डेली न्यूज़ (08 Jan, 2020)



राज्य एवं अल्पसंख्यक संस्थान

प्रीलिम्स के लिये:

अल्पसंख्यक संस्थानों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

मेन्स के लिये:

अल्पसंख्यक संस्थानों के विनियमन से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 की संवैधानिक वैधता को जारी रखते हुए अल्पसंख्यक संस्थानों के विनियमन से संबंधित निर्णय दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें इस अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया गया था।
  • इस अधिनियम में कहा गया है कि अल्पसंख्यक संस्थानों के रूप में मान्यता प्राप्त तथा सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों में शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया एक आयोग द्वारा की जाएगी, जिसका निर्णय बाध्यकारी होगा।

क्या था विवाद?

  • विभिन्न मदरसों की प्रबंध समितियों ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में वर्ष 2008 के पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी। जिसके तहत आयोग द्वारा मदरसों में शिक्षकों की नियुक्ति का फैसला किया जाना था।
  • इस अधिनियम की धारा-8 के अनुसार, इस आयोग का कर्त्तव्य होगा कि वह मदरसों में शिक्षकों के रिक्त पदों पर नियुक्त किये जाने वाले उम्मीदवारों का चयन करे और उनके नाम की सिफारिश करे।
  • उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए इस अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया था कि यह अनुच्छेद-30 का उल्लंघन है। जिसमें कहा गया है कि सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में बताया कि अपने शिक्षण संस्थानों को चलाने के अल्पसंख्यकों के अधिकार के संरक्षण के बीच शिक्षा में उत्कृष्टता तथा अल्पसंख्यकों का संरक्षण नामक दो उद्देश्यों में संतुलन कैसे स्थापित किया जा सकता है।
  • राज्य अपने अधिकारों के भीतर अल्पसंख्यक संस्थानों में योग्य शिक्षकों द्वारा उत्कृष्ट शिक्षा प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय हित में विनियामक व्यवस्था लागू कर सकता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, अल्पसंख्यक संस्थानों का प्रबंधन इस तरह की कानूनी व्यवस्था को यह कहकर नज़रअंदाज नहीं कर सकता कि संविधान के अनुच्छेद-30 के तहत उन्हें अपनी पसंद के शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का मूल अधिकार प्राप्त है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य (2002) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को आधार मानते हुए कहा कि अनुच्छेद 30(1) न तो आत्यंतिक है और न ही विधि से उपर है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, जब शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की नियुक्ति की बात आती है तो सभी संस्थानों पर विनियमन संबंधी नियम लागू होने चाहिये, चाहे वह बहुसंख्यक संस्थान हों या अल्पसंख्यक संस्थान। अनुच्छेद 30(1) बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक संस्थानों के बीच समान व्यवहार सुनिश्चित करने के लिये है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने शिक्षा को दो रूपों में वर्गीकृत किया-पहली धर्मनिरपेक्ष शिक्षा, और दूसरी धार्मिक, भाषायी अल्पसंख्यक की विरासत, संस्कृति, लिपि और विशेषताओं के संरक्षण के उद्देश्य से दी जाने वाली शिक्षा।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने 2008 के इस अधिनियम की वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि यह आयोग इस्लामिक संस्कृति और इस्लामी धर्मशास्त्र में गहन ज्ञान रखने वाले व्यक्तियों से बना है।

स्रोत- द हिंदू


EWS को 10 प्रतिशत आरक्षण से संबंधित मुद्दा

प्रीलिम्स के लिये:

आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण, आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग, 103वाँ संविधान संशोधन, अनुच्छेद 15 (6), अनुच्छेद 16 (6)

मेन्स के लिये:

आरक्षण संबंधी मुद्दे, केंद्र और राज्यों के मध्य शक्तियों का विभाजन संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

7 जनवरी, 2020 को केंद्र सरकार ने तमिलनाडु एवं कर्नाटक में आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया। ध्यातव्य है कि तमिलनाडु एवं कर्नाटक में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (Economic Weaker Sections- EWS) को दिया जाने वाला 10% आरक्षण अभी लागू नहीं किया गया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • गौरतलब है कि तमिलनाडु और कर्नाटक में आर्थिक आधार पर आरक्षण कानून लागू नहीं है इसके संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय में एक रिट दायर की गई थी जिसके जवाब में केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपना मत प्रस्तुत किया है।
  • केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया है कि सरकारी नौकरियों में और शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिये 10% आर्थिक आरक्षण देना राज्यों का विशेषाधिकार है।
  • संविधान के अनुच्छेद 15 (6) और 16 (6) के प्रावधानों के अनुसार, राज्य की सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिये आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग को आरक्षण प्रदान करने या नहीं करने की शक्ति राज्य सरकार के पास है। अतः किसी भी राज्य की आरक्षण नीति को तय करने में केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं है।

आर्थिक आरक्षण कानून से संबंधित तथ्य

  • कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (Department of Personnel and Training) द्वारा 19 जनवरी, 2019 को जारी अधिसूचना के अनुसार, जिन व्यक्तियों के परिवार की कुल वार्षिक आय 8 लाख रूपए से कम है, उनकी पहचान आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों में की जाती है।
  • यह कानून अनारक्षित श्रेणी में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिये सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10% आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • ध्यातव्य है कि इस कानून को वैद्यता परीक्षण हेतु सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया है किंतु सर्वोच्च न्यायलय ने अभी इस पर कोई निर्णय नहीं लिया है और न ही इस कानून के लिये किये गए 103वें संविधान संशोधन को अमान्य करने से संबंधित कोई फैसला सुनाया है।

स्रोत: द हिंदू


कैलिफोर्निया का डेटा गोपनीयता कानून

प्रीलिम्स के लिये:

कैलिफोर्निया उपभोक्ता गोपनीयता अधिनियम, General Data Protection Regulation, यूरोपियन यूनियन, प्रस्तावित डेटा संरक्षण विधेयक

मेन्स के लिये:

डेटा संरक्षण से संबंधित मुद्दे, CCPA V/S प्रस्तावित डेटा संरक्षण विधेयक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कैलिफोर्निया में कैलिफोर्निया उपभोक्ता गोपनीयता अधिनियम (California Consumer Privacy Act- CCPA) पारित किया गया जो कि इस तरह का पहला गोपनीयता कानून है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • यह कानून 1 जनवरी, 2020 से प्रभावी हुआ है जो कैलिफोर्निया को कंपनियों द्वारा डेटा के उपयोग को नियंत्रित करने का अधिकार देता है।
  • इन नियंत्रणों के अंतर्गत डेटा तक पहुँचने का अधिकार, डेटा के हटा दिये जाने पर डेटा के बारे में पूछने का अधिकार और तीसरे पक्ष को इसकी बिक्री रोकने का अधिकार शामिल है। गौरतलब है कि इंटरनेट की वैश्विक प्रकृति के कारण यह परिवर्तन दुनिया भर के उपयोगकर्त्ताओं को प्रभावित करेगा।
  • यह कानून उपभोक्ताओं को बड़ी कंपनियों से अपनी जानकारी पर नियंत्रण वापस लेने का अधिकार देता है।

CCPA कैलिफोर्निया के उपयोगकर्त्ताओं को क्या अधिकार देता है?

  • इस कानून के अंतर्गत उपयोगकर्त्ताओं को यह जानने का अधिकार दिया जाता है कि कंपनियाँ उनकी कौन सी व्यक्तिगत जानकारियाँ एकत्र करती हैं। गौरतलब है कि व्यक्तिगत जानकारी किसी भी ऐसी जानकारी को संदर्भित करती है जिसे उपयोगकर्त्ता से वापस जोड़ा जा सकता है।
  • उपभोक्ता यह अनुरोध कर सकते हैं और जानकारी प्राप्त सकते हैं कि कंपनियाँ उनके बारे में क्या निष्कर्ष निकालती हैं तथा किसी तीसरे पक्ष को दी या बेची जा रही उनकी व्यक्तिगत जानकारी के बारे में उन्हें विवरण देखने का अधिकार है।
  • उपभोक्ता कंपनियों से अपना व्यक्तिगत डेटा डिलीट करने को कह सकता है तथा अपने डेटा को किसी तीसरे पक्ष को बेचने से मना कर सकता है।
  • इस कानून में कुछ अपवाद भी हैं, जैसे- लेनदेन को पूरा करने के लिये आवश्यक जानकारी प्राप्त करना, सेवा प्रदान करने हेतु आवश्यक जानकारी प्राप्त करना, उपभोक्ता सुरक्षा हेतु जानकारी प्राप्त करना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने हेतु जानकारी प्राप्त करना।
  • उपभोक्ता मुफ्त में एकत्र की गई व्यक्तिगत जानकारी की एक प्रति प्राप्त कर सकते हैं तथा 13 वर्ष से कम आयु के बच्चों की जानकारी तीसरे पक्ष को बेचने के लिये कंपनियों को बच्चे के माता-पिता से अनुमति लेनी अनिवार्य है।

यह कानून किन कंपनियों पर लागू होता है?

  • यह कानून केवल 25 मिलियन डॉलर से अधिक के सकल वार्षिक राजस्व वाले व्यवसायों पर लागू होता है।
  • यह कानून कैलिफोर्निया में 50,000 या उससे अधिक उपभोक्ताओं की व्यक्तिगत जानकारी खरीदने, प्राप्त करने या बेचने वाले व्यवसायों पर लागू होता है।
  • जो कंपनियाँ उपभोक्ताओं की व्यक्तिगत जानकारी को बेचने से उनके वार्षिक राजस्व का आधे से अधिक प्राप्त करते हैं,उन पर भी यह कानून लागू होगा।
  • यह कानून केवल उन कंपनियों पर लागू नहीं होता जो राज्य में काम करते हैं बल्कि कैलिफोर्निया के निवासियों की जानकारी एकत्र करने वाली सभी कंपनियों पर लागू होता है।
  • अनजाने में इस कानून के उल्लंघन पर 2,500 डॉलर का तथा जान-बूझकर कानून के उल्लंघन पर 7,500 डॉलर का जुर्माना लगेगा।
  • कुछ अध्ययनों का अनुमान है कि प्रारंभ में मानकों को पूरा करने के लिये कंपनियों को 55 बिलियन डॉलर का खर्च आएगा, जिसमें से अगले एक दशक में 16 बिलियन डॉलर खर्च किये जाएंगे।
  • एक अध्ययन के अनुसार, यह कानून हर साल कैलिफोर्निया में विज्ञापन के लिये उपयोग की जाने वाली 12 बिलियन डॉलर की व्यक्तिगत जानकारी की रक्षा करेगा।

इस कानून के बाद व्यावहारिक रूप में क्या परिवर्तन होंगे?

  • 1 जनवरी से यह कानून लागू हो गया, लेकिन कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल ने अभी तक इस अधिनियम को अनुमति नहीं दी है। नियमों को अंतिम रूप देने के बाद या 1 जुलाई तक अटॉर्नी जनरल द्वारा कार्रवाई करने की अनुमति दी जा सकती है।
  • कंपनियों को उपभोक्ताओं के अनुरोध की प्राप्ति के लिये वेब पेज और फोन नंबर को निर्धारित करने की आवश्यकता होगी। वेबसाइटों पर उपभोक्ताओं को एक नया विकल्प "मेरी व्यक्तिगत जानकारी मत बेचो (Do Not Sell My Personal Information)" देखने को मिल सकता है।
  • कई बड़ी कंपनियों ने अनुपालन के लिये नई बुनियादी सुविधाओं की स्थापना की है-
    • Google ने Google Analytics को डेटा एकत्र करने से रोकने के लिये Chrome एक्सटेंशन लॉन्च किया।
    • Facebook ने कहा है कि कानून उन पर लागू नहीं होता है क्योंकि वे डेटा की बिक्री नहीं करते हैं और उनके पास पहले से ही ऐसी विशेषताएँ हैं जो कानून का पालन करती हैं (जैसे कि एक उपकरण जो उपयोगकर्त्ताओं को उनकी जानकारी तक पहुँचने और हटाने की अनुमति देता है)।

यह कानून गैर-कैलिफोर्निया वासियों को कैसे प्रभावित करता है?

  • भारतीय कंपनियाँ जिनके ग्राहक कैलिफोर्निया में हैं, को भी इस कानून का पालन करना पड़ेगा।
  • ध्यातव्य है कि कंपनियों के लिये ग्राहक बदलने से ज़्यादा आसान इस कानून का पालन करना है। माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) और मोज़िला [मोज़िला (Mozilla) जो Firefox Browser का मालिक है] अपने ग्राहकों हेतु कानून के अनुसार परिवर्तन के लिये तैयार हैं।
  • गौरतलब है कि यूरोपीय संघ के जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (General Data Protection Regulation- GDPR) ने केवल यूरोपियन यूनियन को ही नहीं बल्कि पूरी यूरोपीय अर्थव्यवस्था को बदल दिया है।
  • कैलिफोर्निया का यह कानून विश्व के लिये एक नवाचार की भाँति है, जो अन्य राज्यों और देशों को समान नियमों को अपनाने के लिये प्रेरित करेगा।

उपर्युक्त कानून की आलोचना के बिंदु

  • यह कानून उपभोक्ताओं को अपने डेटा की बिक्री रोकने का अधिकार देता है, लेकिन उनके डेटा के संग्रह को रोकने का नहीं। इस प्रकार यह कानून Google और Facebook जैसी कंपनियों पर अत्यधिक नियंत्रण नहीं रख सकता क्योंकि ये कंपनियाँ डेटा को एकत्रित करके अधिक लाभ प्राप्त करती हैं, न कि डेटा को बेच कर। विज्ञापन देने वाली कंपनियाँ Facebook जैसी कंपनियों को उनके द्वारा एकत्रित डेटा के आधार पर अपने ग्राहकों को लक्षित करने के लिये उन्हें पैसा देती हैं न कि उनसे डेटा खरीदने के लिये।
  • कुछ आलोचकों का मानना है कि यह अधिनियम उपभोक्ताओं पर इस जटिल अर्थव्यवस्था को नेविगेट करने का बोझ डालता है।
  • साथ ही कुछ आलोचकों का मानना है कि इस कानून में कुछ प्रावधान अस्पष्ट हैं जैसे कि तीसरे पक्ष को डेटा साझाकरण या डेटा की बिक्री से संबंधित प्रावधान अस्पष्ट है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, CCPA के अनुपालन में GDPR की तुलना में अधिक चुनौतियाँ होंगी।

कैलिफोर्निया उपभोक्ता गोपनीयता अधिनियम V/S प्रस्तावित डेटा संरक्षण विधेयक

  • इनमें से कई अधिकार जैसे- डेटा की एक कॉपी एक्सेस करने का अधिकार और डिलीट करने का अधिकार भारत के व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक में भी हैं।
  • भारत का बिल सुधार का अधिकार (Right to Correction) सहित कुछ अन्य बिंदुओं को भी समाहित किये हुए है।
  • भारत का प्रस्तावित डेटा संरक्षण कानून डेटा के एकत्रीकरण से संबंधित उपभोक्ता अधिकारों पर बल देता है, जबकि कैलिफोर्निया का कानून डेटा के तीसरे पक्ष से साझाकरण या बेचे जाने से संबंधित उपभोक्ता अधिकारों पर ध्यान देता है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


ईरान सांस्कृतिक स्थल और जुस कोजेंस

प्रीलिम्स के लिये :

जुस कोजेंस, यूनेस्को द्वारा घोषित महत्त्वपूर्ण ईरान के विश्व विरासत सांस्कृतिक स्थल

मेन्स के लिये :

अमेरिका- ईरान विवाद से उत्पन्न अन्य प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका- ईरान के मध्य उत्पन्न तनाव के चलते अमेरिका द्वारा ईरान जिन 52 स्थानों को निशाना बनाने की धमकी दी गई है उनमें सांस्कृतिक स्थलों के भी शामिल होने की आशंका है। यदि ऐसा हुआ तो यह जुस कोजेंस (JUS COGENS) का उल्लंघन होगा है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु:

  • अमेरिका द्वारा ईरान की कुद्स फोर्स के प्रमुख और इरानी सेना के शीर्ष अधिकारी मेजर जनरल कासिम सोलेमानी की हत्या के बाद यह बयान जारी किया गया कि यदि ईरान किसी भी अमेरिकी नागरिक या अमेरिकी संपत्ति पर हमला करता है, तो अमेरिका भी ईरान के 52 सांस्कृतिक स्थलों (हालाँकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि इन 52 स्थानों में कौन-से स्थान विशेष को शामिल करने की बात कही गई है) को निशाना बना सकता है।
  • ईरान विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है जो 10,000 ईसा पूर्व की है। इसकी समृद्ध और सांस्कृतिक विरासत अरब, फारसी, तुर्की और दक्षिण एशियाई संस्कृतियों का संगम है।
  • वर्तमान में ईरान के 24 स्थल यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं, जिनमें से दो प्राकृतिक स्थल और बाकी सांस्कृतिक स्थल हैं।
  • इन मुख्य धरोहर स्थलों में शामिल हैं -
    • इस्फ़हान की मीदन इमाम और मस्ज़िद-ए-ज़मीं
    • तेहरान का ऐतिहासिक गोलेस्तान पैलेस, छठी शताब्दी ईसा पूर्व में साइरस द्वितीय और डेरियस प्रथम द्वारा निर्मित (गोलेस्तान पैलेस तेहरान के दिल और ऐतिहासिक कोर में स्थित है)।
    • पसारागडे और पर्सेपोलिस (आचारेनिड साम्राज्य की राजधानियाँ)
    • तख्त-ए-सोलेमन का पुरातात्विक स्थल जिसमें एक प्राचीन जोरास्ट्रियन अभयारण्य के अवशेष हैं।

यदि अमेरिका कोई भी ऐसा कदम उठता है जिससे ईरान के किसी सांस्कृतिक धरोहर स्थल को क्षति पहुँचे तो अंतर्राष्ट्रीय कानूनों एव जुस कोजेंस के प्रावधानों के तहत अमेरिका का यह कदम युद्ध अपराध की श्रेणी में शामिल होगा।

जुस कोजेंस (JUS COGENS):

  • द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सांस्कृतिक विरासतों को पहुँची क्षति के बाद वर्ष 1954 में द हेग (वियना) में विश्व के राष्ट्रों ने सशस्त्र संघर्ष की स्थिति में सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण के लिये पहले अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय का आयोजन किया।
  • सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण के लिये आयोजित इस पहले अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय में सांस्कृतिक संपत्ति को प्रत्येक व्यक्ति की सांस्कृतिक विरासत के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें वास्तुकला, कला या इतिहास, चाहे वह धार्मिक हो या धर्मनिरपेक्ष या सांस्कृतिक महत्त्व की चल अथवा अचल संपत्ति को अथवा कोई पुरातात्विक स्थल, को शामिल किया गया।
  • वर्तमान में इस अभिसमय में 133 हस्ताक्षरकर्त्ता देश शामिल हैं, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका और ईरान दोनों ही देशों द्वारा 14 मई,1954 को इस अभिसमय पर हस्ताक्षर किये गए और इसे 7 अगस्त, 1956 को लागू किया गया।
  • वर्ष 1998 की रोम संविधि, अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय की संस्थापक संधि है जो युद्ध अपराध के रूप में वर्णित है। इस संधि के अनुसार, यदि कोई देश किसी ऐतिहासिक स्मारक या धर्म, शिक्षा, कला अथवा विज्ञान के लिये समर्पित इमारत पर जान-बूझकर हमला करता है तो उस देश को युद्ध अपराधी देश के रूप में वर्णित किया जाएगा।

रोम संविधि

  • रोम संविधि का अनुच्छेद 8 युद्ध अपराधों से संबंधित है।
    • अनुच्छेद 8 (2) (b) (ii) के तहत युद्ध अपराधों में नागरिक संपत्ति के खिलाफ जानबूझकर हमला करना, अर्थात् ऐसी संपत्ति जो सैन्य उद्देश्य से संबंधित नहीं हैं, के बारे में प्रावधान है।
  • वहीं 8 (2) (b) (ix) में जानबूझकर सीधे हमलों का उल्लेख है। इसके अनुसार धर्म, शिक्षा, कला, विज्ञान या धर्मार्थ उद्देश्यों, ऐतिहासिक स्मारकों, अस्पतालों और उन इमारतों के खिलाफ, जहाँ बीमार और घायलों को एकत्र किया जाता है, पर किये गये हमले को अपराध माना जाएगा, बशर्ते वे सैन्य उद्देश्य से संचालित न हो।
  • वर्तमान में 122 देश अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के रोम संविधि के पक्षकार राज्य हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका एक हस्ताक्षरकर्त्ता है परंतु अभी उसने इस कानून की पुष्टि नहीं की है।

JUS COGENS के बारे में:

  • JUS COGENS या ius कोजेन, जिसका लैटिन अर्थ है- सम्मोहक कानून (Compelling Law)।
    • ये अंतर्राष्ट्रीय कानून में ऐसे नियमों को संदर्भित करते हैं जो बाध्यकारी या आधिकारिक हैं, और कोई भी देश इनके अनुपालन से इनकार नहीं कर सकता हैं। इन मानदंडों को अलग-अलग संधि द्वारा परिवर्तित नहीं किया जा सकता है क्योंकि इनमें मौलिक मूल्य समाहित हैं।
    • वर्तमान में विश्व के अधिकांश देश एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन इन नियमों को स्वीकार करते हैं।
  • वर्ष 1969 और 1986 की संधियों के कानून पर निर्मित JUS COGENS के नियमों को वियना अभिसमय द्वारा अनुमोदित किया गया है।
  • वर्ष 1969 कन्वेंशन का अनुच्छेद 53 (सामान्य अंतर्राष्ट्रीय कानून) JUS COGENS को एक आदर्श मानदंड के रूप में प्रस्तुत करता है परंतु यह संधि (JUS COGENS) उस समय निरस्त हो जाती है जब इसके क्रियान्वयन के समय किसी भी अंतर्राष्ट्रीय कानून (विएना कन्वेंशन ऑफ द ट्रीटी ऑफ ट्रीटीज़) के क्षेत्राधिकार का उल्लंघन होता है।
    • वर्तमान अभिसमय के प्रयोजनों के लिये सामान्य अंतर्राष्ट्रीय कानून का एक आदर्श मानदंड है जिसे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा समग्र रूप से स्वीकार किया जाता है और मान्यता दी जाती है, जिसमें से किसी भी प्रकार की छूट की अनुमति नहीं है, और जिसे समान चरित्र वाले सामान्य अंतर्राष्ट्रीय कानून द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
    • वर्ष 1986 के अभिसमय के अनुच्छेद 64 के अनुसार, "सामान्य अंतर्राष्ट्रीय कानून (जूस कोजन्स) के एक नए प्रतिमान मानक के तहत यदि सामान्य अंतर्राष्ट्रीय कानून का एक नया आदर्श मानदंड सामने आता है, तो कोई भी मौजूदा संधि जो उस मानदंड के विरोध में है, वह निरस्त हो जाती है। संधियों के अलावा, एकपक्षीय घोषणाओं (Unilateral Declarations) को भी इन मानदंडों का पालन करना पड़ता है।
    • अत: वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में यदि अमेरिका द्वारा ईरान के किसी भी सांस्कृतिक धरोहर स्थल पर कोई कार्यवाही की जाती है तो उसे JUS COGENS का उल्लंघन माना जाएगा।

यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि अभी तक JUS COGENS के नियमों की कोई विस्तृत सूची मौजूद नहीं है। हालाँकि गुलामी, नरसंहार, नस्लीय भेदभाव, यातना और आत्मनिर्णय के अधिकार को निषिद्ध मानदंड (Recognised Norms) माना जाता है। रंगभेद के खिलाफ निषेध को भी JUS COGENS नियम के रूप में मान्यता प्राप्त है, जिसके तहत रंगभेद के आधार पर किसी भी तरह के अपमान की अनुमति नहीं है, इसका कारण यह है कि रंगभेद संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी सिद्धांतों के विरुद्ध है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


द्वितीय राष्ट्रीय GST सम्मेलन

प्रीलिम्स के लिये:

GST, National GST Conference, GST परिषद, CBDT, इनपुट टैक्स क्रेडिट

मेन्स के लिये:

कर सुधारों की दिशा में उठाए गए कदम, राष्ट्रीय GST सम्मेलन के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

वित्त मंत्रालय के राजस्व सचिव की अध्यक्षता में 7 जनवरी, 2020 को राज्य कर आयुक्तों (Commissioner of State Tax) और केंद्रीय कर के मुख्य आयुक्तों (Chief Commissioners of Central Tax) का दूसरा राष्ट्रीय GST सम्मेलन आयोजित किया गया।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • यह सम्मेलन वस्तु और सेवा कर (Goods and Service Tax- GST) प्रणाली को सुव्यवस्थित करने तथा राजस्व के रिसाव की समस्या को हल करने के लिये बहुआयामी मंथन पर केंद्रित था।
  • यह अखिल भारतीय सम्मेलन का दूसरा संस्करण था जहाँ दोनों कर प्रशासन औपचारिक रूप से तालमेल बनाने और कर प्रशासन में एकरूपता लाने के इरादे से अपने ज्ञान एवं सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिये एक साथ आए।
  • सम्मेलन के दौरान GST परिषद (GST Council- GSTC), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxes- CBDT), केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (Central Board of Indirect Taxes and Customs- CBIC), वित्तीय खुफिया इकाई (Financial Intelligence Unit- FIU), राजस्व विभाग (Department of Revenue- DoR), GST खुफिया महानिदेशालय (Directorate General of GST Intelligence- DGGI) और राज्य कर प्रशासन आदि विभिन्न एजेंसियों के बीच अंतर-विभागीय डेटा का प्रसार करने के लिये एक तंत्र और मशीनरी तैयार करने पर विचार-विमर्श किया गया।
  • सम्मेलन में इनपुट टैक्स क्रेडिट (Input Tax Credit- ITC) और IGST में धोखाधड़ी का अवलोकन किया गया।

सम्मेलन के अंतर्गत आवश्यक कार्रवाई के लिये निम्नलिखित उपाय तय किये गए:

  • GST की चोरी सहित फर्ज़ी रिफंड के दावों पर अंकुश लगाने के लिये एक निश्चित समय-सीमा में त्वरित उपायों की जाँच और उसे लागू करने हेतु केंद्र और राज्य के अधिकारियों की एक समिति का गठन करना। समिति एक सप्ताह के भीतर विस्तृत मानक संचालन प्रक्रिया बनाएगी जिसे जनवरी के अंत तक देश भर में लागू किया जा सकता है।
  • फर्ज़ी इनपुट टैक्स क्रेडिट, आयात-निर्यात में धोखाधड़ी और फर्ज़ी रिफंड के सभी मामलों की आयकर विभाग की जांच शाखा द्वारा अनिवार्य रूप से जाँच की जाएगी।
  • API के माध्यम से डेटा का आदान-प्रदान करने के लिये CBDT, CBIC और GSTN के बीच तथा CBDT से GSTN और CBIC और इसके विपरीत MoU पर हस्ताक्षर किये गए। साथ ही यह निर्णय लिया गया कि इस डेटा को वार्षिक आधार पर साझा किये जाने की बजाय तिमाही आधार पर साझा किया जाना चाहिये।
  • इस सम्मेलन में विदेशी प्रेषण रसीद और रिफंड संवितरण के लिये एक एकल बैंक खाता प्रदान करने का भी सुझाव दिया गया है|

स्रोत: पी.आई.बी.


रक्षा शक्ति

प्रीलिम्स के लिये:

रक्षा शक्ति, वियना कन्वेंशन

मेन्स के लिये:

अमेरिका-ईरान संबंधों में रक्षा शक्ति की अवधारणा

चर्चा में क्यों?

ईरानी कुद्स फोर्स के प्रमुख और ईरानी सेना के शीर्ष अधिकारी मेजर जनरल कासिम सोलेमानी की हत्या के बाद जबावी कार्यवाही में ईरान सरकार द्वारा तेहरान में स्थित स्विट्ज़रलैंड दूतावास के बाहर विरोध प्रदर्शन किया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • ईरान में अमेरिका का अपना अलग से कोई दूतावास नहीं है, अतः ऐसी स्थिति में स्विटज़रलैंड ईरान में अमेरिका के हितों का प्रतिनिधित्व करता है। दूसरी ओर, संयुक्त राज्य अमेरिका में ईरान के हितों का संचालन वाशिंगटन में पाकिस्तान दूतावास द्वारा किया जाता है। इस तरह की व्यवस्था में स्विट्ज़रलैंड ईरान में अमेरिका के हितों के संरक्षण के लिये एक रक्षा शक्ति है।

रक्षा शक्ति:

रक्षा शक्ति, यानी ऐसा देश है जो एक अन्य देश में अन्य संप्रभु राज्य का प्रतिनिधित्व करता है, जहाँ उसके (अन्य संप्रभु राज्य) स्वयं के राजनयिक प्रतिनिधित्व का अभाव होता है।

अन्य तथ्य:

  • कूटनीतिक संबंधों पर रक्षा शक्ति की अवधारणा को वर्ष 1961 और वर्ष 1963 में आयोजित वियना कन्वेंशन (अभिसमय) में प्रस्तुत किया गया था।
  • वियना कन्वेंशन के प्रावधानों के अनुसार, यदि दो राज्यों के बीच राजनयिक संबंध टूट जाते हैं, या कोई मिशन स्थायी रूप से या अस्थायी रूप से वापस बुला लिया जाता है तो उसे भेजने वाला राज्य (यहाँ हम अमेरिका के संदर्भ में बात कर रहे है) अपने हितों और अपने नागरिकों के संरक्षण को एक तीसरे राज्य (स्विट्ज़रलैंड के संदर्भ में) को सौंप सकता है, जो दोनों राज्य को स्वीकार्य होगा।
  • वर्ष 1961 और 1963 के वियना कन्वेंशन के अनुसार, स्विस विदेश मंत्रालय अपनी वेबसाइट के माध्यम से यह भूमिका निभाता है। ईरान के इस्लामिक गणराज्य के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका के राजनयिक और कांसुलर संबंधों की अनुपस्थिति में, स्विस सरकार तेहरान में अपने दूतावास के माध्यम से अमेरिका दूतावास से संबंधित रक्षा कार्य एवं अन्य कार्यों को करती है।
  • स्विस सरकार 21 मई, 1980 से तेहरान में अपने दूतावास के माध्यम से ईरान में संयुक्त राज्य अमेरिका की रक्षा शक्ति के रूप में कार्य कर रही है।
  • स्विस दूतावास का विदेशी निवेश अनुभाग अमेरिकी नागरिकों को ईरान में रहने या यात्रा करने के लिये कांसुलर सेवाएँ प्रदान करता है।

स्विट्ज़रलैंड ही क्यों?

  • स्विट्ज़रलैंड द्वारा कई क्षेत्रों में ऐतिहासिक रूप से विभिन्न देशों का प्रतिनिधित्व किया गया है, विशेष तौर से उन क्षेत्रों में जहाँ किसी देश का कोई राजनयिक मिशन नहीं है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान स्विट्ज़रलैंड ने 35 देशों का प्रतिनिधित्व किया था।
  • अत: ईरान में भी अमेरिका के सामरिक हितों को स्विट्ज़रलैंड दूतावास के माध्यम से संचालित किया जा रहा है, इसलिये ईरान सरकार द्वारा तेहरान में स्थित स्विट्ज़रलैंड दूतावास के बाहर अपना विरोध प्रदर्शन किया गया।

वियना कन्वेंशन

वियना कन्वेंशन को 14 अप्रैल 1961 में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन द्वारा कूटनीतिक और प्रतिरक्षा पर आयोजित किया गया था, जिसका आयोजन 2 मार्च से 14 अप्रैल, 1961 तक ऑस्ट्रिया के वियना में न्यू हॉफबर्ग में किया गया।

  • वैश्विक स्तर पर यह राजनयिक संबंधों के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है।
  • यह स्वतंत्र देशों के बीच राजनयिक संबंधों के लिये एक रूपरेखा को परिभाषित करती है।
  • यह संधि राजनयिक मिशन के विशेषाधिकारों को निर्दिष्ट करती है जो राजनयिकों को मेजबान देश में बिना किसी ज़बरदस्ती या उत्पीड़न अथवा डर के कार्य को करने में सक्षम बनाती है। अत: यह संधि राजनयिक प्रतिरक्षा के लिये कानूनी आधार प्रदान करती है।
  • वर्तमान में इस संधि में 192 देश शामिल हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर का अनुमान

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय

मेन्स के लिये:

सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर कम अनुमानित होने का कारण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office-NSO) द्वारा चालू वित्त वर्ष में देश की सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product-GDP) दर घटकर 5% रहने का अनुमान लगाया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • ये आँकड़े सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation) के अंतर्गत NSO द्वारा वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी संबंधी पहले अग्रिम अनुमान के रूप में जारी किये गए हैं।
  • अगर चालू वित्त वर्ष में जीडीपी की विकास दर 5% ही रहती है तो यह पिछले 11 वर्षों की सबसे न्यूनतम विकास दर होगी।

जीडीपी दर कम होने का कारण (अनुमानित आँकड़े):

कुल जीडीपी:

  • NSO द्वारा जारी इन आँकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2019-20 में देश की जीडीपी (स्थिर मूल्यों पर, आधार वर्ष 2011-12) 147.79 लाख करोड़ रुपए होने का अनुमान है, जबकि वित्त वर्ष 2018-19 में यह 140.78 लाख करोड़ रुपए थी।
  • इस तरह चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर 5% रहने का अनुमान है, जबकि पिछले वित्त वर्ष में यह 6.8% थी।

विनिर्माण क्षेत्र:

(Manufacturing Sector)

  • विनिर्माण क्षेत्र में वित्त वर्ष 2018-19 के 6.9% की वृद्धि की तुलना में वित्त वर्ष 2019-20 में महज 2% की वृद्धि का अनुमान है।

निर्माण क्षेत्र

(Construction Sector):

  • निर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर का वित्त वर्ष 2018-19 के 8.7% की तुलना में वित्त वर्ष 2019-20 में 3.2% रहने का अनुमान है।

कृषि, वन एवं मत्स्य पालन क्षेत्र:

(Agriculture, Forestry and Fishing)

  • कृषि, वन एवं मत्स्य पालन क्षेत्र में वृद्धि दर के स्थिर रहने का अनुमान लगाया गया है।
  • इस क्षेत्र में वित्त वर्ष 2018-19 के 2.9% की तुलना में वित्त वर्ष 2019-20 में 2.8% वृद्धि दर रहने का अनुमान है।

बिजली, गैस, पानी की आपूर्ति और अन्य उपयोगी सेवाएँ:

(Electricity, Gas, Water Supply and Other Utility Services)

  • इस क्षेत्र में वित्त वर्ष 2018-19 के 7% की तुलना में वित्त वर्ष 2019-20 में 5.4% की वृद्धि दर का अनुमान है।

व्यापार, होटल, परिवहन और संचार एवं प्रसारण से संबंधित सेवाएँ:

(Trade, Hotels and Transport & Communication and Services related to Broadcasting)

  • इस क्षेत्र में वित्त वर्ष 2018-19 के 6.9% की तुलना में वित्त वर्ष 2019-20 में 5.9% की वृद्धि दर का अनुमान है।

लोक प्रशासन, रक्षा एवं अन्य सेवाएँ:

(Public Administration, Defence and Other Services)

  • इस क्षेत्र में वित्त वर्ष 2018-19 के 8.6% की तुलना में वित्त वर्ष 2019-20 में 9.1% की वृद्धि दर का अनुमान है।

खनन एवं उत्खनन क्षेत्र:

(Mining and Quarrying)

  • इस क्षेत्र में वित्त वर्ष 2018-19 के 1.3% की तुलना में वित्त वर्ष 2019-20 में 1.5% की वृद्धि दर का अनुमान है।

वित्तीय, रियल एस्टेट और व्यावसायिक सेवाएँ:

(Financial, Real Estate and Professional Services)

  • इस क्षेत्र में वित्त वर्ष 2018-19 के 7.4% की तुलना में वित्त वर्ष 2019-20 में 6.4% की वृद्धि दर का अनुमान है।

अग्रिम अनुमान से संबंधित अन्य तथ्य:

  • नॉमिनल संदर्भ में भारत की जीडीपी के वित्तीय वर्ष 2019-20 में 7.5% की दर से बढ़ने का अनुमान है जो कई दशकों का न्यूनतम स्तर है। इससे कर राजस्व और व्यक्तिगत आय पर दबाव बढ़ेगा।
  • सकल स्थायी पूंजी निर्माण का वित्त वर्ष 2019-20 में महज 1% की दर से बढ़ने का अनुमान है।

जीडीपी दर कम होने से भारत पर प्रभाव:

  • विनिर्माण क्षेत्र में कमी भारतीय व्यवसायों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी, जिससे व्यवसायियों को कर्ज चुकाने में अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा इससे बैंकिंग प्रणाली पर दवाब बढेगा तथा ऋण प्रवाह में कमी आएगी।
  • जीडीपी वृद्धि को लेकर वैश्विक जोखिम के बावजूद इस समय भारत की चुनौतियाँ काफी हद तक घरेलू स्तर पर हैं।
  • भारत में आर्थिक वृद्धि में तेज़ी आने की संभावनाएँ पश्चिम एशिया में पैदा हुए नए तनाव से धूमिल हुई हैं। कच्चे तेल की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न होने और तेल के भाव बढ़ने की आशंका से वैश्विक एवं घरेलू वृद्धि दोनों पर प्रभाव पड़ेगा।
  • तेल की कीमतों में वृद्धि और रुपए के भाव में कमी शीर्ष मुद्रास्फीति को बढ़ा सकता है जिससे निकट अवधि में ब्याज दरों में कटौती की संभावना कम हो जाएगी।

आगे की राह:

  • मौजूदा जीडीपी वृद्धि दर को गति प्रदान करने के लिये सरकार को पुराने मुद्दों के अलावा बैंकिंग प्रणाली की खामियाँ को दूर करना होगा।
  • वहीं केंद्र सरकार को अपने एवं आर्थिक गतिविधियों के बीच खोए हुए विश्वास को बहाल करना होगा।
  • सुविचारित, अनुमानित एवं भविष्योन्मुख आर्थिक एवं राजकोषीय नीतियों का रोडमैप तैयार करना होगा।

स्रोत- द हिंदू, बिज़नेस स्टैण्डर्ड, पीआइबी


इंडियन डेटा रिले सैटेलाइट सिस्टम

प्रीलिम्स के लिये:

इंडियन डेटा रिले सैटेलाइट सिस्टम

मेन्स के लिये:

इसरो/अंतरिक्ष कार्यक्रमों का महत्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation-ISRO) ने भविष्य के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में अंतरिक्ष और ISRO के बीच संपर्क को बेहतर बनाने के लिये इसी वर्ष अंतरिक्ष में एक नई उपग्रह प्रणाली भेजने की योजना देश के साथ साझा की है।

Scaling-new-heights

मुख्य बिंदु:

  • इंडियन डेटा रिले सिस्टम (Indian Data Relay Satellite System-IDRSS) नामक दो उपग्रहों वाली इस प्रणाली का उद्देश्य इसरो को अंतरिक्ष में उपग्रहों से संपर्क स्थापित करने में सहायता प्रदान करना है।
  • इसरो महानिदेशक के अनुसार, 2000 किग्रा. भारवर्ग की इस प्रणाली को GSLV प्रक्षेपक द्वारा पृथ्वी की भू-स्थिर कक्षा (Geostationary Orbit-GEO) में लगभग 36000 किमी. दूर स्थापित किया जाएगा।
  • IDRSS प्रणाली के अंतर्गत दो उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा में स्थापित किया जाएगा, जिसमें से पहले उपग्रह को वर्ष 2020 के अंत तक तथा दूसरे को वर्ष 2021 में अंतरिक्ष में भेजने की योजना है, इसरो के वैज्ञानिकों ने इस योजना पर कार्य करना प्रारंभ कर दिया है।
  • भू-स्थिर कक्षा (Geostationary Orbit-GEO) में स्थित एक उपग्रह धरती के एक-तिहाई (1/3) क्षेत्र पर निगरानी करने में सक्षम होता है तथा इस कक्षा में तीन उपग्रह धरती के 100% क्षेत्र पर निगरानी की क्षमता प्रदान करते है।

इंडियन डेटा रिले सैटेलाइट सिस्टम की ज़रूरत क्यों?

  • वर्तमान में भू-स्थिर कक्षा में स्थित उपग्रहों से संपर्क व इन उपग्रहों की निगरानी में विभिन्न देशों में स्थित नियंत्रण केंद्रों की सहायता ली जाती है। इस प्रणाली के तहत 24 घंटों में किसी भी उपग्रह से अनेक प्रयासों के बाद कई टुकड़ों (discontinuous fragments) में औसतन 10-15 मिनट ही संपर्क हो पाता है। जबकि IDRSS द्वारा इन उपग्रहों से 24 घंटे लगातार संपर्क स्थापित किया जा सकेगा। 
  • यह प्रणाली इसरो को अंतरिक्ष प्रक्षेपणों की निगरानी करने में मदद के साथ इसरो की भविष्य की योजनाओं को नई शक्ति प्रदान करेगी।
  • इस प्रणाली द्वारा पृथ्वी की निकटतम कक्षा (Lower Earth Orbit-LEO) के कार्यक्रमों जैसे-स्पेस डाॅकिंग (Space Docking), स्पेस स्टेशन तथा अन्य बड़े अभियानों जैसे- चंद्रयान, मंगल मिशन आदि में सहायता प्राप्त होगी।
  • इसरो महानिदेशक के अनुसार, मानव मिशन के दौरान जब अंतरिक्षयान पृथ्वी की कक्षा में 400 किमी. की दूरी पर चक्कर लगाता है तो इस दौरान अंतरिक्षयान के लिये हर समय पृथ्वी पर किसी नियंत्रण केंद्र के संपर्क में रहना अनिवार्य होता है। ऐसे में IDRSS के अभाव में हमें कई अंतरिक्ष केंद्र बनाने पड़ेंगे या महत्त्वपूर्ण सूचनाओं के लिये अन्य देशों पर निर्भर रहना पड़ेगा।
  • इस प्रणाली का पहला लाभ वर्ष 2022 के गगनयान अभियान के दौरान मिलेगा, परंतु इसरो के अनुसार, इस प्रणाली को गगनयान अभियान से पहले प्रयोग हेतु कार्यक्रमों में पूर्णरूप से सक्रिय करने की योजना है।

अन्य देशों के कार्यक्रम:

  • अन्य बड़ी अंतरिक्ष शक्तियाँ जैसे अमेरिका (USA) और रूस ने इस श्रेणी की प्रसारण उपग्रह प्रणाली के कार्यक्रमों की शुरुआत 1970-80 के दशक से ही कर दी थी और वर्तमान में कुछ देशों के पास आज इस प्रणाली के अंतर्गत लगभग 10 उपग्रह हैं।
  • रूस ने इस तकनीकी का इस्तेमाल अपने अंतरिक्ष स्टेशन मीर (MIR) की निगरानी और संपर्क बनाये रखने तथा अन्य अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिये किया।

मीर (MIR): यह वर्ष 1986 में सोवियत संघ द्वारा पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजा गया एक स्पेस स्टेशन था। वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद वर्ष 2001 में इस कार्यक्रम के बंद होने तक इसका संचालन रूस द्वारा किया गया।

  • अमेरिका ने इस तकनीकी की सहायता से ही अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station) व हब्बल स्पेस टेलीस्कोप (Hubble Space Telescope) जैसे अभियानों में सफलता पाई।
  • वर्तमान में अमेरिका तीसरी पीढ़ी की ट्रैकिंग एंड डेटा रिले सैटेलाइट (Tracking & Data Relay Satellites-TDRS) तैयार कर रहा है, जबकि रूस के पास सैटेलाइट डेटा रिले नेटवर्क (Satellite Data Relay Network) नामक प्रणाली है।
  • यूरोप भी इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिये यूरोपियन डेटा रिले सिस्टम (European Data Relay System) बना रहा है तथा वर्तमान में चीन अपनी दूसरी पीढ़ी की टिआनलिआन-II सिरीज़ (Tianlian II series) पर काम कर रहा है।

निष्कर्ष: इसरो ने निम्न-भू कक्षा (Low-Earth Orbit) में बड़ी संख्या में उपग्रह स्थापित किये हैं तथा भविष्य में भी इस क्षेत्र में कई नए कार्यक्रमों की योजना है, ऐसे में इस क्षेत्र में IDRSS इसरो की आत्मनिर्भरता को बढ़ाएगा। इसके साथ ही अंतरिक्ष में बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा और मानव मिशन जैसे कार्यक्रमों में इसरो को यह तकनीकी बढ़त प्रदान करने में सहायक होगी।

स्रोत: द हिंदू


ट्रेनों में ईंधन के रूप में हाइड्रोजन

प्रीलिम्स के लिये:

हाइड्रोजन संचालित ट्रेन

मेन्स के लिये:

फ़्यूल-सेल/ नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोत

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संपन्न हुए भारतीय विज्ञान काॅन्ग्रेस के 107वें अधिवेशन में पूर्व अंतरिक्ष वैज्ञानिक डी. नारायण राव ने हाइड्रोजन से चलने वाले रेल इंजन बनाने के लिये रेलवे द्वारा किये जा रहे प्रयासों के बारे में जानकारी दी।

भारतीय विज्ञान काॅन्ग्रेस: भारतीय विज्ञान काॅन्ग्रेस का आयोजन प्रतिवर्ष भारतीय विज्ञान काॅन्ग्रेस संस्था द्वारा किया जाता है। इस संस्था की स्थापना वर्ष 1914 में कोलकाता में की गई थी। वार्षिक अधिवेशनों के आयोजनों के अतिरिक्त यह संस्था विज्ञान के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देने के लिये शोधपत्रों व पुस्तकों का प्रकाशन और वैज्ञानिक प्रयोगों हेतु आर्थिक मदद प्रदान करती है।

मुख्य बिंदु:

  • यह पहल रेलवे द्वारा ट्रेन संचालन के लिये वैकल्पिक ईंधन की खोज करने तथा जीवाश्म ईंधन पर आधारित ऊर्जा स्रोतों की निर्भरता को कम करने के प्रयासों का परिणाम है।
  • ध्यातव्य है कि नवंबर 2019 में भारतीय रेलवे के वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत संगठन (Indian Railways Organisation for Alternate Fuels-IROAF) ने हाइड्रोजन संचालित रेल इंजनों के निर्माण में अपनी रुचि दिखाई थी।
  • इस क्षेत्र में IROAF ने एसआरएम. विश्वविद्यालय (SRM University) के साथ मिलकर हाइड्रोजन पर चलने वाले फ्यूल-सेल आधारित इंजन के निर्माण के लिये ज़रूरी तकनीकी विशेषज्ञता हासिल की है।
  • प्रस्तावित ट्रेन में चार यात्री कोच होंगे और इसकी अधिकतम रफ्तार 75 किमी./घंटा होगी, साथ ही एक अन्य कोच पर हाइड्रोजन गैस सिलेंडर, फ्यूल-सेल, सुपर-कैपेसिटर व डीसी कन्वर्टर को रखा जाएगा।

हाइड्रोजन फ्यूल-सेल:

इस प्रणाली में ईंधन के रूप में हाइड्रोजन का प्रयोग होता है। फ्यूल-सेल में हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन को सममिश्रित कर विद्युत का निर्माण किया जाता है और इस प्रक्रिया में उप-उत्पाद (Byproduct) के रूप में पानी (H2O) का निर्माण होता है। परंपरागत बैटरियों की तरह ही हाइड्रोजन फ्यूल-सेल में भी रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।

योजना का भविष्य:

  • 10 जनवरी, 2020 को इस तकनीकी को रेलवे के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा तथा वर्ष 2021 के अंत तक इस सक्रिय मॉडल के बनकर तैयार होने की उम्मीद है।
  • वैज्ञानिक राव के अनुसार, एक बार सफल परीक्षण के बाद यह ट्रेन देश के कुछ उप-महानगरों में चलाई जाएगी।
  • इस पहल के अंतर्गत अगले चरण में ट्रेन पर ही पानी से हाइड्रोजन का निर्माण करने की योजना है।

हाइड्रोजन संचालित ट्रेन पर वैश्विक नज़रिया:

  • वर्तमान में यातायात हेतु वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की खोज के लिये विश्व में अनेक प्रकार के परीक्षण किये जा रहे हैं।
  • हाइड्रोजन फ्यूल-सेल और बैटरी के प्रयोग से प्रोटाॅन एक्सचेंज मेम्ब्रेन (Proton Exchange Membrane-PEM) द्वारा फ्यूल-सेल आधारित रेल प्रणोदक तकनीकी के माध्यम से रेल संचालन संबंधी प्रयोग विश्व के कई देशों में किये जा रहे हैं।
  • हालाँकि वर्तमान में हाइड्रोजन से संचालित ट्रेन का सफल परीक्षण विश्व में सिर्फ जर्मनी ने ही किया है।

हाइड्रोजन फ्यूल-सेल की चुनौतियाँ:

  • हाइड्रोजन का ऊर्जा घनत्व बहुत कम होने के कारण इसे पर्याप्त मात्रा में जमा करने के लिये बड़े पात्र/टैंक की आवश्यकता होती है।
  • हाइड्रोजन एक रंगहीन और गंधहीन गैस है तथा इसके दहन में एक रंगहीन लौ उत्पन्न होती है। अतः इसके रिसाव का पता लगाने के लिये विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 08 जनवरी, 2020

इस्माइल कानी

ईरान की कुद्स फोर्स के प्रमुख कमांडर कासिम सुलेमानी की मौत के बाद ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खुमैनी ने जनरल इस्माइल कानी को कुद्‍स फोर्स के नए कमांडर के रूप में नियुक्त किया है। विदित हो कि अमेरिका ने पहले ही कासिम सुलेमानी को आतंकी घोषित किया हुआ है। अयातुल्लाह ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि “कमांडर कासिम सुलेमानी की मौत के बाद मैं ब्रिगेडियर जनरल इस्माइल कानी को इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स की कुद्‍स फोर्स का नया कमांडर नियुक्त करता हूँ।”

कर्मयोद्धा ग्रंथ

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लिखी गई पुस्तक 'कर्मयोद्धा ग्रंथ' का विमोचन किया है। यह पुस्तक अपने कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किये गए विभिन्न कार्यों की व्याख्या करती है।

ICC की नवीन टेस्ट रैंकिंग

न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच तीसरे टेस्ट मैच की समाप्ति के पश्चात् ICC ने टेस्ट की नई रैंकिंग जारी कर दी है। ICC की नई टेस्ट रैंकिंग में भारतीय कप्तान विराट कोहली को टेस्ट क्रिकेट के बल्लेबाज़ों की सूची में पहला स्थान प्राप्त हुआ है। ICC की नवीन रैंकिंग में चेतेश्वर पुजारा और आजिंक्य रहाणे को नुकसान हुआ है और वे क्रमशः 7वें और 9वें स्थान पर आ गए हैं। वहीं गेंदबाज़ों की रैंकिंग में जसप्रीत बुमराह छठे स्थान पर मौजूद हैं।

झारखंड का नया विधानसभा अध्यक्ष

झारखंड विधानसभा में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के विधायक रवींद्र नाथ महतो को निर्विरोध विधानसभा अध्यक्ष चुन लिया गया है। रवींद्र नाथ महतो सत्ता पक्ष की ओर से नामांकन करने वाले एकमात्र व्यक्ति थे जबकि विपक्ष की ओर से किसी भी व्यक्ति ने नामांकन नहीं किया। रवींद्र नाथ महतो राज्य की 5वीं विधानसभा के अध्यक्ष होंगे। उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व वे दो बार क्रमशः वर्ष 2005 और 2014 में विधायक के रूप में चुने गए थे।

ध्रुवीय विज्ञान में सहयोग पर समझौता ज्ञापन

प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने भारत के भू-विज्ञान मंत्रालय और स्वीडन के शिक्षा एवं अनुसंधान मंत्रालय के बीच ध्रुवीय विज्ञान में सहयोग को लेकर समझौता ज्ञापन को मंज़ूरी दे दी है। विदित हो कि समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर 2 दिसंबर, 2019 को किये गए थे। 8 आर्कटिक देशों में से एक स्वीडन आर्कटिक परिषद का सदस्य है, जबकि भारत को आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक का दर्जा मिला हुआ है। ध्रुवीय विज्ञान में भारत और स्वीडन के बीच इस सहयोग से दोनों देशों को एक-दूसरे की विशेषज्ञता साझा करने मे मदद मिलेगी।