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डेली न्यूज़

  • 05 Aug, 2020
  • 49 min read
सामाजिक न्याय

शिक्षा प्रणाली पर COVID-19 महामारी का प्रभाव

प्रीलिम्स के लिये

शिक्षा को प्रोत्साहित करने हेतु सरकार के मुख्य प्रयास

मेन्स के लिये

भारतीय शिक्षा प्रणाली में निहित समस्याएँ और इस संबंध में सरकार के प्रयास

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना वायरस (COVID-19) के आर्थिक परिणामों के प्रभावस्वरूप अगले वर्ष लगभग 24 मिलियन बच्चों पर स्कूल न लौट पाने का खतरा उत्पन्न हो गया है।

रिपोर्ट संबंधी प्रमुख बिंदु

  • संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि शिक्षा प्रणाली पर COVID-19 के प्रभाव के कारण  शैक्षिक वित्तपोषण का अंतर एक-तिहाई तक बढ़ सकता है।
  • स्कूलों और शिक्षण संस्थानों के बंद होने से विश्व की तकरीबन 94% छात्र आबादी प्रभावित हुई है और निम्न तथा निम्न-मध्यम आय वाले देशों में यह संख्या 99% है।
  • इसके अलावा COVID-19 महामारी ने शिक्षा प्रणाली में मौजूद असमानता को और अधिक बढ़ा दिया है। 
  • इस महामारी के कारण निम्न आय वाले देशों की कमज़ोर एवं संवेदनशील आबादी इस वायरस से सबसे अधिक प्रभावित हुई है। वर्ष 2020 की दूसरी तिमाही के दौरान निम्न आय वाले देशों में प्राथमिक स्तर पर तकरीबन 86% बच्चे स्कूल से बाहर हो गए हैं, जबकि उच्च आय वाले देशों में यह आँकड़ा केवल 20% है।

प्रभाव:

  • इस महामारी का सबसे अधिक प्रभाव लड़कियों और महिलाओं पर देखने को मिल सकता है, स्कूल बंद होने से वे बाल विवाह और लिंग आधारित हिंसा के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाएंगी।
  • साथ ही बच्चों के साथ होने वाले अपराधों में भी बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है।
  • वर्ष 2020 की शुरू में यह अनुमान लगाया गया था कि विश्व के अधिकांश निम्न और मध्यम आय वाले देशों में शिक्षा बजट और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के सतत् विकास लक्ष्य तक पहुँचाने के लिये आवश्यक राशि के बीच लगभग 148 बिलियन डॉलर का अंतर है, COVID-19 महामारी के कारण इस वित्तपोषण अंतराल में दो-तिहाई तक वृद्धि हो सकती है।

बेहतर शिक्षा की आवश्यकता

  • शिक्षा युवा पीढ़ी को जीवन कौशल प्रदान करती है और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देती है। साथ ही सुशासन हेतु आम लोगों को उनके अधिकारों के प्रति भी जागरूक करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • शिक्षा परिपक्व लोकतंत्र की प्राप्ति एवं ‘न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन’ के लक्ष्य की प्राप्ति में भी मददगार साबित हो सकती है।
  • महिलाओं को शिक्षित करना भारत में कई सामाजिक बुराइयों जैसे- दहेज़ प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या और कार्यस्थल पर उत्पीड़न आदि को दूर करने की कुंजी साबित हो सकती है।
    • महिलाओं को शिक्षित करने से उन्हें उनके अधिकारों के प्रति भी जागरूक किया जा सकता है।
  • कौशल आधारित शिक्षा आम लोगों को कौशलयुक्त करके भारत के आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक विकास में उनकी भूमिका सुनिश्चित कर सकती है। साथ ही शिक्षा लोगों को रोज़गार सृजित करने में भी सहायता कर सकती है।
  • वैश्विक स्तर पर संसाधन काफी सीमित हैं और इसलिये इनका धारणीय प्रयोग काफी आवश्यक है, इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये युवा पीढ़ी को शिक्षा के माध्यम से सीमित संसाधनों का धारणीय प्रयोग सिखाया जा सकता है।
  • मानव विकास सूचकांक (HDI) और पिसा रैंकिंग जैसे महत्त्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में में भारत की स्थिति को सुधारने के लिये देश की शिक्षा प्रणाली में सुधार करना काफी महत्त्वपूर्ण है।

भारत में शिक्षा की वर्तमान समस्याएँ

  • पर्याप्त अनुसंधान की कमी: भारतीय शिक्षा प्रणाली में पर्याप्त अनुसंधान की कमी स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है। भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान पर पर्याप्त ध्यान केंद्रित नहीं किया जाता है। साथ ही  गुणवत्तायुक्त शिक्षकों की संख्या भी काफी सीमित है।
  • लैंगिक विभाजन: भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की साक्षरता दर काफी कम है। वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़े दर्शाते हैं कि राजस्थान (52.7%) और बिहार (53.3%) में महिला शिक्षा की स्थिति काफी खराब है। 
    • जनगणना आँकड़े यह भी बताते हैं कि देश की महिला साक्षरता दर (65.5%) देश की कुल साक्षरता दर (74.04%) से भी कम है।
  • कौशल आधारित शिक्षा अभाव: भारत में कौशल आधारित शिक्षा की कमी स्पष्ट तौर पर महसूस की जा सकती है। हमारे यहाँ एक ऐसी शिक्षा प्रणाली मौजूद है, जहाँ केवल किताबी ज्ञान प्रदान किया जाता है, और बच्चों को कौशलयुक्त होने के लिये प्रेरणा नहीं दी जाती है।
  • खराब अवसंरचना और सुविधाएँ: खराब बुनियादी ढाँचा भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली के लिये एक बड़ी चुनौती है, विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा संचालित संस्थान खराब भौतिक सुविधाओं और बुनियादी ढाँचे से ग्रस्त हैं। संकाय की कमी और योग्य शिक्षकों को आकर्षित करने और बनाए रखने के लिये राज्य शैक्षिक प्रणाली की अक्षमता कई वर्षों से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिये चुनौती बन रही है।

सरकार के प्रयास

  • सर्व शिक्षा अभियान: यह एक निश्चित समयावधि के भीतर प्रारंभिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु भारत सरकार का एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है। 86वें संविधान संशोधन द्वारा 6-14 वर्ष की आयु वाले सभी बच्चों के लिये प्राथमिक शिक्षा को एक मौलिक अधिकार के रूप में निःशुल्क और अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराना आवश्यक बना दिया गया।
  • कौशल विकास के माध्यम से किशोरी एवं युवा महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण के लिये भारत सरकार ने तेजस्विनी कार्यक्रम का प्रारंभ किया।
  • उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (Higher Education Financing Agency- HEFA) की स्थापना 1,00,000 करोड़ रुपए के साथ की गई जिसका उद्देश्य शिक्षा संबंधी अवसंरचना विकसित करने पर ज़ोर देना है।
  • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिये राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (Rashtriya Uchhatar Shiksha Abhiyan - RUSA) के अंतर्गत बजट को तीन गुना बढ़ा दिया गया है।
  • राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (National Institutional Ranking Framework-NIRF) के माध्यम से गुणवत्ता और प्रतिस्पर्द्धा में सुधार किया जा रहा है।
  • डिजिटल पहल के अंतर्गत सर्वश्रेष्ठ संकायों के द्वारा स्वयं (SWAYAM) पोर्टल का शुभारंभ किया गया था। इस परस्पर संवादात्मक शिक्षा कार्यक्रम का लाभ 2 मिलियन से ज़्यादा उपयोगकर्त्ता उठा रहे हैं। 
  • इमप्रिंट (IMPRINT) 1 और 2 के साथ शोध और नवाचार की पहलों का शुभारंभ कर दिया गया है। स्मार्ट इंडिया हैकाथॉन पहल के माध्यम से सामान्य समस्याओं का समाधान कराने के लिये महाविद्यालय के विद्यार्थियों को खुला आमंत्रण दिया गया है।
  • एकलव्य मॉडल डे-बोर्डिंग विद्यालय (EMDBS) के माध्यम से उप-ज़िला (Sub-District) क्षेत्रों की 90% या इससे अधिक जनसंख्या वाले अनुसूचित जनजातीय समुदाय से संबंधित क्षेत्रों में प्रयोगात्मक आधार पर एकलव्य मॉडल डे-बोर्डिंग विद्यालय  स्थापित करने का प्रस्ताव है। इन विद्यालयों का उद्देश्य, बिना आवासीय सुविधा के ST छात्रों को विद्यालय शिक्षा का लाभ देना है।
  • किरण (KIRAN) का पूर्ण रूप ‘शिक्षण द्वारा अनुसंधान विकास में ज्ञान की भागीदारी’ (Knowledge Involvement in Research Advancement through Nurturing) है। KIRAN विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में लैंगिक समानता से संबंधित विभिन्न मुद्दों/चुनौतियों का समाधान कर रही है। 
    • केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने वर्ष 2014 में महिला केंद्रित सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों को किरण योजना (KIRAN Scheme) में समाहित कर दिया था।
  • अल्पसंख्यक समुदायों के शैक्षणिक सशक्तीकरण और रोज़गार उन्मुख कौशल विकास को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम (Multi-sectoral Development Programme-MsDP) की शुरुआत जिसका बाद में नाम बदलकर प्रधान मंत्री जन विकास कार्यक्रम (PMJVK) कर दिया गया।
    • इस कार्यक्रम का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों के लिये स्कूल, कॉलेज, पॉलिटेक्निक, लड़कियों के लिये छात्रावास, कौशल विकास केंद्र जैसी सामाजिक-आर्थिक और बुनियादी सुविधाओं को विकसित करना है।
  • अल्पसंख्यक समुदायों का समावेशी विकास से संबंधित पहलें:
    • सीखो और कमाओ
    • उस्ताद
    • गरीब नवाज़ कौशल विकास योजना
    • नई मंज़िल
    • नई रोशनी
    • बेगम हज़रत महल गर्ल्स स्कॉलरशिप

आगे की राह

  • रिपोर्ट में सुझाव देते हुए कहा गया है कि विश्व की सरकारों  को अपने शिक्षा बजट को संरक्षित करने एवं उसे बढ़ाने की ज़रूरत है। साथ ही यह भी आवश्यक है कि शिक्षा को अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के केंद्र में रखा जाए।
  • वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली खराब अवसंरचना और सुविधाओं से जूझ रही है, ऐसे में आवश्यक है कि सरकार देश के शिक्षा क्षेत्र की अवसंरचना में सुधार करने का यथासंभव प्रयास करे, जिससे विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो सके।
  • सरकार को अनुसंधान जैसे क्षेत्रों पर GDP का अधिक अंश व्यय करना चाहिये।
  • पाठ्यक्रम को इस प्रकार से डिज़ाइन किया जाना चाहिये जिससे वह उच्च शिक्षा को कौशल/ व्यावसायिक प्रशिक्षण और इंडस्ट्री इंटरफेस के साथ एकीकृत कर सके।
  • नीति निर्तामाओं को शिक्षा क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय मानकों को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिये।
  • निजी निवेश के साथ सरकारी संचालन एक बेहतर विकल्प हो सकता है, क्योंकि निजी निवेश और सरकारी संचालन से समावेशन की स्थिति को भी प्राप्त किया जा सके।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

न्यायिक अवमानना बनाम वाक् स्वतंत्रता

प्रीलिम्स के लिये:

न्यायिक अवमानना

मेन्स के लिये:

न्यायिक अवमानना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण द्वारा उनके विरुद्ध ‘न्यायिक अवमानना की कार्यवाही’ के तहत ‘सर्वोच्च न्यायालय’ द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस के जवाब में 142 पृष्ठों वाला हलफ़नामा दायर किया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • दरअसल यह मामला वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के द्वारा किये गए ट्वीट (tweet) से संबंधित है, जिसमें उन्होंने सोशल मीडिया साइट्स ट्विटर पर पोस्ट किये गये कथित अवमाननाकारक ट्वीट में सर्वोच्च न्यायालय की आलोचना की थी। 
  • प्रशांत भूषण ने वैश्विक महामारी COVID-19 के दौरान दूसरे राज्यों से पलायन कर रहे कामगारों के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के रवैये की तीखी आलोचना की थी।

न्यायिक अवमानना:

  • न्यायिक अवमानना का अर्थ है, किसी न्यायालय की गरिमा तथा उसके अधिकारों के प्रति अनादर प्रदर्शित करना, न्यायिक आदेशों की अवहेलना करना तथा उनका पालन  सुनिश्चित न करना। 

अवधारणा का विकास:

  • 'न्यायालय की अवमानना' संबंधी अवधारणा का अस्तित्त्व इंग्लैंड में कई सदियों से है। इंग्लैंड में इसे एक सामान्य कानूनी सिद्धांत के रूप में मान्यता प्राप्त है जिसका उद्देश्य राजा की ‘न्यायिक शक्तियों’ की रक्षा करना है। 
  • शुरुआत में राजा स्वयं अपनी न्यायिक शक्तियों का प्रयोग करता था परंतु बाद में इन शक्तियों का प्रयोग ‘न्यायाधीशों के एक पैनल’; जो राजा के नाम पर कार्रवाई कार्य करता है, द्वारा किया जाने लगा। न्यायाधीशों के आदेशों के उल्लंघन को स्वयं राजा के अपमान के रूप में देखा जाता था।
  • समय के साथ न्यायाधीशों की किसी भी तरह की अवज्ञा, या उनके निर्देशों के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करना, या ऐसी कोई टिप्पणी या कार्य करना जो उनके प्रति अनादर दिखाते थे, दंडनीय माने जाने लगे।
  • भारत में न्यायिक अवमानना के कानून स्वतंत्रता से पहले से ही विद्यमान थे। प्रारंभिक उच्च न्यायालयों के अलावा कुछ रियासतों के न्यायालयों में ऐसे कानून विद्यमान थे।

वैधानिक आधार (Statutory Basis):

  • संविधान का अनुच्छेद-129 सर्वोच्च न्यायालय को और अनुच्छेद-215 उच्च न्यायालयों को अवमानना पर दंडित करने की शक्ति प्रदान करते हैं।
  • 'न्यायालय की अवमानना अधिनियम' (Contempt of Courts Act)- 1971 इसे वैधानिक समर्थन प्रदान करता है।

अनुच्छेद-129 और अभिलेख न्यायालय:

  • अभिलेख न्यायालय के रूप में सर्वोच्च न्यायालय के पास दो प्रकार की शक्तियाँ हैं:
    • उच्चतम न्यायालय की कार्यवाही एवं निर्णय सार्वजनिक अभिलेख और साक्ष्य के रूप में रखे जाएंगे तथा उन्हे विधिक संदर्भों की तरह स्वीकार किया जाएगा। इन अभिलेखों पर किसी अन्य न्यायालय में चल रहे मामले के दौरान प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है। 
    • सर्वोच्च न्यायालय के पास अवमानना पर दंडित करने का अधिकार है। दंड देने की यह शक्ति न केवल सर्वोच्च न्यायालय में निहित है, बल्कि ऐसा ही अधिकार उच्च न्यायालयों , अधीनस्थ न्यायालयों और पंचाटों को भी प्राप्त है। 

न्यायिक अवमानना के प्रकार:

  • न्यायालय की अवमानना अधिनियम', न्यायिक अवमानना को सिविल अवमानना और आपराधिक अवमानना के रूप में वर्गीकृत करता है:

सिविल अवमानना (Civil Contempt):

  • सिविल अवमानना का मतलब है जब कोई व्यक्ति स्वेच्छा से न्यायालय के आदेश, निर्णय या न्यायादेश की अवहेलना करता है। 

आपराधिक अवमानना (Criminal contempt):

  • लिखित या मौखिक शब्दों, संकेतों और क्रियाओं के माध्यम से न्यायालय के प्राधिकार को कम करना या बदनाम करना या ऐसा करने का प्रयास करना।
  • न्यायिक प्रक्रिया के प्रति पूर्वाग्रह रखना या हस्तक्षेप करना। 
  • न्याय प्रशासन को किसी भी तरीके से रोकना या बाधित करना। 

न्यायिक अवमानना में शामिल हैं:

  • संपूर्ण न्यायपालिका या अलग-अलग न्यायाधीशों के खिलाफ आरोप लगाना; 
  • न्यायालय के निर्णयों और न्यायिक कार्यों में बाधा उत्पन्न करना; 
  • न्यायाधीशों के आचरण पर किसी भी तरह के अपमानजनक हमले करना।

न्यायालय की अवमानना नहीं है:

  • न्यायिक कार्यवाही की निष्पक्ष और सटीक रिपोर्टिंग में न्यायालय की अवमानना नहीं होगी।
  • किसी मामले की सुनवाई और निपटान के बाद न्यायिक आदेश की युक्तिसंगत निष्पक्ष आलोचना करना।

दंडित करने का अधिकार:

  • न्यायालय के पास अवमानना पर पर दंडित करने का अधिकार है। इसमें 6 महीने के लिये सामान्य जेल या 2000 रुपए तक अर्थदंड या दोनों शामिल हैं। 

चिंता के विषय:

  • संविधान का अनुच्छेद-19 भारत के प्रत्येक नागरिक को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है परंतु न्यायिक अवमानना अधिनियम, 1971 द्वारा न्यायालय की कार्यप्रणाली के खिलाफ बात करने पर अंकुश लगा दिया है।
  • किसी न्यायाधीश की आलोचना को सर्वोच्च न्यायालय की निंदा या उसकी गरिमा को कम करने का आधार मानना युक्तिसंगत आलोचना के विरुद्ध है।

आगे की राह:

  • न्यायपालिका को दो परस्पर विरोधी सिद्धांतों अर्थात् अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा और न्यायालय की अवमानना ​​की शक्ति को संतुलित करने की दिशा में प्रयास करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अमेरिका और टिकटॉक

प्रीलिम्स के लिये

टिकटॉक, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000

मेन्स के लिये

टिकटॉक की सुरक्षा संबंधी चिंताएँ, टिकटॉक पर प्रतिबंध के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

भारत द्वारा टिकटॉक (TikTok) समेत अन्य एप्स पर लगाए गए पूर्ण प्रतिबंध के बाद अब टिकटॉक, अमेरिका और चीन के बीच तेज़ी से बढ़ते डिजिटल युद्ध के केंद्र में भी आ गया है।

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि बीते दिनों भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act) की धारा 69 (A) का प्रयोग करते हुए चीन द्वारा निर्मित और संचालित 59 एप्स को प्रतिबंधित कर दिया है, जिनमें टिकटॉक, शेयर इट, कैम स्कैनर इत्यादि शामिल थे।

टिकटॉक  और अमेरिका

  • भारत द्वारा टिकटॉक और अन्य एप्स पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा के बाद अमेरिका भी इसी प्रकार की कार्रवाई पर विचार कर रहा है।
  • ध्यातव्य है कि इस संबंध में अमेरिका ने भी सुरक्षा कारणों का हवाला दिया है।
  • केवल टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाने के बजाय अमेरिका, चीन की इंटरनेट कंपनी बाइटडांस (ByteDance), जिसके पास टिकटॉक का मालिकाना हक है, पर अपने व्यवसाय को अमेरिका की दिग्गज प्रौद्योगिकी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) को सौंपने का दबाव बना रहा है।
  • ध्यातव्य है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने माइक्रोसॉफ्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO), सत्य नडेला के साथ बातचीत करके बाइटडांस और माइक्रोसॉफ्ट वार्ता में हस्तक्षेप भी किया है।

माइक्रोसॉफ्ट के लिये टिकटॉक का महत्त्व

  • उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, जनवरी 2020 तक विश्व में टिकटॉक के पास कुल 800 मिलियन से भी अधिक उपयोगकर्त्ता थे। केवल अमेरिका में ही बीते वर्ष टिकटॉक को कुल 49 मिलियन बार डाउनलोड किया गया था। 
  • अनुमान के अनुसार, अमेरिका में टिकटॉक उपयोगकर्त्ता औसतन एक दिन में 8 बार और लगभग 40 मिनट तक इस एप का प्रयोग करते हैं।
  • इस प्रकार यदि माइक्रोसॉफ्ट, टिकटॉक को प्राप्त करने में सफल रहता है तो उसे अमेरिका में टिकटॉक उपयोगकर्त्ताओं का एक व्यापक आधार मिलेगा।
  • गौरतलब है कि माइक्रोसॉफ्ट अमेरिका की अन्य दिग्गज कंपनियों जैसे फेसबुक और गूगल आदि से सोशल मीडिया के क्षेत्र में काफी पीछे रही है, शायद इसका मुख्य कारण यह है कि माइक्रोसॉफ्ट के पास कोई विशिष्ट सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म नहीं है, यदि माइक्रोसॉफ्ट टिकटॉक का अधिग्रहण कर लेता है तो उसकी यह कमी भी पूरी हो जाएगी और उसे एक पहले से बना हुआ तथा प्रसिद्ध सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म प्राप्त होगा।

टिकटॉक के साथ क्या समस्या है?

  • अमेरिका में टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाने की शुरुआत मुख्यतः दो कारणों से हुई, सबसे पहला तो यह कि टिकटॉक चीन की एक इंटरनेट कंपनी, बाइटडांस के स्वामित्त्व में है और दूसरा यह कि चीन लगातार तकनीक समेत अन्य विभिन्न क्षेत्रों में अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती दे रहा है।
  • अमेरिका में इस बात को लेकर चिंता काफी बढ़ गई है कि चीन की सरकार इस एप के माध्यम से उन अमेरिकियों के बारे में आसानी से जानकारी प्राप्त कर सकती है जो इसका उपयोग कर रहे हैं, ऐसे में अमेरिका के नागरिकों की निजता पर एक बड़ा खतरा उत्पन्न हो सकता है, हालाँकि टिकटॉक ने बार-बार इन आरोपों से साफ तौर पर इनकार कर दिया है। 
  • ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि चीन की स्वामित्त्व वाली कंपनियाँ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये एक बड़ा खतरा पैदा करती हैं, क्योंकि चीन के स्थानीय कानूनों के तहत चीन की सरकार को चीन में कार्य कर रही कंपनियों के डेटा तक पहुँच प्राप्त है।
  • अमेरिका ने इससे पूर्व भी चीन की हूवेई (Huawei) और जेडटीई (ZTE) कंपनियों पर इसी प्रकार के आरोप लगाए थे। इस प्रकार अब टिकटॉक अमेरिका और चीन के बीच इस डिजिटल युद्ध के केंद्र में आ गया है।

अमेरिका-चीन डिजिटल युद्ध

  • गौरतलब है कि बीते कुछ वर्षों में उद्योग विकास एवं तकनीक के मुद्दे पर अमेरिका और चीन के मध्य तनाव में काफी तेज़ी से बढ़ोतरी हो रही है, बीते एक दशक में वैश्विक प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दो दिग्गज देशों के बीच यह एक द्वंद्वयुद्ध के रूप में परिवर्तित होता दिखाई दे रहा है। 
  • बीते दिनों अमेरिका ने चीन की दिग्गज टेक्नोलॉजी कंपनी हुआवे (Huawei) पर कई प्रतिबंध अधिरोपित किये थे। ध्यातव्य है कि ये प्रतिबंध ऐसे समय में लगाए गए थे जब वैश्विक स्तर पर लगभग सभी देशों में 5G को शुरू करने की तैयारी की जा रही है, ऐसे में अमेरिका के इस निर्णय से चीन की 5G तकनीक पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • वर्ष 2012 में चीन की दूरसंचार कंपनियों के कारण उत्पन्न खतरे की जाँच करने वाली एक अमेरिकी समिति ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया था कि हुआवे और चीन की एक अन्य दूरसंचार कंपनी ज़ेडटीई (ZTE) को विदेशी राष्ट्र जैसे चीन आदि के प्रभाव से मुक्त नहीं माना जा सकता है और इस प्रकार ये कंपनियाँ संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये एक सुरक्षा खतरा उत्पन्न कर सकती हैं।

क्या है टिकटॉक?

  • ध्यातव्य है कि टिकटॉक लघु वीडियो साझा करने वाला एक प्रसिद्ध प्लेटफॉर्म है, और यह उपयोगकर्त्ताओं को किसी भी विषय पर तकरीबन 15-सेकंड के वीडियो बनाने और उसे साझा करने की अनुमति देता है।
  • 2019 की शुरुआत से ही यह एप कई बार शीर्ष स्थान पर रहा है, गौरतलब है कि महामारी-जनित लॉकडाउन के दौरान इस एप में आम लोगों की दिलचस्पी काफी बढ़ी है।
  • एक अनुमान के अनुसार,  जनवरी 2020 तक विश्व में टिकटॉक के 800 मिलियन से अधिक सक्रिय उपयोगकर्त्ता थे, जिसमें से सबसे अधिक उपयोगकर्त्ता भारत में थे, हालाँकि अभी इस एप को भारत में प्रतिबंधित कर दिया गया है।

भारत और टिकटॉक

  • बीते दिनों भारत सरकार ने चीन से संचालित टिकटॉक समेत कुल 59 एप्स पर प्रतिबंध लगा दिया था। 
  • हालाँकि सरकार ने यह प्रतिबंध डेटा सुरक्षा एवं गोपनीयता की दृष्टि से प्रस्तावित किया है, किंतु विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत सरकार द्वारा की गई यह कार्रवाई भारत-चीन सीमा पर दोनों देशों के बीच पैदा हुए तनाव का परिणाम है।
  • यह देखते हुए कि भारत टिकटॉक के वैश्विक बाज़ार का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, सरकार के इस निर्णय का टिकटॉक के राजस्व पर काफी गहरा प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।
  • इसके अलावा भारत सरकार का यह प्रतिबंध 21वीं सदी की डिजिटल महाशक्ति बनने के चीन के सबसे महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्रभावित कर सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

सहकार कूपट्यूब एनसीडीसी चैनल

प्रीलिम्स के लिये:  

राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम, सहकर कूपट्यूब NCDC चैनल

मेन्स के लिये: 

सहकार कूपट्यूब NCDC चैनल के उद्देश्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (National Cooperative Development Corporation- NCDC) की एक नई पहल, सहकार कूपट्यूब एनसीडीसी चैनल (Sahakar Cooptube NCDC Channel) की शुरुआत की है।

उद्देश्य:

  • इसका उद्देश्य किसानों और युवाओं को सहकारी समितियों का लाभ उठाने के लिये प्रोत्साहित करना है।
  • सहकारिता के माध्यम से युवाओं के लिए रोज़गार के अवसर भी बढ़ सकेंगे। 
    • इस पहल से सहकारिता की दिशा में जागरूकता बढ़ेगी।
  • सहकारिता हमारी संस्कृति का हिस्सा है। इसके माध्यम से, सरकार का प्रयास सहकारी आंदोलन में युवाओं की भागीदारी को सुविधाजनक बनाना है।

प्रमुख बिंदु:

  • केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने किसी सहकारी संस्था या समिति के गठन और पंजीकरण हेतु अठारह विभिन्न राज्यों के लिये हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में NCDC द्वारा निर्मित मार्गदर्शक वीडियो भी लॉन्च किये हैं।
  • यू-ट्यूब प्लेटफार्म पर चलने वाले, सहकार कूपट्यूब चैनल की शुरुआत उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश,बिहार,छत्तीसगढ़,झारखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, ओडिशा, मिज़ोरम, त्रिपुरा, केरल, गुजरात, पंजाब एवं कर्नाटक राज्यों में की गई है।

राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम:

  • राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम की स्थापना वर्ष 1963 में संसद के एक अधिनियम द्वारा कृषि एवं कि‍सान कल्‍याण मंत्रालय के अंतर्गत एक सांविधिक निकाय के रुप में की गई थी।
  • NCDC का उद्देश्य कृषि उत्पादन, खाद्य पदार्थों, औद्योगिक वस्तुओं, पशुधन और सहकारी सिद्धांतों पर उत्पादित कुछ अन्य अधिसूचित वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, प्रसंस्करण, विपणन, भंडारण, निर्यात और आयात तथा इसके साथ संबंधित मामलों या आकस्मिक मामलों के लिये कार्यक्रमों की योजना बनाना और उनका संवर्द्धन करना है।
  • NCDC सहकारी क्षेत्र हेतु शीर्ष वि‍त्तीय तथा वि‍कासात्‍मक संस्‍थान के रूप में कार्यरत एकमात्र सांवि‍धि‍क संगठन है। यह कृषि‍ एवं संबद्ध क्षेत्रों के अलावा विभिन्न क्षेत्रों में सहकारि‍ता को सहयोग प्रदान करता है।
  • संगठन एवं प्रबंधन-
    • निगम की नीतियों तथा कार्यक्रमों का नि‍र्माण करने के लिये निगम का प्रबंधन एक व्यापक प्रतिनिधित्त्व वाली 51 सदस्यीय सामान्य परिषद में तथा दिन-प्रतिदिन के कार्यकलापों को निष्पादित करने के लिये एक 12 सदस्यीय प्रबंध मंडल में निहित है । 
    • अपने प्रधान कार्यालय के अलावा NCDC अपने 18 क्षेत्रीय/राज्य निदेशालयों के माध्यम से कार्य करता है ।
  • वर्ष 1963 में 22 करोड़ रुपए की अल्प संवितरण के साथ शुरुआत करते हुए, NCDC ने 2019-20 के दौरान लगभग 28,000 करोड़ रुपए का वितरण किया है।
  • NCDC ने पिछले छह वर्षों में अभूतपूर्व प्रगति की है।
    • इसने वर्ष 1963 के बाद से पिछले छह वर्षों में संचयी वित्तीय सहायता का लगभग 83% हासिल किया है।

स्रोत: PIB


जैव विविधता और पर्यावरण

अंटार्कटिका महाद्वीप में बढ़ती मानवीय गतिविधियाँ

प्रीलिम्स के लिये: 

अंटार्कटिक महाद्वीप 

मेन्स के लिये:

अंटार्कटिक क्षेत्र के संरक्षण में अंटार्कटिक संधि का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शोधकर्त्ताओं के एक दल द्वारा अंटार्कटिका महाद्वीप में  मानवीय गतिविधियों (Human Footprint) के कारण बंजर भूमि के संकुचन से संबंधित अध्ययन किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • विंट्स यूनिवर्सिटी (Wits University) के वैज्ञानिक तथा सह-लेखक बर्नार्ड डब्ल्यूटी कोएत्ज़ी (Bernard WT Coetzee) द्वारा इस अध्ययन को वैचारिक रूप प्रदान करने में मदद की गई तथा तथा इनके द्वारा अंटार्कटिका में मानव गतिविधियों की सीमा की मैपिंग करने के लिये कई स्रोतों से  स्थानिक डेटाबेस को प्राप्त किया गया।
  • अध्ययन में 2.7 मिलियन रिकॉर्ड से प्राप्त  किये गए डेटा के माध्यम से इस बात को समझाया गया कि किस प्रकार पिछले 200 वर्षों में अंटार्कटिका महाद्वीप में मानव गतिविधि बढ़ी है। 
  • अध्ययन के अनुसार, जब से अंटार्कटिका महाद्वीप की खोज (200 वर्ष पूर्व) हुई है तब से इस  महाद्वीप पर मानव गतिविधियाँ तेज़ी से बढ़ी हैं। 
  • शोधकर्त्ताओं के दल द्वारा इस अध्ययन में अंटार्कटिक महाद्वीप में दो मुख्य चिंताओं को रेखांकित किया गया है-
    • पहला मानवीय गतिविधियों के कारण अंटार्कटिका के निर्जन क्षेत्र/बंजर भूमि क्षेत्र  तेज़ी से कम हो रहे हैं।
    • दूसरा इस क्षेत्र की जैव विविधता पर अतिरिक्त दबाव बना हुआ है।
  • इस शोध कार्य को ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। 
  • वैज्ञानिकों द्वारा इस अध्ययन के लिये अंटार्कटिका महाद्वीप में वर्ष 1819-2018 के मध्य की 2.7 मिलियन मानव गतिविधियों के रिकॉर्डों की मैपिंग की गई ताकि अंटार्कटिका महाद्वीप में जैव विविधता के साथ-साथ शेष बचे हुए निर्जन क्षेत्र की सीमा का आकलन किया जा सके।

शोध के प्रमुख बिंदु:

  • शोध के अनुसार, महाद्वीप के 99.6% क्षेत्र को अभी भी निर्जन क्षेत्र माना जा सकता है, लेकिन इस क्षेत्र में कुछ जैव विविधता अभी भी विद्यमान है। 
  • अध्ययन के अनुसार अंटार्कटिक महाद्वीप का  अपरिवर्तित आदिम क्षेत्र (Pristine areas) मानव हस्तक्षेप से मुक्त एक बहुत छोटे क्षेत्र (अंटार्कटिका के 32%से कम) को कवर करता है जो मानवीय गतिविधियों के कारण क्षीण हो रहा है ।
    • अध्ययन में बताया गया कि अंटार्कटिका में संरक्षित क्षेत्रों के जाल/नेटवर्क का तत्काल विस्तार करके इस प्रवृत्ति को उलट सकते हैं तथा महाद्वीप की जैव विविधता को सुरक्षित रखा जा सकता है।
  • कोएत्ज़ी के अनुसार,  बंजर क्षेत्र के रूप में पहचाने गए क्षेत्र में वास्तव में व्यापक स्तर पर मानव गतिविधियाँ देखी गई हैं मुख्य रूप से बर्फ-मुक्त एवं  ऐसे तटीय क्षेत्रों में जहाँ अधिकांश जैव विविधता पाई जाती है।
    • इसका अर्थ है कि महाद्वीप के कई महत्वपूर्ण जैव विविधता वाले स्थानों पर ‘बंज़र  क्षेत्र’ विद्यमान नहीं है लेकिन यह अंतिम बंजर क्षेत्र को संरक्षित करने का एक अवसर है।
  • अध्ययन के अनुसार, महाद्वीप पर 16 प्रतिशत क्षेत्र की पहचान की गई जो पक्षियों के संरक्षण के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पक्षी संरक्षण के लिये पहचाने गए जिस क्षेत्र को संकट पूर्ण क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया गया है वह अत्यधिक सूक्ष्म क्षेत्र में विद्यमान है।

अंटार्कटिक संधि:

  • इस संधि को वाशिंगटन संधि के नाम से भी जाना जाता है।
  • 1 दिसंबर, 1959 को वाशिंगटन में 12 देशों द्वारा अंटार्कटिक संधि पर हस्ताक्षर किये गए तथा 23 जून, 1961 में इस संधि को लागू किया गया ।
  • भारत द्वारा वर्ष 1983 में इस संधि पर हस्ताक्षर किये गए।

संधि के प्रमुख प्रावधान:

अंटार्कटिक संधि से संबंधित प्रावधानों को निम्नलिखित अनुच्छेदों में वर्णित किया गया है जो इस प्रकार हैं-

अनुच्छेद (1)- अंटार्कटिका क्षेत्र का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये किया जाएगा।

अनुच्छेद (2)- संधि में शामिल देशों को अंटार्कटिका में स्वतंत्र वैज्ञानिक अन्वेषण की स्वतंत्रता होगी।

अनुच्छेद (3)-अंटार्कटिका क्षेत्र में वैज्ञानिक अन्वेषण में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिये योजनाओं और परिणामों का आदान-प्रदान किया जाएगा।

अनुच्छेद (4)-अंटार्कटिका में प्रादेशिक संप्रभुता के लिये कोई नया दावा, या किसी मौजूदा दावे का विस्तार नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद (5)-अंटार्कटिका में कोई भी परमाणु विस्फोट और रेडियोधर्मी अपशिष्ट पदार्थ का निपटान निषिद्ध होगा।

अनुच्छेद (6)- संधि के प्रावधान 60 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के दक्षिण क्षेत्र में लागू होंगे।

अनुच्छेद (7)- संधि में शामिल प्रत्येक पर्यवेक्षक देशों को अंटार्कटिका के किसी भी या सभी क्षेत्रों में किसी भी समय पहुँच की पूर्ण स्वतंत्रता होगी। अंटार्कटिका के किसी भी या सभी क्षेत्रों में किसी भी समय हवाई निरीक्षण किया जा सकता है।

अनुच्छेद (8)- संधि में शामिल दशों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले कर्मचारियों से संबंधित प्रावधान।

अनुच्छेद (9)- संधि में शामिल देशों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सहयोग को बढ़ावा देने एवं सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिये बैठकों का प्रावधान। 

अनुच्छेद (10)- ऐसी किसी भी गतिविधि का विरोध करना जो अंटार्कटिका क्षेत्र में वर्तमान संधि के सिद्धांतों या उद्देश्यों के विपरीत हो।

अनुच्छेद (11)- संधि में शामिल देशों में किसी भी विवाद का निपटारा विचार-विमर्श, मध्यस्थता, सहमति द्वारा किया जाएगा।

अनुच्छेद (12)- हर 30 वर्षों पर संधि की समीक्षा का प्रावधान।

अनुच्छेद (13)-संधि की पुष्टि वर्तमान संधि हस्ताक्षरकर्त्ताओं राज्यों के अनुसमर्थन द्वारा होगी।

अनुच्छेद (14)- विभिन्न भाषाओं में सम्पन्न संधि के संस्करण समान रूप से मान्य होगें जिन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार के अभिलेखागार में जमा किया जाएगा।

आगे की राह:

  • हालाँकि अध्ययन में  शुरुआती आँकड़ों/तथ्यों के आधार पर संतोषजनक स्थिति प्राप्त नहीं हुई थी, लेकिन बाद के परिणामों  के आधार पर कहां जा सकता है कि महाद्वीप के संरक्षण के लिये तीव्र गति से कार्रवाई करने के लिये काफी अवसर विद्यमान हैं।
  • अध्ययन में प्रयुक्त बड़े डेटा समूहों/बेस का उपयोग उन सूचनात्मक प्रश्नों के लिये एक गहरी समझ/दृष्टिकोण प्रदान करेगा जो पर्यावरण नीति निर्माताओं के समक्ष लंबे समय से कठिनाई उत्पन्न  करते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जैव विविधता और पर्यावरण

वन भूमि का गैर-वानिकी में परिवर्तन

प्रीलिम्स के लिये:

सघन वन, वन सलाहकार समिति 

मेन्स के लिये:

वन भूमि का गैर-वानिकी में परिवर्तन

चर्चा में क्यों?

‘वन एवं पर्यावरण के लिये कानूनी पहल’ (Legal Initiative for Forest and Environment- LIFE) नामक एक पर्यावरणीय कानूनी फर्म द्वारा किये गए सर्वेक्षण के अनुसार, विगत तीन वर्षों में वन भूमि का विभिन्न परियोजनाओं के लिये परिवर्तन (Diversion) की सिफारिशों में लगातार गिरावट देखी गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2017 में कुल 27,801.07 हेक्टेयर वन भूमि का गैर-वानिकी उपयोग में परिवर्तन की अनुमति दी गई थी, जो वर्ष 2018 में घटकर 21,781.30 हेक्टेयर और वर्ष 2019 में 13,656.60 हेक्टेयर रह गया है।
  • ऐसे प्रस्तावों की अस्वीकृति की वास्तविक दर मात्र 2.36% है। वन भूमि परिवर्तन के 423 प्रस्तावों में से केवल 10 प्रस्तावों को खारिज किया गया है, जबकि 66 प्रस्तावों में उपयोगकर्ता एजेंसी को अधिक विवरण प्रस्तुत करने को कहा गया था।

राज्य स्तरीय विश्लेषण:

  • 24 राज्य जिन्होंने वर्ष 2019 में गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिये वन भूमि के परिवर्तन की अनुशंसा की थी, उनमें से 10 राज्यों की भागीदारी 82.49% है।
  • गैर-वानिकी उपयोग के सबसे ज्यादा प्रस्ताव ओडिशा (1697.75 हेक्टेयर), झारखंड (1647.41 हेक्टेयर) और मध्य प्रदेश (1626.8 हेक्टेयर) से आए हैं।
  • वर्ष 2019 में मेघालय में सबसे कम (छह हेक्टेयर) वन भूमि का गैर-वानिकी में परिर्वतन देखने को मिला है। 

वन भूमि परिवर्तन की प्रक्रिया:

  • वन भूमि को विभिन्न बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के अधीन परिवर्तन के लिये राज्य सरकारों द्वारा 'वन सलाहकार समिति' (Forest Advisory Committee) या 'क्षेत्रीय अधिकार प्राप्त समितियों' (Regional Empowered Committees) के माध्यम से अनुशंसा की जाती है। 
  • 'वन सलाहकार समिति' या क्षेत्रीय अधिकार प्राप्त समितियों' से मंज़ूरी मिलने के बाद इसे केंद्रीय 'पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF) द्वारा अंतिम मंज़ूरी दी जाती है।

कमी के कारण:

  • पारिस्थितिक चिंताओं के कारण गैर-वानिकी उपयोग हेतु वन भूमि में परिवर्तन की सिफारिशों की संख्या में कमी देखी गई है। वन भूमि के गैर-वानिकी भूमि में परिवर्तन की सिफारिश से पूर्व कई मानदंडों जैसे वन का घनत्व, वैकल्पिक साइट की उपलब्धता, शमन उपाय आदि को देखा जाता है।

चिंता के विषय:

  • सामान्यत: अत्यधिक सघन वनों में मानव अधिवास न के बराबर होते हैं। इससे मानव पुनर्वास तथा भूमि अधिग्रहण की लागत न के बराबर होती है। लगभग 58% वन भूमि जिसे गैर वानिकी उपयोग के लिये अनुशंसित किया गया है ‘सघन वन श्रेणी’ के अंतर्गत है। 

घनत्व के आधार पर वनों को सामान्यत: तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है 

अत्यधिक सघन वन (Very Dense Forest):

  •  इसमें ऐसे वन आते हैं जहाँ वृक्षों के वितान का घनत्व 70% से अधिक है।  

मध्यम सघन वन (Moderately Dense Forest):

  • वनों में वृक्ष वितान का घनत्व 40 से 70% होता है।  

खुले वन (Open Forest): 

  • वनों में वृक्ष वितान का घनत्व 10 से 40% होता है।
  • गैर-वानिकी उपयोग के लिये अनुशंसित वन भूमि का लगभग 45% वन्य जीव संरक्षण प्रोजेक्टों के अंतर्गत आता है। 
  • गैर-वानिकी उपयोग के लिये अनुशंसित कुल वन भूमि का 51.73% रैखिक परियोजनाओं (Linear Projects) जैसे सड़क, रेलवे, पारगमन लाइनों, पाइपलाइन आदि के अधीन थी। इसके बाद खनन एवं उत्खनन और सिंचाई का स्थान है। 
  • रैखिक परियोजनाओं के अधिक वन भूमि के परिवर्तन से क्षेत्रों में वनों की सघनता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा वनों का विखंडन (Fragmentation) बढ़ता है। इससे वनों में अतिक्रमण बढ़ता है तथा ‘मानव-वन्यजीव संघर्ष’ में वृद्धि होती है।

वन भूमि का परिवर्तन 

शीर्ष राज्य 

सड़कों का निर्माण

गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश 

पारेषण लाइनें

झारखंड, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश

रेलवे लाइन निर्माण

झारखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश

निष्कर्ष:

  • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों कम करने तथा इसको दूर करने के लिये वन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समाधान प्रस्तुत करते हैं। अतः आवश्यक है कि वनों की कटाई और वृक्षारोपण जैसे मुद्दों पर गंभीरता से विचार किया जाए तथा इस विषय को नीति निर्माण के केंद्र में रखा जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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