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डेली न्यूज़

  • 03 Aug, 2019
  • 42 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

PSB में निर्वाचित निदेशकों की नियुक्ति

चर्चा में क्यों?

रिज़र्व बैंक ने सार्वजनिक क्षेत्रक बैंकों (Public Sector Bank-PSB) में निर्वाचित निदेशकों की नियुक्ति के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के दिशा-निर्देशों के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्रक बैंकों (PSB) के निर्वाचित निदेशकों को संबंधित बैंकों के बोर्ड की नामांकन और पारिश्रमिक समिति (Nomination and Remuneration Committee) द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
  • रिज़र्व बैंक ने निर्वाचित निदेशकों के लिये ‘उपयुक्त और योग्य’ (Fit and Proper) मानदंड के आधार पर दिशा-निर्देश जारी किये हैं और साथ ही सभी PSB के लिये नामांकन और पारिश्रमिक समिति के गठन को भी अनिवार्य किया है।
  • इस समिति में कम-से-कम 3 सदस्य बोर्ड के गैर-कार्यकारी निदेशक होने चाहिये जिनमें से स्वतंत्र निदेशकों की संख्या आधे से कम नहीं होनी चाहिये। साथ ही कम-से-कम एक सदस्य बोर्ड की जोख़िम प्रबंधन समिति से भी शामिल किया जाना चाहिये।
  • बैंक के गैर-कार्यकारी अध्यक्ष (Non-Executive Chairperson) को समिति के सदस्य के रूप में नियुक्त किया जा सकता है परंतु वह ऐसी समिति की अध्यक्षता नहीं करेगा।
  • दिशा-निर्देशों के अनुसार निर्वाचित निदेशक का कार्यकाल 3 वर्ष का होगा और उसे पुनः निर्वाचित किया जा सकता है परंतु वह 6 वर्ष से अधिक समय तक पद पर नहीं रह सकता है।
  • कोई संसद सदस्य, विधान मंडल सदस्य, नगरपालिका परिषद् या किसी स्थानीय निकाय का कोई सदस्य निदेशक पद का उम्मीदवार नहीं होना चाहिये।
  • स्टॉक ब्रोकिंग या किसी अन्य बैंक अथवा वित्तीय संस्थान के बोर्ड का कोई सदस्य किराया क्रय (Hire Purchase), साहूकारी (Money Lending), निवेश, लीजिंग व अन्य सह-बैंकिंग (Para Banking) गतिविधियों से संबंधित व्यक्ति नियुक्ति का पात्र नहीं हो सकता है।
  • RBI के दिशा-निर्देशों के अनुसार, उम्मीदवार किसी चार्टर्ड अकाउंटेंट की फर्म में भागीदार के रूप में कार्यरत नहीं होना चाहिये, जो वर्तमान में किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक या भारतीय स्टेट बैंक के वैधानिक केंद्रीय लेखा परीक्षक (Statutory Central Auditor) के रूप में संलिप्त है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

2021 में एकत्रित नहीं किये जाएंगे ‘जातिगत’ आँकड़े

चर्चा में क्यों?

द हिंदू समाचार-पत्र द्वारा प्रकाशित एक खबर में यह संभावना व्यक्त की गई है कि वर्ष 2021 में होने वाली जनगणना में ‘जातिगत’ आँकड़ों को एकत्रित नहीं किया जाएगा।

जातिगत आँकड़े एकत्रित न करने के पीछे तर्क

  • भारत में जाति के संदर्भ में अभी तक कोई मानकीकरण नहीं है और इसलिये आँकड़े एकत्र करना काफी मुश्किल हो जाता है। उदाहरण के लिये यदि कोई व्यक्ति यादव जाति से है तो जाति में मानकीकरण न होने के कारण वह फॉर्म में यदु, यदुवंशी या कुछ और भी लिख सकता है, परंतु इससे जातिगत आँकड़ों में अंतर पैदा होता है। कई बार लोग अपनी जाति और अपने गोत्र में भी भ्रमित हो जाते हैं।
  • अधिकारियों के अनुसार, जाति के आँकड़ों की गणना करना काफी कठिन होता है, जैसा कि पिछली बार जब ये आँकड़े एकत्रित किये गए थे तो लगभग 40 लाख जातियों के नाम सामने आए थे।
  • ऐसे में यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2021 की जनगणना मात्र अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के आँकड़ों तक ही सीमित रहेगी।
  • गौरतलब है कि सामाजिक, आर्थिक और जातिगत जनगणना (Socio Economic Caste Census-SECC) के तहत वर्ष 2011 में एकत्रित किये गए ‘जातिगत आँकड़ों’ को अभी तक केंद्र सरकार द्वारा जारी नहीं किया गया है।

Maping the populace

मोबाइल एप से होगी वर्ष 2021 की जनगणना:

  • भारतीय जनगणना का इतिहास लगभग 140 वर्ष पुराना है, परंतु इस अवधि में यह पहली बार होगा जब जनगणना के आँकड़ों का संग्रहण मोबाईल एप के ज़रिये किया जाएगा।
  • इस कार्य के लिये लगभग 33 लाख प्रशिक्षित जनगणना कर्मियों की मदद ली जाएगी।
  • आँकड़ों का संग्रहण कागज़ों पर भी किया जा सकता है लेकिन सभी जनगणना कर्मियों के लिये इसे इलेक्ट्रॉनिक रूप में भेजना अनिवार्य होगा।
  • जनगणना कर्मी वर्ष 2020 में आवासों की सूची बनाने (House Listing) का कार्य शुरू करेंगे और जनगणना का कार्य फरवरी 2021 से शुरू होगा।
  • इस जनगणना को वेबसाइट पर तालिकाओं के रूप में प्रकाशित किया जाएगा।

लाभ

  • एकत्रित किये गए आँकड़ों को इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में संग्रहीत कर हमेशा के लिये सुरक्षित रखा जा सकता है।
  • इसके अलावा जनगणना का डिजिटलीकरण यह भी सुनिश्चित करेगा कि जनगणना के आँकड़े प्रकाशित होने में भी ज़्यादा समय न लगे। ऐसे में यह संभव हो सकता है अधिकांश आँकड़ें वर्ष 2024-2025 तक सामने आ जाएँ।

पृष्ठभूमि

  • जनगणना में केवल व्यक्तियों की ही गिनती नहीं होती, बल्कि इससे सामाजिक-आर्थिक आँकड़ों का भी संग्रह होता है। इसके आधार पर नीतियों का निर्माण होता है और संसाधनों का आवंटन किया जाता है। इसके अलावा जनगणना के आँकड़ों के आधार पर चुनाव क्षेत्रों का निर्धारण और अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिये सीटों को आरक्षण किया जाता है। अतः यह आवश्यक है कि आँकड़ों के संग्रह में सावधानी बरती जाए और गोपनीयता बनाए रखी जाए।

स्रोत: द हिंदू एवं पी.आई.बी.


कृषि

बहुफसली पद्धति का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

आर्थिक और सामाजिक अध्ययन केंद्र (Centre for Economic and Social Studies-CESS) द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन में बहुफसली पद्धति (Multi-Cropping System) के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।

प्रमुख बिंदु

  • एकल फसली व्यवस्था (Mono-Cropping) के विपरीत बहुफसली पद्धति (Multi Cropping) के अंतर्गत किसान भूमि के एक ही हिस्से में दो या दो से अधिक फसलें उगाते हैं। बहुफसली पद्धति मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं:
    • अंतर फसली (Intercropping): इसका अभिप्राय एक निश्चित फसल पैटर्न में दो या दो से अधिक फसलों को उगाने से है।
    • रिले क्रॉपिंग (Relay cropping): रिले क्रॉपिंग के तहत भूमि के एक ही हिस्से में दो या दो से अधिक फसलें उगाई जाती हैं, परंतु इस पद्यति में पहली फसल की कटाई से ठीक पहले दूसरी फसल की बुवाई उसी भूमि पर की जाती है।
    • मिश्रित अंतर फसली (Mixed intercropping): इस व्यवस्था में किसी निश्चित पंक्ति पैटर्न के बिना सभी फसलें एक साथ एक ही भूमि पर उगाई जाती हैं।

बहुफसली पद्धति के आर्थिक लाभ

  • अधिकतम उत्पादकता: बहुफसली पद्धति की सहायता से छोटे आकार की भूमि से अधिकतम उत्पादकता प्राप्त की जा सकती है।
  • पशुओं के लिये चारा संग्रहण: बहुफसली पद्धति पशुओं के लिये भी अधिकतम चारा सुनिश्चित करती है।
  • खाद्य सुरक्षा: यदि बहुफसली पद्धति में एक या दो फसलें ख़राब भी हो जाए तो भी किसान बची हुई फसलों के सहारे अपनी और अपने परिवार की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है।
  • एकाधिक उपयोग: इस व्यवस्था में फसलें सिर्फ अनाज ही नहीं बल्कि चारा और ईंधन भी प्रदान करती हैं।

सस्यविज्ञान (Agronomy) संबंधी लाभ

  • कीट प्रबंधन: एक साथ कई प्रकार की फसलें उगाने से कीट की समस्याएँ कम होती हैं और मिट्टी के पोषक तत्त्वों, पानी और भूमि का कुशल उपयोग होता है।
  • खरपतवार का प्रबंधन: बहुफसली पद्धति खरपतवार के रोकथाम में भी काफी सहायक होती है, क्योंकि खरपतवार को कुछ फसलों के साथ उगने में मुश्किल होती हैं।
  • एक सतत् कृषि पद्यति: बहुफसली पद्धति के माध्यम से रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को कम किया जा सकता है।

आर्थिक और सामाजिक अध्ययन केंद्र

  • आर्थिक और सामाजिक अध्ययन केंद्र (Centre for Economic and Social Studies-CESS) की स्थापना वर्ष 1980 में एक स्वायत्त अनुसंधान केंद्र के रूप में की गई थी।
  • 1986 में इसे भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Social Science Research-ICSSR) द्वारा एक राष्ट्रीय संस्थान के रूप में मान्यता दी गई।
  • इस केंद्र को विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, 1976 की धारा 6 (1) (a) के तहत पंजीकृत किया गया था।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


भारतीय राजनीति

अभियुक्त को आवाज का नमूना देने का आदेश दिया जा सकता है: SC

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने नवीनतम फैसले में कहा कि एक व्यक्ति को अपराध जाँच के लिये आवाज़ का नमूना देने के लिये मज़बूर (compelled) किया जा सकता है।

प्रमुख बिंदु:

  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता में एक सदी से अधिक पुराने शून्य को भरने वाले एक ऐतिहासिक फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया कि एक व्यक्ति को अपराध जाँच के लिये आवाज़ का नमूना देने के लिये विवश किया जा सकता है और यह संविधान के अनुच्छेद 20 के तहत आत्म-दोषारोपण संबंधी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
    • न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 20 (3) पर कोई प्रत्यक्ष अवलोकन नहीं दिया, जो एक अभियुक्त को खुद के खिलाफ गवाह बनने के लिये मज़बूर होने से बचाता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत जारी किया है।
  • न्यायालय ने संसद से आपराधिक प्रक्रिया संहिता में अपेक्षित परिवर्तन करने का आह्वान किया है, ऐसा होने तक मजिस्ट्रेट के पास आदेश देने की शक्ति होगी।
  • न्यायालय के अनुसार निजता के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 21) को निरपेक्ष नहीं माना जा सकता है और इसे सार्वजनिक हित के लिये सहज होना चाहिये।

अनुच्छेद 142

  • जब तक किसी अन्य कानून को लागू नहीं किया जाता तब तक सर्वोच्च न्यायालय का आदेश सर्वोपरि।
  • अपने न्यायिक निर्णय देते समय न्यायालय ऐसे निर्णय दे सकता है जो इसके समक्ष लंबित पड़े किसी भी मामले को पूर्ण करने के लिये आवश्यक हों और इसके द्वारा दिये गए आदेश सम्पूर्ण भारत संघ में तब तक लागू होंगे जब तक इससे संबंधित किसी अन्य प्रावधान को लागू नहीं कर दिया जाता है।
  • संसद द्वारा बनाए गए कानून के प्रावधानों के तहत सर्वोच्च न्यायालय को सम्पूर्ण भारत के लिये ऐसे निर्णय लेने की शक्ति है जो किसी भी व्यक्ति की मौजूदगी, किसी दस्तावेज़ अथवा स्वयं की अवमानना की जाँच और दंड को सुरक्षित करते हैं।

यह अनुच्छेद इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है?

  • अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय का वह साधन है जिसके माध्यम से वह ऐसी महत्त्वपूर्ण नीतियों में परिवर्तन कर सकता है जो जनता को प्रभावित करती हैं।
  • दरअसल, जब अनुछेद 142 को संविधान में शामिल किया गया था तो इसे इसलिये वरीयता दी गई थी क्योंकि सभी का यह मानना था कि इससे देश के विभिन्न वंचित वर्गों अथवा पर्यावरण का संरक्षण करने में सहायता मिलेगी।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने यूनियन कार्बाइड मामले को भी अनुच्छेद 142 से संबंधित बताया था।
    • यह मामला भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों से जुड़ा हुआ है। इस मामले में न्यायालय ने यह महसूस किया कि गैस के रिसाव से पीड़ित हज़ारों लोगों के लिये मौज़ूदा कानून से अलग निर्णय देना होगा।
    • इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पीड़ितों को 470 मिलियन डॉलर का मुआवज़ा दिलाए जाने के साथ न्यायालय द्वारा यह कहा गया था कि अभी पूर्ण न्याय नहीं हुआ है।
  • न्यायालय के अनुसार, सामान्य कानूनों में शामिल की गई सीमाएँ अथवा प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत संवैधानिक शक्तियों के प्रतिबंध और सीमाओं के रूप में कार्य करते हैं। अपने इस कथन से सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं को संसद अथवा विधायिका द्वारा बनाए गए कानून से सर्वोपरि माना था।
  • संयोग से इसी तथ्य को बाद में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ‘बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ’ मामले में भी दोहराया गया।
    • इस मामले में यह कहा गया कि इस अनुच्छेद का उपयोग मौज़ूदा कानून को प्रतिस्थापित करने के लिये नहीं, बल्कि एक विकल्प के तौर पर किया जा सकता है।
  • हालाँकि हाल के वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय ने कई ऐसे निर्णय दिये हैं जिनमें यह अनुच्छेद उन क्षेत्रों में भी हस्तक्षेप करता है जिन्हें न्यायालय द्वारा शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के माध्यम से भुला दिया गया है। उल्लेखनीय है कि ‘शक्तियों के पृथक्करण’ का सिद्धांत भारतीय संविधान के मूल ढाँचे का एक भाग है।
  • वस्तुतः इन सभी न्यायिक निर्णयों ने अनुच्छेद 142 के विषय में एक अलग ही विचार दिया। इन मामलों में व्यक्तियों के मूल अधिकारों को नजरअंदाज किया गया था।
    • दरअसल, यह पाया गया है कि न्यायालय किसी निश्चित मामले में केवल अपना निर्णय सुनाता है परंतु वह उस निर्णय के दीर्घावधिक परिणामों से अनजान रहता है जिनके चलते उस व्यक्ति के मूल अधिकारों का भी उल्लंघन हो जाता है जो उस वक्त न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं होता है।

यह सत्य है कि अनुच्छेद 142 को संविधान में इस उद्देश्य से शामिल किया गया था कि इससे जनसंख्या के एक बड़े हिस्से तथा वास्तव में राष्ट्र को लाभ प्राप्त होगा। इसके अतिरिक्त सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी माना था कि इससे सभी वंचित वर्गों के दुःख दूर हो जाएंगे; परंतु यह उचित समय है कि इस अनुच्छेद के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पक्षों पर भी गौर किया जाए।

स्रोत: टाइम्स ऑफ़ इंडिया


शासन व्यवस्था

UAPA विधेयक 2019

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में राज्य सभा ने गैर-क़ानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019 [Unlawful Activities (Prevention) Amendment Bill, 2019] को पारित किया है। `

प्रमुख बिंदु:

  • यह विधेयक गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में संशोधन करता है।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत जाँच अधिकारी को उन संपत्तियों को जब्त करने से पहले पुलिस महानिदेशालय से मंज़ूरी लेनी होती है, जो आतंकवाद से संबंधित हो सकती हैं। विधेयक के अनुसार, अगर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के अधिकारी द्वारा जाँच की जा रही है तो ऐसी संपत्ति की जब्ती से पहले NIA के महानिदेशक से पूर्व मंज़ूरी लेनी होगी।
  • अधिनियम अंतर्गत केंद्र सरकार किसी संगठन को आतंकवादी संगठन निर्दिष्ट कर सकती है, अगर वह:

(i) आतंकवादी कार्रवाई करता है या उसमें भाग लेता है,

(ii) आतंकवादी घटना को अंजाम देने की तैयारी करता है,

(iii) आतंकवाद को बढ़ावा देता है, या

(iv) अन्यथा आतंकवादी गतिविधि में शामिल है।

यह विधेयक सरकार को यह अधिकार देता है कि वह समान आधार पर व्यक्तियों को भी आतंकवादी निर्दिष्ट कर सकती है।

गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967

[Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967]

  • यह कानून भारत की संप्रभुता और एकता को खतरें में डालने वाली गतिविधियों को रोकने के उद्देश्य से बनाया गया था।
  • गैर-कानूनी गतिविधियों से तात्पर्य उन कार्यवाहियों से है जो किसी व्यक्ति/संगठन द्वारा देश की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को भंग करने वाली गतिविधियों को बढ़ावा देती है।
  • यह कानून संविधान के अनुछेद-19 द्वारा प्रदत वाक् व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शस्त्रों के बिना एकत्र होने के अधिकार और संघ बनाने के अधिकार पर युक्तियुक्त प्रतिबंध आरोपित करता है।
  • राष्ट्रीय एकता परिषद द्वारा नियुक्त राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रवाद पर समिति ने उपरोक्त मौलिक अधिकारों पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाने का अनुमोदन किया।
  • इस कानून में पूर्व में भी वर्ष 2004, 2008 और 2012 में संशोधन किया जा चुका है।

गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019

[Unlawful Activities (Prevention) Amendment Bill, 2019] :

  • विधेयक में प्रस्तावित संशोधनों का उद्देश्य आतंकी अपराधों की त्वरित जाँच और अभियोजन की सुविधा प्रदान करना तथा आतंकी गतिविधियों में शामिल व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने का प्रावधान करना है।
  • इस विधेयक का किसी भी व्यक्ति के खिलाफ दुरुपयोग नहीं किया जाएगा, लेकिन शहरी माओवादियों सहित भारत की सुरक्षा एवं संप्रभुता के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न लोगों पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।
  • यह संशोधन उचित प्रक्रिया तथा पर्याप्त सबूत के आधार पर ही किसी को आतंकवादी ठहराने की अनुमति देता है। गिरफ्तारी या ज़मानत प्रावधानों में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
  • यह संशोधन राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) के महानिदेशक को ऐसी संपत्ति को ज़ब्त करने का अधिकार देता है जो उसके द्वारा की जा रही जाँच में आतंकवाद से होने वाली आय से बनी हो।
  • इस संशोधन में परमाणु आतंकवाद के कृत्यों के दमन हेतु अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन (2005) को सेकेंड शिड्यूल में शामिल किया गया है।

संशोधन की आवश्यकता

  • वर्तमान में किसी भी कानून में किसी को व्यक्तिगत आतंकवादी कहने का कोई प्रावधान नहीं है। इसलिये जब किसी आतंकवादी संगठन पर प्रतिबंध लगाया जाता है, तो उसके सदस्य एक नया संगठन बना लेते हैं।
  • जब कोई व्यक्ति आतंकी कार्य करता है या आतंकी गतिविधियों में भाग लेता है तो वह आतंकवाद को पोषित करता है। वह आतंकवाद को बल देने के लिये धन मुहैया कराता है अथवा आतंकवाद के सिद्धांत को युवाओं के मन में स्थापित करने का काम करता है। ऐसे दोषी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करना आवश्यक है।

संशोधन से संबंधित चिंताएँ:

  • यह संशोधन सरकार को किसी भी व्यक्ति को न्यायिक प्रक्रिया का पालन किये बिना आतंकी घोषित करने का अधिकार देता है जिससे भविष्य में राजनैतिक द्वेष अथवा किसी अन्य दुर्भावना के आधार पर दुरूपयोग की आशंका बनी रहेगी।
  • इस संशोधन में आतंकवाद की निश्चित परिभाषा नहीं है, इसका नकारात्मक प्रभाव यह हो सकता है कि सरकार व कार्यान्वयन एजेंसी आतंकवाद की मनमानी व्याख्या द्वारा किसी को भी प्रताड़ित कर सकते हैं।
  • इस संशोधन का अल्पसंख्यकों के विरुद्ध दुरुपयोग किया जा सकता है।
  • यह संशोधन किसी भी व्यक्ति को आतंकी घोषित करने की शक्ति देता है जो किसी आतंकी घटना की निष्पक्ष जाँच को प्रभावित कर सकता है।
  • पुलिस राज्य का विषय है परंतु यह संशोधन NIA को संपत्ति को जब्त करने का अधिकार देता है जो कि राज्य पुलिस के अधिकार क्षेत्र में कमी करता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

US फेडरल रिज़र्व दर में कटौती

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राज्य फेडरल रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के बाद पहली बार अपनी ब्याज दरों में एक चौथाई कटौती की घोषणा की है। इस कटौती के संबंध में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि US फेडरल बैंक की हॉकिश (Hawkish) (ब्याज दर में वृद्धि की स्थिति) मौद्रिक नीति के साथ अमेरिकी अर्थव्यवस्था विकास की दिशा में आगे बढ़ रही थी।

प्रमुख बिंदु

  • फेडरल बैंक ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता व्यक्त की साथ ही अमेरिकी मुद्रास्फीति को कम करने और लागत को कम करने जैसे प्रमुख कारणों की वजह से ब्याज दरों में कटौती का निर्णय लिया है। ]
  • बैंक ने यह भी रेखांकित किया कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था इस वर्ष के पहले छह महीनों में बेहतर गति से आगे बढ़ी है।
  • बैंक के अनुसार, ब्याज दर में कटौती वैश्विक विकास के निहितार्थ और मुद्रास्फीति को कम करने के मद्देनज़र किया गया है।
  • केंद्रीय बैंक ने यह भी इंगित किया कि इस प्रकार की नीतियों से अमेरिकी आर्थिक विस्तार को बरकरार रखा जाएगा।

क्या यह कटौती, नीति में बदलाव का संकेत है?

  • केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दबाव के कारण हुई। राष्ट्रपति अर्थव्यवस्था की विकास गति को बढ़ाने के लिये दरों में कटौती की माँग कर रहे थे। इसके विपरीत केंद्रीय बैक आर्थिक आँकड़ों का पालन करते हुए राष्ट्रपति के दबावों का विरोध कर रहा था।
  • फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (The Federal Open Market Committee-FOMC) बैंक के अंतर्गत एक 10 सदस्यीय पैनल है जो नीतिगत दरों को निर्धारित करता है। ब्याज दरों के निर्धारण के दौरान केवल 2 सदस्यों ने कटौती का विरोध किया।

भारत जैसी उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव

  • सैद्धांतिक रूप से, अमेरिका में दर में कटौती का प्रभाव विशेष रूप से ऋण बाज़ार के नज़रिये से उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं के लिये सकारात्मक होना चाहिये। भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में उच्च मुद्रास्फीति होती है इसलिये ब्याज दर अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित देशों की तुलना में अधिक होती है।
  • अमेरिका में ब्याज दर कम होने के कारण निवेशक वहाँ से उधार लेकर उस पैसे को उभरती अर्थव्यवस्थाओं जैसे भारत में निवेश करेंगे ताकि उन्हें अधिक ब्याज प्राप्त हो सके।
  • ब्याज दरों में कटौती से अमेरिका में विकास को गति मिलेगी, साथ ही वैश्विक विकास पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

टाइगर रिज़र्व्स का आर्थिक मूल्यांकन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority-NTCA) ने एक अध्ययन जारी किया है, जिसका शीर्षक ‘भारत में टाइगर रिज़र्व/बाघ अभयारण्य का आर्थिक मूल्यांकन: एक मूल्य+दृष्टिकोण’ (Economic Valuation of Tiger Reserves in India: A Value+ Approach) है।

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (भोपाल) में पारिस्थितिक सेवा प्रबंधन केंद्र (Centre for Ecological Services Management) द्वारा तैयार किये गए इस अध्ययन में देश के दस टाइगर रिज़र्वों के पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर आधारित आर्थिक मूल्यांकन का अनुमान लगाया गया है। अध्ययन में शामिल टाइगर रिज़र्व निम्नलिखित हैं-
    • अन्नामलाई (तमिलनाडु),
    • बांदीपुर (कर्नाटक),
    • दुधवा (उत्तर प्रदेश),
    • मेलघाट (महाराष्ट्र),
    • नागार्जुनसागर-श्रीशैलम (आंध्र प्रदेश/तेलंगाना),
    • पक्के (अरुणाचल प्रदेश),
    • पलामू (झारखंड),
    • पन्ना (मध्य प्रदेश),
    • सिमिलिपाल (ओडिशा) और
    • वाल्मीकि (बिहार)

उद्देश्य

इस अध्ययन का उद्देश्य संरक्षित क्षेत्रों के समग्र आर्थिक लाभों को उजागर करते हुए बाघ संरक्षण को बढ़ावा देना है।

दृष्टिकोण

  • इस अध्ययन में ‘मूल्य+दृष्टिकोण’ का उपयोग किया गया है। इसमें ‘मूल्य’ उन सेवाओं के लिये मौद्रिक संदर्भ में सभी लाभों का प्रतिनिधित्व करता है जहाँ मौद्रिक आर्थिक मूल्यांकन संभव हो और जिसे उपलब्ध ज्ञान, उपकरण और विधियों के आधार पर प्राप्त किया जाता हो।
    • "+" उन सभी लाभों का प्रतिनिधित्व करता है जिनके लिये आर्थिक मूल्यांकन वर्तमान में स्वीकृत पद्धति, ज्ञान, उपलब्ध तकनीक, वर्तमान संसाधनों और/या प्रणाली की समझ की कमी के कारण संभव नहीं है।

इकोसिस्टम सर्विसेज़ और टाइगर रिज़र्व्स

(Ecosystem Services and Tiger Reserves)

  • पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं को प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तुओं या सेवाओं के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो मानव के स्वास्थ्य, आजीविका और अस्तित्व के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं।
  • टाइगर रिज़र्व प्राकृतिक संसाधनों के विकास के संदर्भ में वन और अन्य प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के प्राथमिक भंडार हैं।
  • टाइगर रिज़र्व की पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं की एक शृंखला में गैर-टिम्बर वन उत्पाद (Non Timber Forest Products-NTFPs) प्रावधान, रोज़गार सृजन, कार्बन अनुक्रमण (Carbon Sequestration), जैविक नियंत्रण, प्रजातियों के लिये आवास, जीनपूल संरक्षण (Genepool Protection), गैस विनियमन (Gas Regulation), परागण (Pollination), ईंधन, चारा, जल संरक्षण, मिट्टी की उर्वरता, शारीरिक और मानसिक कल्याण, आध्यात्मिक पर्यटन आदि आते हैं।

टाइगर रिज़र्व का आर्थिक मूल्य

  • अध्ययन के निष्कर्षों से पता चलता है कि टाइगर रिज़र्व के प्राकृतिक परिवेश से मनुष्यों को 1643-7042 करोड़ रुपए के संसाधन प्राप्त होते हैं।
  • टाइगर रिज़र्व विभिन्न प्रकार के रोगों, शिकारियों और परजीवियों से सुरक्षा प्रदान करते हैं, जिनका आर्थिक मूल्य 7.7 करोड़ से 24.15 करोड़ रुपए है।
  • टाइगर रिज़र्व 2567-8260 करोड़ रुपए की आवश्यक अवसंरचना और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान करके, रहने योग्य परिस्थितियों के लिये एक बेहतर भौतिक एवं रासायनिक वातावरण बनाए रखने में मदद करते हैं।
  • ये रिज़र्व स्थानीय समुदायों के जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और मनोरंजन एवं अन्य सुविधाओं के साथ-साथ कई पारंपरिक मूल्यों का भी संरक्षण करते हैं। इस प्रकार ये 0.3 करोड़ से 62.144 करोड़ रुपए तक के सामाजिक-सांस्कृतिक लाभों की भी पूर्ति करते हैं।
  • ये रिज़र्व 15310-98530 करोड़ रुपए के पारिस्थितिक तंत्र और प्राकृतिक संपत्ति का संरक्षण भी करते हैं।

सुझाव

  • टाइगर प्रबंधन में पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाना चाहिये।
  • टाइगर रिज़र्व में निहित प्राकृतिक पूंजी में पर्याप्त निवेश किये जाने से भविष्य में पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के प्रवाह को सुनिश्चित किया जा सकता है।

नोट

  • वर्ष 1982 में स्थापित भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (Indian Institute of Forest Management) पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का एक स्वायत्त संस्थान है।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (03 August)

  • प्रशासनिक सुधार, लोक शिकायत विभाग और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा मेघालय सरकार मिलकर 8-9 अगस्त को मेघालय की राजधानी शिलांग में ई-गवर्नेंस 2019 पर 22वें राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन करे रहे हैं। इस सम्मेलन का पूर्वोत्तर क्षेत्र में पहली बार आयोजन किया जा रहा है। यह सम्मेलन सभी तरह की डिजिटल सेवाएँ उपलब्ध कराने, समस्याओं के समाधान में अनुभव का आदान-प्रदान करने, जोखिम कम करने, मुद्दों को सुलझाने और सफलता की योजना उपलब्ध कराने के लिये स्थायी ई-गवर्नेंस पहलों को तैयार करने और उन्हें लागू करने के प्रभावी तरीकों के बारे में जानकारी साझा करने हेतु एक मंच उपलब्ध कराता है। इस सम्मेलन का विषय डिजिटल इंडिया : सफलता से उत्कृष्टता है। इस सम्मेलन 28 राज्यों और आठ केंद्रशासित प्रदेशों के 450 से अधिक प्रतिनिधि शामिल होंगे।
  • भारत और बोलिविया के बीच शांतिपूर्ण उद्देश्‍यों के लिये बाह्य अंतरिक्ष में अन्‍वेषण और उपयोग में सहयोग के लिये एक समझौते को सरकार ने स्‍वीकृति प्रदान की है। इस समझौते पर 29 मार्च, 2019 को इसरो और बोलिविया अंतरिक्ष एजेंसी ने भारत के राष्‍ट्रपति की बोलिविया यात्रा के दौरान सांता क्रूज डि ला सियरा, बोलिविया में हस्‍ताक्षर किए थे। इस समझौते से पृथ्‍वी की रिमोट सेंसिंग, उपग्रह संचार, उपग्रह आधारित नेविगेशन, अंतरिक्ष विज्ञान और ग्रह-संबंधी अन्‍वेषण, अंतरिक्ष यान, अंतरिक्ष प्रणालियों और भूतल प्रणाली के उपयोग तथा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग सहित अंतरिक्ष विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा अनुप्रयोगों जैसे सहयोग के संभावित हित क्षेत्रों में काम किया जाएगा। ज्ञातव्य है कि बोलिविया अंतरिक्ष एजेंसी ने कुछ वर्ष पूर्व इसरो के साथ अंतरिक्ष सहयोग स्‍थापित करने की इच्‍छा जाहिर की थी।
  • थाईलैंड के बैंकाक में 52वीं आसियान विदेश मंत्री बैठक का आयोजन 29 जुलाई से 3 अगस्त तक किया गया। इस बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने किया। इस बैठक के साथ उन्होंने 10वीं मेकांग-गंगा सहयोग बैठक, नौवें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और 26वें आसियान क्षेत्रीय मंच की बैठक में भी हिस्सा लिया। आसियान समूह स्वयं को एक वैश्विक इकाई के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। यह 10 दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का अंतर-सरकारी संगठन है। इसकी स्थापना 6 अगस्त, 1967 को हुई थी। इसका मुख्यालय जकार्ता, इंडोनेशिया में है। इसके सदस्य देशों में इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रुनेई, कंबोडिया, लाओस, म्यांमार और वियतनाम शामिल हैं। इसके चार्टर में आसियान के उद्देश्य के बारे में बताया गया है। सदस्य देशों की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता को कायम रखना साथ ही विवादों का शांतिपूर्ण निपटारा करना इसके उदेश्यों में शामिल है। इसके महासचिव आसियान द्वारा पारित किये गए प्रस्तावों को लागू करवाने और कार्य में सहयोग प्रदान करने का काम करते है। महासचिव का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है। आसियान का पूरा नाम Association of South East Asian Nations-ASEAN है।
  • अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ के सैटेलाइट की मदद से वैज्ञानिकों ने तीन नए एक्सोप्लैनेट्स का पता लगाया है। ये ग्रह पृथ्वी से 73 प्रकाशवर्ष दूर स्थित हैं। आपको बता दें कि एक्सोप्लैनेट ऐसे ग्रह होते हैं जो हमारे सौरमंडल के बाहर स्थित होते हैं और किसी तारे के चारों को घूमते रहते हैं। इन खोजे गए तीन ग्रहों में से एक ग्रह चट्टानी और पृथ्वी से कुछ बड़ा है, जबकि दो अन्य गैसीय हैं और हमारी पृथ्वी के आकार से दोगुने हैं। नासा के ‘हंटिंग सैटेलाइट’ से खोजी गई नए तारों की प्रणाली को TESS ऑब्जेक्ट ऑफ इंटरेस्ट या TOI-270 कहा जाता है। यह बिल्कुल वैसी ही है जैसी ट्रांज़िटिंग एक्सोप्लैनेट सर्वे सैटेलाइट (TESS) को खोजने के लिये डिज़ाइन की गई थी। हमारे सौरमंडल में पृथ्वी, बुध, शुक्र और मंगल जैसे छोटे, चट्टानी ग्रह या शनि, बृहस्पति, यूरेनस और नेप्च्यून जैसे बड़े ग्रह हैं, जिनमें भूमि की तुलना में गैसों की मात्रा अधिक है। सौरमंडल में नेप्च्यून से छोटे आकार का कोई ग्रह नहीं है। अब वैज्ञानिक TOI-270 की मदद से जल्द ही पृथ्वी जैसे चट्टानी ग्रहों और नेप्च्यून जैसे गैसीय ग्रहों के बीच संबंधों का पता लगा सकते हैं क्योंकि यहाँ इन सभी प्रकारों को एक ही प्रणाली में बनाया गया है।
  • 1 अगस्त से ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच खेली जाने वाली एशेज़ टेस्ट क्रिकेट सीरीज़ की शुरुआत हो गई है। दुनिया में इसे टेस्ट क्रिकेट की सबसे बड़ी सीरीज़ माना जाता है। इसमें इंग्लैंड के बर्मिंघम में पाँच टेस्ट मैचों की सीरीज़ खेली जानी है। इस बार खास बात यह है कि इसी पहले टेस्ट के साथ वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप की भी शुरुआत हो रही है, जिसे क्रिकेट के सबसे लंबे फॉर्मेट की लोकप्रियता बनाए रखने के लिये इस खेल की वैश्विक संस्था इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (ICC) ने शुरू किया है। वैसे दोनों देशों के बीच अब तक 70 एशेज़ सीरीज़ खेली जा चुकी हैं, जिनमें से 33 बार ऑस्ट्रेलिया और 32 बार इंग्लैंड विजेता रहा है। दरअसल, वर्ष 1882 में जब ऑस्ट्रेलिया की टीम इंग्लैंड के दौरे पर आई थी, तब ओवल मैदान पर हुए पहले टेस्ट मैच में इंग्लैंड की टीम आसानी से जीता हुआ मैच हार गई। इंग्लैंड पहली बार अपनी धरती पर कोई टेस्ट मैच हारा था। तब इंग्लिश मीडिया ने इंग्लिश क्रिकेट पर अफसोस जताया और इसे इंग्लिश क्रिकेट की मौत करार दे दिया। तब 'द स्पोर्ट्स टाइम्स' नामक अखबार ने एक शोक संदेश छापा, जिसमें लिखा था- 'इंग्लिश क्रिकेट का देहांत हो चुका है- 29 अगस्त, 1882, ओवल...और अब इसके अंतिम संस्कार के बाद उसकी राख (Ashes) ऑस्ट्रेलिया ले जाई जाएगी। बाद में ऑस्ट्रेलिया में स्टंप्स पर रखी जाने वाली बेल्स (गिल्लियों) को जलाकर राख बनाई गई और उसको एक Urn (राख रखने वाले बर्तन) में डाल कर इंग्लैंड के कप्तान को दिया गया। वहीं से यह परंपरा चली आई और आज भी एशेज़ ट्रॉफी उसी राख वाले बर्तन को ही माना जाता है और उसी की एक बड़ी प्रतिकृति को ट्रॉफी बनाकर दिया जाता है।

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