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डेली न्यूज़

  • 04 Jun, 2019
  • 37 min read
विविध

चिकन के जीन की एडिटिंग

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक प्रयोगशाला में विकसित चूज़े/चिकन की कोशिकाओं में बर्ड फ्लू (Bird flu) को रोकने के लिये जीन-एडिटिंग तकनीक (Gene-Editing Techniques) का उपयोग किया।

बर्ड फ्लू (Bird flu)

  • इसे बर्ड फ्लू/पक्षी इन्फ्लूएंजा/एविय के नाम से जाना जाता है।
  • एवियन इन्फ्लूएंजा (Avian Influenza) एक विषाणु जनित रोग है।
  • यह विषाणु जिसे इन्फ्लूएंजा ए (Influenza- A) या टाइप ए (Type- A) विषाणु कहते है, सामान्यतः पक्षियों में पाया जाता है, लेकिन कभी-कभी यह मानव सहित अन्य कई स्तनधारिओं को भी संक्रमित कर सकता है। जब यह मानव को संक्रमित करता है तो इसे इन्फ्लूएंजा (श्लेष्मिक ज्वर) कहा जाता है।
  • ‘H5N1’ बर्ड फ्लू का सामान्य रूप है।

जीन-एडिटिंग तकनीक

(Gene-Editing Techniques)

  • जीन एडिटिंग या जीनोम एडिटिंग तकनीक के अंतर्गत किसी जीव या कोशिका के जीनोम में किसी विशिष्ट स्थान पर डी.एन.ए. को प्रविष्ट, विलोपित, प्रतिस्थापित कर दिया जाता है।
  • इसके लिये इंजीनियर्ड न्युक्लिएज़ों (Engineered nucleases) या ’आणविक कैंची’ (Molecular Scissors) का उपयोग किया जाता है।
  • ये न्युक्लिएज़ या एंजाइम इच्छित स्थानों पर उस जगह की विशेषता के अनुसार कार्य करते हुए वांछित परिणाम देते हैं।

उद्देश्य

  • इस तकनीक का मुख्य उद्देश्य चिकन को आनुवंशिक रूप से परिवर्तित कर बर्ड फ्लू को नियंत्रित करना तथा मानव में होने वाली महामारी को रोकना है।

प्रमुख बिंदु

  • बर्ड फ्लू के वायरस वर्तमान में जंगली पक्षियों और मुर्गों में तेज़ी से फैलते हैं और कई बार मनुष्यों में अचानक प्रवेश कर सकते हैं।
  • वैश्विक स्वास्थ्य और संक्रामक रोग विशेषज्ञों ने इसे अपनी सबसे बड़ी चिंताओं में से एक के रूप में उद्धत किया है।
  • बर्ड फ्लू के कारण होने वाली ‘मानव फ्लू महामारी’ की आशंका जो अचानक ही मनुष्यों के लिये घातक तथा जानलेवा हो सकता है आसानी से लोगों के बीच प्रवेश कर सकता है।
  • इंपीरियल कॉलेज लंदन और यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के रोज़लिन इंस्टीट्यूट के शोधकर्त्ताओं ने जीन-एडिटिंग के माध्यम से चिकन की कोशिकाओं में बर्ड फ्लू के वायरस का पता लगाकर उनकी प्रतिकृति बनाने से रोकने में सफलता प्राप्त की है।

वायरस की रोकथाम

  • वैज्ञानिकों के अनुसार, जीन एडिटिंग तकनीक जो कि क्रिस्पर/Cas9 तकनीक (CRISPR Technology) के रूप में जाना जाता है, का उपयोग करके पक्षियों में पाए जाने वाले विशेष प्रोटीन को बाहर कर डेटा है, जिसकी वजह से ही सभी फ्लू वायरस मेजबान/होस्ट को संक्रमित करते हैं।

क्रिस्पर/ Cas9 तकनीक

  • क्रिस्पर/कैस 9 (CRISPR-Cas9) एक ऐसी तकनीक है जो वैज्ञानिकों को अनिवार्य रूप से डीएनए काटने और जोड़ने की अनुमति देती है, जिससे रोग के लिये आनुवंशिक सुधार की उम्मीद बढ़ जाती है।
  • क्रिस्पर (Clustered Regualarly Interspaced Short Palindromic Repeats) डीएनए के हिस्से हैं, जबकि कैस-9 (CRISPR-ASSOCIATED PROTEIN9-Cas9) एक एंजाइम है। हालाँकि इसके साथ सुरक्षा और नैतिकता से संबंधित चिंताएँ जुड़ी हुई हैं।

महामारी का प्रकोप

  • वर्ष 2009-10 में H1N1 वायरस के कारण होने वाली फ्लू महामारी में दुनिया भर से लगभग आधे मिलियन लोगों की मृत्यु हुई थी।
  • वर्ष 1918 में स्पेनिश फ्लू में लगभग 50 मिलियन लोग मारे गए।

स्वाइन फ्लू (Swine Flu)

  • स्वाइन फ्लू इन्फ्लूएंजा टाइप A वायरस का ही दूसरा नाम है जो सूअरों (स्वाइन) को प्रभावित करता है। हालाँकि स्वाइन फ्लू आमतौर पर मनुष्यों को प्रभावित नहीं करता है, लेकिन वर्ष 2009-2010 में इसने एक वैश्विक प्रकोप (महामारी) का रूप धारण कर लिया था, तब 40 वर्षों से अधिक समय के बाद फ्लू के रूप में कोई महामारी पूरी दुनिया में फैली थी।
  • यह H1N1 नामक फ्लू वायरस के कारण होता है। H1N1 एक प्रकार का संक्रामक वायरस है, यह सूअर, पक्षी और मानव जीन का एक संयोजन है, जो सूअरों में एक साथ मिश्रित होते हैं और मनुष्यों तक फैल जाते हैं।
  • H1N1 एक प्रकार से श्वसन संबंधी बीमारी का कारण बनता है जो कि बहुत संक्रामक होता है।
  • H1N1 संक्रमण को स्वाइन फ्लू के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि अतीत में यह उन्हीं लोगों को होता था जो सूअरों के सीधे संपर्क में आते थे।
  • H1N1 की तीन श्रेणियाँ हैं - A, B और C
  • A और B श्रेणियों को घरेलू देखभाल की आवश्यकता होती है, जबकि श्रेणी C में तत्काल अस्पताल में भर्ती कराने और चिकित्सा की आवश्यकता होती है क्योंकि इसके लक्षण और परिणाम बेहद गंभीर होते हैं और इससे मृत्यु भी हो सकती है।

आगे की राह

  • यह एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है जिससे भविष्य में जीन-एडिटिंग तकनीकों का उपयोग करके बर्ड फ्लू के प्रतिरोधी चिकन/मुर्गियों का उत्पादन किया जा सकेगा।
  • इस तकनीक का प्रयोग भविष्य में अन्य पक्षियों पर भी किया जा सकेगा।

स्रोत- द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में मुद्रास्फीति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय (Ministry of Labour and Employment) ने औद्योगिक श्रमिकों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक [Consumer Price Index: Industrial Labour (CPI:IW)] जारी किया।

भारत में मुद्रास्फीति की माप

थोकमूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index-WPI)

  • यह भारत में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला मुद्रास्फीति संकेतक (Inflation Indicator) है।
  • इसे वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) के आर्थिक सलाहकार (Office of Economic Adviser) के कार्यालय द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
  • इसमें घरेलू बाज़ार में थोक बिक्री के पहले बिंदु किये जाने-वाले (First point of bulk sale) सभी लेन-देन शामिल होते हैं।
  • इस सूचकांक की सबसे प्रमुख आलोचना यह है कि आम जनता थोक मूल्य पर उत्पाद नहीं खरीदती है।
  • वर्ष 2017 में अखिल भारतीय WPI के लिये आधार वर्ष 2004-05 से संशोधित कर 2011-12 कर दिया गया है।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index-CPI)

  • यह खुदरा खरीदार के दृष्टिकोण से मूल्य परिवर्तन को मापता है।
  • यह चयनित वस्तुओं और सेवाओं के खुदरा मूल्यों के स्तर में समय के साथ बदलाव को मापता है, जिस पर एक परिभाषित समूह के उपभोक्ता अपनी आय खर्च करते हैं।
  • CPI के चार प्रकार निम्नलिखित हैं:

1. औद्योगिक श्रमिकों (Industrial Workers-IW) के लिये CPI 
2. कृषि मज़दूर (Agricultural Labourer-AL) के लिये CPI
3. ग्रामीण मज़दूर (Rural Labourer-RL) के लिये CPI
4. CPI (ग्रामीण/शहरी/संयुक्त)

  • इनमें से प्रथम तीन को श्रम और रोज़गार मंत्रालय में श्रम ब्यूरो (labor Bureau) द्वारा संकलित किया गया है। जबकि चौथे प्रकार की CPI को सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation) के अंतर्गत केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Statistical Organisation-CSO) द्वारा संकलित किया जाता है।
  • CPI का आधार वर्ष 2012 है।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक बनाम थोक मूल्य सूचकांक

  • थोक मूल्य सूचकांक (WPI) का उपयोग थोक स्तर पर वस्तुओं की कीमतों का पता लगाने के लिये किया जाता है। अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन को मापना या पता लगाना वास्तव में असंभव है। इसलिये थोक मूल्य सूचकांक में एक नमूने को लेकर मुद्रास्फीति को मापा जाता है। इसके पश्चात् एक आधार वर्ष तय किया जाता है जिसके सापेक्ष में वर्तमान मुद्रास्फीति को मापा जाता है।
  • भारत में थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर महँगाई की गणना की जाती है।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में मुद्रास्फीति की माप खुदरा स्तर पर की जाती है जिसमें उपभोक्ता प्रत्यक्ष रूप से जुड़े रहते हैं। यह पद्वति आम उपभोक्ता पर मुद्रास्फीति के प्रभाव को बेहतर तरीके से मापती है।
  • WPI, आधारित मुद्रास्फीति की माप उत्पादक स्तर पर की जाती है जबकि और CPI के तहत उपभोक्ता स्तर पर कीमतों में परिवर्तन की माप की जाती है।
  • दोनों बास्केट व्यापक अर्थव्यवस्था के भीतर मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति (मूल्य संकेतों की गति) को मापते हैं, दोनों सूचकांक अलग-अलग होते हैं जिसमें भोजन, ईंधन और निर्मित वस्तुओं का भारांक (Weitage) निर्धारित किया गया है।
  • WPI सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन को शामिल नहीं करता है, जबकि CPI में सेवाओं की कीमतों को शामिल किया जाता है।
  • अप्रैल 2014 में, RBI ने मुद्रास्फीति के प्रमुख मापक के रूप में CPI को अपनाया था।

स्रोत: पी.आई.बी. एवं टीम दृष्टि इनपुट


सामाजिक न्याय

स्तन कैंसर के इलाज में बड़ी उपलब्धि

चर्चा में क्यों?

हाल ही में टेक्सास विश्वविद्यालय के एमडी एंडरसन कैंसर सेंटर (University of Texas MD Anderson Cancer Center) के शोधकर्त्ताओं के एक समूह ने राइबोसिक्लिब (Ribociclib) नामक दवा पर पर एक अध्ययन किया। यह दवा स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाओं (अपेक्षाकृत युवा महिलाओं) की हार्मोन थेरेपी में काफी उपयोगी मानी जा रही है।

  • इस अध्ययन में 40-50 वर्ष की महिलाओं को शामिल किया गया जो हार्मोन रिसेप्टर पॉजिटिव (Hormone Receptor-Positive/ HR+) स्तन कैंसर और ह्यूमन एपिडर्मल रिसेप्टर 2 नेगेटिव (Human Epidermal Receptor 2- Negative/‘HER2-’) बीमारी से पीड़ित थी।
  • HR+कैंसर में ट्यूमर शामिल होता है जो हार्मोन को अवरुद्ध करने के उद्देश्य से एंटी-एस्ट्रोजन (अंतःस्रावी) के उपचार के लिये ग्राह्य होते हैं जबकि ‘HER2-’ का अर्थ है कि रोगी में इस नाम के प्रोटीन की कमी हो जाती है।

अध्ययन का निष्कर्ष

  • हाल के दशकों में महिलाओं में स्तन कैंसर के मामलों में भारी वृद्धि हुई है, जिसमें सबसे ज़्यादा आक्रामक वृद्धि कम उम्र की महिलाओं में देखने को मिली है।
  • भारत में महत्त्व
    • अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में लगभग 35% रोगियों में ‘HR+’ स्तन कैंसर और ‘HER2-’ बीमारी का निदान किया जाता है जिनकी उम्र 40 वर्ष से भी कम है।
  • भारत में स्थिति
    • प्रत्येक 28 भारतीय महिलाओं में से एक (शहरी क्षेत्रों में प्रत्येक 22 महिलाओं में से 1, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक 60 महिलाओं में से 1) में स्तन कैंसर विकसित होने की संभावना है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, महिलाओं में सबसे अधिक स्तन कैंसर की समस्या सामने आती है, प्रत्येक वर्ष 2.1 मिलियन महिलाएँ स्तन कैंसर से प्रभावित होती हैं।
    • वर्ष 2018 में 6,27,000 (15%) महिलाओं की स्तन कैंसर से मृत्यु हुई।
    • भारत में महिलाओं में सभी प्रकार के कैंसर में से स्तन कैंसर का प्रतिशत 14% है।

भारत में कैंसर के दवा की स्वीकार्यता

  • भारत में खाद्य और औषधि प्रशासन (Food and Drug Administration) ने वर्ष 2017 में इस दवा को पोस्टमेनोपॉज़ल महिलाओं के इलाज के लिये अनुमोदित किया था। वर्ष 2018 में कम उम्र की महिलाओं के लिये भी इस दवा के इस्तेमाल को स्वीकार्यता दे दी गई। तब से कई निज़ी अस्पतालों में इसका उपयोग किया जा रहा है।
  • हालाँकि यह दवा सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध नहीं है। लेकिन उक्त परीक्षण के सकारात्मक परिणाम से अब सरकारी अस्पतालों में यह उपलब्ध हो सकेगी।
  • वर्तमान में ‘HR+’ स्तन कैंसर और ‘HER2-’ बीमारी से पीड़ित महिलाओं के लिये तीन प्रकार की दवाएँ उपलब्ध हैं: CDK4/6- राइबोसिक्लिब (Ribociclib), पैलोबिक्लिब (Palbociclib) और अबेमासिक्लिब (Abemaciclib)।

राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण

National Pharmaceutical Pricing Authority (NPPA)

  • हाल ही में एनपीपीए द्वारा डीपीसीओ [Drugs (Prices Control) Order –DPCO], 2013 के तहत अनुसूची एक में निहित आवश्यक दवाओं के अधिकतम मूल्य वाले प्रावधान को संशोधित किया गया है।
  • उन दवाओं के संदर्भ में जो कि कीमत नियंत्रण के अधीन नहीं हैं, निर्माताओं को अधिकतम खुदरा मूल्य 10% सालाना बढ़ाने की अनुमति दी गई है।
  • NPPA भारत सरकार का एक संगठन है जिसे थोक दवाओं और फॉर्मूलों की कीमतों को व्यवस्थित करने/संशोधित करने और दवा (मूल्य नियंत्रण) आदेश, 1995 के तहत देश में दवाइयों की कीमतों और इनकी उपलब्धता को बनाए रखने के लिये स्थापित किया गया था।

प्रमुख कार्य

  • इसका कार्य दवा (मूल्य नियंत्रण) आदेश के प्रावधानों को कार्यान्वित करना और उन्हें लागू करना है।
  • प्राधिकरण के निर्णय से उत्पन्न सभी कानूनी मामलों का निपटान करना।
  • दवाओं की उपलब्धता पर नज़र रखना, दवाओं की कमी की स्थिति का अवलोकन करना तथा आवश्यक कदम उठाना। थोक दवाओं और फॉर्मूलों के उत्पादन, निर्यात और आयात, कंपनियों की बाज़ार में हिस्सेदारी, मुनाफे आदि के संबंध में आँकड़ों को एकत्रित करना/व्यवस्थित करना।
  • दवाओं/फार्मास्यूटिकल्स के मूल्य निर्धारण के संबंध में संबंधित अध्ययनों को आयोजित करना।
  • सरकार द्वारा निर्धारित नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य सदस्यों की भर्ती/नियुक्ति करना।
  • दवा नीति में परिवर्तन/संशोधन पर केंद्र सरकार को सलाह देना।
  • नशीली दवाओं के मूल्य से संबंधित संसदीय मामलों में केंद्र सरकार को सहायता प्रदान करना।

अति उच्च लागत

  • स्तन कैंसर के उपचार हेतु प्रयुक्त दवा अत्यंत महंगी होती है जिसका खर्च उठा पाना प्रत्येक रोगी के लिये संभव नहीं होता है। दवा की लागत लगभग 50,000-60,000 रुपए प्रति माह है जिसकी आवश्यकता अलग अलग रोगियों में अलग अलग होती है।
  • हाल ही में नेशनल फार्मास्यूटिकल एंड प्राइसिंग अथॉरिटी (National Pharmaceutical and Pricing Authority) ने विभिन्न प्रकार के कैंसरों के इलाज के लिये इस्तेमाल की जाने वाली 42 दवाओं की कीमतों में कटौती की है जिसमें राइबोसिक्लिब भी शामिल है।

दवा विनिर्माण कंपनियों को विभिन्न श्रेणियों से संबंधित रोगियों को आवश्यक दवा उपलब्ध कराने के उपायों के बारे में विचार करना चाहिये ताकि सभी के लिये कम कीमतों पर इनकी उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकें। इसके अलावा भारत सरकार द्वारा प्रत्यक्ष हस्तक्षेप के माध्यम से महंगी दवाओं तक सामान्य लोगों की पहुँच सुनिश्चित किये जाने का भी प्रयास किया जाना चाहिये।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

ड्राफ्ट कॉपीराइट संशोधन नियम, 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) ने ड्राफ्ट कॉपीराइट (संशोधन नियम), 2019 जारी किया।

  • डिजिटल युग में टेक्‍नोलॉजी की प्रगति को देखते हुए कॉपीराइट अधिनियम का सहज और दोषरहित परिपालन सुनिश्चित करने और कानून को प्रासंगिक विधानों के समकक्ष लाने के लिये भारत सरकार के उद्योग तथा आतंरिक व्‍यापार संवर्द्धन विभाग ने कॉपीराइट संशोधन नियम, 2019 को लागू करने का प्रस्‍ताव किया है।
  • भारत में कॉपीराइट शासन, कॉपीराइट अधिनियम, 1957 और कॉपीराइट नियम, 2013 द्वारा शासित है।
  • कॉपीराइट नियम, 2013 को पिछली बार वर्ष 2016 में कॉपीराइट नियम, 2016 के माध्यम से संशोधित किया गया था।

ड्राफ्ट नियमों में प्रस्ताव

  • कॉपीराइट बोर्ड (Copyright Board) को बदलने के लिये एक अपीलीय बोर्ड (Appellate Board) का गठन किया जाएगा।
  • बोर्ड के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति ट्रेड मार्क अधिनियम, 1999 (Trade Marks Act, 1999) के प्रावधानों के अनुसार की जाएगी।
  • यह उन तरीकों को भी संशोधित करने का प्रस्ताव करता है जिसकी सहायता से कॉपीराइट सोसायटी (Copyright Societies) अपनी टैरिफ योजनाओं (Tariff Schemes) को सुनिश्चित करती हैं।
  • कॉपीराइट सोसायटी एक कानूनी निकाय है जो वाणिज्यिक प्रबंधन के रचनात्मक लेखकों को उनके हितों की सुरक्षा का आश्वासन है।
  • ये सोसाइटी लाइसेंस जारी करती हैं और टैरिफ स्कीम के अनुसार रॉयल्टी जमा करती हैं।
  • DPIIT ने संशोधनों में प्रस्ताव दिया है कि कॉपीराइट सोसायटी टैरिफ का निर्धारण करते समय “क्रॉस-सेक्शनल टैरिफ तुलना’, आर्थिक अनुसंधान, लेखन के उपयोग की प्रकृति और विस्तार, उपयोग संबंधी अधिकारों का व्यावसायिक मूल्य एवं लाइसेंस धारियों को लाभ" आदि पहलुओं पर विचार कर सकती है।

प्रस्तावित संशोधनों अनुसार, कॉपीराइट सोसायटी द्वारा अपनी वेबसाइट पर प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिये ‘वार्षिक पारदर्शिता रिपोर्ट’ (The Annual Transparency) प्रकाशन अनिवार्य किया जाना चाहिये।

स्रोत- PIB


भारतीय अर्थव्यवस्था

डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिये सिफारिशें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने डिज़िटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिये गठित उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट जारी की है। इन्फोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि की अध्यक्षता में गठित इस समिति ने कारोबारियों, धारकों और ग्राहकों हेतु लागत घटाने एवं इसकी स्वीकार्यता से जुड़े बुनियादी ढाँचे का विस्तार करने की सिफारिश की है ताकि देश के डिजिटल वित्तीय समावेशन में सुधार किया जा सके।

समिति की सिफारिशें

  • समिति के अनुसार, डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिये सरकार को किये गए किसी भी डिजिटल भुगतान पर लगने वाले शुल्क को हटाना चाहिये।
    • राज्य द्वारा संचालित संस्थाओं और केंद्रीय विभागों को किये गए डिजिटल भुगतान के लिये उपभोक्ताओं पर कोई सुविधा शुल्क नहीं होना चाहिये।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India) और सरकार को मिलकर डिजिटल भुगतान व्यवस्था की निगरानी के लिये एक उचित व्यवस्था स्थापित करनी चाहिये।
  • डिजिटल फाइनेंशियल इनक्लूज़न इंड़ेक्स
    • इसके साथ ही समिति ने यह भी कहा है कि एक डिजिटल फाइनेंशियल इनक्लूज़न इंड़ेक्स (Digital Financial Inclusion Index) भी तैयार किया जा सकता है, जिससे कि सामान्य पैमाने के साथ-साथ किसी क्षेत्र विशेष में होने वाली प्रगति के बारे में भी जानकारी हासिल की जा सके और असंतुलन की स्थिति में सुधार के लिये उचित कदम उठाए जा सकें।
  • मर्चेंट डिस्काउंट रेट (MDR)
    • समिति की सिफारिशों के अनुसार, मर्चेंट डिस्काउंट रेट को कम किया जाना चाहिये।

क्या है MDR?

  • मर्चेंट डिस्काउंट रेट (Merchant Discount Rate- MDR) वह शुल्क है, जो कार्ड से भुगतान स्वीकार करने वाले व्यापारी बैंक को चुकाते हैं।
  • मास्टरकार्ड, वीज़ा जैसा पेमेंट गेटवे और पॉइंट ऑफ सेल/कार्ड स्वाइप मशीन ज़ारी करने वाले बैंकों को MDR में मुआवज़ा/छूट प्राप्त होता है।
  • इसे बैंक और व्यापारी के बीच एक पूर्व निर्धारित अनुपात में साझा किया जाता है एवं लेन-देन के प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।

डिजिटल भुगतान पर MDR का प्रभाव

  • बैंक ज़्यादा-से-ज़्यादा पॉइंट ऑफ सेल (PoS)/कार्ड स्वाइप मशीन जारी करना चाहते हैं किंतु छोटे व्यापारियों के लिये पॉइंट ऑफ सेल/कार्ड स्वाइप मशीन रखना ज़्यादा खर्चीला है क्योंकि उन्हें बैंकों को MDR के रूप में एक निश्चित राशि का भुगतान करना पड़ता है, जबकि नकद लेन-देन में ऐसी किसी राशि का भुगतान नहीं करना पड़ता है।
  • समिति ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिये ‘डिजिटल लेन-देन’ पर वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) को कम करने की सिफारिश की है।

कुछ अन्य सिफारिशें

  • ध्यातव्य है कि देश में डिजिटल भुगतान के माहौल में उल्लेखनीय प्रगति हुई है इसलिये वर्तमान समय में मांग या स्वीकार्यता के पक्ष में वातावरण तैयार किया जाना चाहिये।
  • समिति के अनुसार, नकदी का इस्तेमाल आसान होने, सार्वभौमिक स्वीकार्यता और उपलब्धता, ग्राहकों पर कम लागत तथा KYC की ज़रूरत न होने की इसमें अहम भूमिका है।
  • समिति ने यह पाया कि भुगतान में सबसे बड़ी साझेदारी सरकार की होती है, ऐसे में भुगतान के डिजिटलीकरण में सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए पहल की जानी चाहिये।
  • वर्तमान स्थिति को दर्शाते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी भी नकदी का दबदबा है, क्योंकि डिजिटल भुगतान की स्वीकार्यता का माहौल नहीं है और यह अल्पविकसित है।
  • समिति ने कहा है कि डिजिटल क्रेडिट और डिजिटल डेबिट के बीच अंतर को कम किया जाना चाहिये।
  • समिति ने रीयल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS) और नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT) जैसी प्रणालियों में भी उचित सुधार लाने की सिफारिशें की है।

नीलेकणि समिति

  • जनवरी, 2019 में RBI ने नीलेकणि की अध्यक्षता में इस पाँच सदस्यीय समिति का गठन किया था।
  • इस समिति का मुख्य उद्देश्य देश में डिजिटलीकरण के ज़रिये वित्तीय समावेशन तथा और डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के संबंध में परामर्श देना था।

रीयल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट

  • भारतीय रीयल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (Real Time Gross Settlement- 'RTGS') एक इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली है जिसमें बैंकों के बीच भुगतान निर्देश दिन भर में (रियल टाइम आधार पर) व्यक्तिगत रूप से और लगातार संसाधित (Processed) होते है।
  • यह सुविधा 2 लाख रुपए या उससे ज़्यादा की राशि के लेन-देन हेतु उपलब्ध है। देश के उच्च मूल्य लेन-देन वाले 95% भुगतान इसी प्रणाली के माध्यम से किये जाते हैं।

नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड्स ट्रांसफर

  • नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (National Electronic Funds Transfer-NEFT) देश के प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक धन हस्तांतरण प्रणालियों में से एक है। इसकी शुरुआत नवंबर 2005 में की गई थी।

कैशलेस अर्थव्यवस्था: एक अवलोकन

स्रोत- बिज़नेस स्टैण्डर्ड


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (04 June)

  • भारत सरकार की सलाह पर भारतीय रिजर्व बैंक ने सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड (SGB) स्कीम 2019-20 लॉन्च की है। RBI ने वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए SGB योजना की तारीखें, नियम और शर्ते जारी कर दिये हैं। SGB योजना निवेशकों के लिए इस साल चार सीरीज़ में पेश की जाएगी। SGB योजना जून 2019 से सितंबर 2019 तक हर महीने जारी किए जाएंगे। आपको बता दें कि देश में सोने की मांग में कमी लाने तथा घरेलू बचत के लिए सोना खरीदने वाले लोगों को वित्तीय बचत में शामिल करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने यह योजना शुरू की है। इस योजना से सोने के आयात पर सही तरीके से निगरानी रखने में आसानी होगी। यह योजना पूर्णतः पारदर्शी है तथा इसमें निवेश करने वालों का सोना पूरी तरह सुरक्षित रहेगा, साथ ही ब्याज के रूप में अतिरिक्त आय भी होगी। इस योजना को भारत सरकार ने 2015 के बजट में पेश किया था। 
  • केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया है। इसके साथ ही उनकी नियुक्ति एक बार फिर पाँच साल के लिए इस पद पर की गई है। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1968 बैच के IPS अधिकारी अजीत डोभाल को देश का पाँचवां राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया था। नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के अलावा रणनीतिक नीति समूह (Strategic Policy Group-SPG) का सचिव भी बनाया गया था। ज्ञातव्य है कि अजीत डोभाल 1988 में कीर्ति चक्र प्राप्त करने वाले पहले पुलिस अधिकारी हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का मुख्य कार्यकारी और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा पर भारत के प्रधानमंत्री का प्रमुख सलाहकार होता है। सर्वप्रथम इस पद को 1998 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी ने सृजित किया था।
  • पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने जल, थल और नभ में रहने वाले सभी जीव-जंतुओं को विधिक दर्जा प्रदान किया है। कोर्ट ने जीव-जंतुओं के पूरे साम्राज्य को मानव की तरह ही कानूनी अधिकार, कर्त्तव्य और जिम्मेदारियाँ दी हैं। कोर्ट ने हरियाणा सरकार और प्रशासन को पशुओं के खिलाफ क्रूरता निवारण अधिनियम को सख्ती से लागू करने के साथ पशुओं को लाने-ले जाने के लिए सीमा, शर्तें, नियम और मानदंडों का निर्धारण करने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं। गौरतलब है कि पिछले वर्ष जुलाई में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने हवा, पानी व धरती पर रहने वाले जीव-जंतुओं को विधिक दर्जा प्रदान करते हुए उत्तराखंड के नागरिकों को उनका संरक्षक घोषित कर दिया था। कोर्ट ने था कि जीव-जंतुओं के भी मानव की तरह अधिकार, कर्त्तव्य व ज़िम्मेदारियाँ हैं।
  • रिज़र्व बैंक 3 से 7 जून तक वित्तीय साक्षरता सप्ताह का आयोजन कर रहा है। जनसाधारण में वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा देने के लिये रिज़र्व बैंक जून के पहले सप्ताह को देशभर में वित्तीय साक्षरता सप्ताह के रूप में मनाता है। ग्राहकों के बैंकिंग संबंधी जोखिमों से बचाव और अधिकारों के प्रति उन्हें जागरूक करने के लिये रिज़र्व बैंक वर्ष 2016 से वित्तीय साक्षरता सप्ताह का आयोजन करता आ रहा है। वित्तीय साक्षरता सप्ताह रिज़र्व बैंक का एक वार्षिक अभियान है, जिसके माध्यम से प्रमुख विषयों पर जागरूकता को बढ़ावा देने की पहल की जाती है। इसके अलावा इस पहल का उद्देश्य वित्तीय उत्पादों और सेवाओं, अच्छी वित्तीय प्रथाओं, डिजिटल और उपभोक्ता संरक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करना है। इस बार इस दिवस की थीम और पंचलाइन ‘Farmers’ and how they benefit by being a part of the formal banking system रखी गई है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार गंगा नदी का पानी सीधे पीने यानी बिना शुद्ध किये पीने लायक नहीं है। CPCB द्वारा जारी नवीनतम आँकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक गंगा नदी का पानी पीने एवं नहाने के लिये ठीक नहीं है। CPCB ने एक मानचित्र जारी किया है जिसमें नदी में Coliform जीवाणु का स्तर बहुत बढ़ा हुआ दिखाया गया है। कुल 86 स्थानों पर स्थापित किये गए लाइव निरीक्षण केंद्रों में से केवल सात ऐसे स्थान पाए गए, जहाँ का पानी शुद्ध करने की प्रक्रिया के बाद पीने योग्य है, जबकि 78 स्थानों का पानी इस लायक नहीं पाया गया। नदी के पानी की गुणवत्ता को जाँचने के लिये देशभर में गंगा नदी घाटी में लाइव निरीक्षण केंद्रों की ओर से डेटा एकत्रित किया गया।
  • हेल्थ मैनेजमेंट इन्फॉर्मेशन सिस्टम ऑफ इंडिया के आँकड़ों पर आधारित एक नए अध्ययन से पता चला है कि पिछले करीब एक दशक में भारत में एनीमिया के गंभीर मामलों में 7.8 प्रतिशत की कमी आई है। फिर भी गंभीर रूप से एनीमिया से पीड़ित दुनिया के एक-चौथाई और दक्षिण एशिया के 75 प्रतिशत लोग भारत में रहते हैं। वर्ष 2008-09 में गंभीर एनीमिया के 11.3 प्रतिशत मामलों की तुलना में वर्ष 2017-18 में इसके 3.29 प्रतिशत मामले सामने आए हैं। विभिन्न राज्यों में भी गंभीर एनीमिया के मामलों में विविधता देखने को मिलती है। केरल, नगालैंड, हिमाचल प्रदेश और गोवा में गंभीर एनीमिया के केवल 2 प्रतिशत मामले देखे गए। बिहार में पिछले 10 वर्षों के अंतराल में गंभीर एनीमिया के मामले 10.6 प्रतिशत से कम होकर 3.1 प्रतिशत पर पहुँच गए। हरियाणा में भी यह आँकड़ा 12.3 प्रतिशत से गिरकर 4.9 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गया। इस अध्ययन में पता चला है कि गंभीर एनीमिया का स्तर आर्थिक रूप से बेहतर राज्यों, जैसे- तेलांगना (8-10%) और आंध्र प्रदेश में (6-8%) अधिक पाया गया है। ज्ञातव्य है कि पुरुषों में हीमोग्लोबिन का स्तर 13.5 और महिलाओं के मामले में 12 से कम होने पर शरीर में रक्ताल्पता की स्थिति मानी जाती है, जबकि हीमोग्लोबिन का स्तर 7 से कम होना गंभीर एनीमिया का मामला बनता है।

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