डेली न्यूज़ (03 Jul, 2019)



सेल्फ केयर इंटरवेंशन पर दिशा-निर्देश

चर्चा में क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) ने सेल्फ केयर इंटरवेंशन फॉर हेल्थ (Self-Care Interventions For Health) पर पहली बार दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

सेल्फ केयर क्या है?

सेल्फ केयर व्यक्तियों, परिवारों और समुदायों की वह क्षमता है जो उन्हें स्वास्थ्य को बढ़ावा देने, बीमारी को रोकने, स्वास्थ्य को बनाए रखने और स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता की सहायता के बिना बीमारी और विकलांगता का सामना करने में सक्षम बनाती है।

प्रमुख दिशा-निर्देश

  • WHO द्वारा जारी इन दिशा-निर्देशों में यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य तथा अधिकारों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इनमें से कुछ इंटरवेंशन निम्नलिखित हैं:
    • ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (HPV) तथा यौन संचारित संक्रमणों की महिलाओं द्वारा स्वयं जाँच।
    • स्वयं इंजेक्ट किये जा सकने योग्य गर्भनिरोधकों का उपयोग।
    • घरेलू ओवुलेशन किट का उपयोग।
    • HIV (Human Immunodeficiency Virus) की स्वयं जाँच तथा चिकित्सालय आधारित गर्भपात के पश्चात् स्वयं की देखभाल।
  • ये दिशा-निर्देश कुछ हस्तक्षेपों (Interventions) के स्वास्थ्य लाभ हेतु वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित हैं। चिकित्सा के पारंपरिक क्षेत्र से परे इन घरेलू उपचारों को अपनाया जा सकता है लेकिन कभी-कभी इनके इस्तेमाल के लिये स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता के परामर्श की आवश्यकता होती है।
  • ये उच्च-गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं का स्थान नहीं ले सकते हैं और न ही यह सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने का कोई शॉर्टकट है।

सेल्फ केयर इंटरवेंशन की आवश्यकता

  • एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2035 तक वैश्विक स्तर पर लगभग 13 मिलियन स्वास्थ्य सेवकों की कमी होगी। वर्तमान में दुनिया भर में कम-से-कम 400 मिलियन लोग ऐसे हैं जिनकी आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच नहीं है।

सेल्फ केयर इंटरवेंशन का महत्त्व

  • सेल्फ केयर इंटरवेंशन स्वास्थ्य के प्रति दक्षता एवं समझ विकसित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • सुगम्यता: यह कमज़ोर वर्ग की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित कर सकता है।
  • स्वास्थ्य का अधिकार: इन दिशा-निर्देशों के द्वारा लोग अपने स्वास्थ्य कल्याण हेतु किफायती विकल्प प्राप्त कर सकेंगे।
  • समानता: सेल्फ केयर उन लोगों के लिये भी यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच का एक माध्यम है जो लैंगिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और शक्ति की गतिशीलता के कारण नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए हैं, इसमें उन लोगों को भी शामिल किया जाता है जो ज़बरन विस्थापित हुए हैं। क्योंकि बहुत से लोग प्रजनन के संबंध में निर्णय लेने में असमर्थ होते हैं।

Self care WHO

स्रोत: द हिंदू


केरल में आधिकारिक तौर पर ‘ट्रांसजेंडर’ शब्द के प्रयोग की घोषणा

चर्चा में क्यों?

केरल सरकार ने आधिकारिक तौर पर यह घोषणा की है कि सभी प्रकार के सरकारी संवादों में ’अदर जेंडर’ (Other Gender) या ‘थर्ड जेंडर’ (Third Gender) के स्थान पर केवल ट्रांसजेंडर (Transgender) शब्द का प्रयोग किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • केरल सरकार द्वारा जारी ने एक आदेश में कहा गया है कि ट्रांसजेंडरों को ’तीसरे लिंग’ या अन्य लिंग अथवा भिन्न लिंग अभिविन्यास वाले लोगों’ [भिन्नलैंगिकम्] के रूप में संबोधित नहीं किया जाना चाहिये।
  • इससे पहले सरकारी फॉर्मों और दस्तावेज़ो में दिये गए लैंगिक वरीयता क्रम में पुरुष, महिला और अन्य/तीसरे लिंग का जिक्र किया जाता था।
  • सरकार के अनुसार, सभी आधिकारिक संचार/संवाद में ट्रांसजेंडर शब्द का उपयोग तब तक किया जाएगा जब तक कि इसके समतुल्य कोई अन्य शब्द न मिल जाए क्योंकि सामान्य परिस्थितियों में लैंगिक आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।
  • उल्लेखनीय है कि ट्रांसजेंडर शब्द का इस्तेमाल करने की मांग लंबे समय से की जा रही थी क्योंकि 'अन्य' या 'थर्ड जेंडर' का प्रयोग ट्रांसजेंडरों को अपमान के समान लगता है।

ट्रांसजेंडर के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

  • सर्वोच्च न्यायालय के राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority-NALSA) ने अपने निर्णय में कहा है कि ट्रांसजेंडर शब्द व्यापक तौर पर प्रयोग किया जाता है और इसमें कई लोग शामिल हैं, जिसमें हिजड़ा एवं किन्नर’ और मध्यलिंगी भिन्नताओं (Intersex Variations) जैसी सांस्कृतिक पहचान को भी शामिल किया गया हैं। अतः ‘अन्य' जैसे विकल्प का उपयोग करने की आवश्यकता ही नहीं है।

पृष्ठभूमि

  • ट्रांसजेंडर सेल ने केरल सरकार को उन शब्दों की एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिनका सरकारी संचार में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को संदर्भित करने के लिये उपयोग किया जा रहा था।
  • ट्रांसजेंडर सेल के अनुसार, सरकारी दस्तावेज़ जैसे-बजट रिपोर्ट या प्लान बुक सभी में दूसरे या तीसरे लिंग शब्द का इस्तेमाल किया जाता है।

ट्रांसजेंडर सेल (Transgender Cell)

  • ट्रांसजेंडर समुदाय को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने और उनके अधिकारों को संरक्षित करने के उद्देश्य से केरल सरकार के सामाजिक न्याय विभाग ने फरवरी 2018 में ट्रांसजेंडर सेल की स्थापना की।
  • ट्रांसजेंडर सेल का मुख्य लक्ष्य राज्य ट्रांसजेंडर न्याय बोर्ड (State Transgender Justice Board) और ज़िला ट्रांसजेंडर न्याय समितियों (District Transgender Justice Committees) के कामकाज में सहायता प्रदान करना है।

निष्कर्ष

  • ट्रांसजेंडर के संदर्भ में तृतीय या भिन्न का प्रयोग आपत्तिजनक है क्योंकि इससे ऐसा प्रतीत होता है कि बाकी दो लिंग सामान्य हैं, इसके कारण ट्रांसजेंडर स्वयं को हाशिये पर महसूस करते हैं। ऐसे में केरल सरकार का आदेश उनके प्रतिनिधित्त्व को बढ़ावा देता है। अतः आधिकारिक संचार में ट्रांसजेंडर शब्द का उपयोग करने पर कोई अस्पष्टता नहीं होनी चाहिये। ट्रांसजेंडर एक लैंगिक पहचान है और इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


GM फसलों पर रोक

चर्चा में क्यों?

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture & Farmers Welfare) द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत जानकारी के अनुसार, कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग (Department of Agriculture, Cooperation and Farmers Welfare) ने राज्यों को BT बैंगन और HT कपास के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये निर्देश जारी किये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • BT कपास,पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee) द्वारा वाणिज्यिक खेती के लिये अनुमोदित एकमात्र आनुवंशिक रूप से संशोधित फसल है।
  • इसके अतिरिक्त अन्य GM फसलों की खेती पर प्रतिबंध है। हाल ही में BT बैंगन और HT कपास की खेती के कुछ मामले महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और आंध्र प्रदेश में सामने आये हैं ।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 (Environment Protection Act 1986) के तहत वर्ष 1989 में बनाये गये सूक्ष्मजीवों, आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों से संबंधित नियमों द्वारा GM फसलों को मंज़ूरी प्रदान की जाती है।
  • GM फसलों का मूल्यांकन स्वास्थ्य, पर्यावरण, भोजन पर प्रभाव के आधार पर 1989 के नियमो के तहत जैव सुरक्षा समिति और आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति द्वारा किया जाता है।

जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति

(Genetic Engineering Appraisal Committee)

  • जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC) के अंतर्गत स्थापित किया गया है।
  • इसका कार्य अनुवांशिक रूप से संशोधित सूक्ष्म जीवों और उत्पादों के कृषि में उपयोग को स्वीकृति प्रदान करना है।
  • विदित हो कि जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों के लिये स्थापित भारत का सर्वोच्च नियामक है |

बीटी (Bt) तथा बीटी फसलें (Bt crops) क्या हैं ?

  • बेसिलस थुरिनजेनेसिस (Bacillus Thuringiensis– Bt) एक जीवाणु है जो प्राकृतिक रूप से क्रिस्टल प्रोटीन उत्पन्न करता है| यह प्रोटीन कीटों के लिये हानिकारक होता है।
  • बीटी फसलों का नाम बेसिलस थुरिनजेनेसिस (bacillus thuringiensis -Bt) के नाम पर रखा गया है|
  • बीटी फसलें ऐसी फसलें होती है जो बेसिलस थुरिनजेनेसिस नामक जीवाणु के समान ही विषाक्त पदार्थ उत्पन्न करती हैं ताकि फसलों का कीटों से बचाव किया जा सके।
  • जैव प्रौद्योगिकी विभाग और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों और उत्पादो के लिये निम्न प्रोटोकॉल जारी किये हैं-
    • DNA सुरक्षा हेतु दिशा-निर्देश, 1990
    • संशोधित फसलो पर अनुसंधान हेतु दिशा-निर्देश, 1998
    • GM पौधों से उत्पन्न खाद्य पदार्थों के सुरक्षा मूल्यांकन के लिये दिशा-निर्देश, 2008
    • GM फसलो के सीमित क्षेत्रो में परीक्षण के लिये दिशा-निर्देश, 2008
    • जैव सुरक्षा समिति के दिशा-निर्देश, 2011
    • GM फसलो के पर्यावरण जोखिम मूल्यांकन पर दिशा-निर्देश, 2016
    • जोखिम विश्लेषण फ्रेमवर्क, 2016

स्रोत : pib


BEPS से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समझौता

चर्चा में क्यों?

सरकार ने यह घोषणा की है कि उसने आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण (Base Erosion and Profits Shifting - BEPS) को रोकने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समझौते की पुष्टि कर दी है।

मुख्य बिंदु :

  • सरकार के इस कदम का मुख्य उद्देश्य कंपनियों को अपने लाभ को देश से बाहर ले जाने और देश की सरकार को कर राजस्व से वंचित करने से रोकना है।
  • यह समझौता एक बहुपक्षीय उपकरण (Multilateral Instruments - MLI) है जिसके प्रयोग से BEPS को रोकने का प्रयास किया जाएगा।
  • MLI का निर्माण सभी G20 देशों के एकजुट प्रयासों का परिणाम है। ये सभी देश कहीं न कहीं BEPS से प्रभावीत होते हैं।
  • इस समझौते में भारत के अतिरिक्त 65 अन्य देशों का भी प्रतिनिधित्व है।
  • MLI यह सुनिश्चित करेगा की लाभ जिस देश में कमाया जा रहा है उसी देश में उसके कर का भुगतान भी किया जा रहा है, जिससे भारत की राजस्व हानि को कम किया जा सकेगा।

आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण :

  • BEPS का तात्पर्य ऐसी टैक्स प्लानिंग रणनीतियों से है जिनके तहत टैक्स नियमों में अंतर और विसंगतियों का लाभ उठाकर कम्पनियाँ अपने लाभ को किसी ऐसे स्थान या क्षेत्र में हस्तांतरित कर देती हैं जहाँ या तो टैक्स होता ही नहीं और यदि होता भी है तो बहुत कम अथवा नाम-मात्र। इन क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियाँ या तो नहीं होती हैं या मामूली आर्थिक गतिविधियाँ होती हैं। ऐसे में संबंधित कंपनी द्वारा या तो कोई भी कॉरपोरेट टैक्स‍ अदा नहीं किया जाता है अथवा मामूली कॉरपोरेट टैक्‍स का ही भुगतान किया जाता है।
  • जून 2017 में भारत ने पेरिस स्थित OECD के मुख्‍यालय में आयोजित एक समारोह में आधार क्षरण एवं लाभ स्‍थानांतरण (BEPS) की रोकथाम हेतु कर संधि से संबंधित उपायों को लागू करने के लिये बहुपक्षीय समझौते पर हस्‍ताक्षर किये थे।
  • इस समझौते का उद्देश्य‍ कृत्रिम ढंग से कर अदायगी से बचने की प्रवृत्ति पर रोक लगाना, संधि के दुरुपयोग की रोकथाम सुनिश्चित करना और विवाद निपटान की व्‍यवस्‍था को बेहतर करना है।

स्रोत: द हिंदू


भारत में आत्महत्याओं पर NCRB की रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau - NCRB) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2015 में महाराष्ट्र में सबसे ज़्यादा (लगभग 16,970) आत्महत्याएँ दर्ज़ की गईं।

मुख्य बिंदु :

  • वर्ष 2015 के लिये जारी इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इस वर्ष (यानी 2015 में) देश में आत्महत्याओं की कुल संख्या 1,33,623 थी।
  • रिपोर्ट के विश्लेषण से यह ज्ञात होता है कि ‘आत्महत्याओं की बड़ी संख्या घनी आबादी वाले राज्यों में ही है’, परंतु भारत के दो बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार इस कथन के अपवाद हैं।
  • उत्तर प्रदेश और बिहार में आत्महत्याओं की संख्या क्रमशः 3,902 और 516 दर्ज़ की गई जो कि कई छोटे-छोटे राज्यों के बराबर है।
  • वहीं दूसरी ओर तमिलनाडु, जो कि इस सूची में दूसरे स्थान पर रहा, में आत्महत्याओं की कुल संख्या 15,777 थी,यह उत्तर प्रदेश के आंकड़ों से लगभग 4 गुना अधिक है।

Highest Suicide counts

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो :

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की स्थापना केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत वर्ष 1986 में इस उद्देश्य से की गई थी कि भारतीय पुलिस में कानून व्यवस्था को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये पुलिस तंत्र को सूचना प्रौद्योगिकी समाधान और आपराधिक गुप्त सूचनाएँ प्रदान करके समर्थ बनाया जा सके।
  • NCRB नीति संबंधी मामलों और अनुसंधान हेतु अपराध, दुर्घटना, आत्महत्या और जेल संबंधी डेटा के प्रामाणिक स्रोत के लिये नोडल एजेंसी है।
  • NCRB ‘भारत में अपराध’, ‘दुर्घटनाओं में होने वाली मौतें और आत्महत्या’, ‘जेल सांख्यिकी’ तथा फ़िंगर प्रिंट पर 4 वार्षिक प्रकाशन जारी करता है।
  • हाल ही में बाल यौन शोषण से संबंधित मामलों की अंडर- रिपोर्टिंग के चलते वर्ष 2017 से NCRB ने बाल यौन शोषण से संबंधित आँकड़ों को भी एकत्रित करना प्रारंभ किया है।
  • ये प्रकाशन आपराधिक आँकड़ों के संदर्भ में न केवल पुलिस अधिकारियों बल्कि अपराध विज्ञानी, शोधकर्त्ताओं, मीडिया और नीति निर्माताओं के लिये भी सहायक होते है।
  • NCRB को वर्ष 2016 में इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा ‘डिजिटल इंडिया अवार्ड’ से भी सम्मानित किया गया था।
  • भारत में पुलिस बलों का कंप्यूटरीकरण वर्ष 1971 में प्रारंभ हुआ। NCRB ने CCIS (Crime and Criminals Information System) वर्ष 1995 में, CIPA (Common Integrated Police Application) 2004 में और अंतिम रूप में CCTNS वर्ष 2009 में प्रारंभ किया।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत में गैर-संचारी रोग (NCDS)

चर्चा में क्यों?

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) की रिपोर्ट ‘इंडिया: हेल्थ ऑफ़ द नेशंस स्टेट्स’ के अनुसार, वर्ष 2016 में होने वाली कुल मौतों में गैर-संचारी रोगों का योगदान 61.8% था।

  • प्रमुख बिंदु
    गैर-संचारी रोग ऐसी दीर्घकालिक बीमारियाँ हैं जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलते हैं जैसे- कैंसर, मधुमेह और हृदय रोग, जबकि संचारी रोग तेज़ी से संक्रमण करते हैं तथा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अति शीघ्र फैलते हैं जैसे- मलेरिया, टायफायड, चेचक, इन्फ्लुएन्ज़ा आदि।
  • रिपोर्ट के अनुसार, केरल, गोवा और तमिलनाडु में महामारी के संक्रमण अर्थात् संचारी रोगों के कारण क्षेत्र में मृत्यु के मामले कम पाए गए जबकि मातृत्व, नवजात एवं पोषण संबंधी गैर-संचारी बीमारियाँ मृतकों की संख्या में वृद्धि कर रही हैं।
  • गैर-संचारी रोग के जोखिम उम्र बढ़ने, अस्वास्थ्यकर आहार, शारीरिक गतिविधि की कमी, उच्च रक्तचाप, उच्च रक्त शर्करा, उच्च कोलेस्ट्रॉल तथा अधिक वज़न आदि के कारण बढ़ रहे हैं।
  • हालाँकि सार्वजनिक स्वास्थ्य का विषय राज्य सूची के अंतर्गत आता है, केंद्र सरकार राज्य सरकारों के प्रयासों में पूरक का कार्य करती है।

गैर-संचारी रोग

(Non-Communicable Diseases- NCD)

  • गैर-संचारी रोगों को दीर्घकालिक बीमारियों के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि ये लंबे समय तक बनी रहते हैं तथा ये एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलते हैं।
  • आमतौर पर ये रोग आनुवंशिक, शारीरिक, पर्यावरण और जीवन-शैली जैसे कारकों के संयोजन का परिणाम होते हैं।
  • यह एक आम धारणा है कि बढ़ती आय के साथ आहार संबंधी व्यवहार, अनाज और अन्य कार्बोहाइड्रेट आधारित भोजन से फलों, सब्जियों, दूध, अंडे और मांस जैसे पोषक तत्त्वों से समृद्ध विकल्पों की तरफ झुक जाता है।
  • ऐसे खाद्य उत्पाद ऊर्जा-गहन (Energy-dense) और वसा, शर्करा तथा नमक की उच्च मात्रा से युक्त होते हैं जो इनके उपभोक्ताओं की NCDs और मोटापे के प्रति सुभेद्यता को बढ़ाते हैं।
  • गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और इन पर नियंत्रण हेतु वैश्विक कार्रवाई के तहत विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की योजना में चार मुख्य NCD शामिल किये गए हैं, जो कि निम्नलिखित हैं:
    • हृदयवाहिनी बीमारियाँ (Cardiovascular Diseases-CVD) जैसे-हार्ट अटैक एवं स्ट्रोक
    • कैंसर
    • दीर्घकालिक श्वास संबंधी बीमारियाँ
    • मधुमेह (Diabetes)
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हृदय संबंधी विकार, कैंसर और मधुमेह सहित गैर-संचारी रोग भारत में लगभग 61% मौतों का कारण बनते हैं।
  • इन बीमारियों के कारण लगभग 23% लोगों पर प्री-मैच्योर (समय से पहले) मौत का खतरा बना हुआ है।

केंद्र सरकार के प्रयास

  • केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission- NHM) के तहत कैंसर, मधुमेह और हृदय रोगों तथा स्ट्रोक की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य कैंसर सहित सामान्य गैर-संचारी रोगों से लोगों को सुरक्षा प्रदान करना है जिसमें स्वास्थ्य संवर्द्धन गतिविधियाँ आदि शामिल है।
  • NHM के तहत गैर-संचारी रोगों जैसे- डायबिटीज़, उच्च रक्तचाप और कैंसर (ओरल, ब्रेस्ट और सर्वाइकल कैंसर) की जनसंख्या आधारित स्क्रीनिंग/जाँच शुरू की गई है।
  • जनसंख्या आधारित स्क्रीनिंग के प्रमुख घटकों में समुदाय आधारित जोखिम का मूल्यांकन, परीक्षण, परामर्श आदि शामिल हैं, और सामान्य गैर-संचारी रोगों (उच्च रक्तचाप, मधुमेह, ओरल कैंसर, स्तन कैंसर और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर) के लिये 30 साल तथा उससे अधिक उम्र के सभी व्यक्तियों की सहायता करना शामिल है।
  • यह पहल शुरुआती निदान में मदद करेगी और गैर-संचारी रोगों के जोखिम कारकों के विषय में जागरूकता पैदा करेगी।
  • कैंसर की तृतीयक देखभाल (Tertiary Care) में सुविधाओं को बढ़ाने के लिये केंद्र सरकार देश के विभिन्न हिस्सों में राज्य कैंसर संस्थानों (State Cancer Institutes- SCI)और तृतीयक देखभाल केंद्रों (Tertiary Care Centres) की स्थापना में सहायता हेतु नई योजनाएँ लागू कर रही है।
  • सस्ती दवाओं तथा उपचार के लिये विश्वसनीय प्रत्यारोपण (Affordable Medicines and Reliable Implants for Treatment- AMRIT) हेतु 159 संस्थानों/अस्पतालों में दीनदयाल आउटलेट खोले गए हैं, जिनका उद्देश्य कैंसर और हृदय रोग एवं प्रत्यारोपण के रोगियों को रियायती कीमतों पर दवा उपलब्ध कराना है

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन

National Health Mission- NHM

  • भारत सरकार द्वारा इस मिशन को वर्ष 2013 में प्रारंभ किया गया। इसे वर्ष 2020 तक जारी रखने की योजना है।
  • इसके दो उप-मिशन राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन हैं।
  • इस मिशन का उद्देश्य प्रजनन-मातृ-नवजात शिशु- बाल एवं किशोरावस्था स्वास्थ्य (RMNCH-A) तथा संक्रामक एवं गैर-संक्रामक रोगों के लिये ग्रामीण एवं शहरी स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत बनाना शामिल है।
  • इस मिशन का लक्ष्य न्यायसंगत, सस्ती एवं गुणवत्तापरक स्वास्थ्य सेवाओं तक सार्वभौम पहुँच सुनिश्चित करना है।

स्रोत- PIB


ग्लोबल वार्मिंग और भारत में रोज़गार

चर्चा में क्यों ?

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation-ILO) ने ‘वर्किंग ऑन ए वार्मर प्लैनेट:द इंपैक्ट ऑफ हीट स्ट्रेस लेबर प्रोडक्टिविटी एंड डिसेंट वर्क’ (Working on a Warmer Planet: The Impact of Heat Stress on Labour Productivity and Decent Work) नामक एक रिपोर्ट जारी की।

working on a warmer

ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव

  • ILO द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग से विशेष रूप से कृषि और निर्माण क्षेत्रों में काम के घंटों की उत्पादकता में 5.8 प्रतिशत की कमी के कारण भारत में वर्ष 2030 तक 34 लाख पूर्णकालिक रोज़गार की उत्पादकता के बराबर श्रम का नुकसान होने की संभावना है।
  • अधिक तापमान से मज़दूरों के काम करने की गति में कमी आएगी जिससे वर्ष 2030 तक कुल वैश्विक श्रम उत्पादकता में 2% तक का नुकसान होगा, जो 80 लाख पूर्णकालिक नौकरियों की उत्पादकता के बराबर है।
  • जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु ठोस रणनीति न अपनाये जाने से वर्ष 2030 तक 2,400 बिलियन अमेरिकी डॉलर के संचित वैश्विक वित्तीय घाटे की आशंका है ।
  • ग्लोबल वार्मिंग से दक्षिण एशिया में वर्ष 2030 तक कुल श्रम उत्पादकता के 5.3% भाग की हानि होगी, जो 43 लाख पूर्णकालिक रोज़गार की उत्पादकता के बराबर है। इस क्षेत्र में रोज़गार के 90% तक अनौपचारिक होने से स्थिति और गंभीर हो जाती है।
  • भारत भी ग्लोबल वार्मिंग से विशेष रूप से प्रभावित होगा, वर्ष 1995 के कार्यशील घंटों की उत्पादकता में अभी तक 4.3% की कमी है जो वर्ष 2030 तक घटकर 5.8% होने की उम्मीद है।
  • ग्लोबल वार्मिंग का सबसे ज़्यादा प्रभाव कृषि क्षेत्र पर होने की संभावना है लेकिन इससे विनिर्माण क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं एवं पुरुषों पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा।
  • वर्ष 2030 तक राष्ट्रीय स्तर पर सभी देशो की सकल घरेलू उत्पाद में कमी का अनुमान है। बढ़ते ताप के कारण थाईलैंड, कंबोडिया, भारत और पाकिस्तान की GDP में पाँच प्रतिशत से अधिक कमी होने की संभावना है।

GFDL-ILO

  • कार्य स्थल पर अत्यधिक गर्मी एक व्यावसायिक स्वास्थ्य जोखिम है और इससे हीटस्ट्रोक की संभावना रहती है, जो श्रमिकों के लिये घातक हो सकता है।
  • ग्लोबल वार्मिंग से निम्न और उच्च आय वाले देशों के बीच असमानता भी बढ़ेगी ।
  • यातायात, पर्यटन, खेल और आपातकालीन सेवाओं पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा ।

स्रोत : द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


टिड्डों को नियंत्रित करने हेतु भारत-पाक का संयुक्त कदम

चर्चा में क्यों?

टिड्डों (Locusts) की आवाजाही को रोकने और सीमा से लगे इलाकों में फ़सलों को बचाने के लिए भारत और पाकिस्तान के अधिकारी एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

  • दोनों देश टिड्डों की आवाजाही को रोकने और प्रतिबंधित करने के लिए खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agricultural Organization - FAO) के माध्यम से लगातार उपग्रह डेटा सहित अन्य सूचनाओं को साझा कर रहे हैं।

खाद्य और कृषि संगठन :

  • खाद्य और कृषि संगठन को 1945 में संयुक्त राष्ट्र के पहले सत्र द्वारा कनाडा के शहर क्यूबैक में बनाया गया था।
  • FAO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो भूख से लड़ने के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का नेतृत्व करती है।
  • FAO ज्ञान और सूचना का एक स्रोत भी है, जो विकासशील देशों को आधुनिक बनाने तथा कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन में सुधार के प्रयास करता है, ताकि सभी के लिए अच्छा पोषण और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है।

टिड्डे (Locusts) :

  • मुख्यतः टिड्डे एक प्रकार के बड़े उष्णकटिबंधीय कीड़े होते हैं जिनके पास उड़ने की अतुलनीय क्षमता होती है।
  • ये व्यवहार बदलने की अपनी क्षमता में अपनी प्रजाति के अन्य कीड़ों से अलग होते हैं और ये लंबी दूरी तक पलायन करने के लिये बड़े-बड़े झुंडों का निर्माण करते हैं।
  • टिड्डों की प्रजाति में रेगिस्तानी टिड्डों को सबसे खतरनाक और विनाशकारी माना जाता है।
  • आमतौर पर जून और जुलाई के महीनों में इन्हें आसानी से देखा जाता है क्योंकि ये गर्मी और बारिश के मौसम में ही सक्रिय होते हैं।
  • सामान्य तौर पर ये टिड्डे प्रतिदिन 150 किलोमीटर तक उड़ सकते हैं।
  • यदि अच्छी बारिश होती है और परिस्थितियाँ इनके अनुकूल रहती हैं तो इनमें तेज़ी से प्रजनन करने की क्षमता भी होती है और ये तीन महीनों में 20 गुना तक बढ़ सकते हैं।
  • वनस्पति के लिए खतरा : एक व्यस्क टिड्डा प्रतिदिन अपने वजन के बराबर भोजन (लगभग 2 ग्राम वनस्पति प्रतिदिन) खा सकता है जिसके कारण यह फसलों और खाद्यान्नों के लिये बड़ा खतरा बन जाते हैं।
  • यदि इससे होने वाले संक्रमण को नियंत्रित न किया जाए तो इसके कारण गंभीर परिस्थियों का निर्माण हो सकता है।
  • टिड्डों को नियंत्रित करने के उपाय :
    • इसके झुंडों द्वारा रखे गये अण्डों का विनाश।
    • इन्हें फँसाने के लिये खाई खोदना।
    • कीटनाशक का उपयोग
  • सामान्यतः FAO दुनिया के सभी देशों को टिड्डों की स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करता है और उन देशों में टिड्डों के आक्रमण की सूचना भी देता है।

भारत में टिड्डे:

  • भारत में टिड्डों की निम्निखित चार प्रजातियाँ पाई जाती हैं :
    • रेगिस्तानी टिड्डे (Desert locust)
    • घुमंतू टिड्डे ( Migratory locust)
    • बॉम्बे टिड्डे (Bombay Locust)
    • ट्री टिड्डे (Tree locust)
  • पाकिस्तान के रास्ते भारत में प्रवेश करने वाला टिड्डों का वर्तमान समूह ईरान में उत्पन्न हुआ है।
  • इन टिड्डों की आवाजाही गर्मियों में अरब सागर से चलने वाली धूल भरी हवाओं से होती है जो इन्हें पाकिस्तान के सिंध के रास्ते भारत के पश्चिमी राजस्थान में ले आती है।
  • टिड्डों के इस समूह ने पाकिस्तान में काफी कहर बरपाया है, परंतु भारत की ओर से अभी तक ऐसी किसी भी स्थिति की ख़बर नहीं है।
  • जोधपुर का टिड्डा चेतावनी संगठन (Locust Warning Organisation- LWO) वर्तमान में राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर ज़िलों में 13 से 16 ऐसे ही विशाल समूहों को नियंत्रित कर रहा है।

टिड्डा चेतावनी संगठन:

  • कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन आने वाला टिड्डा चेतावनी संगठन मुख्य रूप से राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में टिड्डों की निगरानी, ​​सर्वेक्षण और नियंत्रण के लिये ज़िम्मेदार है।
  • LWO के उद्देश्य :
    • टिड्डों पर अनुसंधान करना।
    • राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ संपर्क और समन्वय स्थापित करना।
    • टिड्डी चेतावनी संगठन (LWO) के सदस्यों को, राज्य के अधिकारियों को, BSF कर्मियों को और किसानों को इस क्षेत्र में प्रशिक्षण प्रदान करना।
    • टिड्डों के कारण बनाने वाली आपातकाल परिस्थितियों से निपटने के लिये टिड्डी नियंत्रण अभियान का आयोजन करना।

स्रोत: टाइम्स ऑफ़ इंडिया


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (03 जुलाई)

  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने विभिन्न हितधारकों से सुझाव प्राप्त करने के बाद महिला सशक्तीकरण को लेकर मसौदा नीति तैयार की है। इसमें खाद्य सुरक्षा, पोषण, शिक्षा, अर्थव्यवस्था (कृषि उद्योग, श्रम, रोज़गार, NRI महिलाओं, सेवा क्षेत्र, विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहित), महिलाओं के खिलाफ हिंसा, शासन और निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने जैसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान की गई है। इस नीति का उद्देश्य आवास, आश्रय और बुनियादी ढाँचे, पेयजल एवं स्वच्छता, मीडिया व संस्कृति, खेल और सामाजिक सुरक्षा के माध्यम से महिलाओं के लिये सकारात्मक वातावरण बनाना है। इसका उद्देश्य महिलाओं को सशक्त बनाकर ऐसे समाज का निर्माण करना है, जिसमें महिलाएँ अपनी पूरी क्षमता प्राप्त कर उसका इस्तेमाल कर सकें तथा जीवन के सभी क्षेत्रों में समान भागीदारी के साथ हिस्सा ले सकें। इस नीति में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिये पर्यावरण के अनुकूल, नवीकरणीय, गैर-पारंपरिक ऊर्जा, हरित ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने के प्रावधान भी किये गए हैं।
  • राजस्थान में बीकानेर ज़िले के कालू पुलिस थाने को केंद्रीय गृह मंत्रालय की रैंकिंग में पहला स्थान मिला है। दूसरे स्थान पर अंडमान निकोबार द्वीपसमूह के निकोबार ज़िले में स्थित कैम्पबेल पुलिस थाना तथा तीसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले का फरक्का पुलिस थाना है। देश के सभी पुलिस थानों को लेकर वर्ष 2018 की इस रैंकिंग में 15,666 पुलिस स्टेशनों को विभिन्न मापदंडों पर परखा गया था। इनमें अपराध नियंत्रण सहित मामलों की जाँच और उनके निपटान, अपराध का पता लगाने, सामुदायिक पुलिसिंग और कानून व्यवस्था बनाए रखने जैसे मापदंड शामिल थे। इसके अलावा थाना कार्यालयों में रिकॉर्ड का रखरखाव, साफ-सफाई, ऑनलाइन FIR, ऑनलाइन GRS, शिकायतों का निस्तारण, जन शिकायतों का निस्तारण तथा पुलिसकर्मियों का जनता के प्रति व्यवहार सहित अन्य बिंदुओं पर भी विचार किया गया।
  • UK में टाटा समूह की रसायन बनाने वाली इकाई औद्योगिक स्तर पर देश की पहली कार्बन कैप्चर परियोजना बनाने पर काम कर रही है। नॉर्थविच, इंग्लैंड में 16.7 मिलियन पाउंड (21 मिलियन डॉलर) लागत वाली यह परियोजना वर्ष 2021 में काम करना शुरू कर सकती है। यह जीवाश्म ईंधन के दहन से बनने वाली CO2 को वातावरण से सोखकर इसे सोडियम बाइकार्बोनेट में बदल देगी, जो खाद्य और फार्मास्यूटिकल्स उद्योगों में इस्तेमाल होने वाला एक घटक है। इस प्रौद्योगिकी की लागत अधिक आने की वज़ह से अब तक कार्बन कैप्चरिंग और इसकी स्टोरेज को लेकर कोई विशेष प्रयास नहीं हुए क्योंकि इसके लिये कोई स्पष्ट बिज़नेस मॉडल नहीं है। यह परियोजना इस मायने में अलग होगी क्योंकि इसमें CO2 को भूमिगत स्टोर करने के बजाय अन्य घटक में परिवर्तित कर इसका इस्तेमाल किया जाएगा। यह संयंत्र प्राकृतिक गैस से संचालित उस संयुक्त ताप और बिजली संयंत्र से निकलने वाली गैसों से CO2 को लेगा, जो टाटा समूह की रसायन बनाने वाली इकाई तथा क्षेत्र के अन्य व्यवसायों को भाप और बिजली की आपूर्ति करती है। यह कार्बन कैप्चर और उपयोग संयंत्र प्रतिवर्ष 40 हज़ार टन CO2 कैप्चर करेगा, जिससे टाटा समूह की रासायनिक इकाई का उत्सर्जन 11% तक कम हो जाएगा। ज्ञातव्य है कि UK सरकार ने वर्ष 2050 तक अपने शुद्ध उत्सर्जन को शून्य तक कम करने का लक्ष्य रखा है।
  • लेखक अमीश त्रिपाठी को लंदन स्थित नेहरू सेंटर का निदेशक नियुक्त किया गया है। यह केंद्र भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) के तहत आता है। ‘सीक्रेट ऑफ द नागा’ और ‘सीता- वॉरियर ऑफ मिथिला’ जैसी पुस्तकों के लेखक अमीश त्रिपाठी, श्रीनिवास गोत्रु की जगह लेंगे, जिनका चार साल का कार्यकाल इस वर्ष की शुरुआत में समाप्त हो गया था। अमीश त्रिपाठी ने इस पद के लिये आवेदन किया था तथा एक चयन समिति ने उनका साक्षात्कार लिया और उसके बाद उन्हें नियुक्त किया गया। लंदन में नेहरू सेंटर की स्थापना वर्ष 1992 में की गई थी।
  • भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) की परिषद में भारत के प्रतिनिधि के रूप में शेफाली जुनेजा को तीन साल की अवधि के लिए नियुक्त किया है। वह वर्तमान में नागरिक उड्डयन मंत्रालय में संयुक्त सचिव के रूप में कार्यरत हैं। वह आलोक शेखर का स्थान लेंगी, जिन्हें अक्तूबर 2015 में इस पद के लिये नामित किया गया था। ICAO में 36 देशों का प्रतिनिधित्व है और इसका गठन 1944 में अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन पर शिकागो कन्वेंशन के तहत किया गया था। इसका मुख्यालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में है।
  • भारत माता मंदिर, हरिद्वार के संस्थापक और निवर्तमान शंकराचार्य महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि का 25 जून को 87 वर्ष की आयु में राघव कुटीर, हरिद्वार में निधन हो गया। उन्हें आश्रम परिसर में ही भू-समाधि दी गई। स्वामी सत्यमित्रानंद को 29 अप्रैल, 1960 को मात्र 26 वर्ष की आयु में भानपुरा पीठ का शंकराचार्य बना दिया गया था, लेकिन करीब 9 साल तक धर्म और मानव सेवा करने के बाद उन्होंने वर्ष 1969 में स्वयं शंकराचार्य का पद त्याग दिया था। उन्होंने हरिद्वार में भारत माता मंदिर की स्थापना की थी तथा उन्हें वर्ष 2015 में पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया था।