जैव विविधता और पर्यावरण
हवाई जहाज के कंट्रेल से ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक अध्ययन से यह पता चला है कि एयरक्राफ्ट की तुलना में वायु-यानों द्वारा निकलने वाले कंट्रेल (Contrails)/(वायु-यान के धुएँ से निर्मित कृत्रिम बादल) अत्यधिक कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन करते हैं जो ग्लोबल वार्मिंग के लिये ज़िम्मेदार है।
प्रमुख बिंदु
- अध्ययनकर्त्ताओं के अनुसार, वायु-यानों से उत्सर्जित धुएँ के प्रभाव से होने वाला जलवायु परिवर्तन वर्ष 2006 की तुलना में वर्ष 2050 तक तीन गुना हो जाएगा। इसके निम्नलिखित कारण हैं:
- आधुनिक विमान अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में अधिक तेज़ उड़ान भरते है, जिससे उष्णकटिबंधीय क्षेत्र पर संवेदी बादल बनने की संभावना बढ़ जाती है।
- हवाई यातायात में वृद्धि।
- ईंधन की दक्षता में सुधार
- अध्ययन के अनुसार, वायुमंडल पर कंट्रेल बादलों के कारण पड़ने वाले दुष्प्रभाव से उत्तरी अमेरिका और यूरोप सर्वाधिक प्रभावित होगा क्योंकि ये विश्व के सबसे व्यस्त हवाई यातायात क्षेत्र हैं।
- हालांकि, एशिया में भी इसका दुष्प्रभाव पडेगा क्योंकि इस क्षेत्र में भी हवाई यातायात में वृद्धि हो रही है।
- कंट्रेल का ऊष्ण प्रभाव अल्पकालिक होता है, क्योंकि यह ऊपरी वायुमंडल में होता है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह वास्तव में यह तापान्तर पृथ्वी की सतह की तुलना में कितना है।
कंट्रेल्स
- अत्यधिक ऊंचाई पर वाष्प दबाव और तापमान बहुत कम होने के कारण जेट इंजन से निकलने वाली नम अपशिष्ट गैसें वातावरण में मिल जाती है।
- जेट विमानों से उत्सर्जित अपशिष्ट गैसों में निहित जल वाष्प, संघनित हो कर जम जाती है एवं इसी प्रक्रिया के द्वारा कंट्रेल बादलों का निर्माण होता है।
- इनमें से अधिकांश कंट्रेल बादल शीघ्र ही से लुप्त हो जाते हैं, लेकिन अनुकूल परिस्थितियों में वे घंटों तक रह सकते हैं, और जब ऐसा होता है तो वे पृथ्वी द्वारा उत्सर्जित तापीय विकिरण को अवशोषित करके वातावरण को गर्म कर देते हैं।
प्रभाव
- जेट इंजन से उत्सर्जित अपशिष्ट गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर और नाइट्रोजन के ऑक्साइड, अधजला ईंधन, कालिख और कुछ धातु के कण, साथ ही जल वाष्प भी होती हैं।
- जिसमें कालिख जल वाष्प को संघनन स्थल प्रदान करती है तथा हवा में मौजूद अन्य कण अतिरिक्त सहायक की भूमिका निभाते हैं।
- एक विमान की ऊंचाई, वातावरण का तापमान और आर्द्रता, कंट्रेल की मोटाई की सीमा और अवधि में भिन्न हो सकती हैं।
- जेट कंट्रेल की प्रकृति और दृढ़ता का उपयोग मौसम की भविष्यवाणी हेतु भी किया जा सकता है।
- अत्यधिक ऊंचाई पर एक पतली, अल्पकालिक कंट्रेल कम नमी वाली हवा को इंगित करता है, जो उचित मौसम का संकेत देता है, जबकि एक मोटी, लंबे समय तक चलने कंट्रेल उच्च ऊंचाई पर आर्द्र हवा को दर्शाता है और एक तूफान का शुरुआती संकेतक हो सकता है।
महत्व
- विमानन का पहले से ही जलवायु पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है। वर्ष 2005 में, वायु यातायात ने जलवायु परिवर्तन पर मनुष्यों के प्रभाव का लगभग 5 प्रतिशत योगदान दिया है।
- प्रत्येक 15 वर्ष के अंतराल पर हवाई यातायात लगभग दोगुना हो जाता है। वायु-यानों के कंट्रेल, विमानन उद्योग के सबसे बड़े जलवायु प्रदूषक हैं
- लेकिन विमानन क्षेत्र की जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए नीतियां CO2 उत्सर्जन पर ध्यान केंद्रित करती हैं, परंतु कंट्रेल के प्रभाव को अनदेखा कर देती हैं।
- अतः अध्ययनकर्त्ता यह सुझाव देते है कि कंट्रेल जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारक है जिसे ध्यान में रखकर जलवायु नीतियों का निर्माण करना चाहिये।
उपाय
- क्लीनर द्वारा विमान उत्सर्जन समस्या को हल किया जा सकता है, इसकी सहायता से विमान इंजनों द्वारा उत्सर्जित कालिख कणों की संख्या को कम करके कंट्रेल में संघनित बर्फ के क्रिस्टल की संख्या घट जाती है और इसका तात्पर्य है कि कंट्रेल सिरस का जलवायु प्रभाव भी कम हो जाएगा।
- हालांकि, कालिख (Soot) के प्रभाव को कम करने से भले ही यह 90 प्रतिशत तक कम हो गया हो लेकिन कंट्रेल, वर्ष 2006 की तुलना में वर्ष 2050 में ऊष्णता को तेज़ी से बढ़ाएगा।
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
शासन व्यवस्था
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की नई पहल
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC) ने देश में अनुसंधान की संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु नई पहल ‘स्कीम फॉर ट्रांस- डिसिप्लिनरी रिसर्च फॉर इंडियाज़ डेवलपिंग इकॉनमी’ (Scheme for Trans-disciplinary Research for India’s Developing Economy- STRIDE) की घोषणा की।
STRIDE के प्रमुख उद्देश्य
- इस योजना का मुख्य उद्देश्य युवाओं में निहित प्रतिभा की पहचान करना, अनुसंधान की संस्कृति तथा नवाचार को बढ़ावा देना, क्षमता निर्माण करना, भारत की विकासशील अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय विकास हेतु ट्रांस- डिसिप्लिनरी रिसर्च को बढ़ावा देना है।
- मानविकी और मानव विज्ञान के संदर्भ में विशेष ध्यान देते हुए बहु-संस्थागत नेटवर्क तथा प्रभावी रिसर्च परियोजनाओं को फण्ड प्रदान करना।
प्रमुख बिंदु
- STRIDE उन अनुसंधान परियोजनाओं को सहायता प्रदान करेगा जो सामाजिक रूप से प्रासंगिक होने के साथ ही स्थानीय रूप से आवश्यकता आधारित, राष्ट्रीय स्तर एवं विश्व स्तर पर महत्तवपूर्ण हैं।
- यह अनुसंधान क्षमता निर्माण के साथ-साथ बुनियादी व अनुप्रयुक्त तथा परिवर्तनकारी अनुसंधान का समर्थन करेगा जो समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित करने के साथ राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में योगदान दे सकता है।
- यह मज़बूत नागरिक समाज के निर्माण हेतु नए विचारों, अवधारणाओं और प्रथाओं तथा विकास को समर्थन प्रदान करेगा।
- इस योजना से भारतीय भाषाओं और ज्ञान प्रणालियों के क्षेत्र में गुणवत्तायुक्त अनुसंधानों को बढ़ावा मिलेगा।
- कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में ट्रांस- डिसिप्लिनरी रिसर्च कल्चर को मज़बूत करने में सहयोग हेतु STRIDE के निम्नलिखित तीन घटक दिये गए हैं ।
- इसके अंतर्गत विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में अनुसंधान तथा नवाचार को प्रेरित करने के साथ ही युवा प्रतिभाओं की पहचान की जाएगी। स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक समस्याओं के व्यावहारिक समाधान हेतु युवा प्रतिभाओं की पहचान व समर्थन करके विविध विषयों में अनुसंधान क्षमता का निर्माण किया जाएगा। इसमें सभी विषयों पर अनुसंधान के लिये 1 करोड़ रुपए तक का अनुदान दिया जाएगा।
- इस योजना के तहत भारत की विकासशील अर्थव्यवस्था में योगदान करने के लिये सामाजिक नवाचार के क्षेत्र में अनुसंधान की मदद से समस्या निवारण हेतु कौशल बढ़ाया जाएगा। इसके तहत विश्वविद्यालयों, सरकार, स्वैच्छिक संगठनों और उद्योगों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित किया जाता है। इसमें सभी विषयों पर अनुसंधान करने के लिये 50 लाख - 1 करोड़ तक का अनुदान दिया जाएगा।
- इसके तहत निधिकरण के लिये पात्र शर्तों में शामिल हैं: दर्शन, इतिहास, पुरातत्त्व, नृविज्ञान, मनोविज्ञान, स्वतंत्र कला (Liberal Art), भाषा विज्ञान, भारतीय भाषा एवं संस्कृति, भारतीय ज्ञान प्रणाली, कानून, शिक्षा, पत्रकारिता, जनसंचार, वाणिज्य, प्रबंधन, पर्यावरण और सतत विकास। इस घटक के लिये उपलब्ध अनुदान के अंतर्गत एक उच्च शैक्षिणिक संस्थान (Higher Educational Institutions- HEI) हेतु 1 करोड़ रुपए और बहु संस्थागत नेटवर्क के लिये 5 करोड़ रुपए तक है।
ट्रांस-डिसिप्लिनरी रिसर्च
- यह नए वैचारिक, सैद्धांतिक, पद्धतिगत नवाचारों के निर्माण हेतु विभिन्न विषयों के क्षेत्र में किया जाने वाला एक प्रयास है जिसमें अनुशासन-विशिष्ट दृष्टिकोणों से परे आम समस्या पर ध्यान दिया जाएगा।
- शोध में ज्ञान के सैद्धांतिक प्रयासों से हटकर व्यावहारिक उपयोग की आवश्यकता को संदर्भित किया जाएगा।
- यह अनुशासनात्मक दृष्टिकोण से परे बौद्धिक रूपरेखा की एकता पर बल देता है और विभिन्न हितधारकों को शामिल करने के लिये विषयों की सीमाओं से परे जाकर समस्याओं को हल करने का प्रयास करता है।
- यह बहु और अंतर-अनुशासनात्मक अवधारणाओं के उपयोग द्वारा नवाचार को बढ़ावा देता है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग
(University Grants Commission- UGC)
- 28 दिसंबर, 1953 को तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने औपचारिक तौर पर यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन की नींव रखी थी।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग विश्वविद्यालयी शिक्षा के मापदंडों के समन्वय, निर्धारण और अनुरक्षण हेतु वर्ष 1956 में संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित एक स्वायत्त संगठन है।
- पात्र विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को अनुदान प्रदान करने के अतिरिक्त, आयोग केंद्र और राज्य सरकारों को उच्चतर शिक्षा के विकास हेतु आवश्यक उपायों पर सुझाव भी देता है।
- इसका मुख्यालय देश की राजधानी नई दिल्ली में अवस्थित है। इसके छह क्षेत्रीय कार्यालय पुणे, भोपाल, कोलकाता, हैदराबाद, गुवाहाटी एवं बंगलूरू में हैं।
स्रोत- PIB
कृषि
कृषि क्षेत्र में सुधार के लिये मुख्यमंत्रियों की एक समिति
चर्चा में क्यों?
नीति आयोग ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है जो भारत के कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु सुझाव देगी।
समिति में शामिल अन्य सदस्य
- नीति आयोग की आधिकारिक घोषणा के अनुसार, इस समिति में देवेंद्र फड़नवीस के अतिरिक्त कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी शामिल हैं।
समिति के मुख्य कार्य:
- किसानों को उनकी उपज के विपणन (Marketing) में सुधार करने के तरीकों पर सुझाव देना।
- अनुबंध कृषि के लिये मापदंड तैयार करना।
- कृषि क्षेत्र में निजी निवेशकों को आकर्षित करने और कृषि बाज़ार प्रणाली को आधुनिक बनाने पर सुझाव देना।
- इस समिति को किसानों की आय में वृद्धि करने के तरीकों पर विचार करने को भी कहा गया है।
- मुख्यमंत्रियों का यह समूह अनिवार्य वस्तु अधिनियम (Essential Commodities Act- ECA), 1955 के प्रावधानों की भी समीक्षा करेगा और उनमें परिवर्तन का भी सुझाव देगी ताकि कृषि क्षेत्र में निजी निवेशकों को आकर्षित किया जा सके।
- समिति कृषि निर्यात को बढ़ावा देने और कृषि तकनीक को बेहतर बनाने के उपायों पर भी सुझाव देगी।
- इसके अतिरिक्त यह समिति किसानों तक उच्च गुणवत्ता के बीजों की पहुँच को भी सुनिश्चित करेगी।
अनिवार्य वस्तु अधिनियम, 1955
(Essential Commodities Act- ECA)
- इस अधिनियम को वर्ष 1955 में लागू किया गया था।
- यह अधिनियम सभी उपभोक्ताओं के लिये आवश्यक/अनिवार्य वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
- यह कपटी व्यापारियों से भी उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्रदान करता है।
- इस अधिनियम में अधिकांश शक्तियाँ राज्य सरकारों को प्रदान की गई है।
- अधिनियम के अनुसार, अनिवार्य वस्तुओं में निम्नलिखित को शामिल किया जाता है :
- पेट्रोलियम और उसके उत्पाद (जैसे- पेट्रोल, डीज़ल, केरोसिन आदि)
- खाद्य सामग्री (जैसे- तेल, बीज, दालें, चीनी और चावल)
- जूट और कपड़े
- दवाइयाँ
- उर्वरक
स्रोत- द हिंदू, बिज़नेस स्टैंडर्ड
शासन व्यवस्था
उच्च शिक्षा में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार ने देश के उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिये विश्वविद्यालय स्तर की पाठ्य पुस्तकों को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में उपस्थित सभी 22 भाषाओं में अनुवाद करने तथा प्रकाशित करने की घोषणा की है।
प्रमुख बिंदु
- वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग (Commission for Scientific and Technical Terminology- CSTT) की ओर से क्षेत्रीय भाषाओं में विश्वविद्यालय स्तरीय पुस्तकों के प्रकाशन हेतु अनुदान प्रदान किया जा रहा है।
- अब तक ग्यारह भारतीय भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। ये हैं-
- असमिया
- बंगाली
- गुजराती
- हिंदी
- कन्नड़
- मलयालम
- मराठी
- उड़िया
- पंजाबी
- तमिल
- तेलुगू
- राष्ट्रीय अनुवाद मिशन ( National Translation Mission- NTM) को मैसूर स्थित केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (Central Institute of Indian Languages- CIIL) के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में निर्धारित विभिन्न विषयों की ज़्यादातर पाठ्य पुस्तकों का भारत के संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) भी देश में उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देता है साथ ही ‘केंद्रीय विश्वविद्यालयों में लुप्तप्राय भाषाओं के लिये केंद्र की स्थापना’ योजना के तहत नौ केंद्रीय विश्वविद्यालयों का समर्थन करता है।
- भारत में संस्कृत भाषा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने निम्नलिखित उपाय किए हैं:
- आदर्श संस्कृत महाविद्यालयों/शोध संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
- संस्कृत पाठशाला के छात्र को कॉलेज स्तर पर मेधावी छात्रवृत्ति का पुरस्कार।
- विभिन्न अनुसंधान परियोजनाओं/कार्यक्रमों के लिये गैर-सरकारी संगठनों/संस्कृत के उच्च शिक्षण संस्थानों को वित्तीय सहायता।
- सेवानिवृत्त प्रख्यात संस्कृत विद्वान शिक्षण के लिये शास्त्र चूड़ामणि (Shastra Chudamani) योजना से जुड़े हैं।
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों, आयुर्वेद संस्थानों, आधुनिक कॉलेजों और विश्वविद्यालयों जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में, गैर-औपचारिक संस्कृत शिक्षण केंद्रों की स्थापना करके संस्कृत को गैर-औपचारिक संस्कृत शिक्षा (NFSE) कार्यक्रम के माध्यम से भी पढ़ाया जाता है।
- संस्कृत भाषा के लिये राष्ट्रपति पुरस्कार प्रतिवर्ष 16 वरिष्ठ विद्वानों और 5 युवा विद्वानों को प्रदान किया जाता है।
- प्रकाशन के लिये वित्तीय सहायता, दुर्लभ संस्कृत की पुस्तकों का पुनर्मुद्रण।
- अष्टादशी में संस्कृत के विकास को बनाए रखने के लिये अठारह परियोजनाएँ शामिल हैं।
केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान
Central Institute of Indian Languages- CIIL
- मैसूर में स्थित केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान मानव संसाधन विकास मंत्रालय का एक अधीनस्थ कार्यालय है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1969 में की गई थी।
- यह भारत सरकार की भाषा नीति को तैयार करने, इसके कार्यान्वयन में सहायता करने, भाषा विश्लेषण, भाषा शिक्षा शास्त्र, भाषा प्रौद्योगिकी तथा समाज में भाषा प्रयोग के क्षेत्रों में अनुसंधान द्वारा भारतीय भाषाओं के विकास में समन्वय करने हेतु स्थापित की गई है।
- इसके अंतर्गत इनके उद्देश्यों को बढ़ावा देने के लिये यह बहुत से कार्यक्रमों का आयोजन करता है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :
- भारतीय भाषाओं का विकास
- क्षेत्रीय भाषा केन्द्र
- सहायता अनुदान योजना
- राष्ट्रीय परीक्षण सेवा
स्रोत- PIB
जैव विविधता और पर्यावरण
यूरोप में ग्रीष्म लहर
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में दक्षिणी फ्राँस, जर्मनी, चेक गणराज्य और पोलैंड में क्रमशः 45.9°C , 39.3°C, 38.9°C और 38.2°C तापमान दर्ज किया गया। इससे यूरोप में ग्रीष्म लहर (Heat Wave) की गंभीर स्थिति उत्पन्न हो गई है।
प्रमुख बिंदु
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन ( World Meteorological Organization- WMO) के अनुसार, यूरोप में हीटवेव/ग्रीष्म लहर का प्रमुख कारण अफ्रीका से प्रवाहित होने वाली गर्म हवाएँ तथा भारत, पाकिस्तान, मध्य पूर्व और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में अत्यधिक गर्मी की स्थिति है।
- मौसम विशेषज्ञों के अनुसार, वैश्विक तापमान बढ़ने से ग्रीष्म लहर बढ़ रही है।
- वर्ल्ड वेदर एट्रीब्यूशन ग्रुप (World Weather Attribution Group) द्वारा यूरोप-वाइड हीटवेव पर किये गए अध्ययन के अनुसार, इस क्षेत्र में तापमान में वृद्धि मानवीय गतिविधियों द्वारा भी हुई है। जलवायु परिवर्तन में मानवीय गतिविधियाँ भी काफी ज़िम्मेदार हैं।
- यदि वर्तमान प्रवृत्ति जारी रही तो यूरोप में हीटवेव वर्ष 2040 तक ऐसे ही प्रत्येक वर्ष आती रहेगी तथा यदि यही प्रक्रिया निरंतर चलती रही तो वर्ष 2100 तक वहाँ का तापमान लगभग 3-5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।
अत्यधिक तापमान का कारण
विश्व मौसम संगठन (World Meteorological Organization-WMO) के अनुसार-
1. अफ्रीका से प्रवाहित होने वाली गर्म हवाएँ यूरोप में तापमान को बढ़ा देती हैं जिनके चलते ग्रीष्म लहर की घटनाएँ हो रही हैं।
2. जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप इस प्रकार की अप्रत्याशित घटनाओं में वृद्धि हुई है।
3. ग्रीन हाउस गैसों की बढती सांद्रता के कारण भी तापमान बढ़ रहा है जो ग्रीष्म लहर की घटनाओं के लिये उत्तरदायी है ।
ग्रीष्म लहर/हीटवेव क्या है?
- विभिन्न देशो में उनके तापमान के आधार पर हीटवेव को वर्गीकृत किया जाता है क्यों कि एक ही अक्षांश पर तापमान में भिन्नता पायी जाती है।
- WMO ने वर्ष 2016 में प्रकाशित अपने दिशा-निर्देशों में तापमान और मानवीय गतिविधियो जैसे कुछ कारको को ग्रीष्म लहर के मानक आधार के रूप में चिह्नित किया।
- भारत के मौसम विभाग ने मैदानी क्षेत्रों में 40 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस तापमान को हीटवेव के मानक के रूप में निर्धारित किया है।
- जहाँ सामान्य तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से कम रहता है वहाँ 5 से 6 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर सामान्य हीटवेव तथा 7 डिग्री सेल्सियस से अधिक तामपान बढ़ने पर गंभीर हीटवेव की घटनाएँ होती है।
- जहाँ सामान्य तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहता है वहाँ पर 4 से 5 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ जाने पर सामान्य हीटवेव और 6 डिग्री सेल्सियस से अधिक तामपान बढ़ने पर गंभीर हीटवेव की घटनाएँ होती है
स्वास्थ्य संबंधी दुष्परिणाम :
- WMO के अनुसार हीटवेव से लोगो का स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण सबसे ज्यादा प्रभावित होगा।
- यूरोप के लोगो में तापमान सहन करने की क्षमता गर्म देशो की अपेक्षा कम होती है, उदाहरणस्वरुप 35 डिग्री सेल्सियस तापमान भारत आदि देशो के लिये सामान्य है लेकिन यूरोप में लोग इतने तापमान पर बीमार होने लगते है, बच्चे एवं बुजुर्ग विशेष रूप से इससे प्रभावित होते है।
- उच्च तापमान से थकावट, हीट स्ट्रोक (heat stroke), अंग की विफलता(Organ Failure )और सांस लेने में समस्याएँ देखने को मिल रही है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन
(World Meteorological Organisation)
- यह एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसे 23 मार्च, 1950 को मौसम विज्ञान संगठन अभिसमय के अनुमोदन द्वारा स्थापित किया गया है।
- यह पृथ्वी के वायुमंडल की परिस्थिति और व्यवहार, महासागरों के साथ इसके संबंध, मौसम और परिणामस्वरूप उपलब्ध जल संसाधनों के वितरण के बारे में जानकारी देने के लिये संयुक्त राष्ट्र (UN) की आधिकारिक संस्था है।
- 191 सदस्यों वाले विश्व मौसम विज्ञान संगठन का मुख्यालय जिनेवा (Geneva) में है।
- उल्लेखनीय है कि प्रतिवर्ष 23 मार्च को विश्व मौसम दिवस मनाया जाता है।
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय विरासत और संस्कृति
कैलाश मानसरोवर यूनेस्को की अस्थायी सूची में शामिल
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संस्कृति और पर्यटन राज्य मंत्री ने ‘सेक्रेड माउंटेन लैंडस्केप एंड हेरिटेज रूट’ (कैलाश मानसरोवर का भारतीय भाग) को भारत के विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी सूची में शामिल किये जाने की घोषणा की है।
मुख्य बिंदु :
- इसे अप्रैल 2019 में मिश्रित स्थल के रूप में प्रस्तावित किया गया था।
- यूनेस्को द्वारा दिये गए निर्देशों के अनुसार, अंतिम नामांकन करने से पूर्व किसी भी स्थल को कम-से-कम एक वर्ष के लिये यूनेस्को की अस्थायी सूची में रहना पड़ता है।
- एक बार नामांकन होने के पश्चात् उस स्थल को विश्व धरोहर केंद्र (World Heritage Centre - WHC) में भेज दिया जाता है।
- जिसके पश्चात् विश्व धरोहर समिति द्वारा किसी भी स्थल को विश्व धरोहर सूची में स्थायी रूप से शामिल करने के लिये जाता है।
क्या होता है विश्व धरोहर स्थल?
- सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्त्व के स्थलों को हम विश्व धरोहर या विरासत कहते हैं।
- ये स्थल ऐतिहासिक और पर्यावरण के लिहाज़ से भी महत्त्वपूर्ण होते हैं।
- इनका अंतरराष्ट्रीय महत्त्व होता है तथा इनके सरंक्षण हेतु विशेष प्रयास किये जाते हैं।
- ऐसे स्थलों को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को, विश्व धरोहर की मान्यता प्रदान करती है।
- कोई भी स्थल जो मानवता के लिये ज़रूरी है, जिसका कि सांस्कृतिक और भौतिक महत्त्व है, उसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के तौर पर मान्यता दी जाती है।
भारत के विश्व धरोहर स्थल
- भारत में कुल 37 मूर्त विरासत धरोहर स्थल (29 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और 1 मिश्रित) हैं और 13 अमूर्त सांस्कृतिक विरासतें हैं।
भारत में विश्व धरोहर स्थल |
|||
मूर्त विरासतें | अमूर्त सांस्कृतिक विरासतें | ||
सांस्कृतिक | प्राकृतिक | मिश्रित | |
|
|
|
|
स्रोत- पी. आई. बी.
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ईरान ने संवर्धित यूरेनियम क्षमता की तय सीमा पार की
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में ईरान ने वर्ष 2015 के समझौते के अनुसार संवर्धित यूरेनियम की तय सीमा से अधिक यूरेनियम भंडारण करने की बात को स्वीकार कर लिया है। अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy agency- IAEA) ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है।
मुख्य बिंदु
- ईरान के साथ P5+1 देशों ने 2015 में एक परमाणु समझौता (The Joint Comprehensive Plan of Action-JCPOA) किया था। इस समझौते में ईरान के लिये यूरेनियम भंडारण की अधिकतम सीमा तय कर दी गई थी तथा इसके बदले में ईरान पर से कुछ आर्थिक प्रतिबंधों को समाप्त एवं कुछ को निलंबित किया जाना था।
- इस समझौते में प्रासंगिक सीमा (300 किग्रा. यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड-UF6) का ईरान द्वारा अतिक्रमण किया गया है जिसकी घोषणा स्वयं ईरान ने की है।
- अमेरिका के इस समझौते से निकलने तथा ईरान पर फिर से प्रतिबंध आरोपित करने के पश्चात ईरान का यह महत्त्वपूर्ण कदम है। ध्यातव्य है कि अमेरिकी प्रतिबंधों के पश्चात् ईरान ने संवर्धित यूरेनियम में वृद्धि करने की चेतावनी दी थी।
- ईरान के कदम के पश्चात ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही हैं कि ईरान का यह फैसला यूरोपीय देशों (फ्राँस, जर्मनी, ब्रिटेन) को प्रेरित कर सकता है कि यूरोपीय देश अमेरिका पर दबाव बनाए जिससे पूर्व के समझौते पर वापस लौटा जा सके।
- ज्ञात हो कि यूरोपीय देश पहले ही अमेरिका के इस समझौते से एकतरफा बाहर निकलने के पक्ष में नहीं है तथा ईरान अमेरिका के मध्य उपजे तनाव को कम करने का प्रयास कर रहे हैं।
- ऐसा माना जा रहा है कि ईरान का यह कदम विभिन्न राष्ट्रों को चेतावनी स्वरूप उठाया गया है कि यदि अमेरिका का रुख ईरान के प्रति नरम नहीं होता और वह ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधो से ईरान को राहत नहीं देता है तो ईरान इस समझौते को तोड़ सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी
(International Atomic Energy Agency-IAEA)
- इस अंतर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना वर्ष 1957 में परमाणु ऊर्जा तकनीक के बढ़ते उपयोग को ध्यान में रखकर की गई थी।
- वर्तमान में इसके 171 राष्ट्र सदस्य है तथा इसका मुख्यालय ऑस्ट्रिया की राजधानी विएना में है।
- इसका प्रमुख उद्देश्य परमाणु ऊर्जा का शांति के लिये उपयोग को बढ़ावा देना है। साथ ही यह परमाणु ऊर्जा के किसी भी ऐसे सैन्य उपयोग का विरोध करती है जिसमे परमाणु हथियार भी शामिल है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विविध
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (02 जुलाई)
- केंद्र सरकार ने जल संकट से निपटने और देश में पानी की कमी से जूझ रहे 255 ज़िलों में 1 जुलाई से जल शक्ति अभियान की शुरूआत की है। इसमें वर्षा के पानी के संचय और संरक्षण के प्रयास किए जाएंगे। इस अभियान में 800 IAS अधिकारियों की भी मदद ली जाएगी, जिनमें संयुक्त सचिव से लेकर अतिरिक्त सचिव रैंक तक के अधिकारी शामिल होंगे। इस अभियान में अंतरिक्ष, पेट्रोलियम और रक्षा क्षेत्र से भी अधिकारियों को शामिल किया जाएगा। इसके अलावा विभिन्न मंत्रालयों के 550 उपसचिव भी अपने-अपने हिस्से में आए ज़िले व ब्लॉक का दौरा करेंगे। यह अभियान 1 जुलाई से 30 सितंबर तक दक्षिण-पश्चिम मानसून के वापस जाने तक विभिन्न राज्यों में चलेगा। इसमें वर्षा के जल संचयन पर फोकस किया जाएगा। 1 अक्तूबर से 30 नवंबर तक उत्तर-पूर्व मानसून वाले राज्य इसमें शामिल होंगे। जल शक्ति और ग्रामीण विकास मंत्रालय मिलकर यह अभियान संचालित कर रहे हैं, जिसकी मोबाइल एप्लीकेशन के ज़रिये रियल टाइम मॉनिटरिंग की जाएगी।
- पहली स्टेम सेल रजिस्ट्री खोलने की योजना पर काम कर रहा है। इस रजिस्ट्री के बन जाने से मरीज़ और डोनर के स्टेम सेल की मैचिंग में लगने वाले समय और इलाज की कुल लागत में कमी आने की संभावना है। ज्ञातव्य है कि आनुवंशिक रक्त विकार थैलेसीमिया, अप्लास्टिक एनीमिया और कुछ कैंसर के मामलों में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट एक कारगर इलाज है, जबकि मरीज़ से मिलते-जुलते स्टेम सेल की खोज में समय लग जाता है। इस रजिस्ट्री के बन जाने के बाद मरीज़ की जाँच के कुछ ही मिनटों में डोनर लाया जा सकेगा। इससे डोनर को खोजने में लगने वाले समय में कमी आएगी और डोनर को कोई भुगतान भी नहीं करना होगा। एक अनुमान के अनुसार, देश में सालाना लगभग दो हज़ार स्टेम सेल ट्रांसप्लांट ही होते हैं, जबकि ज़रूरत 80 हज़ार से एक लाख स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की है। स्टेम सेल या मूल कोशिका ऐसी कोशिकाएँ होती हैं, जिनमें शरीर के किसी भी अंग को कोशिका के रूप में विकसित करने की क्षमता होती है। इसके साथ ही ये अन्य किसी भी प्रकार की कोशिकाओं में बदल सकती हैं। इन कोशिकाओं को शरीर की किसी भी क्षतिग्रस्त कोशिका को ठीक करने के लिये प्रयोग किया जा सकता है।
- उत्तर प्रदेश सरकार ने 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल कर लिया है। इन जातियों में कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोड़िया, माझी और मछुआ शामिल हैं। प्रदेश सरकार ने यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा एक जनहित याचिका पर दिये गए आदेश के बाद लिया है। यह प्रक्रिया हाईकोर्ट के आदेश के अंतिम फैसले के अधीन होगी। प्रदेश की ये 17 पिछड़ी जातियाँ लंबे समय से उन्हें अनुसूचित जाति की सूची में लाने की मांग कर रही थीं। प्रदेश सरकार के इस फैसले के बाद राज्यपाल ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिये आरक्षण) अधिनियम 1994 की धारा-13 के अधीन शक्ति का प्रयोग करते हुए अधिनियम की अनुसूची-1 में जरूरी संशोधन कर दिया है। इस संशोधन के ज़रिये अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में से उपरोक्त 17 जातियों को निकाल दिया गया है। अब ये 17 पिछड़ी जातियाँ अनुसूचित जाति में गिनी जाएंगी।
- 1 जुलाई को देशभर में चार्टर्ड अकाउंटेंट दिवस यानी CA डे का आयोजन किया जाता है। वर्ष 1949 में आज के दिन ही इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (ICAI) की स्थापना की गई थी। ICAI को संसद द्वारा पारित अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था। ICAI देश की राष्ट्रीय प्रोफेशनल अकाउंटिंग संस्था है, जो अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक अकाउंटेंट्स के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अकाउंटिग संस्था है। ICAI का आधिकारिक प्रतीक चिह्न गरुड़ है तथा देश में CA का कोर्स कराने की ज़िम्मेदारी इसी के पास है। ICAI चार्टर्ड एकाउंटेंट बनने की योग्यता को निर्धारित करता है, परीक्षा लेता है तथा लेखांकन की प्रैक्टिस करने का लाइसेंस देता है। इसके अलावा यह RBI, SEBI, MCA, CAG, IRDA आदि जैसी सरकारी संस्थाओं को नीति निर्माण में सहयोग करता है।
- अब खुदरा दुकानदार या ई-कॉमर्स कंपनियां भौगोलिक संकेतक (GI) वाले विशेष उत्पादों को बाज़ार में रखने और बेचने के लिये उनके प्रतीक चिन्ह (Logo) और Tagline के इस्तेमाल के लिये उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) से मंज़ूरी ले सकते हैं। ज्ञातव्य है कि भौगोलिक संकेतक मुख्य रूप से विशिष्ट प्रकार के कृषि, प्राकृतिक या विनिर्मित उत्पादों (हस्तशिल्प और औद्योगिक वस्तुओं) को प्रदान किया जाता है, जिनकी उत्पत्ति किसी सुनिश्चित भौगोलिक क्षेत्र से जुड़ी होती है। भौगोलिक संकेतक के रूप में पंजीकृत भारतीय उत्पादों को बढ़ावा देने तथा विपणन को प्रोत्साहित करने के इरादे से DPIIT ने साझा GI प्रतीक चिह्न और टैगलाइन अगस्त 2018 में जारी किया था। इससे GI उत्पादकों के साथ ही उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता बढ़ेगी और उन उत्पादों का विपणन और बिक्री बढ़ेगी। भारत में GI प्रतीक चिह्न और टैगलाइन का स्वामित्व DPIIT के पास है। विदेशी GI उत्पादों को प्रतीक चिह्न और टैगलाइन के इस्तेमाल की अनुमति नहीं होगी, भले ही वे भारत में पंजीकृत हों।