शासन व्यवस्था
वर्ष 2018 में भारत का सैन्य खर्च
चर्चा में क्यों?
हाल ही में स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (Stockholm International Peace Research Institute- SIPRI) ने वैश्विक स्तर पर होने वाले सैन्य खर्च के आँकड़े प्रस्तुत किये हैं।
भारत की स्थिति
- थिंक टैंक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा प्रस्तुत इन आँकड़ों के अनुसार, सेना पर खर्च के मामले में भारत वर्ष 2018 में दुनिया में चौथे स्थान पर रहा। गौरतलब है कि सैन्य खर्च के मामले में भारत वर्ष 2017 में पाँचवे स्थान पर था।
- वर्ष 2018 में भारत ने अपने सैन्य खर्च को 3.1 प्रतिशत बढ़ाकर 66.5 बिलियन डॉलर कर दिया। वर्ष 2018 में वैश्विक स्तर पर कुल सैन्य खर्च में भारत का हिस्सा 3.7% था।
- स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब भारत नए लड़ाकू विमानों, जेट, युद्धपोत, हेलीकॉप्टर, तोपखाने और पैदल सेना के हथियारों के साथ अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने में भारी निवेश कर रहा है।
वैश्विक स्थिति
- वर्ष 2018 में वैश्विक स्तर पर कुल सैन्य खर्च का 60% हिस्सा शीर्ष पाँच देशों का था।
- सेना पर सबसे ज़्यादा खर्च करने वाले शीर्ष पाँच देश इस प्रकार हैं-
♦ अमेरिका
♦ चीन
♦ सऊदी अरब
♦ भारत
♦ फ्राँस
- स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के आँकड़ों के मुताबिक, चीन वर्ष 2018 में सैन्य खर्च करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश था।
- चीन ने वर्ष 2018 में अपने सैन्य व्यय को 5% बढ़ाकर 250 बिलियन डॉलर कर दिया। यह वैश्विक सैन्य खर्च का 14% था।
- चीन ने वर्ष 2013 के बाद से हर साल अपने सकल घरेलू उत्पाद का 1.9 प्रतिशत सैन्य खर्च के लिये आवंटित किया है।
- 11.4 बिलियन डॉलर के सैन्य खर्च के साथ पाकिस्तान वर्ष 2018 में 20वें स्थान पर था।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट
- स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है जो संघर्ष, आयुध, हथियार नियंत्रण और निरस्त्रीकरण में अनुसंधान के लिये समर्पित है।
- स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) स्टॉकहोम में स्थित है और इसकी स्थापना 1966 में की गई थी।
- स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) नीति निर्माताओं, शोधकर्त्ताओं, मीडिया और इच्छुक जनता के लिये खुले स्रोतों के आधार पर आँकड़े एकत्र कर उनका विश्लेषण और सिफारिशें प्रदान करता है।
उद्देश्य
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) का उद्देश्य एक ऐसी दुनिया का निर्माण करना है जिसमें असुरक्षा के स्रोतों को पहचाना और समझा जाए, संघर्षों को रोका या हल किया जाए और शांति बनाए रखी जाए।
स्रोत- हिंदुस्तान टाइम्स
विविध
सभी मोटर वाहनों का पंजीकरण बंद
चर्चा में क्यों?
उच्च सुरक्षा पंजीकरण प्लेट (High Security Registration Plate- HSRP) को ’वाहन’ डेटाबेस के साथ एकीकृत नहीं करने के कारण देश भर में 1 मई से मोटर वाहनों के लिये पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी करने पर रोक लगा दी है।
प्रमुख बिंदु
- ज्ञातव्य है कि 1 अप्रैल से मोटर वाहनों के सभी वर्गों में उच्च सुरक्षा पंजीकरण प्लेट के साथ कई इनबिल्ट सुरक्षा सुविधाओं वाले ‘टैम्पर प्रूफ’ फिट किया जाना था।
- ऑटोमोबाइल निर्माताओं को सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा सुरक्षा लाइसेंस प्लेट जारी करने का काम सौंपा गया था।
- उच्च सुरक्षा पंजीकरण प्लेट उपलब्ध कराने में ऑटोमोबाइल निर्माताओं और डीलरों की ओर से बरती गई ढिलाई के कारण केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, संयुक्त परिवहन आयुक्त और राज्य परिवहन प्राधिकरण के सचिव के निर्देश पर राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Centre- NIC) ने वाहनों के पंजीकरण के लिये परिवहन मिशन मोड परियोजना के अखिल भारतीय एप्लीकेशन 'वाहन' तक पहुँच को अवरुद्ध कर दिया है।
- फिलहाल देश में मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को छोड़कर किसी भी राज्य में नए मोटर वाहनों के लिये पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी नहीं किया जा सकता है।
- ये तीन राज्य ’वाहन’ के बजाय अपने स्वयं के सॉफ़्टवेयर का उपयोग कर रहे हैं, इसलिये नए पंजीकृत वाहनों को पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी कर सकते हैं।
वाहन
- वाहन एक ऑनलाइन वेब एप्लीकेशन है जो मोटर वाहनों के पंजीकरण के सभी पहलुओं को शामिल करता है, यह एक अत्यधिक लचीली और व्यापक प्रणाली है।
- इस प्लेटफॉर्म पर नए वाहन का पंजीकरण, पंजीकरण का नवीनीकरण, स्वामित्व का हस्तांतरण, पते के परिवर्तन के साथ राष्ट्रीय और अंतर-राज्यीय परमिट जारी करना, परमिट का नवीनीकरण जैसी सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं।
उच्च सुरक्षा पंजीकरण प्लेट (High Security Registration Plate- HSRP)
- HSRP एल्युमीनियम से बनी होती है, जिसमें पंजीकरण संख्या के अलावा अन्य विशिष्ट विवरण दर्ज होते हैं।
- इस पर एक अद्वितीय सात-अंकीय लेज़र कोड, जालसाज़ी को रोकने के लिये एक चक्र होलोग्राम, इंजन और चेसिस नंबर के साथ एक सेल्फ डिस्ट्रक्टिव स्टिकर होता है।
- इस पर ‘IND’ नीले’ रंग में खुदा हुआ होगा।
महत्त्वपूर्ण क्यों?
- दरअसल सामान्य नंबर प्लेटों के साथ छेड़छाड़ करना बहुत आसान है।चोर आमतौर पर कार चोरी करने के बाद पहला काम नंबर प्लेट हटाने का ही करते हैं।
- जबकि कुछ लोग अपनी नंबर प्लेट को कस्टमाइज़ करना पसंद करते हैं और कभी-कभी कस्टमाइज़ेशन इतना अजीब और अटपटा होता है कि पुलिस के लिये उन वाहनों को पकड़ना मुश्किल हो जाता है, जो ट्रैफिक कानून तोड़ते हैं जैसे- रेड-लाइट जंप करना।
- यदि वे चोरी की गई या फरार कार की नंबर प्लेटों को पढ़ने में सक्षम नहीं हैं तो पुलिस कार को ट्रैक नहीं कर सकती है।
- अत: यूनिफ़ॉर्म स्टाइल वाली HSRP प्लेट्स इन सुरक्षा उद्देश्यों को बहुत अच्छी तरह से पूरा करेगी।
स्रोत: द हिंदू, इकॉनोमिक टाइम्स, केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट
जैव विविधता और पर्यावरण
जलवायु परिवर्तन का ग्लेशियर पर प्रभाव
चर्चा में क्यों?
‘द जर्नल अर्थ फ्यूचर’ (The Journal Earth's Future) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी लगातार जारी रही तो वर्ष 2100 तक विश्व के लगभग आधे प्राकृतिक ग्लेशियर पिघल जाएँगे।
हेरिटेज ग्लेशियर पर खतरा
- ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर’ (IUCN) द्वारा हेरिटेज ग्लेशियर्स पर कराया गया यह दुनिया का पहला शोध माना जा रहा है।
- वैज्ञानिकों के अनुसार, स्विटज़रलैंड के प्रसिद्ध ग्रोसर एलेत्स ग्लेशियर (Grosser Aletsch Glacier) और ग्रीनलैंड के जकॉब्सवैन आइसबारे (Jakobshavn Isbrae) ग्लेशियरों को भी खतरे के दायरे में शामिल किया गया है।
- वैज्ञानिकों ने वैश्विक स्तर पर जाँच के बाद ग्लेशियरों की वर्तमान स्थिति का आकलन किया। साथ ही वैश्विक तापमान में वृद्धि और कार्बन उत्सर्जन की दर के जारी रहने की स्थिति में हेरिटेज ग्लेशियर पर पड़ने वाले प्रभावों के संबंध में अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किये।
प्रमुख बिंदु
- अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2100 तक 46 प्राकृतिक विश्व धरोहर स्थलों में से 21 ग्लेशियर समाप्त हो जाएँगे, जिसमें हिमालय में स्थित खुम्ब ग्लेशियर (Khumbu Glacier) भी शामिल है।
- अर्जेंटीना में स्थित लॉस ग्लेशियर्स नेशनल पार्क (Los Glaciares National Park) में पृथ्वी के कुछ बड़े ग्लेशियर पाए जाते हैं, वर्ष 2100 तक इन ग्लेशियरों में से लगभग 60% बर्फ के समाप्त होने की संभावना है।
- उत्तरी अमेरिका में बहुत कम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के बाद भी वाटरटन ग्लेशियर इंटरनेशनल पीस पार्क (Waterton Glacier International Peace Park), कनाडाई रॉकी माउंटेन पार्क (Canadian Rocky Mountain Parks) और ओलंपिक नेशनल पार्क (Olympic National Park) ग्लेशियर में लगभग 70% तक बर्फ में कमी की संभावना है।
प्रभाव
- ग्लेशियरों के पिघलने की घटना विश्व धरोहर सूची में शामिल ग्लेशियरों के लिये खतरे का संकेत है। अतः जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये राज्यों को अपनी प्रतिबद्धताओं को न केवल मज़बूत करने की आवश्यकता है बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिये इन ग्लेशियरों को संरक्षित करने के प्रयासों को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
परिणाम
- इस अध्ययन के अनुसार, ग्लेशियरों के पिघलने की ये घटनाएँ वैश्विक उत्सर्जन का परिणाम है। यदि उत्सर्जन में कमी होती है तो भी इन ग्लेशियरों में से केवल 8 को ही बचाया जा सकेगा।
- पर्यावरण के साथ-साथ सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण ऐसे प्रसिद्ध ग्लेशियरों का समाप्त होना चिंताजनक है।
- इसका प्रत्यक्ष प्रभाव पेयजल पर पड़ेगा।
- न केवल इससे समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि होगी बल्कि मौसम का पैटर्न प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होगा।
निष्कर्ष
- वैश्विक तापन के संदर्भ में यदि समुचित उपाय नही किये गए तो भविष्य में इसके विषम प्रभाव हो सकते हैं।
- आने वाली पीढ़ियों के लिये पेयजल, कृषि आदि क्षेत्र में इन ग्लेशियरों का बहुत महत्त्व है, अतः इनको बचाना आज की पीढ़ी की एक बड़ी ज़िम्मेदारी है।
आई यू सी एन (International Union for Conservation of Nature- IUCN)
- IUCN पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने वाला विश्व का सबसे पुराना और सबसे बड़ा संगठन है।
- इसकी स्थापना 5 अक्तूबर, 1948 को फ्राँस में हुई।
- इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के ग्लांड शहर में अवस्थित है।
- इसकी पहली बैठक में दुनिया के 18 देशों के सरकारी प्रतिनिधियों, 7 अंतरराष्ट्रीय संगठनों और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने वाले 107 राष्ट्रीय संगठनों ने भाग लिया था।
- इसका मूल लक्ष्य एक ऐसे विश्व का निर्माण करना है, जहाँ मूल्यों और प्रकृति का संरक्षण हो सके। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिये आईयूसीएन प्रकृति की अखंडता और विविधता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिये वैश्विक समाज को प्रोत्साहित करता है।
स्रोत- द इकोनॉमिक टाइम्स
विविध
उपराज्यपाल की शक्तियों में विरोधाभास
चर्चा में क्यों ?
मद्रास उच्च न्यायालय ने केंद्रशासित प्रदेश (पुद्दुचेरी) में उपराज्यपाल के राज्य के क्रियाकलापों में बढ़ते हस्तक्षेप को नियंत्रित करते हुए कहा कि राज्य में निर्वाचित सरकार के रहते उप-राज्यपाल द्वारा प्रशासन के कार्यो को अवरुद्ध नहीं किया जाना चाहिये।
साथ ही कोर्ट ने कहा कि उपराज्यपाल के बढ़ते हस्तक्षेप से यह प्रतीत होता है कि राज्य में दो समानांतर सरकारें चल रही हैं। न्यायालय ने इस बात का भी उल्लेख किया कि केंद्र सरकार और उपराज्यपाल को शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत का पालन करना चाहिये अन्यथा भारतीय संविधान की लोकतांत्रिक भावना हतोत्साहित होगी।
उपराज्यपाल की शक्तियों के संबंध में न्यायालय का दृष्टिकोण
- संवैधानिक तौर पर अनुच्छेद 239A और 239AA के अंतर्गत पुद्दुचेरी और दिल्ली की विधानसभाओं की शक्तियों में अंतर विद्यमान है।
दिल्ली और पुद्दुचेरी के उप-राज्यपालों की शक्तियों में अंतर के प्रमुख बिंदु
साधारणतः दिल्ली और पुडुचेरी दोनों केंद्रशासित प्रदेशों में निर्वाचित सरकारें हैं लेकिन फिर भी इन प्रदेशों के उपराज्यपालों की शक्तियों में कुछ अंतर पाया जाता हैं।
- दिल्ली के उपराज्यपाल के पास पुद्दुचेरी के उपराज्यपाल से अधिक शक्तियाँ हैं।
- दिल्ली के उप-राज्यपाल को कार्यकारी शक्तियों के साथ-साथ कुछ विशेष अधिकार प्राप्त हैं जिनका प्रयोग सार्वजनिक क्षेत्र, पुलिस एवं भूमि से जुड़े मामलों में भी देखा जा सकता है। वह अनुच्छेद 239 के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा दिए गये किसी आदेश को उस राज्य के मुख्यमंत्री के परामर्श से लागू भी कर सकता है।
- दिल्ली के उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम ,1991 और दिल्ली एनसीटी सरकार कामकाज नियम 1993 के तहत और पुद्दुचेरी के उपराज्यपाल को केवल केंद्रशासित प्रदेशों के सरकार संबंधी अधिनियम 1963 द्वारा निर्देशित किया जाता है।
- संविधान के अनुच्छेद 239 और 239AA के साथ ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम, 1991 में यह स्पष्ट उल्लिखित है कि केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली में संघ सरकार की भूमिका होनी भी आवश्यक है। उपराज्यपाल केंद्र सरकार के आँख और कान की भूमिका निभाता है।
- संविधान में भी दिल्ली सरकार को कानून व्यवस्था, पुलिस, भूमि संबंधित मामलों को छोड़कर सभी अधिकार प्राप्त हैं, जबकि पुद्दुचेरी विधानसभा समवर्ती और राज्य सूची के तहत किसी भी मुद्दे पर कानून बना सकती है। हालाँकि राज्य सरकार तथा संसद के कानूनों के मध्य अंतर्विरोध की स्थिति में संसद के द्वारा निर्मित कानून को ही प्राथमिकता दी जाए।
- पुद्दुचेरी में 1963 के व्यापार संबंधी नियमों में वर्णित कार्यों को निर्वाचित सरकार (मंत्रिपरिषद) देखती है और वैसी ही शक्तियाँ वहाँ के उप-राज्यपाल को भी प्राप्त हैं।
उपराज्यपाल की शक्तियों के संबंध में उच्चतम न्यायालय का निर्णय
- इस निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने टिप्पणी की उपराज्यपाल के पास राज्य सूची के विषयों पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की कोई शक्ति नहीं है एवं कोई भी कदम उठाने से पहले निर्वाचित सरकार से परामर्श लेना आवश्यक है।
- इसके साथ ही कहा कि उपराज्यपाल का यह दायित्व है कि वह राज्य सरकार के मंत्रियों के साथ समन्वय बनाकर कार्य करे और उनके अधिकार क्षेत्र में आने वाले कार्यों को बार-बार बाधित न करें।
अतः उच्चतम न्यायालय का शक्ति पृथक्करण के संदर्भ में यह निर्णय स्वागत योग्य है तथा सबसे बड़ी चुनौती संघवाद और सत्ता-साझाकरण व्यवस्था में आने वाली समस्याओं को दूर करने से संबंधित है जिससे केंद्र सरकार और इसके घटकों पर नियंत्रण स्थापित हो सके।