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डेली न्यूज़

  • 04 May, 2021
  • 36 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

कोर सेक्टर आउटपुट

चर्चा में क्यों?

फरवरी, 2021 में 3.8% की गिरावट के बाद मार्च 2021 (32 महीनों में उच्चतम) में आठ प्रमुख क्षेत्रों में वृद्धि दर्ज की गई है, लेकिन यह वृद्धि काफी हद तक मार्च 2020 से ‘बेस इफेक्ट’ के कारण मानी जा रही है।

  • वर्ष 2020-21 (अप्रैल-मार्च) के दौरान आठ क्षेत्रों के उत्पादन में 7% की गिरावट आई है, जबकि वर्ष 2019-20 में इसमें 0.4% की सकारात्मक वृद्धि हुई थी।

प्रमुख बिंदु:

आठ कोर क्षेत्र:

  • इनमें औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में शामिल वस्तुओं के कुल वेटेज का 40.27% शामिल है।
  • अपने वेटेज के घटते क्रम में आठ प्रमुख उद्योग क्षेत्र: रिफाइनरी उत्पाद> बिजली> स्टील> कोयला> कच्चा तेल> प्राकृतिक गैस> सीमेंट> उर्वरक।

बेस इफेक्ट:

  • ‘बेस इफेक्ट’ का आशय किसी दो डेटा बिंदुओं के बीच तुलना के परिणाम पर, तुलना के आधार या संदर्भ के प्रभाव से होता है।
  • उदाहरण के लिये, ‘बेस इफेक्ट’ मुद्रास्फीति दर या आर्थिक विकास दर जैसे आँकड़ों के अति एवं कम विस्तार के कारण हो सकता है, यह प्रायः तब होता है जब तुलना के लिये चुना गया बिंदु मौजूदा अवधि या समग्र डेटा के सापेक्ष असामान्य रूप से उच्च या निम्न मूल्य प्रदर्शित करता है।
  • मार्च 2021 में प्राकृतिक गैस, स्टील, सीमेंट और बिजली का उत्पादन 12.3%, 23%, 32.5% और 21.6% बढ़ा जो कि तुलनात्मक रूप से मार्च 2020 में क्रमशः (-) 15.1%, (-) 21.9%, (-) 25.1% और (-8.2) था।

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP):

  • IIP एक संकेतक है जो एक निश्चित अवधि के दौरान औद्योगिक उत्पादों के उत्पादन की मात्रा में बदलाव को मापता है।
  • यह सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा मासिक रूप से संकलित और प्रकाशित किया जाता है।
  • यह एक समग्र संकेतक है, जो कि निम्न रूप से वर्गीकृत किये गए उद्योग समूहों की वृद्धि दर को मापता है:
    • व्यापक क्षेत्र, अर्थात्-खनन, विनिर्माण और बिजली।
    • बेसिक गुड्स, कैपिटल गुड्स और इंटरमीडिएट गुड्स जैसे उपयोग आधारित क्षेत्र।
  • IIP के लिये आधार वर्ष 2011-2012 है।
  • IIP का महत्त्व:
    • इसका उपयोग नीति निर्माण के लिये वित्त मंत्रालय, भारतीय रिज़र्व बैंक आदि सरकारी एजेंसियों द्वारा किया जाता है।
    • IIP त्रैमासिक और अग्रिम जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) अनुमानों की गणना के लिये बेहद प्रासंगिक है।

स्रोत- द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

ज़ाइलोफिस दीपकी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक छोटे साँप की प्रजाति "ज़ाइलोफिस दीपकी" (Xylophis Deepaki) का नामकरण एक भारतीय सरीसृप विज्ञानवेत्ता दीपक वीरप्पन के नाम पर किया गया है। इन्होंने ‘वुड स्नेक’ (Wood Snake) को समायोजित करने के लिये एक नए उप-वर्ग ज़ाइलोफिनाइने (Xylophiinae) का निर्माण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

  • इन प्रजातियों के लिये सुझाया गया सामान्य नाम 'दीपक वुड स्नेक' (Deepak Wood Snake) है।

Xylophis-Deepaki

प्रमुख बिंदु

ज़ाइलोफिस दीपकी के विषय में:

  • यह इंद्रधनुष की तरह चमकीली शल्क वाला मात्र 20 सेमी. लंबाई का एक छोटा साँप है।
  • इसे पहली बार कन्याकुमारी में एक नारियल के बागान में देखा गया था।
  • इसे तमिलनाडु की एक स्थानिक प्रजाति बताया गया है, जिसे दक्षिणी पश्चिमी घाट (Western Ghat) के कुछ हिस्सों में भी देखा गया है।
    • यह सूखे क्षेत्रों में और अगस्त्यमलाई पहाड़ियों (Agasthyamalai Hill) के आसपास कम ऊँचाई पर पाया जाता है।

ज़ाइलोफिस के विषय में:

  • यह पैरेडाइए फैमिली (Pareidae Family) में सांपों का एक छोटा सा जीन है।
  • इसकी पाँच प्रजातियाँ हैं जो सभी दक्षिणी भारत में पश्चिमी घाट के लिये स्थानिक हैं।
    • पाँच प्रजातियाँ: ज़ाइलोफिस कप्तैनी (Xylophis Captaini), ज़ाइलोफिस दीपकी (Xylophis Deepaki), ज़ाइलोफिस मोसैकस (Xylophis Mosaicus), ज़ाइलोफिस पेर्रोटेरी (Xylophis Perroteri) और ज़ाइलोफिस स्टेनोरिन्चस (Xylophis Stenorhynchus)।
  • ये पाँच प्रजातियाँ ज़ाइलोफिनाइने (Xylophiinae) उप-परिवार का गठन करती हैं।
    • ये भारत में पाए जाने वाले एकमात्र पैरेडाइए साँप हैं और इस परिवार के दक्षिण-पूर्व एशिया के बाहर पाए जाने वाले एकमात्र साँप हैं।

वुड स्नेक के विषय में:

  • ये गैर-विषैले होते हैं, जिन्हें अक्सर पश्चिमी घाट के जंगलों में और खेतों में मिट्टी की खुदाई करते समय देखा जाता है।
  • इनका प्रमुख भोजन केंचुए और अन्य अकशेरुकीय जीव होते हैं।
  • इनके निकट संबंधी पूर्वोत्तर भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में पाए जाते हैं जो आर्बरियल (Arboreal- पेड़ों में रहने वाले) वर्ग के होते हैं।

संबंधित जानकारी:

  • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) की संकटग्रस्त प्रजातियों से संबंधित रेड लिस्ट (Red List) के अनुसार मूल्यांकन की गई साँपों की प्रजातियों में से 12% को खतरा है और इनकी आबादी में गिरावट आई है।
  • विश्व में प्रत्येक वर्ष 2.7 मिलियन लोग सर्पदंश के शिकार होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने विकासशील देशों में सर्पदंश को कम करने के लिये इसे एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारी (Neglected Tropical Disease) के रूप में वर्गीकृत किया है।
  • ‘सेव द स्नेक’ (Save The Snake) साँप संरक्षण और मानव-साँप संघर्ष शमन के लिये एक समर्पित पहल है।

अगस्त्य पहाड़ी

  • अगस्त्य पहाड़ी केरल के पश्चिमी घाट में नेय्यर वन्यजीव अभयारण्य (Neyyar Wildlife Sanctuary) के भीतर स्थित समुद्र तल से 1,868 मीटर ऊँची चोटी है। यह चोटी केरल और तमिलनाडु की सीमा पर स्थित अगस्त्यमाला बायोस्फीयर रिज़र्व (Agasthyamala Biosphere Reserve) की एक हिस्सा है।
  • इस चोटी का नाम हिंदू ऋषि अगस्त्य के नाम पर रखा गया है, जिन्हें हिंदू पुराणों के सात ऋषियों (सप्तऋषि) में से एक माना जाता है। यह श्रद्धालुओं का एक तीर्थ स्थल भी है।
  • ताम्रपर्णी नदी (Thamirabarani River) एक बारहमासी नदी है जो इस पहाड़ी के पूर्वी हिस्से से निकलती है और तमिलनाडु के तिरुनेलवेली (Tirunelveli) ज़िले में बहती है।
  • अगस्त्यमाला बायोस्फीयर रिज़र्व को वर्ष 2016 में यूनेस्को की विश्व नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिज़र्व की सूची (UNESCO World Network of Biosphere Reserve) में जोड़ा गया है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

एशियाई विकास आउटलुक-2021 : एशियाई विकास बैंक

चर्चा में क्यों?

एशियाई विकास आउटलुक (ADO)-2021 रिपोर्ट के अनुसार कोविड -19 की दूसरी लहर भारत के आर्थिक सुधार को ‘जोखिम’ में डाल सकती है।

  • ADO एशियाई विकास बैंक (ADB) के विकासशील सदस्य देशों (DMCs) के लिये जारी वार्षिक आर्थिक रिपोर्ट की एक शृंखला है।

प्रमुख बिंदु

जीडीपी अनुमान:

  • भारत:
    • सार्वजनिक निवेश, टीकाकरण और घरेलू मांग में वृद्धि के कारण आर्थिक सुधार जारी रहेगा और वित्त वर्ष 2021-22 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 11 प्रतिशत की मज़बूत वृद्धि का अनुमान है। 
    • वित्त वर्ष 2022-23 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर घटकर लगभग 7% रहने का अनुमान है।
    • सरकार के दूसरे अग्रिम अनुमान में वित्त वर्ष 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 8 प्रतिशत का संकुचन अपेक्षित है। 
  • विकासशील एशिया:
    • वित्त वर्ष 2021-22 में विकासशील एशिया की आर्थिक वृद्धि दर 7.3% के आसपास रहेगी, जबकि पिछले वर्ष इसमें 0.2% संकुचन देखने को मिला था।
    • विकासशील एशिया में भौगोलिक समूह के आधार पर ADB सूची के 46 सदस्य शामिल हैं। 
      • इनमें नई औद्योगिक अर्थव्यवस्थाएँ और मध्य एशिया, पूर्वी एशिया, दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया तथा प्रशांत क्षेत्र के देश शामिल हैं।
      • भारत भी विकासशील एशिया का सदस्य है।

चुनौतियाँ:

  • इस क्षेत्र (विकासशील एशिया) के लिये महामारी सबसे बड़ा जोखिम बनी हुई है, क्योंकि टीकाकरण अभियान में हो रही संभावित देरी या अन्य महत्त्वपूर्ण प्रकोप वृद्धि को प्रभावित कर सकते हैं।
  • भू-राजनीतिक तनाव में वृद्धि, उत्पादन में अड़चनें, वित्तीय के कारण उत्पन्न वित्तीय उथल-पुथल, और स्कूल बंद होने के कारण सीखने की क्षमता के नुकसान जैसे दीर्घकालिक नुकसान अन्य जोखिम कारकों में से हैं।

महामारी के कारण स्कूल बंद होने का प्रभाव:

  • कई देश दूरस्थ शिक्षा का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन यह केवल आंशिक रूप से प्रभावी हो पाई है, क्योंकि कई छात्रों के पास कंप्यूटर और इंटरनेट जैसी बुनियादी अवसंरचना का अभाव है।
  • ये व्यवधान छात्रों द्वारा अर्जित किये गए कौशल को प्रभावित करेंगे और अंत में भविष्य के श्रमिकों के रूप में उनकी उत्पादकता और उपार्जन को भी प्रभावित करेंगे
  • सीखने की क्षमता संबंधी यह नुकसान पैसिफिक क्षेत्र, जहाँ स्कूल लगभग चालू ही रहे, में तकरीबन 8% रहा, जबकि दक्षिण एशिया, जहाँ स्कूल सबसे लंबी अवधि तक बंद रहे, में यह नुकसान लगभग 55% रहा।
  • विकासशील एशिया के लिये छात्रों के भविष्य की उपार्जन में कमी का वर्तमान मूल्य 1.25 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर आँका गया है, जो वित्त वर्ष 2020 में इस क्षेत्र की जीडीपी के 5.4 प्रतिशत के बराबर है।

भारतीय विश्लेषण:

  • स्वास्थ्य देखभाल, जल और स्वच्छता पर भारत सरकार द्वारा किये गए खर्च में वृद्धि से भविष्य की महामारियों के खिलाफ देश के लचीलेपन को मज़बूती प्राप्त होगी होगी। 
  • निजी निवेश से निवेशकों के मनोभाव और जोखिम की दर में सुधार के साथ-साथ समायोजन ऋण की स्थिति में सुधार होने की उम्मीद है। (उदाहरण: धन सृजन के लिये महंगे ऋण में कमी करना और अधिक खर्च को प्रोत्साहित करना)। 
  • घरेलू मांग के इस वृद्धि के मुख्य प्रचालक बने रहने की भी उम्मीद है।  
    • एक तीव्र टीकाकरण अभियान शहरी मांग को बढ़ावा दे सकता है, जबकि मज़बूत कृषि विकास से ग्रामीण मांग को बढ़ावा मिलेगा और सिंचाई का विस्तार, मूल्य शृंखलाओं में सुधार और कृषि ऋण सीमा में वृद्धि करके किसानों के लिये सरकारी समर्थन जारी रहेगा।  
  • उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना के माध्यम से विनिर्माण क्षेत्र के लिये सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों से घरेलू उत्पादन का विस्तार होगा और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के साथ घरेलू विनिर्माण को एकीकृत करने में मदद मिलेगी। 

सकल घरेलू उत्पाद (GDP)

  • जीडीपी एक देश की समग्र आर्थिक गतिविधि का एक व्यापक माप है। यह देश में वस्तुओं और सेवाओं के वार्षिक उत्पादन का कुल योग होता है। 
  • जीडीपी = निजी खपत + सकल निवेश + सरकारी निवेश + सरकारी खर्च + (निर्यात-आयात)

एशियाई विकास बैंक (ADB)

  • एशियाई विकास बैंक (ADB) एक क्षेत्रीय विकास बैंक है। इसकी स्थापना 19 दिसंबर, 1966 को हुई थी।
  • ADB में कुल 68 सदस्य शामिल हैंI भारत ADB का एक संस्थापक सदस्य है।
    • कुल सदस्यों में से 49 सदस्‍य देश एशिया-प्रशांत क्षेत्र से हैं, जबकि 19 सदस्य अन्य क्षेत्रों से हैं।
    • इसका उद्देश्य एशिया में सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।
  • 31 दिसंबर 2019 तक ADB के पाँच सबसे बड़े शेयरधारकों में जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका (प्रत्येक कुल शेयरों के 15.6% के साथ), पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (6.4%), भारत (6.3%) और ऑस्ट्रेलिया (5.8%) शामिल हैं।
  • ADB का मुख्यालय मनीला, फिलीपींस में है।

स्रोत-डाउन टू अर्थ


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कोविड-19 और निएंडरथल जीनोम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विभिन्न देशों के विकासवादी जीव वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि गंभीर रूप से बीमार होने का खतरा उत्पन्न करने वाले और SARS-CoV-2 से सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम होस्ट जीनोम पुरातन मानव निएंडरथल (Neanderthal) से विरासत में मिले हैं।

  • निएंडरथल होमिनिड्स की एक विलुप्त प्रजाति है, जो आधुनिक मानव के सबसे करीब थे।

प्रमुख बिंदु

अध्ययन के निष्कर्ष:

  • होस्ट गुणसूत्र 3 गंभीर रूप से बीमार होने की दिशा में आनुवंशिक जोखिम कारक के रूप में कार्य करता है और गुणसूत्र 6,12,19 और 21 पर जीन का एक समूह वायरस के विरुद्ध हमारी रक्षा करता है।
  • आधुनिक मानव निएंडरथल के साथ क्रोमोसोम 3 में 50,000 न्यूक्लियोटाइड्स (ये DNA का मूल बिल्डिंग ब्लॉक होता है) का एक हिस्सा साझा करते हैं।
    • दक्षिण एशिया की लगभग 50% जनसंख्या को गुणसूत्र 3 निएंडरथल जीनोम से मिला है, यही कारण है कि इसी क्षेत्र में वायरस से बीमार होने का सबसे अधिक खतरा है।
  • होस्ट गुणसूत्र 12 का एक हिस्सा, जिसे वायरस से सुरक्षा प्रदान करने के लिये उत्तरदायी माना जाता है, भी निएंडरथल जीनोम से ही विरासत में मिला है।
    • गुणसूत्र 12 लगभग 30% दक्षिण एशियाई लोगों में पाया जाता है।

महत्त्व:

  • ये वायरस केवल होस्ट कोशिकाओं में जीवित और वृद्धि कर सकते हैं। इसलिये होस्ट जीनोम को समझना किसी आबादी में वायरस के प्रति संवेदनशीलता तथा सुरक्षा दोनों का अध्ययन करने के लिये ज़रूरी है।
  • निएंडरथल के कुछ विशिष्ट जीन वायरस के खिलाफ काम कर रहे हैं और हमें एक गंभीर बीमारी से बचा रहे हैं, जबकि कुछ अन्य जीन गंभीर रूप से बीमार होने का खतरा बढ़ा रहे हैं। यह प्रभाव, विकास के दौरान जीन के चयन से संबंधित विषय के जटिल तथ्यों को समझने में मदद कर सकता है।

मानव विकास

  • मानव विकास एक विकासवादी प्रक्रिया है, जिसके परिणामस्वरूप शारीरिक रूप से आधुनिक मनुष्यों विशेष रूप से होमो सेपियंस (Homo Sapiens) का उदय हुआ है।

मानव के विकास के चरण:

  • ड्रायोपिथेकस (Dryopithecus)
  • रामापिथीकस (Ramapithecus)
  • ऑस्ट्रेलोपिथेकस (Australopithecus)
  • होमो (Homo)
    • होमो हैबिलिस (Homo Habilis)
    • होमो इरेक्टस (Homo Erectus)
    • होमो सेपियंस (Homo Sapiens)
      • होमो सेपियंस निएंडरथेलेंसिस (Homo Sapiens Neanderthalensis)
      • होमो सेपियंस  सेपियंस  (Homo Sapiens Sapiens)

निएंडरथल:

  • निएंडरथल (होमो निएंडरथेलेंसिस, होमो सेपियंस निएंडरथेलेंसिस) पुरातन मानव के एक समूह का सदस्य है, जो 2,00,000 वर्ष पहले प्लीस्टोसीन युग (लगभग 2.6 मिलियन से 11,700 वर्ष पूर्व) के दौरान अस्तित्त्व में था और प्रारंभिक आधुनिक मानव आबादी (होमो सेपियंस) द्वारा 35,000 से 24,000 वर्ष इन्हें पहले प्रतिस्थापित किया गया था।

Homo-erectus

जीनोम

  • जीनोम, सभी जीवों में पाया जाने वाला एक वंशानुगत पदार्थ है। इसे किसी जीव के डीऑक्सीराइबोज न्यूक्लिक एसिड (Deoxyribose Nucleic Acid- DNA) के पूर्ण सेट के रूप में परिभाषित किया जाता है,
  • मनुष्यों के पूरे जीनोम की एक प्रति में 3 बिलियन से अधिक डीएनए जोड़े होते हैं।

गुणसूत्र

  • डीएनए अणु कोशिका के नाभिक में धागे जैसी संरचनाओं में पैक रहता है जिसे गुणसूत्र कहा जाता है।
  • गुणसूत्र डीएनए के तंतु रूपी पिंड हैं, जो हिस्टोन नामक प्रोटीन के आसपास जमा रहते है।
  • मनुष्यों में गुणसूत्रों की संख्या 46 होती है, जो 23 के जोड़े में होते हैं।
  • इनमें से दो जोड़े जिन्हें ‘ऑटोसोम’ कहा जाता है, पुरुषों और महिलाओं दोनों में समान दिखते हैं।
  • सेक्स गुणसूत्र (23वीं जोड़ी) पुरुषों और महिलाओं के बीच अलग-अलग होते हैं। मादाओं में X गुणसूत्र की दो प्रतियाँ होती हैं, जबकि पुरुषों में एक X और एक Y गुणसूत्र होता है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कोरोना वेरिएंट का नामकरण और वर्गीकरण

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा बताया गया है कि देश के 18 विभिन्न राज्यों में कोरोना वायरस के कई अन्य स्ट्रेन या वेरिएंट ऑफ कंसर्न (Variants of Concern- VOCs) के अलावा एक नए डबल म्युटेंट वेरिएंट (Double Mutant Variant) का पता चला है।

प्रमुख बिंदु: 

वायरस वेरिएंट: 

  • वायरस के वेरिएंट में एक या एक से अधिक उत्परिवर्तन (Mutations) होते हैं जो इसे अन्य प्रचलित वेरिएंट से अलग करता है। अधिकांश उत्परिवर्तन वायरस के लिये हानिकारक साबित होते हैं तो कुछ उत्परिवर्तन वायरस के लिये फायदेमंद साबित होते हैं जो इसे जीवित रहने के लिये आसान बनाते हैं।
  • SARS-CoV-2 (कोरोना) वायरस तेज़ी से विकसित हो रहा है जिस कारण यह वैश्विक स्तर पर लोगों को संक्रमित कर रहा है। वायरस के परिसंचरण या प्रसार के उच्च स्तर का मतलब है कि वायरस में उत्परिवर्तन की आसान एवं तीव्र दर विद्यमान है जिस कारण इसमें अपनी संख्या को दुगना करने की क्षमता पाई जाती है।
  • मूल महामारी वायरस (फाउंडर वेरिएंट ) Wu.Hu.1 था जिसे वुहान वायरस कहा गया। कुछ महीनों में इसका D614G वेरिएंट सामने उभरकर आया और विश्व स्तर पर प्रसारित हो गया।

Mutating-coronavirus

वर्गीकरण:

    • रोग नियंत्रण और रोकथाम हेतु अमेरिकी केंद्र (CDC) द्वारा वेरिएंट को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
    • वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट (VOI):
      • यह एक विशिष्ट ‘जेनेटिक मार्करों’ (Genetic Markers) वाला वेरिएंट है जो ‘रिसेप्टर बाइंडिंग’ में परिवर्तन करने, पूर्व में हुए संक्रमण या टीकाकरण के दौरान उत्पन्न एंटीबॉडी द्वारा संक्रमण के प्रभाव को कम करने, नैदानिक प्रभाव तथा संभावित उपचार को कम करने या संक्रमण को प्रसारित करने या बीमारी की गंभीरता में वृद्धि करने से संबंधित है। 
      •  VOI  का एक उदाहरण वायरस का B.1.617 वेरिएंट है, जिसमें दो उत्परिवर्तन होते हैं, जिन्हें E484Q तथा L452R कहा जाता है। 
        • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) द्वारा इस वेरिएंट  को ‘वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ (VOI) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
      • कई कोरोना वायरस वेरिएंट में ये दोनो उत्परिवर्तन अलग-अलग पाए जाते हैं, लेकिन भारत में पहली बार इन दोनों को एक साथ देखा गया है।
    •  वेरिएंट ऑफ कंसर्न  (VOC):
      • वायरस के इस वेरिएंट के परिणामस्वरूप संक्रामकता में वृद्धि, अधिक गंभीर बीमारी (जैसे- अस्पताल में भर्ती या मृत्यु हो जाना), पिछले संक्रमण या टीकाकरण के दौरान उत्पन्न एंटीबॉडी में महत्त्वपूर्ण कमी, उपचार या टीके की प्रभावशीलता में कमी या नैदानिक उपचार की विफलता देखने को मिलती है।
      • B.1.1.7 (यूके वेरिएंट), B.1.351 (दक्षिण अफ्रीका वेरिएंट), P.1 (ब्राज़ील वेरिएंट), B.1.427 और अमेरिका में मिलने वाले B.1.429 वेरिएंट को VOC के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • अधिक गंभीर वेरिएंट:
      • अधिक गंभीर वेरिएंट से इस बात की पुष्टि होती हैं कि रोकथाम के उपाय या मेडिकल प्रतिउपायों ने पहले से प्रचलित वेरिएंट की सापेक्ष प्रभावशीलता को काफी कम कर दिया है।
      • अब तक,  CDC को अमेरिका में ‘अधिक गंभीर वेरिएंट’ के प्रसार के प्रमाण नहीं मिले हैं।

    वेरिएंट अंडर इन्वेस्टिगेशन (VUI):

    • पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (Public Health England- PHE) का कहना है कि अगर SARS-CoV-2 के वेरिएंट में महामारी, प्रतिरक्षा या रोगजनक गुण पाए जाते हैं तो इसकी औपचारिक जाँच (Formal Investigation) की जा सकती है।
    • इस कार्य के लिये B.1.617 वेरिएंट को VUI के रूप में नामित किया गया है।

    नामकरण:

    • फायलोजेनेटिक असाइनमेंट ऑफ ग्लोबल आउटब्रेक लीनिएजेज़ (PANGOLIN):
      • इसे SARS-CoV-2 लीनिएजेज़ की वंशावली के नामकरण को लागू करने हेतु  विकसित किया गया था, जिसे ‘पेंगो’ नामकरण (Pango Nomenclature) के  रूप में जाना जाता है।
      • इसमें जीनोमिक निगरानी के एक अमूल्य उपकरण के रूप में आनुवंशिकता के आधार पर पदानुक्रमित प्रणाली का उपयोग किया जाता है। 
      • इसमें अक्षर (ABCP) का उपयोग किया जाता है जो  1 नंबर से शुरू होते हैं। महामारी के ‘वेरिएंट लीनिएजेज़’ (Variant lineages) भिन्न भिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में पाए जाते हैं। लीनिएजेज़ ‘बी’ सबसे अधिक वृद्धि करने वाला   लीनिएज है।

    विभिन्न वेरिएंटस से संबंधित चिंताएँ: 

    • प्रसार  में वृद्धि: 
      • भारत सहित कई देशों ने वेरिएंट के प्रसार के कारण महामारी संचरण की नई लहरों को और अधिक तीव्र कर दिया है।
    • बढ़ता खतरा: 
      • घातकता या गंभीरता (गंभीर/जानलेवा बीमारी पैदा करने की प्रवृत्ति) के संदर्भ में इसका यूके वेरिएंट अधिक खतरनाक है। दक्षिण अफ्रीका और ब्राज़ील के वेरिएंट्स अधिक घातक नहीं हैं।
    • प्रतिरक्षा में कमी: 
      • वेरिएंटस से संबंधित तीसरी चिंता टीकाकरण में प्रयोग होने वाले D614G वेरिएंट से बने एंटीजन के उपयोग को लेकर है जिसका उपयोग वर्तमान में उपयोग होने वाले अधिकांश टीकों पर लागू होता है।
      • टीकों के प्रभाव का निम्न स्तर दक्षिण अफ्रीकी और उससे कम ब्राज़ील वेरिएंट में देखने को मिला है। इसलिये पूर्व में हुए D614G टीकाकरण के बावजूद पुन: संक्रमण होने का खतरा बना हुआ है।
      • वर्तमान में टीके की प्रभावकारिता तीन चरणों के परीक्षणों में निर्धारित की गई इनकी क्षमता से कम हो सकती है क्योंकि VOC प्रसार तब व्यापक रूप से नहीं था।
        • परंतु mRNA टीकों में विभिन्न कारणों से व्यापक प्रतिरक्षा विद्यमान है, और वे इन दो वेरिएंट के खिलाफ बेहतर सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम हैं।

    संभावित समाधान:

    • स्वीडन स्थिति कारोलिंस्का संस्थान द्वारा एक नए वैरिएंट ‘रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन’ (RBD) पेप्टाइड का उपयोग करके एक एंटीजन विकसित किया गया है,।
      • एक RBD वायरस का छोटा इम्यूनोजेनिक अंश या टुकड़ा (Immunogenic Fragment) होता है जो मेजबान कोशिकाओं (Host Cells) में प्रवेश पाने हेतु  एक विशिष्ट अंतर्जात ‘रिसेप्टर अनुक्रम’ (Endogenous Receptor Sequence) से बंधा होता है।
      • सहायक पदार्थ वह है जो एक एंटीजन की उपस्थिति हेतु प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया को तीव्र कर देता है।
    • इसके परिणामस्वरूप न केवल ‘बूस्टर रिस्पांस’ तीव्र होता है बल्कि यह व्यापक भी होता है, इसमें नए वेरिएंट भी शामिल होते हैं। अलग-अलग वैक्सीन के कारण इसे 'हेटेरो बूस्टिंग' (Hetero Boosting) दृष्टिकोण कहा गया है। 

    आगे की राह: 

    • जीवित रहने तथा आर्थिक विकास को बनाए रखने हेतु महामारी ने जैव चिकित्सा अनुसंधान और क्षमता निर्माण के महत्त्व पर लोगों का ध्यान केंद्रित किया है।
    • हमें विश्वविद्यालयों, मेडिकल कॉलेजों और जैव प्रौद्योगिकी कंपनियों में व्यापक स्तर पर अनुसंधान को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, जिनमें सभी को समय पर वित्त पोषित, प्रोत्साहित और प्रतिभा को पुरस्कृत किया जाना चाहिये।
    • हालांँकि इस दिशा में कुछ प्रयास शुरू किये गए हैं, उन्हें बड़े पैमाने पर लागू करना होगा, साथ ही भारत को बायोसाइंसेज़ के क्षेत्र में भी भारी निवेश करना चाहिये। 

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


    भूगोल

    जलवायु परिवर्तन कारकों से पृथ्वी के अक्ष में परिवर्तन

    चर्चा में क्यों?

    अमेरिकन जियोफिज़िकल यूनियन (AGU) के ‘जियोफिज़िकल रिसर्च लेटर्स’ में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि 1990 के दशक से वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण ग्लेशियरों के पिघलने से पृथ्वी का अक्षीय घूर्णन सामान्य से अधिक गति कर रहा है।

    • जबकि इस परिवर्तन से दैनिक जीवन के प्रभावित होने की उम्मीद नहीं है लेकिन यह कुछ मिलीसेकंड तक दिन की लंबाई को परिवर्तित कर सकता है।

    Axial-Tilt

    प्रमुख बिंदु

    पृथ्वी की घूर्णन धुरी :

    • यह वह रेखा है जिस पर पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करने के साथ-साथ सूर्य के चारों ओर घूमती है।
      • पृथ्वी का अक्षीय झुकाव (जिसे अंडाकार आकृति के रूप में भी जाना जाता है) लगभग 23.5 डिग्री है। इस अक्षीय झुकाव के कारण, सूर्य वर्ष भर विभिन्न कोणों पर विभिन्न अक्षांशों पर चमकता है। पृथ्वी के अक्ष का यह झुकाव विभिन्न मौसमों के लिये भी ज़िम्मेदार है।
    • यह ग्रहों के अक्षीय सतह को जिन बिंदुओं पर काटता है, उन्हें भौगोलिक ध्रुव (उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव) कहते है।
      • ध्रुवों का स्थान निश्चित नहीं है। ग्रह के चारों ओर वितरित पृथ्वी के द्रव्यमान में परिवर्तन के कारण धुरी चलायमान है। इस प्रकार धुरी या अक्ष के घूमने पर ध्रुव गति करता है और इस गति को "ध्रुवीय गति" कहा जाता है।
      • सामान्य तौर पर ध्रुवीय गति जलमंडल, वायुमंडल, महासागरों या पृथ्वी में ठोस परिवर्तन के कारण होती है लेकिन अब जलवायु परिवर्तन उस मार्ग को प्रभावित कर रहा है जिसमें ध्रुवीय भंवर या पोलर वोर्टेक्स जैसी हवाएँ चलती है।
    • नासा के अनुसार, 20 वीं शताब्दी के आँकड़ों से पता चलता है कि धुरी का घुमाव प्रति वर्ष लगभग 10 सेंटीमीटर प्रवाहित होता है। एक सदी में ध्रुवीय गति 10 मीटर से अधिक होती है।

    नए अध्ययन के परिणाम:

    • 1990 के दशक से जलवायु परिवर्तन के कारण महासागरों में अरबों टन हिमाच्छादित बर्फ पिघल गई है। यही कारण है कि पृथ्वी की ध्रुवीय दिशाओं में परिवर्तन हो रहा है।
    • 1990 के दशक से जलमंडल में परिवर्तन के कारण उत्तरी ध्रुव एक नए मार्ग का अनुसरण करते हुए पूर्व दिशा की ओर स्थानांतरित हो गया है।(जिसका अर्थ है कि पृथ्वी पर जल का भंडार है)। 
    • वर्ष 1995 से 2020 तक इसके प्रवाह की औसत गति 1981 से 1995 की तुलना में 17 गुना तीव्र थी। 
    • इसके अतिरिक्त पिछले चार दशकों में ध्रुवीय प्रवाह लगभग 4 मीटर तक हुआ है।
    • यह गणना नासा के ‘ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट’ (GRACE) मिशन के उपग्रह डेटा पर आधारित थी। 

    ध्रुवीय प्रवाह के कारण:

    • बर्फ पिघलना:
      • 1990 के दशक में ग्लोबल वार्मिंग के कारण बर्फ के तेज़ी से पिघलने का सबसे संभावित कारण ध्रुवीय प्रवाहों का दिशात्मक परिवर्तन था।
      • जैसे-जैसे ग्लेशियर पिघलते हैं, जल का द्रव्यमान पुन:विस्तारित होता है, जिससे ग्रहों की धुरी में स्थानांतरण होता है।
    • गैर-हिमनद क्षेत्रों में परिवर्तन (भौमिकी जल संग्रहण): 
      • गैर-हिमनद क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन और भूजल के दोहन के कारण सिंचाई और अन्य मानवजनित गतिविधियों में परिवर्तन होता है।
    • भू-जल रिक्तिकरण:
      • भूजल में कमी भी इस घटना में इजाफा करती है। चूँकि पेयजल, उद्योगों या कृषि के लिये प्रत्येक वर्ष भूमि के अंदर से लाखों टन जल बाहर निकाला जाता है, अंततः यह जल समुद्र में शामिल हो जाता है, जिससे ग्रह के द्रव्यमान का पुनर्वितरण होता है।

    स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस


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