डेली न्यूज़ (06 Mar, 2019)



भारत, अवैध दवा व्यापार का एक प्रमुख केंद्र

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑफ ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC) द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, पूरे दक्षिणी एशिया में इंटरनेट के माध्यम से विशेष रूप से क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग कर डार्कनेट ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर दवाओं की खरीद की वैश्विक प्रवृत्ति तेज़ी से बढ़ रही है।

  • अवैध दवाओं का यह कारोबार अन्य देशों की अपेक्षा भारत में ज़्यादा तेज़ी से फैला है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत अवैध दवा व्यापार के प्रमुख केंद्रों में से एक है, जिसमें पुरानी कैनबिस (Cannabis) से लेकर ट्रामाडोल (Tramadol) जैसी नई दवाओं और मेथमफेटामाइन (Methamphetamine) जैसी अवैध दवाइयाँ शामिल हैं।
  • एक अध्ययन के अनुसार, कुछ ऐसे ऑनलाइन विक्रेताओं की पहचान की गई है जो दक्षिण एशिया में डार्कनेट के माध्यम से दवाओं की बिक्री कर रहे हैं। साथ ही 50 ऑनलाइन क्रिप्टो-मार्केट प्लेटफॉर्म पर भारत के 1,000 से अधिक दवा कारोबारियों की भी पहचान की गई है।
  • UNODC देशों के इंटरनेशनल नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड (INCB) द्वारा संकलित रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में भारत में अधिकारियों ने दो अवैध इंटरनेट फार्मेसियों को बंद कर दिया और कई लोगों को इस प्रक्रिया में गिरफ्तार भी किया गया था।

अवैध मार्ग

  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत अवैध रूप से उत्पादित अफीम, विशेष रूप से हेरोइन के लिये भी एक पारगमन देश है। जिसके माध्यम से अवैध दवाओं का कारोबार किया जाता है।
  • तस्करों द्वारा दक्षिण एशिया के रास्ते तस्करी के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला मार्ग जिसे ‘दक्षिणी मार्ग’ के नाम से भी जाना जाता है का एक वैकल्पिक हिस्सा भारत में है, जिसका प्रयोग पाकिस्तान या इस्लामी गणतंत्र ईरान जैसे खाड़ी देशों के माध्यम से पूर्वी अफ्रीका और गंतव्य देशों तक तस्करी के लिये किया जाता है।
  • पिछले साल अगस्त में राजस्व खुफिया निदेशालय और भारतीय सेना के एक संयुक्त अभियान में नियंत्रण रेखा (Line of Control) और अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर भारी मात्रा में हेरोइन जब्त की गई थी।

चिंताजनक आँकड़े

  • रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में मॉर्फिन युक्त अफीम के कच्चे माल के वैश्विक उत्पादन में भारत, ऑस्ट्रेलिया, फ्राँस और तुर्की की संयुक्त रूप से 83 प्रतिशत भागीदारी थी।
  • भारत ने मॉर्फिन सहित सभी रूपों में 66 टन अफीम का उत्पादन किया।
  • INCB के अनुमानों के अनुसार, चिंताजनक बात यह है कि उपलब्ध मॉर्फिन के केवल 10 प्रतिशत हिस्से का ही उपयोग दर्द प्रबंधन के लिये किया गया था और लगभग 88 प्रतिशत तक कोडीन (Codeine) में परिवर्तित कर दिया गया जिसका उपयोग खांसी की दवा बनाने के लिये किया जाता है।
  • ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ (AIIMS) के नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर के अनुसार, भारत अफीम का उत्पादन करने वाले शीर्ष देशों में से एक है जो रोगियों के दर्द प्रबंधन के लिये इन पदार्थों की आवश्यकता की पूर्ति आसानी से कर सकता है।

यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑफ ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC)

  • UNODP संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत एक कार्यालय है जिसकी स्थापना वर्ष 1997 में यूनाइटेड नेशंस इंटरनेशनल ड्रग कंट्रोल प्रोग्राम (UNDCP) और संयुक्त राष्ट्र में अपराध निवारण और आपराधिक न्याय विभाग (Crime Prevention and Criminal Justice Division) के संयोजन द्वारा की गई थी।
  • उस समय इसकी स्थापना दवा नियंत्रण और अपराध निवारण कार्यालय (Office for Drug Control and Crime Prevention) के रूप में की गई थी। वर्ष 2002 में इसका नाम बदलकर यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑफ ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC) किया गया।
  • इसका मुख्यालय वियना, ऑस्ट्रिया में है।
  • वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट (World Drug Report) इस कार्यालय द्वारा प्रकाशित प्रमुख रिपोर्ट है।

स्रोत – बिज़नेस लाइन (द हिंदू)


अनुच्छेद 35A और 370

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्‍यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने संविधान (जम्‍मू और कश्‍मीर में लागू) संशोधन आदेश, 2019 [Constitution (Application to Jammu & Kashmir) Amendment Order, 2019] को मंज़ूरी दे दी है।
राष्‍ट्रपति द्वारा अनुच्‍छेद 370 की धारा (1) के अंतर्गत संविधान (जम्‍मू और कश्‍मीर में लागू) संशोधन आदेश, 2019 जारी किये जाने के बाद संविधान (77वाँ संशोधन) अधिनियम, 1995 तथा संविधान (103वाँ संशोधन) अधिनियम, 2019 के माध्यम से भारतीय संविधान के संशोधित तथा प्रासंगिक प्रावधान लागू होंगे।

अनुच्छेद 370

  • 17 अक्तूबर, 1949 को संविधान में शामिल, अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान से जम्मू-कश्मीर को छूट देता है (केवल अनुच्छेद 1 और अनुच्छेद 370 को छोड़कर) और राज्य को अपने संविधान का मसौदा तैयार करने की अनुमति देता है।
  • यह तब तक के लिये एक अंतरिम व्यवस्था मानी गई थी जब तक कि सभी हितधारकों को शामिल करके कश्मीर मुद्दे का अंतिम समाधान हासिल नहीं कर लिया जाता।
  • यह राज्य को स्वायत्तता प्रदान करता है और इसे अपने स्थायी निवासियों को कुछ विशेषाधिकार देने की अनुमति देता है।
  • राज्य की सहमति के बिना आंतरिक अशांति के आधार पर राज्य में आपातकालीन प्रावधान पर लागू नहीं होते हैं|
  • राज्य का नाम और सीमाओं को इसकी विधायिका की सहमति के बिना बदला नहीं जा सकता है।
  • राज्य का अपना अलग संविधान, एक अलग ध्वज और एक अलग दंड संहिता (रणबीर दंड संहिता) है।
  • राज्य विधानसभा की अवधि छह साल है, जबकि अन्य राज्यों में यह अवधि पाँच साल है।
  • भारतीय संसद केवल रक्षा, विदेश और संचार के मामलों में जम्मू-कश्मीर के संबंध में कानून पारित कर सकती है। संघ द्वारा बनाया गया कोई अन्य कानून केवल राष्ट्रपति के आदेश से जम्मू-कश्मीर में तभी लागू होगा जब राज्य विधानसभा की सहमति हो।
  • राष्ट्रपति, लोक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकते हैं कि इस अनुच्छेद को तब तक कार्यान्वित नहीं किया जा सकेगा जब तक कि राज्य विधानसभा इसकी सिफारिश नहीं कर देती है|

अनुच्छेद 35A

  • अनुच्छेद 35A, जो कि अनुच्छेद 370 का विस्तार है, राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करने के लिये जम्मू-कश्मीर राज्य की विधायिका को शक्ति प्रदान करता है और उन स्थायी निवासियों को विशेषाधिकार प्रदान करता है तथा राज्य में अन्य राज्यों के निवासियों को कार्य करने या संपत्ति के स्वामित्व की अनुमति नहीं देता है।
  • इस अनुच्छेद का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर की जनसांख्यिकीय संरचना की रक्षा करना था।
  • अनुच्छेद 35A की संवैधानिकता पर इस आधार पर बहस की जाती है कि इसे संशोधन प्रक्रिया के माध्यम से नहीं जोड़ा गया था। हालाँकि, इसी तरह के प्रावधानों का इस्तेमाल अन्य राज्यों के विशेष अधिकारों को बढ़ाने के लिये भी किया जाता रहा है।

अनुच्छेद 35A और 370 को रद्द करने से संबंधित मुद्दे

  • वर्तमान में इन अनुच्छेदों से मिले अधिकारों को कश्मीरियों द्वारा धारित एकमात्र महत्त्वपूर्ण स्वायत्तता के रूप में माना जाता है। अत: इससे छेड़छाड़ से व्यापक प्रतिक्रिया की संभावना है।
  • यदि अनुच्छेद 35A को संवैधानिक रूप से निरस्त कर दिया जाता है तो जम्मू-कश्मीर 1954 के पूर्व की स्थिति में वापस आ जाएगा। उस स्थिति में केंद्र सरकार की राज्य के भीतर रक्षा, विदेश मामलों और संचार से संबंधित शक्तियाँ समाप्त हो जाएंगी।
  • यह भी तर्क दिया गया है कि अनुच्छेद 370 के तहत राज्य को दी गई कई प्रकार की स्वायत्तता वैसे भी कम हो गई है और संघ के अधिकांश कानून जम्मू-कश्मीर राज्य पर भी लागू होते हैं।

आगे की राह

  • अनुच्छेद 370 को एकतरफा निरस्त नहीं किया जा सकता है। यह ज़रूरी है कि जम्मू-कश्मीर और केंद्र इस मामलें में सर्वसम्मति से आगे आएँ। यह कार्य सहकारी संघवाद को बढ़ावा देकर और आत्मविश्वास के बल पर ही संभव हो सकता है।
  • कश्मीर के युवाओं तथा निवासियों को इस तथ्य से आश्वस्त होना चाहिये कि कश्मीर देश की आर्थिक प्रगति का हिस्सा है और भारत का अभिन्न अंग है।
  • राज्य सरकार को आम सहमति से लोकतंत्र का मार्ग भी अपनाना चाहिये। यह महत्त्वपूर्ण है कि इसमें निर्णय लेने के विकल्पों की विस्तृत श्रृंखला शामिल हो और उन्हें ध्यान में रखा जाए|

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नेशनल हाउसिंग बैंक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नेशनल हाउसिंग बैंक (NHB) ने हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (HFCs) के लिये पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio-CAR) को मार्च 2022 तक चरणबद्ध तरीके से बढ़ाकर 15% करने का प्रस्ताव किया है।

प्रमुख बिंदु

  • हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के लिये वर्तमान अनुपात 12% है जिसे अगले तीन वर्षों में प्रतिवर्ष 1 प्रतिशत की दर से बढ़ाया जायेगा।
  • वित्तीय संस्थाएँ होने के नाते हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों को किसी भी अन्य वित्तीय क्षेत्र में विफलताओं से उत्पन्न जोखिमों, तरलता और सॉल्वेंसी से संबंधित जोखिमों तथा अन्य धन संबंधी जोखिम से अवगत कराया जाता है। इसीलिये हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के नियामक ढाँचे की समीक्षा की गई।
  • HFCs ने इस कदम का स्वागत किया है क्योंकि मुद्रा की तरलता समय की ज़रूरत है। नियामकों को मज़बूत बैलेंस शीट के साथ HFC के लिये पूंजी की आसान पहुँच बनाने की आवश्यकता है, क्योंकि तरलता की कमी आवास बाज़ार के समग्र विकास में एक बड़ी बाधा के रूप में काम कर रही है।
  • पूंजी की उपलब्धता एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, खासकर यदि हमें 2022 तक आवास के संदर्भ में सरकार के लक्ष्य को प्राप्त करना है। 
  • विनियामक परिवर्तन द्वारा बड़े हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों जिनकी पूंजी 15% से अधिक है, जैसे कि हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन (HDFC), रेपको होम फाइनेंस (RHF), इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस (IHF) और दीवान हाउसिंग फाइनेंस (DHF) को कुछ खास प्रभावित किये जाने की संभावना नहीं है ।
  • प्रणालीगत स्तर पर किया गया यह परिवर्तन लाभ के स्तर को नियंत्रण में रखने के लिये एक अच्छा प्रयास है। साथ ही HFC को दिशा-निर्देशों को पूरा करने के लिये तीन साल का रोडमैप भी प्रदान करता है।

पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio-CAR)

  • नेशनल हाउसिंग बैंक ने तरलता जोखिम के खिलाफ एहतियाती उपाय के रूप में हाउसिंग फाइनेंसिंग कंपनियों (HFC) की पूंजी पर्याप्तता अनुपात को 15% तक बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है।
  • CAR, बैंक की उपलब्ध पूंजी का एक माप है जिसे बैंक के जोखिम-भारित क्रेडिट एक्सपोज़र के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • पूंजी पर्याप्तता अनुपात को पूंजी-से-जोखिम भारित संपत्ति अनुपात (capital-to-risk Weighted Assets Ratio-CRAR) के रूप में भी जाना जाता है। इसका उपयोग जमाकर्त्ताओं की सुरक्षा और विश्व में वित्तीय प्रणालियों की स्थिरता और दक्षता को बढ़ावा देने के लिये किया जाता है।

स्रोत – लाइव मिंट


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (6 March)

  • अमेरिका ने भारत और तुर्की से जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेंज़ (GSP) कार्यक्रम के लाभार्थी का दर्जा वापस लेने की बात कही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने वहाँ की संसद को यह जानकारी दी। अमेरिकी कानून के मुताबिक यह बदलाव नोटिफिकेशन जारी होने के 2 महीने बाद लागू हो पाएंगे। गौरतलब है कि अमेरिका के GSP कार्यक्रम में शामिल देशों को विशेष तरजीह दी जाती है और अमेरिका इन देशों से एक तय राशि के आयात पर शुल्क नहीं लेता। GSP कार्यक्रम के तहत भारत को 5.6 अरब डॉलर (लगभग 40 हज़ार करोड़ रुपए) के एक्सपोर्ट पर छूट मिलती है। भारत GSP का सबसे बड़ा लाभार्थी देश है और अमेरिकी राष्ट्रपति के अनुसार, उन्हें भारत से यह भरोसा नहीं मिल पाया है कि वह अपने बाज़ार में अमेरिकी उत्पादों को बराबर की छूट देगा। भारत GSP के मापदंड पूरे करने में नाकाम रहा है। अमेरिका दुनिया के 120 विकासशील देशों को अपने यहाँ बिना किसी आयात शुल्क के सामान निर्यात करने की छूट देता है, जिसमें भारत भी शामिल है। यह सूची समय-समय पर बदलती रहती है।
  • चीन ने इस वर्ष के लिये अपने रक्षा बजट में पिछले वर्ष की तुलना में साढ़े सात प्रतिशत की वृद्धि की है। 177.61 अरब डॉलर की यह भारी-भरकम राशि भारत के रक्षा बजट के मुकाबले तीन गुना अधिक है। विश्व में अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा रक्षा बजट चीन का ही होता है। हाल के वर्षों में चीन ने अपनी सेना में कई बड़े सुधार किये हैं। इसके तहत उसने दूसरे देशों में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिये नौसेना और वायुसेना को प्राथमिकता देते हुए उनका विस्तार किया है। इसके अलावा चीन ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों की संख्या में भी तीन लाख तक की कमी की है। इसके बावजूद 20 लाख के संख्या बल के साथ यह अब भी दुनिया की सबसे बड़ी सेना है। गौरतलब है कि भारत ने इस वर्ष अपना रक्षा बजट 6.87 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 3.18 लाख करोड़ रुपए रखा है।
  • हाल ही में जारी विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में केवल 6 देशों में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त हैं। इन देशों में बेल्जियम, डेनमार्क, फ्राँस, लातविया, लक्ज़मबर्ग और स्वीडन शामिल हैं। विश्व बैंक ने दुनिया के 187 देशों में हुए सर्वे के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है। Business and the Law 2019: A Decade of Reform रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और जापान जैसे देशों में भी महिलाओं की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है। भारत को इस रिपोर्ट में 125वें स्थान पर रखा गया है और 71.25 अंकों के साथ वह अपने पड़ोसी देशों से बेहतर स्थिति में है| पाकिस्तान को 46.25, बांग्लादेश को 49.38, नेपाल को 53.13, श्रीलंका को 65.63, भूटान को 69.38 और म्यांमार को 56.25 अंक मिले हैं। यह रिपोर्ट महिलाओं के बाहर निकलने की आज़ादी, नौकरी की स्वतंत्रता, पुरुषों के समान वेतन, विवाह के बाद महिलाओं की कानूनी और आर्थिक स्थिति, नौकरी के दौरान गर्भावस्था में और बच्चे को जन्म देने के दौरान मिले अधिकार, महिलाओं को व्यवसाय शुरू करने की आज़ादी तथा समान पेंशन के संकेतकों के आधार पर तैयार की गई है।
  • प्रधानमंत्री श्रम मान धन योजना की औपचारिक लॉन्चिंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 4 मार्च को गुजरात में की। इस योजना से जुड़ने वालों को 60 साल की उम्र के बाद 3 हज़ार रुपए की पेंशन मिलेगी। यह योजना प्रमुख रूप से असंगठित क्षेत्र के कामगारों को लक्षित करके बनाई गई है। योजना के तहत पंजीकरण का काम 15 फरवरी से शुरू हो चुका है। इस योजना के लिये अंतरिम बजट में 500 करोड़ रुपए की राशि भी आवंटित की गई है। इस योजना की प्रमुख विशेषताएँ निम्नानुसार हैं:

♦ 40 साल तक के कामगार इस योजना के लिये पंजीकरण करवा सकते हैं।
♦ 60 साल की उम्र पूरी होने के बाद पंजीकृत व्यक्ति को 3 हजार रुपए की पेंशन हर महीने मिलेगी।
♦ योजना में हर महीने 15 हजार रुपए तक कमाने वाले अंसगठित क्षेत्र के कामगार शामिल होंगे।
♦ न्यूनतम 18 साल की उम्र में इस योजना में शामिल होने पर हर महीने सिर्फ 55 रुपए और 40 साल में शामिल होने पर 200 रुपए जमा करने होंगे। यह धनराशि 60 साल की उम्र तक देनी होगी।
♦ जितनी रकम पंजीकृत व्यक्ति देगा उतनी की रकम सरकार भी देगी, लेकिन इसके लिये आधार कार्ड और बैंक में अकाउंट होना जरूरी है।
♦ इस योजना में रेहड़ी वाले, रिक्शा चलाने वाले, कंस्ट्रक्शन मज़दूर, कूड़ा बीनने वाले, बीड़ी बनाने वाले, हथकरघा, कृषि कामगार, मोची, धोबी, चमड़ा कामगार और इस तरह के काम-धंधों से जुड़े लोग शामिल हो सकते हैं।
♦ राष्ट्रीय पेंशन योजना, कर्मचारी राज्य बीमा निगम योजना या फिर कर्मचारी भविष्य निधि योजना में आने वाले लोग तथा आयकर भरने वाले भी इसमें हिस्सा नहीं ले सकेंगे।
♦ इस स्कीम के लिये सरकार एक पेंशन फंड बनाएगी और इस फंड के ज़रिये ही सभी को पेंशन दी जाएगी।
♦ यदि योजना के दौरान किसी सदस्य का निधन हो जाता है तो उसकी पत्नी स्कीम में योगदान देकर इसको जारी रख सकती है।
♦ किसी सदस्य के निधन पर उसकी पत्नी या पति योजना से बाहर होना चाहता है तो जमा कराई गई कुल रकम ब्याज के साथ वापस ली जा सकती है।
♦ पेंशन शुरू होने के बाद किसी सदस्य का निधन होने पर पति या पत्नी को पेंशन की 50% रकम मिलेगी।

  • हाल ही में पाकिस्तान सरकार ने पंजाब प्रांत में 53 संगठनों पर प्रतिबंध लगाया है। कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दबाव झेल रही पाकिस्तान सरकार ने पंजाब प्रांत में आतंकी संगठनों का समर्थन करने के आरोप में यह कार्रवाई की है। पाकिस्तान सरकार के राष्ट्रीय आतंकवाद रोधी प्राधिकरण (NCTA) की वेबसाइट के मुताबिक जमात-उद-दावा और फलाह-ए-इंसानियत आतंकवाद रोधी अधिनियम 1997 के तहत जनवरी 2017 में निगरानी सूची में रखे गए थे। 14 फरवरी को पुलवामा आतंकी हमले के बाद इन दोनों संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया। आतंकवादी संगठनों पर लगाम लगाने, उनके वित्तपोषण पर अंकुश लगाने और संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों को लागू करने के लिये पाकिस्तान ने एक कानून का एलान किया। पाकिस्तान सरकार ने पाकिस्तान के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अधिनियम, 1948 के प्रावधानों के अनुसार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (धन-संपत्ति पर रोक और ज़ब्ती) आदेश 2019 जारी किया। इसका उद्देश्य आतंकवादी घोषित व्यक्तियों और संगठनों के विरुद्ध सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों को लागू करने की प्रक्रिया को सुचारु बनाना है।
  • ब्रिटेन सरकार ने 2030 तक ‘पीरियड पावर्टी’ खत्म करने के लिये दुनियाभर के संगठनों को सहायता हेतु दो मिलियन पाउंड देने की घोषणा की है। ब्रिटेन में इस समस्या से निपटने के लिये नए आइडियाज़ को सामने लाने हेतु सरकारी विभागों, व्यवसायों, चैरिटी और निर्माताओं से जुड़े कार्यबल बनाने के लिये भी 250,000 पाउंड देने की घोषणा की गई। देखने में आया है कि कई देशों में लड़कियाँ पीरियड्स के दौरान स्कूल छोड़ने के लिये विवश हो जाती हैं और पुराने कपडे और कागज़ का इस्तेमाल करती हैं। दक्षिण सूडान में 83% स्कूली लड़कियाँ ऐसा करने को विवश हैं। हाल ही में नेपाल में पीरियड्स के दौरान कुछ लड़कियों और महिलाओं को अलग झोंपड़ी में रहने को विवश करने की घटनाएँ सामने आईं। इस अभियान का उद्देश्य पीरियड्स से जुडी भ्रांतियों को कम करना है। यह एक वैश्विक मुद्दा है।
  • अमेरिका के बाद रूस ने भी परमाणु हथियार संधि (Intermediate Nuclear Force) से बाहर आने का फैसला किया है। रूस ने यह कदम 1987 की परमाणु संधि से अमेरिका के बाहर आने के बाद उठाया है। रूस ने अमेरिका पर पूर्वी यूरोप में मिसाइल रक्षा सुविधाओं को तैनात करने के समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए परमाणु हथियार संधि में अपनी भागीदारी को निलंबित करने का फैसला किया। मध्यवर्ती दूरी की परमाणु मिसाइलों पर रोक लगाने वाली 32 वर्ष पुरानी इस संधि पर तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और तत्कालीन सोवियत संघ के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोव ने 8 दिसंबर,1987 को अमेरिका के राष्ट्रपति भवन व्हाइट हाउस में हस्ताक्षर किये थे। इसीलिये इसे ‘वॉशिंगटन निरस्त्रीकरण संधि’ के नाम से भी जाना जाता है। 1 जुलाई 1988 को मॉस्को में अंतिम दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर के साथ यह संधि प्रभावी हुई थी। गौरतलब है कि यह संधि सतह से छोड़ी जा सकने वाली ऐसी सभी परमाणविक मिसाइलों के साथ गैर-परमाणविक मिसाइलों पर भी रोक लगाती है, जिनकी मारक दूरी 500 से 5500 किलोमीटर के बीच है। लेकिन समुद्र से छोड़ी जा सकने वाली ऐसी ही प्रणालियाँ इस संधि के दायरे में नहीं आतीं।
  • अमेरिका के इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट और उसके सहयोगी संस्थानों के शोधकर्त्ताओं के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण के बढ़ने की वज़ह से श्वास संबंधी बीमारियाँ भी बढ़ रही हैं। इससे देश को वार्षिक 30 अरब डॉलर (लगभग 2.1 लाख करोड़ रुपए) की क्षति होती है। इस अध्ययन के ज़रिये पहली बार उत्तर भारत में पराली जलाने से स्वास्थ्य एवं अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले नुकसान की चर्चा की गई है। गौरतलब है कि वायु की खराब गुणवत्ता विश्वभर में स्वास्थ्य से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या है।