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डेली न्यूज़

  • 05 Nov, 2019
  • 60 min read
भूगोल

राष्ट्रीय जलमार्ग-2

प्रीलिम्स के लिये:

भारत में राष्ट्रीय जल मार्ग, भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण

मुख्य परीक्षा के लिये:

भारत और बांग्लादेश के बीच अंतर्देशीय जल पारगमन और व्यापार तथा इस संदर्भ में राष्ट्रीय जलमार्ग-2 का महत्त्व, भारत तथा बांग्लादेश के बीच अंतर्देशीय जल पारगमन और व्यापार संबंधी नयाचार

चर्चा में क्यों?

4 नवंबर, 2019 को पहले कंटेनर कार्गो की खेप हल्दिया डॉक कॉम्प्लेक्स (Haldia Dock Complex-HDC) से देश के अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (Inland Waterways Authority of India-IWAI) टर्मिनल के लिये गुवाहाटी के पांडु में रवाना हुई।

प्रमुख बिंदु

  • 12-15 दिनों की यह समुद्री यात्रा राष्ट्रीय जलमार्ग -1 (गंगा नदी), राष्ट्रीय जलमार्ग-97 (सुंदरबन), भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल (Indo-Bangladesh Protocol-IBP) मार्ग और राष्ट्रीय जलमार्ग-2 (ब्रह्मपुत्र नदी) के रास्ते एक एकीकृत आईडब्ल्यूटी आवाजाही होगी।
  • इस अंतर्देशीय जल परिवहन (Inland Water Transport-IWT) मार्ग पर यह पहला कंटेनरीकृत कार्गो आवाजाही है।
  • इस 1425 किलोमीटर लंबी आवाजाही से इन विविध जलमार्गों का उपयोग करके IWT मोड की तकनीकी और वाणिज्यिक व्यवहार्यता स्थापित किये जाने की उम्मीद है, साथ ही इस भू-भाग पर अग्रगामी आवाजाहियों की एक श्रृंखला की योजना भी बनाई गई है।
  • इस नवीनतम IWT आवाजाही का उद्देश्य कच्चे माल और तैयार माल के परिवहन के लिये एक वैकल्पिक मार्ग खोलने के द्वारा उत्तर पूर्व क्षेत्र के औद्योगिक विकास को बढ़ावा प्रदान करना है।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग-1 पर IWT द्वारा जल मार्ग विकास परियोजना के तहत गंगा की नेविगेशन क्षमता में संवर्धन में अच्छी वृद्धि देखी गई है
  • राष्ट्रीय जलमार्ग-1 पर यातायात 2017-18 के 5.48 मिलियन टन से बढ़कर 2018-19 में 6.79 मिलियन टन तक पहुँच गया है।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग-1 पर 6.79 मिलियन टन के कुल ट्रैफ़िक में से, लगभग 3.15 मिलियन टन भारत बांग्लादेश प्रोटोकॉल (IBP) मार्गों का उपयोग करके भारत और बांग्लादेश के बीच एक्जिम व्यापार है।

National Highway

राष्ट्रीय जलमार्ग 2

  • 1988 में धुबरी से सदिया तक 891 किमी. तक को राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-2 घोषित किया गया। धुबरी ब्रह्मपुत्र नदी पर पहला बड़ा टर्मिनल है।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम (National Waterways Act), 2016 के लागू होने के साथ देश में राष्ट्रीय जलमार्गों की कुल संख्या 111 हो गई हैं। परंतु अभी भी इस संबंध में घाटों के निर्माण, टर्मिनल और नेविगेशन चैनलों जैसी बुनियादी ढाँचागत सुविधाएँ उपलब्ध कराने की दिशा में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग-2 में पांडु बंदरगाह सबसे बड़ा एवं सबसे महत्त्वपूर्ण बंदरगाह है।

भारत के अन्य 3 प्रमुख राष्ट्रीय जलमार्ग

  • राष्‍ट्रीय जलमार्ग संख्‍या 1: इलाहाबाद-हल्दिया जलमार्ग को भारत में राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-1 का दर्जा दिया गया है। यह जलमार्ग गंगा-भागीरथी-हुगली नदी तंत्र में स्थित है। इस जलमार्ग पर स्थित प्रमुख शहर इलाहाबाद, वाराणसी, मुगलसराय, बक्सर, आरा, पटना, मोकामा, बाढ, मुंगेर, भागलपुर, फरक्का, कोलकाता तथा हल्दिया है।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या 3: उद्योग मंडल और चंपकारा नहर के साथ पश्चिमी समुद्रतट नहर (कोट्टापुरम से कोल्‍लम) के बीच स्थित है।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या 4: गोदावरी और कृष्‍णा नदी से लगा काकीनदा-पुद्दुचेरी नहर (1078 किलो मीटर) को 2008 में राष्‍ट्रीय जलमार्ग- 4 घोषित किया गया है।

सक्षम जल- परिवहन के आवश्यक तत्त्व

  • पर्याप्त गहराई व चौड़ाई वाला जलमार्ग।
  • चौबीस घंटे नौवहन लायक सुविधाएँ।
  • सभी साजोसमान से लैस टर्मिनल।
  • पर्याप्त संख्या में उच्च क्षमता वाले जलयान।

जल-परिवहन के समक्ष प्रमुख चुनौती

  • नदियों में भारी गाद भरना तथा वर्ष भर जल की समुचित मात्रा का आभाव।
  • माल परिवहन के लिये जलयानों की भारी कमीं।
  • फेयरवे बेहतर बनाने के लिये उचित टर्मिनल और रैंपों का आभाव।
  • टर्मिनलों पर मकैनिकल हैंडलिंग का आभाव।

भारत और बांग्लादेश के बीच अंतर्देशीय जल पारगमन एवं व्यापार

(Protocol on Inland Water Transit and Trade-PIWTT)

  • भारत और बांग्लादेश के बीच अंतर्देशीय जल पारगमन और व्यापार (PIWTT) पर नयाचार दोनों देशों के पोतों द्वारा दोनों देशों के बीच माल की आवाजाही हेतु अपने जलमार्ग के उपयोग के लिये पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यवस्था की अनुमति देता है।
  • IBP मार्ग राष्ट्रीय जलमार्ग-1 पर कोलकाता (भारत) से राष्ट्रीय जलमार्ग-2 (नदी ब्रह्मपुत्र) पर सिलघाट (असम) और करीमगंज (असम) पर राष्ट्रीय जलमार्ग-16 (बराक नदी) पर फैला हुआ है।
  • बांग्लादेश के अंतर्देशीय जलमार्गों के IBP मार्ग पर दो भू-भागों नामत: सिराजगंज-दाइखवा और आशूगंज-जाकिगंज मार्ग का विकास कुल 305.84 करोड़ रुपए की लागत से 80:20 लागत साझाकरण के आधार पर (भारत द्वारा 80% और बांग्लादेश द्वारा 20% वहन किया जा रहा है) किया जा रहा है।
  • इन दोनों खंडों के विकास से IBP मार्ग के रास्ते जलमार्ग के जरिये उत्तर पूर्व भारत को निर्बाध नेविगेशन प्रदान किये जाने की उम्मीद है। अपेक्षित गहराई हासिल करने और बनाए रखने के लिये दो हिस्सों पर ड्रेजिंग के अनुबंध दिए गए हैं।

उपरोक्त के अलावा, भारत और बांग्लादेश ने हाल के दिनों में जलमार्गों के उपयोग को बढ़ाने के लिये बड़े कदम उठाए हैं। इनमें भारत में कोलाघाट में PIWTT, धुलियान, माया, सोनमुरा और बांग्लादेश में चिलमारी, राजशाही, सुल्तानगंज, दौखंडी में अतिरिक्त पोर्ट ऑफ कॉल की घोषणा पर समझौता शामिल है।

दोनों देशों ने निम्नलिखित पर भी सहमत जताई:

  1. करीमगंज (असम, भारत) के विस्तारित पोर्ट ऑफ कॉल के रूप में बदरपुर और बांग्लादेश में आशूगंज का घोरासल
  2. कोलकाता, भारत के विस्तारित पोर्ट ऑफ कॉल के रूप में ट्रिबेनी और बांग्लादेश में पनगाँव का मुक्तारपुर
  3. प्रोटोकॉल रूट नंबर 5 और 6 यानी राजशाही-गोडागरी-धुलियान को अरिचा (बांग्लादेश) तक विस्तारित किया जाएगा।
  4. नये रूट नम्बर 9 और 10 के रूप में गुमटी नदी पर दाउदखंडी-सोनमुरा खंड का समावेश।

बांग्लादेश में चटगाँव और मोंगला बंदरगाहों के ज़रिये भारत से माल की आवाजाही को सुगम बनाने के लिये एक मानक संचालन प्रक्रिया (Standard Operating Procedure-SOP) पर दोनों देशों द्वारा 5 अक्तूबर, 2019 को हस्ताक्षर किये गए हैं। इन दोनों बंदरगाहों की निकटता से संभारतंत्र लागत में कमी आएगी और उत्तर पूर्व राज्यों की व्यापार प्रतिस्पर्द्धा में सुधार होगा।

भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण

(Inland Waterways Authority of India-IWAI)

  • अंतर्देशीय जलमार्गों के विकास और विनियमन हेतु भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) की स्थापना 27 अक्तूबर, 1986 को की गई।
  • IWAI जहाज़रानी मंत्रालय (Ministry of Shipping) के अधीन एक सांविधिक निकाय है।
  • यह जहाज़रानी मंत्रालय से प्राप्त अनुदान के माध्यम से राष्ट्रीय जलमार्गो पर अंतर्देशीय जल परिवहन अवसंरचना के विकास और अनुरक्षण का कार्य करता है।
  • प्राधिकरण का मुख्यालय नोएडा (New Okhla Industrial Development Authority-NOIDA) में, क्षेत्रीय कार्यालय पटना, कोलकाता, गुवाहाटी और कोची में तथा उप-कार्यालय प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद), वाराणसी, भागलपुर, रक्का और कोल्लम में हैं।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम, 2016 के अनुसार अभी तक 111 जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया है।
  • वर्ष 2018 में IWAI ने कार्गो मालिकों एवं लॉजिस्टिक्स संचालकों को जोड़ने हेतु समर्पित पोर्टल ‘फोकल’ (Forum of Cargo Owners and Logistics Operators-FOCAL) लॉन्च किया था जो जहाज़ों की उपलब्धता के बारे में रियल टाइम डेटा उपलब्ध कराता है।

स्रोत: PIB


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

RCEP में शामिल नहीं होगा भारत

प्रीलिम्स के लिये

RCEP

मेन्स के लिये

भारत-आसियान संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने 16 सदस्य देशों वाले क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership-RCEP) समूह में शामिल न होने का निर्णय लिया है।

  • गौरतलब है कि RCEP से जुड़ी भारत की चिंताओं को तमाम वार्ताओं के बाद भी दूर नहीं किया जा सका, जिसके कारण भारत को यह निर्णय लेना पड़ा।
  • ध्यातव्य है कि भारत के अतिरिक्त अन्य सभी 15 देश वर्ष 2020 तक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे।

क्या है RCEP?

  • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी या RCEP एक मुक्त व्यापार समझौता है, जो कि 16 देशों के मध्य किया जा रहा था। विदित हो कि भारत के इसमें शामिल न होने के निर्णय के पश्चात् अब इसमें 15 देश शेष हैं।
    • इसमें 10 आसियान देश तथा उनके FTA भागीदार- भारत, चीन, जापान, कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड शामिल थे।
  • इसका उद्देश्य व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिये इसके सदस्य देशों के बीच व्यापार नियमों को उदार बनाना एवं सभी 16 देशों में फैले हुए बाज़ार का एकीकरण करना है।
  • इसका अर्थ है कि सभी सदस्य देशों के उत्पादों और सेवाओं का संपूर्ण क्षेत्र में पहुँचना आसान होगा।
  • इसकी औपचारिक शुरुआत नवंबर 2012 में कंबोडिया में आयोजित आसियान शिखर सम्मेलन में की गई थी।
  • RCEP को ट्रांस-पैसिफिक भागीदारी के एक विकल्प के रूप में भी देखा जाता रहा है।
  • यदि भारत सहित यह समझौता संपन्न होता तो यह वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 25 प्रतिशत और वैश्विक व्यापार के 30 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता।
    • साथ ही यह तकरीबन 5 अरब लोगों की आबादी के लिहाज़ से सबसे बड़ा व्यापार ब्लॉक भी बन जाता।
  • RCEP समझौते में वस्तुओं एवं सेवाओं का व्यापार, निवेश, आर्थिक और तकनीकी सहयोग, बौद्धिक संपदा, प्रतिस्पर्द्धा, विवाद निपटान तथा अन्य मुद्दे शामिल हैं।

क्या है समस्या?

  • भारत के अतिरिक्त RCEP में भाग लेने वाले अन्य सभी 15 सदस्यों ने मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने का निर्णय लिया है। इस समझौते के वर्ष 2020 तक संपन्न होने की उम्मीद है।
  • दूसरी ओर भारत ने कुछ अनसुलझे मुद्दों के कारण इस समझौते में शामिल न होने का निर्णय लिया है।
  • निर्णय की घोषणा करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा कि “RCEP अपने मूल उद्देश्यों को प्रतिबिंबित नहीं करता एवं इसके परिणाम न तो उचित हैं और न ही संतुलित।”
  • RCEP वार्ता के दौरान कई भारतीय उद्योग समूहों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर करने को लेकर चिंता जताई थी। उन्होंने तर्क दिया था कि कुछ घरेलू क्षेत्र अन्य प्रतिभागी देशों के सस्ते विकल्पों के कारण प्रभावित हो सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये समझौते के फलस्वरूप देश के डेयरी उद्योग को ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ेगा। इसी प्रकार देश के इस्पात और कपड़ा उद्योग को भी कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ेगा।

अनसुलझे मुद्दे

  • कई भारतीय उद्योगों ने चिंता ज़ाहिर की थी कि यदि चीन जैसे देशों के सस्ते उत्पादों को भारतीय बाज़ार में आसान पहुँच प्राप्त हो जाएगी तो भारतीय घरेलू उद्योग पूर्णतः तबाह हो जाएगा।
    • ध्यातव्य है कि भारत ऐसे ऑटो-ट्रिगर तंत्र की मांग कर रहा था जो उसे ऐसे उत्पादों पर शुल्क बढ़ाने की अनुमति देगा जहाँ आयात एक निश्चित सीमा को पार कर चुका हो।
  • भारत पहले से ही 16 RCEP देशों के साथ व्यापार घाटे की स्थिति में है। अपने बाज़ार को और अधिक मुक्त बनाने से स्थिति और बिगड़ सकती है। गौरतलब है कि चीन के साथ भारत का कुल व्यापार 50 बिलियन डॉलर से भी अधिक का है।
  • इस व्यापार संधि में शामिल होने की भारत की अनिच्छा इस अनुभव से भी प्रेरित है कि भारत को कोरिया, मलेशिया और जापान जैसे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों का कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ है।
  • समझौतों का कार्यान्वयन शुरू होने के बाद इन देशों से भारत के आयात में तो वृद्धि हुई लेकिन भारत से निर्यात में उस गति से वृद्धि नहीं हुई और इससे देश का व्यापार घाटा बढ़ा।
  • गैर टैरिफ बाधाओं संबंधी भारत की चिंता और बाज़ार तक अधिक पहुँच की मांग को लेकर भी भारत को कोई विश्वसनीय आश्वासन नहीं दिया गया।
  • भारत ने कई बार उत्पादों पर टैरिफ को कम करने अथवा समाप्त करने के संबंध में अपना डर ज़ाहिर किया था।
  • RCEP में ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ (Rules of Origin) के दुरुपयोग से संबंधित भारतीय चिंताओं को भी सही ढंग से संबोधित नहीं किया गया।
    • किसी उत्पाद के राष्ट्रीय स्रोत को निर्धारित करने के लिये उपयोग किये जाने वाले मानदंड को ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ कहा जाता है।
  • RCEP समझौते में टैरिफ घटाने के लिये वर्ष 2013 को आधार वर्ष के रूप में चुनने का प्रस्ताव किया गया है, परंतु भारत इसके विरोध में है क्योंकि बीते कुछ वर्षों में कपड़ा और इलेक्ट्रॉनिक जैसे कई उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा है और इसलिये भारत चाहता है कि वर्ष 2019 को आधार वर्ष के रूप में चुना जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

सामाजिक-आर्थिक संकेतक

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय

मेन्स के लिये:

सामाजिक आर्थिक संकेतकों के आधार पर मुस्लिम युवाओं की स्थिति से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इंस्टीट्यूट फॉर स्टडीज़ इन इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट दिल्ली द्वारा प्रकाशित एक लेख में राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office-NSSO) की आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण रिपोर्ट, 2018 [Periodic Labour Force Survey (PLFS) Report, 2018] तथा इम्प्लॉयमेंट-अनइम्प्लॉयमेंट सर्वे, 2011-12 (Employment Unemployment Survey (EUS), 2011-12) के आँकड़ों के आधार पर मुस्लिम युवाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर प्रकाश डाला गया है।

मुख्य बिंदु:

  • जिस प्रकार लोकसभा-चुनाव 2019 के परिणामों में संसद के निचले सदन में मुस्लिम सांसदों की संख्या काफी कम होने से मुसलमानों के राजनीतिक रूप से हाशिये पर आने की पुनः पुष्टि हुई है उसी प्रकार मुस्लिम समुदाय सामाजिक-आर्थिक रूप से भी हाशिये पर है।
  • PLFS रिपोर्ट, 2018 तथा EUS, 2011-12 के आँकड़ों का प्रयोग करके इस लेख में मुस्लिम युवाओं तथा अन्य वर्गों के युवाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति की तुलना की गई है।
  • यह रिपोर्ट उन 13 राज्यों से संबंधित आँकड़ों से तैयार की गई है जो वर्ष 2011 की जनगणना में उपस्थित 17 करोड़ मुस्लिमों की संख्या के 89% का प्रतिनिधित्व करते हैं।

मुस्लिम युवाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति जानने के लिये तीन वर्ग बनाए गए हैं-

  • स्नातक उपाधि प्राप्त युवा:
    • स्नातक की उपाधि प्राप्त कर चुके युवाओं को शिक्षा प्राप्त युवाओं की श्रेणी में रखा गया है।
    • वर्ष 2017-18 के दौरान शिक्षा प्राप्ति का अनुपात मुस्लिम युवाओं में 14%, दलित समुदाय में 18%, हिन्दू ओबीसी वर्ग में 25% तथा हिंदू उच्च जातियों में 37% है।
    • वर्ष 2011-12 में मुस्लिम वर्ग तथा अनुसूचित वर्ग के युवाओं के बीच शिक्षा प्राप्ति का अंतर केवल 1% का था जो कि वर्ष 2017-18 के दौरान बढ़कर 4% हो गया, इसी प्रकार वर्ष 2011-12 में मुस्लिम समुदाय तथा हिंदू ओबीसी वर्ग के युवाओं के बीच यह अंतर 7% का था जो कि वर्ष 2017-18 के दौरान बढ़कर 11% हो गया, वहीं वर्ष 2011-12 के दौरान कुल हिंदू और मुस्लिम वर्ग के युवाओं के बीच यह अंतर 9% का था जो कि वर्ष 2017-18 के दौरान बढ़कर 11% हो गया।
    • हिंदी-भाषी राज्यों में वर्ष 2017-18 के दौरान शिक्षित युवा मुस्लिमों की सबसे कम संख्या (3%) हरियाणा राज्य में है। यह संख्या राजस्थान, उत्तर प्रदेश में क्रमशः 7% तथा 11% है। हिंदी-भाषी राज्यों में मध्य प्रदेश अकेला राज्य है जहाँ मुस्लिम समुदाय के शिक्षित युवाओं की संख्या (17%) अनुसूचित वर्ग के युवाओं की संख्या की तुलना में अधिक है।
    • वर्ष 2011-12 में हरियाणा और राजस्थान में अनुसूचित वर्ग तथा मुस्लिम समुदाय के शिक्षा प्राप्त युवाओं की संख्या में अंतर 12% का था, वहीं उत्तर प्रदेश में यह अंतर 7 प्रतिशत का था।
    • पूर्वी भारतीय राज्यों में बिहार, पश्चिम बंगाल तथा असम में शिक्षित मुस्लिम युवाओं की संख्या क्रमशः 8%, 8% और 7% है, जबकि इन्हीं राज्यों में अनुसूचित वर्ग के शिक्षित युवाओं की संख्या क्रमशः 7%, 9% और 8% है।
    • पश्चिमी भारत में शिक्षित मुस्लिम युवाओं की संख्या के आँकड़े बेहतर हुए हैं लेकिन ये आँकड़े हिंदू ओबीसी वर्ग और अनुसूचित वर्ग की तुलना में महत्त्वपूर्ण सुधारों को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं। वर्ष 2017-18 में गुजरात के मुस्लिम समुदाय तथा अनुसूचित वर्ग के शिक्षित युवाओं की संख्या में 14% का अंतर था जो कि वर्ष 2011-12 में केवल 8 प्रतिशत था।
    • वर्ष 2011-12 में महाराष्ट्र राज्य के शिक्षित मुस्लिम युवाओं की संख्या अनुसूचित वर्ग के युवाओं की संख्या से 2% अधिक थी जो कि अब तुलनात्मक रूप से 8% कम हो गई है।
    • तमिलनाडु 36% स्नातक उपाधि प्राप्त युवा मुस्लिम समुदाय के साथ भारत में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर है, वहीं केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में यह अनुपात क्रमशः 28%, 21% और 18% है।
    • तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में अनुसूचित वर्ग तथा मुस्लिम समुदाय के युवाओं के बीच जहाँ करीबी प्रतिस्पर्द्धा है वहीं केरल में मुस्लिम समुदाय काफी पीछे है।
    • दक्षिण के राज्यों में मुस्लिम समुदाय की इन उपलब्धियों को राज्यों के इनके प्रति सकरात्मक दृष्टिकोण के संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए।
  • वर्तमान में किसी शैक्षणिक संस्थान में नामांकित युवा (15-24 वर्ष):

    • जब हम वर्तमान में शैक्षणिक संस्थानों से जुड़े मुस्लिम युवाओं से संबंधित आँकड़ों का अध्ययन करते हैं तब सामाजिक-आर्थिक संकेतकों पर मुस्लिम युवाओं का हाशिये पर होना और अधिक स्पष्ट हो जाता है।
    • वर्तमान में शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश लेने वाले युवाओं में मुस्लिम युवाओं का प्रतिशत सबसे कम है।
    • मुस्लिम समुदाय के 15-24 वर्ष की आयु वर्ग के केवल 39% युवा शैक्षणिक संस्थान में नामांकित हैं, वहीं अनुसूचित वर्ग के 44%, हिंदू ओबीसी वर्ग के 51%, हिंदू उच्च जातियों के 59% युवा शैक्षणिक संस्थानों में नामांकित हैं।
  • शिक्षा, रोज़गार और प्रशिक्षण से वंचित युवा:
    • युवाओं की इस श्रेणी को NEET (Not in Employment, Education or Training) श्रेणी में रखा गया है। मुस्लिम युवाओं की एक बड़ी संख्या इस श्रेणी में आती है।
    • मुस्लिम समुदाय के 31% युवा इस श्रेणी में आते हैं जो कि देश के किसी भी समुदाय के युवाओं से अधिक हैं, वहीं अनुसूचित वर्ग के 26% युवा, हिंदू ओबीसी वर्ग के 23% युवा तथा हिंदू उच्च जातियों के 17% युवा इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।
    • यह प्रवृत्ति हिंदी-भाषी राज्यों में अधिक देखी गई है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और मध्य प्रदेश में मुस्लिम समुदाय के क्रमशः 38%, 37%, 37% और 35% युवा इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।
    • दक्षिण भारत के राज्यों में आनुपातिक रूप से बेहतर स्थिति है। तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में मुस्लिम समुदाय के क्रमशः 17%, 19%, 24% और 27% युवा इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।

राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय

(National Sample Survey Office-NSSO):

  • NSSO का कार्य विभिन्न सामाजिक-आर्थिक विषयों को लेकर राष्ट्रव्यापी स्तर पर घरों का सर्वेक्षण, वार्षिक औद्योगिक सर्वेक्षण कर आँकड़े एकत्रित करना है।
  • NSSO का प्रमुख एक महानिदेशक होता है जो अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिदर्श सर्वेक्षण के लिये ज़िम्मेदार होता है।
  • NSSO किसी व्यक्ति के रोज़गार और बेरोज़गार होने की स्थिति को तीन आधारों पर स्पष्ट करता है:
    • रोज़गार प्राप्त व्यक्ति
    • रोज़गार के लिये उपलब्ध
    • रोज़गार के लिये उपलब्ध नहीं

स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

ग्लाइफोसेट

प्रीलिम्स के लिये

ग्लाइफोसेट क्या है?

मेन्स के लिये

कृषि में खरपतवारनाशी के प्रयोग का जैव-पारिस्थितिकी पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जर्मनी की फार्मा कंपनी बायेर (Bayer) के एक खरपतवारनाशी उत्पाद के खिलाफ अमेरिका में हजारों लोगों ने मुक़दमा दायर किया है तथा तर्क दिया जा रहा है कि यह उत्पाद कैंसर का कारक है।

वर्तमान संदर्भ :

  • कृषि तथा बागवानी कार्यों के लिये अमेरिका में बहुतायत में इसका प्रयोग किया जाता है। वर्ष 2015 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा किये गए एक शोध से यह पता चला है कि ग्लाइफोसेट संभवतः मानव में कैंसर का कारक (Carcinogenic) है जिसकी वजह से वहाँ ग्लाइफोसेट आधारित उत्पादों का विरोध किया जा रहा है।
  • ग्लाइफोसेट के वास्तविक प्रभावों के संबंध में अभी भी निश्चित तौर पर कुछ कहना मुश्किल है, साथ ही WHO ने इसे कैंसर के कारक के रूप में संभावित तौर पर ही माना है। इस वजह से जहाँ फ्राँस, इटली तथा वियतनाम ने खरपतवारनाशी में इसके प्रयोग पर पाबंदी लगाई है वहीं अमेरिका, चीन, ब्राज़ील तथा कनाडा इसका समर्थन करते हैं।
  • भारत में इसका प्रयोग पिछले दो दशकों में काफी बढ़ा है। पहले इसका प्रयोग सिर्फ असम तथा बंगाल के चाय बागानों में किया जाता था लेकिन अब इसका सर्वाधिक प्रयोग महाराष्ट्र में गन्ना, मक्का तथा फलों जैसे-अंगूर, केला, आम व संतरे को उगाने में किया जाता है।
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research-ICAR) के अनुसार, भारत में ग्लाइफोसेट का प्रयोग विशेषकर राउंडअप, ग्लाईसेल तथा ब्रेक नामक खरपतवारनाशी दवाओं में होता है।

ग्लाइफोसेट क्या है?

  • ग्लाइफोसेट एक खरपतवारनाशी है तथा इसका IUPAC नाम N-(phosphonomethyl) Glycine है। इसका सर्वप्रथम प्रयोग 1970 में शुरू किया गया था। फसलों तथा बागानों में उगने वाले अवांछित घास-फूस को नष्ट करने के लिये इसका व्यापक पैमाने पर उपयोग होता है।
  • यह एक प्रकार का गैर-चयनात्मक (Non-Selective) खरपतवारनाशी (Herbicide) है जो कई पौधों को नष्ट कर देता है। यह पौधों में एक विशेष प्रकार के प्रोटीन के निर्माण को रोक देता है जोकि पौधों के विकास के लिए सहायक होते हैं।
  • ग्लाइफोसेट मिट्टी को कसकर बांधे रखता है, इस वजह से यह भूजल में भी नहीं मिलता। यह विशेष परिस्थितियों में 6 महीने तक मिट्टी में बना रह सकता है तथा मिट्टी में बैक्टीरिया द्वारा इसका अपघटन होता है।
  • हालाँकि शुद्ध ग्लाइफोसेट जलीय या अन्य वन्यजीवों के लिये हानिकारक नहीं है, लेकिन ग्लाइफोसेट युक्त उत्पाद, उनमें मौजूद अन्य अवयवों के कारण विषाक्त हो सकते हैं। ग्लाइफोसेट अप्रत्यक्ष रूप से पारिस्थितिकी को प्रभावित कर सकता है क्योंकि पौधों के नष्ट होने से वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • इंसानों के ग्लाइफोसेट के बाहरी संपर्क में आने से उनकी त्वचा या आँखों में जलन हो सकती है। इसको निगलने से मुँह तथा गले में जलन, उल्टी, डायरिया आदि लक्षण हो सकते हैं।

IUPAC (International Union for Pure and Applied Chemistry) रसायन विज्ञान से संबंधित एक अंतर्राष्ट्रीय प्राधिकरण है जो आवर्त सारणी में उपस्थित रासायनिक तत्त्वों को नाम प्रदान करने, उनके द्रव्यमान संख्या आदि को निर्धारित करने के लिये एक मानक तय करता हैं।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

हाइगिया: सौर मंडल का छठा बौना ग्रह

प्रीलिम्स के लिये:

हाइगिया के बारे में, बौना ग्रह घोषित किये जाने हेतु मापदंड, हमारे सौरमंडल में बौने ग्रह, अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ

चर्चा में क्यों?

वेरी लार्ज टेलीस्कोप (Very Large Telescope-VLT) में यूरोपियन स्पेस ऑर्गनाइजेशन (European Space Organisation) के SPHERE इंस्ट्रूमेंट के माध्यम से किये गए अवलोकनों की सहायता से खगोलविदों ने यह दावा किया है कि Hygiea संभवतः एक बौना ग्रह हो सकता है।

प्रमुख बिंदु

dwarf planet

  • अब तक आधिकारिक रूप से हमारी सौर प्रणाली में पाँच बौने ग्रह हैं।
  • सबसे प्रसिद्ध बौना ग्रह प्लूटो है, वर्ष 2006 में इसे ग्रह की श्रेणी से हटाते हुए बौना ग्रह घोषित किया गया था। अन्य चार बौने ग्रह हैं: एरिस (Eris), मेकमेक (Makemake), हुमा (Haumea) और सेरेस (Ceres)।
  • नासा के अनुसार, Hygiea एक ऐसे क्षुद्रग्रह बेल्ट का हिस्सा है, जिसमें 1.1 से लेकर 1.9 मिलियन की संख्या में बड़े क्षुद्रग्रहों (1 किमी. या 0.6 मील से अधिक व्यास वाले) के साथ ही लाखों अन्य छोटे छुद्रग्रह भी मौजूद हैं।
  • संभवतः Hygiea की उत्पत्ति भी सेरेस (Ceres) नामक छुद्र्ग्रह के साथ 2 बिलियन वर्ष पहले हुई थी। लगभग 431 किमी. के व्यास के साथ यह आकार में छोटा है। यह लगभग साढ़े पाँच सालों में सूर्य के चारों और अपनी परिक्रमा पूरी करता है तथा अपने अक्ष/धुरी (Axis) पर एक घूर्णन पूरा करने में इसे 27.6 दिन का समय लगता है।
  • इस क्षुद्रग्रह की खोज वर्ष 1849 में की गई थी, इसका नामकरण शुचिता और स्वच्छता की ग्रीक देवी (Greek goddess) के नाम पर किया गया था।
  • इस बेल्ट के मौजूदा पिंडों में सेरेस एकमात्र बौना ग्रह है जो आंतरिक सौर प्रणाली में उपस्थित है साथ ही यह सौर प्रणाली के अब तक ज्ञात सभी बौने ग्रहों में सबसे छोटा है।

बौने ग्रह हेतु मानदंड

  • अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (International Astronomical Union) ने एक बौने ग्रह के लिये चार मानदंड निर्धारित किये हैं, Hygiea इनमें से तीन मानदंडों को पहले ही पूरा कर चुका है:
    • यह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करता हो,
    • यह चंद्रमा न हो, और
    • इसने अपनी कक्षा के चारो-ओर के क्षेत्र की परिक्रमा न की हो।
  • चौथी आवश्यकता यह है कि उसका द्रव्यमान कम-से-कम इतना हो कि अपने गुरुत्वाकर्षण के कारण उसका आकार लगभग गोल हो गया हो तथा वह अपने पड़ोसी पिण्डों की कक्षा को न लांघता हो।।

अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ

  • यह पेशेवर खगोलविदों का एक संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1919 में की गई थी।
  • इसका केंद्रीय सचिवालय पेरिस में है।
  • इस वर्ष यानी वर्ष 2019 में यह संघ अपनी स्थापना की 100वीं वर्षगाँठ मना रहा है।
  • इस संघ का उद्देश्य खगोलशास्त्र के क्षेत्र में अनुसंधान और अध्ययन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देना है।
  • जब भी ब्रह्मांड में कोई नई वस्तु पाई जाती है तो खगोलीय संघ द्वारा दिये गए नाम ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य होते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) का उद्देश्य खगोलीय विज्ञान को बढ़ावा देना है।
  • अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ की महासभा की बैठक तीन वर्ष में एक बार की जाती है। पिछली बार इसकी बैठक का आयोजन ऑस्ट्रिया के विएना में वर्ष 2018 में किया गया था। IAU की आगामी बैठक का आयोजन वर्ष 2021 में दक्षिण कोरिया के बुसान में किया जाएगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

कीटों के प्रतिरक्षा स्तर में वृद्धि

प्रीलिम्स के लिये

बीटा-ओसीमीन, लिनालूल

चर्चा में क्यों?

बेंगलूरु स्थित राष्ट्रीय जीव विज्ञान केंद्र (National Centre for Biological Sciences, Bengaluru) के अनुसंधानकर्त्ताओं ने पौधे की वाष्पशीलता (Plant volatiles) का कृमियों के प्रतिरक्षा स्तर पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाया है।

प्रमुख बिंदु

Plant, pest and predator

  • इस अनुसंधान में वनस्पति, परजीवी एवं परभक्षी कीट के मध्य संबंधों का अध्ययन किया गया।
  • इस अनुसंधान को कपास के पौधे पर किया गया जिसमे इस पौधे की वाष्पशीलता का स्पोडोप्टेरा लिटूरा (Spodoptera Litura) नामक कृमियों के प्रतिरक्षा स्तर पर प्रभाव एवं परभक्षी कीट/बर्र यानी ब्रोकेन ब्रेविकोर्निस (Bracon brevicornis) के मध्य संबंधों को पता लगाया गया है।
  • जब कृमी कपास के पौधे की पत्तियों को खाता है तो पत्तियां सुगंधित और वाष्पशील वाष्प को वातावरण में विमोचित करती हैं यह सुगंधित वाष्प परभक्षी कीटों एवं बर्र/ततैया आदि को आकर्षित करती है।
  • ये परभक्षी कीट, स्पोडोप्टेरा लिटूरा की त्वचा पर अंडे देते हैं तथा इन अंडो से निकला लार्वा इस कृमी के शरीर का ही भक्षण करता है जो इसकी मृत्यु का कारण बनता है।
  • इस कृमी की त्वचा पर अंडे देने के लिये पहले परभक्षी कीट डंक से जहरीले पदार्थ को कृमी स्पोडोप्टेरा लिटूरा के शरीर में पहुँचा कर उसे गतिहीन कर देता है एवं तत्पश्चात इसके शरीर पर अंडे देता है।
  • इस प्रयोग में बीटा-ओसीमीन और लिनालूल जैसे छह पादप वाष्पशील का उपयोग किया गया और प्रत्येक का कपास की पत्ती के कृमी की प्रतिरक्षा प्रणाली पर अलग-अलग प्रभाव पड़ा।
  • पादप वाष्पशील पदार्थ बीटा-ओसीमीन (Beta-Ocimene) को पत्तियों पर छिडकने पर कृमि के प्रतिरक्षा तंत्र में सुधार होता है जिससे परभक्षी कीट के डंक से कृमि गतिहीन नहीं होता है। इस स्थिति में कृमि के गतिशील होने के कारण परभक्षी इसके शरीर पर अंडे नही दे पाते हैं।
  • पादप वाष्पशील पदार्थ लिनालूल (Linalool) को पत्तियों पर छिडकने के कारण कृमियों में बैक्टीरिया व रोगजनकों के विरुद्ध बेहतर प्रतिरक्षा तंत्र उत्पन्न होता है।
  • बीटा-ओसीमीन आधारित प्रतिरक्षा परिवर्तन कृमियों/शाकभक्षियों की परजीवियों के प्रति प्रतिरक्षा को सुदृढ़ करता है
  • कृमियों/शाकभक्षियोंक के प्रतिरक्षा में सुधार परभक्षी कीट के लार्वा को नियंत्रित करने के स्थान पर इनके प्युवा (Pupal) के आकार में कमी व इनकी व्यस्क परभक्षी कीटों के जीवनकाल में कमी के कारण होता है।

पौधे के वाष्पशील पदार्थ (Plant volatiles)

  • पौधे विभिन्न रक्षात्मक तंत्रों के माध्यम से परजीवी कृमियों के प्रति प्रतिरक्षा करते हैं।
  • ये पदार्थ पौधों द्वारा इनके ऊतकों की क्षति होने पर विमोचित किये जाते हैं।

बीटा-ओसीमीन

  • यह एक कार्बनिक यौगिक है इसका रसायनिक सूत्र C10H16 है।
  • यह पौधों पत्तों और फूलों से विमोचित होने वाला वाष्पशील पदार्थ है।
  • इसका प्रयोग खाद्य पदार्थों फ्लेवर व सौन्दर्य प्रसाधनों में सुंगंध के लिए किया जाता है।

लिनालूल

  • यह एक कार्बनिक यौगिक है इसका रसायनिक सूत्र C10H18O है।
  • पौधों के मेटाबोलाइट, वाष्पशील तेल घटक, रोगाणुरोधी एजेंट और सुगंध के रूप में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
  • इसका उपयोग इत्र, साबुन, और खाद्य सामग्री में किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

रिज़र्व बैंक के NBFCs के लिये नए तरलता निर्देश

प्रीलिम्स के लिये :

NBFC, HQLA,

मेन्स के लिये :

भारतीय अर्थव्यवस्था में नॉन- बैंकिंग फाइनेंसियल कम्पनीज का योगदान और सुधार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रिज़र्व बैंक ने नॉन- बैंकिंग फाइनेंसियल कंपनियों (Non Banking Financial Companies) पर प्रभावी संपत्ति देयता प्रबंधन (Asset Liability Management) के मानकों को सुदृढ़ करने के लिये तरलता जोखिम प्रबंधन (Liquidity Risk Management) पर मौजूद दिशा-निर्देशों को संशोधित किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने तरलता अंतर के संदर्भ में नकारात्मक संपत्ति देयताओं (Negative Assets liabilities) की एक विशेष सीमा निर्धारित की है, साथ ही साथ तरलता कवरेज अनुपात (Liquidity Coverage Ratio- LCR) बनाए रखने का निर्देश दिया है।
  • संरचनात्मक तरलता (Structural Liquidity) को बनाए रखने के लिये देनदारियों हेतु 1 से 30 दिन के समय अंतराल (Time Bucket) को,1 से 7 दिन, 8 से 14 दिन और 15 से 30 दिन के समय अंतराल में बाँट दिया गया है।
  • नए नियम के अनुसार उपर्युक्त समय अंतराल में शुद्ध संचयी अंतर (Net Commulative Mismatch) 1 से 7 दिन के समय अंतराल के लिये 10%, 8 से 14 दिन के लिये 10% और 15 से 30 दिन के समय अंतराल के लिये संचयी नकद बहिर्प्रवाह (Commulative Cash Outflow) के 20% से अधिक नहीं होना चाहिए।
  • इन अवधियों के पीछे मूल विचार यह है कि लघु अवधि में बैंक में नकद का बहिर्प्रवाह (Outflow), नकद के अंतर्प्रवाह (Inflow) से अधिक नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिये पहले समय अंतराल में नकद बहिर्प्रवाह अपेक्षित अंतर्प्रवाह के 10% से अधिक नहीं होना चाहिये।
  • रिज़र्व बैंक के अनुसार, NBFCs को एक तरलता बफर, तरलता कवरेज अनुपात (Liquidity Coverage Ratio) के रूप में बनाये रखना चाहिए, जिससे आवश्यकता पड़ने पर या जोखिम के समय ये सुनिश्चित किया जा सके कि बैंक के पास अगले 30 दिनों के लिये उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्ति (High Quality Liquidity Asset-HQLA) है ।
  • NBFCs के लिये 1 दिसंबर 2020 से LCR का 50% HQLA के रूप में और 1 दिसम्बर 2024 से इसे 100% बनाए रखने का प्रावधान है।
  • LCR का प्रमुख उद्देश्य तरलता जोखिम (Liquidity Risk) की स्थिति से निपटने के लिये बैंकों के पास उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्तियों का होना सुनिश्चित करना है।
  • इन प्रावधानों के अंतर्गत ऐसी नॉन बैंकिंग फाइनेंसियल कंपनीज आती हैं जिनका संपत्ति आकार 100 करोड़ रुपए से अधिक हो।
  • टाइप I - NBFC-ND (Non Deposit Taking) इकाइयाँ LCR मानदंडों के अंतर्गत नहीं आती हैं।
  • टाइप I - एनबीएफसी-एनडी इकाइयाँ वे इकाइयाँ होती हैं जो सार्वजनिक जमाओं को स्वीकार नहीं करतीं।

संपत्ति देयता प्रबंधन-

संपत्ति देयता प्रबंधन के अंतर्गत बैंकों द्वारा तरलता या ब्याज दरों में परिवर्तन के कारण संपत्ति और दायित्वों के बीच अंतर से उत्पन्न जोखिम का पता चलता है।

उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्ति

(High Quality Liquidity Asset-HQLA)

  • उन संपत्तियों को उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्ति माना जाता है जो आसानी से और संपत्ति के मूल्य में अपेक्षाकृत कम या बिना किसी ह्रास के नकदी में परिवर्तित हो सकती हैं।
  • इसके अंतर्गत नकद, सरकारी प्रतिभूतियां और विदेशी वित्तीय संस्थाओं द्वारा प्रतिभूतियाँ शामिल हैं। ये संपत्तियाँ किसी भी वित्तीय देयता से मुक्त होनी चाहिये।

स्रोत-द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

आइसडैश एवं अतिथि

प्रीलिम्स के लिये:

आइसडैश एवं अतिथि पहल, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड

मेन्स के लिये:

आइसडैश तथा अतिथि पहल से लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वित्त मंत्रालय द्वारा ‘आइसडैश’ (ICEDASH) तथा ‘अतिथि’ (ATITHI) नामक दो नई सूचना तकनीकी पहलें शुरू की गई हैं।

मुख्य बिंदु:

  • वित्त मंत्रालय द्वारा केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (Central Board of Indirect Taxes & Customs- CBIC) के अंतर्गत भारतीय बंदरगाहों तथा हवाई-अड्डों पर आयातित वस्तुओं के ‘कस्टम क्लियरेंस’ (Custom Clearance) को गति प्रदान करने तथा उसकी निगरानी करने के लिये ‘आइसडैश’ नामक ऑनलाइन डैशबोर्ड तथा भारत में आने वाले अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों की सुविधा के लिये ‘अतिथि’ नामक मोबाइल एप लॉन्च किया गया।

‘आइसडैश’ तथा इसके लाभ:

  • ‘आइसडैश’ सीमा शुल्क विभाग द्वारा भारत में कारोबार की सुगमता की निगरानी करने के लिये CBIC के अंतर्गत शुरू किया गया एक ऑनलाइन डैशबोर्ड है।
  • इस पहल की सहायता से आयातक तथा सामान्य लोग यह देख सकेंगे कि देश के किस बंदरगाह अथवा हवाई-अड्डे पर आयातित सामान के ‘कस्टम क्लियरेंस’ की क्या स्थिति है।
  • CBIC ने राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Center- NIC) के साथ मिलकर इस डैशबोर्ड को विकसित किया है।
  • ‘आइसडैश’ के माध्यम से ‘कस्टम क्लियरेंस’ संबंधी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता के साथ-साथ हस्तक्षेप में कमी आएगी।

‘अतिथि’ तथा इसके लाभ:

  • अतिथि के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक अग्रिम रूप से सीमा शुल्क विभाग को यह जानकारी दे सकेंगे कि वे अपने साथ कौन-कौन सी कर योग्य वस्तु तथा कितनी मुद्रा लेकर आ रहे हैं।
  • ‘अतिथि’ एप द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को हवाई अड्डों पर सीमा शुल्क विभाग द्वारा त्वरित क्लियरेंस और सुगम आगमन की सुविधा दी जाएगी जिससे हमारे हवाई-अड्डों पर अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों तथा अन्य आगंतुकों की संख्या में वृद्धि होगी।
  • ‘अतिथि’ एप द्वारा भारतीय सीमा शुल्क विभाग की विश्व में ‘टेक सेवी’ [(Tech Savvy) तकनीक प्रेमी ] छवि बनेगी, जिसके माध्यम से भारत में पर्यटन और व्यापार यात्राओं को प्रोत्साहन मिलेगा।

केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड

(Central Board of Indirect Taxes & Customs- CBIC):

  • केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड वित्त मंत्रालय के अधीन राजस्व विभाग का एक अंग है।
  • यह बोर्ड सीमा शुल्क, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर और IGST (Integrated Goods and Service Tax) का उद्ग्रहण तथा संग्रह का कार्य करता है।
  • सीमा शुल्क, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर और IGST तथा नारकोटिक्स से जुड़े तस्करी तथा प्रशासन संबंधी मुद्दे CBIC के विस्तार क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।
  • पूर्व में इसका नाम केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड था।

स्रोत- PIB


भारतीय अर्थव्यवस्था

EIU की वित्तीय समावेशन रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये:

इकोनॉमिक इंटेलिजेंस यूनिट, वित्तीय समावेशन रिपोर्ट

मेन्स के लिये:

वित्तीय समावेशन से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में द इकोनॉमिक्स इंटेलिजेंस यूनिट (The Economist Intelligence Unit- EIU) ने ‘ग्लोबल माइक्रोस्कोप 2019: द एनेबलिंग एन्वायरनमेंट ऑन फाइनेंशियल इंक्लूज़न रिपोर्ट’ (Global Microscope 2019-The Enabling Environment On Financial Inclusion) जारी की।

निष्कर्ष:

  • उपर्युक्त रिपोर्ट के अनुसार, भारत वित्तीय समावेशन हेतु अनुकूल वातावरण प्रदान करने के मामले में विश्व के शीर्ष देशों में शामिल है।
  • भारत वित्तीय समावेशन के लिये अनुकूल वातावरण प्रदान करने की दृष्टि से 5वें स्थान पर है।
  • इस सूची में शीर्ष पर कोलंबिया है, इसके अलावा दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर क्रमशः पेरू, उरुग्वे और मेक्सिको हैं।
  • 55 देशों की इस सूची में सबसे नीचे डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो (Democratic Republic of Congo) है।
  • ज्ञातव्य है कि इन सभी मानदंडों पर सिर्फ 4 देशों को पूरे अंक मिले, इनमे भारत, कोलंबिया, ज़मैका और उरुग्वे शामिल हैं।

रिपोर्ट के बारे में:

  • इस रिपोर्ट में 55 देशों और 5 क्षेत्रकों को शामिल किया गया है:
  1. शासन और नीति समर्थन
  2. उत्पाद और निर्गम
  3. स्थिरता और अखंडता
  4. उपभोक्ता संरक्षण
  5. आधारभूत ढाँचा
  • उपर्युक्त रिपोर्ट में डिजिटल वित्तीय समावेशन के अंतर्गत निम्नलिखित 4 मानदंडों को शामिल किया गया:
    • गैर-बैंकिंग क्षेत्र को ई-मनी जारी करने की अनुमति।
    • वित्तीय सेवा एजेंटों की मौजूदगी।
    • आनुपातिक आधार पर ग्राहकों की जाँच-परख।
    • प्रभावी उपभोक्ता संरक्षण।
  • रिपोर्ट के इस संस्करण में वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में स्त्री और पुरुष दोनों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये 11 लिंग-आधारित संकेतक भी जोड़े गए।

India's Performance

भारत के संदर्भ में:

  • रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय रिज़र्व बैंक ने अर्थव्यवस्था के डिज़िटलीकरण के लिये मध्यम अवधि की रणनीति तैयार करने हेतु उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है।
  • अगस्त 2019 में रिज़र्व बैंक ने एक रेगुलेटरी सैंडबॉक्स (Regulatory Sandbox- RS) के लिये फ्रेमवर्क जारी किया है। रेगुलेटरी सैंडबॉक्स, वित्त, औद्योगिकी और स्टार्टअप्स (Startups) को नई तकनीक एवं सेवाओं के परीक्षण के लिये आधार उपलब्ध कराएगा।

रेगुलेटरी सैंडबॉक्स:

  • सैंडबॉक्स एक बुनियादी ढाँचा है जो बैंक द्वारा फिनटेक कंपनी को उपलब्ध कराया जाता है ताकि उत्पादों या सेवाओं के तैयार होने के बाद एवं बाज़ार में आने से पहले उनका परीक्षण किया जा सके।

फिनटेक क्या है?

  • फिनटेक (FinTech) Financial Technology का संक्षिप्त रूप है। वित्तीय कार्यों में प्रौद्योगिकी के उपयोग को फिनटेक कहा जा सकता है।
  • दूसरे शब्दों में यह पारंपरिक वित्तीय सेवाओं और विभिन्न कंपनियों तथा व्यापार में वित्तीय पहलुओं के प्रबंधन में आधुनिक तकनीक का कार्यान्वयन है।
  • पहले बैंक में किसी विवरण को रजिस्टर पर लिखा जाता था जिसमें काफी समय भी लगता था। वर्तमान में अब बैंकिंग प्रणाली में प्रौद्योगिकी के प्रयोग से कोर बैंकिंग सिस्टम प्रचलन में आ गया है और इससे बैंकिंग प्रणाली आसान हो गई है। इस प्रकार की वित्तीय प्रौद्योगिकी को फिनटेक कहा जाता है।
  • बैंकों द्वारा फिनटेक के माध्यम से मोबाइल वॉलेट सर्विस तथा UPI और भीम एप लॉन्च करके बैंकिंग प्रणाली को आसान बनाया जा रहा है।
  • फिनटेक बैंकों के लिये भुगतान, नकद हस्तांतरण जैसी सेवाओं में काफी मददगार साबित हो रहा है, साथ ही यह देश के दूरदराज़ के इलाकों तक बैंकिंग सेवाएँ भी उपलब्ध करा रहा है।

स्रोत-द हिन्दू बिज़नेस लाइन


भारतीय अर्थव्यवस्था

विश्व व्यापार संगठन और सब्सिडी मुद्दा

प्रीलिम्स के लिये:

विश्व व्यापार संगठन, SCM

मेन्स के लिये:

सब्सिडी से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) के विवाद निपटान पैनल (Dispute Settlement Panel) ने भारत में दी जाने वाली निर्यात सब्सिडी पर आपत्ति जताई है।

  • पैनल के अनुसार, भारत की निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं ने विश्व व्यापार संगठन के सब्सिडी और काउंटरवेलिंग मानकों (Subsidies and Countervailing Measures- SCM) से संबंधित समझौते के कई प्रावधानों का उल्लंघन किया है।

SCM:

  • SCM समझौता दो मुद्दों से संबंधित है
  1. पहला बहुपक्षीय सब्सिडी के प्रावधानों का विनियमन।
  2. सब्सिडी वाले आयातों के कारण होने वाली हानि से संबंधित काउंटरवेलिंग उपाय।
  • बहुपक्षीय सब्सिडी के प्रावधानों के तहत ही किसी देश द्वारा निर्यात सब्सिडी लगाई जाती है।
  • इसके विपरीत यदि कोई पक्ष इस निर्यात सब्सिडी से प्रभावित हो रहा है तो वह SCM समझौते में निर्धारित मापदंड के तहत काउंटरवेलिंग ड्यूटी लगा सकता है।
  • पैनल ने फैसला सुनाया कि भारत निर्यात प्रदर्शन पर आकस्मिक सब्सिडी प्रदान करने का हकदार नहीं है क्योंकि भारत का प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद 1,000 डॉलर प्रतिवर्ष से अधिक हो गया है।
  • विश्व व्यापार संगठन के SCM समझौते के अनुच्छेद 3।1 के तहत प्रतिवर्ष 1,000 डॉलर के प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद वाले विकासशील देशों को निर्यात सब्सिडी प्रदान करने का अधिकार नहीं है।
  • SCM समझौते के अनुच्छेद 4।7 के अनुसार, यदि निषिद्ध वस्तुओं पर सब्सिडी का प्रश्न उठता है तो पैनल सब्सिडी देने वाले देश से त्वरित रूप से सब्सिडी वापस लेने की अनुशंसा कर सकता है।
  • पैनल के अनुसार, भारत की निर्यात प्रोत्साहन सब्सिडी को SCM समझौते के अनुच्छेद 3।1(a) और 3।2 से असंगत पाया गया है।
  • पैनल ने फैसला सुनाया है कि भारत को 90-120 दिनों की समयावधि के भीतर SCM समझौते से असंगत सभी योजनाओं को वापस लेना चाहिये।

इस प्रकार के फैसले का भारत पर प्रभाव:

  • इस प्रकार के फैसले के बाद भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही कई निर्यात-सब्सिडी योजनाएँ गंभीर रूप से प्रभावित होंगी। इन योजनाओं में शामिल हैं:
  1. इलेक्ट्रॉनिक्स हार्डवेयर टेक्नोलॉजी पार्क स्कीम, बायो-टेक्नोलॉजी पार्क स्कीम
  2. मर्चेंडाइज़ एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम
  3. एक्सपोर्ट प्रमोशन कैपिटल गुड्स स्कीम
  4. विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone)
  • भारत प्रतिवर्ष 7 बिलियन डॉलर (5।4 बिलियन पाउंड) से अधिक की सब्सिडी विभिन्न उत्पादों जैसे- इस्पात, फार्मास्यूटिकल्स, रसायन, आईटी और वस्त्र आदि पर देता है।

भारत के लिये निर्यात सब्सिडी का महत्त्व:

  • भारत अभी भी विकासशील देशों की श्रेणी में है। भारत की आय में जो वृद्धि हुई है उसमें निर्यात से ज़्यादा योगदान सेवा क्षेत्र का है इसलिये भारत के इस प्रकार के प्रावधान अप्रासंगिक प्रतीत होते हैं, ध्यातव्य है कि भारत काफी समय से इस प्रकार के प्रावधानों के अंतर्गत विशेष छूट की मांग कर रहा है।
  • वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर संरक्षणवाद और अन्य प्रभावी कारकों के कारण भारत की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, इसलिये ऐसे समय में भारत जैसे विकासशील देशों को इन प्रावधानों से विशेष छूट मिलनी चाहिये।
  • भारत का बैंकिंग और उद्योग क्षेत्रक इस समय मंदी से घिरा हुआ है, इसलिये विशेष प्रोत्साहन के बिना अर्थव्यवस्था में उत्पादन बढ़ाना आसान कार्य नहीं है।

स्रोत: इकोनॉमिक्स टाइम्स


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