डेली न्यूज़ (07 May, 2019)



AMFI के दिशा-निर्देश

हाल ही में एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (Association of Mutual Funds in India- AMFI) ने फंड मैनेजरों को राइट-डाउन डेब्ट (Write Down Debt) तथा इन्वेस्टमेंट ग्रेड पेपर (Investment Grade Paper) को नियंत्रित करने के संदर्भ में कुछ दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • AMFI ने बुनियादी ढाँचे और रियल एस्टेट फर्मों, होटलों, अस्पतालों और शेयरों के विरुद्ध विवादास्पद तथाकथित ऋण या प्रतिभूतियों के विरुद्ध ऋण-पत्र के खिलाफ सुरक्षित प्रावधान बनाए जाने का सुझाव दिया है।
  • इसने संपत्ति प्रबंधन कंपनियों (Asset Management Companies- AMCs) से अनुरोध किया है कि वे रेटिंग एजेंसियों द्वारा उन्हें डाउनग्रेड किये जाने की प्रतीक्षा किये बिना ऐसे उप-मानक निवेश-ग्रेड ऋण प्रतिभूतियों पर हेयरकट मैट्रिक्स को लागू करें।
  • सेबी के दिशा-निर्देशों के अनुसार, कोई भी प्रतिभूति जिसकी रेटिंग BBB (Better Business Bureau) से नीचे है, उसे निवेश ग्रेड से नीचे माना जाता है।
  • हेयरकट का प्रयोग म्यूचुअल फंड की मूल राशि और किसी डिफ़ॉल्ट के तहत ब्याज में कमी के लिये किया जाता है।

बेटर बिज़नेस ब्यूरो (Better Business Bureau)

  • एक निजी, गैर-लाभकारी संगठन है।
  • इसका उद्देश्य मार्केटप्लेस ट्रस्ट को आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना है।

हेयरकट (Haircut )

  • किसी संपत्ति के बाज़ार मूल्य और ऋण के लिये संपार्श्विक के रूप में उपयोग की जा सकने वाली राशि के बीच प्रतिशत के अंतर का उल्लेख करते समय हेयरकट शब्द का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है।
  • इन मूल्यों के बीच एक अंतर है क्योंकि बाज़ार में कीमतें समय के साथ बदलती हैं, जिसके लिये ऋणदाता को समायोजित करने की आवश्यकता होती है।
  • अब तक प्रत्येक परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी और फंड मैनेजर अपने हेयरकट (डिफाल्ट) के बारे में राइट-डाउन (Write Down) करते या निर्णय लेते थे। ये दिशा-निर्देश उद्योग में संकटग्रस्त प्रतिभूतियों के मूल्यांकन में एकरूपता लाएंगे।
  • AMC को डर है कि ‘स्टैंडर्ड हेयरकट मैट्रिक्स’ के लागू होने से बड़ी मात्रा में ऋण से छुटकारा मिल जाएगा, जो संभावित रूप से उनके फंड की शुद्ध संपत्ति मूल्य में भारी कमी ला सकता है।
  • ये दिशा-निर्देश हाल ही में सेबी के एक परिपत्र के बाद आए हैं। परिपत्र के अंतर्गत AMFI और मूल्यांकन एजेंसियों - क्रिसिल (Crisil) और इक्रा मैनेजमेंट कंसल्टिंग सर्विसेज़ लिमिटेड (Icra Management Consulting Services Limited- IMaCS) से इस तरह के निवेश ग्रेड पेपर के लिये एक मूल्यांकन पद्धति विकसित करने के बारे में सवाल किया गया है।

एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (Association of Mutual Funds in India)

  • भारत में SEBI द्वारा पंजीकृत म्यूचुअल फंडों के संघ (AMFI) को 22 अगस्त, 1995 को एक गैर-लाभकारी संगठन के रूप में शामिल किया गया था।
  • यह भारतीय म्यूचुअल फंड उद्योग को गुणवत्तापरक और नैतिक क्षेत्रों के आधार पर विकसित करने, म्यूचुअल फंड तथा उनके यूनिट धारकों के हितों की रक्षा करने एवं हितों को बढ़ावा देने के लिये सभी क्षेत्रों में मानकों को बढ़ाने और बनाए रखने हेतु समर्पित है।

एसेट मैनेजमेंट कंपनी (Asset Management Company- AMC)

  • परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी (AMC) एक फर्म है जो ग्राहकों के पूल किये गये फंडों को प्रतिभूतियों जैसे- म्यूच्यूअल फंड, इक्विटी में निवेश करने में सहायता करती है।
  • AMC निवेशकों को अधिक विविधता और निवेश का विकल्प प्रदान करती हैं।
  • AMC म्यूचुअल फंड, हेज फंड और पेंशन योजनाओं का प्रबंधन करती है, और ये कंपनियाँ अपने ग्राहकों पर सेवा शुल्क या कमीशन चार्ज लगाकर धन कमाती है।

स्रोत- बिज़नेस लाइन (द हिंदू)


बांधों का पर्यावरण पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हरिद्वार में एक 27 वर्षीय युवा स्वामी आत्मबोधानंद ने गंगा की प्रमुख सहायक नदियों पर रेत खनन और बांधों को बनाने के विरोध में किये जाने वाले अपने अनशन को 194 दिन बाद तोड़ दिया।

बांधों का पर्यावरण पर प्रभाव कैसे पड़ता है?

पर्यावास का विखंडन

बांध बनाकर नदी के जल को अवरुद्ध कर दिया जाता है। जिससे यह मछलियों के लिये एक अवरोधक के रूप में कार्य करते हैं। मछलियों में नदी के किनारों तथा जल के बहाव के साथ विचरण करने/तैरने की प्रवृत्ति होती है, ऐसे में बांध के अवरोधक के रूप में कार्य करने से उनके प्रजनन एवं विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसका असर उस जल निकाय के समस्त जल-चक्र में परिलक्षित होता है।

बाढ़ और आसपास के निवास स्थान का विनाश
Flooding and the Destruction of Surrounding Habitat

अवरुद्ध नदियाँ बांध के बहाव के प्रतिकूल एक जलाशय बनाती हैं, जिनका जल आसपास के क्षेत्र में फैल जाता है। परिणामस्वरूप बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और वहाँ मौजूद पारिस्थितिक तंत्र तथा आवास नष्ट हो जाते हैं। इस तरह की बाढ़ पौधों, वन्यजीवों और मनुष्यों सहित कई अन्य जीवों को या तो नष्ट कर देती है या विस्थापित कर सकती है।

ग्रीनहाउस गैसें
(Greenhouse Gases)

बांधों के आसपास के निवास स्थान में बाढ़ आने से पेड़-पौधे और अन्य जीवन नष्ट हो जाते हैं जो अपघटित होकर वायुमंडल में बड़ी मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन करते हैं। क्योंकि नदी का बहाव अवरुद्ध रहता है, इसलिये पानी स्थिर हो जाता है और जलाशय के निचले हिस्से (तल) में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। ऑक्सीजन की कमी एक ऐसी स्थिति का निर्माण करती है जो जलाशय के तल पर संयंत्र सामग्रियों के अपघटन से मीथेन (एक बहुत शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस) उत्पन्न करती है, अंततः वैश्विक जलवायु परिवर्तन में योगदान करते हुए वायुमंडल में उत्सर्जित होती रहती है।

बांध के पीछे अवसाद/तलछट का निर्माण
(Sediment Builds up Behind the Dam)

जैसे कि एक अवरुद्ध (Damed) नदी का बहाव स्वतंत्र रूप से नहीं होता है, इसलिये जो अन्य प्रकार के प्राकृतिक तलछट या अवसाद जमा होकर बांध के पीछे इकठ्ठा होते जाते हैं, जिससे नदी के नए किनारे, नदी के डेल्टा, जलोढ़ पंख, नदियों के विभिन्न स्वरूप, कई प्रकार की झीलें और तटीय किनारों का निर्माण होता है।

अवसादन की स्थिति में होने वाले इन परिवर्तनों से पौधों एवं पशुओं के जीवन तथा उनके वितरण में नाटकीय परिवर्तन हो सकता है।

बहाव तलछट अपरदन
(Downstream Sediment Erosion)

बांध में अवसादों के प्रवाह में रुकावट के कारण, तलछट की कमी हो जाती है जो निरंतर बनी रहती है। अवसादों के अभाव में पानी का बहाव तीव्र होता है। फलस्वरूप समय के साथ नदी गहरी और संकीर्ण हो जाती है। इसका सीधा प्रभाव नदी में रहने वाले जीव-जंतुओं के जीवन पर पड़ता है क्योंकि नदी के तीव्र प्रवाह के कारण जीवों की जीवन-समर्थन क्षमता कमज़ोर हो जाती है। साथ ही डेल्टाओं तक पहुँचने वाले अवसादों में भी कमी आती है।

स्थानीय मछलियों की जनसंख्या पर नकारात्मक प्रभाव
Negative Impacts on Local Fish Populations

आमतौर पर बांधों को स्थानीय मछलियों की प्रजातियों हेतु पर्यावरण के अनुकूल नहीं बनाया जाता, अतः बांध बनने से ये जीवित नहीं रह पाती हैं। परिणामस्वरूप मछलियों की स्थानीय आबादी लुप्त हो रही है।स्थानीय मछलियों की प्रजातियों के अस्तित्व को कई कारक प्रभावित करते हैं, जिनमें प्रवासन मार्गों का अवरोध, बाढ़, नदी के प्रवाह में परिवर्तन, तापमान में परिवर्तन, मैलापन, घुलित ऑक्सीजन और स्थानीय पादप जीवन में परिवर्तन शामिल हैं।

  • नदियों के आंतरिक और वाह्य क्षेत्रों से कार्बनिक पदार्थ जो कि आमतौर पर नीचे की ओर प्रवाहित होते हैं, बांधों के पीछे एकत्र होते जाते हैं जो ऑक्सीजन का उपभोग करना शुरू कर देते हैं। कभी कभी ऐसे शैवाल उगने लगते है जो बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन का उपभोग कर ‘मृत क्षेत्र’ (Dead Zones) का निर्माण करते हैं।
  • इसके अलावा, बांध के जलाशय में सतह और गहराई के बीच पानी का तापमान बहुत भिन्न हो सकता है। प्राकृतिक रूप से नदी में जीवों के जीवन-चक्र के लिये एक जटिल प्रक्रिया विकसित होती है। जब बांध संचालक द्वारा नदी में विषम तापमान एवं ऑक्सीजन रहित से पानी छोड़ा जाता है, तो इससे नदी के वातावरण को भी नुकसान पहुँचाता है।

मिथाइल-मर्करी का उत्पादन
Production of Methyl-Mercury

जलाशयों के स्थिर जल में पौधों के सड़ने से कार्बनिक पदार्थ का अपघटन अकार्बनिक पदार्थ के रूप में होता है। ऐसी स्थिति में मर्करी परिवर्तित होकर मिथाइल मर्करी बन सकती है, दुर्भाग्य से यह मिथाइल मर्करी नदी के जीवों में संचित हो जाती है जो जलाशयों से मछली खाने वाले मनुष्यों और वन्यजीवों में विषाक्त प्रभाव पैदा करता है।


राजाजी टाइगर रिज़र्व

चर्चा में क्यों?

6 मई को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) ने उत्तराखंड में पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील राजाजी टाइगर रिज़र्व (Rajaji Tiger Reserve) में वाणिज्यिक वाहनों के उपयोग के लिये बनाई जा रही सड़क के कथित अवैध निर्माण पर एक तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रदान करने हेतु समिति का गठन किया है।

प्रमुख बिंदु

  • हाल ही में एन.जी..टी. के समक्ष प्रस्तुत एक याचिका में यह कहा गया कि किसी प्रकार की वैधानिक मंज़ूरी और अपेक्षित सुरक्षा उपायों के बिना ही बाघ आरक्षित क्षेत्र/टाइगर रिज़र्व में सड़क का निर्माण किया जा रहा है। ऐसे में बाघ आरक्षित क्षेत्र की जैविक विविधता और संसाधनों को नुकसान पहुँचने की संभावना है।
  • 1 मार्च, 2017 को उत्तराखंड सरकार ने जैव-विविधता समृद्ध इस क्षेत्र पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों पर विचार किये बिना वाणिज्यिक वाहनों के लिये टाइगर रिज़र्व में लालढांग-चिलरखाल (Laldang-Chillarkhal) मार्ग खोलने का निर्णय लिया।
  • इस याचिका में उठाया गया मुद्दा राजाजी टाइगर रिज़र्व, उत्तराखंड के लालढांग- चिल्लरखाल बफर क्षेत्र की जैव-विविधता और जैविक संसाधनों के संरक्षण के लिये एक्स-सीटू संरक्षण और इन-सीटू संरक्षण विधियों से संबंधित है।
  • यही कारण है इस मामले पर विचार करने से पहले संयुक्त समिति से एक तथ्यात्मक रिपोर्ट लेना आवश्यक है, ताकि सही निर्णय लिया जा सके।
  • एन.जी.टी. द्वारा गठित समिति तीन महीने के भीतर इस पर रिपोर्ट को प्रस्तुत करेगी।

नोडल निकाय

  • एन.टी.सी.ए. (National Tiger Conservation Authority-NTCA) इसके अनुपालन और समन्वय के लिये नोडल एजेंसी होगी।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण

  • पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन तथा व्यक्तियों एवं संपत्ति के नुकसान के लिये सहायता और क्षतिपूर्ति देने या उससे संबंधित या उससे जुड़े मामलों सहित, पर्यावरण संरक्षण एवं वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्रगामी निपटारे के लिये राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के अंतर्गत वर्ष 2010 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना की गई।
  • एन.जी.टी. का उद्देश्य पर्यावरण के मामलों को द्रुतगति से निपटाना तथा उच्च न्यायालयों के मुकदमों के भार को कम करने में मदद करना है।
  • यह एक विशिष्ट निकाय है, जो पर्यावरण संबंधी विवादों एवं बहु-अनुशासनिक मामलों को सुविज्ञता से संचालित करने के लिये सभी आवश्यक तंत्रों से सुसज्जित है।
  • एन.जी.टी., सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रिया द्वारा बाध्य नहीं है, लेकिन इसे नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाता है।
  • अधिकरण आवेदनों या अपीलों के प्राप्त होने के 6 महीने के अंदर उनके निपटान का प्रयास करता है।

एन.जी.टी. की संरचना

  • एन.जी.टी. अधिनियम की धारा 4 में प्रावधान है कि एन.जी.टी. में एक पूर्णकालिक अध्यक्ष, कम-से-कम 10 न्यायिक सदस्य और 10 विशेषज्ञ सदस्य होने चाहिये, लेकिन यह संख्या 20 पूर्णकालिक न्यायिक एवं विशेषज्ञ सदस्यों से अधिक नहीं होनी चाहिये
  • अधिकरण की प्रमुख पीठ नई दिल्ली में स्थित है, जबकि भोपाल, पुणे, कोलकाता और चेन्नई में इसकी क्षेत्रीय पीठें हैं। इसकी सर्किट स्तरीय पीठें शिमला, शिलॉन्ग, जोधपुर और कोच्चि में स्थित हैं।

भारत में बाघों की अनुमानित संख्या

  • राष्ट्रीय स्तर पर हर चार वर्ष बाद आधुनिक तरीकों से बाघों की गिनती की जाती है।
  • पहली बार वर्ष 2006 में गिनती की गई, उसके बाद वर्ष 2010 और वर्ष 2014 में।
  • वर्ष 2014 की जनगणना के अनुसार, भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 2226 (वर्ष 2010 में 1706 की तुलना में) हो गई है।
  • वर्तमान में अखिल भारतीय बाघ अनुमान 2018 (All India Tiger Estimation) इसका चौथा चक्र है जिसके वर्ष 2019 में जारी रहने की संभावना है।

चौथी बाघ जनगणना 2018 का महत्त्व

  • वर्ष 2018 की बाघ जनगणना के तहत जानकारियों को संग्रहीत करने के लिये पहली बार "MSTrIPES" नामक एक मोबाइल एप का उपयोग किया जा रहा है।
  • बाघ जनगणना 2018 का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि इसके अंतर्गत पूर्वोत्तर भारत को भी शामिल किया जा रहा है, जबकि पिछली जनगणना में ऐसा नहीं था।
  • पहली बार भारत सहित तीन पड़ोसी देशों-भूटान, नेपाल और बांग्लादेश (भारत के साथ सीमा साझा करने वाले वे देश, जहाँ से बाघों के सीमा पार कर देश में आने की सूचना मिलती रहती है) बाघों की संख्या की गिनती करने में मदद कर रहे हैं।

बाघ संरक्षण के लिये भारत सरकार के कानूनी उपाय

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन किया गया ताकि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और बाघ एवं अन्य लुप्तप्राय प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो (वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो) का गठन किया जा सके।
  • बाघ आरक्षित वन क्षेत्र या बाघों की अधिक संख्या वाले क्षेत्र से संबंधित अपराधों के मामले में सज़ा बढ़ाई है।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण

  • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय (Statutory Body) है।
  • वर्ष 2006 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों में संशोधन कर बाघ संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना की गई। प्राधिकरण की पहली बैठक नवंबर 2006 में हुई थी।

प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger)

  • भारत सरकार ने वर्ष 1973 में राष्ट्रीय पशु बाघ को संरक्षित करने के लिये 'प्रोजेक्ट टाइगर' लॉन्च किया।
  • 'प्रोजेक्ट टाइगर' पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो नामित बाघ राज्यों में बाघ संरक्षण के लिये केंद्रीय सहायता प्रदान करती है।
  • ट्रैफिक-इंडिया के सहयोग से एक ऑनलाइन बाघ अपराध डेटाबेस की शुरुआत की गई है और बाघ आरक्षित क्षेत्रों हेतु सुरक्षा योजना बनाने के लिये दिशा-निर्देश तैयार किये गए हैं।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972

  • भारत सरकार ने देश के वन्य जीवन की रक्षा करने और प्रभावी ढंग से अवैध शिकार, तस्करी एवं वन्य जीवन तथा उनके व्युत्पन्न के अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 लागू किया।
  • इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के अलावा संपूर्ण भारत में है।
  • इस अधिनियम में जनवरी 2003 में संशोधन किया गया तथा इस कानून के तहत अपराधों के लिये दी जाने वाली सज़ा और ज़ुर्माने को पहले की तुलना में अधिक कठोर बना दिया गया।
  • इसका उद्देश्य सूचीबद्ध लुप्तप्राय वनस्पतियों और जीवों तथा पर्यावरण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्रों को सुरक्षा प्रदान करना है।

अभयारण्य

  • राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा किसी आरक्षित वन में समाविष्ट किसी क्षेत्र से भिन्न क्षेत्र या राज्य क्षेत्रीय सागरखंड को अभयारण्य गठित करने के अपने आशय की घोषणा कर सकती है, यदि वह यह समझती है कि ऐसा क्षेत्र, वन्यजीव या उसके पयार्वरण के संरक्षण, संवर्द्धन या विकास के प्रयोजन के लिये पर्याप्त रूप से पारिस्थितिक, प्राणी जात, वनस्पति जात, भू-आकृति, विज्ञान जात, प्रकृति या प्राणी विज्ञान जात के महत्त्व का है।

शिकार और विद्युत् आघात बाघों की मौत की बड़ी वज़ह

हाल ही में नेशनल टाइगर कंज़र्वेशन अथॉरिटी (National Tiger Conservation Authority- NTCA) द्वारा बाघों की मौत के संदर्भ में 6 वर्षीय आँकड़े प्रस्तुत किये गए, जिसके अनुसार 2012-2018 के बीच देश में 656 बाघों की मौत की जानकारी प्राप्त हुई।

  • उल्लेखनीय है कि इसमें से लगभग 31.5% (207) मौत का कारण अवैध शिकार और इलेक्ट्रोक्यूशन (विद्युत् आघात से मृत्यु) पाया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • 2014 की जनगणना के अनुसार, अनुमानित 2,226 बाघों में से लगभग 40% बाघ निवास के मुख्य क्षेत्रों से बाहर रहते हैं। इन्हीं बाघों का अवैध शिकार होता है, साथ ही इनके साथ ही मनुष्यों के टकराव की स्थिति भी उत्पन्न होती है।
  • आँकड़ों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, 2012 से 2015 के बीच बाघों की मौत की संख्या में दो अंकों की तुलना की अपेक्षा 2016 में तीन अंकों के साथ बढ़कर इसमें बाघ की भेद्यता (Vulnerability) में वृद्धि प्रदर्शित हुई है।
  • उल्लेखनीय है कि 118 बाघों की मौत (कुल मौतों का 18%) के मामले में NTCA को भी कोई जानकारी प्राप्त नहीं है।
  • 19 राज्यों में बाघों की होने वाली मौतों में मध्य प्रदेश में सबसे ज़्यादा 148 बाघों की मौत की सूचना प्राप्त हुई है उसके बाद महाराष्ट्र (107), कर्नाटक (100) और उत्तराखंड (82) का स्थान है।
  • आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में 41 बाघों की मौत हुई है जिनमें में से चार बाघों के अवैध शिकार के कारण मौत (शिकारियों से जब्त किए गए शरीर के अंगों के आधार पर) की जानकारी प्राप्त हुई है।
  • इस साल भी सबसे ज़्यादा मामले मध्य प्रदेश (13) और महाराष्ट्र (7) में दर्ज किये गए हैं।
  • अवैध शिकार के कारण होने वाली मौतों में से 124 बाघों को शवों के आधार पर गिना गया और बाकी शरीर के अंगों को अवैध शिकारियों से ज़ब्त किया गया।
  • 2014 की जनगणना के अनुसार, कर्नाटक (408) और उत्तराखंड (340) के बाद मध्य प्रदेश (308) बाघों की आबादी वाला तीसरा सबसे बड़ा राज्य है।
  • आँकड़ों के अनुसार वन्यजीव व्यापार के लिये अवैध शिकार के मामले कम हैं लेकिन 2016 के बाद से इलेक्ट्रोक्यूशन (ज़्यादातर बाड़ के माध्यम से) से मौत एक बड़ी चिंता का विषय है। उल्लेखनीय है कि 295 बाघों की मृत्यु प्राकृतिक (कुल का 45%) रूप से हुई तथा 36 सड़क या रेल दुर्घटनाओं में मारे गए।

अन्य प्रमुख बिंदु

  • भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून के अनुसार, आने वाले वर्षों में विदर्भ परिदृश्य सहित कई स्थानों पर स्थित अभयारण्यों, राष्ट्रीय उद्यानों और बायो-रिज़र्व के बाहर संघर्ष में वृद्धि होने की संभावना जताई जा रही है।
  • भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार, मध्य भारत में संरक्षित क्षेत्रों (Protected Areas) में बाघों की संख्या पर्याप्त है और वे वहाँ ज्यादा टिक नहीं सकते। बाघ अभी भी लगातार प्रजनन कर रहे हैं, इसलिये अधिक संघर्ष के परिणामस्वरूप अधिशेष आबादी को बाहर धकेला जा रहा है।
  • स्वतंत्र विशेषज्ञों के अनुसार, बाघ के शरीर के अंगों के व्यापार में गिरावट नहीं आई है। जब तक चीनी दवाइयों में बाघ के अंगों का उपयोग जारी रहता है, तब तक भारत से बाघों का अवैध शिकार जारी रहेगा।

बाघ संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय समीक्षा सम्मेलन

स्रोत- बिज़नेस स्टैण्डर्ड


FMCG सेक्टर की वृद्धि होगी धीमी

चर्चा में क्यों?

मुख्य रूप से आय में अपर्याप्त वृद्धि और तरलता की कमी के कारण FMCG क्षेत्र की वृद्धि में धीमापन आ सकता है। इसका कारण ग्रामीण क्षेत्रों की मांग में कमी, कृषिगत आय में आई कमी और उपभोक्ताओं का कम होता विश्वास है।

भारत में FMCG क्षेत्र की स्थिति

  • फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (Fast moving consumer goods-FMCG) भारतीय अर्थव्यवस्था में चौथा सबसे बड़ा क्षेत्र है।
  • इस क्षेत्र में तीन मुख्य खंड हैं - खाद्य और पेय पदार्थ (19%), स्वास्थ्य सेवा (31%) एवं घरेलू तथा व्यक्तिगत देखभाल (शेष 50%)।
  • बढ़ती जागरूकता, आसान पहुँच और बदलती जीवन शैली इस क्षेत्र के लिये प्रमुख विकास चालक रहे हैं।
  • भारत में FMCG सेक्टर द्वारा उत्पन्न कुल राजस्व में शहरी भाग का सबसे बड़ा योगदान है।
  • हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में शहरी भारत की तुलना में ग्रामीण भारत में FMCG बाज़ार का विकास तीव्र गति से हुआ है।

fmcg

FMCG क्षेत्र में सरकारी पहल

  • कैश एंड कैरी सेगमेंट (cash and carry segment) में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और एकल-ब्राण्ड रिटेल के साथ-साथ मल्टी-ब्रांड रिटेल में 51% FDI को मंज़ूरी।
  • खाद्य प्रसंस्करण खंड में 100% एफडीआई की अनुमति।
  • ये पहल रोज़गार और आपूर्ति श्रृंखलाओं को मज़बूती प्रदान करेंगी और संगठित खुदरा बाज़ारों में FMCG ब्रांडों के लिये उच्च दृश्यता प्रदान करेगी, जिससे उपभोक्ताओं की संख्या में वृद्धि होगी।
  • अधिक-से-अधिक उत्पादों को लॉन्च करने पर खर्च करना और उन्हें प्रोत्साहन प्रदान करना।
  • माल एवं सेवा कर (Goods and Services Tax-GST) शुरू किये जाने से FMCG उद्योग को लाभ पहुँचा है। उदाहरण के लिये, FMCG उत्पादों जैसे- साबुन, टूथपेस्ट और हेयर ऑयल को पिछली 23-24% की दर के मुकाबले 18% कर के दायरे में शामिल किया गया हैं।

स्रोत- लाइवमिंट


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (07 May)

  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अज़हर को में वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के बाद भारत ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के मुद्दे पर लंबित वैश्विक सम्मेलन (CCIT) आयोजित कराने का आह्वान किया है। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन आयोजित करने के लिये 1986 में एक मसौदा संयुक्त राष्ट्र में पेश किया था, लेकिन यह लागू नहीं हो सका था, क्योंकि सदस्य राष्ट्रों के बीच आतंकवाद की परिभाषा को लेकर आम राय नहीं बन पाई थी। भारत की यह मांग संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 1267 अल-कायदा प्रतिबंध समिति द्वारा मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किये जाने के बाद सामने आई है। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र में श्रीलंका ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद से निपटने के लिये कानूनी खाका अंगीकार किये जाने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा कि इसके लिये सभी को ‘राजनीतिक इच्छाशक्ति’ दिखाने की ज़रूरत है।
  • एशियाई विकास बैंक (ADB) ने हाल ही में फिजी में हुई बैंक के गवर्नर्स बोर्ड की 52वीं वार्षिक बैठक में एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लिये स्वस्थ महासागरों और सतत नीली अर्थव्यवस्थाओं के लिये कार्ययोजना- Healthy Oceans and Sustainable Blue Economies लॉन्च की। इसके तहत 2019 से 2024 तक की अवधि में 5 बिलियन डॉलर की राशि से समुद्री स्वास्थ्य और समुद्री अर्थव्यवस्था परियोजनाओं के लिये वित्तपोषण और तकनीकी सहायता का विस्तार किया जाएगा। ADB की यह कार्ययोजना सतत विकास लक्ष्य संख्या 14- जल के नीचे जीवन (Life Below Water) को प्राप्त करने में ADB के विकासशील सदस्य देशों के प्रयासों में सहायक होगी। यह कार्ययोजना चार क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेगी- 1. स्थायी पर्यटन और मत्स्य पालन में समावेशी आजीविका और व्यापार के अवसर पैदा करना, 2. तटीय और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों तथा प्रमुख नदियों की रक्षा और पुनर्स्थापन, 3. प्लास्टिक, अपशिष्ट जल और कृषि अपवाह सहित समुद्री प्रदूषण के भूमि-आधारित स्रोतों को कम करना तथा 4. बंदरगाह और तटीय बुनियादी ढाँचे के विकास में सुधार।
  • भारत सरकार ने बादाम, अखरोट और दलहन जैसे 29 अमेरिकी उत्पादों पर बदले की कार्रवाई के तहत उच्च दर से आयात शुल्क लगाने की समय-सीमा एक बार फिर 16 मई तक के लिये बढ़ा दी है। इससे पहले 2 मई तक के लिये इस निर्णय को टाला गया था। सरकार ने जून 2018 में अमेरिका के कुछ इस्पात और एल्युमीनियम उत्पादों पर उच्च दर से सीमा शुल्क लगाने के निर्णय के बाद अमेरिका से आयातित वस्तुओं पर उच्च दर से शुल्क लगाने का निर्णय किया था। लेकिन तब से लेकर अब तक इसके क्रियान्वयन की समय-सीमा करीब छह बार बढ़ाई जा चुकी है। चूँकि दोनों पक्ष द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने को लेकर व्यापार पैकेज पर बातचीत कर रहे हैं, अत: भारत ने समय-सीमा एक बार फिर बढ़ा है। लेकिन इसी महीने अमेरिका ने सामान्य तरजीही प्रणाली (GSP) के जरिये कुछ वस्तुओं पर दिये जा रहे निर्यात प्रोत्साहन को वापस लेने का फैसला किया है। दोनों देशों के बीच समय-समय पर होने वाली बातचीत में इन लाभों का विस्तार समेत अन्य मुद्दे शामिल रहते हैं।
  • हाल ही में कतर की राजधानी दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच वार्ता का नया दौर शुरू हुआ। अफगानिस्तान में शांति कायम करने के उद्देश्य से इन दोनों पक्षों के बीच हुआ वार्ता का यह छठा दौर था। अफगानिस्तान सरकार इस वार्ता में भी शामिल नहीं हुई है, क्योंकि तालिबान इसका विरोध करता रहा है। इस वार्ता में मेज़बान के तौर पर कतर के कुछ अधिकारी मौजूद रहे। गौरतलब है कि अमेरिका और तालिबान के बीच गत अक्तूबर से कई दौर की बातचीत हो चुकी है। इन वार्ताओं का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अमेरिकी सैन्य बलों की वापसी के बाद अफगानिस्तान फिर से आतंकियों का गढ़ न बनने पाए। गौरतलब है कि इसी के समानांतर अफगान सरकार की मेज़बानी में राजधानी काबुल में चार दिनी कबायली परिषद लोया जिरगा की बैठक भी हुई। इसमें तालिबान के साथ अमेरिका की वार्ता और शांति की राह तलाशने जैसे मसलों पर चर्चा हुई।
  • मध्य अफ्रीकी देश कांगो में एक बार फिर इबोला का कहर टूटा है और एक हज़ार से अधिक लोग मारे गए हैं। इस अशांत क्षेत्र में से इस बेहद संक्रामक विषाणु ने गहरी चिंता की स्थिति एक बार फिर उत्पन्न कर दी है। WHO के अनुसार असुरक्षा, वित्तीय संसाधनों का अभाव और स्थानीय राजनीतिकों की तरफ से लोगों को स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ करने से इसे रोकने के प्रयास गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं।  WHO के रिकॉर्ड के मुताबिक यह महामारी दूसरे सबसे भयावह प्रकोप का रूप ले चुकी है। इससे पहले इस महामारी के चलते 2014 से 2016 के दौरान पश्चिम अफ्रीका में 11,300 से अधिक मौतें हुईं थीं। महामारी के प्रकोप को रोकने के प्रयास यहाँ जारी संघर्षों की वजह से तो प्रभावित हो ही रहे हैं, साथ ही समुदायों के भीतर एहतियाती उपायों, स्वास्थ्य सुविधाओं एवं मृतकों को दफनाने के सुरक्षित तरीकों के प्रति प्रतिरोध भी इसमें बाधा बन रहे हैं।
  • कर्नाटक के मंगलुरु शहर में पुलिस ने एक विशिष्ट महिला पुलिस पेट्रोलिंग फोर्स लॉन्च की है। महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के मद्देनज़र बनाई गई इस फोर्स का नाम रानी अब्बक्का फोर्स रखा गया है। फिलहाल शहर में रानी अब्बक्का फोर्स में 50 महिला पुलिसकर्मी तैनात की गई हैं, जिनमें से प्रत्येक पेट्रोलिंग टीम में पांच पुलिसकर्मी हैं। इससे पहले ऐसी ही एक महिला पेट्रोल टीम रानी अब्बक्का फोर्स के नाम से ही राज्य के उडुपी ज़िले की पुलिस ने भी लॉन्च की थी। गौरतलब है कि रानी अब्बक्का तटीय कर्नाटक की रानी थीं, जिन्होंने 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पुर्तगालियों के साथ युद्ध किया था। वह चौटा राजवंश की थीं जो मंदिरों के नगर मूडबिद्री से शासन करते थे तथा बंदरगाह शहर उल्लाल उनकी सहायक राजधानी थी।