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डेली न्यूज़

  • 03 Jun, 2020
  • 61 min read
भारतीय विरासत और संस्कृति

स्पिक मैके अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन

प्रीलिम्स के लिये:

स्पिक मैके के बारे में 

चर्चा में क्यों?

1 जून, 2020 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘स्पिक मैके अनुभव’ (SPIC MACAY Anubhav) नामक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संबोधित किया। यह पहली बार है जब इस सम्मेलन का आयोजन ऑनलाइन किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • सम्मेलन का आयोजन 1-7 जून 2020 तक किया जा रहा है।
  • इस वर्ष सम्मेलन की विषय वस्तु इस बात पर केंद्रित है कि COVID-19 के चलते लगाए गए लॉकडाउन के दौरान युवाओं में उत्पन्न तनाव को किस प्रकार कम किया जाए।

Spic-Macay

‘स्पिक मैके’ के बारे में:

  • स्पिक मैके (Society for the Promotion of Indian Classical Music And Culture Amongst Youth- SPIC MACAY) एक गैर-राजनीतिक, राष्ट्रव्यापी, स्वैच्छिक आंदोलन है जिसकी स्थापना IIT-दिल्ली में प्रोफेसर रह चुके डॉ. किरण सेठ ने वर्ष 1977 में की थी। उल्लेखनीय है कि कला के क्षेत्र में योगदान के लिये डॉ. किरण सेठ को वर्ष 2009 में 'पद्म श्री' से सम्मानित किया गया था।  
  • स्पिक मैके, सोसायटी पंजीकरण अधिनियम (Societies Registration Act) 1860 के तहत पंजीकृत है और आयकर अधिनियम 1961 की धारा 80 (जी) के तहत इसे कर से छूट प्राप्त है। 
  • वर्ष 2011 में, ‘स्पिक मैके’ को युवा विकास में योगदान के लिये ‘राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है।
    • ‘राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार’ शांति, सांप्रदायिक सद्भाव के संवर्द्धन और हिंसा के खिलाफ लड़ाई में योगदान के लिये पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती के अवसर पर दिया जाता है।
  • इसके माध्यम से देश के कुशल कलाकारों द्वारा भारतीय शास्त्रीय संगीत और लोकनृत्य, कविता, रंगमंच, पारंपरिक चित्रों, शिल्प एवं योग से जुड़े कार्यक्रमों को मुख्य रूप से स्कूलों और कॉलेजों में प्रस्तुत किया जाता हैं।
  • SPIC MACAY को राष्ट्रीय स्तर पर संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture), युवा मामले और खेल मंत्रालय (Ministry of Youth Affairs and Sports) तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय (Ministry of Human Resource Development) द्वारा समर्थन प्राप्त  है।
  • इसका मुख्यालय दिल्ली में है।

स्पिक मैके के स्तम्भ

  • कलाकार (Artistes), संस्थान (Institutions), समर्थक (Supporters) और स्वयंसेवक (Volunteers) स्पिक मैके के चार स्तम्भ (Pillars) हैं।

उद्देश्य: 

  • SPIC MACAY का उद्देश्य भारतीय विरासत के विभिन्न पहलुओं के बारे में जागरूकता बढ़ाकर और इसमें निहित मूल्यों को आत्मसात करने के लिये युवाओं को प्रेरित कर औपचारिक शिक्षा की गुणवत्ता को समृद्ध करना है।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

फैवीपिराविर एंटीवायरल टेबलेट्स

प्रीलिम्स के लिये

फैवीपिरविर एंटीवायरल टेबलेट्स, ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया

मेन्स के लिये

चिकित्सीय परीक्षण के चरण व प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (Drug Controller General of India-DCGI) द्वारा वैश्विक महामारी COVID-19 से पीड़ित मरीज़ों पर फैवीपिराविर एंटीवायरल टेबलेट्स (Favipiravir Antiviral Tablets) के चिकित्सीय परीक्षण करने की अनुमति दी गई है।

प्रमुख बिंदु

  • ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स के अनुसार, फैवीपिराविर एंटीवायरल टेबलेट्स के चिकित्सीय परीक्षण से COVID-19 रोगियों पर इसकी प्रभावकारिता का पता लगाया जाएगा। 

ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया 

  • ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया भारतीय दवा नियामक संस्था केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organization-CDSCO) का प्रमुख होता है।
  • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अंतर्गत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण (NRA) है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • देश भर में इसके छह ज़ोनल कार्यालय, चार सब-ज़ोनल कार्यालय, तेरह पोर्ट ऑफिस और सात प्रयोगशालाएँ हैं।
  • फैवीपिराविर एंटीवायरल टेबलेट्स जापान की फार्मास्युटिकल कंपनी फुजीफिल्म टोयामा (Fujifilm Toyama) द्वारा निर्मित एविगन ड्रग (Avigan Drug) के फार्मुलेशन पर आधारित जेनेरिक दवा है। 

क्या हैं जेनेरिक दवाएँ?

  • अनुसंधान एवं नवाचार के पश्चात् दवाओं का निर्माण किया जाता है जिसका दवा निर्माता कंपनी द्वारा ट्रिप्स पद्धति के अंतर्गत पेटेंट कराया जाता है। पेटेंट द्वारा दवा का निर्माण तथा विक्रय संबंधित कंपनी के लिये अनन्य हो जाता है तथा किसी अन्य संस्था के लिये उस दवा का निर्माण करना प्रतिबंधित कर दिया जाता है।
  • यह पेटेंट 20 वर्षों के लिये ही संभव होता है। इस पेटेंट के नवीनीकरण के लिये दवा निर्माता को दवा में मौलिक परिवर्तन करना होता है। इसके बिना दवा का पेटेंट समाप्त हो जाता है।
  • पेटेंट समाप्ति के पश्चात् कोई भी कंपनी अथवा देश उस दवा का निर्माण कर सकने में सक्षम होता है। ऐसी दवाओं को जेनेरिक दवाएँ कहा जाता है। प्रायः यह दवाएँ ब्राण्ड के नाम के बिना या किसी अन्य नाम से बेची जाती हैं। 
  • फैवीपिराविर एंटीवायरल टेबलेट्स इन्फ्लुएंज़ा वायरस के विरुद्ध प्रभावी साबित हुई हैं।
  • चीन, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका में COVID-19 रोगियों पर इन टेबलेट्स का चिकित्सीय परीक्षण किया जा रहा है।
  • इन देशों में फेविपिराविर टेबलेट्स ने COVID-19 रोगियों पर कई अध्ययनों में सकारात्मक परिणामों का प्रदर्शन किया है। जिसमें COVID-19 के संक्रमण की अवधि में कमी और रोगियों के फेफड़ों की स्थिति में सुधार आदि शामिल है। 

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

मीडिया नीति-2020

प्रीलिम्स के लिये

मीडिया नीति-2020

मेन्स के लिये

मीडिया नीति-2020 का मीडिया की स्वतंत्रता पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने एक ‘मीडिया नीति-2020’ (Media Policy-2020) को मंज़ूरी दी है, जिसका उद्देश्य स्वास्थ्य और प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में लोगों तक पहुँचने के लिये एक मानक संचालन प्रक्रिया को लागू करना है।

प्रमुख बिंदु

  • इस संबंध में जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा जारी आधिकारिक बयान के अनुसार, यह नीति न केवल प्रदेश में फेक न्यूज़ के प्रसार को रोकने का कार्य करेगी, बल्कि यह देश की सार्वजनिक शांति, संप्रभुता और अखंडता को समाप्त करने के लिये मीडिया के दुरुपयोग को भी कम करेगी।
  • उल्लेखनीय है कि हाल के दिनों में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कई पत्रकारों पर उनके द्वारा की गई रिपोर्टिंग को लेकर FIR दर्ज की है।
  • हाल ही में राज्य प्रशासन ने राज्य के दो पत्रकारों पर आतंकवाद विरोधी गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (Unlawful Activities (Prevention) Act-UAPA) के तहत मामला दर्ज किया था।
  • मीडिया नीति के अनुमोदन के साथ ही सरकार और अधिक प्रभावी तरीके से आम लोगों तक  कल्याण, विकास और प्रगति के संदेश को आसानी से पहुँचा सकेगी।
  • यह नीति जम्मू-कश्मीर के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग को एक पेशेवर संगठन के रूप में स्थापित करने और प्रदेश की मीडिया की मांगों के साथ तालमेल रखने में मदद करेगा।

‘मीडिया नीति-2020’ संबंधी प्रमुख बिंदु

  • मीडिया नीति-2020 में प्रदेश में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) जैसे संस्थानों में मीडिया अकादमी, संस्थान व पीठ की स्थापना का प्रावधान किया गया है, जो कि प्रदेश में पत्रकारिता के उच्चतम स्तर को बढ़ावा देगा और इस क्षेत्र में अध्ययन तथा अनुसंधान का समन्वय करेगा।
  • नई मीडिया नीति में प्रत्येक वर्ष दो मीडिया कर्मियों को इस क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिये सम्मानित करने का प्रावधान भी है। 
  • नीति के अनुसार, प्रदेश के सभी विभाग जम्मू-कश्मीर के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के साथ संपर्क करने के लिये एक नोडल अधिकारी को नामित करेंगे।
  • आम जनता के साथ ऑनलाइन तथा सोशल मीडिया पर संपर्क सुनिश्चित करने के लिये यह नीति सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में एक सोशल मीडिया सेल की स्थापना का प्रावधान करती है।

नई मीडिया नीति के निहितार्थ 

  • इस नीति की सबसे मुख्य बात यह है कि इसमें आम जनता तक सरकार की पहुँच को बढ़ाने के लिये मीडिया के सभी प्रकारों के प्रयोग की बात की गई है।
  • साथ ही यह विभिन्न हितधारकों के मध्य संबंध को मज़बूत करने का प्रयास करती है।
  • नई नीति में प्रदेश में मौजूद पूर्ववर्ती विज्ञापन संबंधी नीति की अस्पष्टताओं को भी संबोधित किया गया है और यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है कि वर्तमान समय की बदलती मांगों के साथ अधिक-से-अधिक तालमेल स्थापित किया जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

ग्लोबल इकोनॉमिक प्राॅसपेक्ट्स

प्रीलिम्स के लिये:

ग्लोबल इकोनॉमिक प्राॅसपेक्ट्स

मेन्स के लिये:

COVID-19 और ग्लोबल इकोनॉमिक प्राॅसपेक्ट्स- जून 2020 से संबंधित मुद्दे  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व बैंक (World Bank) ने ‘ग्लोबल इकोनॉमिक प्राॅसपेक्ट्स’ (Global Economic Prospects-GEP) रिपोर्ट जारी की है। 

प्रमुख बिंदु:

  • ‘ग्लोबल इकोनॉमिक प्राॅसपेक्ट्स’ के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण आर्थिक विकास पर अल्पवधि और दीर्घकालिक दृष्टि से गंभीर प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।
  • वर्तमान मंदी की गंभीरता का इसी बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पिछले आठ दशकों में इतनी भयावह स्थिति कभी नहीं देखी गई। 
  • COVID-19 के बढ़ते प्रसार और तबाह होती अर्थव्यवस्था के कारण प्रभावित हो रहे लोगों की स्थिति का आकलन करने पर पता चलता है कि वर्ष 2020 में लगभग 60 मिलियन लोग गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी में आ सकते हैं। 
  • ध्यातव्य है कि G-20 देशों और वाणिज्यिक ऋणदाताओं ने इस वर्ष के अंत तक कम आय वाले देशों को ऋण भुगतान न करने संबंधी मुद्दों पर सहमति व्यक्त की थी। हालाँकि इन वाणिज्यिक ऋणदाताओं ने इसे अभी तक लागू नहीं किया है। 
  • वाणिज्यिक ऋणदाताओं द्वारा की जा रही देरी से कम आय वाले देश गरीबी की दलदल में फसतें जा रहे हैं। अधिकांश वाणिज्यिक ऋणदाता अमेरिका, यूरोप, जापान, चीन और खाड़ी के देशों जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से संबंधित हैं।

विकासशील देशों की स्थिति:

  • रिपोर्ट के अनुसार, उभरते बाज़ार और विकासशील अर्थव्यवस्था (Emerging Market and Developing Economies- EMDEs) वाले देश स्वास्थ्य संकट, प्रतिबंध, व्यापार, निर्यात और पर्यटन में गिरावट इत्यादि जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
  • पूर्व में आई महामारियों के अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इन देशों में अल्पावधि के दौरान उत्पादन में 3-8% की कमी आने की संभावना है।
  • वर्ष 2021 के अंत तक अमेरिका और चीन जैसी अर्थव्यवस्थाओं में महामारी से पूर्व की स्थिति में लौटने की संभावना नहीं है। इन देशों की खराब अर्थव्यवस्था का प्रभाव EMDEs वाले देशों पर भी पड़ेगा। 
  • आयात करने वाले देशों की तुलना में निर्यात करने वाले देशों की संवृद्धि दर धीमी होने की संभावना है।
  • आगामी पाँच वर्षों के दौरान औसत EMDEs वाले देश वित्तीय संकट के साथ ही उत्पादन में लगभग 8% तक की गिरावट दर्ज कर सकते हैं, जबकि औसत EMDEs ऊर्जा निर्यातक देशों में तेल की कीमत में गिरावट के कारण उत्पादन में 11% की कमी आने की संभावना है।

नीतिगत बदलाव:

  • वर्तमान में किये गए नीतिगत बदलाव COVID-19 महामारी के कारण हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई करने के साथ ही बुनियादी ढाँचे को मज़बूत बनाने में मददगार साबित हो सकते हैं। इन नीतिगत बदलावों में नए निवेश को आमंत्रित करने के लिये अधिक से अधिक ऋण पारदर्शिता, डिजिटल कनेक्टिविटी की सहायता से तेज़ प्रगति, गरीबों के लिये नकदी का प्रावधान, इत्यादि शामिल हैं।
  • COVID-19 महामारी के बाद आधारिक संरचना का निर्माण और इनका वित्तपोषण जैसी समस्याओं का समाधान सबसे कठिन चुनौतियों में से एक है। सब्सिडी, एकाधिकार, सार्वजनिक उपक्रम (जिन्होंने विकास की गति धीमी की है), इत्यादि क्षेत्रों में सरकारों द्वारा वैधानिक तरीके से नीतिगत बदलाव और सुधार करने की आवश्यकता है। 
  • देशों को उन नीतियों को भी लागू करना होगा जो COVID-19 महामारी के बाद दुनिया में नए प्रकार के व्यवसायों और नौकरियों को प्रोत्साहित करते हैं।

ग्लोबल इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स

(Global Economic Prospects-GEP):

  • ग्लोबल इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स रिपोर्ट, विश्व बैंक समूह की एक रिपोर्ट है जिसमें वैश्विक आर्थिक विकास एवं संभावनाओं की जाँच की जाती है, इसमें उभरते बाज़ार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
  • यह वर्ष में दो बार जनवरी और जून में जारी की जाती है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

चांगपा समुदाय

प्रीलिम्स के लिये:

चांगपा समुदाय, चुशूल-डेमचोक-चुमूर बेल्ट, पश्मीना बकरी तथा पश्मीना उत्पाद

मेन्स के लिये: 

चीनी अतिक्रमण के कारण चरवाहा चांगपा समुदाय पर पड़ने वाले प्रभाव 

चर्चा में क्यों? 

लद्दाख के चुमूर (Chumur) और डेमचोक (Demchok) क्षेत्र में चीनी सेना के अतिक्रमण ने लद्दाख के घुमंतू चरवाहा चांगपा समुदाय (Changpa Community) को ग्रीष्मकालीन चरागाहों के बड़े हिस्से से अलग-थलग कर दिया है। जिसका प्रतिकूल प्रभाव उनके बकरी पालन व्यवसाय पर पड़ रहा है।

chumur

प्रमुख बिंदु:

  • चीन की ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’( People’s Liberation Army) द्वारा चुमूर में 16 कनाल (दो एकड़) की कृषि योग्य भूमि पर कब्ज़ा कर लिया गया है जो डेमचोक क्षेत्र के अंदर लगभग 15 किमी. की दूरी पर स्थित है। 
  • यह एक पारंपरिक चराई वाले चरागाहों और खेती योग्य भूमि वाला क्षेत्र है।
  • इसका प्रतिकूल प्रभाव लद्दाख के चांगथांग पठार (Changthang Plateau) के कोरज़ोक-चुमूर बेल्ट (Korzok-Chumur Belt) में नवज़ात पश्मीना बकरियों की संख्या पर देखा जा रहा है।
  • पर्याप्त चरागाहों के अभाव में युवा पश्मीना बकरियों की मौतों में वृद्धि देखी गई है जिसमें पश्मीना बकरियों के साथ-साथ याक भी शामिल हैं।
  • चांगपा समुदाय के लोगों का मानना है कि इस तरह की गतिविधियों के चलते इस वर्ष (वर्ष 2020 में) 70-80% नवज़ात पश्मीना बकरियों को जीवित रख पाना मुश्किल हो रहा है। 
  • चीनी सेना द्वारा इन चरागाह क्षेत्रों पर सतर्कता बनाए रखने के लिये हेलीकॉप्टरों द्वारा निगरानी की जा रही है।

चांगपा समुदाय (Changpa Community): 

  • चांगपा जनजाति एक बंजारा समुदाय है जो भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के लद्दाख़ क्षेत्र के चांगथंग इलाके में निवास करती हैं।
  • चांगपा जनजाति खानाबदोश जीवन पसंद करती हैं।
  • इनकी आजीविका का मुख्य आधार मवेशी और पश्मीना बकरियाँ हैं।

चुशूल-डेमचोक-चुमूर बेल्ट (Chushol-Demchok-Chumur belt):

  • यह पश्मीना बकरियों की अधिकतम आबादी वाला क्षेत्र है, जो 13,000 फीट से अधिक ऊँचाई पर स्थित है। 
  • लद्दाख में सालाना 45-50 टन बेहतरीन किस्म की ऊन का उत्पादन होता है जिसमें से 25 से 30 टन ऊन का उत्पादन चुशूल-डेमचोक-चुमूर बेल्ट में होता है।

पश्मीना बकरियाँ (Pashmina Goats): 

  • पश्मीना बकरियाँ को चांगथांगी बकरियों के नाम से भी जाना जाता है। 
  • इन्हें पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा के निकट चांगथांग क्षेत्र (तिब्बत के पठार के एक पश्चिमी विस्तार) में घुमंतू चरवाहा समुदाय चांगपा द्वारा पाला जाता है।
  • ये बकरियाँ -40 डिग्री तापमान पर भी स्वयं को जीवित रखने की क्षमता रखती हैं।
  • चांगथांगी बकरी के बाल बहुत मोटे होते हैं और इनसे विश्व का बेहतरीन पश्मीना प्राप्त होता है जिसकी मोटाई 12-15 माइक्रोन के बीच होती है।

पश्मीना उत्पाद (Pashmina Products):

  • लद्दाख विश्व में सर्वाधिक (लगभग 50 मीट्रिक टन) और सबसे उन्नत किस्म के पश्मीना का उत्पादन करता है।
  • असली पश्मीना उत्पादों को चांगथांगी या पश्मीना बकरी के बालों से बनाया जाता है। 
  • कश्मीर में बुने गए सुप्रसिद्ध पश्मीना शॉलों का निर्माण लद्दाख की इन बकरियों से प्राप्त ऊन से किया जाता है। 
  • ये शाल अपनी गुणवत्ता एवं अपने जटिल कलाकृति के लिये प्रसिद्ध हैं।
  • चांगथांगी बकरियों की बदौलत ही छांगथांग, लेह और लद्दाख क्षेत्र में अर्थव्यवस्था बहाल हुई है।
  • भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards-BIS) ने पश्मीना उत्पादों की शुद्धता प्रमाणित करने के उद्देश्य से उसकी पहचान और लेबलिंग की प्रक्रिया को भारतीय मानक (Indian Standards) के दायरे में रख दिया है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण प्रोत्साहन हेतु योजनाएँ

प्रीलिम्स के लिये

इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण उद्योग

मेन्स के लिये

योजना संबंधी विवरण, इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण उद्योग पर इन योजनाओं का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने हाल ही में देश में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों के व्यापक पैमाने पर विनिर्माण को बढ़ावा देने हेतु तीन प्रोत्साहन योजनाएँ शुरू की हैं।

प्रमुख बिंदु

  • इन तीन परियोजनाओं में शामिल हैं- (1) उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना (Production Linked Incentive Scheme-PLI) (2) इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट एवं सेमीकंडक्टरों के विनिर्माण के संवर्द्धन के लिये योजना (Scheme for Promotion of Manufacturing of Electronic Components and Semiconductors-SPECS) (3) संशोधित इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर (ईएमसी 2.0) योजना (Modified Electronics Manufacturing Clusters (EMC 2.0) Scheme)
  • इन तीनों योजनाओं के लिये लगभग 50,000 करोड़ रुपए की आवश्यकता है। ये योजनाएँ घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण उद्योग के समक्ष मौजूदा चुनौतियों को समाप्त करेंगी और देश में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण तंत्र को मज़बूत बनाएंगी।
  • उक्त वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर GDP के लक्ष्य में उल्लेखनीय योगदन देंगी।
  • अनुमान के अनुसार, इन योजनाओं से लगभग 5 लाख प्रत्यक्ष और 15 लाख अप्रत्यक्ष रोज़गार सृजित होंगे।

 उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना 

(Production Linked Incentive Scheme-PLI)

  • भारत का घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स हार्डवेयर विनिर्माण क्षेत्र पर्याप्त बुनियादी ढाँचे और घरेलू आपूर्ति की कमी तथा वित्त की उच्च लागत, सीमित डिज़ाइन क्षमताओं और कौशल विकास में अपर्याप्तता के कारण तनाव का सामना कर रहा है।
  • उल्लेखनीय है कि राष्‍ट्रीय इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स नीति-2019 में सभी महत्त्वपूर्ण घटकों को देश में विकसित करने की क्षमता को प्रोत्‍साहित कर और विश्‍व स्‍तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने हेतु उद्योग के लिये अनुकूल माहौल बना कर भारत को ‘इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स सिस्‍टम डिज़ाइन एंड मैन्‍युफैक्‍चरिंग (Electronics System Design and Manufacturing-ESDM)' के एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्‍थापित करने की परिकल्‍पना की गई है।
  • उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना (PLI) के तहत घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और मोबाइल फोन निर्माण तथा निर्दिष्ट इलेक्ट्रॉनिक घटकों में व्यापक निवेश को आकर्षित करने के लिये उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन प्रदान करती है।
  • इस योजना से भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण को काफी बढ़ावा मिलेगा और वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में भारत को एक नई पहचान मिल सकेगी। 
  • इस योजना के तहत भारत में निर्मित और लक्षित क्षेत्रों में शामिल वस्तुओं की वृद्धिशील बिक्री (आधार वर्ष) पर पात्र कंपनियों को 5 वर्ष की अवधि के लिये 4-6 प्रतिशत तक की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी।

 इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट एवं सेमीकंडक्टरों के विनिर्माण के संवर्द्धन हेतु योजना 

(Scheme for Promotion of Manufacturing of Electronic Components and Semiconductors-SPECS)

  • उच्च घरेलू मूल्य संवर्द्धन के साथ इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के विनिर्माण के लिये आपूर्ति श्रृंखला का विकास आवश्यक है।
  • इलेक्ट्रानिक घटक इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग की बुनियादी इकाई होते हैं और इसमें अधिकतम मूल्यवर्द्धन होता है।
  • इसलिये भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के समग्र दीर्घकालिक और सतत् विकास हेतु एक जीवंत इलेक्ट्रॉनिक घटक विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट एवं सेमीकंडक्टरों के विनिर्माण के संवर्द्धन हेतु यह योजना (SPECS) देश में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करने के लिये इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट एवं सेमीकंडक्टरों के घरेलू विनिर्माण से संबंधित बाधाओं को कम करने में मदद करेगी।
  • इस योजना के तहत कुछ निश्चित इलेक्ट्रॉनिक सामानों के लिये पूंजीगत व्यय पर 25 प्रतिशत वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा।
  • यह योजना नई इकाइयों में निवेश और मौजूदा इकाइयों की क्षमता विस्तार तथा आधुनिकीकरण/विविधीकरण पर लागू होगी।

संशोधित इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर (ईएमसी 2.0) योजना 

(Modified Electronics Manufacturing Clusters (EMC 2.0) Scheme)

  • गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढाँचे को लेकर उद्योग के समक्ष मौजूदा चुनौतियों का सामना करने और भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण हब बनाने हेतु देश में एक मज़बूत इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने हेतु संशोधित इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर (ईएमसी 2.0) योजना शुरू की गई है। इसका उद्देश्य उद्योग की कमियों को संबोधित करना और विश्व स्तर के बुनियादी ढाँचे के निर्माण को समर्थन प्रदान करना है।
  • यह योजना आपूर्ति श्रृंखला में जवाबदेही को बढ़ाकर आपूर्तिकर्त्ताओं के समेकन और लॉजिस्टिक्स की लागत कम करके घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के मध्य संबंध को मज़बूत करेगी।

भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण

  • इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण का संवर्द्धन ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम का एक प्रमुख घटक रहा है। सरकार द्वारा इस संदर्भ में किये गए विभिन्न प्रयासों का ही परिणाम है कि भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन 2014 के 29 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2019 में 70 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया है।
    • इस अवधि के दौरान मोबाइल फोन विनिर्माण की बढ़ोतरी विशेष रूप से उल्लेखनीय रही है।
  • जहाँ एक ओर वर्ष 2014 में भारत में केवल दो मोबाइल फैक्ट्रियों की तुलना में अब भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन उत्पादक देश बन गया है। वित्तीय वर्ष 2018-19 में मोबाइल हैंडसेटों का उत्पादन 29 करोड़ इकाइयों तक पहुँच गया जो 1.70 लाख करोड़ रुपए के बराबर है।
  • जहाँ वित्तीय वर्ष 2014-15 में देश में इलेक्ट्रॉनिक्स का निर्यात 38,263 करोड़ रुपए का था, वहीं वित्तीय वर्ष 2018-19 में यह बढ़कर 61,908 करोड़ रुपए तक पहुँच गया। वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में वर्ष 2012 में भारत का हिस्सा केवल 1.3 प्रतिशत था जो कि वर्ष 2018 में बढ़कर 3 प्रतिशत तक पहुँच गया है। 

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

विनिर्माण क्रय प्रबंधक सूचकांक में अल्प वृद्धि

प्रीलिम्स के लिये:

क्रय प्रबंधक सूचकांक

मेन्स के लिये:

विनिर्माण क्षेत्र एवं क्रय प्रबंधक सूचकांक से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

आईएचएस मार्किट इंडिया (IHS Markit India) द्वारा जारी मासिक सर्वेक्षण के अनुसार, मई, 2020 में विनिर्माण क्षेत्र के ‘क्रय प्रबंधक सूचकांक’ (Purchasing Manager's Index- PMI) में अल्प वृद्धि दर्ज की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि मई, 2020 में विनिर्माण क्रय प्रबंधक सूचकांक 30.8 दर्ज किया गया, जबकि अप्रैल, 2020 में यह 20.7 अंक पर था। 
  • आईएचएस मार्किट की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल, 2020 में पूर्ण लॉकडाउन से बाज़ार में वस्तुओं की मांग एवं उत्पादन में कमी के कारण कई कंपनियों ने कर्मचारियों की छंटनी की है और व्यवसायों को इस संकट से उबरने में विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। 
  • ध्यातव्य है कि वित्तीय वर्ष 2020 में ‘स्टैंडर्ड एंड पूअर्स’ (Standard and Poors- S&P) और ‘क्रिसिल’ (Crisil) जैसी रेटिंग एजेंसियों ने सकल घरेलू उत्पाद में 5% तक की गिरावट का अनुमान लगाया है। 
  • विभिन्न विशेषज्ञों का मत है कि सरकार द्वारा हाल ही में घोषित आर्थिक पैकेज वित्तीय वर्ष 2021-22 और 2022-23 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने में सहायक साबित नहीं होगा।  
  • विनिर्माण सूचकांक को आईएचएस मार्किट इंडिया द्वारा 15 वर्ष पहले शुरू किया गया था। हालिया विनिर्माण सूचकांक अब तक का दूसरा न्यूनतम सूचकांक है। 
  • आईएचएस मार्किट इंडिया ने विनिर्माण क्रय प्रबंधक सूचकांक को लगभग 400 विनिर्मिताओं के सर्वेक्षण के आधार पर तैयार किया है। इस सर्वेक्षण में नए कॉन्ट्रैक्ट, फैक्ट्री की उत्पादन क्षमता, कर्मचारियों की संख्या, कच्चा माल या उत्पादित वस्तुओं के आवागमन का समय, इत्यादि को शामिल किया गया है। 

क्रय प्रबंधक सूचकांक (Purchasing Manager's Index- PMI)

  • क्रय प्रबंधक सूचकांक विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियों का एक संकेतक है। यह एक सर्वेक्षण-आधारित प्रणाली है।
  • PMI की गणना विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों हेतु अलग-अलग की जाती है जिसके पश्चात् एक समग्र सूचकांक का तैयार किया जाता है। 
  • PMI में 0 से 100 तक की संख्या होती है।
  • 50 से ऊपर का आँकड़ा व्यावसायिक गतिविधि में विस्तार या विकास को दर्शाता है, जबकि 50 से नीचे का आँकड़ा संकुचन (गिरावट) को दर्शाता है।
  • क्रय प्रबंधक सूचकांक की तुलना पिछले माह के आँकड़ो से करके भी विकास या संकुचन का पता लगाया जा सकता है।
  • क्रय प्रबंधक सूचकांक हर महीने की शुरुआत में जारी किया जाता है। यह आर्थिक गतिविधियों का एक प्रमुख संकेतक माना जाता है।
  • क्रय प्रबंधक सूचकांक ‘औद्योगिक उत्पादन सूचकांक’ (Index of Industrial Production-IIP) से भिन्न होता है।

क्रय प्रबंधक सूचकांक में हालिया गिरावट के कारण:

  • मांग में कमी के कारण व्यापार में गिरावट को देखते हुए विभिन्न औद्योगिक संस्थानों को अपने कर्मचारियों की संख्या में भी कमी करनी पड़ी है। 
  • देशभर में लॉकडाउन से अप्रैल, 2020 में गिरावट के बाद भी मई, 2020 में फैक्ट्री को बाज़ार से प्राप्त होने वाले नए कॉन्ट्रैक्ट (उत्पाद निर्माण से संबंधित), फैक्ट्री में निर्मित कुल उत्पाद, इत्यादि की संख्या में भारी कमी आई है। 
  • लॉकडाउन की अवधि बढ़ने के कारण आर्थिक गतिविधियाँ बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं। 
  • अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में नए उत्पाद की मांग में कमी क्रय प्रबंधक सूचकांक में गिरावट के प्रमुख कारणों में से एक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

त्‍वरित प्रतिक्रिया नियामक सक्षम तंत्र

प्रीलिम्स के लिये:

पुनरावर्ती डीएनए प्रौद्योगिकी 

मेन्स के लिये:

जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा COVID -19 महामारी के संदर्भ में जैव सुरक्षा नियामक को जारी सक्रिय दिशा-निर्देश 

चर्चा में क्यों:

हाल ही में ‘जैव प्रौद्योगिकी विभाग’ (Department of Biotechnology) द्वारा COVID -19 महामारी को ध्यान में रखते हुए जैव सुरक्षा नियामक को सरल एंव और अधिक कारगर बनाने के लिये तथा इस महामारी में संलग्न शोधकर्त्ताओं और उद्योगों को सुविधा प्रदान करने के लिये कई सक्रिय कदम उठाए गए हैं।

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प्रमुख बिंदु:

  • जैव सुरक्षा नियामक, जीवों से संबंधित पुनरावर्ती डीएनए प्रौद्योगिकी (Recombinant DNA Technology) तथा खतरनाक सूक्ष्मजीवों पर अनुसंधान और विकास में सक्रिय रूप से संलग्न हैं। 
  • जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा इस दिशा में निम्नलिखित कदम उठाए हैं- 

भारतीय जैव सुरक्षा ज्ञान पोर्टल का संचालन:

  • जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा इसे मई, 2019 में लॉन्च कर पूर्ण रूप से संचालित किया गया है। वर्तमान समय में यह केवल सभी नवीन आवदेनों को ऑनलाइन माध्यम से प्राप्त कर रहा है।
  • इससे पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता और समयबद्धता आई है। 

अनुसंधान और विकास उद्देश्य के लिये आनुवांशिक रूप से रूपांतरित जीवों और उत्पाद के आयात, निर्यात और विनिमय पर संशोधित सरलीकृत दिशा निर्देशों की अधिसूचना:

  • जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा जनवरी, 2020 में संशोधित दिशा-निर्देश जारी किये गए। 
  • जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, संस्थागत जैव सुरक्षा समिति को आयात निर्यात के आवेदनों पर निर्णय लेने और जोखिम समूह-1 (Risk Group-1) और जोखिम समूह-2 (Risk Group-2) में शामिल मदों के लिये अनुसंधान और विकास उद्देश्य के लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित जीवों और उत्पाद के आदान-प्रदान करने से संबंधित निर्णय करने का अधिकार दिया गया है।

COVID​​-19 पर अनुसंधान और विकास की सुविधा:

  • तेज़ी से फैलती COVID-19 महामारी के लिये अनुसंधान और विकास की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा COVID-19 पर शोध कर रहे शोधकर्त्ताओं और उद्योगों को शामिल करने के लिये अनेक कदम उठाए गए हैं।
  • इसके अलावा डीबीटी द्वारा COVID -19 पर निम्नलिखित दिशा-निर्देश, आदेश और जाँच सूची जारी की है, जो इस प्रकार है- 
    • 20 मार्च, 2020 को COVID-19 के लिये टीका, निदान, रोग निरोधी उपाय और रोग चिकित्‍सा विकसित करने के आवेदन के लिये त्‍वरित प्रतिक्रिया नियामक ढाँचा (रैपिड रिस्पांस रेगुलेटरी फ्रेमवर्क) अधिसूचित किया गया।
    • जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा 08 अप्रैल, 2020 को ‘इंटरेक्टिव गाइडेंस डॉक्यूमेंट ऑन लेबोरेटरी बायोसेफ्टी टू हैंडल COVID-19 स्पेसिमन्स’(Interim Guidance Document on Laboratory Biosafety to Handle COVID-19 Specimens) को अधिसूचित किया।
    • 30 जून, 2020 तक भारतीय बायोमेडिकल कौशल प्रमाणन (Indian Biomedical Skill Certification- IBSC) को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अपनी बैठक आयोजित करने की अनुमति दी गई है।

पुनरावर्ती डीएनए प्रौद्योगिकी (Recombinant DNA Technology):

  • इस तकनीकी में दो या दो से अधिक स्रोतों से DNA को संयोजित करके पुनरावर्ती DNA बनाया जाता है। 
  • इस प्रक्रिया में, अक्सर विभिन्न जीवों के DNA को जोड़ना पड़ता है।
  • यह प्रक्रिया DNA को काटने तथा पुन: जोड़ने की क्षमता पर निर्भर करती है।
  • जिस जीन को प्रवेश कराया जाता है उसको रेकॉम्बीनैंट जीन (Recombinant Gene)कहते है तथा इस पूरी तकनीक को रेकॉम्बीनैंट DNA टेक्नोलॉजी (Recombinant DNA Technology) कहा जाता है।

जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology): 

  • वर्ष 1986 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत जैव प्रौद्योगिकी विभाग की स्थापना की गई। 
  • यह राष्‍ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाओं, विश्‍वविद्यालयों और विभिन्‍न क्षेत्रों में अनुसंधान, जो जैव प्रौद्योगिकी से संबंधित हैं, के लिये सहायता अनुदान की सहायता प्रदान करने के लिये एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्यरत है।

स्रोत: पीआईबी


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अल्‍ट्रा स्‍वच्‍छ डिसइंफेक्‍शन यूनिट

प्रीलिम्स के लिये:

अल्‍ट्रा स्‍वच्‍छ डिसइंफेक्‍शन यूनिट के बारे में,रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन, COVID-19

मेन्स के लिये:

COVID-19 से निपटने में DRDO की भूमिका 

चर्चा में क्यों?

भारत के ‘रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन’ (Defence Research and Development Organisation-DRDO) ने व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (Personal Protective Equipments- PPEs), इलेक्ट्रॉनिक्स सामानों, कपड़े सहित विभिन्न प्रकार की सामग्रियों को कीटाणुरहित करने के लिये ‘अल्ट्रा स्वच्छ’ (Ultra Swachh) नामक एक कीटाणुशोधन यूनिट विकसित किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस यूनिट का विकास DRDO की दिल्ली स्थित प्रयोगशाला इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसीन एंड एलाइड साइंसेस (Institute of Nuclear Medicine & Allied Sciences- INMAS) तथा गाज़ियाबाद स्थित मैसर्स जेल क्राफ्ट हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड (M/s Gel Craft Healthcare Private Ltd) ने संयुक्त रूप से किया है।
  • ‘अल्‍ट्रा स्‍वच्‍छ' डिसइंफेक्‍शन यूनिट के निर्माण में उन्नत ऑक्सीकरणी प्रक्रिया (Advanced Oxidative Process) का प्रयोग किया गया है।
  • इस प्रणाली को औद्योगिक, व्यावसायिक, व्यक्तिगत और पर्यावरण सुरक्षा के अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप विकसित किया गया है।
  • इस प्रक्रिया में कीटाणुशोधन (Disinfection) के लिये कई अवरोध विघटन पद्धतियों (Multiple Barrier Disruption) को शामिल करते हुए ओज़ोनेटेड स्पेस टेक्नोलॉजी (Ozonated Space Technology) का उपयोग किया गया हैं।
  • इस यूनिट को कार्य करने के लिये 15 एम्पीयर, 220 वोल्ट, 50 हर्ट्ज विद्युत आपूर्ति की आवश्यकता होती है।

Ultra-Swachh-Disinfection-unit

विशेषताएँ

  • ओज़ोन सीलेंट तकनीक (Ozone Sealant Technology) के साथ निर्मित यह द्विस्तरीय प्रणाली है जो आवश्यक कीटाणुशोधन के लिये ओज़ोन की ट्रैपिंग सुनिश्चित करती है।
  • इस तंत्र में पर्यावरण अनुकूल निकास (केवल ऑक्सीजन और पानी के लिये) सुनिश्चित करने के लिये एक उत्प्रेरक परिवर्तक (Catalytic Converter) भी लगा हुआ है।
  • शीघ्र कीटाणुशोधन चक्र के लिये इस प्रणाली को स्वचालन तकनीकी (Automation Technique) के साथ विकसित किया गया है।
  • लंबी अवधि के लिये सुरक्षित संचालन सुनिश्चित करने हेतु इस प्रणाली में आपातकालीन शटडाउन, डोर इंटरलॉक, ड्यूल डोर, डिले साइकिल और लीक मॉनिटर आदि जैसी विभिन्न सुरक्षात्मक विशेषताएँ मौजूद हैं।

उपलब्धता

  • अल्ट्रा स्वच्छ डिसइंफेक्‍शन यूनिट के रूपों में उपलब्ध है- 
    • त्रिनेत्र टेक्नोलॉजी ओज़ोनेटेड स्पेस और रेडिकल डिस्पेंसर का संयोजन है। 
    • ओज़ोनेटेड स्पेस (Ozonated Space)
      • त्रिनेत्र टेक्नोलॉजी (Trinetra Technology)
  • एक समय में बड़ी मात्रा में कीटाणुशोधन करने के लिये इंडस्ट्रियल कैबिनेट का आयाम 7'x4'x3.25' है। उद्योगों के लिये विभिन्न आकार के कैबिनेट उपलब्ध कराए जाएंगे।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

आत्मनिर्भर भारत की आवश्यकता

प्रीलिम्स के लिये:

आत्मनिर्भर भारत अभियान 

मेन्स के लिये:

आत्मनिर्भर भारत अभियान 

चर्चा में क्यों:

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने ‘भारतीय उद्योग परिसंघ’ (Confederation of Indian Industry) वार्षिक सत्र- 2020 को वीडियो कॉन्फ्रेंस से संबोधित करते हुएआत्मनिर्भर भारत के निर्माण’ की आवश्यकता पर बल दिया।

प्रमुख बिंदु:

  • हाल ही में भारत से दुनिया की उम्मीदें बढ़ी हैं, क्योंकि COVID-19 महामारी संकट के दौरान भारत ने दुनिया भर में विश्वास जीता है, अत: कॉर्पोरेट सेक्टर को इन अनुकूल परिस्थितियों का लाभ उठाना चाहिये।
  • प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लिये स्थानीय उद्यमों के विकास पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

आत्मनिर्भर भारत: 

  •  भारत 'वसुधैव कुटुंबकम्' की संकल्पना में विश्वास करता है। चूँकि भारत दुनिया का ही एक हिस्सा है, अत: भारत प्रगति करता है तो ऐसा करके वह दुनिया की प्रगति में भी योगदान देता है। 
  • ‘आत्मनिर्भर भारत’ के निर्माण में वैश्वीकरण का बहिष्करण नहीं किया जाएगा अपितु दुनिया के विकास में मदद की जाएगी।
  • आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की दिशा के प्रथम चरण में चिकित्सा, वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्लास्टिक, खिलौने जैसे क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया जाएगा तथा द्वितीय चरण में रत्न एवं आभूषण, फार्मा, स्टील जैसे क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया जाएगा।

आयात में कटौती के लिये 10 क्षेत्रों की पहचान:

  • सरकार ने आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की दिशा में उन 10 क्षेत्रों की पहचान की है, जिनमें घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा। सरकार ने इन 10 क्षेत्रों के आयात में कटौती का भी निर्णय किया है।
  • इसमें फर्नीचर, फूट वेयर और एयर कंडीशनर, पूंजीगत सामान तथा मशीनरी, मोबाइल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स, रत्न एवं आभूषण, फार्मास्यूटिकल्स, टेक्सटाइल आदि शामिल हैं।

भारत का आयात बिल:

  • वाणिज्य मंत्रालय ने अनुसार, भारत का कमोडिटी आयात बिल, अप्रैल 2019 से मार्च 2020 के बीच 467.2 बिलियन डॉलर रहा।
  • इसमें चमड़े तथा चमड़े से निर्मित उत्पाद 1.01 बिलियन डॉलर, कीमती और अर्द्ध-कीमती पत्थर लगभग 22.4 बिलियन डॉलर, इलेक्ट्रिकल और गैर-इलेक्ट्रिकल मशीनरी 37.7 बिलियन डॉलर तथा मशीन टूल्स का आयात लगभग 4.2 बिलियन डॉलर रहा।

आत्मनिर्भर भारत अभियान की दिशा में प्रमुख घोषणा:

  • 12 मई, 2020 को प्रधानमंत्री ने ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ का आह्वान करते हुए 20 लाख करोड़ रुपए के विशेष आर्थिक और व्यापक पैकेज की घोषणा की थी। साथ ही उन्होंने ‘आत्मनिर्भर भारत’ के पाँच स्तंभों यथा अर्थव्यवस्था, अवसंरचना, प्रौद्योगिकी, गतिशील जनसांख्यिकी और मांग को भी रेखांकित किया था।
  • आत्मनिर्भर राहत पैकेज़ के माध्यम से न केवल सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (Micro, Small and Medium Enterprises-MSMEs) क्षेत्र में सुधारों की घोषणा की गई, अपितु इसमें दीर्घकालिक सुधारों; जिनमें कोयला और खनन क्षेत्र जैसे क्षेत्र शामिल है, की घोषणा की गई थी।

अभियान के समक्ष संभावित चुनौतियाँ:

  • 'अत्मनिर्भार भारत के निर्माण' के साथ अनेक जोखिम जुड़े हैं, क्योंकि इसके लिये बहुत अधिक वित्तीय और तकनीकी संसाधनों की आवश्यकता होगी।
  • भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता का स्तर वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा  के अनुकूल नहीं है।
  • ‘विश्व व्यापार संगठन’ में भारत द्वारा आयात में कटौती की दिशा में अपनाए जाने वाले उपायों को चुनौती दी जा सकती है। 

आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की दिशा में उठाए जाने वाले कदम :

  • भारत को व्यापार में वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा बनाने के लिये उत्पादों की गुणवत्ता नियंत्रण बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
  • भारत को इच्छाशक्ति (Intent), समावेशन  (Inclusion), निवेश (Investment), बुनियादी ढाँचा (InfraMstructure), और नवाचार (Innovation) पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
  • 21वीं सदी के भारत का निर्माण करने की दिशा में भारत को भविष्य में और अधिक संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता हो सकती है।

निष्कर्ष:

  • आत्मनिर्भर भारत अभियान के समक्ष अनेक चुनौतियों के होने के बावजूद, भारत को औद्योगिक क्षेत्र में मज़बूती के लिये उन उद्यमों में निवेश करने की आवश्यकता है जिनमें भारत के वैश्विक ताकत के रूप में उभरने की संभावना है।
  • देश के नागरिकों का सशक्तीकरण करने की आवश्यकता है ताकि वे देश से जुड़ी समस्याओं का समाधान कर सके तथा बेहतर भारत का निर्माण करने में अपना योगदान दे सके। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 03 जून, 2020

कम्युनिटी कोच डेवलपमेंट प्रोग्राम

हाल ही में युवा कार्यक्रम और खेल मंत्री किरन रीजीजू (Kiren Rijiju) ने खेलो इंडिया कम्युनिटी कोच डेवलपमेंट प्रोग्राम (Community Coach Development Program) का उद्घाटन किया। यह शारीरिक शिक्षा अध्यापकों (Physical Education Teachers) और सामुदायिक प्रशिक्षकों (Community Coaches) से संबंधित 25 दिवसीय कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य विद्यालयों में शारीरिक शिक्षा को अधिक महत्त्व देना है। यह कार्यक्रम मानव संसाधन विकास मंत्रालय और युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से कार्यान्वित किया जाएगा और इसे देश भर के सभी विद्यालयों तक पहुँचाया जाएगा। इस अवसर पर खेल मंत्री किरन रीजीजू ने कहा कि विद्यालयों के बच्चों को दैनिक जीवन में खेल तथा फिटनेस को अपनाने हेतु प्रेरित करने में सामुदायिक प्रशिक्षक और शारीरिक शिक्षा अध्यापक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। खेल मंत्री के अनुसार, यदि देश में खेल संस्कृति विकसित की जाती है तो विजेता स्वतः ही तैयार हो जाएंगे। भारत सरकार ने लोगों को अपने जीवन में फिटनेस को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करने के लिये कई कदम उठाए हैं, जिसमें फिट इंडिया मूवमेंट उल्लेखनीय है। इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री द्वारा 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर नई दिल्ली में की गई थी। फिट इंडिया मूवमेंट का उद्देश्य प्रत्येक भारतीय को रोज़मर्रा के जीवन में फिट रहने के साधारण और आसान तरीके शामिल करने के लिये प्रेरित करना है। उल्लेखनीय है कि शारीरिक शिक्षा न केवल व्यक्ति के शारीरिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है, बल्कि यह व्यक्ति के मानसिक विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।

विश्व साइकिल दिवस

प्रत्येक वर्ष 3 जून को विश्व साइकिल दिवस (World Bicycle Day) मनाया जाता है। बीते दो दशकों से अनवरत प्रयोग की जा रही साइकिल की विशिष्टता को स्वीकार करते हुए, इसे परिवहन के एक सरल, किफायती, भरोसेमंद, स्वच्छ और पर्यावरणीय रूप से उपयुक्त साधन के रूप में प्रोत्साहित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) द्वारा सर्वप्रथम 3 जून, 2018 को विश्व साइकिल दिवस का आयोजन किया गया था। यह दिवस हितधारकों को सतत् विकास को बढ़ावा देने और शारीरिक शिक्षा समेत सामान्य शिक्षा पद्धति को मज़बूत करने के साधन के रूप में साइकिल के उपयोग पर जोर देने के लिये प्रोत्साहित करता है। इस अवसर पर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को मज़बूत करने और समाज में साइकिल चलाने की संस्कृति को विकसित करने के लिये अनेक प्रकार के आयोजन किये जाते हैं। उल्लेखनीय है कि साइकिल परिवहन का एक सस्ता और स्वच्छ माध्यम है, इससे किसी भी किस्म का पर्यावरण प्रदूषण नहीं होता है और यह स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उपयोगी है। साइकिल टिकाऊ परिवहन का एक महत्त्वपूर्ण प्रतीक है और यह स्थायी उपभोग को बढ़ावा देने के लिये भी उपयोगी है।

COVID-19 टेक्नोलॉजी एक्सेस पूल

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) ने जीवन रक्षा तकनीक तक समान पहुँच के लिये ‘COVID-19 टेक्नोलॉजी एक्सेस पूल’ (COVID-19 Technology Access Pool-C-TAP) लॉन्च किया है। C-TAP का उद्देश्य अनुसंधान और सूचना के आदान-प्रदान के माध्यम से टीकों और दवाओं के विकास में तेज़ी लाना और विकसित किये गए किसी भी उत्पाद की विनिर्माण क्षमता को बढ़ाना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अन्य हितधारकों से भी इस पहल से जुड़ने का आग्रह किया है। उल्लेखनीय है कि इस पहल की पेशकश कोस्टा रीका (Costa Rica) के राष्ट्रपति कार्लोस अल्वाराडो (Carlos Alvarado) द्वारा मार्च 2020 में की गई थी। ‘COVID-19 टेक्नोलॉजी एक्सेस पूल’ के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि COVID-19 के संबंध में सभी नवीनतम और सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक प्रगति का लाभ विश्व के सभी देशों को प्राप्त हो सके। ‘COVID-19 टेक्नोलॉजी एक्सेस पूल’ स्वैच्छिक और सामाजिक एकजुटता पर आधारित होगा और इसके ज़रिये वैज्ञानिक जानकारी, डेटा और बौद्धिक सम्पदा को वैश्विक समुदाय के साथ समान रूप से साझा करने में मदद मिलेगी। संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) द्वारा समर्थित इस पहल का उद्देश्य निम्न व मध्यम आय वाले देशों में जीवनरक्षक दवाइयों की सुलभता सुनिश्चित करना है। 

‘दिल्ली कोरोना’ एप

राजधानी दिल्ली में कोरोना वायरस (COVID-19) संक्रमण के मामले दिन-प्रति-दिन बढ़ते जा रहे हैं, ऐसे में COVID-19 की गंभीर स्थिति के मद्देनज़र दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आम लोगों की सहायता के लिये ‘दिल्ली कोरोना’ नाम से एक मोबाइल एप लॉन्च किया है। गौरतलब है कि दिल्ली सरकार के इस एप की मदद से आम लोगों को इस बात की जानकारी प्राप्त हो सकती है कि राज्य के सरकारी और निजी अस्पतालों में कितने बेड और वेंटीलेटर खाली हैं। इस एप की सबसे खास बात यह है कि यहाँ बिना किसी रजिस्ट्रेशन के ही जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यह एप अंग्रेज़ी और हिंदी भाषा में उपलब्ध है। उल्लेखनीय है कि देश में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले लगातार नया रिकॉर्ड बना रहे हैं, नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, भारत में कोरोना संक्रमण के मामले 2 लाख से भी अधिक हो गए हैं और देश के इस घातक वायरस के कारण कुल 5,834 लोगों की मृत्यु हो गई है। दिल्ली में भी कोरोना संक्रमण के 20000 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं।


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