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डेली न्यूज़

  • 07 Jan, 2020
  • 44 min read
सामाजिक न्याय

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम

प्रीलिम्स के लिये:

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, सर्वोच्च न्यायालय

मेन्स के लिये:

बाल विवाह से संबंधित मुद्दे, बाल विवाह और भारतीय समाज

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (Prohibition of Child Marriage Act), 2006 की धारा 9 में उल्लिखित बिंदुओं को पुनर्व्याख्यायित किया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति मोहन एम शांतानागौदर की अध्यक्षता वाली पीठ ने बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 की धारा 9 की पुनर्व्याख्या करते हुए कहा है कि बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के तहत 18 से 21 वर्ष की आयु के पुरुष को वयस्क महिला से विवाह करने के लिये दंडित नहीं किया जा सकता है।
  • गौरतलब है कि बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 की धारा 9 के अनुसार, यदि अठारह वर्ष से अधिक आयु का वयस्क पुरुष बाल-विवाह करेगा तो उसे कठोर कारावास, जिसके अंतर्गत दो साल की जेल या एक लाख रुपए तक का जुर्माना या दोनों सज़ा हो सकती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, यह अधिनियम न तो विवाह करने वाले किसी अवयस्क पुरुष को दंड देता है और न ही अवयस्क पुरुष से विवाह करने वाली महिला के लिये दंड का प्रावधान करता है। क्योंकि यह माना जाता है कि विवाह का फैसला सामान्यतः लड़के या लड़की के परिवार वालों द्वारा लिया जाता है और उन फैसलों में उनकी भागीदारी नगण्य होती है|
  • गौरतलब है कि इस प्रावधान का एकमात्र उद्देश्य एक पुरुष को नाबालिग लड़की से विवाह करने के लिये दंडित करना है। न्यायालय ने इस संदर्भ में तर्क दिया कि बाल विवाह करने वाले पुरुष वयस्कों को दंडित करने के पीछे मंशा केवल नाबालिग लड़कियों की रक्षा करना है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह अधिनियम 18 वर्ष से 21 वर्ष के बीच के लड़कों को विवाह न करने लिये भी एक विकल्प प्रदान करता है।
  • गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस फैसले के संदर्भ में दिया है जिसमें उच्च न्यायालय ने 17 वर्ष के एक लड़के को 21 वर्ष की लड़की से विवाह करने पर इस कानून के तहत दोषी ठहराया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को दरकिनार करते हुए कहा कि धारा 9 के पीछे की मंशा बाल विवाह के अनुबंध के लिये किसी बच्चे को दंडित करना नहीं है।

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (Prohibition of Child Marriage Act), 2006 भारत सरकार का एक अधिनियम है, जिसे समाज में बाल विवाह को रोकने हेतु लागू किया गया है।

अधिनियम के मुख्य प्रावधान

  • इस अधिनियम के अंतर्गत 21 वर्ष से कम आयु के पुरुष या 18 वर्ष से कम आयु की महिला के विवाह को बाल विवाह की श्रेणी में रखा जाएगा।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत बाल विवाह को दंडनीय अपराध माना गया है।
  • साथ ही बाल विवाह करने वाले वयस्क पुरुष या बाल विवाह को संपन्न कराने वालों को इस अधिनियम के तहत दो वर्ष के कठोर कारावास या 1 लाख रूपए का जुर्माना या दोनों सज़ा से दंडित किया जा सकता है किंतु किसी महिला को कारावास से दंडित नहीं किया जाएगा।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत किये गए अपराध संज्ञेय और गैर ज़मानती होंगे।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत अवयस्क बालक के विवाह को अमान्य करने का भी प्रावधान है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

एशिया-प्रशांत ‘ड्रोसोफिला’ अनुसंधान सम्मेलन

प्रीलिम्स के लिये:

एशिया-प्रशांत ‘ड्रोसोफिला’ अनुसंधान सम्मेलन

मेन्स के लिये:

ड्रोसोफिला का विज्ञान के क्षेत्र में महत्त्व

चर्चा में क्यों?

6-10 जनवरी 2020 तक 5वें एशिया-प्रशांत ‘ड्रोसोफिला’ अनुसंधान सम्मेलन (Asia Pacific Drosophila Research Conference- APDRC5) का आयोजन पुणे में किया जा रहा है।

मुख्य बिंदु:

  • भारत इस सम्मेलन की मेज़बानी पहली बार कर रहा है।
  • इसका आयोजन ‘भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान’ (Indian Institute of Science Education and Research-IISER) पुणे द्वारा किया जा रहा है।
  • इस सम्मेलन में लगभग 430 प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।
  • इस सम्मेलन में दो नोबेल पुरस्कार विजेता, प्रोफेसर एरिक विस्चस (Eric Wieschaus) और माइकल रोसबाश (Michael Rosbash) भी भाग ले रहे हैं जो क्रमशः ‘परिवर्द्धन जैविकी’ (Developmental Biology) और कालक्रम विज्ञान (Chronobiology) के क्षेत्र में योगदान के लिये जाने जाते हैं।
  • प्रोफेसर एरिक विस्चस को वर्ष 1995 में ‘भ्रूण विकास के आनुवंशिक नियंत्रण’ के क्षेत्र में काम करने के लिये नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
  • माइकल रोसबाश को वर्ष 2017 में ‘मानव शरीर की आण्विक जैविक घड़ी’ पर किये गए शोध के लिये नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया था।

कार्यक्रम का उद्देश्य:

इस द्विवार्षिक कार्यक्रम का उद्देश्य एशिया-प्रशांत क्षेत्र के ड्रोसोफिला (Drosophila) शोधकर्त्ताओं की शेष वैश्विक शोधकर्त्ताओं से पारस्परिक वार्ता को आगे बढ़ाना है।

यह दुनिया भर के ऐसे वैज्ञानिकों को एक साथ लाएगा जो जीव विज्ञान के बुनियादी और व्यावहारिक प्रश्नों का समाधान प्राप्त करने के लिये एक प्रतिरूप जीव के रूप में ‘फ्रूट फ्लाई’ (Fruit Fly) ड्रोसोफिला का प्रयोग करते हैं।

APDRC5

क्या है ड्रोसोफिला?

  • ड्रोसोफिला को ग्रीक शब्द ‘ड्रोसो’ से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है-ओस को पसंद करना।
  • यह ‘ड्रोसो-फिलाडे’ (Droso–philidae) परिवार से संबंधित है तथा इसे फ्रूट, सिरका (Vinegar), शराब (Wine) या पोमेस (Pomace) फ्लाई भी कहा जाता है क्योंकि यह इन पदार्थों पर विचरण करता रहता है।
  • इनका विशिष्ट लक्षण यह है कि ये पके या सड़े हुए फलों पर रहते हैं।
  • यह एक अन्य परिवार ‘टेफ्रीटिडे’ (Tephritidae) से भी संबंधित होते हैं जो कि ‘ट्रू फ्रूट फ्लाईज़’ (True Fruit Flies) कहलाते हैं लेकिन ये केवल कच्चे और पके फलों पर विचरण करते हैं।
  • ड्रोसोफिला एक ऐसा जीव है जिसका जीनोम पूरी तरह से अनुक्रमित (Sequenced) होता है और इसके जैव रसायन, शरीर क्रिया विज्ञान (Physiology) और व्यवहार के बारे में व्यापक जानकारी उपलब्ध है।
  • ड्रोसोफिला पिछले 100 वर्षों के दौरान दुनिया भर में जैविक अनुसंधान के क्षेत्र में व्यापक रूप से प्रयोग किये जाने वाले और पसंदीदा प्रतिरूप जीवों में से एक है।

भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान:

  • IISER आधारभूत विज्ञान में अनुसंधान और शिक्षण के लिये समर्पित संस्‍थानों का एक नेटवर्क है।
  • इसकी स्थापना प्रोफेसर सी.एन.आर. राव की अध्यक्षता में प्रधानमंत्री की वैज्ञानिक सलाहकार परिषद की सिफारिशों के आधार पर की गई।
    • प्रोफेसर सी. एन. राव को वर्ष 2013 में ‘भारत रत्न’ पुरस्कार दिया गया था। वे सी.वी.रमन तथा ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के बाद इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाले प्राप्त तीसरे वैज्ञानिक बने।
  • IISER के सात संस्थान हैं जो भोपाल, कोलकाता, मोहाली, पुणे, तिरुवनंतपुरम, तिरुपति और बहरामपुर में स्थित हैं।
  • भारत में ड्रोसोफिला अनुसंधान में IISER का अत्यधिक योगदान है।

स्रोत- द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र

प्रीलिम्स के लिये:

ISRO, HSFC, गगनयान मिशन, चैलकेरे

मेन्स के लिये:

गगनयान मिशन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) ने कर्नाटक के चित्रदुर्ग ज़िले के चैलकेरे में मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र (Human Space Flight Centre- HSFC) की स्थापना संबंधी योजना प्रस्तावित की है।

  • इस क्षेत्र में पहले से ही ISRO, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research & Development Organisation- DRDO) के उन्नत वैमानिकी परीक्षण रेंज, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र और भारतीय विज्ञान संस्थान की कुछ सुविधाएँ मौजूद हैं। इस प्रकार इसे साइंस सिटी (Science City) के रूप में भी जाना जाता है।
  • इसके अलावा ISRO ने श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट (Sriharikota Spaceport) में एक संगरोध सुविधा (Quarantine Facility) जोड़ने की भी योजना बनाई है।
  • संगरोध में लोगों और वस्तुओं की आवाजाही पर प्रतिबंध है जिसका उद्देश्य बीमारी या कीटों के प्रसार को रोकना है।
  • संगरोध सुविधा में अंतरिक्षयान में प्रवेश करने वाले अंतरिक्ष यात्री (Astronauts) को रखा जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • एकीकृत सुविधा: चैलकरे में अंतरिक्ष यात्रियों से संबंधित बुनियादी ढाँचे और गतिविधियों से संबंधित सभी सुविधाओं को समेकित किया जाएगा।
    • वर्तमान में मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम से संबंधित सुविधाएँ विभिन्न केंद्रों जैसे कि विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र तिरुवनंतपुरम, केरल में और यू.आर. राव सैटेलाइट सेंटर बंगलुरू से संचालित होती हैं।
    • चैलकरे में ही अंतरिक्षयान के चालक दल और सेवा मॉड्यूल से संबंधित सुविधाओं का भी संचालन किया जाएगा।
  • वर्ष 2022 के गगनयान मिशन के लिये चार अंतरिक्ष यात्रियों का पहला समूह रूस में प्रशिक्षण के लिये गया है। भारत को इस प्रकार की अंतरिक्ष प्रशिक्षण सुविधाओं हेतु विदेश में बड़ी राशि का भुगतान करना पड़ता है।

चैलकेरे:

  • यह कर्नाटक के चित्रदुर्ग ज़िले में स्थित है।
  • इसको तेल शहर (Oil City) कहा जाता है क्योंकि इसके आसपास कई खाद्य तेल मिलें हैं।
  • चैलकेरे स्थानीय कुरुबा लोगों द्वारा बनाए गए कंबलों (बुने हुए कंबल) के लिये प्रसिद्ध है।
  • इसे भारत के ‘दूसरे मुंबई’ के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह मुंबई के बाद खाद्य तेल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक/आपूर्तिकर्त्ता है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

कछुआ पुनर्वास केंद्र

प्रीलिम्स के लिये:

कछुआ पुनर्वास केंद्र, जलीय पारिस्थितिक तंत्र, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, भारतीय वन्यजीव संस्थान, ट्रैफिक इंडिया

मेन्स के लिये:

कछुओं का जलीय पारितंत्र में योगदान, जीव-जंतुओं से संबंधित खतरे, कछुओं की संख्या में कमी का कारण, जीव-जंतुओं के शिकार एवं व्यापार से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

जनवरी, 2020 में बिहार के भागलपुर वन प्रभाग में कछुओं के लिये पहले पुनर्वास केंद्र का उद्घाटन किये जाने की योजना है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • यह पुनर्वास केंद्र मीठे पानी (Fresh Water) में रहने वाले कछुओं के पुनर्वास के लिये बनाया जा रहा इस तरह का पहला केंद्र है।
  • यह पुनर्वास केंद्र लगभग आधे एकड़ भूमि में फैला है तथा एक समय में लगभग 500 कछुओं को आश्रय देने में सक्षम होगा।
  • वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, बचाव दल द्वारा तस्करों से बचाए जाने के दौरान कई कछुओं के गंभीर रूप से घायल, बीमार एवं मृत पाए जाने के बाद इस तरह के केंद्र के निर्माण की आवश्यकता महसूस की गई।
  • यह केंद्र कछुओं को उनके प्राकृतिक आवास में वापस भेजने से पहले उनके समुचित रखरखाव के लिये महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। गौरतलब है कि बचाव अभियान के दौरान पाया गया कि तस्करों द्वारा कछुओं को निर्दयता पूर्वक उनके पैर बाँधकर रखा गया था या भोजन के रूप में पकाने के लिये प्रेशर कुकर में रखा गया था।
  • पूर्व में बचाए गए कछुओं को पुनर्वास केंद्र की सुविधा के अभाव में बिना किसी उपचार के नदियों में छोड़ दिया जाता था।
  • वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, विभाग पहले नदियों में छोड़े गए कछुओं पर नज़र रखने में सक्षम नहीं था लेकिन अब उन्हें प्राकृतिक आवास में छोड़े जाने से पहले उनकी उचित निगरानी की जाएगी।

पुनर्वास केंद्र को भागलपुर या पूर्वी बिहार में बनाए जाने का कारण

  • भागलपुर में गंगा नदी में पानी का प्रवाह पर्याप्त है। इसके अलावा नदी के बीच में कई बालू के टीले (Sand Banks) हैं जिसके कारण यह क्षेत्र कछुओं के लिये आदर्श प्रजनन क्षेत्र है। इसी कारण यह क्षेत्र पुनर्वास केंद्र स्थापित करने हेतु उपयुक्त है।
  • पूर्वी बिहार में पाए जाने वाले कछुए आकार में काफी बड़े होते हैं। ध्यातव्य है कि यहां लगभग 15 किलोग्राम तक के कछुए पाए जाते हैं।

कछुओं का जलीय पारिस्थितिक तंत्र में योगदान

  • कछुए नदी से मृत कार्बनिक पदार्थों एवं रोगग्रस्त मछलियों की सफाई करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • कछुए जलीय पारितंत्र में शिकारी मछलियों तथा जलीय पादपों एवं खरपतवारों की मात्रा को नियंत्रित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • इन्हें स्वस्थ जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के संकेतक के रूप में भी वर्णित किया जाता है।

कछुओं की संख्या में कमी का कारण

  • राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन और भारतीय वन्यजीव संस्थान की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, बांधों और बैराज, प्रदूषण, अवैध शिकार, मछली पकड़ने के जाल में फँसने, उनके घोंसले नष्ट होने के खतरों तथा आवास के विखंडन और नुकसान के कारण कछुओं के जीवन पर खतरा बना रहता है।
  • कछुओं का शिकार किये जाने के दो मुख्य कारण हैं- भोजन के रूप में उपयोग और इनका बढ़ता व्यापार।
  • समाज में एक प्रचलित धारणा कि इनका माँस शरीर की ऊर्जा को बढ़ाता है और शरीर को विभिन्न बीमारियों से दूर रखता है, के कारण भी कछुओं का शिकार किया जाता है। गौरतलब है कि सॉफ्ट-शेल कछुए इसी धारणा के शिकार हैं।
  • दूसरी ओर, हार्ड शेल और विशेष रूप से चित्तीदार कछुओं को भी व्यापार के लिये पकड़ा जाता है। ध्यातव्य है कि ऐसे कछुओं की दक्षिण-पूर्व एशिया, चीन और जापान में अत्यधिक माँग हैं।
  • ट्रैफिक इंडिया द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन के अनुसार, भारत में हर वर्ष लगभग 11,000 कछुओं की तस्करी की जा रही है। ध्यातव्य है कि पिछले 10 वर्षों में 110,000 कछुओं का कारोबार किया गया है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


कृषि

कृषक नवोन्मेष कोष

प्रीलिम्स के लिये:

कृषक नवोन्मेष कोष

मेन्स के लिये:

कृषि और विज्ञान

चर्चा में क्यों?

हाल ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research-ICAR) ने कृषि में वैज्ञानिक नवाचारों को बढ़ावा देने तथा कृषि को तकनीकी से जोड़ने के लिये एक कृषक नवोन्मेष कोष (Farmers’ Innovation Fund) की स्थापना करने की घोषणा की है।

मुख्य बिंदु:

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद

(Indian Council of Agricultural Research-ICAR):

  • ICAR कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार के तहत एक स्वायत्तशासी संस्था है।
  • इसकी स्थापना 16 जुलाई, 1929 को इंपीरियल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च नाम से हुई थी।
  • यह परिषद देश में बागवानी, मात्स्यिकी और पशु विज्ञान सहित कृषि के क्षेत्र में समन्वयन, मार्गदर्शन और अनुसंधान प्रबंधन तथा शिक्षा के लिये एक सर्वोच्च निकाय है।
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने देश में हरित क्रांति लाने तत्पश्चात अपने अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी विकास से देश के कृषि क्षेत्र के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई है।
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की योजना के अनुसार, प्रगतिशील किसानों को वैज्ञानिक प्रयोग करने, उनके नवाचारों को वैज्ञानिक वैधता प्रदान करने और इन नवाचारों को आगे ले जाने के लिये एक कृषक नवोन्मेष कोष की स्थापना की जाएगी।
  • इस कोष के अगले वित्तीय वर्ष तक सक्रिय हो जाने की संभावना है।
  • इस योजना के अंतर्गत नई दिल्ली में एक नवोन्मेष केंद्र (Innovation Centre) की स्थापना की जाएगी। इस केंद्र पर कृषि नवाचारों को वैज्ञानिक वैधता प्रदान करने के साथ ही किसानों को शोध की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाएगी।
  • परिषद के अनुसार, वर्तमान में कृषि नवाचारों को कृषि विज्ञान केंद्रों पर अभिलिखित किया जा रहा है, प्रस्तावित तंत्र किसानों को उनके नवाचारों को आगे ले जाने के लिये प्रोत्साहित करेगा।

कृषि विज्ञान केंद्र: कृषि विज्ञान केंद्र, ग्रामीण स्तर पर कृषि में विज्ञान और तकनीकी को बढ़ावा देने के लिये भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की एक पहल है। ICAR की पहल पर वर्ष 1974 में तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय,कोयंबटूर के अंतर्गत पुद्दुचेरी में पहले कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना की गई। वर्तमान में भारत में लगभग 716 कृषि विज्ञान केंद्र हैं।

  • इस योजना का प्रमुख उद्देश्य कृषि को विज्ञान से जोड़ना और विज्ञान आधारित कृषि को बढ़ावा देना है।
  • परिषद के विशेषज्ञों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि कृषि पूर्णरूप से वैज्ञानिक प्रक्रिया है और यदि हम कृषि में विज्ञान के सिद्धांतों का सही प्रयोग नहीं करते हैं, तो हम हर बार असफल होंगे।
  • इस योजना के अंतर्गत कृषि क्षेत्र में तकनीकी को बढ़ावा देने के लिये किसानों और 105 स्टार्ट-अप के बीच संपर्क स्थापित करने की व्यवस्था की गई है।
  • इसके साथ ही कृषि आय को बढ़ाने के लिये ICAR ने अलग-अलग कृषि जलवायु क्षेत्रों के अनुकूल 45 जैविक कृषि मॉडल तैयार किये हैं और 51 समायोजित कृषि तंत्रों को प्रमाणित किया है।

आगे की राह:

इस नई व्यवस्था से पूरे देश के किसानों को एक-दूसरे से कृषि तकनीकी सीखने में सहायता प्राप्त होगी तथा इसके माध्यम से कृषि और विज्ञान क्षेत्र को जोड़ने में मदद मिलेगी जिससे देशभर के किसान कृषि-वैज्ञानिकों से जुड़कर लाभान्वित होंगें।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

लघु वित्त बैंक (SFB)

प्रीलिम्स के लिये:

सहकारी बैंक, लघु वित्त बैंक

मेन्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा शहरी सहकारी बैंकों लघु वित्त बैंकों में परिवर्तित करने के संदर्भ में दिये गए दिशा-निर्देश

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शिवालिक मर्केंटाइल सहकारी बैंक लिमिटेड (Shivalik Mercantile Co-operative Bank Limited) को भारतीय रिज़र्व बैंक (Reseve Bank of India- RBI) द्वारा ‘लघु वित्त बैंक’ (Small Finance Bank-SFB) का दर्जा प्रदान किया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (Reseve Bank of India- RBI) ने 27 सितंबर, 2018 को शहरी सहकारी बैंकों (Urban Co-operative Bank-UCB) को स्वेच्छा के आधार पर लघु वित्तीय बैंक का दर्जा देने की योजना प्रारंभ की थी।
  • शिवालिक मर्केंटाइल सहकारी बैंक का SFB में यह परिवर्तन 18 महीनों के लिये मान्य होगा, इस अवधि के दौरान इस बैंक को SFB के सभी मानकों का पालन करना होगा।
  • इस बात से संतुष्ट होने पर कि आवेदक ने अनुमोदन के लिये निर्धारित अपेक्षित शर्तों का अनुपालन किया है, RBI इसे SFB के रूप में बैंकिंग व्यवसाय शुरू करने के लिये लाइसेंस देने पर विचार करेगा।

निजी क्षेत्र में लघु वित्त बैंकों का लाइसेंस प्रदान करने संबंधी RBI के दिशा-निर्देश:

  • इसके तहत आवेदक बैंक की न्यूनतम आवश्यक पूंजी को बढ़ाकर 200 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
  • RBI ने शहरी सहकारी बैंक जो कि ऐच्छिक रूप से लघु वित्त बैंक में परिवर्तित होना चाहते हैं, के लिये आवश्यक पूंजी की सीमा 100 करोड़ रुपए निर्धारित की है।
    • उल्लेखनीय है कि ऐसे बैंकों को परिचालन आरंभ होने के अगले 5 वर्षों में अपने निवल मूल्य को बढ़ाकर 200 करोड़ रुपए करना होगा।
  • निर्देश के अनुसार, लघु वित्त बैंकों को कारोबार शुरू करते ही अनुसूचित बैंक का दर्जा दिया जाएगा और इन्हें बैंकिंग आउटलेट्स खोलने की सामान्य अनुमति प्राप्त होगी।
  • पेमेंट्स बैंक भी 5 वर्ष के परिचालन के बाद लघु वित्त बैंक में परिवर्तन के लिये आवेदन कर सकते हैं।

शिवालिक मर्केंटाइल सहकारी बैंक:

  • बहुराज्यीय सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत शिवालिक मर्केंटाइल सहकारी बैंक का संचालन मध्य प्रदेश के पाँच ज़िलों, उत्तराखंड के दो ज़िलों, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में किया जाता है।
  • वर्ष 2010 में शिवालिक मर्केंटाइल सहकारी बैंक ने मध्य प्रदेश के धार ज़िले में स्थित ‘भोज नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित’ का अधिग्रहण किया था और वर्ष 2012 में मालवा वाणिज्यिक सहकारी बैंक लिमिटेड का अधिग्रहण किया था।
  • इस बैंक के दो मुख्यालय नोएडा तथा सहारनपुर में स्थित हैं।

स्रोत- द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड

प्रीलिम्स के लिये:

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड

मेन्स के लिये:

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम-1972

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान (Desert National Park) जैसलमेर के संरक्षण केंद्र में 9 स्वस्थ ग्रेट इंडियन बस्टर्ड चूजों के जन्म की पुष्टि गई है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में विश्वभर में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की कुल संख्या लगभग 150 है।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड:

  • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड या सोन चिड़िया विश्व में सबसे अधिक वज़न के उड़ने वाले पक्षियों में से एक है, यह पक्षी मुख्यतया भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है।
  • एक समय इस पक्षी का नाम भारत के संभावित राष्ट्रीय पक्षियों की सूची में शामिल था।
  • परंतु वर्तमान में विश्व भर में इनकी संख्या 150 के लगभग बताई जाती है।
  • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम-1972 की अनुसूची-1 में तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) की रेड लिस्ट में गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered) की श्रेणी में रखा गया है।

मुख्य बिंदु:

  • जून 2019 में मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान (Desert National Park) जैसलमेर में संरक्षित किये गए 9 ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के अण्डों से स्वस्थ चूजों के जन्म की पुष्टि संरक्षण केंद्र द्वारा की गई है।
  • प्रशासन के अनुसार, विश्व के किसी भी संरक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत 6 माह के भीतर एक साथ इतनी बड़ी संख्या में स्वस्थ ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के चूजों के जन्म की यह सबसे बड़ी सफलता है।
  • इन 9 चूजों में से 7 चूजों को मादा और एक की नर ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के रूप में पहचान की गई है, जबकि कुछ माह पहले जन्मे एक अन्य चूजे की कम आयु के कारण अभी तक लैंगिक पहचान नहीं की जा सकी।

संरक्षण कार्यक्रम:

  • केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India-WII), देहरादून के साथ मिलकर ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण के लिये एक कार्यक्रम शुरू किया है।
  • इसके लिये सरकार ने 33 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं, इसी कार्यक्रम के तहत जैसलमेर में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के चूजों की देखभाल और विकास के लिये एक केंद्र की स्थापना की गई है।
  • नवंबर 2018 में WII ने मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के चूजों के पुनर्वास के लिये 14 स्थानों को चिह्नित करने की जानकारी दी थी, इन स्थानों की पहचान करते समय वर्षा, वन्य स्रोतों से निकटता, तापमान, निवास स्थान, पानी की उपलब्धता आदि पर विशेष ध्यान दिया गया। इन 14 स्थानों में से राजस्थान के सोरसन को ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के पुनर्वास के लिये सबसे उपयुक्त स्थान के रूप में चुना गया।
  • WII के अनुसार, सोरसन में इन पक्षियों के प्रजनन को सूखा प्रवण जैसलमेर की अपेक्षा अधिक बढ़ावा मिलेगा।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण में चुनौतियाँ:

प्रजनन और मृत्यु दर

  • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड का औसत जीवनकाल 15 या 16 वर्षों का होता है तथा नर ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की प्रजनन योग्य आयु 4 से 5 वर्ष, जबकि मादा के लिये यह आयु 3 से 4 वर्ष है।
  • एक मादा ग्रेट इंडियन बस्टर्ड 1 से 2 वर्षों में मात्र एक अंडा ही देती है और इससे निकलने वाले चूजे के जीवित बचने की दर 60%-70% होती है।
  • WII की रिपोर्ट के अनुसार, लंबे जीवन के बावजूद इतने धीमे प्रजनन और मृत्यु दर का अधिक होना इस प्रजाति की उत्तरजीविता के लिये एक चुनौती है।

भोजन व प्रवास के विषय में कम जानकारी

  • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के भोजन और वासस्थान पर किसी प्रमाणिक जानकारी का अभाव होना इन पक्षियों के पुनर्वास में एक बड़ी चुनौती है।
  • गुजरात के वन्यजीव वैज्ञानिकों के सहयोग से राजस्थान वन्यजीव विभाग ने उच्च प्रोटीन और कैल्शियम युक्त कुछ पक्षी अहारों की पहचान की है, जिससे इस कार्यक्रम में कुछ मदद मिली है।

राज्यों द्वारा अनदेखी

WII की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ वर्षों पहले महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक राज्यों के कच्छ, नागपुर, अमरावती, सोलापुर, बेलारी और कोपल जैसे के ज़िलों में बड़ी संख्या में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पाए जाते थे। हालाँकि वर्तमान में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की घटती संख्या को देखते हुए इनके संरक्षण के लिये कर्नाटक ने WII के अभियान से जुड़ने की इच्छा जाहिर की है परंतु महाराष्ट्र से इस संदर्भ में कोई उत्तर नहीं प्राप्त हुआ है।

अन्य चुनौतियाँ:

  • वैश्विक स्तर पर और विशेषकर भारत में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण उच्च वोल्टेज की विद्युत लाइनें (तार) हैं, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पक्षी की सीधे देखने की क्षमता (Poor Frontal Vision) कमज़ोर होने के कारण वे जल्दी विद्युत तारों नहीं देख पाते।
  • केवल जैसलमेर में 15% ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की मृत्यु विद्युत आघात से होती है।
  • इसके साथ ही इन पक्षियों का अवैध शिकार तथा कुत्ते व अन्य जंगली जानवर इस प्रजाति की उत्तरजीविता के लिये चुनौती उत्पन्न करते हैं।

आगे की राह:

एक बार वयस्क हो जाने के बाद इन चूजों के विकास और प्रजनन के लिये उपयुक्त निवास स्थान की व्यवस्था करना तथा पुनः इन पक्षियों को प्राकृतिक वासस्थान में छोड़ने से पहले इन्हें भोजन और अपनी रक्षा के लिये आत्मनिर्भर बनाना भी WII के लिये एक बड़ी चुनौती होगी।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

शहरी सहकारी बैंकों पर प्रतिबंध

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, शहरी सहकारी बैंक, Panjab and Maharashtra Cooperative Bank (PMC), त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ, पूंजी पर्याप्तता अनुपात

मेन्स के लिये:

बैंकिंग विनियमन संबंधी मुद्दे, PCA का बैंकिंग व्यवस्था पर प्रभाव, NPA का बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, पूंजी पर्याप्तता अनुपात और बैंकिंग से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India) ने तनावग्रस्त शहरी सहकारी बैंकों (Urban Cooperative Banks- UCBs) की वित्तीय स्थिति में गिरावट के कारण उन पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। ध्यातव्य है कि RBI द्वारा यह कदम PMC (Panjab and Maharashtra Cooperative) बैंक में हालिया संकट के मद्देनज़र उठाया गया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • तनावग्रस्त UCBs पर लगाए जाने वाले प्रतिबंध, वाणिज्यिक बैंकों पर आरोपित किये जाने वाले त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (Prompt Corrective Action- PCA) के अनुरूप होंगे।
  • इस संशोधित पर्यवेक्षी एक्शन फ्रेमवर्क (Supervisory Action Framework-SAF) के तहत UCBs को निम्न तीन मापदंडों के उल्लंघन पर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा:
    • यदि उनकी गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (Non Performing Asset- NPA) शुद्ध अग्रिमों (Net Advances) के 6% से अधिक हो जाती हैं।
    • यदि वे बैंक लगातार दो वित्तीय वर्षों में नुकसान उठा रहे हों।
    • उनकी बैलेंस शीट काफी खराब हो तथा पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio- CAR) 9 प्रतिशत से कम हो।
  • साथ ही RBI के अनुसार, प्रशासन में गंभीर मुद्दों के आधार पर भी बैंकों पर प्रतिबंध आरोपित किये जा सकते हैं।

RBI मापदंडों के उल्लंघन पर UCBs को दिये जाने वाले निर्देश

  • लाभप्रदता को बहाल करने और संचित घाटे को कम करने तथा 12 महीनों के भीतर पूंजी पर्याप्तता अनुपात को 9% या उससे अधिक बढ़ाने के लिये UCBs को निवल NPA 6% से कम करने एवं बोर्ड द्वारा अनुमोदित कार्ययोजना प्रस्तुत करने के लिये कहा जाएगा।
  • UCBs के बोर्ड को तिमाही/मासिक आधार पर कार्ययोजना के तहत प्रगति की समीक्षा करने के लिये कहा जाएगा तथा बोर्ड से समीक्षा प्रगति रिपोर्ट को RBI को प्रस्तुत करने के लिये कहा जाएगा।
  • UCBs के पूंजी पर्याप्तता अनुपात के 9 प्रतिशत से कम होने की स्थिति में RBI द्वारा UCBs को अन्य बैंक के साथ विलय करने या क्रेडिट सोसाइटी में परिवर्तित करने के लिये बोर्ड से अनुमोदित प्रस्ताव भी मांगा जा सकता है।
  • यदि जोखिम सीमा में से किसी एक का उल्लंघन किया जाता है तो RBI बिना पूर्व स्वीकृति के लाभांश या दान के भुगतान की घोषणा पर प्रतिबंध लगा सकता है।
  • अन्य प्रतिबंधों में आवर्ती पूंजीगत व्यय और बैलेंस शीट के विस्तार पर होने वाले जोखिम के आधार पर 100% से अधिक जोखिम वाले ऋणों और अग्रिमों को प्रतिबंधित करना शामिल है।
  • RBI के अनुसार, यदि शहरी सहकारी बैंकों (UCB) द्वारा जमाकर्त्ताओं और जनता के हितों से संबंधित अपने सामान्य कामकाज को जारी रखने पर विचार नहीं किया जाता है तो उन बैंकों के विरुद्ध बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 35 ए के तहत सभी समावेशी निर्देशों को लागू करने और बैंकिंग लाइसेंस रद्द करने के लिये कारण बताओ नोटिस जारी करने पर विचार किया जा सकता है।

गैर-निष्पादित संपत्तियाँ (Non Performing Assets- NPAs)

  • इन्हें अनर्जक आस्ति भी कहा जाता है। इसका तात्पर्य बैंकिंग या वित्त क्षेत्र में लिये गए ऐसे ऋण से है जिसका लौटना संदिग्ध हो।
  • बैंक अपने ग्राहकों को जो ऋण प्रदान करता है उसे अपने खाते में संपत्ति के रूप में दर्शाता है। यदि किसी कारणवश बैंक को यह प्रतीत हो कि ग्राहक यह ऋण नहीं लौटा पाएगा तो ऐसे ऋणों को गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ अथवा अनर्जक आस्ति कहा जाता है।
  • वास्तव में यह किसी भी बैंक की साख को मापने का एक महत्त्वपूर्ण पैमाना है तथा इसमें वृद्धि होना बैंक के लिये चिंता का विषय बन जाता है। अतः यह आवश्यक है कि बैंक अपने NPA का स्तर न्यूनतम बनाए रखें।

पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio-CAR)

  • CAR, बैंक की उपलब्ध पूंजी का एक माप है जिसे बैंक के जोखिम-भारित क्रेडिट एक्सपोज़र के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • पूंजी पर्याप्तता अनुपात को पूंजी-से-जोखिम भारित संपत्ति अनुपात (Capital-to-Risk Weighted Assets Ratio- CRAR) के रूप में भी जाना जाता है। इसका उपयोग जमाकर्त्ताओं की सुरक्षा और विश्व में वित्तीय प्रणालियों की स्थिरता और दक्षता को बढ़ावा देने के लिये किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 07 जनवरी, 2020

मिशन इन्द्रधनुष 2.0

टीकाकरण अभियान को गति देने और कोई भी बच्चा टीकाकरण से छूट न जाए इसके लिये 07 जनवरी 2020 से मिशन इंद्रधनुष 2.0 अभियान चलाया जा रहा है। यह अभियान 27 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 272 ज़िलों में चलाया जा रहा है। अभियान के तहत बिहार और उत्तर प्रदेश के 650 ब्लॉक पर मुख्य रूप से ध्यान दिया जाएगा क्योंकि इन प्रखंडों में टीकाकरण की दर कम है। मिशन इंद्रधनुष 2.0 के तहत गर्भवती महिलाओं सहित नवजात बच्चे से लेकर 2 साल तक के बच्चों का पूर्ण टीकाकरण किया जाएगा। इस अभियान के तहत बारह बीमारियों से बचाव के लिये टीके लगाए जाएंगे।


अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मीडिया सम्मान

सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 07 जनवरी 2020 को राष्ट्रीय मीडिया केंद्र (नई दिल्ली) में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान 30 मीडिया संगठनों को पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मीडिया सम्मान प्रदान किया। उल्लेखनीय है कि यह पुरस्कार समाज के फायदे के लिये योग को प्रोत्साहित करने वाले मीडिया संगठनों को दिया गया है। यह पुरस्कार तीन श्रेणियों- रेडियो, टीवी और प्रिंट मीडिया में दिया गया।


पी. मंगेश चंद्रन

भारत के पी. मंगेश चंद्रन ने इंग्लैंड के हेस्टिंग्स में 9 दौर में अजेय रहते हुए प्रतिष्ठित 95वें हेस्टिंग्स अंतर्राष्ट्रीय शतरंज कॉन्ग्रेस का खिताब जीत लिया है। ग्रैंडमास्टर चंद्रन ने 06 जनवरी 2020 को अंतिम दौर में भारत के ही ग्रैंडमास्टर जी.ए. स्टेनी के साथ ड्रा खेलते हुए 9वें दौर में साढ़े सात अंक अर्जित कर खिताब अपने नाम किया। ज्ञात हो कि चंद्रन ने 8वें दौर में भारत के ही ग्रैंडमास्टर दीप सेनगुप्ता को हराया था। स्टेनी साढ़े छह अंकों के साथ छठे स्थान पर रहे, जबकि भारत की महिला ग्रैंडमास्टर आर. वैशाली छह अंकों के साथ 10वें स्थान पर रहीं।


आपदा राहत फंड

भारत सरकार ने देश के 7 राज्यों के लिये 5,908 करोड़ रुपए का आपदा राहत फंड मंज़ूर किया है। इनमें कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, असम, मध्य प्रदेश, त्रिपुरा, महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि ये राज्य बाढ़ और भूस्खलन से काफी प्रभावित थे। इस फंड में 75 प्रतिशत योगदान केंद्र सरकार द्वारा किया जाएगा, जबकि राज्यों द्वारा 25 प्रतिशत योगदान दिया जाएगा।


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