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डेली न्यूज़

  • 03 Feb, 2021
  • 26 min read
शासन व्यवस्था

विदेशी अंशदान संबंधी नए दिशा-निर्देश

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गृह मंत्रालय ने विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत बैंकों के लिये नए विनियमन दिशा-निर्देश जारी किये हैं, जिसके तहत गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) द्वारा किसी भी विदेशी स्रोत (संगठन) से भारतीय रुपए में प्राप्त दान (भले ही वह स्रोत ऐसे दान के समय भारत में स्थित हो) को विदेशी अंशदान ही माना जाएगा।

प्रमुख बिंदु

नए दिशा-निर्देश

  • विदेशी योगदान के दायरे का विस्तार: नए नियमों के मुताबिक, किसी भी विदेशी/विदेशी स्रोत, जिसमें विदेशी मूल के भारतीय स्रोतों जैसे- ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया (OCI) और पर्सन ऑफ इंडियन ओरिजिन (PIO) कार्डधारक आदि द्वारा भारतीय रुपए में प्राप्त दान को विदेशी अंशदान माना जाएगा।
  • FATF के मानकों को पूरा करना: दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) द्वारा वैश्विक वित्तीय प्रहरी- वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) के मानकों के अनुसार प्रथाओं का पालन किया जाना चाहिये।

मौजूदा कानून

  • बैंकों द्वारा अनिवार्य रिपोर्टिंग
    • सभी बैंकों के लिये 48 घंटे के भीतर केंद्र सरकार को गैर-सरकारी संगठन, संघ या व्यक्ति द्वारा किसी भी विदेशी योगदान की प्राप्ति या उपयोग के संबंध में सूचित करना अनिवार्य है, चाहे वे पंजीकृत हों या नहीं अथवा उन्हें विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत पूर्व अनुमति दी गई है या नहीं। 
  • निर्धारित बैंकिंग चैनल
    • संसद द्वारा सितंबर 2020 में विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम (FCRA), 2020 पारित किया गया था।
    • इसके तहत एक नया प्रावधान शामिल किया गया था, जिसके मुताबिक सभी गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के लिये भारतीय स्टेट बैंक की नई दिल्ली शाखा में विदेशी अंशदान प्राप्त करना अनिवार्य है।
    • विदेशी अंशदान प्राप्त करने वाले सभी गैर-सरकारी संगठनों को भारतीय स्टेट बैंक की नई दिल्ली शाखा में एक निर्दिष्ट FCRA खाता खोलना होगा या अपने मौजूदा खाते को इससे जोड़ना होगा।

FCRA विनियमन का कारण

  • वर्ष 2010 से 2019 के बीच विदेशी अंशदान का वार्षिक अंतर्वाह लगभग दोगुना हो गया है, लेकिन कई विदेशी अंशदान प्राप्तकर्त्ताओं द्वारा अंशदान का उपयोग उस उद्देश्य के लिये नहीं किया जा रहा है जिसके लिये उन्हें पंजीकृत किया गया था अथवा FCRA विनियमन के संशोधित प्रावधानों के तहत पूर्व अनुमति दी गई थी।
    • हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ऐसे छह गैर-सरकारी संगठनों का लाइसेंस निलंबित कर दिया था, जिन पर कथित रूप से धार्मिक रूपांतरण के लिये विदेशी योगदान का प्रयोग करने का आरोप था।
  • अतः यह सुनिश्चित करने के लिये कि ऐसे अंशदान का देश की आंतरिक सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े, इन्हें सही ढंग से विनियमित करना आवश्यक है।
    • हाल ही में राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी (NIA) ने एक विदेशी समूह के विरुद्ध मामला दर्ज किया है, जो भारत में अलगाववादी गतिविधियों के लिये धन मुहैया कराती है।
  • इसके माध्यम से विदेशी अंशदान की प्राप्ति और उपयोग में पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित की जा सकती है।

FCRA से संबंधित विवाद

  • अपरिभाषित दायरा: यह अधिनियम देश के ‘राष्ट्रीय और आर्थिक हित’ को ध्यान में रखते हुए हानिकारक गतिविधियों हेतु विदेशी योगदान की प्राप्ति पर प्रतिबंध लगाता है। 
    • हालाँकि यहाँ इस अधिनियम में ‘राष्ट्रीय हित’ आदि को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है।
  • मौलिक अधिकारों को सीमित करता है: FCRA द्वारा लागू प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) और 19(1)(C) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संघ बनाने की स्वतंत्रता के अधिकारों को सीमित करता है।

विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, 2010

  • भारत में व्यक्तियों के विदेशी धन को एफसीआरए अधिनियम के तहत विनियमित किया जाता है और गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
  • व्यक्ति गृह मंत्रालय की अनुमति के बिना 25,000 रुपए तक के विदेशी योगदान स्वीकार कर सकते हैं।
  • विदेशी अंशदान प्राप्तकर्त्ता को अपने उस उद्देश्य को बताना पड़ेगा जिसके लिये वह विदेशी योगदान ले रहा है।
  • इस अधिनियम के तहत संगठनों का पंजीकरण पाँच वर्ष के लिये वैध होता है, लेकिन सभी मानदंडों का पालन करने के बाद इसे नवीनीकृत किया जा सकता है।

विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2020

  • संशोधन के माध्यम से गैर-सरकारी संगठन (NGOs) या विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले लोगों और संगठनों के सभी पदाधिकारियों, निदेशकों एवं अन्य प्रमुख अधिकारियों के लिये आधार (Aadhaar) को एक अनिवार्य पहचान दस्तावेज़ बना दिया गया था। 
  • संशोधन के बाद अब कोई भी व्यक्ति, संगठन या रजिस्टर्ड कंपनी विदेशी अंशदान प्राप्त करने के पश्चात् किसी अन्य संगठन को उस विदेशी अंशदान को ट्रांसफर नहीं कर सकती है। 
  • विदेशी अंशदान केवल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), नई दिल्ली की उस शाखा में ही प्राप्त किया जाएगा, जिसे केंद्र सरकार अधिसूचित करेगी। 
  • अब कोई भी गैर-सरकारी संगठन (NGO) विदेशी अंशदान की 20 प्रतिशत से अधिक राशि का इस्तेमाल प्रशासनिक खर्च पर नहीं कर सकता है।
  • ध्यातव्य है कि सरकार द्वारा किये गए इन संशोधनों की राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी आलोचना की गई थी।

आगे की राह

  • विदेशी योगदान पर अत्यधिक नियमन गैर-सरकारी संगठनों के काम को प्रभावित कर सकता है हालाँकि ये सरकारी योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर लागू करने में सहायक हैं तथा उस अंतराल को भरते हैं, जहाँ सरकार काम करने में विफल रहती है।
  • आवश्यक है कि ये विनियमन वैश्विक समुदाय को अपने कामकाज को सुचारु रूप से करने के लिये महत्त्वपूर्ण संसाधनों के आदान-प्रदान में बाधा उत्पन्न न करें और इस प्रक्रिया को तब तक प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिये जब तक इस तथ्य के स्पष्ट सबूत न हों कि उस धन का उपयोग अवैध गतिविधियों में किया जा रहा है।

स्रोत: द हिंदू


भूगोल

भारत के पुराने बाँध : पर्यावरण और लोगों के लिये खतरा

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र ( United Nations- UN) द्वारा जारी  रिपोर्ट  ‘एजिंग वॉटर इंफ्रास्ट्रक्चर: एन इमर्जिंग ग्लोबल रिस्क’ (Ageing Water Infrastructure: An Emerging Global Risk) के अनुसार, भारत में 1,000 से अधिक बड़े बाँध वर्ष 2025 में लगभग 50 वर्ष पुराने होंगे तथा विश्व में इस प्रकार  के पुराने बाँध या तटबंध बढ़ते खतरे का कारण हैं।

  • कनाडा स्थित इंस्टीट्यूट फॉर वॉटर, एन्वायरनमेंट एंड हेल्थ (Institute For Water, Environment and Health) द्वारा संकलित रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व बड़े बाँधों के निर्माण की क्रांति का पुनः गवाह  (20वीं सदी के मध्य के समान) बनने की स्थिति में नहीं है, लेकिन जिन बाँधों का निर्माण हो चुका है वे अनिवार्य रूप से वर्ष 2025 तक अपनी उम्र से अधिक के हो चुके होंगे।।
  • इस विश्लेषण में संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांँस, कनाडा, भारत, जापान,  ज़ाम्बिया और ज़िम्बाब्वे में बांँधों का गिरना या बाँधों की बढ़ती उम्र के मामलों ( Dam Decommissioning or Ageing Case Studies) के अध्ययन को शामिल किया गया है।

प्रमुख बिंदु: 

वैश्विक परिदृश्य:

  • वैश्विक स्तर पर 58,700 बड़े बाँधों में से अधिकांश का निर्माण वर्ष 1930 और वर्ष 1970 के मध्य 50 से 100 वर्षों की समयावधि को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किया गया था।
  • वर्ष 2050 तक पृथ्वी पर अधिकांश लोग 20वीं सदी में निर्मित हज़ारों बड़े बाँधों के अनुप्रभाव/बहाव (Downstream) क्षेत्र में रह रहे होंगे, इनमें से कई बाँध अपने निर्धारित डिज़ाइन की समयावधि से अधिक समय तक कार्य कर रहे हैं।
    • कंक्रीट निर्मित एक बड़ा बाँध 50 वर्षों में संभवतः उम्र बढ़ने के संकेत व्यक्त करना शुरू कर देता है।
  • बाँध  की बढ़ती उम्र के संकेतों में शामिल हैं- बाँध की अक्षमता में वृद्धि, बाँध  की मरम्मत और रखरखाव लागत का बढ़ना, जलाशय अवसादन में वृद्धि और बाँध  की कार्यक्षमता एवं  प्रभावशीलता का प्रतिकूल रूप से प्रभावित होना जो कि दृढ़ता के साथ परस्पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।
  • 32,716 बड़े बाँध  (विश्व  के कुल बाँधों का 55%) सिर्फ चार एशियाई देशों (चीन, भारत, जापान और दक्षिण कोरिया) में हैं, जिनमें से अधिकांश शीघ्र ही 50 वर्ष की सीमा तक पहुंँच जाएंगे।
    • यही स्थिति अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और पूर्वी यूरोप के कई बड़े बाँधों की  है।

भारतीय परिदृश्य:

  • बड़े बाँधों के निर्माण के मामले में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है।
  • अब तक 5,200 से अधिक बड़े बाँधों में से लगभग 1,100 बाँध 50 वर्ष की आयु तक पहुँच चुके हैं और कुछ 120 वर्ष से अधिक पुराने हो चुके हैं।
    • वर्ष 2050 तक ऐसे बाँधों की संख्या बढ़कर 4,400 हो जाएगी।
  • इसका अर्थ  है कि देश के 80% बड़े बाँधों के लुप्त होने की संभावना है क्योंकि वे 50- 150 वर्ष से अधिक उम्र के हो जाएंगे।
  • हज़ारों मध्यम और छोटे बाँधों की स्थिति और भी खतरनाक है क्योंकि उनकी शेल्फ लाइफ (Shelf Life) बड़े बाँधों की तुलना में कम है।
  • उदाहरण: कृष्णराज सागर बाँध का निर्माण वर्ष 1931 में किया गया था जो अब 90 वर्ष पुराना हो चुका है। इसी प्रकार वर्ष 1934 में मेट्टूर बाँध  का निर्माण किया गया था और यह भी अब 87 वर्ष पुराना है। ये दोनों ही जलाशय पानी की कमी वाले कावेरी नदी बेसिन में स्थित हैं।

समस्या:

  • भंडारण क्षमता में कमी:
    • जैसे-जैसे बाँधों की आयु बढ़ती है, जलाशयों में मिट्टी पानी का स्थान ले लेती है। इसलिये भंडारण क्षमता के संबंध में किसी भी प्रकार का कोई दावा प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है जैसा कि 1900 और 1950 के दशकों में देखा गया था।
    • भारतीय बांँधों में जल भंडारण स्थान में अप्रत्याशित रूप से अधिक तेज़ी के साथ कमी आ रही है।
  • त्रुटिपूर्ण डिज़ाइन:
    • अध्ययन बताते हैं कि भारत के कई बाँधों का डिज़ाइन त्रुटिपूर्ण है।
    • भारतीय  बाँधों के डिज़ाइन में अवसादन विज्ञान (Sedimentation Science) को सही ढंग से व्यवस्थित नहीं किया गया है अर्थात् डिज़ाइन में इसका अभाव देखने को मिलता है। जिस कारण बाँध की जल भंडारण क्षमता में कमी आती है।
    • अवसाद/गाद की उच्च दर: यह निलंबित अवसादों की वृद्धि एवं तलछटो पर महीन अवसादों का जमाव (अस्थायी या स्थायी)  जहाँ कि वे अवांछनीय हैं, दोनों को संदर्भित करता है।

परिणाम:

  • जल का अभाव:
    • जब मिट्टी बाँधों या जलाशयों में जल का स्थान लेती है, तो जल आपूर्ति बाधित हो जाती है और उन फसल क्षेत्रों जहाँ बाँधों से जलापूर्ति की जाती है, को कम पानी मिलने लगता है।
  • भूजल पर प्रभाव:
    • इसकी वजह से ‘शुद्ध (निवल) बोया गया क्षेत्र’ जो कि सिंचाई पर निर्भर है, जल अभाव के कारण या तो आकार में सिकुड़ जाता है या वर्ष या भूजल पर निर्भर हो जाता है।
  • किसानों की आय पर  प्रभाव: 
    • इससे किसान की आय कम हो सकती है क्योंकि फसल पैदावार के लिये क्रेडिट, फसल बीमा और निवेश के साथ पानी एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
    • इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि जलवायु परिवर्तन अनुकूलन पर कोई भी योजना बाँधों में तलछट/गाद भर जाने के कारण सफल नहीं होगी।
  • बाढ़ की बारंबारता: 
    • नदी घाटियों में स्थापित नए डिज़ाइन एवं संरचना वाले बाँधों ने बाढ़ की विभीषिका को सीमित किया है।
    • इस प्रकार की नवीन संरचना वाले बाँधों की क्रियाशीलता के फलस्वरूप ही वर्ष 2020 में भरूच, वर्ष  2018 में केरल और वर्ष 2015 में चेन्नई की बाढ़ को सीमित किया जा सका।
  • उठाए गए कदम:
    • हाल ही में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने बाँध  पुनर्वास और सुधार परियोजना (Dam Rehabilitation and Improvement Project- DRIP) के चरण II और चरण III को मंज़ूरी प्रदान की है।
    • यह परियोजना देश में स्थित मौजूदा 736 बाँधों के व्यापक पुनर्वास की परिकल्पना प्रस्तुत करती है जो बाँध सुरक्षा विधेयक, 2019 (Dam Safety Bill, 2019) के पूरक के रूप में कार्य करती है।

आगे की राह: 

  • वर्ष 2050 तक बढ़ती आबादी की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्र के पास अंततः 21वीं सदी में पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं होगा। अत: प्रचुर मात्रा में फसल उत्पादन, स्थायी शहरों के निर्माण के साथ-साथ विकास सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है । इसके अलावा सभी हितधारकों को इस स्थिति निपटने हेतु एक साथ आने की आवश्यकता है।
  • बाँधों के सुचारु रूप से क्रियान्वयन हेतु एक निवारक तंत्र होना आवश्यक है क्योंकि बाँध के किसी भी कारण से क्षतिग्रस्त या विफल साबित होने की स्थिति में जीवन के नुकसान की भरपाई मिलने वाली हर्ज़ाने की राशि नहीं की जा सकती है।
  •  समग्र नियोजन प्रक्रिया में जल संग्रहण अवसंरचना के विकास हेतु बाँध के संचालन कार्य को बाँध  निर्माण कार्य के समान ही महत्त्वपूर्ण  माना जाना चाहिये।
  • वास्तव में जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ जल से संबंधित मुद्दे पर भी सावधानीपूर्वक और सटीक रूप से विचार करना आवश्यक हो गया है।

स्रोत: द हिंदू 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

हॉन्गकॉन्ग के निवासियों को ब्रिटिश वीज़ा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ब्रिटेन ने हॉन्गकॉन्ग के निवासियों को अपने देश में निवास करने और नागरिकता प्रदान करने के लिये एक विशेष प्रकार का वीज़ा शुरू किया है।

  • यह कदम चीन द्वारा हॉन्गकॉन्ग पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (National Security Law) लागू करने के बाद उठाया गया है। इस सुरक्षा कानून का उद्देश्य भविष्य में हॉन्गकॉन्ग में वर्ष 2019 जैसे लोकतंत्र समर्थक आंदोलनों को रोकना और हॉन्गकॉन्ग सरकार की शक्तियों को खत्म करना है।
  •  ब्रिटेन ने यूरोपीय यूनियन (European Union- EU) का सदस्य रहते हुए वर्ष 2004 में विदेशी श्रमिकों को नागरिकता देने के निर्णय को स्वीकार किया था। इस निर्णय के बाद ब्रिटेन द्वारा विदेशी नागरिकों को स्वीकार करने हेतु यह पहला प्रमुख कदम है, जबकि ब्रिटेन इस समय यूरोपीय यूनियन का सदस्य भी नहीं है।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि:

  • ब्रिटिश सरकार ने हॉन्गकॉन्ग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू होने के पूर्व ही जुलाई 2020 से हॉन्गकॉन्ग के लगभग 7,000 लोगों को अपने देश में आने की अनुमति दी थी।
  • इन्हें वीज़ा योजना के माध्यम से नहीं बल्कि सरकार की इजाज़त पर प्रवास करने की अनुमति दी गई थी।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के जवाब में ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और कनाडा ने हॉन्गकॉन्ग के साथ अपने प्रत्यर्पण संधियों को निलंबित कर दिया है।

विशेष वीज़ा योजना की शर्तें:

  • ब्रिटेन में हॉन्गकॉन्ग के लोगों और उनके आश्रितों को रखने के लिये एक ब्रिटिश नेशनल ओवरसीज़ वीज़ा (British National Overseas Passport) जारी किया जाएगा।
  • वीज़ा धारक ब्रिटेन में 5 वर्ष तक रह सकते हैं और काम कर सकते हैं। वे ब्रिटेन की नागरिकता के लिये 5 वर्ष बाद आवेदन कर सकते हैं।

इस वीज़ा योजना का कारण (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून):

  • राष्ट्रीय सुरक्षा कानून से खतरा: चीन ने हॉन्गकॉन्ग में नया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू किया। इस कानून का मुख्य उद्देश्य चीन की मनमानी और आपराधिक गतिविधियों को छुपाना है।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को मूल कानून के उल्लंघन के रूप में देखा जाता है जो हॉन्गकॉन्ग और बीजिंग के बीच संबंधों को परिभाषित करता है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के प्रावधान:
    • इसमें तोड़फोड़, आतंकवाद और विदेशी ताकतों से मिलीभगत को दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इसके लिये अधिकतम सज़ा आजीवन कारावास है।
    • सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं को नुकसान पहुँचाने वालों को आतंकवादी घोषित किया जा सकता है।
    • इस कानून के अंतर्गत दोषी पाए जाने वाले लोगों को सार्वजनिक पदों के लिये अयोग्य करार दिया गया है।
    • चीन, हॉन्गकॉन्ग में एक नए सुरक्षा कार्यालय की स्थापना करेगा। इस कार्यालय का कोई भी कर्मचारी हॉन्गकॉन्ग के स्थानीय प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र में नहीं आएगा।
    • हॉन्गकॉन्ग को चीन द्वारा नियुक्त सलाहकार के साथ कानूनों को लागू करने के लिये अपना राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग स्थापित करना होगा।
      • यह कार्यालय कुछ मामलों पर फैसले हेतु उन्हें चीन भेज सकता है।
    • हॉन्गकॉन्ग के मुख्य कार्यकारी के पास राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों की सुनवाई के लिये न्यायाधीशों की नियुक्ति करने की शक्ति होगी, जिससे हॉन्गकॉन्ग की न्यायिक स्वायत्तता पर खतरा बढ़ेगा।
    • चीन को कानून की व्याख्या करने का भी अधिकार होगा।

ब्रिटेन का पक्ष:

  • यह सुरक्षा कानून चीन-ब्रिटेन के बीच वर्ष 1984 में हुई संधि का गंभीर और स्पष्ट उल्लंघन है।
    • चीन ने इस संधि के तहत वर्ष 1997 से 50 साल की अवधि तक हॉन्गकॉन्ग की नीति, शासन प्रणाली, स्वतंत्र न्यायपालिका और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान करने का वादा किया था।

चीन का पक्ष:

  • चीन द्वारा ब्रिटेन के इस कदम की आलोचना की गई और कहा गया कि हॉन्गकॉन्ग 24 वर्ष पहले चीन को सौंप दिया गया था।
  • चीन ने कहा कि BN(O) पासपोर्ट उसकी संप्रभुता का उल्लंघन करता है, अतः वह इसे मान्यता नहीं देगा।

ब्रिटेन द्वारा चीन को हॉन्गकॉन्ग के प्रशासन का हस्तांतरण 

  • हॉन्गकॉन्ग लगभग एक शताब्दी तक ब्रिटेन का उपनिवेश रहा, जिसे एक लंबी वार्ता द्वारा वर्ष 1997 में चीन को सौंप दिया गया। इसके बाद हॉन्गकॉन्ग, चीन के विशेष प्रशासनिक क्षेत्रों (SAR) में से एक बन गया।
  • इसे ‘बेसिक लॉ’ नामक एक मिनी-संविधान द्वारा शासित किया जाता है, जो कि ‘एक देश, दो प्रणाली’ के सिद्धांत की पुष्टि करता है।
  • ‘बेसिक लॉ’ नाम का यह संवैधानिक दस्तावेज़ 1984 की चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा का ही परिणाम है, जिसके तहत चीन ने 50 वर्ष की अवधि के लिये हॉन्गकॉन्ग की उदार नीतियों, शासन प्रणाली, स्वतंत्र न्यायपालिका और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की व्यवस्था को बनाए रखने का वादा किया था।

आगे की राह

  • वर्तमान वीज़ा प्रणाली हॉन्गकॉन्ग के लोगों को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत चीन के गुप्त, तानाशाही और बलपूर्वक किये जाने वाले कार्यों से बचने में सक्षम बनाएगा, हालाँकि हॉन्गकॉन्ग के लोगों के हितों की सुरक्षा के लिये आवश्यक है कि सभी हितधारकों के साथ मध्यस्थता और सुलह के माध्यम से दीर्घकालिक समाधान खोजा जाए।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के कारण एक पूर्व एशियाई व्यापारिक केंद्र के रूप में हॉन्गकॉन्ग की स्थिति पर खतरा उत्पन्न हो सकता है, चीन इस कानून के कारण पहले से ही वैश्विक आलोचना का सामना कर रहा है, जिसमें ब्रिटेन द्वारा की गई हालिया कार्यवाही भी शामिल है, इसके अलावा चीन पर कोरोना वायरस से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारी को छिपाने का आरोप लगाया जा रहा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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