भारतीय अर्थव्यवस्था
तीव्र गति से विकसित होता खाद्यान्नों का साइलो भंडारण तरीका
चर्चा में क्यों?
साइलो में खाद्यान्नों को भंडारित करना भारत में तीव्र गति से बढ़ रहा है क्योंकि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (भारत) आधुनिक भंडारण सुविधाओं की कमी से होने वाले भारी नुकसान को कम करने के लिये प्रयासरत है।
प्रमुख बिंदु
- भारत में बड़े पैमाने पर खाद्यान्नों को बिना किसी प्रौद्योगिकी के उपयोग के पुराने गोदामों में संगृहीत किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन का कहना है कि नतीजतन, 14 अरब डॉलर की उपज सालाना खराब हो जाती है, जबकि 194 मिलियन भारतीय हर दिन भूखे रह जाते हैं।
- उदाहरणस्वरूप 2010 में, भारत ने 68 मिलियन टन फल और 129 मिलियन टन सब्जियों का उत्पादन किया और उस वर्ष यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बागवानी उपज का उत्पादक था। फल और सब्ज़ियों का लगभग 30 प्रतिशत बर्बाद हो गया था। 2005 से मार्च 2013 के बीच भारत ने अनुमानतः 1.94 लाख टन खाद्यान्न बर्बाद कर दिया।
- व्यापक रूप से स्वीकार्य एक वैश्विक अवधारणा साइलो स्टोरेज को एक दशक पहले भारत में प्रस्तुत किया गया था, जो कि मूल्य श्रृंखला में शामिल सभी हितधारकों की धारणाओं और किस्मत को बदल रहा है। साइलो संरचनाएँ अनाज भंडारण करने की एक वैज्ञानिक विधि का पालन करती हैं, जो लम्बी अवधि तक उपज की बड़ी मात्रा को संरक्षित रखने में सक्षम होती हैं।
विकासोन्मुख क्षेत्र
- अडानी कृषि लॉजिस्टिक्स लिमिटेड, साइलो स्टोरेज को सर्वप्रथम अपनाने वाली कंपनियों में से एक थी। वर्तमान में, 8.75 लाख टन की क्षमता के साथ यह देश में एकमात्र साइलो स्टोरेज प्रचालक है तथा इसके द्वारा एक और 4 लाख टन की क्षमता का साइलो निर्मित किया जा रहा है।
- साइलो में संगृहीत सम्पूर्ण मात्रा के साथ केंद्रीय और राज्य सरकारों के लिये लगभग 1 मिलियन टन अनाज धारण करते हुए इस फर्म की उपस्थिति पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार और गुजरात में है। कंपनी का लक्ष्य 2022 तक 2 मिलियन टन की साइलो स्टोरेज क्षमता हासिल करना है।
- अडानी के अलावा, एलटी फूड्स, नेशनल कोलैटरल मैनेजमेंट लिमिटेड, श्री कार्तिकेयन इंडस्ट्रीज और टोटल शिपिंग एंड लॉजिस्टिक कॉर्पोरेशन 21.5 लाख टन साइलो क्षमता का निर्माण कर रहे हैं।
- दो प्रकार के साइलो होते हैं: एक रेल कनेक्टिविटी के साथ और दूसरा रेल कनेक्टिविटी के बिना। रेल कनेक्टिविटी के बिना 50,000 टन क्षमता के एक विशिष्ट स्वचलित साइलो की लागत 6,000 रुपए प्रति टन या स्क्रैच से निर्माण करने पर लगभग 30 करोड़ रुपए की लागत आती है, जबकि जमीन सहित रेल कनेक्टिविटी के साथ एक साइलो (50,000 टन की इकाई के लिये) की लागत करीब 55-60 करोड़ रुपए प्रति इकाई होती है। यदि जमीन को ध्यान में रखा जाता है, पारंपरिक गोदामों के निर्माण से साइलो सस्ता है।
खराब भंडारण व्यवस्था
- भारत 65 मिलियन टन खाद्यान्नों का भंडारण करता है, जिनमें से अधिकांश पारंपरिक खुले या ढके हुए गोदामों में रखे जाते हैं। वास्तव में, खुले गोदामों में 10 मिलियन टन से अधिक अनाज भंडारित होते हैं जो कि आसानी से नुकसान तथा मौसम की अनियमितता से ग्रस्त हो जाते हैं।
- विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, खाद्य उत्पादन कभी भारत के लिये चिंता का विषय नहीं रहा है। भारत ने 2016-17 में 270 मिलियन टन से अधिक भोजन का उत्पादन किया, जो इसकी आबादी को खिलाने के लिये 230 मिलियन टन की वार्षिक आवश्यकता से अधिक है। ये आँकड़े अनाज भंडारण के लिये नई तकनीक अपनाने पर बल देते हैं।
- काफी हद तक पंजाब और हरियाणा को भारत की रोटी की टोकरी के रूप में जाना जाता है। इन दो राज्यों से लगभग दो-तिहाई खाद्यान्न आवश्यकता की पूर्ति होती है। एक बेहतर साइलो स्टोरेज अवसंरचना निश्चित रूप से देश में भूखे लोगों की संख्या में कमी लाने में मदद कर सकती है। भारत को अपनी खाद्यान्न सुरक्षा को मज़बूती प्रदान करने के लिये आधुनिक खाद्यान्न भंडारण अवसंरचना अपनाने की आवश्यकता है।
क्या है साइलो स्टोरेज?
- साइलो स्टोरेज एक विशाल स्टील ढाँचा होता है जिसमें थोक सामग्री भंडारित की जा सकती है। इसमें कई विशाल बेलनाकार टैंक होते हैं। नमी और तापमान से अप्रभावित रहने के कारण इनमें अनाज लंबे समय तक भंडारित किया जा सकता है।
- एक अत्याधुनिक साइलो में रेलवे साइडिंग के जरिये बड़ी मात्रा में अनाज की लोडिंग/अनलोडिंग की जा सकती है। इससे भंडारण और परिवहन के दौरान होने वाले अनाज के नुकसान में काफी कमी आती है।
प्रारंभिक परीक्षा
प्रीलिम्स फैक्ट्स: 6 सितंबर, 2018
हाल ही में ‘पिच टू मूव’ प्रतियोगिता के अंतिम दौर का आयोजन नई दिल्ली स्थित विज्ञान विज्ञान भवन में किया गया।
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डॉ. पूनम खेत्रपाल सिंह को एक बार फिर से विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के क्षेत्रीय निदेशक के रूप में निर्वाचित किया गया है। इसके साथ ही भारत ने दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में WHO के सर्वोच्च पद को बरकरार रखा है। उल्लेखनीय है कि डॉ. पूनम खेत्रपाल सिंह का आगामी कार्यकाल फरवरी 2019 से प्रारंभ होगा।
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शासन व्यवस्था
सरकार ने कौशल प्रशिक्षण को मानकीकृत करने के लिये उठाया कदम
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रशिक्षण महानिदेशालय (DGT) ने सभी डिजिटल कार्यक्रमों में प्रशिक्षण और शिक्षा के मानकीकरण को सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (National Skills Qualifications Framework NSQF) (एक योग्यता-आधारित फ्रेमवर्क) के साथ अपने पाठ्यक्रमों को समायोजित किया है।
प्रमुख बिंदु
- इसका उद्देश्य श्रमिकों को मानक स्तर के अनुकूल कुशल बनाना है।
- कौशल विकास पर DGT, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) और एडोब इंडिया के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
- एडोब के साथ किया गया समझौता वर्ष 2020 तक भारत भर में दस लाख से अधिक छात्रों और शिक्षकों को डिजिटल साक्षरता प्रदान करने के लिये एक कार्यक्रम - एडोब डिजिटल दिशा के लॉन्च का अनुसरण करेगा।
- ऐसे लोग जो मानक दिशा-निर्देशों के तहत ड्रोन को उड़ा सकते हैं तथा इसका रख-रखाव भी कर सकते हैं, को प्रशिक्षित करने के लिये एक नया पाठ्यक्रम "मानव रहित हवाई वाहन/ ड्रोन पायलट" भी लॉन्च किया गया है।
प्रशिक्षण महानिदेशालय
- प्रशिक्षण महानिदेशालय (Directorate General of Training- DGT) श्रम मंत्रालय के अंतर्गत एक शीर्ष संगठन है जो राष्ट्रीय स्तर पर व्यावसायिक प्रशिक्षण से संबंधित कार्यक्रमों, जिसमें महिला व्यावसायिक प्रशिक्षण और रोजगार सेवा सम्मिलित है, के विकास और समन्वय के लिये कार्यरत है।
राष्ट्रीय कौशल विकास निगम
- राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (National Skill Development Corporation -NSDC) सार्वजनिक निजी भागीदारी पर आधारित भारत में अपनी तरह की पहली संस्था है।
- इसका उद्देश्य महत्त्वपूर्ण उद्योगों की भागीदारी के माध्यम से कौशल विकास को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाना और मानकों, पाठ्यक्रमों और गुणवत्ता आश्वासन के लिये आवश्यक ढाँचे का विकास करना है।
- NSDC व्यावसायिक प्रशिक्षण की पहल के लिये धन उपलब्ध कराता है।
प्रौद्योगिकी
J&J द्वारा दोषपूर्ण हिप प्रत्यारोपण पर मुआवज़े का फैसला
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने जॉनसन एंड जॉनसन द्वारा किये गए दोषपूर्ण हिप प्रत्यारोपण के मामले में मरीज़ों हेतु मुआवज़े की राशि निर्धारित करने के लिये केंद्रीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया है, साथ ही राज्यों को भी अलग-अलग समिति का गठन करने का निर्देश दिया है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में ऐसे मामलों में मरीज़ों को मुआवज़ा मुहैया कराने के लिये कोई विशिष्ट कानूनी प्रावधान नहीं हैं।
केंद्रीय समिति
- नई केंद्रीय समिति का गठन 2017 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज के पूर्व डीन डॉ. अरुण अग्रवाल की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञ समिति की सिफारिश के आधार पर किया गया है। उल्लेखनीय है कि डॉ. अरुण अग्रवाल की अध्यक्षता वाली समिति ने प्रत्येक मरीज़ को 20 लाख रुपए का भुगतान करने की सिफारिश की थी।
- नई केंद्रीय समिति की अध्यक्षता सफदरजंग अस्पताल के खेल चोट केंद्र (sports injury centre) के निदेशक आर. के. आचार्य करेंगे और इस समिति में पाँच सदस्य होंगे।
- केंद्रीय समिति आधार मुआवज़े और मजदूरी के नुकसान के आधार पर कुल मुआवज़ा राशि का निर्धारण करेगी।
- हिप प्रत्यारोपण कराने वाले ऐसे सभी मरीज़ मुआवज़े के हकदार हैं जिन्हें एक से अधिक बार सर्जरी करानी पड़ी या हिप प्रत्यारोपण के बाद भी अक्षमता से पीड़ित हैं।
- मरीज़ अपनी सुविधा के अनुसार केंद्रीय विशेषज्ञ समिति या राज्य स्तरीय समितियों से संपर्क कर सकते हैं।
राज्य स्तरीय समितियां
- पैनल के अनुसार, राज्य स्तरीय समितियाँ डिवाइस के उपयोग के कारण मरीज़ों में होने वाली अक्षमता तथा परेशानियों के दावों का मूल्यांकन करेंगी।
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, राज्य स्तरीय समितियों में दो ऑर्थोपेडिक सर्जन, सरकारी मेडिकल कॉलेज का एक रेडियोलॉजिस्ट और औषध नियामक के क्षेत्रीय कार्यालय के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
- राज्यों से समाचार पत्रों में विज्ञापन देने के लिये भी कहा गया है ताकि प्रभावित मरीज़ इन समितियों से संपर्क कर सकें।
- राज्य स्तरीय समिति की सहायता से केंद्रीय विशेषज्ञ समिति उचित कानून के तहत स्वीकार्य मुआवज़े की सटीक राशि निर्धारित करेगी जिसे सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) को सूचित किया जाएगा और CDSCO मरीज़ों के दिये जाने वाली मुआवज़ा राशि के लिये आदेश पारित करेगा।
क्या है हिप ट्रांसप्लांट?
- हिप ट्रांसप्लांट एक सर्जिकल प्रक्रिया है जिसमें एक कृत्रिम हिप का प्रत्यारोपण किया जाता है।
दोषपूर्ण हिप ट्रांसप्लांट का प्रभाव
- दोषपूर्ण हिप ट्रांसप्लांट के कारण रक्त में कोबाल्ट और क्रोमियम का स्तर बहुत अधिक बढ़ जाता है।
- इसके कारण शरीर में टॉक्सिन शामिल हो जाते हैं जो ऊतकों को नुकसान पहुँचाते है साथ ही, शरीर के अन्य अंगों पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।
- इन सबके कारण मरीज़ को न केवल स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न प्रकार की समस्याएँ होती हैं बल्कि उसके शरीर में अत्यधिक दर्द रहता है और चलने-फिरने में भी कठिनाई होती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था
जन-धन योजना ओपन-एंडेड योजना
चर्चा में क्यों?
मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई) को उच्च बीमा कवर के साथ ओवरड्राफ्ट (ओडी) सुविधा को दोगुना करने तथा इसे ओपन-एंडेड योजना में बदलने की मंज़ूरी दे दी है।
प्रमुख बिंदु
- केंद्र ने "प्रत्येक घर" से "सभी वयस्क व्यक्तियों" को इस योजना से जोड़ने पर ज़ोर दिया है।
- उल्लेखनीय है कि पीएमजेडीवाई अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल रही है और केंद्र ने इसे ओपन एंडेड घोषित करने का फैसला किया है तथा ओडी की मौजूदा सीमा को ₹ 5,000 से बढ़ाकर ₹ 10,000 तक किया गया है।
ओपन एंडेड योजना
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- यह कदम पीएमजेडीवाई को जारी रखने के लिये उठाया गया है, जिसे वित्तीय समावेशन पर राष्ट्रीय मिशन के नाम से भी जाना जाता है।
- इसके अलावा, ₹ 2,000 तक के किसी भी ओवरड्राफ्ट के लिये कोई शर्त नहीं की होगी साथ ही ओडी सुविधा का लाभ उठाने के लिये आयु सीमा 18-60 साल को बढ़ाकर 18-65 वर्ष तक की गई है।
- नए रुपे कार्डधारकों के लिये दुर्घटना बीमा कवर को ₹ 2 लाख तक बढ़ा दिया गया है।
प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई) के बारे में
- पीएमजेडीवाई का उद्देश्य वंचित वर्गो जैसे- कमजोर वर्गों और कम आय वर्गो को विभिन्न वित्तीय सेवाएँ यथा- मूल बचत बैंक खाते की उपलब्धता, आवश्यकता आधारित ऋण की उपलब्धता, विप्रेषण सुविधा, बीमा तथा पेंशन उपलब्ध कराना सुनिश्चित करना है।
- किफ़ायती लागत पर व्यापक प्रसार केवल प्रौद्योगिकी के प्रभावी उपयोग से ही संभव है।
- पीएमजेडीवाई वित्तीय समावेशन संबंधी राष्ट्रीय मिशन है, जिसमें देश के सभी परिवारों के व्यापक वित्तीय समावेशन के लिये एकीकृत दृष्टिकोण शामिल है।
- इस योजना में प्रत्येक परिवार के लिये कम-से-कम एक मूल बैंकिंग खाता, वित्तीय साक्षारता, ऋण की उपलब्धता, बीमा तथा पेंशन सुविधा सहित सभी बैंकिंग सुविधाएँ उपलब्ध कराने की अभिकल्पना की गई है।
- इसके अलावा, लाभार्थियों को रूपे डेबिट कार्ड दिया जाएगा जिसमें एक लाख रुपए का दुर्घटना बीमा कवर शामिल है।
- इस योजना में सभी सरकारी (केंद्र/राज्य/स्थानीय निकाय से प्राप्त होने वाले) लाभों को लाभार्थियों के खातों से जोड़ने तथा केंद्र सरकार की प्रत्यक्ष लाभांतरण (डीबीटी) योजना को आगे बढ़ाने की परिकल्पना की गई है।
- टेलिकॉम आपरेटरों के ज़रिये मोबाइल बैंकिंग तथा नकद आहरण केंद्र के रूप में उनके स्थापित केंद्रों का इस योजना के अंतर्गत वित्तीय समावेशन हेतु प्रयोग किये जाने की योजना है।
- पीएमजेडीवाई के अंतर्गत ₹ 81.2 करोड़ रुपए की जमाराशि के साथ अब तक 32.41 करोड़ खाते खोले गए हैं।
- पीएमजेडीवाई के अंतर्गत खाताधारकों में लगभग 53 प्रतिशत महिलाएँ हैं और उनमें भी अधिकांश ग्रामीण और अर्द्ध-ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित हैं।
शासन व्यवस्था
गूगल करेगा ऑनलाइन राजनीतिक विज्ञापनों को ट्रैक
चर्चा में क्यों?
गूगल जो डिजिटल विज्ञापन बाज़ार के एक बड़े हिस्से को नियंत्रित करता है, जल्द ही निर्वाचन आयोग को ऑनलाइन राजनीतिक विज्ञापन पर नज़र रखने में मदद करेगा।
प्रमुख बिंदु
- गूगल एक विशाल तकनीकी तंत्र विकसित करेगा जो न केवल राजनीतिक विज्ञापनों के पूर्व-प्रमाणीकरण को सुनिश्चित करेगा बल्कि अपने प्लेटफार्मों पर विज्ञापनों से संबंधित किये गए व्यय के बारे में विवरण, प्राधिकरण के साथ साझा करेगा।
- हाल ही में गूगल के प्रतिनिधि ने मीडिया प्लेटफॉर्म के विस्तार और विविधता को ध्यान में रखते हुए धारा 126 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अन्य प्रावधानों में संभावित संशोधनों का पता लगाने के लिये स्थापित एक समिति से मुलाकात की थी।
- गूगल के प्रतिनिधि ने आयोग को बताया कि कंपनी राजनीतिक विज्ञापनों को ट्रैक करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि वे निर्वाचन आयोग के मीडिया प्रमाणन और निगरानी समितियों द्वारा पूर्व-प्रमाणित हों।
- उल्लेखनीय है कि निर्वाचन आयोग किसी व्यक्ति या संगठन द्वारा जारी राजनीतिक प्रकृति के विज्ञापनों के पूर्व प्रमाणीकरण के लिये नोडल निकाय है।
निर्वाचन आयोग
- निर्वाचन आयोग एक स्थायी संवैधानिक निकाय है।
- संविधान के अनुसार निर्वाचन आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को की गई थी।
- प्रारंभ में, आयोग में केवल एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त था। वर्तमान में इसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्त होते हैं।
- पहली बार दो अतिरिक्त आयुक्तों की नियुक्ति 16 अक्तूबर, 1989 को की गई थी लेकिन उनका कार्यकाल 01 जनवरी, 1990 तक ही चला।
- उसके बाद 01 अक्तूबर, 1993 को दो अतिरिक्त निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की गई थी, तब से आयोग की बहु-सदस्यीय अवधारणा प्रचलन में है, जिसमें निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जाता है।
- किसी उम्मीदवार द्वारा विज्ञापन संबंधी कोई ऑर्डर दिये जाने पर गूगल को आवश्यक रूप से संभावित ग्राहकों से पूछना होगा, चाहे वे पूर्व-प्रमाणित हों।
- इसके अलवा गूगल ने समिति को यह भी आश्वासन दिया है कि वह राजनीतिक विज्ञापनों की लागत की जानकारी साझा करने के लिये एक तंत्र स्थापित करेगा।
- यह कदम व्यक्तिगत रूप से उम्मीदवारों द्वारा किये गए चुनावी खर्च की गणना में रिटर्निंग अधिकारियों की मदद करेगा।
- इससे पूर्व निर्वाचन आयोग की समिति ने फेसबुक के साथ बैठकें की थीं, जिसने “आचार संहिता” के लागू होने के बाद 48 घंटे की अवधि के दौरान निर्वाचन मामलों से संबंधित किसी भी सामग्री को हटाने के लिये उपकरण विकसित करने पर भी सहमत व्यक्त की थी।
- उल्लेखनीय है कि यह झूठी खबरों की जाँच करने और मतदान से संबंधित विज्ञापनों पर व्यय का विवरण साझा करने के तरीकों पर काम कर रहा है।
- इसके साथ ही कर्नाटक विधानसभा चुनावों के दौरान फेसबुक ने भारतीय तथ्य-जाँच एजेंसी, बूम लाइव के साथ करार किया, जिसने "झूठी खबर" के लगभग 50 से अधिक मामलों की पुष्टि की थी।