डेली न्यूज़ (04 Nov, 2019)



यूनेस्को का रचनात्मक शहरों का नेटवर्क

प्रीलिम्स के लिये:

यूनेस्को का रचनात्मक शहरों का नेटवर्क, वर्ल्ड सिटीज़ डे 2019, यूनेस्को

मेन्स के लिये:

शहरीकरण, पर्यटन, रचनात्मक विकास से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

वर्ल्ड सिटीज़ डे (31 अक्तूबर, 2019) के अवसर पर यूनेस्को ने भारत के मुंबई तथा हैदराबाद समेत विश्व के 66 शहरों को रचनात्मक शहरों के नेटवर्क में शामिल किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • मुंबई को क्रिएटिव सिटी ऑफ फिल्म्स (Creative City of Films) तथा हैदराबाद को क्रिएटिव सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी (पाक कला) (Creative City of Gastronomy) के रूप में नामित किया गया है।
    • इससे पूर्व भारत के चेन्नई और वाराणसी को यूनेस्को के संगीत शहरों में शामिल किया गया है, जबकि जयपुर को शिल्प तथा लोककला के शहर के रूप में शामिल किया गया है।
  • नेटवर्क में शामिल शहर अपनी सर्वोत्तम प्रथाओं और सांस्कृतिक गतिविधियों में सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों के साथ-साथ नागरिक समाज को शामिल करने हेतु साझेदारी विकसित करने के लिये प्रतिबद्ध होते हैं।

वर्ल्ड सिटीज़ डे 2019 (World Cities Day 2019):

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 31 अक्तूबर को विश्व शहर दिवस के रूप में नामित किया है।
  • वर्ल्ड सिटीज़ डे 2019 का विषय "दुनिया को बदलना: नवाचार और भविष्य की पीढ़ियों के लिये बेहतर जीवन" है।

यूनेस्को का रचनात्मक शहरों का नेटवर्क

(UNESCO Creative Cities Network- UCCN):

  • UCCN को 2004 में उन शहरों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिये बनाया गया था जिन्होंने रचनात्मकता को स्थायी शहरी विकास हेतु एक रणनीतिक कारक के रूप में पहचाना है।
  • वर्तमान में 246 शहर निम्नलिखित उद्देश्यों की दिशा में एक साथ काम कर रहे हैं:
    • स्थानीय स्तर पर विकास योजनाओं हेतु रचनात्मक और सांस्कृतिक उद्योगों को केंद्र में रखना।
    • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय रूप से सहयोग करना।
  • UCCN का उद्देश्य अभिनव सोच और कार्रवाई के माध्यम से सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goal) को प्राप्त करना है।
  • UCCN में संगीत, कला, लोकशिल्प, डिज़ाइन, सिनेमा, साहित्य तथा डिजिटल कला और पाककला जैसे सात रचनात्मक क्षेत्र शामिल हैं।
  • यूनेस्को के अनुसार, यह नेटवर्क उन शहरों को एक साथ लाता है जिन्होंने अपनी रचनात्मकता के आधार पर विकास किया है।

स्रोत : द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


भारत में रोज़गार की स्थिति

प्रीलिम्स के लिये:

संगठित क्षेत्र, असंगठित क्षेत्र, संविदात्मक रोज़गार

मेन्स के लिये:

भारत में रोज़गार की स्थिति, संगठित क्षेत्र और संविदात्मक रोज़गार के मध्य संबंध

चर्चा में क्यों?

एक हालिया अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2004 से वर्ष 2017 के मध्य देश के कुल रोज़गार में मात्र 4.5 करोड़ की वृद्धि हुई है।

  • इस अध्ययन से ज्ञात होता है कि देश में रोज़गार में मात्र 0.8 प्रतिशत की ही वृद्धि हुई है, वहीं दूसरी ओर देश की कुल जनसंख्या में होने वाली वृद्धि इससे तकरीबन दोगुनी है।
  • इस अध्ययन की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें ‘बेरोज़गारी’ के स्थान पर ‘रोज़गार’ पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

अध्ययन के मुख्य बिंदु

  • 13 वर्ष की अवधि में रोज़गार में जो 4.5 करोड़ की वृद्धि हुई है, उसमें से लगभग 4.2 करोड़ की बढ़ोतरी शहरों में और शेष ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिली है।
  • आँकड़े बताते हैं कि इस अवधि में पुरुष रोज़गार में तो 6 करोड़ की वृद्धि हुई है, परंतु महिला रोज़गार में 1.5 करोड़ की गिरावट दर्ज की गई।
    • जहाँ एक ओर वर्ष 2004 में कुल 11.15 करोड़ महिलाएँ कार्यरत थीं, वहीं 13 वर्ष बाद मात्र 9.67 करोड़ महिलाएँ ही रोज़गार में कार्यरत पाई गईं।
  • ध्यातव्य है कि भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक है, परंतु अध्ययन में पाया गया कि युवा रोज़गार वर्ष 2004 में 8.14 करोड़ से घटकर वर्ष 2017 में 5.34 करोड़ हो गया। हालाँकि अन्य सभी आयु वर्गों के रोज़गार में बढ़ोतरी देखने को मिली।
  • अध्ययन के अनुसार, देश में निरंतर हो रहे स्कूली सुधारों का काफी प्रभाव पड़ा है और 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के रोज़गार में वर्ष 2004 के मुकाबले वर्ष 2017 में तकरीबन 82 प्रतिशत की कमी देखी गई है।
  • गौरतलब है कि प्राइमरी, सेकेंडरी से लेकर पोस्ट ग्रेजुएट और उससे भी उच्च शिक्षा तक के अन्य सभी वर्गों के रोज़गार में बढ़ोतरी देखने को मिली है, परंतु अध्ययन से ऐसा प्रतीत होता है कि तेज़ी से उभरती भारतीय अर्थव्यवस्था निरक्षरों और अधूरी प्राथमिक शिक्षा वाले लोगों को पीछे छोड़ रही है, क्योंकि 13 वर्ष की अवधि में इस वर्ग के लिये रोज़गार 20.08 करोड़ (वर्ष 2004) से घटकर 14.2 करोड़ (वर्ष 2017) तक पहुँच गया।
  • असंगठित क्षेत्र की अपेक्षा संगठित क्षेत्र में रोज़गार दर में वृद्धि काफी तेज़ रही। देश के कुल रोज़गार में संगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी वर्ष 2004 के 8.9 फीसदी से बढ़कर 2017 में 14 फीसदी हो गई।
  • अध्ययन के अनुसार, देश के असंगठित क्षेत्र का भी विकास हुआ है। हालाँकि इसकी विकास दर अपेक्षाकृत धीमी थी, परंतु अर्थव्यवस्था में इसकी कुल हिस्सेदारी वर्ष 2004 में 37.1 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2017 में 47.7 प्रतिशत हो गई।
  • संक्षेप में आँकड़े दर्शाते हैं कि जो लोग गरीब, निरक्षर और अकुशल हैं वे तेज़ी से अपनी नौकरियाँ खो रहे हैं।

संगठित क्षेत्र

  • संगठित क्षेत्र में रोज़गार की शर्तें निश्चित और नियमित होती हैं तथा कर्मचारियों को सुनिश्चित कार्य व सामाजिक सुरक्षा मिलती है।
  • इसे एक ऐसे क्षेत्र के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है जो सरकार के साथ पंजीकृत होता है और उस पर कई अधिनियम लागू होते हैं। गौरतलब है कि स्कूल और अस्पताल संगठित क्षेत्र मे ही आते हैं।
  • संगठित क्षेत्र के श्रमिकों को रोज़गार सुरक्षा प्राप्त है और उन्हें कुछ निश्चित घंटों के लिये ही कार्य करना होता है।

असंगठित क्षेत्र

  • असंगठित क्षेत्र में मुख्यतः स्व-नियोजित श्रमिकों, वेतनभोगी मज़दूरों और संगठित क्षेत्र के उन कर्मचारियों को शामिल किया जाता है, जो असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 की अनुसूची- II में उल्लेखित कल्याणकारी योजनाओं से संबंधित किसी अधिनियम के तहत नहीं आते।

संगठित क्षेत्र का उदय और संविदात्मक रोज़गार

(Contractual Employment)

  • सामान्यतः यह माना जाता है कि संगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले लोग किसी विशेष अनुबंध के तहत कार्य करते हैं।
  • रोज़गार अनुबंध के कारण ही रोज़गार सुरक्षा, न्यूनतम मज़दूरी, समान कार्य के लिये समान वेतन, सुरक्षित काम करने की स्थिति आदि का प्रश्न उठता है।
    • ध्यातव्य है कि अनुबंध के अभाव में कोई भी कर्मचारी उचित सामाजिक न्याय की अपेक्षा नहीं कर सकता।
  • गैर-अनुबंध वाले रोज़गार में वेतन की दर अपेक्षाकृत काफी कम होती है और शायद इसीलिये असंगठित क्षेत्र कर्मचारियों को बिना अनुबंध किये ही रोज़गार प्रदान करता है।
  • हालाँकि NSSO के आँकड़े भारत में संगठित क्षेत्र के एक पूर्णतः विपरीत परिदृश्य को प्रदर्शित करते हैं। आँकड़े बताते हैं कि बीते कुछ वर्षों में देश का संगठित क्षेत्र भी बिना अनुबंध के श्रमिकों को रोज़गार प्रदान कर रहा है। वर्ष 2011 से 2017 के बीच यह पैटर्न सबसे अधिक देखने को मिला है।
  • अनुबंध से गैर-अनुबंध की यह स्थिति भारत की अर्थव्यवस्था के लिये बिल्कुल भी अच्छी नहीं है, क्योंकि भारत अपनी अर्थव्यवस्था को और अधिक औपचारिक बनाना चाहता है परंतु ऐसी स्थिति में यह संभव नहीं है।

संविदात्मक रोज़गार

संविदात्मक रोज़गार ऐसा रोज़गार है जिसमें किसी कर्मचारी को काम करने से पहले अनुबंध की शर्तों पर हस्ताक्षर करने और उस पर अपनी सहमति व्यक्त करने की आवश्यकता होती है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भारत-जर्मनी

प्रीलिम्स के लिये:

प्रमुख समझौते और जर्मनी की भौगोलिक स्थिति

मेन्स के लिये:

भारत-जर्मनी संबंधों के विभिन्न आयाम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने भारत की यात्रा की, साथ ही भारत के प्रधानमंत्री के साथ 5वें भारत-जर्मन अंतर सरकारी परामर्श (Inter-Governmental Consultation) की सह-अध्यक्षता भी की।

महत्त्वपूर्ण समझौते:

वार्ता के दौरान भारत-जर्मनी के बीच 17 समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए हैं।

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और जर्मन एयरोस्पेस सेंटर (German Aerospace Centre) के बीच सहयोग।
  • नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में सहयोग।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्मार्ट शहरों के नेटवर्क के क्षेत्र में सहयोग।
  • कौशल विकास, व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण के क्षेत्र में सहयोग।
  • स्टार्ट-अप के क्षेत्र में आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर समझौता।
  • कृषि बाज़ार विकास के संबंध में द्विपक्षीय सहयोग परियोजना की शुरुआत।
  • व्यावसायिक रोगों (Occupational Diseases), दिव्यांग व्यक्तियों और उनके पूनार्वासन (Re-habilitation) एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण के क्षेत्र में समझौता।
  • अंतर्देशीय, तटीय और समुद्री प्रौद्योगिकी में सहयोग के लिए समझौता।
  • वैज्ञानिक और तकनीकी अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देने के लिये समझौता।
  • आयुर्वेद और योग के क्षेत्र में अकादमिक सहयोग की स्थापना पर समझौता।
  • भारत और जर्मनी के बीच उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग (Cooperation) पर समझौता।
  • उच्च शिक्षा में भारत-जर्मन भागीदारी के विस्तार (Extension) पर समझौता।
  • कृषि तकनीकी और व्यावसायिक प्रशिक्षण के क्षेत्र में सहयोग पर समझौता।
  • सतत् विकास के क्रियान्वयन पर समझौता।
  • नेशनल म्यूज़ियम, नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट और इंडियन म्यूज़ियम कोलकाता तथा जर्मनी के सांस्कृतिक संस्थानों के मध्य समझौता।
  • अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ और जर्मनी के फुटबॉल संघ के बीच समझौता।
  • भारत-जर्मनी प्रवासन और गतिशीलता साझेदारी समझौता ( Mobility Partnership Agreement)।

भारत-जर्मनी संबंधों के प्रमुख आयाम:

  • आर्थिक संबंध:
    • वार्ता के बाद दोनों देशों ने संयुक्त बयान जारी करते हुए कहा कि भारत-जर्मनी, भारत और यूरोपीय-संघ के बीच मुक्त-व्यापार संबंधी ठप पड़ी वार्ता को आगे बढाएंगे।
    • इसके अतिरिक्त भारत-यूरोपीय संघ के बीच द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौते (BTIA) का भी प्रयास किया जाएगा।
    • जर्मनी भारत का एक प्रमुख आर्थिक भागीदार है जहाँ से भारत में विभिन्न वस्तुओं जैसे- गारमेंट्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, मेटल गुड्स, सिंथेटिक सामग्री का व्यापार होता है, साथ ही भारत में जर्मनी से बड़ी मात्रा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आता है।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद:
    • भारत और जर्मनी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता हेतु अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की।
    • ज्ञातव्य है कि भारत और जर्मनी G-4 (भारत, जर्मनी, जापान, ब्राज़ील) देशों के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिये प्रयासरत हैं।
  • आतंकवाद:
    • भारत और जर्मनी ने आतंकवाद एवं उग्रवाद से निपटने के लिये द्विपक्षीय, बहुपक्षीय सहयोग को और आगे बढ़ाने में एक-दूसरे का समर्थन कर रहे हैं।
    • दोनों देशों, फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स (Financial Action Task Force- FATF) की बैठकों में समन्वय और इनके आदेशों के क्रियान्वयन में सहयोग हेतु प्रतिबद्धता व्यक्त करते रहे हैं।
  • कृषि:
    • भारत-जर्मनी के बीच कृषि में मशीनीकरण और फसल कटाई प्रबंधन जैसे मुद्दे पर सहायता से संबंधी समझौते पर विचार चल रहा है, इसके अतिरिक्त वर्ष 2022 तक भारत में कृषकों की आय दोगुना करने में भारत की हर-तरह से सहायता करने की बात कही।
  • रक्षा:
    • प्रधानमंत्री ने जर्मनी को उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में स्थित रक्षा गलियारों में रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में अवसरों का लाभ उठाने के लिये आमंत्रित किया।

अन्य क्षेत्र:

  • ई-मोबिलिटी, स्मार्ट शहर, नदियों की सफाई और पर्यावरण संरक्षण में सहयोग की संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है।
  • प्रधानमंत्री ने कहा कि वर्ष 2022 तक नए भारत के निर्माण का संकल्प लिया है और इसमें जर्मनी जैसी प्रौद्योगिकी विशेषज्ञता और आर्थिक शक्तियाँ बेहद उपयोगी होगी।

भारत के दृष्टिकोण से जर्मनी का महत्त्व:

  • राजनीतिक वार्ता में अंतराल के बावजूद दोनों देशों के बीच वाणिज्यिक संबंध मज़बूत हैं।
  • भारत द्वारा वर्ष 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया है, इसके लिये भारत यूरोपीय संघ से मुक्त व्यापार समझौता करना चाहता है।
  • जर्मनी अत्याधुनिक तकनीकी के क्षेत्र में विश्व का अव्वल देश है। भारत अभी भी कौशल, विकास और तकनीकी के क्षेत्र में काफी पीछे है।
  • जर्मनी के साथ नए भू-सामरिक संबंधों से भारत-जर्मनी के बीच द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा इसके अतिरिक्त भारत को प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी क्षेत्र में बेहतर सहयोग प्राप्त होगा।

स्रोत: द हिंदू


पाकिस्तान में आज़ादी मार्च

प्रीलिम्स के लिये:

आज़ादी मार्च

मेन्स के लिये:

आज़ादी मार्च का भारत और पाकिस्तान पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

वर्तमान में पाकिस्तान में मौलाना फज़लुर रहमान के नेतृत्व में ‘आज़ादी मार्च’ जारी है। इस प्रदर्शन का मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को गिराना है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने असंवैधानिक रूप से चुनावों में जीत हासिल की है, इसलिये वे प्रधानमंत्री इमरान खान के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं।

  • गौरतलब है कि पाकिस्तान की राजनीति में विपक्षी दलों द्वारा विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से लोकतांत्रिक सरकार को गिराने का प्रयास एक आम बात हो गई है और इस प्रकार की लगभग सभी घटनाओं में पाकिस्तानी सेना की एक विशेष भूमिका दिखाई देती है।

पाकिस्तान का नया संकट- आज़ादी मार्च

  • पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के पद ग्रहण करने के पश्चात् यह पहला मौका है जब उनके सामने कोई बड़ी राजनीतिक चुनौती उत्पन्न हुई है।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2018 में हुए पाकिस्तानी चुनाव काफी विवादास्पद थे और यह कहा गया था कि पाकिस्तानी सेना ने चुनावों में हेर-फेर कर इमरान खान को जिताने का प्रयास किया है।
  • प्रदर्शनकारी इसी विषय को लेकर अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं और उन्हें पाकिस्तान के प्रमुख विपक्षी दलों का समर्थन भी प्राप्त है।
  • प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे फज़लुर रहमान का कहना है कि वर्ष 2018 के चुनाव अनुचित थे और इसलिये पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को अपना पद छोड़ देना चाहिये।
  • इसके अलावा फज़लुर रहमान का यह भी मानना है कि इमरान खान कश्मीर के मुद्दे पर कुछ नहीं कर रहे हैं एवं करतारपुर गलियारे की शुरुआत पाकिस्तान के हित में नहीं है।
  • गौरतलब है कि पाकिस्तान की वर्तमान आर्थिक स्थिति भी अत्यंत खराब है, जिसे लेकर समय-समय पर प्रधानमंत्री इमरान खान के विरुद्ध आवाज़ उठती रही है। यह कहना गलत नहीं होगा कि पाकिस्तान अपने इतिहास में सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है।
    • पाकिस्तान के वर्तमान हालात भी इस प्रदर्शन के लिये ज़िम्मेदार माने जा सकते हैं और इसी कारण लोग प्रदर्शन को अपना समर्थन दे रहे हैं।

आज़ादी मार्च- भारत पर प्रभाव

  • विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान में हो रहे ‘आज़ादी मार्च’ का भारत पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि भारत और पाकिस्तान के वर्तमान रिश्ते अपने सबसे खराब दौर से गुज़र रहे हैं।
  • यदि प्रदर्शन सफल रहता है, हालाँकि इसकी संभावना बहुत कम है, तो पाकिस्तान की घरेलू राजनीति में काफी परिवर्तन देखने को मिल सकता है।
  • इस प्रदर्शन की सफलता का भारत के लिये एक खतरा यह है कि मौलाना फ़ज़लुर रहमान, जो कि प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहा है, की छवि भारत के प्रति बहुत अच्छी नहीं मानी जाती है।
    • मौलाना फज़लुर रहमान के अफगान तालिबान के साथ घनिष्ठ संबंध बताए जाते हैं। साथ ही उसने विगत कुछ वर्षों में कई बार अमेरिकी विरोधी और तालिबान समर्थित प्रदर्शनों का नेतृत्व भी किया है।
    • वर्ष 2012 में उसने नोबेल विजेता मलाला यूसुफज़ई के विरोध में भी कई बयान दिये थे।

निष्कर्ष

पाकिस्तान में विरोध प्रदर्शन के कारण अफरा-तफरी का माहौल है, परंतु फिलहाल इस बात की संभावना नहीं है कि विपक्षी दल इमरान खान को सत्ता से हटा पाएंगे। हमेशा की तरह इस बार भी यही प्रतीत हो रहा है कि अंतिम निर्णय पाकिस्तानी सेना द्वारा ही लिया जाएगा। गौरतलब है कि इस प्रकार का पिछला प्रदर्शन इमरान खान के नेतृत्व में किया गया था और वे अपने मकसद में असफल रहे थे।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


दूरसंचार क्षेत्र में चुनौतियाँ

प्रीलिम्स के लिये:

यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड, स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क, समायोजित सकल राजस्व

मेन्स के लिये:

दूरसंचार क्षेत्र से संबंधित मुद्दे

संदर्भ

हाल ही में कैबिनेट सचिव राजीव गौबा की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया गया, ताकि संकटग्रस्त दूरसंचार क्षेत्र के लिये राहत पैकेज की घोषणा की जा सके।

प्रमुख बिंदु:

  • पैनल में वित्त, कानून और दूरसंचार मंत्रालय के सचिव शामिल होंगे। जो समयबद्ध तरीके से सिफारिशों का निपटारा किया सके।
  • यह कदम सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद उठाया गया है और इस प्रकार के प्रयासों के माध्यम से यह उम्मीद की जा रही है कि दूरसंचार कंपनियों की 1.4 लाख करोड़ रुपए की भुगतान राशि हेतु कुछ समाधान निकल सकेगा।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने दूरसंचार कंपनियों के वार्षिक समायोजित सकल राजस्व (Adjusted Gross Revenue- AGR) की गणना में गैर-दूरसंचार व्यवसायों से प्राप्त राजस्व को शामिल किया है जिसका कंपनियों द्वारा विरोध किया जा रहा है।
  • दूरसंचार कंपनियाँ कई अन्य चुनौतियों जैसे- उपभोक्ताओं की बड़ी संख्या और उन तक बेहतर दूरसंचार सेवाओं की पहुँच का सामना कर रही हैं।

आधारभूत मुद्दे:

  • वर्तमान में इस क्षेत्र के ऊपर भुगतान राशि को मिलाकर कुल लगभग 4 लाख करोड़ रुपए का ऋण विद्यमान है।
  • फ्री वॉयस और सस्ते डेटा से तीव्र प्रतिस्पर्द्धा के कारण, दूरसंचार क्षेत्र का सकल राजस्व वर्ष 2017-18 और 2018-19 के मध्य और गिर गया।
  • भारत में ग्राहकों को 8 रुपए/जीबी डेटा उपलब्ध करवाया जा रहा है जो विश्व में सबसे सस्ती दर है।
  • प्रति उपयोगकर्त्ता प्रतिमाह औसत राजस्व की प्राप्ति वर्ष 2014-15 के 174 रुपए के स्तर से घटकर वर्ष 2018-19 में 113 रुपए हो गई।
  • इस क्षेत्र की अन्य चुनौतियों में 5जी का क्रियान्वयन जैसे मुद्दे शामिल हैं।

क्षेत्र की मांग:

  • स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क (Spectrum Usage Charges) और यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड लेवी (Universal Service Obligation Fund Levy) में कमी की जाए।
  • वॉयस और डेटा के लिये व्यवहार्य मूल्य निर्धारण (Viable Pricing) किया जाए, यह भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) के कार्यक्षेत्र में आता है।
  • दूरसंचार क्षेत्र की मांग है कि TRAI द्वारा वॉयस और डेटा सेवाओं के लिये न्यूनतम शुल्क निर्धारित किया जाना चाहिये, जिससे क्षेत्र की दीर्घकालिक व्यवहार्यता और मज़बूत वित्तीय स्थिति सुनिश्चित हो सके।
  • इस क्षेत्र की कंपनियों की मांग है कि उनके क्रेडिट पर मिले इनपुट टैक्स क्रेडिट, जो कि सरकार के पास जमा है, का समायोजन सरकारी शुल्कों में किया जाए।

समायोजित सकल राजस्व

(Adjusted Gross Revenue- AGR)

  • यह उपयोग और लाइसेंस शुल्क है जो दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunications- DoT) द्वारा दूरसंचार ऑपरेटरों पर लगाया जाता है। विभाग द्वारा इसकी दर 3.5%-8% के मध्य निर्धारित की गई है।

स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क

(Spectrum Usage Charge- SUC)

  • यह वह शुल्क है जो मोबाइल एक्सेस सेवा प्रदान करने वाले लाइसेंसधारियों द्वारा अपने AGR के प्रतिशत के रूप में भुगतान किया जाना आवश्यक होता है। इसी के लिये सरकार द्वारा समय-समय पर दरें अधिसूचित की जाती हैं।

यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड

Universal Service Obligation Fund (USOF)

  • यह ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में लोगों तक वहन योग्य कीमतों पर गैर-भेदभावपूर्ण गुणवत्तापूर्ण सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communication Technology- ICT) सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करता है।
  • वर्तमान में इसकी दर 5% है जिसे इस क्षेत्र की कंपनियों द्वारा घटाकर 3% करने की मांग की जा रही है।
  • इसका गठन वर्ष 2002 में दूरसंचार विभाग के तहत किया गया था।
  • इस फंड के लिये संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता होती है और इसे भारतीय टेलीग्राफ (संशोधन) अधिनियम, 2003 के तहत वैधानिक समर्थन प्राप्त है।

आगे की राह:

  • दूरसंचार क्षेत्र की समस्याओं का समाधान करके सेवा की गुणवत्ता में सुधार करना चाहिये।
  • एक बेहतर व्यावसायिक वातावरण के लिये दीर्घकालिक दृष्टि योजना (long-term vision plan) का निर्माण करना चाहिये।
  • ब्रॉडबैंड सेवाओं तक बढ़ती पहुँच भारत को डिजिटली रूप से अधिक सशक्त बनाएगा, इसलिये समग्र दूरसंचार क्षेत्र को मज़बूती प्रदान करने के लिये सरकार द्वारा पर्याप्त कदम उठाए जाने चाहिये।

स्रोत- द हिंदू


बेरोज़गारी दर रिपोर्ट- CMIE

प्रीलिम्स के लिये:

CMIE, CMIE रिपोर्ट

मेन्स के लिये:

भारत में बढ़ती बेरोज़गारी दर

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (Center For Monitoring Indian Economy-CMIE) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, भारत में बेरोज़गारी दर पिछले 3 सालों के उच्चतम स्तर पर पहुँच गई है।

CMIE

प्रमुख बिंदु:

  • CMIE की रिपोर्ट के अनुसार भारत में शहरी बेरोज़गारी दर 8.9% और ग्रामीण बेरोज़गारी दर 8.3% अनुमानित है।
  • उल्लेखनीय है अक्तूबर 2019 में भारत की बेरोज़गारी दर बढ़कर 8.5% हो गई, जो अगस्त 2016 के बाद का उच्चतम स्तर है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, राज्य स्तर पर सबसे अधिक बेरोज़गारी दर त्रिपुरा (27%) हरियाणा (23.4%) और हिमाचल प्रदेश (16.7) में आंकी गई।
  • जबकि सबसे कम बेरोज़गारी दर क्रमशः तमिलनाडु (1.1%), पुद्दूचेरी (1.2%) और उत्तराखंड (1.5%) में अनुमानित की गई थी ।
  • CMIE की यह रिपोर्ट नवीनतम आवधिक श्रम बल सर्वे पर आधारित हैं जिसके तहत बेरोज़गारी दर जुलाई 2017 से जून 2018 के दौरान पिछले 45 वर्षों में सबसे बुरे स्तर पर आँकी गई थी।
  • इसके अलावा सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट (Center For Sustainable Employment) द्वारा 'इंडियाज एंप्लॉयमेंट क्राइसिस' (India’s Employment Crisis) शोध के अनुसार, 2011-12 और 2017-18 के बीच,कुल रोज़गार में नौ मिलियन (2%) की अभूतपूर्व गिरावट दर्ज की गई।वहीं कृषि आधारित रोज़गार में 11.5% की गिरावट का अनुमान लगाया गया।
  • शोध के अनुसार इसी अवधि में सेवा क्षेत्र की रोज़गार दर में 13.4% की वृद्धि हुई, जबकि विनिर्माण क्षेत्र में 5.7% की गिरावट दर्ज की गई।

बेरोज़गारी क्या है?

  • किसी व्यक्ति द्वारा सक्रियता से रोज़गार की तलाश किये जाने के बावजूद जब उसे काम नहीं मिल पाता तो यह अवस्था बेरोज़गारी कहलाती है।
  • इसे सामान्यत: बेरोज़गारी दर के रूप में मापा जाता है जिसे श्रमबल में शामिल व्यक्तियों की संख्या से बेरोज़गार व्यक्तियों की संख्या में भाग देकर प्राप्त किया जाता है।

सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी

(Center For Monitoring Indian Economy-CMIE)

  • CMIE की स्थापना एक स्वतंत्र थिंक टैंक के रूप में 1976 में की गई।
  • CMIE प्राथमिक डेटा संग्रहण, विश्लेषण और पूर्वानुमानों द्वारा सरकारों, शिक्षाविदों, वित्तीय बाजारों, व्यावसायिक उद्यमों, पेशेवरों और मीडिया सहित व्यापार सूचना उपभोक्ताओं के पूरे स्पेक्ट्रम को सेवाएँ प्रदान करता है।

स्रोत-द हिंदू


BASIC देशों की बैठक

प्रीलिम्स के लिये:

BASIC, बेसिक, कोपेनहेगन समझौता, हरित जलवायु कोष, UNFCCC

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बेसिक (BASIC) देशों (ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन) के पर्यावरण मंत्रियों का सम्मेलन बीजिंग (चीन) में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन के बाद पेरिस समझौते (वर्ष 2015) के व्यापक कार्यान्वयन के लिये एक बयान जारी किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • पेरिस समझौते पर प्रतिबद्धता व्यक्त करने के साथ ही मंत्रियों के समूह ने विकसित देशों से विकासशील देशों को 100 बिलियन डॉलर, जलवायु वित्त (Climate Finance) के रूप में प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने का भी आह्वान किया।
    • कोपेनहेगन समझौते- Copenhagen Accord {संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP-15) 2009 के दौरान स्थापित} के तहत विकसित देशों ने वर्ष 2012 से वर्ष 2020 तक प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर देने का वादा किया था।
    • इस फंड को हरित जलवायु कोष (Green Climate Fund- GCF) के रूप में जाना जाता है।
    • GCF का उद्देश्य विकासशील और अल्प विकसित देशों (Least Developing Countries) को जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से समाधान में सहायता करना है।
    • हालाँकि वर्तमान में विकसित देशों द्वारा केवल 10-20 बिलियन डॉलर की सहायता राशि प्रदान की जा रही है ।
  • बैठक का आयोजन समान लेकिन विभेदित जिम्मेदारियाँ और संबंधित क्षमताएँ (Common but Differentiated Responsibilities and Respective Capabilities: CBDR-RC) के सिद्धांतों के आधार पर किया गया।
    • CBDR-RC संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) के तहत एक सिद्धांत है जो जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने में अलग-अलग देशों की विभिन्न क्षमताओं और अलग-अलग ज़िम्मेदारियों का आह्वान करता है।
  • बैठक में UNFCCC, क्योटो प्रोटोकॉल (वर्ष 1997-2012) और पेरिस समझौते के पूर्ण, प्रभावी एवं निरंतर कार्यान्वयन के महत्त्व को भी रेखांकित किया गया।

स्रोत: द हिंदू


ओपन जनरल एक्सपोर्ट लाइसेंस

प्रीलिम्स के लिये:

ओपन जनरल एक्सपोर्ट लाइसेंस

मेन्स के लिये:

रक्षा निर्यात बढ़ाने हेतु किये गए उपाय, भारतीय रक्षा प्रौद्योगिकी का निर्यात

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय रक्षा मंत्रालय ने रक्षा निर्यातों (Defence Exports) को बढ़ावा देने के लिये दो ओपन जनरल एक्सपोर्ट लाइसेंसों (Open General Export Licences-OGELs) को मंज़ूरी दी है।

प्रमुख बिंदु

  • OGEL किसी कंपनी को एक विशिष्‍ट अवधि के लिये एक बार दिया जाने वाला निर्यात लाइसेंस है। प्रारंभ में इसकी अवधि दो वर्ष होती है।
  • रक्षा उत्पादन विभाग (Department of Defence Production-DPP) द्वारा OGELकी मांग हेतु आवेदन के प्रत्येक मामले पर पृथक विचार किया जाएगा।
  • इन दो OGEL द्वारा चयनित देशों को कुछ पुर्जों और घटकों के निर्यात तथा रक्षा प्रौद्योगिकी की अंतर-कंपनी (Intra-company) हस्‍तांतरण की अनुमति दी गई है।
  • OGEL के तहत अनुमति प्राप्‍त देशों की सूची में बेल्जियम, फ्राँस, जर्मनी, जापान, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, स्वीडन, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, इटली, पोलैंड और मेक्सिको शामिल हैं।
  • लाइसेंस प्राप्त करने के लिये आवेदक के पास आयात-निर्यात प्रमाण-पत्र होना अनिवार्य है।
  • इसमें OGEL के तहत सभी लेन-देनों की प्रत्‍येक तिमाही और वार्षिक रिपोर्टों को जाँच एवं निर्यात के बाद सत्यापन हेतु DPP को प्रस्तुत किये जाने की भी बात कही गई है।

OGEL में शामिल वस्तुएँ

  • OGEL में ऊर्जावान और विस्फोटक सामग्री के बिना गोला-बारूद और फ्यूज़ सेटिंग उपकरणों के घटक।
  • अग्नि नियंत्रण और संबंधित खतरे की सूचना तथा चेतावनी से संबंधित उपकरण एवं संबंधित अन्य प्रणाली।
  • शारीरिक सुरक्षा संबंधी वस्तुएँ।

OGEL से बाहर रखी गई वस्तुएँ

  • संपूर्ण विमान या संपूर्ण मानव रहित विमानों (UAVs) और UAV के लिये विशेष रूप से संशोधित या डिज़ाइन किये गए घटकों को इस लाइसेंस से बाहर रखा गया है।
  • OGEL के तहत 'विशेष आर्थिक क्षेत्रों' (SEZs) में वस्तुओं के निर्यात की अनुमति नहीं दी जाएगी।
  • इसके अलावा अन्‍य देशों को प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के लिये अंतर-कंपनी हस्तांतरण की शर्त जोड़ी गई है अर्थात् निर्यात किसी भारतीय सहायक कंपनी (आवेदक निर्यातक) से अपनी विदेशी मूल कंपनी अथवा विदेशी मूल कंपनी की सहायक कंपनी को होना चाहिये।

रक्षा उत्पादन विभाग

(Department of Defence Production)

  • रक्षा उत्पादन विभाग (DPP) की स्थापना नवंबर, 1962 में की गई थी।
  • इसका उद्देश्य रक्षा के लिये आवश्यक हथियारों, प्रणालियों, प्लेटफॉर्मों, उपकरणों का उत्पादन करने के लिये एक व्यापक बुनियादी ढाँचे का विकास करना है।
  • विभाग ने विभिन्न रक्षा उपकरणों के विनिर्माण के लिये आयुध कारख़ानों और सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रमों (DPSU) के माध्यम से व्यापक उत्पादन सुविधाएँ सुनिश्चित की हैं।
  • विभाग द्वारा विनिर्मित उत्पादों में हथियार एवं गोला-बारूद, टैंक, हेलीकॉप्टर, युद्धपोत, पनडुब्बियाँ, मिसाइलें, इलेक्ट्रानिक उपकरण, अर्थमूविंग उपकरण, विशेष मिश्र धातुएँ आदि शामिल हैं।

रक्षा अधिग्रहण परिषद

(Defence Acquisition Council-DAC)

  • सशस्त्र बलों की स्वीकृत आवश्यकताओं की शीघ्र ख़रीद सुनिश्चित करने के उद्देश्य से वर्ष 2001 में रक्षा अधिग्रहण परिषद की स्थापना की गई थी।
  • DAC की अध्यक्षता रक्षा मंत्री द्वारा की जाती है।
  • उल्लेखनीय है कि DAC अधिग्रहण संबंधी मामलों पर निर्णय लेने वाली रक्षा मंत्रालय की सर्वोच्च संस्था है।

लाभ

  • विगत दो वर्षों में भारत के रक्षा निर्यात में सात गुना वृद्धि हुई है और 2018-19 में यह बढ़कर 10,500 करोड़ रुपए तक पहुँच गया है।
  • यह मानक संचालन प्रक्रिया में सुधार और आवेदनों की ऑनलाइन मंज़ूरी के लिये एक पोर्टल की शुरुआत के कारण संभव हुआ है जिससे आवेदन जाँच प्रक्रिया में लगने वाले समय में भी काफी कमी आई है।
  • OGEL का विचार भी भारतीय रक्षा निर्यातों को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • इससे रक्षा निर्यातों को बढ़ावा मिलेगा और कारोबार करने की सुगमता में सुधार होगा।
  • इससे सरकार से अनुमति लेने की लंबी प्रक्रिया को छोटा किया जा सकेगा।
  • नई लाइसेंस प्रणाली से रक्षा क्षेत्र की कंपनियों की अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुँच होगी और अधिक प्रतिस्पर्द्धी उत्पादों का विनिर्माण संभव होगा।

स्रोत : द हिंदू (बिज़नेस लाइन) एवं पीआईबी


पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क

प्रीलिम्स के लिये:

ग्रेडेड एक्शन रिस्पांस प्लान, पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण

मेन्स के लिये:

पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क लगाने से संबंधित तथ्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण [Environment Pollution (prevention & Control) Authority-EPCA] ने दिल्ली में ग्रेडेड एक्शन रिस्पांस प्लान (Graded Action Response Plan) के तहत वायु प्रदूषण की आपातकालीन श्रेणी के दौरान ट्रकों के आवागमन पर प्रतिबंध के स्थान पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क लागू किया है।

मुख्य बिंदु:

  • EPCA द्वारा दिल्ली के बॉर्डर पर स्थित 13 रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन प्रणाली (Radio Frequency Identification-RFID, System) आधारित टोल बूथों के कार्यों की समीक्षा करने के बाद यह निर्णय लिया गया।
  • टोल बूथों पर RFID प्रणाली प्रारंभ होने तथा पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क लागू होने से पहले दिल्ली में लगभग 8000 ट्रक प्रतिदिन प्रवेश करते थे, इस प्रणाली के लागू होने के बाद इनकी संख्या 3664 प्रतिदिन हो गई है।
  • टोल बूथों पर कैश लेन अथवा फ्री लेन का उपयोग कर पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क से बचने वाले ट्रकों की संख्या 33% से घटकर 18% हो गई है।
  • EPCA के अनुसार, ट्रकों पर प्रतिबंध लगाने से दिल्ली बॉर्डर पर स्थित टोल बूथों पर ट्रकों की संख्या बढ़ने के कारण जाम जैसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है अतः पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क ट्रकों पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाने की अपेक्षा ट्रकों की संख्या कम करने का अच्छा माध्यम है।

रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन प्रणाली

(Radio Frequency Identification -RFID, System):

  • RFID प्रणाली के अंतर्गत किसी वस्तु या वाहन से जुड़े टैग पर संग्रहीत जानकारी को पढ़ने और समझने के लिये रेडियो तरंगों का उपयोग किया जाता है।
  • इस तकनीक के माध्यम से किसी टैग को कई फीट की दूरी से पढ़ा जा सकता है और इसे पढ़ने के लिये स्कैनर या रीडर का एक सीधी रेखा में होना आवश्यक नहीं है।
  • RFID प्रणाली की सहायता से टोल बूथों पर बिना रुके डिजिटल रूप से भुगतान किया जाता है।
  • जैसे ही कोई वाहन टोल बूथ को पार करता है वैसे ही सेंसर RFID प्रणाली के माध्यम से टैग की पहचान कर लेता है तथा टोल राशि स्वचालित रूप से काट ली जाती है।

Severe Plus

पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण

[Environment Pollution (Prevention & Control) Authority-EPCA]:

  • EPCA सर्वोच्च न्यायालय के आदेश द्वारा अधिसूचित एक संस्था है जो कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण को कम करने के लिये उपाय सुझाने का कार्य करती है।
  • इसकी अधिसूचना पर्यावरण मंत्रालय द्वारा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत वर्ष 1998 में जारी की गई थी।
  • यह संस्था प्रदूषण के स्तर को देखते हुए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में ग्रेडेड एक्शन रिस्पांस प्लान (GRAP) लागू करने का भी कार्य करती है।

स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया


ग्रहों पर दिन की अवधि

प्रीलिम्स के लिये

ग्रहों का घूर्णन काल

चर्चा में क्यों?

खगोलशास्त्रियों के अनुसार, ‘शुक्र ग्रह’ व ‘शनि ग्रह’ की एक दिन की अवधि के संबंध में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है तथा इस बारे में दी जाने वाली जानकारियाँ प्रायः गलत साबित हुई हैं।

मुख्य बिंदु

  • किसी खगोलीय पिंड द्वारा अपने अक्ष पर एक घूर्णन पूर्ण करने में लगने वाले समय को एक दिन कहा जाता है। पृथ्वी पर एक दिन 23 घंटे 56 मिनट का होता है।
  • वैज्ञानिक अन्य ग्रहों की एक दिन की अवधि की गणना के लिये पृथ्वी के एक दिन की अवधि को आधार के तौर पर प्रयोग करते हैं। इस मानक के प्रयोग से ग्रहों पर दिन की अवधि की गणना स्पष्ट तौर पर की जा सकती है।

सारणी में सौरमंडल के विभिन्न ग्रहों की एक दिन की अवधि को दर्शाया गया है।

ग्रह बुध शुक्र पृथ्वी मंगल बृहस्पति शनि अरुण वरुण
दिन की अवधि 58.6 दिन 243 दिन 23 घं. 56 मि. 24 घं 37 मि. 9 घं. 55 मि. 10 घं. 33 मि. 17 घं. 14 मि. 15 घं. 57 मि.

शुक्र ग्रह का घूर्णन

  • इस ग्रह की स्थिति अन्य ग्रहों से भिन्न है। इसकी सतह का अधिकांश हिस्सा बादलों से आच्छादित रहता है जिसकी वजह से इस पर उपस्थित भू-आकृतियों (क्रेटर या उच्चावच्च भूमि) को देखना मुश्किल होता है। ये भू-आकृतियाँ ग्रहों के घूर्णन को मापने के लिये एक आधार बिंदु (Reference Point) का कार्य करती हैं।
  • 1963 में राडार द्वारा किये गए सर्वेक्षणों से ज्ञात हुआ कि शुक्र ग्रह के घूर्णन की दिशा अन्य ग्रहों के घूर्णन की दिशा के विपरीत है। तत्कालीन सर्वेक्षणों से पता चला कि शुक्र पर एक दिन की अवधि पृथ्वी के 243 दिनों (5832 घंटे) के बराबर है।
  • 1991 में ‘मैगलन स्पेसक्राफ्ट’ द्वारा किये गए अध्ययन से ज्ञात हुआ कि शुक्र का वास्तविक घूर्णन काल 243.0185 दिन है जिसमें लगभग 9 सेकंड की अनिश्चितता पाई गई।
  • वैज्ञानिकों द्वारा 1988 से 2017 के बीच पृथ्वी से किये गए राडार पर्यवेक्षणों से शुक्र की सतह पर उपस्थित भू-आकृतियों की पहचान की गई तथा उसके आधार पर अक्षांशीय रेखाओं का निर्माण किया गया। इससे शुक्र के घूर्णन की दर को मापना आसान हुआ है।
  • वर्तमान शोधों के अनुसार, शुक्र का घूर्णन काल 243.212 दिन है जिसमें 0.00006 सेकंड की अनिश्चितता पाई गई तथा यह माना जा रहा है कि इसमें भी आने वाले कुछ दशकों में बदलाव हो सकता है।

शनि ग्रह का घूर्णन

  • बृहस्पति की भाँति यह भी एक विशाल गैसीय पिंड है तथा इसकी कोई ऊपरी ठोस सतह नहीं है। हालाँकि इसका कोर ठोस स्थिति में है परंतु इसकी बाहरी परत हाइड्रोजन, हीलियम तथा धूल कणों का मिश्रण है। यद्यपि बृहस्पति में घूर्णन अवधि की गणना उससे उत्सर्जित होने वाले रेडियो सिग्नलों की सहायता से की जाती है। इसके विपरीत शनि ग्रह से उत्सर्जित होने वाले रेडियो सिग्नल की आवृत्ति कम होती है जो पृथ्वी के वायुमंडल को भेद नहीं पाते इसकी वजह से इसके घूर्णन अवधि की गणना करना एक चुनौती रहा है।
  • 1980 व 1981 में क्रमशः भेजे गए अंतरिक्ष मिशन वोयेगर-1 तथा वोयेगर-2 से प्राप्त आंकड़ों से ही पहली बार पता चल सका कि शनि ग्रह पर एक दिन की अवधि लगभग 10 घंटे 40 मिनट की है।
  • 23 वर्षों के बाद कैसिनी स्पेसक्राफ्ट द्वारा भेजे गए आंकड़ों से पता चला कि शुक्र के घूर्णन काल में 6 मिनट की वृद्धि हुई है परंतु अनुमान के आधार पर इतनी वृद्धि में करोड़ों वर्ष लग सकते हैं।
  • शनि ग्रह पृथ्वी के समान ही अपने अक्ष पर झुका हुआ है जिसकी वजह से वहाँ ऋतु परिवर्तन होता है। ऋतुओं के आधार पर इसके उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरणों की प्राप्ति भी अलग-अलग होती है। यह शनि के वायुमंडल के किनारों पर उपस्थित प्लाज़्मा को प्रभावित करता है जो इसके वायुमंडल की विभिन्न परतों के बीच में घर्षण पैदा करता है।
  • शुक्र के वायुमंडल की ऊपरी परत और निचली परत में घूर्णन की रफ़्तार एक समान होती है परंतु उनके बीच के घर्षण की वजह से ऊपरी परत को घूर्णन करने में अधिक समय लगता है।
  • अतः निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि अंतरिक्ष मिशनों द्वारा पर्यवेक्षित शनि की घूर्णन अवधि उसके कोर की न होकर उसकी बाहरी परतों की है जो स्थिर नहीं है तथा रेडियो सिग्नल के प्रयोग से इसकी घूर्णन अवधि की स्पष्ट जानकारी नहीं मिल सकती।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


नाविक का व्यवसायीकरण

प्रीलिम्स के लिये:

नाविक के प्रयोग, क्रियाविधि

मेन्स के लिये:

नाविक के प्रयोग, क्रियाविधि तथा संबंधित मुद्दे

संदर्भ:

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और उसकी वाणिज्यिक शाखा एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड नाविक के व्यवसायीकरण (Commercialised) की ओर अग्रसर है।

  • नाविक के लिये समर्पित हार्डवेयर आधारित सिस्टम विकसित करने के उद्देश्य से एंट्रिक्स (Antrix) ने उद्योगों की पहचान के लिये दो अलग-अलग निविदाएँ (Tenders) जारी की है।
  • एंट्रिक्स वर्तमान में नाविक प्रणाली के उपकरण (Device) और सिस्टम के लिये कुशल निर्माताओं की पहचान कर रही है।
  • इस प्रकार की पहल में दो अलग-अलग निविदाएँ जारी करने का उद्देश्य वित्तीय स्थिरता और कार्य की उत्कृष्टता सुनिश्चित करना है।

इस क्षेत्र की वर्तमान स्थिति:

  • सेमीकंडक्टर चिप (Semiconductor Chip) की एक प्रमुख उत्पादक कंपनी क्वालकॉम टेक्नोलॉजीज (Qualcomm Technologies) द्वारा नाविक के विकसित एक चिपसेट का सफल परीक्षण किया गया।
  • इस कंपनी के चिप जीपीएस, गैलीलियो (यूरोप), ग्लोनास (रूस) और बीडाउ (चीन) जैसे वैश्विक नौवहन सैटेलाइट प्रणालियों में कार्य कर सकते हैं।

नाविक:

  • नाविक- NavIC (Navigation in Indian Constellation) आठ उपग्रहों की क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह आधारित स्वदेशी प्रणाली है जो अमेरिका के जीपीएस की तरह कार्य करती है।
  • 12 अप्रैल को पीएसएलवी-सी41 (PSLV-C41) के माध्यम से श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organization-ISRO) द्वारा IRNSS-1 (Indian Regional Navigation Satellite System-1) नौवहन (Navigation) उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया गया था।
  • इसके माध्यम से स्थानीय स्थिति (Indigenous Positioning) या स्थान आधारित सेवा (Location Based Service- LBS) जैसी सुविधाएँ प्रदान की जा रही है। यह भारतीय उपमहाद्वीप पर 1,500 किलोमीटर के दायरे को कवर करता है।

NavIC की कार्यप्रणाली:

  • NavIC के उपग्रह दो माइक्रोवेव फ्रीक्वेंसी बैंड पर सिग्नल देते हैं, जो L5 और S के नाम से जाने जाते हैं।
  • यह स्टैंडर्ड पोज़ीशनिंग सर्विस तथा रिस्ट्रिक्टेड सर्विस की सुविधा प्रदान करता है।
  • इसकी 'रिस्ट्रिक्टेड सर्विस' सेना तथा महत्त्वपूर्ण सरकारी कार्यालयों के लिये सुविधाएँ प्रदान करने का काम करती है।

उपयोग:

  • इसका प्रयोग परिवहन साधनों में किया जा सकता है ताकि वाहनों को ट्रैक किया जा सके, साथ ही दुर्घटना इत्यादि जैसी अप्रत्याशित घटनाओं का शीध्रता से पता चल सके।
  • इसका उपयोग मछली पकड़ने वाली नौकाओं में भी किया जा रहा है।
  • इसके अतिरिक्त सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने पिछले वर्ष आदेश दिया था कि सभी राष्ट्रीय-परमिट वाले वाहनों में ट्रैकिंग उपकरण होने चाहिये।
  • स्थलीय, हवाई और समुद्री नौवहन; आपदा प्रबंधन; मोबाइल फोन के साथ एकीकरण; सटीक समय (एटीएम और पावर ग्रिड के लिये); मैपिंग एंड जियोडेटिक डेटा कैप्चर (Mapping and Geodetic Data Capture) एवं यात्रियों के लिये स्थलीय नौवहन सहायता के रूप में इसका उपयोग किया जा सकता है।

एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड

(Antrix Corporation Ltd)

  • यह भारत सरकार की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी है, जिसका प्रशासनिक नियंत्रण अंतरिक्ष विभाग, भारत सरकार के पास है।
  • एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड को सितंबर 1992 में अंतरिक्ष उत्पादों, तकनीकी परामर्श सेवाओं और इसरो द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों के वाणिज्यिक दोहन व प्रचार प्रसार के लिये सरकार के स्वामित्व वाली एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में स्थापित किया गया था।
  • इसका एक अन्य प्रमुख उद्देश्य भारत में अंतरिक्ष से संबंधित औद्योगिक क्षमताओं के विकास को आगे बढ़ाना है।
  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की वाणिज्यिक एवं विपणन शाखा के रूप में एंट्रिक्स पूरे विश्व में अपने अंतर्राष्ट्रीय ग्राहकों को अंतरिक्ष उत्पाद और सेवाएँ उपलब्ध करा रही है।

स्रोत: द हिंदू