राजस्थान में ‘बस्टर्ड प्रजनन केंद्र’ की स्थापना
समाचारों में क्यों?
राजस्थान सरकार ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के लिये एक प्रजनन केंद्र की स्थापना करेगी| ग्रेट इंडियन बस्टर्ड देश का सर्वाधिक संकटग्रस्त पक्षी है तथा राजस्थान सरकार इसकी आबादी को संरक्षित करने का प्रयास कर रही है| संरक्षण का कार्य कोटा और जैसलमेर की दो सुविधाओं(facilities) के माध्यम से किया जाएगा|
प्रमुख बिंदु
- यह देश की ऐसी पहली सुविधा होगी| इसका उद्देश्य राजस्थान के राज्य-पक्षी ‘द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ का संरक्षण करना होगा| राजस्थान में शेष बची हुई इस पक्षी की अंतिम आबादी( मात्र 90) सम्पूर्ण देश में उपस्थित इनकी कुल आबादी का 95% है|
- इस प्रजनन केंद्र की स्थापना कोटा ज़िले में स्थित शोरसन (Sorsan) में की जाएगी जबकि अंडे सेने वाले एक स्थान(hatchery) की स्थापना अगले वर्ष जैसलमेर ज़िले में स्थित मोखाला (Mokhala) में की जाएगी|
- केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने इन दोनों केन्द्रों की स्थापना के लिये 33.85 करोड़ रुपये की धनराशि को स्वीकृति प्रदान की है तथा इसके वैज्ञानिक शाखा के रूप में भारतीय वन्यजीव संस्थान(Wildlife Institute of India -WII) को अधिकृत किया है|
- प्रजनन केंद्र के लिये शोरसन के नमी वाले आवास का चुनाव किया जाएगा| इस क्षेत्र में अच्छी वर्षा होती है,यह वन भूमि से अलग है और यह दो दशकों तक बस्टर्ड का आवास स्थल भी रहा है| चूजों के बड़े हो जाने के पश्चात उन्हें पुनः डेजर्ट नेशनल पार्क में भेज दिया जाएगा|
- रेड्डी के अनुसार, दो सुविधाओं की स्थापना करने के उद्देश्य से अगले दो माह में केंद्र सरकार, भारतीय वन्यजीव संस्थान और राज्य सरकार के मध्य एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये जाएंगे|
- इस समझौता ज्ञापन के अंतर्गत शामिल कार्य निम्नलिखित होंगे- अण्डों की सोर्सिंग, परिवहन,चूजों का पालन-पोषण और युवा पक्षियों को प्रशिक्षण देकर उन्हें डेजर्ट नेशनल पार्क में छोड़ना|
- गौरतलब है कि एक मादा बस्टर्ड एक मौसम में केवल एक ही अंडा देती है| यदि ऐसे वैज्ञानिक तरीके विकसित कर लिये जाएँ जिनसे वह एक बार में ही कई अंडे देने में सक्षम हो तो यह इनके सरंक्षण में महत्त्वपूर्ण प्रमाणित होगा|
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य
- जब भारत के ‘राष्ट्रीय पक्षी’ के नाम पर विचार किया जा रहा था, तब ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ का नाम भी प्रस्तावित किया गया था जिसका समर्थन प्रख्यात भारतीय पक्षी विज्ञानी सालिम अली ने किया था।
- लेकिन ‘बस्टर्ड’ शब्द के गलत उच्चारण की आशंका के कारण ‘भारतीय मोर’ को राष्ट्रीय पक्षी चुना गया था।
- ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ भारत और पाकिस्तान की भूमि पर पाया जाने वाला एक विशाल पक्षी है। यह विश्व में पाए जाने वाली सबसे बड़े उड़ने वाले पक्षी प्रजातियों में से एक है।
- ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ को भारतीय चरागाहों की पताका प्रजाति (Flagship species) के रूप में जाना जाता है।
- इस पक्षी का वैज्ञानिक नाम आर्डीओटिस नाइग्रीसेप्स (Ardeotis nigriceps) है, जबकि मल्धोक, घोराड येरभूत, गोडावण, तुकदार, सोन चिरैया आदि इसके प्रचलित स्थानीय नाम हैं।
- ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ राजस्थान का राजकीय पक्षी भी है, जहाँ इसे गोडावण नाम से भी जाना जाता है।
- ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ की जनसंख्या में अभूतपूर्व कमी के कारण अन्तर्राष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature and Natural Resources) ने इसे संकटग्रस्त प्रजातियों में भी ‘गंभीर संकटग्रस्त’ (Critically Endangered) प्रजाति के तहत सूचीबद्ध किया है।
आदर्श आचार संहिता में छूट/रियायत
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने राज्य में सूखे से राहत हेतु उपाय करने के लिये चुनाव आयोग (Election Commission) को पत्र लिखकर आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) में छूट की मांग की है।
- ध्यातव्य है कि देश में लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र 10 मार्च से आदर्श आचार संहिता लागू है।
महाराष्ट्र में सूखे की स्थिति
- महाराष्ट्र में 151 तालुकाओं को सूखा प्रभावित घोषित किया गया है, इसलिये राज्य में कुछ बुनियादी ढाँचागत जैसे कि बोरवेल की ड्रिलिंग, पेयजल योजनाओं के तहत मरम्मत कार्य आदि पर काम करने की आवश्यकता है।
पृष्ठभूमि
- वर्ष 2004 के आम चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने ‘सूखा प्रभावित’ क्षेत्र में राहत कार्य हेतु निम्नलिखित तौर-तरीकों को मंजूरी दी:
♦ राज्य सरकारों द्वारा जारी सूखा राहत क्षेत्र उसे माना जाएगा जिसे आपदा राहत कोष के निर्धारित मापदंडों के तहत केंद्र सरकार ने ‘सूखा प्रभावित’ क्षेत्र घोषित किया है।
♦ चुनावों की घोषणा के बाद ‘सूखा प्रभावित’ क्षेत्रों की उपलब्ध सूची में कोई नया क्षेत्र नहीं जोड़ा जाएगा।
♦ किसी भी अतिरिक्त गाँव को आपदा राहत कोष / राष्ट्रीय राहत कोष के तहत लाने के लिये चुनाव आयोग की पूर्व सहमति अनिवार्य है।
वर्तमान संदर्भ में
- घोषित सूखा प्रभावित क्षेत्रों में तत्काल राहत प्रदान करने के लिये चुनाव आयोग ने निम्नलिखित उपायों को मंज़ूरी दी है :
♦ पानी के टैंकरों द्वारा पेयजल की व्यवस्था।
♦ मौजूद बोरवेल या कुएँ के सूख जाने के कारण इन क्षेत्रों में पुनः खुदाई करने की अनुमति।
♦ बेसहारा, निराश्रित, ऐसे लोग जो काम पर नहीं जा सकते तथा जो आपदा राहत कोष योजना में पहले से शामिल हैं, को निर्धारित दरों पर चावल/गेहूँ वितरण किये जाने का प्रावधान।
♦ पशुओं के लिये चारे का प्रावधान।
♦ मज़दूरी करने वाले ऐसे लोग जो भोजन आदि की व्यवस्था के लिये रोज़गार में लगे हैं उनके रोज़गार समाप्त हो जाने पर नए रोजगार प्रदान करने का प्रावधान।
आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct)
- देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिये चुनाव आयोग द्वारा बनाए गए नियमों को ही आदर्श आचार संहिता कहा जाता है।
- जिस दिन चुनाव आयोग चुनाव की तिथि निर्धारित करता है उस दिन से लेकर चुनाव के नतीजे आने तक यह ‘आदर्श आचार संहिता’ लागू रहती है।
- इसके लागू होते ही शासन और प्रशासन में कई अहम बदलाव हो जाते हैं।
- राज्यों और केंद्र सरकार के कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक सरकार के नहीं बल्कि चुनाव आयोग के कर्मचारी की तरह काम करते हैं।
- आचार संहिता लागू होने के बाद सार्वजनिक धन का इस्तेमाल किसी ऐसे आयोजन में नहीं किया जा सकता जिससे किसी विशेष दल को फ़ायदा पहुँचता हों। आचार संहिता लागू होने के बाद सभी तरह की सरकारी घोषणाएँ, लोकार्पण, शिलान्यास या भूमि-पूजन के कार्यक्रम नहीं किये जा सकते हैं।
रियायत/छूट
- चुनाव आयोग स्वयं आदर्श आचार संहिता के दौरान आंशिक छूट प्रदान कर सकता है।
- इससे पहले 5 मार्च, 2009 को चुनाव आयोग ने अपने दिशा-निर्देशों में कुछ कार्यों को करने की अनुमति दी थी जिन्हें सरकारी एजेंसियों द्वारा जारी रखा जा सकता है जैसे-
♦ ऐसी कार्य-परियोजनाएँ जो सभी प्रकार की आवश्यक मंज़ूरी प्राप्त करने के बाद वास्तव में धरातल पर प्रारंभ हो गई हों।
♦ ऐसी लाभकारी-परियोजनाएँ जिन्हें विशिष्ट लाभार्थियों के लिये शुरू किया गया हो और वे आदर्श संहिता लागू होने से पहले आरंभ की गई हों।
♦ आपातकालीन राहत कार्य और उपाय जिसका उद्देश्य कठिनाइयों को कम या समाप्त करना है, ऐसी स्थिति में भी चुनाव आयोग रियायत प्रदान कर सकता है।
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यू. एन. ने मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी घोषित किया
चर्चा में क्योँ?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nation Security Council- UNSC) ने 1 मई, 2019 को आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया।
प्रमुख बिंदु
- हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के तीन स्थायी सदस्यों के समूह- ब्रिटेन, अमेरिका, एवं फ्राँस ने UNSC के ‘1267 प्रस्ताव’ के तहत मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी की प्रतिबंधित सूची में शामिल करने का अनुरोध किया था।
- ज्ञातव्य है कि इस मुद्दे पर चीन का समर्थन नहीं मिलने के कारण संयुक्त राष्ट्र में कई बार यह प्रस्ताव ख़ारिज़ हो चुका था, जबकि P-3 समूह (UNSC के तीन सदस्यों का समूह- फ्राँस, अमेरिका और ब्रिटेन) जैसे देश इस प्रस्ताव के पक्ष में थे।
प्रतिबंध का कारण
- मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने का कारण, उसका आतंकवादी संगठन ‘अल-क़ायदा’ से जुड़ा होना, उसके लिये योजना बनाना, पैसा इकट्ठा करना, हथियार बेचना एवं उन्हें स्थानांतरित करना है।
- इसके अलावा आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद की स्थापना एवं आतंकवादी गतिविधियों को संचालित करने के कारण उसे सूची में नामित किया गया है।
पृष्ठभूमि
- भारत ने पहली बार 2009 में मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी घोषित करवाने की कोशिश की थी किंतु इस मुद्दे पर चीन के वीटो पॉवर के प्रयोग से भारत को सफलता नहीं मिल पाई थी।
- मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी घोषित करवाने का भारत का यह चौथा प्रयास था और इस बार भारत को यह कूटनीतिक जीत हासिल हुई है।
प्रभाव
- संयुक्त राष्ट्र की ओर से प्रतिबंधित किसी व्यक्ति को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का कोई भी सदस्य देश अपने यहाँ शरण नहीं दे सकता, साथ ही उस व्यक्ति के लिये हथियार रखना भी प्रतिबंधित होता है।
- ऐसे व्यक्ति के आर्थिक लेनदेन पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है एवं उसकी संपत्ति जब्त की जा सकती है।
भारत की प्रतिक्रिया
- भारत ने इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे ‘सही दिशा में उठाया गया एक कदम’ बताया, जिसने आतंकवाद और इसके समर्थकों के खिलाफ लड़ाई के अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के संकल्प को प्रदर्शित किया।
- भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों के माध्यम से आतंकवाद के खिलाफ अपने प्रयासों को जारी रखेगा।
सुरक्षा परिषद (Security Council)
- यह संयुक्त राष्ट्र की सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई है, जिसका गठन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1945 में हुआ था और इसके पाँच स्थायी सदस्य (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और चीन) हैं।
- सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार होता है। इन देशों की सदस्यता दूसरे विश्वयुद्ध के बाद के उस शक्ति संतुलन को प्रदर्शित करती है, जब सुरक्षा परिषद का गठन किया गया था।
- इन स्थायी सदस्य देशों के अलावा 10 अन्य देशों को दो साल के लिये अस्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा परिषद में शामिल किया जाता है। स्थायी और अस्थायी सदस्य बारी-बारी से एक-एक महीने के लिये परिषद के अध्यक्ष बनाए जाते हैं।
- फिलहाल सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य और उनकी सदस्यता की अवधि निम्नलिखित है:
- बेल्जियम (2020), कोटे डी आइवर (2019), डोमिनिकन गणराज्य (2020), इक्वेटोरियल गिनी (2019), जर्मनी (2020), इंडोनेशिया (2020), कुवैत (2019), पेरू (2019), पोलैंड (2019) और दक्षिण अफ्रीका (2020)।
UNSC का प्रस्ताव 1267
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1267 को 15 अक्तूबर, 1999 को सर्वसम्मति से अपनाया गया था।
- प्रस्ताव में काउंसिल ने आतंकवादी ओसामा बिन लादेन और उसके सहयोगियों को आतंकवादियों के रूप में नामित किया तथा अल-कायदा, ओसामा बिन लादेन या तालिबान से संबंधित व्यक्तियों और संस्थाओं पर प्रतिबंध की व्यवस्था की, चाहे वे विश्व में कहीं भी स्थित हों।
स्रोत: द हिंदू, संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक वेबसाइट
कैसे लगेगी फॉल आर्मीवर्म पर लगाम
चर्चा में क्यों?
फॉल आर्मीवर्म (Fall Armyworm- FAW) की बढ़ती समस्या तथा उससे संबंधित चुनौतियों को समझने और उनसे निपटने हेतु समाधान खोजने के लिये आठ देशों के प्रतिनिधि ‘अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान’ (International Crops Research Institute for Semi-Arid Tropics-ICRISAT) में 1-3 मई, 2019 तक एक कार्यशाला में भाग ले रहे हैं।
प्रमुख बिंदु
- बांग्लादेश, म्याँमार, श्रीलंका, भारत और कुछ अन्य दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के प्रतिनिधि ‘एशिया में फॉल आर्मीवर्म प्रबंधन’ पर एक क्षेत्रीय कार्यशाला में भाग ले रहे हैं।
- अमेरिका कई अफ्रीकी देशों में फॉल आर्मीवर्म की समस्या से निपटने के लिये काम कर रहा है।
- चूँकि फॉल आर्मीवर्म दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में उभरा है, इसलिये इसके प्रसार को रोकने और फसलों के नुकसान को कम करने के लिये सहयोग की तत्काल आवश्यकता है।
फॉल आर्मीवर्म या स्पोडोप्टेरा फ्रूजाईपेर्डा
- फॉल आर्मीवर्म या स्पोडोप्टेरा फ्रूजाईपेर्डा (Spodoptera Frugiperda), अमेरिका के उष्ण-कटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक कीट है। यह कीट एशियाई देशों में फसलों को काफी नुकसान पहुँचा रहा है।
- अमेरिकी मूल का यह कीट दुनिया के अन्य हिस्सों में भी धीरे-धीरे फैलने लगा है।
- फॉल आर्मीवर्म पहली बार 2016 की शुरुआत में मध्य और पश्चिमी अफ्रीका में पाया गया था और कुछ ही दिनों में लगभग पूरे उप-सहारा अफ्रीका में तेज़ी से फैल गया।
- दक्षिण अफ्रीका के बाद यह कीट भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्याँमार, थाईलैंड और चीन के यून्नान क्षेत्र तक भी पहुँच चुका है।
- इस कीड़े की पहली पसंद मक्का है लेकिन यह चावल, ज्वार, बाजरा, गन्ना, सब्जियाँ और कॉटन समेत 80 से अधिक पौधों की प्रजातियों को खा सकता है।
- वर्ष 2017 में दक्षिण अफ्रीका में इस कीट के फैलने के कारण फसलों को भारी नुकसान हुआ था।
- यह कीट सबसे पहले पौधे की पत्तियों पर हमला करता है, इसके हमले के बाद पत्तियाँ ऐसी दिखाई देती हैं जैसे उन्हें कैंची से काटा गया हो। यह कीट एक बार में 900-1000 अंडे दे सकता है।
- भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे पहले मई 2018 में इस विनाशकारी कीट की मौजूदगी कर्नाटक में दर्ज की गई थी और तब से अब तक यह पश्चिम बंगाल तथा गुजरात तक पहुँच चुका है।
- उचित जलवायु परिस्थितियों के कारण यह न केवल पूरे भारत में बल्कि एशिया के अन्य पड़ोसी देशों में भी फैल सकता है।
आर्मीवर्म के फैलाव की वज़ह
- जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ संक्रमित और गैर-संक्रमित क्षेत्रों के बीच बढ़ता व्यापार और परिवहन फॉल आर्मीवर्म के फैलाव के कारण हैं, जिसने संभावित रूप से दुनिया की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है।
- गर्म और आर्द्र तापमान (20 से 32 डिग्री सेल्सियस के बीच) तथा लंबे व शुष्क समयांतराल फॉल आर्मीवर्म के प्रजनन के लिये अनुकूल कारक हैं।
- आर्मीवर्म के फैलाव के कुछ अन्य कारण निम्नलिखित हैं-
♦ प्रजनन में तेज़ी।
♦ भारतीय उपमहाद्वीप के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु का आर्मीवर्म के अनुकूल होना, जो उन्हें पूरे साल भोजन उपलब्ध कराती है।
स्रोत- द हिंदू बिज़नेस लाइन
काबुली चने की जलवायु-प्रतिरोधी प्रकृति
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हुए एक शोध में ऐसे कारकों का पता चला है जो यह बताते हैं कि काबुली चने में गर्म और शुष्क जलवायु को भी सहन करने की क्षमता होती है।
प्रमुख बिंदु
- यह शोध अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध -शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (International Crops Research Institute for the Semi-Arid Tropics- ICRISAT) के मार्गदर्शन में एक अंतर्राष्ट्रीय टीम द्वारा किया गया।
- इस अध्ययन के तहत काबुली चने में ताप अनुकूलन हेतु उत्तरदायी चार मुख्य जीन्स तथा शुष्क परिस्थितियों के अनुकूलन के लिये तीन जीन्स चिह्नित किये गए।
- यह अध्ययन 45 देशों के चने की 429 प्रजातियों के पूर्ण जीनोम अनुक्रमण किया गया।
- अध्ययन के अनुसार, काबुली चने की उत्पत्ति मूल रूप से भूमध्य/दक्षिण-पश्चिम एशिया में हुई थी उसे बाद में दक्षिण एशिया में भी उगाया जाने लगा।
- काबुली चने की यह किस्म लगभग दो सदी पहले भारत में अफगानिस्तान से आई थी।
- इस अध्ययन में चने की आनुवंशिक विविधता और उसमें सुधार पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है।
लाभ
- जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है इसलिये ताप और सूखा स्थिति सहन करने में सक्षम चने की यह किस्म किसानों के लिये वरदान साबित हो सकती है।
- सामान्यतः भारत में चने की फसल सितंबर-अक्तूबर में बोई जाती है तथा जनवरी-फरवरी में इसकी कटाई होती है।
काबुली चना
- काबुली चना प्रोटीन का अच्छा स्रोत माना जाता है। इसमें आवश्यक एमिनो अम्ल पाए जाते है तथा वसा की मात्रा बहुत कम होती है। यह फसल पर्यावरण में नाइट्रोजन के स्थिरीकरण में भी सहायक होती है।
- इसकी लगभग 90% खेती दक्षिण एशिया और भारत में होती है।
- भारत चने का सबसे बड़ा उत्पादक होने के साथ ही, इसका सबसे बड़ा आयातक भी है।
- वर्तमान में चने की फसल कई प्रमुख बीमारियों और कीटों के प्रति अतिसंवेदनशील होती हैं और यदि फसल को अत्यधिक तापमान या सूखे का सामना करना पड़े तो पैदावार में गिरावट आ सकती है।
- वैश्विक स्तर पर हर साल औसतन 70% चने की फसल बर्बाद हो जाती है।
- साधारणतः चने की फसल ठंड के मौसम के अनुकूल होती है। ऐसे में अगर तापमान बढ़ता है तो फसल को नुकसान पहुँचेगा।
अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसलअनुसंधान संस्थान
- अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ (International Crops Research Institute for the Semi-Arid Tropics-ICRISAT) एक गैर-लाभकारी, गैर-राजनीतिक संगठन है जो एशिया और उप-सहारा अफ्रीका के शुष्क इलाकों में कृषि के विकास हेतु अनुसंधान करता है।
- इसकी स्थापना 1972 में की गई तथा इसका मुख्यालय हैदराबाद, तेलंगाना राज्य में स्थित हैं। इसकी दो अन्य क्षेत्रीय शाखाएँ भी हैं जो नैरोबी (केन्या) और बमाको (माली) में स्थित हैं।
- ‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ शुष्क जलवायु के लिये उपयुक्त छह अत्यधिक पौष्टिक फसलों पर शोध करता है, जिन्हें स्मार्ट फूड भी कहा जाता है। जैसे- काबुली चना, अरहर, बाजरा, रागी, चारा और मूँगफली।
अमेरिकी फेडरल रिज़र्व दरें और भारत
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी फेडरल रिज़र्व (Federal Reserve) की फेडरल ओपन मार्केट कमेटी ने अपनी हालिया बैठक में नीतिगत निर्णय लेते हुए ब्याज दरों को अपरिवर्तित रहने दिया है। बेहतर आर्थिक विकास, एक मज़बूत श्रम बाज़ार और मुद्रास्फीति में वृद्धि के कारण अमेरिकी फेडरल रिज़र्व ने ऐसा निर्णय लिया है।
महत्त्वपूर्ण क्यों?
- फेडरल रिज़र्व द्वारा दरों में परिवर्तन या अन्य फैसलों से न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है, बल्कि यह अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीतियों पर एक निश्चित प्रभाव डालता है।
फेडरल रिज़र्व दरों का भारत पर प्रभाव
- भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएँ विकसित देशों (अमेरिका और कई यूरोपीय देश) की तुलना में उच्च मुद्रास्फीति और उच्च ब्याज दर रखती हैं।
- अत: वित्तीय संस्थान, विशेष रूप से विदेशी संस्थागत निवेशक ( Foreign Institutional Investors- FIIs), कम ब्याज दरों पर अमेरिका से पैसा उधार लेकर उस पैसे को अधिक ब्याज दर पर उभरते देशों के सरकारी बॉण्ड में निवेश करते हैं।
- जब फेडरल रिज़र्व अपनी घरेलू ब्याज दरों को बढ़ाता है तो दोनों देशों की ब्याज दरों के बीच अंतर कम हो जाता है, इस प्रकार भारतीय मुद्रा बाज़ार के लिए कम आकर्षक रह जाता है।
भारत पर असर?
इक्विटी मार्केट पर
- वैश्विक बाज़ार में डॉलर की कमी के कारण ‘बॉण्ड यील्ड’ बढ़ेगा।
- अमेरिका, चीन, यूरोपीय संघ और अन्य प्रमुख राष्ट्रों के बीच व्यापार युद्ध (Trade War), डॉलर के मज़बूत होने और अनिश्चितताओं के कारण पिछले साल भारत के ऋण और इक्विटी बाजारों से 40,000 करोड़ रुपए से अधिक पूंजी का बहिर्गमन हुआ।
निर्यात पर
रुपए की तुलना में मज़बूत डॉलर के होने से भारत के निर्यात, विशेष रूप से आईटी और आईटी-सक्षम सेवाओं को लाभ होगा। हालाँकि, निर्यात बाज़ार में मज़बूत प्रतिस्पर्द्धा के कारण निर्यातकों को समान लाभ नहीं मिल सकता है।
विदेशी संस्थागत निवेशक (FII)
विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) एक निवेशक या निवेश निधि है जो उस देश के बाहर पंजीकृत है जिसमें वह निवेश कर रहा है। संस्थागत निवेशकों में विशेष रूप से हेज फंड, बीमा कंपनियां, पेंशन फंड और म्यूचुअल फंड शामिल हैं।