डेली न्यूज़ (09 Jan, 2020)



गंगा के डेल्टा का जल-स्तर

प्रीलिम्स के लिये:

ग्लोबल वार्मिंग

मेन्स के लिये:

गंगा के डेल्टाई क्षेत्र में जलस्तर बढ़ने के अनुमान का कारण

चर्चा में क्यों?

हाल ही हुए में एक नए अध्ययन में पूर्वी भारत और बांग्लादेश के क्षेत्र में बहने वाली गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदी के डेल्टा का जलस्तर इस सदी के अंत तक 1.4 मीटर तक बढ़ने का अनुमान लगाया है।

मुख्य बिंदु:

  • यह अध्ययन फ्राँस स्थित CNRS इंस्टीट्यूट सहित विभिन्न देशों के अध्ययनकर्त्ताओं द्वारा किया गया है।
  • जलस्तर में वृद्धि और भूस्खलन के क्षेत्रीय अनुमानों की जानकारी देने वाला यह अध्ययन PNAS नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया।

अध्ययन से संबंधित प्रमुख तथ्य:

  • इस अध्ययन में जलस्तर में वृद्धि और और भूस्खलन के क्षेत्रीय अनुमानों के बारे में बताया गया है।
  • हालाँकि वैज्ञानिकों ने कहा है कि जलस्तर बढ़ने की सीमा और उससे पड़ने वाले प्रभावों के बारे में अभी भी पूरी जानकारी प्राप्त नहीं है।
  • वैज्ञानिकों ने कहा है कि यह क्षेत्र प्रायः तीव्र मानसूनी वर्षा, समुद्र के बढ़ते जलस्तर, नदियों के बहाव और भूस्खलन से भी प्रभावित रहता है।
  • वैज्ञानिकों का कहना है कि अब तक के पूर्वानुमान जल स्तर के अत्यधिक क्षेत्रीय मापों पर आधारित हैं।
  • वर्तमान अध्ययन में इस डेल्टा के 101 स्थानों पर समुद्र के जलस्तर का मासिक विश्लेषण किया गया।
  • इसके लिये उन्होंने भौगोलिक क्षेत्रों से संबंधित डेटा को एकत्र करते हुए स्थानीय प्रभावों को अलग कर उसकी गुणवत्ता मापी और समय के साथ-साथ जलस्तर में आए बदलावों का अनुमान लगाया।

वर्ष 2012 तक जलस्तर में तीन मिमी. तक की वृद्धि:

  • इस अध्ययन के अनुसार, वर्ष 1968 और 2012 के बीच जलस्तर में प्रति वर्ष औसतन तीन मिलीमीटर की वृद्धि हुई है।
  • यह समुद्र के जलस्तर में होने वाली वैश्विक वृद्धि की तुलना में अधिक है, जो इसी समयावधि में प्रति वर्ष 2 मिमी. है।

वर्ष 2012 तक भूस्खलन में 1 से 7 मिमी. तक की वृद्धि:

  • इस अध्ययन के अनुसार, वर्ष 1993 और 2012 के बीच डेल्टा में अधिकतम भूस्खलन एक से सात मिमी. प्रतिवर्ष के बीच था।
  • अध्ययन में कहा गया है कि यदि इसी दर से भूस्खलन जारी रहा तो 1986-2005 की तुलना में सदी के अंत तक ग्रीनहाउस गैस शमन परिदृश्य (Greenhouse Gas Mitigation Scenario) के बावजूद डेल्टा के जल स्तर में 85-140 सेमी. तक वृद्धि हो सकती है।

गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदी का डेल्टाई क्षेत्र:

  • अध्ययनकर्त्ताओं के अनुसार, यह न केवल विश्व में सबसे बड़ा बल्कि सबसे घनी आबादी वाला डेल्टा है।
  • यह डेल्टा जलवायु परिवर्तन के लिये संवेदनशील स्थानों में से भी एक है।
  • बांग्लादेश के दो-तिहाई भाग तथा पूर्वी भारत के कुछ क्षेत्रों से निर्मित इस डेल्टा में पहले से ही बाढ़ का खतरा रहता है। इतना ही नहीं, इस क्षेत्र में अक्सर तीव्र मानसूनी बारिश, समुद्र के बढ़ते जलस्तर और भूस्खलन का भी प्रभाव रहता है।

बढ़ते हुए जलस्तर के कारण ज़मीन के पानी में डूबने की गति जलवायु परिवर्तन पर बनी सरकारों की समिति के आकलन से कहीं तेज़ है। इससे लोगों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों को समझने के लिये विस्तृत अध्ययन की सिफारिश भी की गई है। हालाँकि अभी तक यह आकलन नहीं हुआ है कि कितने लोगों पर इसका क्या असर होगा। यदि यह क्षेत्र मानसूनी बाढ़ की चपेट में आता रहा तो इस क्षेत्र में समुद्र का जलस्तर बढ़ने से स्थायी बाढ़ के हालात बन सकते हैं।

स्रोत- बिज़नेस स्टैंडर्ड


भारतीय मौसम पर एक विहंगम दृष्टि

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग

मेन्स के लिये:

चरम मौसमी घटनाओं के दुष्प्रभाव

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में भारत वर्षा, चक्रवात, शीत और उष्णता जैसी चरम मौसमी घटनाओं से अत्यधिक प्रभावित रहा। वर्ष 2019 में औसत तापमान में वृद्धि वर्ष 2016 के बाद से सबसे कम थी, बावजूद इसके वर्ष 1901 के सापेक्ष वर्ष 2019 सातवाँ सबसे उष्ण वर्ष रहा।

प्रमुख बिंदु:

Killer-extrema

  • वर्ष 2019 में 'भारत की जलवायु पर वक्तव्य' नामक शीर्षक के एक मौसम संबंधी संक्षिप्त विवरण में IMD ने यह बताया कि बारिश और बाढ़ के कारण लगभग 849 लोगों की मृत्यु हो गई, जिसमें बिहार सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य है।
  • दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून से सितंबर) और पूर्वोत्तर मानसून (अक्तूबर से दिसंबर) दोनों में ही वर्षा की मात्रा लंबी औसत अवधि (Long Period Average) का 109 प्रतिशत रही।
  • रिपोर्ट के अनुसार, औसत तापमान सामान्य से 0.36 डिग्री अधिक रहा जिससे वर्ष 2019 सातवाँ सबसे उष्ण वर्ष रहा जबकि विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, वर्ष 2019 में (जनवरी से अक्तूबर) वैश्विक औसत सतह तापमान में वृद्धि + 1.10 डिग्री सेल्सियस थी।
  • IMD के अनुसार, वर्ष 2019 भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर आने वाले चक्रवातों की संख्या के लिये भी असाधारण रहा।
  • विशेष रूप से, अरब सागर ने वर्ष के दौरान बंगाल की खाड़ी की तुलना में अधिक चक्रवाती तूफानों की बारंबारता को महसूस किया। 117 वर्षों के बाद दूसरी बार ऐसी स्थिति है जब अरब सागर ने चक्रवातों की तीव्रता और बारंबार आवृत्ति को महसूस किया।
  • भारतीय उपमहाद्वीप में बर्फीले तूफानों के प्रवेश के कारण वर्ष 2018-19 की शीत अवधि में उत्तरी गोलार्द्ध का मौसम सर्वाधिक सर्द रहा। जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख में हिमस्खलन की घटनाओं के कारण लगभग 51 लोगों की मृत्यु हुई ।
  • चरम मौसमी घटनाओं से कृषि को अत्यधिक नुकसान पहुँचा तथा लोगों को अपने स्थान से विस्थापित भी होना पड़ा ।
  • चरम मौसमी घटनाओं ने महामारियों की व्यापकता में वृद्धि की तथा लोगों को आर्थिक रूप से कमज़ोर भी किया।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग

  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना वर्ष 1875 में की गई थी। स्वतंत्रता के बाद 27 अप्रैल, 1949 को यह विश्व मौसम विज्ञान संगठन का सदस्य बना ।
  • यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत एक प्रमुख एजेंसी है।
  • इसका प्रमुख कार्य मौसम संबंधी भविष्यवाणी व प्रेक्षण करना तथा भूकंपीय विज्ञान के क्षेत्र में शोध करना है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
  • IMD के छह प्रमुख क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र हैं, जो क्रमशः चेन्नई, गुवाहाटी, कोलकाता, मुंबई, नागपुर, नई दिल्ली में स्थित है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


दलित ईसाई

प्रीलिम्स के लिये:

दलित ईसाइयों की वैधानिक स्थिति

मेन्स के लिये:

दलित ईसाइयों पर पड़ने वाले सामाजिक-आर्थिक प्रभाव

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति मूल के ईसाइयों को अनुसूचित जातियों के समान दिये जाने वाले लाभों को आवंटित करने के लिये एक याचिका पर विचार करने हेतु सहमति व्यक्त की है। विदित है कि संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 का अनुच्छेद तीन अनुसूचित जाति मूल के ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने से प्रतिबंधित करता है।

प्रमुख बिंदु:

  • राष्ट्रीय दलित ईसाई परिषद (National Council of Dalit Christians-NCDC) की सरकारी नौकरियों तथा शिक्षण संस्थानों में धार्मिक तटस्थता (ReligiousNeutral) की मांग संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को एक नोटिस जारी किया है।
  • राष्ट्रीय दलित ईसाई परिषद ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि “धर्म परिवर्तन से भी सामाजिक बहिष्कार समाप्त नही होता है। जाति पदानुक्रम व्यवस्था ईसाई धर्म के भीतर भी असमानता को बनाए रखता है, भले ही ईसाई धर्म इसकी अनुमति न देता हो”।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने अपील की है कि संसद द्वारा पारित अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 तथा संशोधन अधिनियम, 2018 के तहत कानूनी उपाय/संरक्षण का लाभ, शिक्षा में विशेष विशेषाधिकार प्राप्त करने, छात्रवृत्ति, रोज़गार के अवसर, कल्याणकारी उपाय, सकारात्मक कार्यवाई, पंचायत में आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ने का अधिकार प्राप्त करने के लिये अनुसूचित जाति मूल के ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने और उसे बढ़ाने की अनुमति दी जाए।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने पीठ का ध्यान आकर्षित करते हुए बताया कि हाथ से मैला ढोने (Manual Scavenging) के कार्य में आज भी अनुसूचित जाति मूल के ईसाई संलग्न हैं ।
  • याचिकाकर्त्ताओं के अनुसार, यह स्थिति संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 21 और 25 का उल्लंघन करती है।

कौन हैं दलित ईसाई?

  • ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान हिंदू धर्म को मानने वाले अनुसूचित जाति समुदाय के वे लोग जिन्होंने ईसाई धर्म को अपना लिया दलित ईसाई कहलाए।
  • भारत में 24 मिलियन ईसाई आबादी में से, दलित ईसाइयों की संख्या लगभग 16 मिलियन है। इन दलित ईसाइयों में से अधिकांश आबादी दक्षिणी राज्यों आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में निवास करती है।
  • दलित ईसाइयों को आज भी चर्च, राज्य तथा समाज के द्वारा किये जाने वाले भेदभावों का सामना करना पड़ता है।
  • आधुनिक साहित्य में अनुसूचित जाति को ‘दलित’ नाम से संबोधित किया जाने लगा। औपनिवेशिक शासन के दौरान ‘डिप्रेस्ड क्लास’ के लिये दलित शब्द का प्रयोग किया गया, जिसे भारतीय संविधान निर्माता बी.आर.आंबेडकर द्वारा प्रसिद्ध किया गया।

स्रोत: द हिंदू


तुलू भाषा

प्रीलिम्स के लिये:

तुलू भाषा

मेन्स के लिये:

संविधान की आठवीं अनुसूची

चर्चा में क्यों?

हाल के वर्षों में दक्षिण भारत के कर्नाटक और केरल राज्य के कुछ क्षेत्रों में बोली जाने वाली तुलू भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग एक बार फिर तेज़ हो गई है।

मुख्य बिंदु:

  • तुलू (Tulu) एक द्रविड़ भाषा है, जिसे बोलने-समझने वाले लोग मुख्यतया कर्नाटक के दो तटीय ज़िलों और केरल के कासरागोड ज़िले में रहते हैं।
  • केरल के कासरागोड ज़िले को ‘सप्त भाषा संगम भूमि’ के नाम से भी जाना जाता है, तुलू इन सात भाषाओं में से एक है।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, तुलू भाषी (तुलू भाषा बोलने वाले) स्थानीय लोगों की संख्या लगभग 18,46,427 थी।
  • वर्तमान में भारत में तुलू भाषी लोगों की संख्या संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल मणिपुरी और संस्कृत भाषी लोगों से अधिक है।
  • तुलू भाषा वर्तमान में दक्षिण भारत के तुलूनाडू क्षेत्र तक ही सीमित है।

Tulu-Language

तुलूनाडू: दक्षिण भारत के केरल और कर्नाटक राज्यों के तुलू बाहुल्य क्षेत्र को तुलूनाडू नाम से भी जाना जाता है। कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ और उडूपी ज़िले तथा केरल के कासरागोड ज़िले का पयास्वनी या चंद्रगिरि नदी तक का उत्तरी भाग इस क्षेत्र के अंतर्गत आता है। मंगलुरु, उडूपी और कासरागोड शहर तुलू सभ्यता के प्रमुख केंद्र हैं।

  • अंग्रेज़ी भाषाविद् रॉबर्ट क्लैडवेल (वर्ष1814-1891) ने अपनी पुस्तक ‘अ कम्पेरेटिव ग्रामर ऑफ द द्रविडियन ऑर साउथ-इंडियन फैमिली ऑफ लैंग्वेजेज़’ (A Comparative Grammar of the Dravidian or South-Indian Family of Languages) में तुलू भाषा को द्रविड़ भाषा परिवार की सबसे विकसित भाषा बताया।

आठवीं अनुसूची:

  • संविधान की आठवीं अनुसूची में संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 प्रादेशिक भाषाओं का उल्लेख है।
  • इस सूची में मूल रूप से 14 भाषाओं को स्थान दिया गया था परंतु 8 अन्य भाषाओं को बाद में इस सूची में जोड़ा गया।
  • इस सूची में सिंधी भाषा को वर्ष 1967 में संविधान के 21वें संशोधन अधिनियम और कोंकणी, मणिपुरी तथा नेपाली भाषा को वर्ष 1992 में 71वें संशोधन; जबकि बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली भाषा को वर्ष 2003 में संविधान के 92वें संशोधन से इस सूची में जोड़ा गया।

आठवीं अनुसूची में जुड़ने के लाभ:

  • आठवीं अनुसूची में जुड़ने से तुलू भाषा को साहित्य अकादमी से पहचान प्राप्त होगी।
  • तुलू साहित्य का अन्य प्रमाणित भारतीय भाषाओं में अनुवाद होगा।
  • जनप्रतिनिधि संसद तथा विधानसभाओं में तुलू भाषा का आधिकारिक रूप से प्रयोग कर सकेंगे।
  • छात्र परीक्षाओं जैसे-सिविल सेवा परीक्षा आदि में तुलू भाषा का चुनाव कर सकेंगे।

भाषाओं से भेदभाव का आरोप:

कई समुदायों द्वारा सरकार पर अपनी भाषा की अनदेखी करने का आरोप लगाया जाता रहा है।

  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, आठवीं अनुसूची में शामिल संस्कृत भाषा बोलने वाले लोगों की संख्या मात्र 24,821 और मणिपुरी भाषा बोलने वाले लोगों की संख्या 17,61,079 थी।
  • जबकि इसी जनगणना में कई अन्य भाषाओं को बोलने वाले लोगों की अधिक संख्या होने के बाद भी इन भाषाओं को अभी तक इस अनुसूची में स्थान नहीं दिया गया है जैसे-
    • भीली अथवा भिलोड़ी (1,04,13,637 भाषा-भाषी)
    • गोंडी/गोंड भाषा (18,60,236 भाषा-भाषी)
    • गारो भाषा (11,45,323 भाषा-भाषी)
    • हो भाषा (14,21,418 भाषा-भाषी)
    • खंदेशी भाषा (18,60,236 भाषा-भाषी)
    • खासी भाषा (14,31,344 भाषा-भाषी) (वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर)

क्षेत्रीय भाषाओं का संरक्षण:

  • अनुच्छेद 29: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 में अल्पसंख्यक वर्गों के हितों के संरक्षण के लिये प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। इस अनुच्छेद के अनुसार, भारत के किसी क्षेत्र में रहने वाले नागरिक को अलग भाषा, लिपि और सभ्यता अपनाने तथा उसकी रक्षा करने का अधिकार है।

वैश्विक प्रयास:

  • वर्ष 2018 में चीन के चांग्शा (Changsha) शहर में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन- यूनेस्को (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization-UNESCO) की Yuelu घोषणा ने अल्पसंख्यक भाषाओं के संरक्षण को नई ऊर्जा प्रदान की है।
    • इस घोषणा में समाज के समायोजित तथा बहुमुखी विकास में भाषायी विविधता के योगदान को रेखांकित किया गया है साथ ही जनजातीय और अल्पसंख्यक समूहों की सहभागिता सुनिश्चित करने एवं उनकी भाषा व सभ्यता के संरक्षण तथा विकास की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है।

आगे की राह:

भारत अपनी विविधता-पूर्ण सभ्यता और अनेकता में एकता के लिये जाना जाता है। वर्तमान में देश की बहुत बड़ी आबादी क्षेत्रीय समूहों के रूप में देश के सुदूर इलाकों में निवास करती है। भाषाओं की राष्ट्रीय पहचान इन समुदायों का आत्मविश्वास बढ़ाने के साथ-साथ इनकी प्रगति में भी सहायक होगी। अतः यूनेस्को की घोषणा को आगे ले जाते हुए भाषाओं और संस्कृतियों के संरक्षण और विकास को बढ़ावा देना देश की समृद्धि के लिये सहायक होगा।

स्रोत: द हिंदू


राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल अकादमी

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल अकादमी 

मेन्स के लिये:

आपदा प्रबंधन 

चर्चा में क्यों?

2 जनवरी, 2020 को केंद्रीय गृह मंत्री ने महाराष्ट्र के नागपुर ज़िले में राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल अकादमी (National Disaster Response Force Academy) की आधारशिला रखी। भविष्य में इस विश्वस्तरीय अकादमी में विभिन्न आपदाओं से निपटने के लिये प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु:

  • राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल अकादमी का निर्माण कार्य 2 जनवरी, 2020 से महाराष्ट्र के नागपुर ज़िले में शुरू हुआ है।
  • इस अकादमी के निर्माण के लिये 18.6 करोड़ रुपए की लागत से वर्ष 2012 में 153 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था।
  • इस परिसर के अंतर्गत कुछ छोटी पहाड़ियाँ और नदी की एक धारा भी शामिल है। अकादमी में राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल के सदस्यों के साथ स्वयंसेवियों को भी विश्वस्तरीय प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।
  • राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल अकादमी के निर्माण के लिये सरकार ने 400 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं।
  • इस अकादमी में भारत के साथ-साथ विश्व के कई अन्य देशों के आपदा प्रबंधन दलों को प्रशिक्षण दिया जाएगा।
  • इसके साथ ही इस परिसर में भविष्य के आतंकी खतरों, रासायनिक हमलों आदि से निपटने के लिये भी प्रशिक्षण दिया जाएगा।
  • राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल के अनुसार, अनुमानतः अगले पाँच वर्षों में इस अकादमी का निर्माण कार्य पूरा कर लिया जाएगा।  

NDRF-BNS

(मैप में प्रस्तुत आँकड़ें जम्मू-कश्मीर राज्य के विभाजन से पूर्व के हैं)  

राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल

(National Disaster Response Force-NDRF)

  • वर्ष 2006 में ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005’ के तहत 6 बटालियनों के साथ NDRF की स्थापना की गई थी।
  • वर्तमान में NDRF में 12 बटालियन हैं जिनमें BSF और CRPF से तीन-तीन और CISF, SSB एवं ITBP से दो-दो बटालियन हैं तथा इसकी प्रत्येक बटालियन में 1149 सदस्य हैं।
  • अपनी स्थापना के बाद से NDRF ने अपनी कार्यकुशलता से देश तथा विदेशों में प्रशंसा प्राप्त की है।

आपदा से निपटने में NDRF की भूमिका:  

  • प्राकृतिक व मानव निर्मित आपदा में त्वरित सहायता प्रदान करना। 
  • राहत बचाव कार्यों में जुटी अलग-अलग सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय स्थापित करना।  
  • आपदा क्षेत्र से लोगों को सुरक्षित बाहर निकालना एवं राहत सामग्री का वितरण करना, आदि। 
  • पिछले कुछ वर्षों में NDRF वैश्विक स्तर पर अग्रणी आपदा प्रबंधन बल के रूप में उभरा है। 

आपदा प्रबंधन में भारत की भूमिका 

  • अन्य देशों में आपदा के समय सहायता प्रदान करने के साथ ही भारत विभिन्न देशों के सुरक्षा बालों को प्रक्षिक्षण भी प्रदान करता है। 
  • पिछले कुछ वर्षों में भारत सार्क (SAARC) क्षेत्र में आपदा प्रबंधन कर्मियों के प्रशिक्षण का केंद्र बन गया है।   

आगे की राह:  

प्रस्तावित अकादमी देश के विभिन्न सुरक्षा संस्थानों के बीच परस्पर संपर्क को बढ़ाने और उनके प्रशिक्षण में सहायक साबित होगीइसके साथ ही यह देश के आपदा प्रबंधन ढाँचे को मज़बूती प्रदान कर देश के आर्थिक विकास में सहायता प्रदान करेगी

स्रोत: pib


खनित क्षेत्रों का पुन: हरितकरण

प्रीलिम्स के लिये:

भारत में खनन क्षेत्र

मेन्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खनन क्षेत्र संबंधी निर्णय लेने का कारण एवं इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को खनन लाइसेंस धारकों द्वारा खनन क्षेत्रों की बंजर भूमि का पुन: हरितकरण (मुख्यतः घास- Regrassing) किये जाने संबंधी नए प्रावधान को लाने का आदेश दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को आदेश दिया है कि प्रत्येक खनन लाइसेंस, पर्यावरण मंज़ूरी और खनन योजना के लिये विभिन्न खनन क्षेत्रों में पुन: हरितकरण (मुख्यतः घास) को एक अनिवार्य शर्त के रूप में शामिल किया जाए।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय ओडिशा की कुछ निजी खनन संस्थाओं एवं ओडिशा खनन निगम द्वारा दायर की गई लौह अयस्क खनन संबंधी अपील की सुनवाई करते हुए दिया।

क्या है सर्वोच्च न्यायालय का आदेश?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जिस क्षेत्र में खनन किया गया है, उस क्षेत्र में फिर से पर्यावरणीय बहाली की जानी चाहिये इससे इन खनन क्षेत्रों में पशुओं के लिये घास सहित अन्य वनस्पतियाँ विकसित हो सकेंगी।
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, अगर भारत संघ खनन क्षेत्र को लाइसेंस एवं पर्यावरणीय मंज़ूरी प्रदान करने के लिये ‘बंद किये गए खनन क्षेत्रों’ तथा खनन क्रिया-कलापों के कारण पर्यावरणीय रूप से क्षतिग्रस्त क्षेत्रों का पुन: हरितकरण (मुख्यतः घास) करने की आवश्यक शर्त रख दे तो यह वनस्पति, प्राणीजात और चारे के विकास के लिये उपयुक्त होगा।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से तीन सप्ताह में कार्यवाही से संबंधित रिपोर्ट प्रस्तुत करने तथा खनन लाइसेंस-धारकों द्वारा इन मानकों का अनुपालन किये जाने हेतु आवश्यक प्रक्रिया सुनिश्चित करने को कहा है।
  • खनन किये गए क्षेत्र में पुन: हरितकरण (मुख्यतः घास) तथा खनन क्रिया-कलापों के कारण हुई पर्यावरणीय क्षति की पर्यावरणीय बहाली की लागत खनन लाइसेंसधारक द्वारा वहन की जाएगी।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा क्यों दिया गया है यह आदेश?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश इसलिये दिया है क्योंकि खनन प्रक्रियाओं में प्रयुक्त रसायनों द्वारा भूमि का क्षरण, सिंकहोल्स (Sinkholes) का निर्माण, जैव-विविधता का नुकसान और मिट्टी, भूजल एवं सतही जल प्रदूषित होता है।
  • एक ऐसा क्षेत्र जो खनन कार्य किये जाने के कारण पूरी तरह से घास-मुक्त हो गया हो, वहाँ शाकाहारियों के लिये भोजन संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

खनन के कारण होने वाली पर्यावरणीय क्षति:

  • खदानों में बारूद के उपयोग, खानों से ढुलाई एवं परिवहन और कचरे के ढेरों के कारण वायु प्रदूषण होता है।
  • लौह अयस्क/खनिज खानों से निकलने वाले अपशिष्ट में उपस्थित आणविक अथवा अन्य हानिकारक तत्त्वों से जल प्रदूषित होता है।
  • खनन के कारण उपलब्ध जल क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन, जैसे कि सतही बहाव, भूमिगत जल की उपलब्धता में परिवर्तन और जल स्तर का और नीचे चला जाना।
  • भूमि कटाव, धूल और नमक से भूमि के स्वरूप में परिवर्तन होता है।
  • वनों के विनाश के कारण पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं को नुकसान होता है।
  • अनुपचारित कचरे के ढेर के कारण क्षेत्र की सुंदरता नष्ट होती है।

स्रोत- द हिंदू


एयर कंडीशनर के लिये नए ऊर्जा कार्य प्रदर्शन मानक

प्रीलिम्स के लिये:

ऊर्जा दक्षता ब्‍यूरो, भारतीय मौसमी ऊर्जा दक्षता अनुपात, BEE स्टार लेबलिंग कार्यक्रम, ऊर्जा संरक्षण अधिनियम

मेन्स के लिये:

ऊर्जा संरक्षण से संबंधित मुद्दे, ऊर्जा संरक्षण की दिशा में किये गए सरकारी प्रयास

चर्चा में क्यों?

ऊर्जा दक्षता ब्यूरो ने 1 जनवरी, 2020 से सभी रूम एयर कंडीशनर्स के लिये 24 डिग्री सेल्सियस तापमान की डिफ़ॉल्ट सेटिंग निर्धारित की है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • केंद्र सरकार ने ऊर्जा दक्षता ब्‍यूरो (Bureau of Energy Efficiency- BEE) के साथ परामर्श करके रूम एयर कंडीशनर (Room Air Conditioner- RAC) के लिये 30 अक्‍तूबर, 2019 को नए ऊर्जा कार्य प्रदर्शन मानक अधिसूचित किये हैं।
  • नए मानकों के अनुसार, भारतीय मौसमी ऊर्जा दक्षता अनुपात (Indian Seasonal Energy Efficiency Ratio- ISEER) स्‍प‍लिट एयर कंडीशनर के लिये 3.30 से 5.00 और विंडो एयर कंडीशनर के लिये 2.70 से 3.50 तक होगा।
  • इसके अलावा इस अधिसूचना द्वारा BEE स्टार-लेबलिंग कार्यक्रम (BEE Star-Labelling Program) के दायरे में आने वाले सभी रूम एयर कंडीशनर्स के लिये 24 डिग्री सेल्सियस की डिफ़ॉल्ट सेटिंग को अनिवार्य कर दिया गया है। गौरतलब है कि ये कार्य प्रदर्शन मानक 1 जनवरी, 2021 से लागू होंगे।
  • अधिसूचना के अनुसार, भारत में निर्मित या व्यावसायिक उद्देश्य से खरीदे या बेचे गए स्‍टार लेबल वाले सभी ब्रांड और सभी प्रकार के रूम एयर कंडीशनर अर्थात् मल्टी-स्टेज कैपेसिटी एयर कंडीशनर (Multi-Stage Capacity Air Conditioner), यूनिट्री एयर कंडीशनर (Unitary Air Conditioner) और स्‍पलिट एयर कंडीशनरों (Split Air Conditioners) को 10,465 वॉट (9,000 किलो कैलोरी/घंटा) की कूलिंग क्षमता तक की आपेक्षिक ऊर्जा दक्षताओं के आधार पर एक से पाँच स्टार तक रेटिंग दी जाएगी तथा उन सभी को 1 जनवरी, 2020 से रूम एयर कंडीशनर में तापमान की डिफ़ॉल्ट सेटिंग 24 डिग्री सेल्सियस सुनिश्चित करनी होगी।
  • ध्यातव्य है कि BEE ने वर्ष 2006 में फिक्स्ड स्पीड रूम एयर कंडीशनर (Fixed Speed Room Air Conditioner) के लिये स्टार लेबलिंग कार्यक्रम शुरू किया था तथा इस कार्यक्रम को 12 जनवरी, 2009 से अनिवार्य बना दिया गया। इसके बाद वर्ष 2015 में इन्वर्टर रूम एयर कंडीशनर (Inverter Room Air Conditioner) के लिये एक स्वैच्छिक स्टार लेबलिंग कार्यक्रम (Voluntary Star Labelling Program) शुरू किया गया एवं इसे 1 जनवरी, 2018 से अनिवार्य बना दिया गया।
  • गौरतलब है कि रूम एयर कंडीशनरों के लिये BEE स्टार लेबलिंग कार्यक्रम में अब 10,465 वॉट (2.97 टीआर) तक की कूलिंग क्षमता वाले फिक्स्ड और इन्वर्टर दोनों ही रूम एयर कंडीशनर शामिल हैं तथा प्रदर्शन के स्तर में लगातार सुधार से स्पलिट इकाइयों के लिये न्यूनतम ऊर्जा प्रदर्शन मानकों (Minimum Energy Performance Standards- MEPS) में ऊर्जा दक्षता में लगभग 43 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  • भारतीय मौसमी ऊर्जा दक्षता अनुपात (ISEER) रूम एयर कंडीशनर्स के लिये उपयोग किया जाने वाला ऊर्जा कार्य प्रदर्शन सूचकांक है और इसका आकलन ISO 16358 में परिभाषित बिन घंटों (Bin Hours) पर आधारित है।
  • रूम एयर कंडीशनर्स के लिये स्टार लेबलिंग कार्यक्रम ने अकेले वित्तीय वर्ष 2017-18 में अनुमानित 4.6 बिलियन यूनिट ऊर्जा बचत की है और इसके अलावा 38 मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने वाली 46 बिलियन इकाइयों की संचयी ऊर्जा बचत को भी बढ़ावा मिला है।

भारतीय मौसमी ऊर्जा दक्षता अनुपात

(Indian Seasonal Energy Efficiency Ratio)

ISEER एयर कंडीशनर द्वारा कुल मौसमी ऊर्जा खपत की कुल मौसमी कूलिंग लोड [निकाली गई गर्मी (Heat) की मात्रा] है। इसे निम्नलिखित सूत्र के माध्यम से निकला जाता है-

ISEER = कूलिंग मौसमी कुल लोड (CSTL)/कूलिंग मौसमी ऊर्जा खपत (CSEC)

उपर्युक्त सूत्र के माध्यम से गणना करने पर प्राप्त अनुपात का उपयोग स्टार रेटिंग प्रदान करने में किया जाता है।

ऊर्जा दक्षता ब्यूरो

(Bureau of Energy Efficiency- BEE)

  • BEE भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है।
  • इसका प्राथमिक उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था की ऊर्जा तीव्रता को कम करने के साथ ही नीतियों और रणनीतियों को विकसित करना है।
  • BEE, ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत सौंपे गए कार्यों को पूरा करने के लिये मौजूदा संसाधनों और बुनियादी ढाँचे की पहचान और उपयोग के लिये नामित उपभोक्ताओं, एजेंसियों और अन्य संगठनों के साथ समन्वय स्थापित करता है

स्रोत: पी.आई.बी.


गोल्डीलॉक्स ज़ोन

प्रीलिम्स के लिये

गोल्डीलॉक्स ज़ोन, TESS, ड्वार्फ स्टार, TOI 700 d ग्रह

मेन्स के लिये

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास एवं प्रगति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नासा ने पृथ्वी के आकार जैसे ग्रह TOI 700 d की खोज की है जो गोल्डीलॉक्स ज़ोन (Goldilocks Zone) में अपने तारे की परिक्रमा करता है।

Too-Hot

मुख्य बिंदु:

  • गोल्डीलॉक्स ज़ोन (Goldilocks Zone) जिसे वासयोग्य क्षेत्र (Habitable Zone) भी कहा जाता है, एक तारे के चारों ओर का वह क्षेत्र है जहाँ पृथ्वी जैसे किसी ग्रह की सतह न तो बहुत ठंडी और न ही बहुत गर्म हो अर्थात् उस ग्रह पर जीवन की संभावना हो।
    • जैसा कि हम जानते हैं, पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत जल की उपस्थिति के कारण हुई, अतः जल जीवन का अनिवार्य घटक है।
    • यदि पृथ्वी की स्थिति प्लूटो ग्रह के स्थान पर होती तो पृथ्वी पर उपस्थित सारा जल बर्फ बन जाता और यदि बुध ग्रह के स्थान पर होती तो पृथ्वी पर उपस्थित जल का वाष्पीकरण हो जाता अर्थात् हमारी पृथ्वी सूर्य के गोल्डीलॉक्स ज़ोन में है।

ट्रांज़िटिंग एक्सोप्लैनेट सर्वे सैटेलाइट

(Transiting Exoplanet Survey Satellite-TESS)

  • TESS मिशन को नासा द्वारा वर्ष 2018 में लाॅन्च किया गया था।
  • TESS नासा की खोज करने वाले कार्यक्रम के तहत एक स्पेस टेलीस्कोप है जिसे केपलर मिशन द्वारा कवर किये गए क्षेत्र से 400 गुना बड़े क्षेत्र में पारगमन विधि (Transit Method) द्वारा एक्सोप्लैनेट की खोज करने के लिये बनाया गया है।
  • TOI 700 d नामक ग्रह की खोज ट्रांज़िटिंग एक्सोप्लैनेट सर्वे सैटेलाइट ने की है। इसके द्वारा की गई यह पहली खोज है।

TOI 700 dग्रह के बारे में

  • यह ग्रह पृथ्वी से 20% अधिक बड़ा है और यह अपने तारे की परिक्रमा 37 दिनों में पूरी करता है।
  • TOI 700 dग्रह को ऊर्जा की प्राप्ति, तारा TOI 700 से होती है और इसको मिलने वाली ऊर्जा सूर्य द्वारा पृथ्वी को प्रदान की जाने वाली ऊर्जा के 86% के बराबर है।
    • TOI 700 d ग्रह, तारा TOI 700 की परिक्रमा करता है यह तारा दक्षिणी नक्षत्र मंडल डोरैडो (Southern Constellation Dorado) में 100 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित एक ‘एम बौना’ (M dwarf) तारा है जो सूर्य के द्रव्यमान और आकार का लगभग 40% है तथा इसकी सतह का तापमान सूर्य की सतह के तापमान का लगभग आधा है।

एम बौना (M dwarf) तारा

  • इसे लाल बौना (Red Dwarf) तारा भी कहा जाता है। यह एक छोटा तारा है। इसका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान का लगभग 8-50 % तक होता है।
  • TOI 700 तारे की परिक्रमा करने वाले दो अन्य ग्रह TOI 700 b और TOI 700 c भी हैं।
    • TOI 700 b जो लगभग पृथ्वी के आकार का है इसकी सतह चट्टानी संरचना से निर्मित होने का अनुमान है और यह एक परिक्रमा 10 दिनों में पूरी करता है।
    • TOI 700 c ग्रह, TOI 700 b ग्रह और TOI 700 d ग्रह के मध्य में स्थित है यह पृथ्वी से 2.6 गुना बड़ा है, इस ग्रह पर गैसों की प्रचुरता है और यह एक परिक्रमा 16 दिनों में पूरी करता है।
    • TOI 700 d सबसे बाहरी ग्रह है जो तारा TOI 700 के वासयोग्य क्षेत्र में एकमात्र ग्रह है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


खान एवं खनिज संबंधी अध्यादेश

प्रीलिम्स के लिये:

अध्यादेश संबंधी प्रावधान

मेन्स के लिये:

खान और खनिज (विकास और विनियम) अधिनियम 1957, कोयला खान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 में संशोधन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने खनिज कानून संशोधन संबंधी अध्यादेश 2020 को मंज़ूरी दी है।

मुख्य बिंदु:

  • यह अध्यादेश खान और खनिज (विकास और विनियम) अधिनियम 1957 [Mines and Minerals (Development and Regulation) Act, 1957], कोयला खान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 [Coal Mines (Special Provisions) Act, 2015] में संशोधन का प्रावधान करता है।
  • इस संशोधन के माध्यम से कोयले का घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिये केंद्र सरकार ने खनन नियमों में ढील दी है तथा कोयला खनन क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के रास्ते खोल दिये हैं।

क्या है अध्यादेश का उद्देश्य?

  • कोयला मंत्रालय के अनुसार, इस कदम से एक ऊर्जा दक्ष बाज़ार बनाने में सहायता मिलेगी, इससे प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि होगी और कोयले का आयात घटाने में मदद मिलेगी।
  • कोल इंडिया को मज़बूत करने के लिये वर्ष 2023-24 तक कोयले के घरेलू उत्पादन को एक मिलियन टन तक बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा।
  • इस अध्यादेश को मंज़ूरी मिलने के बाद न्यूनतम मानदंड पूरा करने वाली अन्य खनन कंपनियों के पास भी कोयला खानों के लिये बोली लगाने का अधिकार होगा।
  • यह अध्यादेश 31 मार्च, 2020 को समाप्त होने जा रही खनन पट्टों की नीलामी प्रक्रिया को मज़बूती प्रदान करेगा।
  • इस अध्यादेश के उदारीकृत नियमों के तहत पहली बोली जनवरी 2020 में ही लगाई जाएगी, इस दौरान कुल 40 कोयला ब्लॉक नीलामी के लिये उपलब्ध रहेंगे।
  • भारत ने वर्ष 2018-19 में लगभग 1.71 करोड़ रुपए मूल्य के 235 मिलियन टन कोयले का आयात किया था।

वैश्विक कंपनियाँ शुरू कर पाएंगी कारोबार:

  • कोयला खनन के क्षेत्र में विदेशी कंपनियों को शत प्रतिशत निवेश की छूट देने से भारत को अपने खनिज भंडार का न केवल दोहन करने में मदद मिलेगी बल्कि बहुत सी वैश्विक कंपनियाँ अपनी नई प्रौद्योगिकी के साथ भारत में अपना कारोबार स्थापित कर सकेंगी।
  • इस अध्यादेश से वाणिज्यिक प्रयोग हेतु कोयला खानों की नीलामी के नियम आसान करने में मदद मिलेगी।

कोयले के क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण:

  • भारत में कोयला क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण वर्ष 1973 में हुआ था।
  • कोयला क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण के कुछ समय बाद ही 1975 में कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Ltd.) की स्थापना एक होल्डिंग कंपनी के रूप में हुई थी।

स्रोत- द हिंदू


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 09 जनवरी, 2020

विक्रम साराभाई बाल नवोन्मेष केंद्र

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने राज्य में विक्रम साराभाई बाल नवोन्मेष केंद्र (VSCIC) की स्थापना की घोषणा की है। इस केंद्र की स्थापना का मुख्य उद्देश्य राज्य के बच्चों के मध्य नवोन्मेष की भावना जागृत करना है। इसके तहत राज्य के बच्चों के नवोन्मेष को पहचानने, उसका विकास करने और उसके बढ़ावा देने का कार्य किया जाएगा। इस केंद्र की शुरुआत भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम साराभाई के नाम से की जा रही है। उनका जन्म 12 अगस्त, 1919 को अहमदाबाद में हुआ था। विक्रम साराभाई को शांति स्वरुप भटनागर पुरस्कार (वर्ष 1962) पद्म भूषण (वर्ष 1966) तथा पद्म विभूषण (वर्ष 1972) से सम्मानित किया जा चुका है।

बिगली (Bigly)

अपने चुनावी भाषणों के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बिगली (Bigly) शब्द का बहुतायत में प्रयोग किया था, वर्तमान में इसका प्रयोग राष्ट्रपति के उपहास में प्रयोग किया जा रहा है। किंतु BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक यह सच में एक शब्द है और इसका अर्थ है “ज़्यादा ताकत के साथ”।

आर्मी चीफ जनरल बाजवा

पाकिस्तानी संसद के निचले सदन ने पाकिस्तानी सेना के आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल बढ़ाने का प्रस्ताव पारित कर दिया है। विदित हो कि हाल ही में पाकिस्तान ने सेना, नौसेना और वायुसेना के प्रमुखों तथा ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के प्रमुख की सेवानिवृत्ति की उम्र 60 से बढ़ाकर 64 वर्ष करने के लिये तीन विधेयक पेश किये गए थे, जिन्हें भी सदन की मंज़ूरी दे दी गई है।

प्रवासी भारतीय दिवस

09 जनवरी, 2020 को देशभर में 16वाँ प्रवासी भारतीय दिवस मना रहा है। दुनिया भर में बसे भारतीय प्रवासियों से नाता जोड़ने के लिये प्रवासी भारतीय दिवस की शुरुआत वर्ष 2003 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा की गई थी। ज्ञातव्य है कि 9 जनवरी, वर्ष 1915 को ही महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश लौटे थे, इसीलिये प्रवासी भारतीय दिवस 9 जनवरी को मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम है “

जसबिंदर बिलान

भारतीय मूल की लेखिका जसबिंदर बिलान को उनके पहले उपन्‍यास ‘आशा एंड द स्प्रिट बर्ड’ के लिये ‘यूके चिल्‍ड्रेन बुक पुरस्‍कार’ से सम्‍मानित किया गया है। इस उपन्‍यास में हिमालय पर्वत के परिप्रेक्ष्‍य में लेखिका ने अपने बचपन की जीवनगाथा प्रस्‍तुत की है। उन्‍हें इस पुस्‍तक के लिये पुरस्‍कार के रूप में पाँच हजार पौंड की रकम दी जाएगी। इस पुरस्‍कार के लिये 144 प्रविष्टियाँ प्राप्‍त हुई थीं जिनमें से जसबिंदर बिलान की पुस्‍तक को पुरस्‍कार के लिये चुना गया है।