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डेली न्यूज़

  • 08 Apr, 2019
  • 11 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

पेरियार नदी का जल काले रंग में बदला

चर्चा में क्यों?

कोच्चि स्थित पथलम नियंत्रक-सह-पुल (Pathalam Regulator-cum-bridge) के रंग में परिवर्तन दिखाई दे रहा है। जबकि पेरियार नदी के पानी का रंग काला पड़ चुका है जो पहले दूधिया रंग का हुआ करता था।

  • प्रमुख बिंदु
  • रंग में परिवर्तन जो पहली बार सुबह के घंटों में देखा गया था दोपहर 2 बजे तक जारी रहा।
  • चेतावनी के बावजूद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PCB) के अधिकारियों ने इस मामले पर अधिक ध्यान नहीं दिया है।
  • कोच्चि शहर और आस-पास के इलाकों को पीने का पानी मुहैया कराने वाली नदी प्रणाली की बदहाली यहाँ के निवासियों के लिये चिंता का कारण बनी हुई है।
  • पर्यावरण कार्यकर्त्ता नदी के प्रदूषण के खिलाफ प्रदर्शन कर इसके संरक्षण के लिये कदम उठा रहे हैं।

सुपोषण (Eutrophication)

  • पर्यावरण निगरानी केंद्र के पर्यावरण अभियंता के अनुसार, सुपोषण के परिणामस्वरूप जल की खराब गुणवत्ता के कारण जल के रंग में बदलाव हुआ है।
  • जब अत्यधिक पोषक तत्त्व वाटरबॉडी तक पहुँच जाते हैं तो शैवालों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि को बढ़ावा मिलता है।
  • कुछ दिनों बाद शैवालों की मृत्यु हो जाती है और वे नष्ट हो जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पानी में दुर्गंध बढ़ जाती है और रंग में परिवर्तन दिखाई देने लगता है।
  • नदी प्रणाली के कुछ हिस्सों में पानी स्थिर हो गया है। नदी प्रणाली में जल का बहाव कम होने से पानी की गुणवत्ता में गिरावट आई है।
  • आस-पास के कस्बों से कूड़ा कचरा भारी मात्रा में नियमित रूप से नदी प्रणाली तक पहुँच रहा है।
  • औद्योगिक इकाइयों के पास के क्षेत्रों की नियमित रूप से निगरानी किये जाने के साथ पानी की गुणवत्ता के मापदंडों में किसी भी बदलाव का तुरंत पता लगाया जाना चाहिये।

पेरियार नदी

  • पेरियार नदी केरल में पश्चिमी घाट से निकलकर पश्चिम में प्रवाहित होती हुई अरब सागर में गिरती है। यह तीव्र ढाल में प्रवाहित होने के कारण समानांतर प्रतिरूप का निर्माण करती है।
  • भारत के केरल राज्य की यह सबसे लंबी नदी है, जिसकी लंबाई 244 किमी. है।
  • इस पर 'पेरियार जलविद्युत परियोजना' स्थित है। इस नदी पर बना इडुक्की बाँध केरल प्रांत की विद्युत आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है।

स्रोत : द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

MCA-21 परियोजना में होगा सुधार

चर्चा में क्यों?

आने वाले दिनों में महत्त्वपूर्ण पोर्टल MCA-21 (Ministry of Company Affairs- 21) के तीसरे चरण की शुरुआत के दौरान कॉर्पोरेट अफेयर्स मंत्रालय इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence- AI) की शुरुआत करेगा।

प्रमुख बिंदु

  • हाल ही में भारतीय उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Industry- CII) के वार्षिक सत्र 2019 का आयोजन राजधानी दिल्ली में किया गया।
  • इस सत्र के अवसर पर कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने कंपनी अधिनियम के अंतर्गत MCA-21 परियोजना में विभिन्न दस्तावेजों को इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखने की अनुमति दी है।
  • MCA-21 पोर्टल सभी हितधारकों के लिये सूचना के प्रसार हेतु इलेक्ट्रॉनिक आधार प्रदान करता है, जिसमें नियामक, कॉर्पोरेट और निवेशक शामिल हैं।
  • टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ द्वारा कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय की ई-गवर्नेंस पहल के पहले चरण को लागू किया गया था।
  • दूसरा चरण इंफोसिस द्वारा जनवरी 2013 से जुलाई 2021 की अवधि के लिये लागू किया गया है।

MCA 21
Ministry of Company Affairs- 21

  • MCA 21 कंपनी मामलों के मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा कार्यान्वित एक ‘पाथ-ब्रेकिंग प्रोजेक्ट’ है।
  • नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्मार्ट गवर्नमेंट (NISG) ने मंत्रालय को परियोजना की अवधारणा और डिज़ाइन, बोली प्रक्रिया प्रबंधन, परियोजना कार्यान्वयन एवं समायोजन में सहायता की है।
  • वर्तमान में NISG परियोजना के लिये कार्यक्रम प्रबंधन इकाई की स्थापना के माध्यम से परियोजना के संचालन और रखरखाव में MCA की सहायता कर रहा है।

नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्मार्ट गवर्नमेंट (NISG)

  • NISG, सूचना प्रौद्योगिकी तथा सॉफ्टवेयर के विकास के लिये राष्ट्रीय कार्यबल की सिफारिशों के तहत बनाई गई नॉट-फॉर-प्रॉफ़िट कंपनी सेटअप है।
  • इसकी स्थापना 2002 में हुई।
  • इसमें 51% इक्विटी निजी क्षेत्र और 49% सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा योगदान दिया गया है।
  • NASSCOM, भारत सरकार और आंध्र प्रदेश सरकार ILFS (Infrastructure Leasing & Financial Services Limited) के साथ इसके मुख्य प्रवर्तक हैं,साथ ही छत्तीसगढ़ सरकार, मेघालय सरकार और विजाग नगर निगम इसके अन्य हितधारक हैं।

स्रोत- बिज़नेस लाइन (द हिंदू)


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (08 April)

  • अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) के वाराणसी स्थित केंद्र ने कम पानी में अधिक उपज देने वाले धान की नई प्रजाति का विकास किया है। DRR-44 नामक धान की यह किस्म जल्दी ही किसानों को उपलब्ध कराई जाएगी क्योंकि इसके लिये नेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट, कटक की स्वीकृति मिल चुकी है। सूखे की स्थिति में भी धान की इस नई किस्म से कुछ-न-कुछ (प्रति एकड़ ढाई से तीन टन) फसल ली जा सकेगी। आपको बता दें कि IRRI के इस केंद्र का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले वर्ष 29 दिसंबर को किया था। यह उत्तर प्रदेश का ऐसा एकमात्र केंद्र है जिसे IRRI कृषि मंत्रालय के सहयोग से संचालित कर रहा है।
  • मध्य प्रदेश सरकार ने देश का पहला हीरा संग्रहालय छतरपुर ज़िले के खजुराहो में बनाने का फैसला किया है। इस संग्रहालय में पन्ना की खदानों से मिले 323 कैरेट के हीरे रखे जाएंगे। इस संग्रहालय में एक नीलामी केंद्र भी बनाया जाएगा, जिसमें पन्ना की हीरा खदानों से निकले हीरों की नीलामी की जाएगी। इसके लिये पन्ना ज़िले के नीलामी केंद्र को इस संग्रहालय में शिफ्ट किया जा सकता है। इस संग्रहालय के निर्माण के लिये नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (NMDC) भी आर्थिक सहायता देने को तैयार हो गया है। आपको बता दें कि पन्ना ज़िले के मझगवां खदान ही भारत का एकमात्र संगठित हीरा उपक्रम है।
  • अफ्रीकी देश लीबिया में अचानक बिगड़े हालात की वज़ह से भारत ने शांति सेना में शामिल CRPF के 15 जवानों को देश वापस बुला लिया है। ट्यूनीशिया स्थित भारतीय दूतावास ने इसके लिये पहल की थी। गौरतलब है कि ट्यूनीशिया स्थित भारतीय दूतावास के पास ही लीबिया का भी प्रभार है। गौरतलब है कि लीबिया के सशस्त्र बागी नेता जनरल खलीफा हफ्फार की संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस से हुई मुलाकात के बेनतीजा रहने के बागी सेनाओं को राजधानी त्रिपोली की ओर कूच किया। त्रिपोली में फिलहाल लीबिया की वैश्विक मान्यता प्राप्त सरकार काम कर रही है।
  • पेरू में रॉयल बेल्जियन संस्थान के वैज्ञानिकों को प्राचीन चार पैरों वाली व्हेल के जीवाश्म मिले हैं। इस व्हेल के पैर जालीदार होने के खुरयुक्त थे। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि लगभग 4.3 करोड़ साल पहले पाई जाने वाली यह व्हेल ज़मीन पर चलती थी और समुद्र में भी तैर लेती थी यानी कि यह उभयचर थी। इस अनोखी व्हेल के बारे में और भी कई रोचक जानकारियाँ मिली हैं। इससे दुनियाभर में व्हेल के फैलाव और विकास के बारे में जानने में मदद मिलेगी।
  • ऑस्ट्रेलिया के आर्क सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर कोरल रीफ स्टडीज़ के शोधकर्त्ताओं ने ग्रेट बैरियर रीफ पर एक व्यापक अध्ययन किया है। इस अध्ययन से पता चलता है कि 2014-15 में मूंगे की इन चट्टानों को लगातार दो चक्रवातों का सामना करना पड़ा था, जिसकी वज़ह से यहाँ की लगभग 80% वयस्क मूंगे की चट्टानें नष्ट हो गई थीं, लेकिन नई बनने वाली चट्टानों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। लेकिन लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन और बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग से इन चट्टानों के जमने/बनने का क्रम प्रभावित होने लगा है। गौरतलब है कि विश्व-प्रसिद्ध ग्रेट बैरियर रीफ में 1998 से अब तक विरंजन (Bleaching) के चार दौर आ चुके हैं। ग्रेट बैरियर रीफ ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर लगभग 1.33 लाख वर्ग मील क्षेत्र फैली हैं और इससे होने वाले पर्यटन की वज़ह से ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था में वार्षिक लगभग 31 हज़ार करोड़ रुपए का योगदान होता है।

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