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डेली न्यूज़

  • 05 Sep, 2019
  • 58 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

कॉर्पोरेट ऋण के लिये द्वितीयक बाज़ार का विकास

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा टी. एन. मनोहरन (T.N. Manoharan) की अध्यक्षता में गठित पैनल ने देश में कॉर्पोरेट ऋणों (Corporate Loans) के लिये द्वितीयक बाज़ार (Secondary Market) के विकास हेतु कुछ सुझाव दिये हैं।

  • द्वितीयक बाज़ार वह बाज़ार है जहाँ निवेशक प्रतिभूतियों को खरीदते एवं बेचते हैं।

पैनल द्वारा दिये गए सुझाव

  • कॉर्पोरेट ऋणों की ट्रेडिंग के लिये उपयुक्त मानक विकसित करने हेतु प्रतिभागियों के एक स्व-नियामक निकाय (Self-Regulatory Body-SRB) की स्थापना करना।
  • खरीदारों और विक्रेताओं के बीच सूचना विषमता को दूर करने के लिये एक लोन कॉन्ट्रैक्ट रजिस्ट्री (Loan Contract Registry) बनाना।
  • ऋणों की नीलामी और बिक्री के लिये एक ऑनलाइन ऋण बिक्री मंच (Online Loan Sales Platform) का निर्माण करना।
  • म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियों और पेंशन फंड जैसी गैर-बैंकिंग संस्थाओं को प्राथमिक तथा द्वितीयक ऋण बाज़ार में भाग लेने हेतु सक्षम करना।
  • ऋण प्रतिभूतिकरण (Securitisation) की अनुमति देकर उसे द्वितीयक बाज़ार के माध्यम से निवेशकों को ऋण प्राप्ति हेतु प्रोत्साहित करने के लिये एक साधन के रूप में देखा जा सकता है।
    • गौरतलब है कि इससे पूर्व सिर्फ सजातीय संपत्तियों (Homogenous Assets) के प्रतिभूतिकरण की ही अनुमति दी गई थी।

प्रतिभूतिकरण का आशय गैर-तरल परिसंपत्तियों (Illiquid Assets) को प्रतिभूतियों में बदलने की प्रक्रिया से है।

  • विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (Foreign Portfolio Investors-FPIs) को सीधे बैंकों से दबावग्रस्त ऋण (Distressed Loans) खरीदने की भी अनुमति दे दी गई है।
    • वर्तमान में FPI एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों (Asset Reconstruction Companies-ARC) के माध्यम से दबावग्रस्त ऋणों को खरीदते हैं।
    • दबावग्रस्त ऋण उन कंपनियों से संबंधित ऋण होते हैं जो या तो दिवालिया हो चुकी हैं या भविष्य में होने वाली हैं।

एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी

(Asset Reconstruction Companies-ARC)

  • ARC एक विशेष प्रकार की वित्तीय संस्था होती है जो बैंक की देनदारी को एक निश्चित मूल्य पर खरीदती है एवं स्वयं उनसे वसूली करती है।
  • इस प्रकार की वित्तीय संस्थाओं को भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के तहत पंजीकृत किया जाता है।
  • ARC बैंकों की मुख्यतः उन परिसंपत्तियों को खरीदती है जो गैर-निष्पादित परिसंपत्ति के रूप में वर्गीकृत की गई हैं।

स्रोत: लाइव मिंट


जैव विविधता और पर्यावरण

घरेलू वायु प्रदूषण और हृदय संबंधी रोग

चर्चा में क्यों?

एक हालिया अध्ययन के मुताबिक, निम्न आय वाले देशों (Low Income Countries) में हृदय रोग (Cardiovascular Disease-CVD) के कारण मरने वाले लोगों की संख्या कैंसर (Cancer) से मरने वाले लोगों की संख्या से तीन गुना अधिक है।

अध्ययन के मुख्य बिंदु:

  • हृदय रोग (CVD) वैश्विक स्तर पर मृत्यु का सबसे प्रमुख कारण है, परंतु निम्न आय वाले देशों और उच्च आय वाले देशों में इस संदर्भ में काफी भिन्नता पाई जाती है।
  • उच्च आय वाले देशों में कैंसर से होने वाली मौतें हृदय रोग के कारण होने वाली मौतों से दोगुनी हैं, वहीं निम्न आय वाले देशों में यह आँकड़ा पूर्णतः विपरीत है।
  • इसके अतिरिक्त अध्ययन में घरेलू वायु प्रदूषण (Household Air Pollution) को हृदय रोगों का सबसे प्रमुख कारण माना गया है।
  • निम्न आय वाले देशों में मधुमेह, धूम्रपान, कम शारीरिक गतिविधियों और खराब आहार की अपेक्षा घरेलू वायु प्रदूषण से हृदय रोग होने की संभावना अधिक होती है।

उल्लेखनीय है कि हृदय रोग संबंधी इस अध्ययन में भारत को निम्न आय वाले देश के रूप में वर्गीकृत किया गया था

घरेलू वायु प्रदूषण

  • घरों में ठोस ईंधन के जलने से उत्पन्न PM2.5 का उत्सर्जन घरेलू वायु प्रदूषण (Household Air Pollution-HAP) कहलाता है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वैश्विक स्तर पर तीन बिलियन से अधिक लोग खाना पकाने के लिये प्रदूषणकारी ईंधन और उपकरण - जैसे लकड़ी, कोयला और साधारण स्टोव आदि का उपयोग करते हैं।
  • घरेलू वायु प्रदूषण का सबसे ज़्यादा प्रभाव महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ता है तथा यह मुख्यतः विकासशील देशों के ग्रामीण हिस्सों में देखने को मिलता है, क्योंकि इन इलाकों में सौर, बिजली और बायोगैस गैस जैसे स्वच्छ विकल्पों तक पहुँच न होने के कारण लोग खाना पकाने और अन्य संबंधित कार्य करने के लिये प्रदूषणकारी ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर रहते हैं।
  • दुनिया में अभी भी ऐसे कई लोग हैं जो बिजली न होने के कारण रोशनी के लिये केरोसिन (Kerosene) का उपयोग करते हैं।

घरेलू वायु प्रदूषण का प्रभाव

  • स्वास्थ्य पर प्रभाव
    • उपरोक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि घरेलू वायु प्रदूषण वैश्विक स्तर पर हृदय संबंधी रोगों से होने वाली मौतों का सबसे प्रमुख कारण है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के मुताबिक, घरेलू वायु प्रदूषण (मुख्यतः खाना पकाने के दौरान आग से निकलने वाले धुएँ) के संपर्क में आने से प्रतिवर्ष 3.8 मिलियन लोगों की समयपूर्व मृत्यु हो जाती है।
    • गोबर, लकड़ी और कोयले जैसे ईंधनों के उपयोग से पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter-PM), मीथेन (Methane) और कार्बन मोनोऑक्साइड (Carbon Monoxide) जैसे हानिकारक प्रदूषण कारकों का उत्सर्जन होता है, जिसके परिणामस्वरूप फेफड़ों के कैंसर, हृदय रोग और मोतियाबिंद आदि का खतरा बढ़ जाता है।
    • घरेलू वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य जोखिमों को गरीबी के साथ भी जोड़कर देखा जाता है, क्योंकि गरीबों के पास स्वच्छ ईंधन और उपकरण प्राप्त करने के लिये संसाधनों की कमी होती है। अधिकतर कम आय वाले परिवारों में लोग लकड़ी और गोबर जैसे ईंधन पर भरोसा करते हैं, क्योंकि इन्हें आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
  • जलवायु पर प्रभाव
    • घरेलू वायु प्रदूषण ब्लैक कार्बन (Black Carbon) के उत्सर्जन में 25 प्रतिशत का योगदान देता है एवं कई अध्ययनों के मुताबिक ब्लैक कार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) के बाद जलवायु परिवर्तन का दूसरा सबसे बड़ा कारक है।
    • घरेलू वायु प्रदूषण का कृषि उत्पादन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ब्लैक कार्बन फसलों तक पहुँचने वाली सूर्य के प्रकाश की मात्रा को कम कर देता है एवं प्रकाश संश्लेषण को बाधित करता है जिसके कारण फसलों को काफी नुकसान पहुँचता है।
    • स्वच्छ ईंधन तक पहुँच के अभाव में अधिकतर लोग लकड़ी को ही विकल्प के रूप में चुनते हैं, जिसके कारण वनों की कटाई को और अधिक बढ़ावा मिलता है।

घरेलू वायु प्रदूषण को रोकने के उपाय

  • हानिकारक ईंधन का प्रयोग करने के पीछे सबसे प्रमुख कारण यह है कि इस प्रकार के ईंधन जैसे - लकड़ी और गोबर काफी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं और इसके विपरीत स्वच्छ ईंधन जैसे LPG और सौर ऊर्जा आदि अपेक्षाकृत काफी महँगे हैं। अतः नीति निर्माताओं को इस ओर ध्यान देना चाहिये एवं सभी को स्वच्छ ईंधन उपलब्ध कराने हेतु प्रयास करना चाहिये।
  • कर में छूट देकर भी स्वच्छ घरेलू ईंधन और प्रौद्योगिकियों की बिक्री को प्रोत्साहित किया जा सकता है। उदाहरण के लिये देश की सरकार स्वच्छ घरेलू ऊर्जा ईंधन और उपकरणों के आयात पर कर समाप्त कर सकती है जिससे इनकी कीमत में गिरावट आएगी और सभी लोग इन्हें खरीद सकेंगे।
  • माइक्रोफाइनेंस (Microfinance) के सहारे भी उद्यमियों को स्वच्छ ईंधन और उपकरणों को बेचने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका के देशों में कई निजी उद्यमी सौर ऊर्जा प्रणाली की खरीदारी पर ‘उपयोगानुसार भुगतान’ का भी विकल्प देते हैं।
  • वर्ष 2015 में भारत सरकार द्वारा ‘गिव इट अप’ (Give It Up) अभियान की शुरुआत की गई थी जिसके तहत मध्यम वर्ग को घरेलू LPG पर मिलने वाली सब्सिडी छोड़ने के लिये प्रोत्साहित किया गया था, ताकि देश के उन गरीब लोगों को मुफ्त LPG कनेक्शन दिया जा सके जो अब तक उससे वंचित थे। सरकार का यह अभियान काफी कारगर साबित हुआ था और कई लोगों ने अभियान के तहत LPG पर मिलने वाली सब्सिडी छोड़ दी थी। घरेलू वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने और स्वच्छ ईंधन को प्रोत्साहित करने के लिये हमें इस प्रकार की कई अन्य सफल योजनाओं की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत और प्लास्टिक कचरा

चर्चा में क्यों?

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने संबोधन में 2 अक्तूबर (गांधी जयंती) से शुरू हो रहे एकल उपयोग वाली प्लास्टिक (Single use plastic) को प्रचलन से हटाने के कार्यक्रम के लिये आंदोलन का आह्वान किया है।

भारत की स्थिति

  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (PWM) नियम, 2016 की अधिसूचना जारी करने और दो साल बाद किये गए संशोधन के बावजूद अधिकांश शहर और कस्बे इसके प्रावधानों को लागू करने के लिये तैयार नहीं हैं।
  • बड़े शहरों के नगर निगम कचरे के बोझ से दबे हुए हैं और पुनर्नवीकरण योग्य व गैर-पुनर्नवीकरण योग्य कचरे के संग्रह तथा प्रसंस्करण के लिये अन्य अपशिष्ट आदि के पृथककरण में विफल रहे हैं।
  • यह एक बढ़ता हुआ खतरा है। फिक्की (FICCI) की रिपोर्ट के अनुसार, प्लास्टिक की प्रति व्यक्ति खपत वर्ष 2014-15 के 11 किलोग्राम से बढ़कर वर्ष 2022 तक 20 किलोग्राम हो जाने का अनुमान है, जबकि एकल उपयोग पैकेजिंग की रिकवरी दर लगभग 43% ही है।
  • वर्ष 2018 में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम में संशोधन किया गया था जिसके तहत उत्पादकों को राज्यों के शहरी विकास विभागों के साथ साझेदारी में कचरे की रिकवरी के लिये छह माह की समय-सीमा निर्धारित की गई थी। उल्लेखनीय है कि इस योजना में भी काफी कम प्रगति हुई।
  • उचित औद्योगिक प्रक्रिया के उद्देश्य से पुनर्चक्रण को सुविधाजनक बनाने के लिये प्लास्टिक को संख्यात्मक रूप में (जैसे PET के लिये 1, निम्न घनत्व वाले पॉलीइथीलीन के लिये 4, पॉलीप्रोपीलीन के 5 आदि) भी चिह्नित नहीं किया गया।
  • गौरतलब है कि पुनर्चक्रण गैर- पुनर्चक्रण की मात्रा को कम करता है, जिसे सीमेंट भट्टों में सह-प्रसंस्करण, प्लाज़्मा पाइरोलाइसिस या भूमि-भराव जैसे तरीके अपनाकर किया जाना चाहिये।
  • इस वर्ष केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने 52 कंपनियों को नोटिस जारी कर उनके विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended producer responsibility) संबधी अपने दायित्वों को पूरा करने को कहा है।

उर्वरक योग्य या जैवनिम्नीकृत प्लास्टिक की व्यवहार्यता

  • हालाँकि पेरे हुए गन्ने की खोई, मक्के का स्टार्च और अनाज के आटे आदि विभिन्न सामग्रियों से बने खाद बनने योग्य, (Compostable) जैवनिम्नीकृत या खाद्य प्लास्टिक (Edible Plastic) को प्लास्टिक के विकल्प के रूप प्रोत्साहित किया जा रहा है लेकिन वर्तमान में इनके समक्ष मानदंड एवं लागत संबंधी सीमाएँ उपस्थित हैं।
  • कुछ जैवनिम्नीकृत पैकेजिंग सामग्री को तोड़ने के लिये विशिष्ट सूक्ष्मजीवों की आवश्यकता होती है, जबकि खाद या उर्वरक बनने योग्य (Compostable) कप और प्लेटें मक्के के स्टार्च से उत्पन्न बायोमास पॉलीलेक्टिक अम्ल (Polylactic Acid) से बने होते हैं जिसे खाद में बदलने के लिये उचित औद्योगिक प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
  • हालाँकि आलू और मक्के के स्टार्च से अलग प्रक्रिया से बनाए गए उत्पादों ने सामान्य परिस्थिति में भी बेहतर प्रदर्शन किया है।
  • उल्लेखनीय है कि समुद्री शैवाल भी खाद्य कंटेनर बनाने के लिये एक विकल्प के रूप में उभर रहा है।
  • भारत में पैकेजिंग उत्पादकों के दावों को सत्यापित करने हेतु मज़बूत परीक्षण और प्रमाणन के अभाव में नकली जैवनिम्नीकृत एवं खाद बनने योग्य (Compostable) प्लास्टिक बाज़ार में प्रवेश कर रहा है।
  • CPCB के अनुसार, इस वर्ष जनवरी में 12 कंपनियाँ थीं, जो बिना किसी प्रमाणन के खाद बनने योग्य (Compostable) चिह्न के साथ बाज़ार में प्रचलित थीं।

आगे की राह

  • एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाने से विकल्प के रूप में विपणन की गई सामग्री को प्रमाणित करने के लिये और उन्हें जैवनिम्नीकृत करने या खाद बनाने के लिये ज़रूरी विशिष्ट प्रक्रिया के लिये एक व्यापक तंत्र का निर्माण होगा।
  • प्लास्टिक कचरे के खिलाफ आंदोलन में मल्टी-लेयर पैकेजिंग, ब्रेड बैग, फूड रैप (Food Wrap) और प्रोटेक्टिव पैकेजिंग, ब्रेड बैग, फूड रैप (Food Wrap) और प्रोटेक्टिव पैकेजिंग जैसे एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के उपभोग में कमी को प्राथमिकता देना होगा।
  • इस अभियान के अन्य पक्षों में प्लेटों, कटलरी और कपों के लिये प्रमाणित जैवनिम्नीकृत और कम्पोस्टेबल विकल्पों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
  • इसके साथ-साथ कचरे का कठोर अलगाव और पुनर्चक्रण को भी बढ़ाया जाना चाहिये जिसमें शहर के नगरपालिका अधिकारी की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी।
  • कानून के तहत निर्माताओं को अपने विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility-EPR) का गंभीरता से पालन करना चाहिये।
  • उद्योगों को प्रशासन की मदद से संग्रहण एवं पुनर्चक्रण की सुविधा के अलावा नवाचार एवं नई सामग्रियों पर भी ध्यान देना चाहिये।
  • उल्लेखनीय है कि भारत में पैकेजिंग बाज़ार वर्ष 2015 के 31 बिलियन डॉलर की तुलना में बढ़कर वर्ष 2020 तक 72.6 बिलियन डॉलर पहुँचने का अनुमान है।
  • अत: उत्पादकों पर सभी प्रकार के प्लास्टिक के संग्रह, पुनर्चक्रण और प्रसंस्करण को कारगर बनाने के लिये दबाव बढ़ाने की आवश्यकता है।

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

विश्व चुनाव निकायों का संघ

चर्चा में क्यों?

भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने 3 सितंबर 2019 को वर्ष 2019- 2021 तक की अवधि के लिये विश्व निर्वाचन निकाय संघ (Association of World Election Bodies- AWEB) की अध्यक्षता संभाली।

प्रमुख बिंदु

  • भारत को वर्ष 2017 में बुखारेस्ट में आयोजित अंतिम आमसभा में सर्वसम्मति से AWEB का अध्यक्ष मनोनीत किया गया था।
  • इससे पहले AWEB की अध्यक्षता रोमानिया के पास थी।
    • श्री सुनील अरोड़ा को AWEB का ध्वज रोमानिया के स्थायी निर्वाचन प्राधिकरण के सलाहकार द्वारा सौंपा गया।
    • यह ध्वज भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के पास वर्ष 2021 तक रहेगा।
  • निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष के अनुसार, लोकतंत्र का तात्पर्य सभी की भलाई के लिये लोगों के विभिन्न वर्गों के संपूर्ण भौतिक, आर्थिक एवं आध्यात्मिक संसाधनों को जुटाना होना चाहिये।
  • AWEB चार्टर की प्रस्तावना में इसके विज़न को रेखांकित किया गया है, जिसमें शामिल हैं:
    • विश्व में विश्वसनीय निर्वाचन प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिये चुनावी प्रबंधन निकायों (Electoral Management Bodies- EMBs) के बीच सहयोग को मज़बूत करने की जरूरत।
    • स्वतंत्र, निष्पक्ष, पारदर्शी एवं सहभागितापूर्ण चुनाव कराने के लिये अनुकूल माहौल को बढ़ावा देने एवं विश्व में एक लोकतांत्रिक संस्कृति को विकसित करने की प्रतिबद्धता।
    • महिला-पुरुष समानता को बढ़ावा देना और निर्वाचन प्रक्रिया में दिव्यांगजनों तथा हाशिये पर पड़े अन्य समुदायों को शामिल करना।
  • भारतीय निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष ने भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) के क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के ज़रिये इस संघ के उद्देश्यों के अनुसार इसकी गतिविधियों को बढ़ावा देने एवं मज़बूती प्रदान करने के लिये अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है।

विश्व चुनाव निकायों का संघ

  • इस संघ की स्थापना वर्ष 2013 में हुई थी।
  • इसका उद्देश्य अपने सदस्यों की भागीदारी एवं सहयोग के साथ नवाचारों, अनुभवों और कौशल को साझा कर मूल्यवान योगदान, व्यावसायिक समर्थन और सलाह देना है।
  • 111 देशों के 120 चुनावी प्रबंधन निकायों (EMB) और सहयोगी सदस्यों के रूप में 21 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ यह सही अर्थों में चुनावी प्रबंधन निकायों का सबसे बड़ा वैश्विक संगठन बन गया है जो चुनावी लोकतंत्र के प्रसार को नई गति प्रदान कर रहा है।

स्रोत: PIB


शासन व्यवस्था

मध्‍यस्‍थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा मध्‍यस्‍थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम [Arbitration and Conciliation (Amendment) Act], 2019 के विभिन्न प्रावधानों को लागू करने के संबंध में एक आवश्‍यक राजपत्र अधिसूचना जारी की गई है।

अधिसूचना

केंद्र सरकार मध्‍यस्‍थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2019 की उप-धारा 1 के तहत प्राप्त अधिकारों का उपयोग कर 30 अगस्त, 2019 की तिथि को मध्‍यस्‍थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2019 के निम्‍नलिखित प्रावधानों के लागू होने के बारे में निर्दिष्‍ट कर सकती है-

  1. धारा 1
  2. धारा 4 से लेकर धारा 9 तक (दोनों ही इनमें शामिल)
  3. धारा 11 से लेकर धारा 13 तक (दोनों ही इनमें शामिल)
  4. धारा 15

मध्‍यस्‍थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2019 की धारा 1 की उप-धारा 2 में यह उल्‍लेख किया गया है-

‘जैसा कि इस अधिनियम में प्रावधान किया गया है उसके अनुसार ही संचित करें। यह उस तारीख को अमल में आएगा जिसे केंद्र सरकार द्वारा सरकारी राजपत्र में निर्दिष्‍ट किया जा सकता है। इस अधिनियम के विभिन्‍न प्रावधानों के लिये अलग-अलग तिथियाँ तय की जा सकती है। इस अधिनियम के प्रभावी होने से संबंधित इस तरह के किसी भी प्रावधान के बारे में किसी भी संदर्भ को उस प्रावधान के प्रभावी होने के संदर्भ के रूप में समझा जा सकता है।’

  • उपर्युक्‍त अधिसूचना को ध्‍यान में रखते हुए मध्‍यस्‍थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम, 1996 की धारा 17, 23, 29A, 34, 37, 45 और 50 को संशोधित कर दिया गया है। यही नहीं, तीन नई धाराओं यथा; 42A, 42B और 87 को भी अधिनियम में शामिल किया गया है।
  • धारा 87 को 23 अक्‍तूबर, 2015 से ही इसमें शामिल माना गया है, ताकि मध्‍यस्‍थता एवं संबंधित अदालती कार्यवाही से जुड़ी कथित निर्दिष्‍ट तिथि को मान्‍य माने जाने के बारे में स्‍पष्‍टीकरण दिया जा सके।

पृठभूमि

  • 9 अगस्‍त, 2019 को मध्‍यस्‍थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2019 को अधिसूचित किया गया था।
  • यह विवादों के समाधान के लिये संस्‍थागत मध्‍यस्‍थता को प्रोत्‍साहित करने के सरकार के प्रयास का एक हिस्‍सा है। यह भारत को मज़बूत वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution-ADR) व्‍यवस्‍था का केंद्र बनाता है।

वैकल्पिक विवाद समाधान

(Alternative Dispute Resolution-ADR)

  • कानूनी तथा गैर-कानूनी मामलों की बढ़ती संख्या को मद्देनज़र रखते हुए अदालतों पर पड़ने वाले अतिरिक्त दबाव को कम करने के लिये कुछ विशेष मामलों को वैकल्पिक तरीकों से सुलझाया जाना चाहिये।
  • इस संदर्भ में पंचाट, मध्यस्थता तथा समाधान (इन्हें संयुक्त रूप से पंचाट तंत्र कहा जाता है) कुछ ऐसे उपाय हैं जो वैकल्पिक क्षतिपूर्ति प्रणाली के आधार-स्तंभों के रूप में उपस्थित हैं।

भारतीय मध्‍यस्‍थता परिषद

Arbitration Council of India:

इस अधिनियम में एक स्‍वतंत्र संस्‍था भारतीय मध्‍यस्‍थता परिषद (Arbitration Council of India-ACI) बनाने का प्रावधान है।

कार्य:

  • यह संस्‍था मध्‍यस्‍थता करने वालें संस्‍थानों को ग्रेड देगी और नियम तय करके मध्‍यस्‍थता करने वालों को मान्‍यता प्रदान करेगी।
  • साथ ही, वैसे सभी कदम उठाएगी जो मध्‍यस्‍थता, सुलह तथा अन्‍य वैकिल्‍पक समाधान व्‍यवस्‍था को बढ़ावा देंगे।
  • इसका उद्देश्‍य मध्‍यस्‍थता तथा वैकल्पिक विवाद समाधान व्‍यवस्‍था से जुड़े सभी मामलों में पेशेवर मानकों को बनाने के लिये नीति और दिशा-निर्देश तय करना है।
  • यह परिषद सभी मध्‍यस्‍थता वाले निर्णयों का इलेक्‍ट्रॉनिक डिपोज़िटरी रखेगी।

परिषद की सदस्य संरचना

  • ACI निकाय निगम (Body Corporate) के रूप में कार्य करेगी। ACI का अध्‍यक्ष वह व्‍यक्ति होगा जो उच्‍चतम न्‍यायालय का न्‍यायाधीश रहा हो या किसी उच्‍च न्‍यायालय का मुख्‍य न्‍यायाधीश और न्‍यायाधीश रहा हो।
  • अन्‍य सदस्‍यों में सरकारी नामित लोगों के अतिरिक्‍त जाने-माने शिक्षाविद् आदि शामिल किये जाएंगे।

मध्यस्थों की नियुक्ति:

  • 1996 के अधिनियम के तहत मध्यस्थ नियुक्त करने के लिये पक्षों को स्वतंत्र रखा गया था।
  • किसी नियुक्ति पर असहमति के मामले में संबंधित पक्ष को उच्चतम न्यायालय या संबंधित उच्च न्यायालय, या किसी भी व्यक्ति या संस्थान द्वारा नामित किसी व्यक्ति या संस्था को मध्यस्थ नियुक्त करने का अनुरोध कर सकती हैं।

स्रोत: PIB


भारतीय अर्थव्यवस्था

गोल्ड रिज़र्व में भारत शीर्ष 10 देशों में शामिल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल’ (World Gold Council-WGC) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में स्वर्ण भंडार के मामले में भारत का 10वाँ स्थान है।

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत का स्वर्ण भंडार कुल 618.2 टन है।
  • WGC द्वारा इसी वर्ष मार्च में जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत का विश्व में 11वाँ (607 टन) स्थान था।
  • भारत का स्वर्ण भंडार दो दशकों में 357.8 टन से बढ़कर वर्तमान में 618.2 टन हो गया है।
  • शीर्ष दस देशों की सूची में भारत को स्थान तब प्राप्त हुआ है जब स्वर्ण की मासिक खरीद की मात्रा तीन वर्षों में सबसे कम है।
  • अधिकांश देशों का यह डेटा जुलाई 2019 तक का है क्योंकि डेटा संकलन के दो महीने के अंतराल के बाद रिपोर्ट जारी की जाती है।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका (8,134 टन) के पास सर्वाधिक स्वर्ण भंडार है तथा जर्मनी (3,367 टन) दूसरा सर्वाधिक स्वर्ण भंडार वाला देश है।
  • जबकि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) 2,451.8 टन के स्वर्ण भंडार के साथ तीसरे स्थान पर है इसके बाद इटली (2,451.8 टन), फ्राँस (2,436.1 टन), रूस (2,219.2 टन), चीन (1,936.5 टन), स्विट्ज़रलैंड (1,040 टन), जापान (765.2 टन) और भारत (618.2 टन) हैं।

स्वर्ण भंडार और अर्थव्यवस्था

मुद्रास्फीति के विरुद्ध बचाव: स्वर्ण के अंतर्निहित मूल्य (Inherent Value) और सीमित आपूर्ति के कारण मुद्रास्फीति (Inflation) के समय इसकी मांग में वृद्धि हो जाती है क्योंकि मुद्रा के अन्य रूपों की तुलना में स्वर्ण बेहतर मूल्य बनाए रखने में सक्षम है।

मुद्रा की सामर्थ्य: जब कोई देश निर्यात से अधिक आयात करता है तो उसकी मुद्रा का अवमूल्यन (Devaluation) होगा, वहीँ दूसरी ओर किसी देश का शुद्ध निर्यातक होने पर उसकी मुद्रा का अधिमूल्यन (Revaluation) होता है।

  • यदि सोने की कीमत बढ़ती है तो इससे किसी देश के कुल निर्यात का मूल्य बढ़ जाता है। इसलिये सोने का निर्यात करने वाला या सोने के भंडार तक पहुँच रखने वाले देश की मुद्रा का अधिमूल्यन होगा।
  • केंद्रीय बैंक देश के स्वर्ण भंडार में वृद्धि (स्वर्ण की अधिक खरीदारी के लिये) हेतु अधिक मुद्रा छापने पर भरोसा करते हैं जिस कारण अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति बढ़ जाती है।
  • परिणामस्वरूप स्वर्ण खरीदने के लिये उपयोग की जाने वाली मुद्रा का अवमूल्यन हो जाता है।

मुद्रा के रूप में: 20वीं शताब्दी के अधिकांश समय में विश्व आरक्षित मुद्रा के रूप में सोने का उपयोग किया गया। संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 1971 तक गोल्ड स्टैंडर्ड का इस्तेमाल किया।

  • गोल्ड स्टैंडर्ड के तहत पेपर मुद्रा स्वर्ण भंडार की सामान मात्रा से समर्थित होती थी।

हालांकि गोल्ड स्टैंडर्ड को बंद कर दिया गया है।

वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (World Gold Council)

  • वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) विश्व के प्रमुख स्वर्ण उत्पादकों का एक गैर-लाभकारी संघ है।
  • इसका मुख्यालय लंदन में है।
  • यह स्वर्ण उद्योग के लिये एक बाज़ार विकास संगठन है।
  • WGC की स्थापना विपणन, अनुसंधान और लॉबिंग के माध्यम से सोने के उपयोग और मांग को बढ़ावा देने के लिये की गई थी।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

उच्च तुंगता पर बाघ आवास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्च तुंगता (High Altitude) वाले पारिस्थितिक तंत्र में बाघों के आवास (Habitats) की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की गई है।

प्रमुख बिंदु

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, उच्च तुंगता पर भी पारिस्थितिकी बाघों की वृद्धि के लिये अनुकूल है।
  • यह रिपोर्ट उच्च तुंगता पर बाघों के संभव आवासों, संपर्क गलियारों एवं मानवजन्य दबावों की पहचान करने के साथ ही उनके स्व-स्थाने (IN-SITU) संरक्षण के लिये रोडमैप उपलब्ध करवाती है।
  • यह रिपोर्ट उच्च तुंगता पर स्थित बाघ के आवासों के लिये भारत सरकार को मास्टर प्लान बनाने के लिये रणनीति बनाने में सहयोग करेगी।
  • इस रणनीति के तहत बाघ संरक्षण को केंद्र में रखते हुए विकास और स्थानीय समुदायों को लाभ प्रदान करने के लिये एक प्रभावी समन्वय तंत्र बनाना एवं परिदृश्य के भीतर सभी हितधारकों और कार्यरत विभागों को शामिल करना है।
  • यह रिपोर्ट ग्लोबल टाइगर फोरम (Globel Tiger Forum-GTF) के नेतृत्व में, भूटान, भारत और नेपाल के साथ-साथ संरक्षण भागीदारों (WWF और विशिष्ट सहयोगियों) और आई.यू.सी.एन. (IUCN) के एकीकृत बाघ आवास संरक्षण कार्यक्रम (Integrated Tiger Habitat Conservation Programme -ITHPC) एवं KfW (जर्मन विकास बैंक) द्वारा समर्थित है।
  • हालाँकि रेंज के भीतर अधिक ऊँचाई वाले अधिकांश आवासों में बाघ की उपस्थिति, शिकार और निवास स्थान की स्थिति का मूल्यांकन नहीं किया गया है। इसलिये निवास स्थान की मैपिंग और भविष्य के रोडमैप के लिये स्थिति के विश्लेषण का मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है।

उच्च तुंगता वाले बाघ आवास

  • ये आवास एक उच्च मूल्य वाले पारिस्थितिकी तंत्र होते हैं जिसमें पारिस्थितिक तंत्र सेवाएँ प्रदान करने वाली कई हाइड्रोलॉजिकल और पारिस्थितिक प्रक्रियाएँ होती हैं
  • जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने हेतु अनुकूलन के लिये उच्च तुंगता पर स्थित बाघ आवासों को भूमि के सतत् उपयोग द्वारा संरक्षित किये जाने की आवश्यकता है।
  • दक्षिण एशिया के कई उच्च तुंगता वाले क्षेत्रों में बाघ की स्थानिक उपस्थिति है इसलिये उनके संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिये सक्रिय स्व-स्थाने प्रयासों की आवश्यकता है।

ग्लोबल टाइगर फोरम (Globel Tiger Forum-GTF)

  • इसका गठन वर्ष 1993 में नई दिल्ली में आयोजित बाघ संरक्षण पर एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी की सिफारिशों पर किया गया था।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली, भारत में स्थित है।
  • GTF एकमात्र अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय निकाय (intergovernmental international body) है जो बाघों के संरक्षण के लिये तैयार देशों के सहयोग से स्थापित किया गया है।

एकीकृत बाघ आवास संरक्षण कार्यक्रम

(Integrated Tiger Habitat Conservation Programme -ITHCP)

  • इसे वर्ष 2014 में शुरू किया गया।
  • ITHCP एक रणनीतिक वित्तपोषण तंत्र (Strategic Funding Mechanism) है जिसका उद्देश्य एशिया में बाघों को जंगलों में संरक्षित करना और उनके प्राकृतिक आवासों को बचाना है।
  • यह छह देशों (बांग्लादेश, भूटान, भारत, इंडोनेशिया, नेपाल और म्याँमार) में 12 परियोजनाओं को सहायता प्रदान कर रहा है जिससे बाघ संरक्षण परिदृश्य का बेहतर प्रबंधन किया जा सके।
  • यह ग्लोबल टाइगर रिकवरी प्रोग्राम (GTRP) में योगदान दे रहा है जो कि वर्ष 2022 तक बाघों की संख्या दोगुनी करने का वैश्विक प्रयास है।

स्रोत: पीआईबी


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

क्षुद्रग्रह से खतरा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नासा ने यह संभावना व्यक्त की है कि दो विशाल क्षुद्रग्रह 2000 QW7 और 2010 CO1 14 सितंबर को 24 घंटे की अवधि के भीतर पृथ्वी के पास से गुज़र सकते हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • नासा के सेंटर फॉर नियर-अर्थ ऑब्जेक्ट स्टडीज़ (Centre for Near Earth Object Studies - CNEOS) द्वारा दोनों क्षुद्रग्रहों को नियर अर्थ ऑब्जेक्ट (Near Earth Object ) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • क्षुद्रग्रह 2000 QW7 23000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से परिक्रमा कर रहा है। इस क्षुद्रग्रह के 290 मीटर लंबे, 650 मीटर चौड़े और 828 मीटर ऊँचे होने का अनुमान लगाया गया है। इस क्षुद्रग्रह की खगोलीय इकाई (Astronomical Units- AU) 0.035428 होगी, जो पृथ्वी से लगभग 5.3 मिलियन किलोमीटर दूर है। उल्लेखनीय है कि एक खगोलीय इकाई सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी के बराबर होती है।
  • क्षुद्रग्रह 2010 CO1 दूसरा खगोलीय पिंड है जिसकी खोज जनवरी 2010 में की गई थी। इस क्षुद्रग्रह के 260 मीटर चौड़े और 120 मीटर लंबे होने की संभावना व्यक्त की गई है साथ ही यह 51,696 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से सूर्य की परिक्रमा कर रहा है। इस क्षुद्रग्रह को नासा द्वारा अपोलो क्षुद्रग्रह (Apollo Asteroid) के रूप में वर्गीकृत किया गया है क्योंकि यह एक निकट-पृथ्वी क्षुद्रग्रह (Near-Earth asteroid ) है और इसकी कक्षा विस्तृत है।

क्षुद्रग्रह (Asteroid):

  • क्षुद्रग्रह सूर्य की परिक्रमा करने वाले छोटे चट्टानी पदार्थ होते हैं। क्षुद्रग्रह द्वारा सूर्य की परिक्रमा ग्रहों के समान ही की जाती है लेकिन इनका आकार ग्रहों की तुलना में बहुत छोटा होता है।
  • हमारे सौरमंडल में बहुत सारे क्षुद्रग्रह हैं। उनमें से ज़्यादातर क्षुद्रग्रह मुख्य क्षुद्रग्रह बेल्ट (Main Asteroid Belt) में पाए जाते हैं। यह मुख्य क्षुद्रग्रह बेल्ट मंगल और बृहस्पति ग्रहों की कक्षाओं के बीच के क्षेत्र में स्थित है।
  • कुछ क्षुद्रग्रह ग्रहों के कक्षीय पथ में पाए जाते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि ये क्षुद्रग्रह, ग्रह की कक्षा में प्रवेश कर खतरा उत्पन्न कर सकते हैं।
  • नासा द्वारा दी गई चेतावनी में इसी समस्या की ओर इंगित किया गया है कि क्षुद्रग्रह पृथ्वी की परिक्रमण कक्षा में प्रवेश कर गए हैं।

क्षुद्रग्रह (Asteroid) पर अनुसंधान के निहितार्थ:

  • हमारे सौरमंडल की अन्य वस्तुओं के निर्माण के दौरान ही क्षुद्रग्रहों का निर्माण हुआ है, इसलिये ये अंतरिक्ष चट्टान वैज्ञानिकों को ग्रहों के इतिहास और सूर्य के बारे में बहुत सारी जानकारी दे सकते हैं।
  • उल्कापिंडों और क्षुद्रग्रहों का निर्माण पृथ्वी के निर्माण के दौरान ही हुआ, इसलिये इनके अध्ययन के माध्यम से पृथ्वी की आंतरिक और बाह्य रासायनिक और भौतिक संरचना की बेहतर समझ विकसित की जा सकती है।
  • पृथ्वी की तुलना में इनका आकार छोटा होने से इनकी बाह्य और आंतरिक दोनों भागों में आसानी से अनुसंधान किया जा सकता है। कई क्षुद्रग्रहों का आकार बहुत ही छोटा यानि कंकड़ जितना होता है।
  • अधिकांश क्षुद्रग्रह विभिन्न प्रकार की चट्टानों से बने होते हैं लेकिन कुछ क्षुद्रग्रह निकेल और लोहे जैसी धातुओं से बने हैं।
  • नासा ने क्षुद्रग्रहों पर अनुसंधान के लिये कई अंतरिक्ष मिशनों को लॉन्च किया है। शूमेकर अंतरिक्षयान (Shoemaker Spacecraft) वर्ष 2001 में पृथ्वी के पास स्थित क्षुद्रग्रह एरोस (Eros) पर उतरा था।
  • इसके पश्चात् डॉन अंतरिक्षयान (Dawn Spacecraft) को वर्ष 2011 में क्षुद्रग्रह बेल्ट की परिक्रमा के लिये भेजा गया था, वहाँ पर इस अंतरिक्षयान ने वेस्टा (Vesta) क्षुद्रग्रह का अध्ययन किया। वेस्टा का आकार एक एक छोटे ग्रह के समान है।
  • डॉन अंतरिक्षयान (Dawn Spacecraft) ने वर्ष 2012 में वेस्टा के बाद इस क्षुद्रग्रह बेल्ट के बौने ग्रह सेरेस (Dwarf Planet Ceres) की परिक्रमण कक्षा में प्रवेश किया था।

क्षुद्रग्रह (Asteroid) के पृथ्वी से टकराने का प्रभाव:

  • एपोफिस 99942 (Apophis 99942) क्षुद्रग्रह एक खगोलीय वस्तु है जिसकी पृथ्वी के पास से गुजरने की भविष्यवाणी की गई है। इस क्षुद्रग्रह द्वारा पृथ्वी को कोई खतरा नहीं है लेकिन इस घटना को लेकर वैज्ञानिक समुदाय में उत्सुकता पैदा हो गई है।
  • अगर भविष्य में क्षुद्रग्रह पृथ्वी से टकराता है तो बड़े स्तर पर नुकसान हो सकता है।
  • क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से टकराने के कारण पहले भी बहुत से भौगोलिक परिवर्तन हुए हैं वर्तमान में पृथ्वी पर बहुत सारी ऐसी झीलें विद्यमान हैं।
  • एक अध्ययन के अनुसार डायनासोर के विलुप्ति के कारणों में से क्षुद्रग्रह के टकराने को भी एक कारण माना गया था इसलिये भविष्य में इस प्रकार की घटनाएँ विनाशकारी हो सकती हैं।
  • वर्तमान समय में परमाणु संयंत्रों की बड़ी संख्या पृथ्वी पर मौज़ूद है इसलिये यदि छोटे आकार का क्षुद्रग्रह भी पृथ्वी से टकराता है तो इसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।

क्षुद्रग्रहों (Asteroid) को पृथ्वी से टकराने से रोकने हेतु प्रयास:

  • क्षुद्रग्रह टकराव विक्षेपण आकलन (Asteroid Impact Deflection Assessment- AIDA) मिशन नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का संयुक्त एक प्रयास है।
  • इस मिशन के तहत अंतरिक्ष यान को डबल डिडिमोस क्षुद्रग्रहों (Double Didymos Asteroids) से टकराया जाएगा। इसके बाद दूसरे अंतरिक्षयान द्वारा दुर्घटना स्थल का सर्वेक्षण किया जाएगा।
  • 11-13 सितंबर, 2019 को विश्वभर के क्षुद्रग्रह शोधकर्त्ता और अंतरिक्षयान इंजीनियर इस मिशन की प्रगति पर रोम में चर्चा करेंगे।
  • इसी मिशन की तरह नासा एक अन्य मिशन, डबल क्षुद्रग्रह टकराव परीक्षण (Double Asteroid Impact Test- DART) को वर्ष 2021 में प्रक्षेपित करने की योजना बना रहा है।

हाल ही में स्पेसएक्स के संस्थापक एलन मस्क ने कहा है कि इस प्रकार के विशाल क्षुद्रग्रह के टकराने से पृथ्वी पर भारी नुकसान होगा, साथ ही अब तक इसके बचाव करने का कोई स्थायी तरीका नहीं निकला जा सका है। इसलिये बदलते भौगोलिक परिवेश के मद्देनज़र इस प्रकार की घटनाओं से निपटने के लिये कुछ स्थायी समाधान निकाले जाने चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

देश में एंटी-रैबीज़ वैक्सीन की कमी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (National Pharmaceutical Pricing Authority-NPPA) ने निर्माताओं और विपणनकर्त्ताओं (Marketers) से एंटी-रैबीज़ वैक्सीन (Anti-Rabies Vaccine) के स्टॉक को बढ़ाने का आग्रह किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • हाल ही में देश के कई राज्यों में एंटी-रैबीज़ वैक्सीन की कमी के मामले सामने आए थे। निर्माताओं के अनुसार, एंटी-रैबीज़ वैक्सीन के स्टॉक में कमी का सबसे प्रमुख कारण सरकार द्वारा इनकी खरीद का आदेश (Orders) न देना है। साथ ही पहले से खरीदी गई दवाइयों के भुगतान में होने वाली देरी ने भी इस स्थिति को और गंभीर कर दिया है।
  • स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, भारत में रैबीज़ के सबसे अधिक मामले दर्ज होते हैं एवं भारत रैबीज़ का सबसे बड़ा केंद्र है।
    • विश्व में रैबीज़ के कारण मरने वाले लोगों की कुल संख्या का एक-तिहाई हिस्सा भारत में है।
    • प्रत्येक वर्ष टीकाकरण के अभाव में रैबीज़ के कारण लगभग 20,000 लोगों की मृत्यु हो जाती है।
    • भारत में लगभग 96 प्रतिशत रैबीज़ आवारा कुत्तों के कारण फैलता है। देश में सड़कों पर रहने वाले कुत्तों की आबादी लगभग 30 मिलियन है।

क्या होता है रैबीज़?

  • रैबीज़ एक रिबोन्यूक्लिक एसिड (Ribonucleic Acid-RNA) वायरस के कारण होता है जो किसी पागल जानवर जैसे कुत्ता, बिल्ली, बंदर, आदि की लार में मौजूद होता है।
  • पागल जानवर के काटने और रैबीज़ के लक्षण दिखाई देने की समयावधि चार दिनों से लेकर दो साल तक या कभी-कभी उससे भी अधिक हो सकती है।
  • इसलिये घाव से वायरस को जल्द-से-जल्द हटाना ज़रूरी होता है। घाव को तुरंत पानी और साबुन से धोना चाहिये और इसके बाद एंटीसेप्टिक्स का उपयोग करना चाहिये ताकि किसी भी प्रकार की संक्रमण संभावना को खत्म किया जा सके।

राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण

(National Pharmaceutical Pricing Authority-NPPA)

  • NPPA फार्मास्युटिकल्स विभाग (Department of Pharmaceuticals), रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत गठित एक संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1997 में विनियंत्रित थोक औषधियों व फॉर्मूलों के मूल्य निर्धारण तथा संशोधन हेतु की गई थी।
  • इसका अध्यक्ष भारतीय प्रशासनिक सेवा के सचिव स्तर का अधिकारी होता है, जिसका कार्यकाल निश्चित नहीं है। इसके अलावा इसमें स्थायी कर्मचारी भी नहीं होते हैं।
  • राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) के कार्य:
    • विनियंत्रित थोक औषधियों व फॉर्मूलों का मूल्य निर्धारित व संशोधित करना।
    • निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुरूप औषधियों के समावेशन व बहिर्वेशन के माध्यम से समय-समय पर मूल्य नियंत्रण सूची को अद्यतन (Updates) करना।
    • दवा कंपनियों के उत्पादन, आयात-निर्यात और बाज़ार हिस्सेदारी से जुड़े डेटा का रखरखाव करना।
    • दवाओं के मूल्य निर्धारण से संबंधित मुद्दों पर संसद को सूचनाएँ प्रेषित करने के साथ-साथ दवाओं की उपलब्धता का अनुपालन व निगरानी करना।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

उत्तर पूर्वी क्षेत्रीय कृषि विपणन निगम

चर्चा में क्यों?

असम के गुवाहाटी में उत्तर-पूर्वी क्षेत्रीय कृषि विपणन निगम (North-Eastern Regional Agricultural Marketing Corporation- NERAMAC) के परिसर की आधारशिला रखी जाएगी।

प्रमुख बिंदु:

  • NERAMAC के परिसर का निर्माण दो चरणों में किया जाएगा। प्रथम चरण में ब्लॉक के तहत कार्यालय सह विपणन परिसर और दूसरे चरण में गेस्ट हाउस का निर्माण किया जाएगा।
  • उत्तर-पूर्वी परिषद द्वारा इस परिसर का निर्माण उत्तर-पूर्व की कृषि और बागवानी उपज के विपणन समर्थन (Marketing Support Agri-Horti Produce in NE Region) योजना के तहत किया जाएगा।
  • इस परिसर को ग्रीन बिल्डिंग के रूप में विकसित किया जाएगा साथ ही इसको कृषि और बागवानी उपज के हब के रूप में विकसित किया जाएगा, जहाँ उत्तर-पूर्व के किसान और उद्यमी अपने उत्पादों को बेच सकेंगे।
  • इस परिसर के माध्यम से कृषि और बागवानी से जुड़े सभी सरकारी अधिकारियों तथा उत्पादकों को एक साथ लाया जाएगा।
  • भारत सरकार के उपक्रम के रूप में NERAMAC Limited को वर्ष 1982 में स्थापित किया गया था।
  • इसका पंजीकृत कार्यालय गुवाहाटी में स्थित है। यह उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के विकास मंत्रालय (Ministry of Development of North Eastern Region- DoNER) के प्रशासनिक नियंत्रण में संचालित है।
  • NERAMAC अब अन्य सभी सुविधाओं के साथ अपने स्वयं के बुनियादी ढांँचे को विकसित करने के बाद अधिक स्थिरता प्राप्त करेगा।
  • NERAMAC उत्तर-पूर्व क्षेत्र के किसानों के विकास और वर्ष 2022 के अंत तक उनकी आय को दोगुना करने के लिये निरंतर प्रयास कर रहा है, इस परिसर के निर्माण के माध्यम से इसके कार्यो में अधिक समग्रता आएगी।

स्रोत: पीआईबी


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (05 September)

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच 20वाँ भारत-रूस शिखर सम्मेलन 4 सितंबर को रूस के व्लादिवोस्तोक में हुआ। इसमें तेल और गैस, खनन, रक्षा और सुरक्षा, हवाई और समुद्री कनेक्टिविटी, आणविक ऊर्जा, परिवहन संरचना, व्यापार और निवेश संबंधी विषयों पर विस्स्तार से चर्चा हुई। भारत और रूस के बीच हुई शिखर वार्ता के बाद दोनों देशों ने रक्षा, तकनीक, ऊर्जा से लेकर स्पेस मिशन तक 15 अहम समझौते किये। इनमें तेल और गैस के क्षेत्र में 4, LNG और कोकिंग कोल, व्यापार और निवेश में 5, बुनियादी ढाँचे में दो और रक्षा और दृश्य-श्रव्य उत्पादन में 1-1 समझौता शामिल हैं। रक्षा मामलों पर हुआ समझौता संयुक्त उद्यम के माध्यम से मेक-इन-इंडिया कार्यक्रम के तहत रूसी हथियारों के लिये स्पेयर पार्ट्स के उत्पादन के बारे में है। बुनियादी ढाँचे में हुए समझौतों में कनेक्टिविटी में सुधार के लिये व्लादिवोस्तोक और चेन्नई के बीच समुद्री लिंक की स्थापना करने की बात कही गई है। एक अन्य समझौता आर्कटिक क्षेत्र में खाना पकाने के कोयले की खोज तथा रूस से LNG की आपूर्ति से संबंधित है। वर्ष 2019-22 के दौरान सीमा शुल्क उल्लंघन से निपटने के लिये भी एक समझौता किया गया है। निवेश सहयोग के लिये भारत और रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं। इसके इतर भारतीय प्रधानमंत्री ने पाँचवें ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम में बतौर मुख्य अतिथि हिस्सा लिया, जिसके लिये व्लादिमीर पुतिन ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित किया था। साथ ही रूस ने प्रधानमंत्री मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'ऑर्डर ऑफ सेंट ऐंड्रू द अपोस्टल' देने का भी एलान किया।
  • हाल ही में मध्य प्रदेश से टाइगर स्टेट का दर्जा वापस ले लिये जाने के बाद राज्य सरकार बाघों की सुरक्षा के लिये टाइगर स्ट्राइक फोर्स का गठन करने जा रही है। इसके लिये राज्य सरकार ने केंद्र को तीन प्रस्ताव भेजे हैं। इनमें फोर्स के लिये जवानों की भर्ती और पुलिसकर्मियों को प्रतिनियुक्ति पर लेने का प्रस्ताव भी शामिल है। राज्य ने केंद्र से धनराशि की मांग भी की है तथा केंद्र ने 60 प्रतिशत धनराशि पर सहमति जताई है और शेष 40 प्रतिशत राशि राज्य को देनी होगी। इस फोर्स के कामकाज की निगरानी नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) करेगी। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2012 में केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को ऐसी टाइगर फोर्स गठित करने को कहा था तथा इसके लिये 50 प्रतिशत धनराशि देने पर भी सहमति जताई थी, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने तब फोर्स गठन का फैसला नहीं लिया, जबकि कर्नाटक सरकार ने उसी वर्ष इसका गठन कर लिया था। विदित हो कि वर्ष 2018 की बाघ गणना के मुताबिक मध्य प्रदेश में 526 बाघ हैं और यह संख्या देश के किसी भी राज्य में सर्वाधिक है।
  • देशभर में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस का आयोजन किया जाता है। इस देश के पहले उपराष्ट्रपति तथा दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन होता है, जिन्होंने अपने छात्रों से इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का आग्रह किया था। वर्ष 1962 से यह दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन स्टूडेंट्स अपने-अपने तरीके से शिक्षकों के प्रति आदर और सम्मान प्रकट करते हैं विश्व शिक्षक दिवस 5 अक्तूबर को मनाया जाता है। यूनेस्को ने वर्ष 1994 में शिक्षकों के कार्य की सराहना के लिये 5 अक्तूबर को विश्व शिक्षक दिवस के रूप में मनाने को लेकर मान्यता दी थी। वैसे दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में अलग-अलग तारीख पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है।

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