डेली न्यूज़ (06 Sep, 2019)



ग्लोबल लिवेबिलिटी इंडेक्स 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (The Economist Intelligence Unit) द्वारा ग्लोबल लिवेबिलिटी इंडेक्स 2019 जारी किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के अंतर्गत किसी विशेष देश को निम्नलिखित पाँच श्रेणियों के आधार पर रैंकिंग प्रदान की जाती है:
    • स्थायित्व (Stability)
    • संस्कृति एवं पर्यावरण (Culture and Environment)
    • स्वास्थ्य देखभाल (Healthcare)
    • शिक्षा (Education)
    • आधारभूत अवसंरचना (Infrastructure)
  • किसी शहर में प्रमुख कारकों को स्वीकार्य (acceptable), सहन करने योग्य (Tolerable), असुविधाजनक (Uncomfortable), अवांछनीय (Undesirable) या असहनीय (Untolerable) के रूप में मूल्यांकित किया जाता है।
  • इस रिपोर्ट में विश्व के 140 शहरों को उनकी रहने की स्थिति के आधार पर रैंक प्रदान की गई है।
  • हालाँकि इस सूचकांक में धनी देशों के मध्यम आकार वाले शहरों का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा।
    • इसका प्रमुख कारण इन शहरों में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली, अनिवार्य और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा तथा कार्यात्मक सड़क एवं रेल बुनियादी ढाँचा का विकसित होना है।
  • इस सूची में वियना (ऑस्ट्रिया) लगातार दूसरे वर्ष शीर्ष पर है।
  • इस इंडेक्स में एशियाई शहरों ने वैश्विक औसत से कम स्कोर प्राप्त किया है।
  • वैश्विक रूप से दस सबसे कम स्कोर प्राप्त करने वाले शहरों में से तीन एशिया से हैं:
    • पापुआ न्यू गिनी में पोर्ट मोरेस्बी (135वाँ)
    • पाकिस्तान का कराची (136वाँ)
    • बांग्लादेश का ढाका (138वाँ)
  • ब्रिक्स देशों में चीन का सुजॉय (Suzhou) शहर 75वें स्थान पर सबसे उपर जबकि भारत की राजधानी नई दिल्ली 118वें स्थान पर सबसे नीचे है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिमी यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका विश्व में रहने योग्य सर्वोत्तम क्षेत्र हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, कराची, त्रिपोली एवं ढाका रहने योग्य शहरों में निम्नतम स्थान हैं जबकि दमिश्क का स्थान अंतिम है।
  • फ्राँस की राजधानी पेरिस में सरकार विरोधी प्रदर्शन ‘येलो वेस्ट’ (Yellow Vest) होने के कारण इसकी रैंक घटकर 25 हो गई है।
  • इस इंडेक्स में पहली बार निवास योग्यता पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को शामिल किया गया है। इन प्रभावों में ख़राब वायु गुणवत्ता, असहनीय औसत तापमान एवं पर्याप्त पेयजल के अभाव को शामिल किया गया है।

भिन्न-भिन्न आधार पर शहरों का वर्गीकरण

पाँच सर्वाधिक रहने योग्य शहर

रैंक शहर देश
1. वियना ऑस्ट्रिया
2. मेलबर्न ऑस्ट्रेलिया
3. सिडनी ऑस्ट्रेलिया
4. ओसाका जापान
5. कलगरी कनाडा

पाँच सबसे कम रहने योग्य शहर

रैंक शहर देश
140. दमिश्क सीरिया
139. लागोस नाइजीरिया
138. ढाका बांग्लादेश
137 त्रिपोली लीबिया
136. कराची पाकिस्तान


पाँच सर्वाधिक सुधार करने वाले शहर

रैंक शहर देश
68 मॉस्को रूस
77 बेलग्रेड सर्बिआ
107 हनोई वियतनाम
117 कीव यूक्रेन
123 आबिदजान कोटे द आइवरी

पाँच कम सुधार करने वाले शहर

रैंक शहर देश
56 डेट्रॉयट संयुक्त राज्य अमेरिका
99 असुन्सियोन पराग्वे
106 ट्यूनिश ट्यूनीशिया
131 कराकास वेनेज़ुयला
137 त्रिपोली

लीबिया

भारतीय शहरों की स्थिति

  • रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली (56.3 स्कोर) की रैंक में 6 स्थानों की कमी करते हुए 118वाँ एवं मुंबई (56.2 स्कोर) को 119वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।
  • मुंबई की रैंक में कमी का कारण इसके सांस्कृतिक स्कोर का कम होना है।
  • दिल्ली की रैंक में कमी इसके सांस्कृतिक एवं पर्यावरणीय और अपराधों में वृद्धि के कारण स्थिरता स्कोर में कमी की वजह है।
  • दिल्ली को समग्र विकास के लिये सेक्टर आधारित समाधानों की आवश्यकता है। जैसे सुरक्षा के लिये आवासीय क्षेत्रों की आवश्यकता वाणिज्यिक क्षेत्र की अपेक्षा अलग होती है।
  • सार्वजनिक परिवहन और अंतिम बिंदु तक कनेक्टिविटी को बढ़ावा देकर सुरक्षा और प्रदूषण जैसी समस्याओं को हल किया जा सकता है।

द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट

The Economist Intelligence Unit

  • यह यूनिट कंपनी द इकोनॉमिस्ट ग्रुप का शोध एवं विश्लेषण प्रभाग है।
  • इसे वर्ष 1946 में बनाया गया था।
  • इसका प्रमुख कार्य पूर्वानुमान और सलाहकारी सेवाएँ प्रदान करना है।
  • इसका मुख्यालय लंदन में है।

स्रोत: द इकोनॉमिस्ट


भारत की एक्ट फार ईस्ट पॉलिसी

चर्चा में क्यों?

रूस में आयोजित ईस्टर्न इकोनाॅमिक फोरम (Eastern Economic Forum- EEF) में प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्र (Russia’s Far East Region) में विकास कार्यों को गति देने एवं रूस से रिश्तों को और अधिक मज़बूत करने के लिये ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ (Act East policy) की ही तरह ‘एक्ट फार ईस्ट पॉलिसी’ (Act Far East policy) की शुरुआत की है।

प्रमुख बिंदु:

  • एक्ट फार ईस्ट पॉलिसी के तहत भारत ने रूस के फार ईस्ट (Far East) में विकास कार्यों के लिये 1 बिलियन डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट (Line of Credit) की भी घोषणा की है।
  • भारत की इस नीति से भारतीय आर्थिक कूटनीति के विकास को एक नई राह मिलेगी एवं रूस के साथ संबंधों को और अधिक घनिष्ट किया जा सकेगा।
  • उल्लेखनीय है कि अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत भारत पूर्वी एशिया (East Asia) के साथ सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है।

क्या है लाइन ऑफ क्रेडिट?

लाइन ऑफ क्रेडिट (Line of Credit-LOC) एक प्रकार का ‘सुलभ ऋण’ (Soft Loan) होता है जो एक देश की सरकार द्वारा किसी अन्य देश की सरकार को रियायती ब्याज दरों पर दिया जाता है। आमतौर LOC इस प्रकार की शर्तों से जुड़ा हुआ होता है कि उधार लेने वाला देश उधार देने वाले देश से कुल LOC का निश्चित हिस्सा आयात करेगा। इस प्रकार दोनों देशों को अपने व्यापार और निवेश संबंधों को मज़बूत करने का अवसर मिलता है।

  • भारत ने अब तक SAARC सदस्यों को लाइन ऑफ क्रेडिट दिया है, जिनमें बांग्लादेश को 8 बिलियन डॉलर, श्रीलंका को 2 बिलियन डॉलर और अफगानिस्तान को 1.2 बिलियन डॉलर का ऋण शामिल है, परंतु अभी तक भारत ने किसी विकसित अर्थव्यवस्था को लाइन ऑफ क्रेडिट नहीं दिया था।

भारत के निहितार्थ:

  • रूस का यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों जैसे - तेल, प्राकृतिक गैस, लकड़ी, सोना और हीरे आदि से संपन्न है एवं भारत को अपनी आर्थिक वृद्धि की दर को बरकरार रखने के लिये इन सभी संसाधनों की ज़रूरत है।
  • भारत खाड़ी देशों पर अपनी ऊर्जा निर्भरता को कम करना चाहता है, इसलिये वह रूस से इन मुद्दों पर संपर्क साध रहा है, विदित है कि रूस के पास पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा संसाधनों की उपलब्धता है।
  • भारत जैसे विकासशील देशों के लिये उनकी ऊर्जा ज़रूरतें मायने रखती हैं, इसलिये संभव है कि इस प्रकार के विकल्प तलाशने के बाद भारत, वैश्विक भू-राजनीतिक पटल पर अधिक मज़बूती से उभरे।
  • भारत और रूस के बीच इस क्षेत्र में विकास के लिये श्रमशक्ति (Manpower) के आयात पर भी चर्चा की गई, इसके परिणामस्वरूप भारतीयों को इस क्षेत्र में रोज़गार के नए अवसर मिल सकेंगे।
    • उल्लेखनीय है कि रूस का यह क्षेत्र, क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व के कुछ बड़े क्षेत्रों की सूची में शामिल है, परंतु इसके बावजूद भी इस क्षेत्र का जनसंख्या घनत्व काफी कम है।
    • रूस में भारतीय प्रवासियों की कम संख्या वहाँ पर सॉफ्ट-पॉवर (Soft Power) को कम कर रही है, प्रवासियों की संख्या बढ़ने से वहाँ पर भारत का सॉफ्ट-पॉवर बढ़ेगा, साथ ही भारत और रूस के संबंध बहुआयामी होंगे।
    • अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों द्वारा अपने वीज़ा नियमों को कठोर करने के बाद वहाँ पर भारतीयों का प्रवेश मुश्किल हो रहा है, इसलिये भारत द्वारा श्रमशक्ति (Manpower) के आयात संबंधी इस प्रकार के समझौते भारतीयों को बेहतर रोज़गार के मौके प्रदान करेंगे।
  • इस क्षेत्र के भू-रणनीतिक महत्त्व को देखते हुए भारत ने वर्ष 1992 में व्लादिवोस्तोक (Vladivostok) में वाणिज्य दूतावास की शुरुआत की थी। भारत वह पहला देश है जिसने व्लादिवोस्तोक में इस प्रकार का कदम उठाया था।
  • भारत के इस निर्णय को चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स पॉलिसी’ (String of Pearls Policy) के काउंटर के रूप में भी देखा जा सकता है।
  • यह ठंडे साइबेरियाई जलवायु में स्थित एक क्षेत्र है, लेकिन अधिक महत्त्वपूर्ण रूप से यह चीन, मंगोलिया, उत्तर कोरिया और जापान (समुद्री) के साथ सीमा साझा करता है, जो इसे परिवहन की दृष्टि से काफी सुगम बनाता है।

भारत द्वारा उठाए गए इस प्रकार के महत्त्वपूर्ण कदम भारत को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर और अधिक मज़बूत बनाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वित्तीय वर्ष 2024-25 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का उद्देश्य निर्धारित किया है और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये हमें उन सभी क्षेत्रों की ओर भी ध्यान देना चाहिये जहाँ अब तक भारत की पहुँच कम है। इस संदर्भ में एक्ट फार ईस्ट पॉलिसी काफी लाभदायक साबित हो सकती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


मुद्रा योजना और रोज़गार सृजन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में श्रम और रोज़गार मंत्रालय के तहत श्रम ब्यूरो (Labour Bureau) द्वारा प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (Pradhan Mantri MUDRA Yojana-PMMY) के संबंध में एक सर्वेक्षण किया गया है।

सर्वेक्षण से जुड़े मुख्य बिंदु:

  • सर्वेक्षण में भाग लेने वाले पाँच में से मात्र एक ही लाभार्थी (कुल लाभार्थियों में से मात्र 20.6 फीसदी लाभार्थी) ने मुद्रा ऋण का उपयोग कर एक नया व्यवसाय आरंभ किया, शेष सभी लाभार्थियों ने मुद्रा ऋण का उपयोग अपने मौजूदा व्यवसाय के विस्तार के लिये किया।
  • मुद्रा की तीन श्रेणियों- शिशु, किशोर और तरुण के तहत कुल 5.71 लाख करोड़ रुपए मंज़ूर किए गए थे, जबकि एक ऋण का औसत आकार 46,536 रुपए था।
  • वर्ष 2017-18 में मुद्रा योजना के तहत स्वीकृत कुल ऋण में से तीन प्रकार के ऋणों की हिस्सेदारी इस प्रकार है:
    • शिशु ऋण - 42 प्रतिशत
    • किशोर ऋण - 34 प्रतिशत
    • तरुण ऋण - 24 प्रतिशत
  • वर्ष 2017-18 में मुद्रा योजना के तहत तीन प्रकार के ऋणों द्वारा नई नौकरियों के सृजन का हिस्सा निम्नानुसार है:
    • शिशु ऋण - 66 प्रतिशत
    • किशोर ऋण - 18.85 प्रतिशत
    • तरुण ऋण - 15.51 प्रतिशत
  • मुद्रा योजना के तहत क्षेत्रवार रोज़गार सृजन के आँकड़े:
    • सेवा क्षेत्र - 34.34 प्रतिशत
    • व्यापार क्षेत्र - 33.23 प्रतिशत
    • कृषि क्षेत्र - 20.33 प्रतिशत
    • विनिर्माण क्षेत्र - 11.7 प्रतिशत
  • केवल सेवा और व्यापार क्षेत्र ने एक साथ रोज़गार के सृजन में दो-तिहाई से अधिक का योगदान दिया

यह सर्वे अप्रैल 2018 से नवंबर 2018 के मध्य आयोजित किया गया था एवं इसमें कुल 97,000 लाभार्थियों ने हिस्सा लिया था।

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना:

(Pradhan Mantri MUDRA Yojana-PMMY)

  • इस योजना की शुरुआत अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई थी। इसके तहत सूक्ष्म, लघु और मध्यम इकाइयों के उद्योगों को ज़मानत मुक्त ऋण प्रदान किया जाता है।
  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत तीन प्रकार के ऋणों की व्यवस्था है:
    • शिशु (Shishu) - 50,000 रुपए तक के ऋण
    • किशोर (Kishor) - 50,001 से 5 लाख रुपए तक के ऋण
    • तरुण (Tarun) - 500,001 से 10 लाख रुपए तक के ऋण
  • इसका उद्देश्य माइक्रोफाइनेंस को आर्थिक विकास के एक उपकरण के रूप में उपयोग करना है जो कमज़ोर वर्ग के लोगों, छोटे विनिर्माण इकाइयों, दुकानदारों, फल और सब्जी विक्रेताओं, ट्रक और टैक्सी ऑपरेटरों को लक्षित करने, खाद्य सेवा इकाइयों, मरम्मत की दुकानों, मशीन ऑपरेटरों, कारीगरों और खाद्य उत्पादकों को आय सृजित करने का अवसर प्रदान करने में मदद करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


मोबाइल विज्ञान प्रदर्शनी

चर्चा में क्यों?

संपूर्ण लद्दाख क्षेत्र के लिये 5 सितंबर, 2019 को लेह में संस्कृति मंत्रालय द्वारा पहली मोबाइल विज्ञान प्रदर्शनी की शुरुआत की गई, इस प्रकार की विज्ञान प्रदर्शनी का आयोजन भारत के आकांक्षी ज़िलों (Aspirational Districts) में भी किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु:

  • मोबाइल विज्ञान प्रदर्शनी (Mobile Science Exhibition) लद्दाख के लोगों को अपनी गतिशीलता और ज्ञान के माध्यम से लाभान्वित करेगी।

मोबाइल विज्ञान प्रदर्शनी कार्यक्रम मूल रूप से वर्ष 1965 में शुरू किये गए मोबाइल साइंस म्यूज़ियम (Mobile Science Museum- MSM) से संबंधित है।

  • इस प्रदर्शनी का उद्देश्य संग्रहालय तक न पहुँच पाने वाले लोगों तक संग्रहालय सुविधा को पहुँचाना है।
  • विज्ञान आधारित शिक्षा के गैर-औपचारिक मोड के साथ औपचारिक शिक्षा के पूरक के रूप में अभी तक यह कार्यक्रम यह बहुत सफल रहा है, इस कार्यक्रम के माध्यम से समाज में वैज्ञानिक जागरूकता और रचनात्मक क्षमता विकसित की जाएगी।
  • इस कार्यक्रम को संस्कृति मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद (National Council of Science Museums) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science & Technology) द्वारा संयुक्त रूप से क्रियान्वित किया जा रहा है।
  • यह कार्यक्रम संस्कृति मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित है।
  • इस प्रदर्शनियों हेतु चयनित विषय:
  1. मापन (Measurement)
  2. दैनिक प्रयोग के उपकरण
  3. भोजन और स्वास्थ्य
  4. जल पर ध्यान देने के साथ-साथ जीवन और उनके बीच अंतर्संबंध (Chemistry & Life with focus on Water)
  5. ऊर्जा
  6. सफाई और स्वच्छता (Hygiene & Sanitation)
  7. मानव कल्याण के लिये अंतरिक्ष विज्ञान
  • लेह, लद्दाख क्षेत्र में इस कार्यक्रम को शुरू करने के कुछ प्रमुख उद्देश्य:
  1. आम नागरिकों और छात्रों के बीच विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को लोकप्रिय बनाना।
  2. समाज में वैज्ञानिक जागरूकता पैदा करना।
  3. युवा लोगों में अनुसंधान की भावना उत्पन्न करना।
  4. युवाओं को विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित में अपना करियर बनाने के लिये प्रेरित करना।
  5. विज्ञान आधारित शिक्षा के साथ स्कूलों और कॉलेजों में औपचारिक शिक्षा प्रदान करना ।
  6. समाज में विज्ञान की संस्कृति को बढ़ावा देना।

राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद

(National Council of Science Museums- NCSM)

  • NCSM संस्कृति मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संगठन है।
  • यह देश भर में विस्तारित अपने 25 विज्ञान केंद्रों/संग्रहालयों के नेटवर्क के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने के लिये विज्ञान का संचार कर रहा है।
  • यह संगठन विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रयोग को प्रेरित करने के लिये यात्रा तथा अल्पकालिक प्रदर्शनियों, मोबाइल विज्ञान प्रदर्शनियों जैसे शैक्षिक कार्यक्रमों का आयोजन करता है।
  • वर्तमान समय में NCSM राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर विज्ञान संचार के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण संस्थान बन गया है।

स्रोत: PIB


जलवायु परिवर्तन और केले की कृषि

चर्चा में क्यों?

एक अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में केले के उत्पादन में भारी गिरावट आने की संभावना है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारत विश्व में केले का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है। यह एक महत्त्वपूर्ण वाणिज्यिक फसल है।
  • हाल ही में ब्रिटेन की एक्ज़ेटर यूनिवर्सिटी (University of Exeter) के शोधकर्त्ताओं ने केले के उत्पादन और निर्यात पर वर्तमान के साथ साथ भविष्य में पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन किया।
  • नेचर क्लाइमेट चेंज (Nature Climate Change) पत्रिका के अनुसार विश्व में केले के सबसे बड़े उत्पादक और उपभोक्ता भारत तथा चौथे सबसे बड़े उत्पादक ब्राज़ील सहित कई देशों में फसल की पैदावार में भारी गिरावट देखने को मिली है।

केले के उत्पादन को फ्यूजेरियम विल्ट (Fusarium Wilt) नामक बीमारी प्रभावित कर रही हैं।

  • अध्ययन के अनुसार जहाँ एक ओर कुछ देशों में केले के उत्पादन में कमी आने की संभावना है वहीं दूसरी ओर इक्वाडोर और होंडुरास तथा कई अफ्रीकी देशों में केले के उत्पादन में समग्र वृद्धि देखने को मिल सकती है।
  • अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने अत्याधुनिक मॉडलिंग तकनीकों (Sophisticated Modelling Techniques) का उपयोग करके केले की उत्पादकता पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का आकलन किया।
  • केला अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इक्वाडोर और कोस्टारिका आदि देशों की अर्थव्यवस्था में केला तथा इससे बने उत्पाद महत्त्वपूर्ण हिस्सा रखते हैं।

भारत में केले का उत्पादन

  • भारत, विश्‍व में केले का सर्वाधिक उत्‍पादन करने वाला देश है। भारत में 0.88 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में 29.7 मिलियन टन केले का उत्‍पादन होता है। भारत में केले की उत्‍पादकता 37 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर है।
  • यद्यपि भारत में केले की खेती विश्‍व की तुलना में 15.5 प्रतिशत क्षेत्र में की जाती है, परन्‍तु भारत में केले का उत्‍पादन विश्‍व की तुलना में 25.58 प्रतिशत होता है।

उल्‍लेखनीय है कि केले की मांग में लगातार वृद्धि देखी गई है। यही कारण है कि मंत्रालय द्वारा केले की घरेलू मांग वर्ष 2050 तक बढ़कर 60 मिलियन टन होने का अनुमान व्यक्त किया गया है।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्रीय संगठन

चर्चा में क्यों?

5 सितंबर, 2019 को विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्रीय संगठन (WHO’s Regional Committee for South-East Asia) की बैठक संपन्न हुई।

प्रमुख बिंदु

  • इस बैठक में सदस्य देशों ने वर्ष 2023 तक दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र से खसरा और रूबेला को समाप्त करने का संकल्प लिया है।
  • विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्रीय संगठन का यह 72वां सत्र था। इसका आयोजन भारत की राजधानी दिल्ली में किया गया।
  • खसरा और रूबेला दोनों बिमारियों की पहचान व बीमारी के दौरान निगरानी हेतु उच्च गुणवत्ता युक्त लैब की आवश्यकता होती है। सदस्य देशों के मध्य इसकी आपूर्ति पर सहमती बनी है। उपरोक्त लैब की सहायता से इन बिमारियों से निपटने की प्रक्रिया में तीव्रता आएगी।
  • इस सत्र में सभी देशों ने वर्ष 2023 तक खसरा और रूबेला वायरस के प्रसार को रोकने के लिये राजनीतिक, सामाजिक और वित्तीय सहायता जुटाने का संकल्प लिया।
  • इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सदस्य देशों ने राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर लोगों में खसरा और रूबेला के प्रति प्रतिरक्षा प्रणालियों को मजबूत करने पर सहमति व्यक्त की है।
  • वर्ष 2014 से खसरा उन्मूलन और रूबेला नियंत्रण दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र की प्रमुख प्राथमिकता रही है। भूटान, कोरिया डेमोक्रेटिक पीपल्स रिपब्लिक, मालदीव, श्रीलंका और तिमोर-लेस्ते से खसरा का उन्मूलन हो चुका है, जबकि बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल, श्रीलंका और तिमोर-लेस्ते आदि देशों ने रूबेला को नियंत्रित किया है।
  • सदस्य देशों ने "खसरा और रूबेला उन्मूलन 2020-2024 के लिये रणनीतिक योजना" को अपनाया है। यह क्षेत्र में खसरा और रूबेला उन्मूलन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में सहायक सिद्ध होगी।
  • खसरा के उन्मूलन से इस क्षेत्र में प्रतिवर्ष लगभग 500,000 बच्चों की मृत्यु को रोका जा सकेगा जो इस बीमारी के कारण होती हैं।
  • जबकि रूबेला एवं जन्मजात रूबेला सिंड्रोम (Rubella and Congenital Rubella Syndrome-CRS) के उन्मूलन से लगभग 55,000 मामले को नियंत्रित किया जा सकेगा।

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2014 में ‘खसरा उन्मूलन और रूबेला एवं जन्मजात रूबेला सिंड्रोम (Rubella and Congenital Rubella Syndrome-CRS) नियंत्रण 2020’ कार्यक्रम को क्षेत्र के आठ फ्लैगशिप कार्यक्रमों में से एक घोषित किया गया। इसके तहत सदस्य देशों में एक क्षेत्रीय रणनीतिक योजना लागू की गई थी।
  • वर्ष 2014-17 की अवधि में खसरे के कारण होने वाली मृत्यु दर में 23% की गिरावट दर्ज की गई है।

भारत के संबंध में

  • नवीनतम ‘ग्लोबल मीज़ल्स एंड रूबेला अपडेट’ के अनुसार, भारत में वर्ष 2018 में खसरा और रूबेला के क्रमश: 56,399 और 1,066 मामलों की पुष्टि हुई है, और भारत इन बीमारियों के उन्मूलन लक्ष्य से काफी दूर है।
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2017 में ‘खसरा और रूबेला टीकाकरण कार्यक्रम’ (MR Vaccination program) शुरू किया।
  • इसके तहत 9 माह से 15 वर्ष के आयु के सभी बच्चों का टीकाकरण किया जायेगा।
  • इसके अतरिक्त सार्वभौमिक प्रतिरक्षण कार्यक्रम (Universal Immunisation Programme -UIP) एवं ‘मिशन इंद्रधनुष’ के माध्यम से भी खसरा-रूबेला के उन्मूलन के प्रयास किये जा रहे हैं।

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्रीय संगठन

(WHO’s Regional Committee for South-East Asia)

  • विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्रीय संगठन, दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में विश्व स्वास्थ्य संगठन की शासी निकाय (governing body) है, जिसमें क्षेत्र के 11 सदस्य देशों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
  • यह समिति क्षेत्र में स्वास्थ्य के क्षेत्र में विकास की प्रगति की समीक्षा करने के लिये प्रति वर्ष बैठक का आयोजन करता है।
  • यह समिति सदस्य देशों के लिये स्वास्थ्य के मुद्दों पर संकल्प (Resolution) तैयार करती है।
  • बांग्लादेश, भूटान, कोरिया डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक, इंडिया, इंडोनेशिया, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, तिमोर-लेस्ते इसके सदस्य देश हैं।

खसरा (Measles)

  • खसरा वायरस के कारण होने वाली संक्रामक बीमारी है जो वैश्विक स्तर पर छोटे बच्चों में मृत्यु का कारण बनती है।
  • खसरा (Measles) श्वसन प्रणाली में वायरस, विशेष रूप से मोर्बिलीवायरस (Morbillivirus) के जीन्स पैरामिक्सोवायरस (Paramicovirus) के संक्रमण से होता है।
  • इसके लक्षणों में बुखार, खाँसी, नाक का बहना, लाल आँखें और एक सामान्यीकृत मेकुलोपापुलर एरीथेमाटस चकते भी शामिल हैं।

रूबेला (Rubella)

  • रुबेला को “जर्मन खसरा” के नाम से भी जाना जाता है, यह बीमारी रुबेला वायरस के कारण होती है।
  • यह संक्रमित व्यक्ति की नाक और ग्रसनी से स्राव की बूंदों से या फिर सीधे रोगी व्यक्ति के संपर्क में आने पर फैलता है।
  • आमतौर पर इसके लक्षण कम ज़ाहिर होते हैं। नवजात बच्चों में बुखार, सिरदर्द, संक्रामक चकत्ते और कान के पीछे या गर्दन की लसिका ग्रंथियों में वृद्धि होना। हालाँकि, कभी-कभी कोई लक्षण नहीं भी पाया जाता है।
  • रुबेला विकसित हो रहे भ्रूण में विसंगतियाँ भी पैदा कर सकता है। वस्तुतः जन्मजात रुबेला सिंड्रोम (Congenital Rubella Syndrome- CRS) उन महिलाओं के बच्चों में होने की संभावना ज़्यादा होती है जो गर्भावस्था के पहले 3 महीनों के दौरान इससे संक्रमित हुई हों।
  • CRS के लक्षणों में बहरापन, अंधापन, दिल की विकृतियाँ और मानसिक विकास में कमी शामिल हैं।

स्रोत: द हिंदू


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (06 September)

  • भारत ने नए आतंकवाद निरोधक कानून के तहत जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अज़हर, लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज़ मोहम्मद सईद, ज़की-उर-रहमान लखवी और दाऊद इब्राहिम को आतंकी घोषित किया है। केंद्र सरकार ने हाल ही में किसी भी व्यक्ति को आतंकी घोषित करने के लिये गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम (UAPA), 1967 में संशोधन किया था। अभी तक भारत में किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत तौर पर आतंकी घोषित करने की कानूनी व्यवस्था मौजूद नहीं थी। इससे पूर्व किसी संगठन को ही आतंकी घोषित किया जा सकता था। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि केवल आतंकी संगठनों के नाम बदलकर पुराने काम जारी रखना अब संभव नहीं हो सकेगा। भारत के अलावा अन्य कई देशों में आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिये व्यक्तिगत स्तर पर भी दोषियों को आतंकी घोषित करने के प्रावधान मौजूद हैं।
  • स्टार्ट-अप कंपनियों को आसान टैक्स व्यवस्था की सुविधा देने के लिये तथा उनकी टैक्स संबंधी शिकायतों को दूर करने के लिये हाल ही में एक स्टार्ट-अप प्रकोष्ठ का गठन किया गया है। प्रकोष्ठ का गठन CBDT द्वारा जारी एक आदेश के तहत किया गया है। इसके अलावा DPIIT द्वारा मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप कंपनियों की आकलन प्रक्रिया को सरल बनाया गया है। CBDT ने स्टार्ट-कंपनियों के लंबित आकलनों को पूरा करने के लिये समय-सीमा भी तय कर दी है।
  • लगभग 3 महीने तक चले विरोध प्रदर्शनों के बाद हाँगकाँग सरकार ने चीनी प्रत्यर्पण बिल वापस ले लिया है। इस बिल के विरोध में हाँगकाँग में लाखों लोकतंत्र समर्थकों ने सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया था। इस बिल के तहत अगर कोई व्यक्ति अपराध करके हाँगकाँग आता है तो उसे जाँच प्रक्रिया में शामिल होने के लिये चीन भेजा जा सकता था। हाँगकाँग की सरकार ने इस मौजूदा कानून में संशोधन के लिये इसी वर्ष फरवरी में प्रस्ताव पेश किया था। कानून में संशोधन का प्रस्ताव उस घटना के बाद लाया गया था, जिसमें एक व्यक्ति ने ताइवान में अपनी प्रेमिका की कथित तौर पर हत्या कर दी थी और हाँगकाँग वापस आ गया था। जहाँ तक बात हाँगकाँग की है तो यह चीन का एक स्वायत्त द्वीप है और चीन इसे अपने संप्रभु राज्य का हिस्सा मानता है। वहीं हाँगकाँग की ताइवान के साथ कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं है, जिसके कारण हत्या के मुकदमे के लिये उस व्यक्ति को ताइवान भेजना मुश्किल है। यदि यह बिल पारित हो जाता तो इससे चीन को उन क्षेत्रों में संदिग्धों को प्रत्यर्पित करने की अनुमति मिल जाती, जिनके साथ हाँगकाँग के समझौते नहीं हैं। आपको बता दें तब चीन ने 'एक देश-दो व्यवस्था' की अवधारणा के तहत कम-से-कम वर्ष 2047 तक लोगों की स्वतंत्रता और अपनी कानूनी व्यवस्था को बनाए रखने की गारंटी दी थी। लेकिन ऐसा ज़्यादा समय तक चल नहीं पाया। हाँगकाँग में वर्ष 2014 में 79 दिनों तक चले 'अंब्रेला मूवमेंट' के बाद चीनी सरकार ने लोकतंत्र का समर्थन करने वाले लोगों पर कठोर कार्रवाई की थी।
  • स्किल इंडिया मिशन के लिये प्रशिक्षकों को प्रोत्‍साहन देने के लिये कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय ने 5 सितंबर को कौशलाचार्य समादर 2019 का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में उत्‍कृष्‍ट योगदान देने वाले प्रशिक्षकों को सम्‍मानित किया गया। विदित हो कि कजान, रूस में आयोजित वर्ल्‍ड स्किल प्रतियोगिता, 2019 के दौरान में भारत ने एक स्‍वर्ण, एक रजत और दो कांस्‍य पदकों सहित 15 उत्‍कृष्‍ट पदक जीते तथा 63 देशों में भारत को 13वाँ स्‍थान मिला। इस वर्ष से कौशलाचार्य पुरस्‍कार कार्यक्रम को प्रत्‍येक वर्ष आयोजित किया जाएगा। इससे कौशल प्रशिक्षकों के योगदान को पहचान मिलेगी।
  • टीम इंडिया के पूर्व खिलाड़ी सुनील जोशी को उत्तर प्रदेश की रणजी टीम का कोच नियुक्त किया गया है। कर्नाटक के रहने वाले सुनील जोशी ने भारत के लिये 15 टेस्ट मैचों में 41 विकेट लिये हैं। इसके अलावा उन्होंने 69 एकदिवसीय मैचों में 69 विकेट लिये हैं। इससे पहले सुनील जोशी बांग्लादेश क्रिकेट टीम के साथ गेंदबाजी सलाहकार के तौर पर जुड़े थे। हाल ही में इंग्लैंड में समाप्त हुए क्रिकेट विश्व कप के बाद उनका कॉन्ट्रैक्ट खत्म कर दिया गया। विदित हो कि इससे पहले कई पूर्व भारतीय क्रिकेटर उत्तर प्रदेश की रणजी टीम के कोच रह चुके हैं, जिनमें वेंकटेश प्रसाद और मनोज प्रभाकर भी शामिल हैं।