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डेली न्यूज़

  • 08 May, 2019
  • 46 min read
विविध

सूखे की स्थिति से निपटने में संघर्षरत भारत

संदर्भ

महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के क्षेत्रों में लगातार सूखे की स्थिति के बावजूद सरकार की तरफ से इससे निपटने के लिये अब तक कोई सक्षम रणनीति सामने नहीं आई है।

समस्याएँ

  • पिछले कई वर्षों से फसलों का खराब होना और सूखा पड़ना एक स्थायी समस्या बन गई है।
  • भारत में सूखा की स्थिति लंबे समय से बनी रही है किंतु इन दिनों इसकी आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हुई है।
  • सरकार की तरफ से सूखे से निपटने के लिये तात्कालिक तौर पर चारा-शिविर, पानी के टैंकर और सूखा राहत कोष जैसी व्यवस्था कर दी जाती है किंतु दीर्घकालिक अवधि में इससे निपटने के लिये कोई ठोस कदम नही उठाए गए है।

आँकड़े

  • आंध्र प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में पिछले चार वर्षों में चार बार सूखा पड़ा है।
  • इस अवधि के दौरान कर्नाटक के 20 से अधिक ज़िले तीन साल तक सूखे की चपेट में रहे।
  • वहीं महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और ओडिशा को दो बार सूखे का सामना करना पड़ा।
  • कृषि मंत्रालय के अनुसार,
  • पिछले चार वर्षों में लगातार सूखे से न केवल खरीफ और रबी की फसल प्रभावित हुई है, बल्कि इन राज्यों में खरीफ की पूरक फसलें भी नष्ट हुई हैं।
  • कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड के कुछ हिस्से अच्छी तरह से सिंचित नहीं होने के कारण जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशील हो गए हैं।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय एवं विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार,
  • उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत तथा मध्य भारत के आसपास सूखे की तीव्रता अधिक देखी गई है साथ ही, हाल के दशकों में भारत में सूखे की तीव्रता और क्षेत्र में वृद्धि हुई है।
  • आर्थिक सर्वेक्षण (2017-18) में तापमान, वर्षा और फसल उत्पादन पर जिला-स्तरीय आँकड़ों को प्रस्तुत करते हुए औसत वर्षा में गिरावट, अत्यधिक वर्षा और तापमान में वृद्धि की दीर्घकालिक प्रवृत्ति का दस्तावेजीज़ीकरण किया है।
    इसके अनुसार,
  • तापमान और वर्षा का प्रभाव केवल अति के रूप में महसूस किया जाता है; अर्थात् जब तापमान बहुत अधिक होता है, वर्षा काफी कम होती है, और ‘शुष्क दिनों’ की संख्या सामान्य से अधिक होती है।
  • ये प्रभाव सिंचित क्षेत्रों की तुलना में असिंचित क्षेत्रों में काफी अधिक प्रतिकूल हैं।
  • जलवायु में प्रतिकूल परिवर्तन के कारण सिंचित क्षेत्र में कृषि से उत्पन्न वार्षिक आय औसतन 15 प्रतिशत से 18 प्रतिशत तक और असिंचित क्षेत्रों के लिये 20 प्रतिशत से 25 प्रतिशत तक कम हो सकती है।

सरकार द्वारा किये गए उपाय

  • सरकार जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) चला रही है जिसके अंतर्गत विशिष्ट क्षेत्रों में आठ मिशन लागू किये गए हैं। ये क्षेत्र हैं-
  • सौर ऊर्जा
  • ऊर्जा दक्षता
  • जल
  • कृषि
  • हिमालय का पारिस्थिकी तंत्र
  • स्थायी आवास
  • हरित भारत
  • जलवायु परिवर्तन पर रणनीतिक ज्ञान।
  • राज्यों ने NAPCC के उद्देश्यों के अनुरूप और जलवायु परिवर्तन से संबंधित राज्य के विशिष्ट मुद्दों को ध्यान में रखते हुए जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्ययोजना (SAPCC) तैयार की है
  • इसके अलावा केंद्र एवं राज्य सिंचाई केंद्रित कई योजनाएँ जैसे- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP) इत्यादि भी चला रहे हैं।

त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी)
Accelerated Irrigation Benefits Program – AIBP

  • सिंचाई की दर में निरंतर गिरावट के परिप्रेक्ष्य में केंद्र सरकार द्वारा अपूर्ण सिंचाई योजनाओं को पूरा करने के लिये सहायता देने हेतु 1996-97 से त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP) प्रारंभ किया गया।
  • इस कार्यक्रम के अंतर्गत योजना आयोग द्वारा अनुमोदित परियोजनाएँ सहायता प्राप्त करने की पात्र हैं।

योजनाएँ कागज़ों तक ही सीमित

  • विशेषज्ञों और किसानों का आरोप है कि सरकार की योजनाएँ सिर्फ कागज़ों तक ही सीमित हैं।
  • कृषि और जलवायु परिवर्तन शोधकर्त्तार्ओं के अनुसार, धरातल पर विशेष कुछ नहीं हो रहा है। इस मुद्दे से व्यापक रूप से निपटने के लिये राज्य और केंद्रीय स्तर पर सिर्फ तात्कालिक रूप से समाधान प्रस्तुत करने का कोई अर्थ नहीं है।
  • कृषि पर पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के प्रति उदासीनता भविष्य के लिये एक बड़े संकट का कारण बन सकती है।

आगे की राह

  • जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता को कम करने के लिये ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रौद्योगिकियों के माध्यम से सिंचाई का विस्तार करना आवश्यक है।
  • मोर क्रॉप फॉर एवरी ड्रॉप (More Crop For Every Drop) की दिशा में कार्य करना होगा।
  • बिजली और उर्वरक क्षेत्र में असंगत सब्सिडी के बदले प्रत्यक्ष आय समर्थन प्रदान करना चाहिये।
  • भू-जल के अन्य भंडारों की खोज के लिये रिमोट सेंसिंग, उपग्रह से प्राप्त मानचित्रों तथा भौगोलिक सूचना तंत्र आदि तकनीकों का प्रयोग किया जाना चाहिये।
  • जल संग्रहण के लिये छोटे बांधों का निर्माण किया जाना चाहिये। 
  • ‘हर खेत को पानी' के तहत कृषि योग्य क्षेत्र का विस्तार करना तथा खेतों में ही जल को इस्तेमाल करने की दक्षता को बढ़ाना होगा।
  • पौधरोपण तथा सूखारोधी फसलों की कृषि के माध्यम से सूखे के प्रभावों को सीमित किया जा सकता है तथा नीतियों को फसल-केंद्रित बनाया जाना चाहिये।

सूखा

सूखा एक असामान्य व लंबा शुष्क मौसम होता है जो किसी क्षेत्र विशेष में स्पष्ट जलीय असंतुलन पैदा करता है। सूखा के लिये मानसून की अनिश्चितता के अतिरिक्त कृषि का अवैज्ञानिक प्रबंधन भी उत्तरदायी कारक हो सकते हैं। ‘सूखे’ की तीन स्थितियाँ होती हैं-

(i) मौसमी सूखाः किसी बड़े क्षेत्र में अपेक्षा से 75% कम वर्षा होने पर उत्पन्न हुई स्थिति।

(ii) जलीय सूखाः जब ‘मौसम विज्ञानी सूखे’ की अवधि अधिक लंबी हो जाती है तो नदियों, तालाब, झीलों जैसे जल क्षेत्र सूखने से यह स्थिति बनती है।

(iii) कृषिगत सूखाः इस स्थिति में फसल के लिये अपेक्षित वर्षा से काफी कम वर्षा होने पर मिट्टी की नमी फसल विकास के लिये अपर्याप्त होती है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

DPIIT के आयकर नियम संशोधन संबंधित सुझाव

चर्चा में क्यों?

उद्योग संवर्द्धन और आतंरिक व्यापार विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) ने स्टार्टअप्स को फंड जुटाने में मदद करने के लिये आयकर नियमों में ढील देने का प्रस्ताव दिया है। यह सुझाव स्टार्ट-अप इंडिया विज़न 2024 का हिस्सा है जिसका डीपीआईआईटी द्वारा नई सरकार के उभरते उद्यमियों के व्यापार में बढ़ोत्तरी करना है एवं उन समस्याओं को कम करना है जो उन्हें वित्त इकठ्ठा करते समय उत्पन्न होती है।

प्रमुख बिंदु

  • स्टार्ट-अप्स हेतु विनियामक आवश्यकताओं को आसान बनाने के लिये डीपीआईआईटी ने आयकर अधिनियम के अनुच्छेद 54GB (आवासीय संपत्ति के हस्तांतरण पर पूंजीगत लाभ संबंधी कुछ मामलों में चार्ज नहीं लगाया जाना चाहिये) और अनुच्छेद-79 (कुछ कंपनियों के घाटे की स्थिति में उनके संचालन से संबंधित) को संशोधित करने का सुझाव दिया है। क्योंकि अक्सर उद्यमी अपने व्यापार को और अधिक विकसित करने अथवा संचालित करने हेतु अपनी आवासीय सम्पत्तियाँ बेच देते हैं।
  • इस संशोधन का एक भाग यह भी है कि इसने संस्थापकों की शेयरधारिता की आवश्यक शर्त को 50 प्रतिशत से घटाकर 20 प्रतिशत करने और अनिवार्य होल्डिंग अवधि को 5 वर्ष से 3 वर्ष करने का प्रस्ताव दिया है। इससे संपत्तियों को बेचकर पूंजी जुटाने में आसानी होगी।
  • इसने अनुच्छेद-79 के संदर्भ में यह सुझाव दिया है कि व्यापार में हिस्सेदारी संबंधी अनिवार्यताओं में भी ढील दिये जाने की ज़रूरत है जिससे घाटे के जोखिम को कम किया जा सके।
  • वर्तमान में स्टार्ट-अप प्रोत्साहक घाटे को अगले वित्त वर्ष में तभी स्थानांतरित कर सकते है, जब उनके पास 100% की अंशधारिता हो। इस शर्त को कम करके 26% पर लाया जाना चाहिये, जिससे यह नए निवेशकों को स्टार्ट-अप में निवेश करने को प्रोत्साहित करेगा।

स्टार्ट-अप इंडिया

  • स्टार्ट-अप इंडिया (Start-up India) भारत सरकार की प्रमुख पहल है जो जनवरी 2016 में प्रारंभ की गई थी ताकि स्थायी आर्थिक विकास किया जा सके और रोज़गार के अवसर पैदा हो सकें। इस पहल के माध्यम से सरकार का उद्देश्य नवाचार और डिज़ाइन के द्वारा स्टार्ट-अप को सशक्त बनाना है।
  • इस स्टार्ट-अप इंडिया योजना के अंतर्गत सरकार कर तथा विकास में प्रोत्साहन देती है। अब तक विभाग द्वारा 18,151 स्टार्टअप्स को मान्यता दी गई है।

उद्योग संवर्द्धन और आतंरिक व्यापार विभाग

  • डीपीआईआईटी जो कि उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत आता है, ने पहले ही नवोदित उधमियों को बढ़ावा देने के लिये अन्य उपायों जैसे- करों में राहत का प्रस्ताव रखा था।
  • इस दस्तावेज़ का प्रमुख लक्ष्य 2024 तक देश में 50,000 नए स्टार्ट-अप्स स्थापित करने और 20 लाख प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर पैदा करना है।
  • इसके अन्य सुझावों में निहित लक्ष्यों के तहत 500 नए इनक्यूबेटर और एक्सेलेरेटर की स्थापना, शहरी स्थानीय निकायों में 100 नवाचार क्षेत्र एवं 10,000 करोड़ रुपए के फंड की व्यवस्था, इनक्यूबेटरों को निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility) के द्वारा मिलने वाली फंडिंग का विस्तार करना शामिल है।

स्रोत: ‘द इकोनॉमिक  टाइम्स’


भारतीय अर्थव्यवस्था

फिनटेक कंपनियों का विनियमन

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) कुछ फिनटेक क्षेत्रों, जो ई-वॉलेट और पेमेंट गेटवे सेवाओं पर केंद्रित हैं, को विनियमित करने की योजना बना रहा है।

प्रमुख बिंदु

नियमन क्यों आवश्यक है?

  • भारतीय फिनटेक कंपनियों को कई संस्थाओं जैसे भारतीय रिज़र्व बैंक, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण एवं बीमा नियामक तथा विकास प्राधिकरण द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
  • इस प्रकार कोई एकल नियामक निकाय न होने के कारण फिनटेक फर्मों के पास समर्पित दिशा-निर्देशों का एक विशिष्ट सेट नहीं है।
  • इसके फलस्वरूप नियमों में दोहराव या विरोधाभास की समस्या उत्पन्न होती है।
  • चूँकि, भारत की एक बड़ी आबादी इन फिनटेक कंपनियों द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाली वित्तीय सेवाओं जैसे पियर-टू-पियर लैंडिंग (Peer-to-Peer Lending), ई-वॉलेट, पेमेंट गेटवे आदि का लाभ उठाती है। अत: इस क्षेत्र का विनियमन आवश्यक हो गया है।
  • नियमन किये जाने के बाद ये संस्थाएँ भुगतान और निपटान अधिनियम, 2007 के तहत RBI के साथ पंजीकृत होंगी।

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2013 में CRISIL ने देश के 666 ज़िलों में में वित्तीय समावेशन के स्तर और प्रगति का अनुमान लगाने के लिये भारत का पहला वित्तीय समावेश सूचकांक Inclusix लॉन्च किया था। वर्ष 2019 में भारत के 666 ज़िले इस सूचकांक में से आधे 'औसत से ऊपर' की श्रेणी में शामिल हैं।
  • वर्ष 2017 में RBI के एक कार्यकारी समूह ने सिफारिश की कि भारत में फिनटेक के लिये नियामक सैंडबॉक्स स्थापित किया जाए जो फिनटेक स्टार्ट-अप की नई सेवाओं को बाज़ार में प्रवेश करने से पहले उसका परीक्षण और संबंधित जोखिमों का आकलन कर सकें।

सैंडबॉक्स एक बुनियादी ढाँचा है जो बैंक द्वारा फिनटेक कंपनी को उपलब्ध कराया जाता है ताकि उत्पादों या सेवाओं के तैयार होने के बाद एवं बाज़ार में उनके आने से पहले उनका परीक्षण किया जा सके।

  • RBI के कार्यदल ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसके आधार पर हाल ही में RBI ने इससे जुड़ा एक मसौदा जारी किया ताकि फिनटेक कंपनियों को उनके उत्पादों और सेवाओं के सैंडबॉक्स में परीक्षण में सक्षम बनाया जा सके।

ज्ञातव्य है कि अब तक फिनटेक के किसी अन्य क्षेत्र में बहुत अधिक विनियमन नहीं हुआ है।

क्या हैं पी-2-पी लैंडिंग फर्म?

  • पी-2-पी लैंडिंग एक ऐसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो असुरक्षित ऋण को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से ऋणदाताओं (lenders) और ऋण लेने वालों (borrowers) के मध्य सामंजस्य स्थापित करता है।
  • पी-2-पी लैंडिंग फर्में उन क्षेत्रों में वित्त के वैकल्पिक रूपों को बढ़ावा देती हैं, जहाँ औपचारिक वित्त का पहुँचना संभव नहीं होता है।
  • कम परिचालन लागत तथा परंपरागत ऋणदाता चैनलों के साथ बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा के कारण इनमें लैंडिंग दरों को कम करने की भी क्षमता होती है।
  • रिज़र्व बैंक के अनुसार, पी-2-पी लैंडिंग 'क्राउडफंडिंग' (crowdfunding) का एक प्रकार है जिसका उपयोग ऐसे ऋणों की वसूली के लिये किया जाता है, जिनका भुगतान व्याज के साथ करना हो।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI)

  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार 12 अप्रैल, 1992 को हुई थी।
  • इसका मुख्यालय मुंबई में है।
  • इसके मुख्य कार्य हैं-
  • प्रतिभूतियों (Securities) में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण करना।
  • प्रतिभूति बाज़ार (Securities Market) के विकास का उन्नयन करना तथा उसे विनियमित करना और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का प्रावधान करना।

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI)

  • RBI की स्थापना हिल्टन यंग आयोग की सिफारिशों के आधार पर की गई थी। इसकी स्थापना RBI अधिनियम, 1934 में की गई थी।
  • RBI का मुख्यालय शुरू में कोलकाता में स्थापित किया गया था जिसे 1937 में स्थायी रूप से मुंबई में स्थानांतरित कर दिया गया।
  • शुरुआत में RBI निजी स्वामित्व वाला बैंक था। अगस्त 1947 को देश को आज़ादी मिली और 1949 में आरबीआई का राष्ट्रीयकरण हुआ। राष्ट्रीयकरण के बाद से इस पर भारत सरकार का पूर्ण स्वामित्व है।
  • देश के चार महानगरों- मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में आरबीआई के स्थानीय बोर्ड हैं।
  • RBI के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं:
  • केंद्रीय बैंकिंग का कार्य।
  • नोटों को जारी करने का एकाधिकार।
  • करेंसी जारी करने के साथ उसका विनियमन।
  • विदेशी मुद्रा भंडार का संरक्षक।
  • विदेशी व्यापार और भुगतान को सुविधाजनक बनाना तथा भारत में विदेशी मुद्रा बाज़ार का विकास करना एवं उसे बनाए रखना।
  • मौद्रिक नीति तैयार करना, उसे लागू करवाना और उसकी निगरानी करना।
  • विकास के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना।
  • सरकार का बैंकर अर्थात् यह केंद्र और राज्य सरकारों के लिये व्यापारी बैंक की भूमिका अदा करता है।
  • वाणिज्यिक बैंकों के लिये बैंकर और उनके लिये अंतिम ऋणदाता।
  • अनुसूचित बैंकों के बैंक खाते रखना।
  • गैर-मौद्रिक कार्यों के तहत बैंकों को लाइसेंस देने के साथ बैंकों की निगरानी करना।
  • बैंकिंग परिचालन के लिये मानदंड निर्धारित करना जिसके तहत देश की बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली काम करती है।
  • यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर काम करता है और भारत की सदस्यता का प्रतिनिधित्व करता है।

भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (TRAI)

  • भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण की स्थापना 20 फरवरी, 1997 को हुई।
  • यह एक वैधानिक संस्था है जो भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण अधिनियम, 1997 की धारा 3 के तहत स्थापित हुई है।
  • इसमें एक अध्यक्ष होता है एवं अधिकतम दो पूर्णकालिक एवं दो अंशकालिक सदस्य होते हैं।
  • यह भारतमें दूरसंचार सेवाएँ उपलब्ध करवानेवाली कंपनियों की नियामक संस्था है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।

बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDA)

  • भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) वैधानिक निकाय है।
  • इसका गठन बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 के अंतर्गत किया गया था।
  • यह एक स्वायत्त संस्था है।
  • यह एक 10 सदस्यीय निकाय है जिसमें एक अध्यक्ष, पाँच पूर्णकालिक और चार अंशकालिक सदस्य होते हैं।
  • इसका कार्य भारत में बीमा और बीमा उद्योगों को विनियमित करना तथा उन्हें बढ़ावा देना है।
  • इसका मुख्यालय हैदराबाद में है।

स्रोत: लाइवमिंट


भारतीय अर्थव्यवस्था

अफ्रीकी देशों के साथ व्‍यापार बढ़ाने के लिये पहल

चर्चा में क्यों?

3 एवं 6 मई, 2019 को भारत सरकार के वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय और 11 अफ्रीकी देशों के भारतीय कारोबारी समुदाय के बीच डिजिटल वीडियो कॉन्फ्रेंस (Digital Video Conference-DVC) के ज़रिये संवाद स्थापित किया गया। भारतीय समुदाय के साथ संवाद का आयोजन तंज़ानिया, युगांडा, केन्या, जाम्बिया, मॉरीशस, नाइजीरिया, मोज़ाम्बिक, घाना, दक्षिण अफ्रीका, बोत्सवाना और मेडागास्कर में किया गया।

उद्देश्य

  • इस पहल का उद्देश्‍य अफ्रीका में रह रहे भारतीय समुदाय के साथ प्रभावशाली सहभागिता सुनिश्चित करना है, ताकि भारत एवं अफ्रीका के बीच व्‍यापार संबंधों को और अधिक प्रगाढ़ तथा सुदृढ़ किया जा सके।

भारत और अफ्रीकी क्षेत्र के मध्य व्यापार

  • वर्ष 2017-18 के दौरान अफ्रीकी क्षेत्र के साथ भारत का कुल व्‍यापार 62.69 अरब अमेरिकी डॉलर का हुआ, जो पूरे विश्व के साथ भारत के कुल व्‍यापार का 8.15 प्रतिशत है।
  • वर्ष 2017-18 में भारत से पूरे विश्व को किये गए कुल निर्यात में से 8.21 प्रतिशत हिस्‍सेदारी भारत से अफ्रीकी देशों को किये गए निर्यात की रही। वर्ष 2017-18 में पूरे विश्व से भारत में हुए कुल आयात में अफ्रीकी क्षेत्र की हिस्‍सेदारी 8.12 प्रतिशत आँकी गई।

भारत के लिये अफ्रीका का महत्त्व

  • दुनिया का सबसे बड़ा भू-क्षेत्र, 54 देश, भारत के लगभग समतुल्‍य आबादी, विशाल खनिज संसाधन, तेल संपदा, युवा आबादी, घटती गरीबी और वस्‍तुओं की बढ़ती खपत वाले अफ्रीकी क्षेत्र में भारत के लिये मौजूदा समय में व्‍यापक अवसर हैं।
  • अत: अफ्रीका में बाज़ार प्रवेश, स्थिर बाजार पहुँच, उद्यमिता और परिवहन, दूरसंचार, पर्यटन, वित्‍तीय सेवाओं, अचल संपत्ति (रियल एस्‍टेट) एवं निर्माण क्षेत्रों में निवेश से जुड़े नए बिज़नेस मॉडलों की भारी मांग है।
  • अफ्रीका हमारे ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने में मदद कर सकता है, जो हमारी एकीकृत ऊर्जा नीति के घोषित उद्देश्यों में से एक है।
  • अफ्रीका में सोने और हीरे सहित मूल्यवान खनिजों, धातुओं का समृद्ध भंडार भी है। अफ्रीका भारतीय निवेश के लिये बेहतर स्थान है।
  • अफ्रीका भारत की सॉफ्ट और हार्ड पावर क्षमता दोनों को प्रदर्शित करने हेतु इसे स्थान प्रदान करता है।
  • यूनाइटेड नेशन पीस कीपिंग ऑपरेशन के माध्यम से अफ्रीकी देशों की शांति और स्थिरता में भारत सक्रिय रूप से शामिल रहा है।
  • अफ्रीकी देशों के साथ भारत की भागीदारी हमेशा द्विपक्षीय रही है। उदाहरण के तौर पर भारत-दक्षिण अफ्रीका द्विपक्षीय संबंध को देखा जा सकता है। साथ ही जिन विभिन्न व्यापारिक गुटों के साथ साझेदारी के लिये प्रयास किया जाना चाहिये उनमें COMESA, ECOWAS, ECCAS, अफ्रीका के प्रमुख मुक्त व्यापार क्षेत्र हैं।

इन 11 देशों में भारतीय कारोबारी समुदाय ने जिन प्रमुख मुद्दों पर प्रकाश डाला वे निम्‍नलिखित हैं –

  • ऋण प्रणाली को बेहतर बनाने के साथ-साथ किफायती एवं प्रतिस्पर्द्धी वित्तपोषण के लिये एक उपयुक्‍त सुविधा विकसित करना।
  • अफ्रीका में भारतीय बैंकों/वित्‍तीय संस्‍थानों की स्‍थापना करना।
  • दोनों क्षेत्रों के बीच व्‍यापार को बढ़ावा देने के लिये क्रेता ऋण सुविधा बढ़ाना।
  • दोनों ही पक्ष वीज़ा नीतियों की समीक्षा करें एवं इन्‍हें उदार बनाएँ।
  • भारत और अफ्रीकी देशों के बीच सीधी उड़ानों की ज़रूरत।
  • क्षेत्र में डॉलर की किल्‍लत की समस्‍या सुलझाने के लिये रुपए में व्‍यापार की संभावनाएँ तलाशना।
  • द्विपक्षीय व्‍यापार बढ़ाने के लिये आवश्‍यक मिलान सुनिश्चित करने हेतु दोनों क्षेत्रों में क्रेता-आपूर्तिकर्त्ताओं का साझा डेटाबेस तैयार किया जाना।
  • सुदृ़ढ व्‍यापार विवाद निपटान प्रणाली विकसित करना।
  • अफ्रीका में और ज़्यादा एवं सुव्‍यवस्थित देश/सेक्‍टर विशिष्‍ट व्‍यापार प्रदर्शनियाँ आयोजित किया जाना।
  • अफ्रीका में फिक्‍की अथवा सीआईआई के कंट्री चैप्‍टर की स्‍थापना करना।
  • स्‍थानीय कारोबारी एवं निवेश माहौल से परिचित होने के लिये नीति निर्माताओं, वाणिज्‍य मंडलों और निवेशकों के दौरे बार-बार आयोजित करना, ताकि अच्‍छी तरह से सोच-समझकर सही निर्णय लिये जा सकें।

अफ्रीका में भारतीय समुदाय की भूमिका

  • अफ्रीका में रह रहा भारतीय समुदाय सभी क्षेत्रों जैसे कि राजनीति, व्‍यवसाय और शिक्षा में अहम भूमिका निभा रहा है। नवीनतम उपलब्‍ध अनुमानों के अनुसार, अफ्रीकी देशों में भारतीय समुदाय की मौजूदा संख्‍या 2.8 मिलियन है, जिनमें से 2.5 मिलियन पी.आई.ओ. (भारतीय मूल के व्‍यक्ति) हैं, जबकि शेष 220967 अनिवासी भारतीय (एन.आर.आई.) हैं (प्रवासी भारतीय मामलों का मंत्रालय, 2016)। दुनिया भर में रह रहे अनिवासी भारतीयों में से 9.11 प्रतिशत अफ्रीका में रहते हैं।
  • अफ्रीका में रह रहा संपन्‍न एवं विशाल भारतीय समुदाय ही इस महाद्वीप में भारत की अंतर्निहित ताकत है। भारतीय समुदाय ने अफ्रीकी महाद्वीप की राजनीति‍क, आर्थिक और सामाजिक हस्तियों के साथ मज़बूत संबंध स्‍थापित कर रखे हैं।
  • भारत एवं अफ्रीका के बीच व्‍यापार व निवेश को बढ़ावा देने हेतु एक उपयुक्‍त रणनीति तैयार करने के लिये अफ्रीका के भारतीय समुदाय से और ज्‍यादा लाभ उठाना होगा, ताकि इस रणनीति को कारगर बनाना सुनिश्चित किया जा सके। भारतीय कारोबारी समुदाय से सुझाव भी मांगे गए थे।

स्रोत- पीआईबी


विविध

टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाएँ

चर्चा में क्यों?

नई दिल्ली में आयोजित ट्रेड विंड्स सम्मेलन में अमेरिकी वाणिज्य सचिव ने भारत पर आरोप लगाते हुए कहा कि टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं (Tariff and Non-Tariff Barriers) तथा बहु स्तरीय नियमों के कारण भारत में विदेशी कंपनियाँ नुकसान उठा रही हैं।

प्रमुख बिंदु

अमेरिकी वाणिज्य सचिव के अनुसार,

  • भारत पहले से ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और 2030 तक मध्यम वर्ग के तेज़ी से विकास के कारण यह दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता बाज़ार बन जाएगा।
  • इसके बावजूद अत्यधिक टैरिफ एवं गैर-टैरिफ बाधाओं के कारण अमेरिका के निर्यात का केवल 13वाँ हिस्सा भारत आता है, जबकि भारत के निर्यात का सबसे बड़ा हिस्सा अमेरिका जाता है।
  • अमेरिकी प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञ भारत की विकासात्मक ज़रूरतों को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं किंतु अमेरिकी कंपनियों को भारत में कई बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
  • इनमें टैरिफ और गैर-टैरिफ दोनों बाधाएँ शामिल हैं, साथ ही विदेशी कंपनियों को नुकसान पहुँचाने वाले कई नियम भी शामिल हैं।
  • भारत की औसत टैरिफ दर 13.8% है जो विश्व की किसी भी प्रमुख अर्थव्यवस्था की तुलना में सबसे अधिक है। उदाहरण के तौर पर ऑटोमोबाइल पर 60% टैरिफ; मोटरसाइकिल पर 50%; और मादक पेय पदार्थों पर 150% टैरिफ है।
  • अमेरिका का लक्ष्य भारत में अमेरिकी कंपनियों के लिये बाधाओं को खत्म करना है। इन बाधाओं में डेटा-स्थानीयकरण प्रतिबंध भी शामिल है जो वास्तव में डेटा सुरक्षा को कमज़ोर करते हैं और व्यापार की लागत में वृद्धि करते हैं।
  • अन्य बाधाओं में चिकित्सा उपकरणों और फार्मास्यूटिकल्स पर मूल्य नियंत्रण और इलेक्ट्रॉनिक्स तथा दूरसंचार उत्पादों पर प्रतिबंधात्मक शुल्क शामिल हैं।

ज्ञातव्य है कि ट्रेड विंड्स कॉन्फ्रेंस अमेरिका के नेतृत्व में होने वाला वार्षिक व्यापार सम्मेलन है।

टैरिफ

यह राष्ट्रों के मध्य होने वाले व्यापारिक आयात या निर्यात पर लगने वाला सीमा शुल्क है।

यह व्यापार के क्षेत्र में बढ़ती वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा से घरेलू उद्योग को सुरक्षित रखने हेतु विदेशी उत्पादों पर लगाया जाने वाला कर है।

गैर-टैरिफ बाधाएँ

वे सभी शुल्क जो कि आयात या निर्यात शुल्क नहीं है, गैर-टैरिफ की श्रेणी में आते हैं।

उदाहरण के तौर पर आयात कोटा, सब्सिडी, तकनीकी बाधाएँ या आयात लाइसेंसिंग, सीमा शुल्क पर माल के मूल्यांकन के लिये नियम, पूर्व शिपमेंट निरीक्षण इत्यादि।

स्रोत: द हिंदू


विविध

ईरान से इस्पात आयात को लेकर उद्योग की चिंता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय इस्पात संघ (Indian Steel Association-ISA) ने ईरान से इस्पात आयात के संबंध में भारतीय बैंक संघ (Indian Banks Association-IBA) के समक्ष चिंता व्यक्त की है।

प्रमुख बिंदु

  • ISA के अनुसार, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के ज़रिये ईरान से बढ़ता इस्पात आयात बहुत कम दामों पर भारत पहुँच रहा है, जो कि उद्योग जगत के लिये चिंता की बात है।
  • चीन की तुलना में ऐसी सामग्री की कीमतों का अंतर करीब 5,000 रुपए प्रति टन है।
  • ISA के अनुसार, ईरान से भारत में इस्पात के आयात में CAATSA (Countering America's Adversaries Through Sanctions Act) के तहत गंभीर प्रावधान वाले अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन किया जा रहा है। बिज़नेस स्टैंडर्ड समाचार-पत्र के अनुसार, वित्त वर्ष 2017-18 में ईरान से भारत में इस्पात के आयात में 66 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई थी जबकि, वित्त वर्ष 2018-19 में ईरान ने शून्य निर्यात दर्ज किया।

क्या है ISA की चिंता का कारण?

  • बहुत कम दामों पर ईरान से गैर-कानूनी आयात होने के कारण घरेलू इस्पात विनिर्माताओं को काफी नुकसान होगा, विशेषकर ऐसे समय में जब घरेलू मांग में नरमी बनी हुई है। यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो भारत डंपिंग के लिये एक आसान विकल्प बन जाएगा। इसका एक वज़ह यह है कि अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण अन्य सभी बाज़ार ईरान के निर्यात के लिये पहले ही बंद हो चुके हैं। ऐसे में ISA की चिंता वाज़िब है।

इंडियन स्टील एसोसिएशन
(Indian Steel Association)

  • भारतीय लौह और इस्पात उद्योग के एक मंच के रूप में इंडियन स्टील एसोसिएशन सभी लागू कानूनों और विनियमों के अनुपालन में भारत के भीतर तथा बाहर सरकार एवं अन्य हितधारकों के साथ मुद्दों, चिंताओं और चुनौतियों के समाधान की सुविधा प्रदान करेगा।

ईरान के परिदृश्य में बात करें तो

  •  ईरान दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) को लगभग 30 प्रतिशत इस्पात का निर्यात करता है।
  • पिछले आठ वर्षों में इसके अधिशेष में 1.2 करोड़ टन या कुल क्षमता में 36 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है जबकि प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत 14 प्रतिशत तक घटकर 240 किलोग्राम रह गई है। दूसरी ओर निर्यात की मात्रा वर्ष 2011 के दो प्रतिशत की तुलना में बढ़कर 37 प्रतिशत हो गई है।

भारतीय बैंक संघ

  • भारतीय बैंक संघ (Indian Banks' Association-IBA) की स्थापना 26 सितंबर, 1946 को 22 सदस्यों के साथ की गई थी। अप्रैल 2018 तक इस संघ में कुल 249 सदस्य हैं।

विज़न

  • इसका उद्देश्य सार्वजनिक रूप से सुसंगत तरीके से एक स्वस्थ, व्यावसायिक और दूरंदेशी, बैंकिंग और वित्तीय सेवा उद्योग के विकास के लिये लगातार काम करना है।

देश में बढ़ेगी इस्पात की मांग

  • कुछ समय पहले आई विश्व इस्पात संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में इस्पात की मांग में मौजूदा और अगले वर्ष के दौरान सात प्रतिशत से अधिक का इज़ाफा होने की संभावना है।
  • शॉर्ट रेंज ऑउटलुक अप्रैल-2019 (Short Range Outlook-SRO) नामक शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2019 में वैश्विक इस्पात मांग 173.5 करोड़ टन तक पहुँच सकती है जो वर्ष 2018 से 1.3 प्रतिशत अधिक है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में यह मांग एक प्रतिशत बढ़कर 175.2 करोड़ टन तक पहुँचने का अनुमान है।
  • विश्व इस्पात संघ के अनुसार, वर्ष 2018 के दौरान विकसित अर्थव्यवस्थाओं में इस्पात की मांग में 1.8 प्रतिशत तक का इज़ाफा हुआ है जबकि वर्ष 2017 में 3.1 प्रतिशत वृद्धि हुई थी।
  • वर्ष 2019 के दौरान मांग में 0.3 प्रतिशत और 2020 में 0.7 प्रतिशत की गिरावट आने की संभावना है। यह व्यापार की खराब स्थिति को दर्शाता है।
  • चीन को छोड़कर उभरती अर्थव्यवस्थाओं में इस्पात की मांग वर्ष 2019 और वर्ष 2020 में क्रमश: 2.9 प्रतिशत और 4.6 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है।
  • भारत के संदर्भ में बात करें तो व्यापक स्तर पर बढ़ती बुनियादी ढाँचागत परियोजनाओं की मदद से वर्ष 2019 और वर्ष 2020 दोनों ही वर्षों में इस्पात की मांग में सात प्रतिशत से भी अधिक का इज़ाफा होने की संभावना है।
  • एशिया में चीन को छोड़कर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में मांग वर्ष 2019 और वर्ष 2020 के दौरान क्रमश: 6.5 प्रतिशत और 6.4 प्रतिशत बढऩे की उम्मीद है जिससे यह क्षेत्र वैश्विक इस्पात उद्योग में सबसे तेज़ी से बढऩे वाला क्षेत्र बन जाएगा।

विश्व इस्पात संघ
(World Steel Association)

  • विश्व इस्पात संघ दुनिया के सबसे बड़े और सबसे गतिशील उद्योग संघों में से एक है, इसके सदस्य विश्व के प्रत्येक प्रमुख इस्पात उत्पादक देशों में हैं।
  • यह इस्पात उत्पादकों, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय इस्पात उद्योग संघों एवं इस्पात अनुसंधान संस्थानों का प्रतिनिधित्त्व करता है।
  • इसके सदस्य वैश्विक इस्पात उत्पादन के लगभग 85% का प्रतिनिधित्त्व करते हैं। एसआरओ (Short Range Outlook-SRO) में प्रेजेंटेशन, अनुमान और अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारियों का समावेशन किया जाता है ताकि भविष्यगामी दृष्टिकोण प्राप्त किया जा सके।

स्रोत- बिज़नेस स्टैंडर्ड


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (08 May)

  • भारतीय नौसेना के लिये मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) द्वारा तैयार की गई स्कॉर्पीन वर्ग की चौथी पनडुब्बी वेला को 6 मई को लॉन्च किया गया। अब इस पनडुब्बी का बंदरगाह और समुद्र में कठिन परीक्षण और जाँच की जाएगी, उसके बाद ही इसे भारतीय नौसेना को सौंपा जाएगा। गौरतलब है कि स्कॉर्पीन वर्ग की छह पनडुब्बियों के निर्माण और तकनीक हस्तांतरण के लिये फ्राँस की कंपनी नेवल ग्रुप को सहयोगी कंपनी के रूप में ठेका दिया गया है और इसका निर्माण मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड कर रही है। इस वर्ग की पनडुब्बियाँ किसी आधुनिक पनडुब्बी के सभी कार्य करने में सक्षम हैं, जिसमें एंटी-सर्फेस और एंटी-सबमरीन युद्ध शामिल है।
  • जापान की एक एयरोस्पेस स्टार्टअप कंपनी ने अंतरिक्ष में एक छोटे रॉकेट का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया है। इंटरस्टेलर टेक्नोलॉजी कारपोरेशन के मानवरहित मोमो-3 रॉकेट ने प्रशांत महासागर में गिरने से पहले 100 किलोमीटर से अधिक की ऊँचाई तय की। 10 मीटर लंबे और 50 सेंटीमीटर व्यास वाले इस रॉकेट का वज़न लगभग एक टन है और हल्के पेलोड (अंतरिक्ष उपकरण) को कक्षा में छोड़ने में सक्षम है। जापान में लाइवडोर कंपनी के पूर्व अध्यक्ष ताकाफुमी होरी द्वारा 2013 में स्थापित इस कंपनी का उद्देश्य उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने के लिये कम लागत वाले व्यावसायिक रॉकेट बनाना है। वर्ष 2017 एवं 2018 में दो असफलताओं के बाद कंपनी को यह सफलता मिली। यह वाह्य अतंरिक्ष तक पहुँचने वाला जापान का पहला निजी तौर पर विकसित रॉकेट है।
  • रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने संप्रभु इंटरनेट कानून (Digital Sovereignty Bill) पर हस्ताक्षर कर दिये हैं। इसके कानून बन जाने के बाद विदेशी सर्वरों से आने वाले इंटरनेट ट्रैफिक को सरकारी सिस्टम से गुज़रना होगा। इसके तहत रूसी अधिकारियों का इंटरनेट शेष देश से अलग होगा। यह नया कानून रूस के ऑनलाइन नेटवर्क की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के मद्देनज़र बनाया गया है। यह कानून इस वर्ष नवंबर से प्रभावी होगा। इसमें इंटरनेट पर निगरानी रखने के लिये अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा और रूसी इंटरनेट ट्रैफिक से विदेशी सर्वर को दूर रखा जाएगा। इसमें यह व्यवस्था की जाएगी कि अन्य देश इसे बाधित न कर सकें। रूस में इंटरनेट का नियंत्रण FSB सिक्योरिटी सर्विस और टेलीकॉम एंड मीडिया मॉनीटरिंग एजेंसी रोसकोमनाड़ज़ोर के पास है। जिन पर मनमाने ढंग से इंटरनेट से कंटेंट को गायब करने के आरोप है। रूस में हालिया वर्षों में डेलीमोशन वीडियो प्लेटफॉर्म, लिंक्डइन ऑनलाइन सोशल नेटवर्किंग साइट और टेलीग्राम आदि के कंटेंट को ब्लॉक करने की घटनाएँ सामने आई हैं।
  • IIT गांधीनगर के शोधकर्त्ताओं ने एक ऐसा मॉडल तैयार किया है जिससे गर्मी का मौसम आने से तीन महीने पहले ही जलाशय में भंडारण की शुरुआती स्थिति का पता चल जाता है। इस मॉडल के लिये देश के 91 प्रमुख जलाशयों के जलग्राही क्षेत्रों से आँकड़े एकत्र करके वर्षा, वायु और तापमान जैसे आँकड़ों का भी विश्लेषण किया गया। इसके बाद इन सभी के आधार पर तीन महीने पहले जलाशय भंडारण संबंधी विसंगतियों का पूर्वानुमान लगा सकने वाला एक सांख्यिकीय मॉडल विकसित किया गया। दैनिक वर्षा, अधिकतम और न्यूनतम तापमान के आँकड़े भारतीय मौसम विज्ञान विभाग और साप्ताहिक जलाशय भंडारण के आँकड़े India-WRIS के डेटाबेस से लिये गए।
  • विश्व कप क्रिकेट के 12वें संस्करण के लिये श्रीलंका ने अपनी नई किट जारी की है। इस किट की खासियत टीम के खिलाड़ियों की जर्सी है, जिसमें इस बार शेर की आकृति और गहरे नीले रंग की जगह हल्का पीला और नीले रंग का शेड है और कछुए की आकृति बनी है। दरअसल इस जर्सी को चुनकर श्रीलंकाई टीम ने एक विशेष संदेश देने का प्रयास किया है। यह जर्सी समुद्र में फेंक दी गई प्लास्टिक को रिसाइकिल करके बनाई गई है। ध्यातव्य है कि समुद्र में रोज़ाना प्लास्टिक गिरने से समुद्री जीवों पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। यदि इस प्लास्टिक को रिसाइकिल न किया जाए तो यह लंबे समय तक ऐसे ही पड़ी रहती है। जर्सी पर बनी कछुए की आकृति उन समुद्री जीवों और प्रजातियों का प्रतिनिधित्व करती है जो प्लास्टिक उत्पादों के कारण संकटग्रस्त स्थिति में पहुँच गए हैं। इसीलिये श्रीलंका ने इस जर्सी को बनाकर दुनिया को ज़िम्मेदारी के साथ प्लास्टिक का इस्तेमाल करने का संदेश दिया है।

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