता है लेकिन बीमारियों के नेतृत्व करने की इसकी क्षमता कम होती है।
डेंगू (Dengue)
- डेंगू दुनिया के कई हिस्सों में तेजी से उभरती हुई वायरल बीमारी है।
- डेंगू के वायरस का मुख्य वाहक एडीज एजिप्टी मच्छर (Aedes aegypti mosquito) है।
- मच्छर जनित वायरल संक्रमण जो फ्लू जैसी गंभीर बीमारी का कारण बनता है, कभी-कभी महामारी के रूप में घातक जटिलता की स्थिति पैदा करता है।
- डेंगू शहरी गरीब क्षेत्रों, उपनगरों और ग्रामीण इलाकों में पनपता है लेकिन उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय देशों में अधिक समृद्ध पड़ोसी देशों को भी प्रभावित कर सकता है।
वैक्सीन की आवश्यकता
- रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों (Centers for Disease Control and Prevention) के अनुसार, दुनिया भर में अनुमानित 400 मिलियन डेंगू वायरस का संक्रमण पाया जाता है।
- 26 नवंबर, 2018 तक भारत में 89,974 डेंगू के मामले दर्ज किये गए, जिसमें से 144 लोगों की मौत हो गई। 2017 में 1,88,401 मामले दर्ज हुए, जिसमें से 325 लोगों की मौत हुई।
- भारत डेंगू-स्थानिक (Dengue-Endemic) देशों में से एक है।
- डेंगवाक्सिया लाइसेंस पाने वाला पहला डेंगू टीका है, जिसे 2015 में सबसे पहले मेक्सिको ने मंज़ूरी दी थी।
- इसके बाद लगभग 20 देशों में इसे मंज़ूरी दे दी गई लेकिन वर्ष 2017 में फिलीपींस में कुछ ऐसा हुआ जिसने CYD-TDV के बारे में सवालिया निशान खड़े कर दिये हैं।
फिलीपींस की दुर्घटना
The Philippines casualties
- वर्ष 2017 में एक स्कूल में डेंगवाक्सिया टीकाकरण अभियान के बाद इस द्वीपीय देश में दस मौतें हुई थीं।
- लगभग 800,000 स्कूली बच्चों को डेंगवाक्सिया का टीका लगाया गया था लेकिन प्रतिकूल घटनाओं की सूचना प्राप्त होते ही अभियान को निलंबित कर दिया गया था।
- सनोफी ने तत्काल ही स्वास्थ्य अधिकारियों से उत्पाद लेबल को अपडेट करने का आग्रह किया।
- सनोफी ने स्वीकार किया कि यह टीका लोगों में इस्तेमाल किये जाने के लिये सुरक्षित नहीं था।
- डब्ल्यूएचओ ने कंपनी से इस टीके से संबंधित अधिक जानकारी की मांग की।
- इस वर्ष की शुरुआत में फिलीपींस ने डेंगवाक्सिया की बिक्री, इसके वितरण और विपणन पर स्थायी रूप से रोक लगा दी।
एफडीए की सिफारिश
(The FDA Recommendation)
- एफडीए द्वारा की गई घोषणा के अनुसार, इस टीके का उपयोग डेंगू की रोकथाम के लिये किया जा सकता है। 9 -16 वर्ष के लोगों में डेंगू वायरस सेरोटाइप (1, 2, 3 और 4) सभी के कारण होता है। जो पहले से डेंगू से ग्रसित हैं या जो उन स्थानिक क्षेत्रों में रहते हैं विशेषकर ऐसे लोगों में इस टीके का उपयोग किया जा सकता है।
- डेंगवाक्सिया के टीके को ऐसे व्यक्तियों में उपयोग की मंज़ूरी नहीं है जो पहले किसी डेंगू वायरस सेरोटाइप से संक्रमित नहीं थे या जो इस जानकारी से अपरिचित हैं।
- ऐसा इसलिये है क्योंकि ऐसे लोग जो डेंगू वायरस से संक्रमित नहीं हुए हैं, उनमें इस वैक्सीन से गंभीर बीमारी हो सकती है। इसलिये स्वास्थ्यकर्मियों को डेंगू संक्रमण से बचने के लिये पहले डेंगू वायरस से संक्रमित लोगों में से बिना संक्रमित व्यक्तियों का मूल्यांकन करना चाहिये।
भारत की स्थिति (India’s Position)
- भारत ने मई 2017 में ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की विषय विशेषज्ञ समिति की एक सिफारिश को ठुकरा दिया तथा सनोफी को बताया कि भारत में विक्रय की अनुमति देने से पहले दवा या वैक्सीन में छूट देना आवश्यक नहीं है।
- भारतीय संदर्भ में इसे क्लिनिकल परीक्षण के चरण III (जो किसी दवा की सुरक्षा और प्रभावकारिता सुनिश्चित करती है) से गुज़रना होगा।
ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया
- DCGI (ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया), CDSCO के अधीन एक नियामक एजेंसी है जिसके द्वारा भारत में विशिष्ट श्रेणी की औषधियों (रक्त एवं रक्त उत्पाद, I।V फ्लुइड्स, वैक्सीन एवं सेरा) हेतु लाइसेंस प्रदान किये जाते हैं तथा औषधियों के विनिर्माण, विक्रय आदि हेतु मानक तय किये जाते हैं।
- CDSCO (सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गेनाइज़ेशन) भारत का राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण है जिसके द्वारा औषधि एवं प्रसाधन अधिनियम, 1940 के तहत नई औषधियों के आयात/विनिर्माण, अनुमोदन, नैदानिक परीक्षण तथा DCC एवं DTAB की बैठकों का नियामक नियंत्रण किया जाता है।
समिति की सिफारिश
- हालाँकि वैक्सीन क्लिनिकल परीक्षण से प्राप्त छूट के लिये उपयुक्त नही हैं, अतः ऐसी स्थिति में डेंगू देश में चिंता का एक प्रमुख विषय है तथा कुछ मामलों में यह जानलेवा भी हो सकता है।
- यह समिति 18-45 वर्ष की आयु हेतु टीके के बाजार में बिक्री के लिये केवल समयबद्ध तरीके से चरण IV क्लिनिकल परीक्षण करने की शर्त के साथ सिफारिश करती है।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
सड़क दुर्घटनाएँ मौतों की एक बड़ी वज़ह
चर्चा में क्यों?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) ने वैश्विक सड़क सुरक्षा सप्ताह के दौरान एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर सड़क दुर्घटनाओं में प्रतिवर्ष 1.35 मिलियन से अधिक मौतें होती हैं एवं 50 मिलियन से अधिक लोगों को गंभीर शारीरिक चोटें आती हैं। इस रिपोर्ट की मानें तो ज़्यादातर 5 से 29 वर्ष की आयु के लोग ही सड़क दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं।
भारत के परिदृश्य में
- वर्ष 2015 में भारत ब्रासीलिया सड़क सुरक्षा घोषणा का हस्ताक्षरकर्त्ता बन गया, जिसके अंतर्गत वर्ष 2020 तक सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों की संख्या को आधा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- भारत सरकार की तरफ से ज़ारी आँकड़ों के अनुसार, भारत में सड़क दुर्घटनाओं में प्रतिवर्ष करीब 1,50,000 लोगों की मौत होती है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की सड़क दुर्घटना से संबंधित ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट में यह आँकड़ा लगभग 2,99,000 बताया गया है।
सड़क दुर्घटनाओं के प्रमुख कारण
- विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के प्रमुख कारणों में शहरीकरण की तीव्र दर, सुरक्षा के पर्याप्त उपायों का अभाव, नियमों को लागू करने में विलंब, नशीली दवाओं एवं शराब का सेवन कर वाहन चलाना, तेज़ गति से वाहन चलाते समय हेल्मेट और सीट-बेल्ट न पहनना आदि हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO)
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशेष एजेंसी है, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य (Public Health) को बढ़ावा देना है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना 7 अप्रैल, 1948 को हुई थी। इसी दिन को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- इसका मुख्यालय जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में स्थित है। 194 राज्य इसके सदस्य हैं एवं 150 देशों में इसके कार्यालय भी सुचारु रूप से कार्यरत हैं।
- इसके 6 क्षेत्रीय कार्यालय हैं जिनमें से एक नई दिल्ली (भारत) में है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन का मुख्य कार्य वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करना है और यह एक स्वस्थ विश्व की कामना करता है।
ब्रासीलिया सड़क-सुरक्षा घोषणा (Brasilia Declaration Road-Safety)
- ब्राज़ील सरकार ने राजधानी ब्रासीलिया में 18-19 नवंबर, 2015 को दूसरा वैश्विक उच्च स्तरीय सड़क-सुरक्षा सम्मेलन आयोजित किया था और इसका सह-प्रायोजक विश्व स्वास्थ्य संगठन था।
- इस सम्मेलन में 2200 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन के अंत में ब्रासीलिया सड़क-सुरक्षा घोषणा को अपनाते हुए सभी ने अपने देशों में एक दशक में सड़क दुर्घटनाओं में मृतकों की संख्या को आधा करने का संकल्प लिया।
स्रोत: द हिंदू
परमाणु खनिजों के खनन का मामला SC को स्थानांतरित
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी।
कुछ समय पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार को निजी समूहों को परमाणु और दुर्लभ खनिज (Atomic and Rare Mineral) वाले ब्लॉकों का अन्वेषण लाइसेंस (Exploration License) जारी करने का निर्देश दिया था।
- उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा लिये गए नीतिगत निर्णय के अंतर्गत निजी समूहों को ऐसे खनिजों के अन्वेषण की अनुमति नहीं है।
क्या है मामला?
- जून 2010 में तत्कालीन यूपीए सरकार के समय निजी दलों/समूहों को 62 अपतटीय ब्लॉकों (Offshore Blocks) में परमाणु और दुर्लभ खनिजों की खोज करने की अनुमति दी गई थी लेकिन इस संबंध में बड़े पैमाने पर बरती गई अनियमितताओं को देखते हुए सरकार ने सीबीआई जाँच के आदेश दिये।
- केंद्र ने 2016 में रक्षा आवश्यकताओं (Defence Requirements) के मामले में प्रकृति और सामरिक महत्त्व (Strategic Importance) को ध्यान में रखते हुए केवल सरकारी एजेंसियों के माध्यम से खनन की अनुमति दी।
- केंद्र ने परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy) के साथ परामर्श करके एक नीतिगत निर्णय लेते हुए परमाणु या दुर्लभ खनिज ब्लॉकों को निजी पार्टियों को नीलाम नहीं करने का फैसला लिया।
- इस नीतिगत निर्णय के बाद भारतीय खान ब्यूरो (Indian mines bureau) ने 7 जून, 2010 को दुर्लभ खनिजों को प्रभावित करने वाले अपतटीय ब्लॉकों की खोज के लिये दिये गए अपने प्रस्ताव के तहत 16 निजी आवेदकों को संक्षिप्त सूची में रखते हुए, अपने फैसले को रद्द कर दिया।
- इस संक्षिप्त सूची में शामिल कुछ फर्मों ने केंद्र के फैसले को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
- ने 25 अप्रैल को दिल्ली उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश की पीठ द्वारा निजी आवेदकों के आवंटन को बरकरार रखते हुए केंद्र को दो सप्ताह के भीतर निजी कंपनियों को अन्वेषण लाइसेंस जारी करने का निर्देश दिया गया।
अपतटीय ब्लॉक (Offshore Blocks)
- ऐसे समुद्री किनारे जहाँ तेल, गैस एवं अन्य प्राकृतिक संसाधन पाए जाते हैं अपतटीय ब्लॉक कहलाते हैं।
- अपतटीय ब्लॉकों से इन संसाधनों का निष्कर्षण खनन आदि के माध्यम से किया जाता है।
- परमाणु और दुर्लभ खनिज (Atomic and Rare Mineral)
- ऐसी विरल मृदा या दुर्लभ धातुएँ जो पृथ्वी पर अत्यल्प मात्रा में पाई जाती हैं परमाणु और दुर्लभ खनिज कहलाती हैं जैसे- यूरेनियम, थोरियम आदि।
- इनका निष्कर्षण कार्य अत्यंत कठिन होता है।
केंद्र सरकार का पक्ष
- सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि जिन पाँच कंपनियों ने 7 जून, 2010 को अधिसूचना के तहत अन्वेषण लाइसेंस प्राप्त करने हेतु आवेदन किया था उनका निदेशक एक ही व्यक्ति था। साथ ही इन पाँच कंपनियों द्वारा किया गया पंजीकरण अधिसूचना की तारीख के बाद का था।
- स्क्रीनिंग कमेटी (Screening Committee) द्वारा चयन प्रक्रिया को 5 अप्रैल, 2011 तक पूरा कर लिया गया था, जबकि अन्वेषण लाइसेंस हेतु आवेदन 7 जून, 2010 को प्राप्त हुआ था। अतः अन्वेषण लाइसेंस देने में पारदर्शिता और कर्मठता का अभाव पाया गया।
परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy)
- इसकी स्थापना राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से प्रधानमंत्री के सीधे प्रभार के तहत 3 अगस्त, 1954 को हुई।
- इसका प्रमुख लक्ष्य परमाणु प्रौद्योगिकी के माध्यम से संपदा का सृजन और अपने नागरिकों को बेहतर गुणवत्तायुक्त जीवन स्तर उपलब्ध कराते हुए भारत को और अधिक शक्ति संपन्न बनाना है।
- इसका प्रमुख उद्देश्य भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाकर, नाभिकीय और विकिरण प्रौद्योगिकियों एवं उनके अनुप्रयोगों के विकास एवं विस्तार के माध्यम से देशवासियों को पर्याप्त, सुरक्षित एवं पौष्टिक भोजन तथा बेहतर स्वास्थ्य सुरक्षा उपलब्ध कराने में योगदान देना है।
भारतीय खान ब्यूरो (Indian Bureau of Mines)
- इसकी स्थापना 1 मार्च, 1948 को हुई।
- प्रारंभ में यह एक सलाहकारी निकाय था। 1950 में इसके कार्यों में परिवर्तन कर इसे खान और खनिज संभावित क्षेत्रों के निरीक्षण का कार्य दे दिया गया।
- इसका प्रमुख कार्य डेटाबेस इकट्ठा करना और उसे व्यवस्थित करना, एक राष्ट्रीय खनिज सूचना भंडार के रूप में देश में अन्वेषण, पूर्वेक्षण, खानों और खनिजों संबंधी सभी जानकारियों को प्रकाशित और प्रसारित करने के लिये कदम उठाना है।
- वर्तमान में इसके 4 ज़ोन ऑफिस और 13 रीज़नल ऑफिस हैं।
स्रोत- टाइम्स ऑफ़ इंडिया
विश्व सीमा शुल्क संगठन की बैठक
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व सीमा शुल्क संगठन (World Customs Organisation- WCO) के ‘एशिया प्रशांत क्षेत्र के सीमा शुल्क प्रशासन’ के क्षेत्रीय प्रमुखों की बैठक आयोजित की गई है।
प्रमुख बिंदु
- इस बैठक का आयोजन 8-10 मई तक कोच्चि में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (Central Board of Indirect Taxes and Customs- CBIC) द्वारा किया जा रहा है।
- इस बैठक में एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 20 से अधिक देशों के सीमा-शुल्क प्रतिनिधि मंडल भाग ले रहे हैं।
- इसमें WCO के वरिष्ठ अधिकारी तथा इसके क्षेत्रीय संगठन जैसे- रीजनल ऑफिस फॉर कैपेसिटी बिल्डिंग (ROCB) तथा रीजनल इंटेलीजेंस लायज़न ऑफिस (RILO) के प्रतिनिधि भी भाग ले रहे हैं।
- इस बैठक में WCO द्वारा एशिया प्रशांत क्षेत्र के देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने, उसे सुविधाजनक बनाने और सुरक्षा प्रदान करने के लिये प्रारंभ किये गए विभिन्न कार्यक्रमों पर विचार-विमर्श किया जाएगा।
- साथ ही उपरोक्त कार्यक्रमों के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु तकनीकी सहायता और क्षमता निर्माण पर भी विचार किया जाएगा।
- ज्ञातव्य है कि सीमा शुल्क और व्यापार के बीच परस्पर सहयोग के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए 7 मई, 2019 को व्यापार दिवस (ट्रेड डे) का आयोजन किया गया।
- इस दिन व्यापार व उद्योग जगत तथा थिंक टैंक के प्रतिनिधियों ने क्षेत्र के सीमा शुल्क प्रशासन पर आधारित अपने विचार और अनुभव साझा किये।
भारत की भूमिका
केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड एशिया-प्रशांत क्षेत्र में निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए अपनी भूमिका निभा रहा है:
I. क्षेत्र में बेहतर संचार और कनेक्टिविटी
II. आधुनिक तकनीक का उपयोग
III. समावेशी दृष्टिकोण
IV. प्रमुख मसलों पर आम सहमति
केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड
(Central Board of Indirect Taxes and Customs- CBIC)
- केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (पूर्व में केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क बोर्ड) वित्त मंत्रालय के तहत राजस्व विभाग के अंतर्गत कार्य करता है।
- यह भारतीय संघ के अप्रत्यक्ष करों के संग्रह के संचालन के लिये सर्वोच्च निकाय है।
- यह सीमा शुल्क, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर, IGST से संबंधित नीतियों का निर्माण करता है एवं इनसे जुड़े हुए मामले इसके अंतर्गत आते हैं।
- बोर्ड अपने अधीनस्थ संगठनों के लिये प्रशासनिक प्राधिकरण है। इसके अधीनस्थ संगठनों में कस्टम हाउस, केंद्रीय उत्पाद शुल्क और केंद्रीय जीएसटी आयुक्त तथा केंद्रीय राजस्व नियंत्रण प्रयोगशाला शामिल हैं।
विश्व सीमा शुल्क संगठन (WCO)
विश्व सीमा शुल्क संगठन की स्थापना 1952 में सीमा शुल्क सहयोग परिषद Customs Co-operation Council- CCC) के रूप में की गई।
यह एक स्वतंत्र अंतर-सरकारी निकाय है।
WCO दुनिया भर के 183 सीमा शुल्क प्रशासनों का प्रतिनिधित्व करता है इनके द्वारा विश्व में सामूहिक रूप से लगभग 98% व्यापार किया जाता है।
विज़न: Borders divide, Customs connects
मिशन:
सीमा शुल्क प्रशासन को नेतृत्व, मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करना ताकि व्यापार को वैध सुरक्षित और सुविधाजनक बनाया जा सके।
लक्ष्य:
लक्ष्य 1 - सीमा शुल्क प्रक्रियाओं के सरलीकरण और सामंजस्य सहित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की सुरक्षा और सुविधा को बढ़ावा देना = आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा पैकेज
लक्ष्य 2 - निष्पक्ष, कुशल और प्रभावी राजस्व संग्रह को बढ़ावा देना = राजस्व पैकेज
लक्ष्य 3 - समाज, सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा को बढ़ावा = अनुपालन और प्रवर्तन पैकेज की रक्षा करना
लक्ष्य 4 - क्षमता निर्माण को मज़बूत करना = संगठनात्मक विकास पैकेज
लक्ष्य 5 - सभी हितधारकों के बीच सूचना विनिमय को बढ़ावा देना
लक्ष्य 6 - सीमा शुल्क के प्रदर्शन और प्रोफ़ाइल को बढ़ावा देना
लक्ष्य 7 - आचरण अनुसंधान और विश्लेषण
वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में सीमा शुल्क की प्रमुख भूमिका है। वैश्विक व्यापार से संबंधित सुरक्षा को बेहतर बनाने तथा सीमा पार प्रक्रियाओं को सरल बनाने में WCO महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
स्रोत: PIB, WCO की आधिकारिक वेबसाइट
15वें वित्त आयोग की भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ बैठक
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 15वें वित्त आयोग के चेयरमैन श्री एन.के. सिंह ने मुंबई में भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर और डिप्टी गवर्नरों के साथ बैठक की जिसमें कुछ प्रमुख मामलों पर विस्तार से चर्चा की गई। गौरतलब है कि वित्त आयोग बैंकों, वित्तीय संस्थानों और अर्थशास्त्रियों के साथ भी बैठकें आयोजित करेगा।
प्रमुख बिंदु
- चर्चा में शामिल कुछ प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं-
- बैठक में ‘संबंधित राज्य सरकारों के लिये राज्य वित्त आयोगों के गठन की आवश्यकता’ के साथ ही ‘सार्वजनिक क्षेत्र हेतु वित्तीय ऋण की आवश्यकता’ पर भी चर्चा की गई।
- वित्त आयोग की निरंतरता (Continuity of the Finance Commission) राज्यों के वित्तीय प्रबंधन के लिये आवश्यक है, विशेषकर वर्तमान स्थिति में जब मध्यावधि समीक्षा नहीं हुई है क्योंकि पहले यह समीक्षा योजना आयोग के द्वारा की जाती थी।
- परिव्यय संहिता (Expenditure Codes) की आवश्यकता, क्योंकि परिव्यय कानून राज्य-दर-राज्य परिवर्तित होते हैं।
- विकास और महँगाई दर में राज्यों की भूमिका, उदाहरण के लिये व्यापार सुगमता (Ease of doing Business) के संबंध में राज्यों की भूमिका।
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्त आयोग को वर्ष 2019-20 के लिये राज्य सरकार वित्त (State Government Finances) विषय पर विस्तृत जानकारी दी। इसके प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं-
- सरकारी वित्त की संरचना में बदलाव के कारण अर्थव्यवस्था में राज्यों की भूमिका अधिक महत्त्वपूर्ण हुई है।
- 2019-20 के बजट अनुमानों (Budgeted Estimate) में राज्यों का वित्तीय घाटा निम्न स्तर पर रहने की बात कही गई थी परंतु संशोधित अनुमान (Revised Estimate) और वास्तविक स्थिति भिन्न है।
- कुछ विशिष्ट कारकों से वित्तीय असंतलुन की स्थिति उत्पन्न होती है। ऐसे कारकों में ‘उदय’ (UDAY) और कृषि कर्ज़ माफी तथा आय समर्थन योजना आदि शामिल हैं।
- ब्याज अदायगी प्रक्रिया को उदार बनाए जाने के बावजूद जीडीपी की तुलना में ऋण प्रतिशत बढ़ रहा है।
भारतीय रिज़र्व बैंक ने राज्य सरकारों द्वारा बाज़ार से ऋण प्राप्त करने की चुनौतियों के मामले में भी जानकारी दी। इसके प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं-
- सीएसएफ/जीआरएफ कोष को मज़बूत करना और कोष को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहन।
- नकद प्रबंधन- राज्यों द्वारा नकद क्षमता को बेहतर बनाना और अल्प अवधि के ऋणों के लिये बेहतर अवसरों के निर्माण का अनुरोध।
- प्रकटीकरण- महत्त्वपूर्ण आँकड़ों, बजट तथा वित्तीय आँकड़ों को सामने रखना।
15वाँ वित्त आयोग (Finance Commission-FC)
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 22 नवंबर, 2017 को 15वें वित्त आयोग के गठन को मंज़ूरी प्रदान की।
- 15वें वित्त आयोग का कार्यकाल 2020-25 तक होगा। अभी तक 14 वित्त आयोगों का गठन किया जा चुका है।
- 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें वित्तीय वर्ष 2019-20 तक के लिये वैध हैं।
- ध्यातव्य है कि 27 नवम्बर, 2017 को श्री एन.के. सिंह को 15वें वित्त आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। प्रथम वित्त आयोग के अध्यक्ष के.सी. नियोगी थे।
- श्री एन.के. सिंह भारत सरकार के पूर्व सचिव एवं वर्ष 2008-2014 तक बिहार से राज्य सभा के सदस्य भी रह चुके हैं।
वित्त आयोग की आवश्यकता क्यों?
- भारत की संघीय प्रणाली केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति एवं कार्यों के विभाजन की अनुमति देती है और इसी आधार पर कराधान की शक्तियों को भी केंद्र और राज्यों के बीच विभाजित किया जाता है।
- राज्य विधायिका को अधिकार है कि वह स्थानीय निकायों को अपनी कराधान शक्तियों में से कुछ अधिकार दे सकती है।
- केंद्र कर राजस्व का अधिकांश हिस्सा एकत्र करता है और कुछ निश्चित करों के संग्रह के माध्यम से बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था में योगदान देता है।
- स्थानीय मुद्दों और ज़रूरतों को निकटता से जानने के कारण राज्यों की यह ज़िम्मेदारी है कि वे अपने क्षेत्रों में लोकहित को ध्यान में रखें। हालाँकि इन सभी कारणों की वज़ह से कभी-कभी राज्यों का खर्च उनको प्राप्त होने वाले राजस्व से कहीं अधिक हो जाता है।
- इसके अलावा, विशाल क्षेत्रीय असमानताओं के कारण कुछ राज्य दूसरों की तुलना में पर्याप्त संसाधनों का लाभ उठाने में असमर्थ होते हैं।
- इन असंतुलनों को दूर करने के लिये वित्त आयोग द्वारा राज्यों के साथ साझा किये जाने वाले केंद्रीय निधियों की सीमा तय करने की सिफारिश की गई है।
स्रोत- पीआइबी
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (09 May)
- भारत को एक बार फिर अंतर-सरकारी मंच आर्कटिक परिषद का पर्यवेक्षक सदस्य चुना गया है। गौरतलब है कि आर्कटिक परिषद विशेष रूप से सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों को लेकर आर्कटिक देशों, क्षेत्र के स्वदेशी समुदायों और अन्य निवासियों के बीच सहयोग, समन्वय और बातचीत को बढ़ावा देती है। फिनलैंड के रोवानिएमी में हुई आर्कटिक परिषद की 11वीं मंत्रिस्तरीय बैठक में यह फैसला लिया गया। कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूस, स्वीडन और अमेरिका, आर्कटिक परिषद के सदस्य हैं। भारत को 2013 में आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक देश का दर्जा दिया गया था।
- अमेरिका का चीन के साथ चल रहा ट्रेड वार अब भारत के साथ भी शुरू हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत पर दबाव डालकर अपनी कंपनियों के फायदे के हिसाब से देश की ई-कॉमर्स नीति में बदलाव चाहते हैं। इसमें उनका साथ अन्य विकसित देश भी दे रहे हैं। यूरोपियन यूनियन विश्व व्यापार संगठन (WTO) के ज़रिये नए नियम भारत पर लागू करवाना चाहता है, जिसका भारत विरोध कर रहा है। भारत के ई-कॉमर्स व्यापार पर विकसित देशों की निगाहें हैं और वे सीधे भारत से नियम बदलवाने के बजाय विश्व व्यापार संगठन (WTO) में पहुँच गए हैं। यूरोपियन यूनियन चाहता है कि WTO पूरी दुनिया के लिये ई-कॉमर्स नियम बनाए, जिसमें सबको मुक्त व्यापार की प्राथमिकता मिले। भारत ने इसका विरोध किया है। WTO में भारत के स्थायी प्रतिनिधि जे.एस. दीपक ने हाल ही में यूरोपियन यूनियन की अनौपचारिक व्यापार वार्ता समिति में भारत का पक्ष रखते हुए कहा कि भारत सहित अधिकांश विकासशील देश ई-कॉमर्स में बाध्यकारी नियमों के लिये तैयार नहीं हैं।
- भारत और बांग्लादेश ने बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान के जीवन और कार्यों पर फीचर फिल्म बनाने पर सहमति जताई है, जिसके सह-निर्माण की घोषणा दोनों देशों के प्रधानमंत्री कर चुके थे। इस फिल्म का निर्देशन श्याम बेनेगल करेंगे और अतुल तिवारी फिल्म के पटकथा लेखक होंगे। अतुल तिवारी इस परियोजना के लिये पृष्ठभूमि से संबंधित अनुसंधान हेतु बांग्लादेश की यात्रा करेंगे और इस कार्य में बांग्लादेश की फिल्मी हस्ती पिपलू खान उन्हें सहायता प्रदान करेंगे। दोनों देश बांग्लादेश मुक्ति संग्राम पर वृत्तचित्र के सह-निर्माण पर भी सहमत हुए। वृत्तचित्र के निदेशक बांग्लादेश से होंगे, जिन्हें भारत के एक सह-निदेशक द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी। इसके अलावा प्रसार भारती ने डीडी के फ्री डिश प्लेटफॉर्म पर बांग्लादेश टीवी को शामिल करने और इसके लिये कैरिज फी भी माफ करने का फैसला किया है। इसके बदले में बांग्लादेश ने जल्द ही बांग्लादेश में शुरू होने वाले DTH में दूरदर्शन के चैनल को शामिल करने की बात कही। दोनों देशों में आकाशवाणी और बांग्लादेश वायरलेस के बीच सहयोग पर कार्य संबंधी समझौते पर भी सहमति बनी जिसका कार्यान्वयन जून 2019 से शुरू होगा।
- दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के पत्रकार जी.डी. ‘रॉबर्ट’ गोवेंदर को ब्रिटेन में 2019 के वी.के. कृष्ण मेनन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। गोवेंदर को भारतीय राजनयिक एवं नेता वी.के. कृष्ण मेनन की 123वीं जयंती के मौके पर मरणोपरांत इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वी.के. कृष्ण मेनन लंदन में भारत के पहले उच्चायुक्त थे। पत्रकार एवं लेखक के तौर पर गोवेंदर का करियर लगभग 60 वर्षों का था। इसके साथ ही वह ऐसे पहले पत्रकार थे जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका की केवल श्वेत खेल टीमों के अंतर्राष्ट्रीय बहिष्कार का आह्वान किया था। गौरतलब है कि दक्षिण अफ्रीका में अगस्त 1930 में जन्मे गोवेंदर का 2016 में ब्रिटेन में निधन हो गया था।
- अमेरिका के सिएटल में हुई माइक्रोसॉफ्ट की प्रतिष्ठित इमैजिन कप विश्व चैंपियनशिप के फाइनल में भारतीय छात्रों की टीम को अपने नवीन स्मार्ट स्वचालित प्रदूषण रोधी एवं औषधि प्रदाता मास्क के लिये रनर अप पुरस्कार मिला। टीम में शामिल आकाश भड़ाना, वासु कौशिक और भारत सुंदल ने दुनिया का पहला स्मार्ट स्वचालित प्रदूषण रोधी और औषधि प्रदाता मास्क काएली बनाया है। इसे विशेष रूप से अस्थमा और श्वास रोगियों के लिये बनाया गया है। उनके इस आविष्कार ने फरवरी में सिडनी में हुई एशिया रीजनल फाइनल प्रतियोगिता में पहला स्थान हासिल किया था। चैंपियनशिप में पहला स्थान अमेरिका की इजीग्लूकोस टीम को मिला।
- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व प्रसिद्ध गोल्फर टाइगर वुड्स को अमेरिका के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया। प्रेज़िडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम नामक यह पुरस्कार अमेरिका में किसी भी असैन्य नागरिक को दिया जाने वाला सर्वोच्च अवार्ड है । यह अवार्ड उन नागरिकों को दिया जाता है जिन्होंने राष्ट्रहित में बेहतरीन योगदान दिया हो, साथ-ही-साथ विश्व शांति, संस्कृति जैसे क्षेत्र में सार्वजनिक या निजी उपलब्धि हासिल की हो और जिससे देश का मान बड़ा हो। ज्ञातव्य है कि टाइगर वुड्स ने हाल ही में अपने करियर का पाँचवां मास्टर टूर्नामेंट जीता है । 1963 में राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी ने अमेरिका की सुरक्षा, राष्ट्रीय हित, विश्व शांति या अन्य किसी क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिये इस पुरस्कार की स्थापना की थी। टाइगर वुड्स से पहले 30 से अधिक खिलाड़ियों को यह सम्मान दिया जा चुका है।
- लगभग 36 वर्ष तक भारतीय नौसेना की सेवा करने के बाद INS रणजीत मिसाइल डिस्ट्रॉयर 6 मई को नौसेना से रिटायर हो गया। विशाखापत्तनम में नौसेना ने INS रणजीत को अंतिम सलामी दी। 1983 में INS रणजीत को मिसाइल डिस्ट्रॉयर के रूप में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था। यह सोवियत रूस द्वारा तैयार किये गए काशिन श्रेणी के पाँच मिसाइल डिस्ट्रॉयर में से तीसरा है। INS रणजीत का निर्माण यूक्रेन के कोमुनारा शिपबिल्डिंग प्रोजेक्ट के तहत किया गया था। सोवियत रूस में इसे 16 जून, 1979 को लॉन्च किया गया था और 30 अक्तूबर, 1981 को सोवियत संघ की नौसेना में इस मिसाइल डिस्ट्रॉयर को शामिल किया गया। इसके बाद 3950 टन वज़नी यह मिसाइल डिस्ट्रॉयर भारतीय नौसेना को सौंप दिया गया, जहाँ इसे INS रणजीत नाम दिया गया।
- भारत की सबसे लंबी क्रासॅ कंट्री डेज़र्ट स्टॉर्म रैली की शुरुआत 8 मई को हुई। रैली का पहला चरण राजस्थान के बीकानेर से शुरू हुआ, जिसके तहत 158 किलोमीटर की दूरी तय की जानी है। देश के थार रेगिस्तान पर होने वाली इस रैली को सबसे खतरनाक कार रैली माना जाता है। चार दिवसीय इस रैली में 100 से अधिक टीमें हिस्सा ले रही हैं। कुल चार दिन में 10 विशेष स्टेज में क्रॉस कंट्री रैली पार करनी होती हैं। थार राजस्थान की रेत पर लगभग 2500 किलोमीटर की रैली के लिये दिन के विभिन्न अंतरालों में 200 किलोमीटर तथा रात को भी 160 किलोमीटर दूरी तय करनी पड़ती है। इस रैली को बीकानेर और जैसलमेर के बीच विभिन्न चरणों में आयोजित किया जाता है।