डेली न्यूज़ (01 Nov, 2019)



मानसूनी वर्षा की मात्रा में विविधता

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय मानसून को प्रभावित करने वाले कारक, अल-नीनो, हिंद महासागर द्विध्रुव

मेन्स के लिये:

भारतीय मानसून को प्रभावित करने वाले कारक, पूर्वानुमान से संबंधित मुद्दे, अल-नीनो और हिंद महासागर द्विध्रुव के विकसित होने की प्रक्रिया, दशाएँ एवं भारतीय मानसून पर इनका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

जून के महीने में कम वर्षा के बाद अगस्त और सितंबर महीने में मौसम वैज्ञानिकों के पूर्वानुमानों के विपरीत भारी वर्षा हुई।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • इस वर्ष के मानसून में जून माह की सामान्य औसत वर्षा में 30% की कमी देखी गई, इसके विपरीत पूरे मानसून में औसतन 10% अधिक वर्षा हुई। इस प्रकार की घटना वर्ष 1931 के बाद पहली बार देखी गई है।
  • सितंबर महीने की वर्षा की औसत दीर्घावधि (Long Period Average- LPA) 152%, वर्ष 1917 के बाद सबसे अधिक और अगस्त की वर्षा का LPA 115%, वर्ष 1996 के बाद सबसे अधिक था। इसके अतिरिक्त समग्र मानसूनी वर्षा का LPA 110%,वर्ष 1994 के बाद सबसे अधिक रहा।
  • सितंबर के पहले सप्ताह के अंत में भारत के मौसम विभाग ने यह बताया था कि इस मानसूनी वर्ष में वर्षा LPA के 96-104% तक होगी।
  • भारत में मानसूनी वर्षा को प्रभावित करने वाले कारकों में से एक प्रशांत क्षेत्र का अल-नीनो दक्षिणी दोलन (El Nino Southern Oscillation- ENSO) इस वर्ष सामान्य रहा, इसके बाद भी भारत में हुई अप्रत्याशित वर्षा के कारणों की मौसम वैज्ञानिक जाँच कर रहे हैं।

हिंद महासागर द्विध्रुव

(Indian Ocean Dipole- IOD)

  • हिंद महासागर द्विध्रुव अल-नीनो के समान ही एक महासागर-वायुमंडल अंतर्संबंध (Ocean-Atmosphere Interaction) की परिघटना है।
  • IOD पश्चिमी हिंद महासागर (अरब सागर) और पूर्वी हिंद महासागर (इंडोनेशियाई तट का दक्षिण भाग) के समुद्र सतह के तापमान में अंतर के कारण उत्पन्न होता है।
  • इस परिघटना में पश्चिमी हिंद महासागर का जल पूर्वी हिंद महासागर की तुलना में गर्म होता है तो इसे सकारात्मक IOD और इसकी विपरीत स्थिति को नकारात्मक IOD कहते हैं।
  • भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में अल-नीनो के समान ही IOD भी मौसम और जलवायु की घटनाओं को प्रभावित करता है, हालाँकि इसका प्रभाव कमज़ोर होता है क्योंकि हिंद महासागर का क्षेत्रफल प्रशांत महासागर की तुलना में कम है, इसके अतिरिक्त हिंद महासागर प्रशांत महासागर की तुलना में उथला भी है।
  • IOD भी भारतीय मानसून को प्रभावित करता है। सकारात्मक IOD के दौरान मानसून की वर्षा पर सकारात्मक और नकारात्मक IOD के दौरान मानसून की वर्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

इस वर्ष की असामान्य वर्षा:

  • इस वर्ष IOD की शुरुआत जून के आसपास हुई और यह अगस्त के बाद अधिक मज़बूत हुआ। इस वर्ष का IOD सामान्य से कुछ अधिक मज़बूत था।
  • IOD के रिकॉर्ड बहुत पुराने नहीं हैं। ऑस्ट्रेलियाई मौसम ब्यूरो के अनुसार इसकी सटीक माप वर्ष 1960 के बाद से उपलब्ध है। वर्तमान वर्ष में IOD + 2.15°C (सकारात्मक) के स्तर पर रहा जो वर्ष 2001 के बाद से सबसे अधिक मज़बूत है।
  • इस प्रकार IOD के इस परिवर्तन को अभी तक मौसम वैज्ञानिक भारत में इस वर्ष की अप्रत्याशित वर्षा हेतु एक संभावना मान रहे हैं क्योंकि पिछले वर्षों में सकारात्मक IOD की स्थिति में मानसून में उच्च वर्षा हुई थी।
  • वर्तमान वर्ष के पहले वर्ष 1997 और वर्ष 2006 में सकारात्मक IOD की स्थिति देखी गई थी, दोनों ही वर्षों में भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा सामान्य से अधिक देखी गई थी।

इस वर्ष का पूर्वानुमान:

  • वास्तव में भारतीय मानसून की वर्षा पर IOD के प्रभाव को पूरी तरह से समझा नहीं गया है। मौसम पूर्वानुमान का गलत होना इसका एक कारण हो सकता है।
  • सामान्यतः यहाँ माना जाता है कि अल-नीनो की तुलना में IOD का प्रभाव भारत की वर्षा पर कम पड़ता है लेकिन इस मत को भी लेकर कोई विशिष्ट अध्ययन उपलब्ध नहीं है।
  • IOD सामान्यतः मानसूनी वर्षा के उत्तरार्द्ध यानि अगस्त और सितंबर में विकसित होता है एवं मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि मानसून IOD की उत्पत्ति में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • इस वर्ष सुमात्रा तट (पूर्वी हिंद महासागर) पर ठंडी हवाओं की उपस्थिति के कारण समुद्री सतह का तापमान सामान्य से कम रहा परंतु अरब सागर (पश्चिमी हिंद महासागर) में तापमान सामान्य देखा गया था। इस कारण से भी मौसम वैज्ञानिकों द्वारा व्यक्त किये गए पूर्वानुमान सटीक नहीं रहे।
  • ऑस्ट्रेलियाई मौसम विज्ञान ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 1960 के बाद से अब तक मात्र 10 बार मज़बूत सकारात्मक IOD की घटनाएँ हुई हैं। इनमें से चार वर्षों में मानसूनी वर्षा में कमी, चार वर्षों में वृद्धि और शेष दो वर्षों में सामान्य वर्षा की प्रवृत्ति देखी गई थी।

दीर्घावधिक औसत

(Long Period Average- LPA)

  • LPA दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान पूरे देश में 50 वर्ष की अवधि की औसत वर्षा है।
  • वर्तमान में भारत का LPA 89 सेमी. है जो वर्ष 1951-2000 की अवधि की औसत वर्षा पर आधारित है।
  • यह एक मानदंड के रूप में कार्य करता है जिसके आधार पर किसी भी मानसून के मौसम में वर्षा को मापा जाता है।
  • मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, देश में अगर किसी वर्ष वर्षा का LPA 90% से कम है तो वर्षा को औसत से कम माना जाता है इसके विपरीत LPA के 110% होने की स्थिति में औसत वर्षा से अधिक वर्षा की स्थिति होती है।
  • इस प्रकार अगर किसी वर्ष वर्षा का प्रतिशत LPA से अधिक होता है तो अधिक वर्षा और यदि वर्षा का प्रतिशत LPA से कम होता है तो कम वर्षा मानी जाती है।
  • भारत में मानसूनी वर्षा का LPA सामान्यतः 96-104 % के बीच होता है।

LPA का महत्त्व:

  • इसके माध्यम से 50 वर्षों की औसत वर्षा का उपयोग किया जाता है क्योंकि भारत की वार्षिक वर्षा में अत्यधिक परिवर्तनशीलता होती है।
  • भारत की मानसूनी वर्षा पर प्रत्येक तीन या चार वर्षों में एक बार अल-नीनो और ला-नीना जैसी मौसमी घटनाओं का प्रभाव देखा जाता है।
  • प्रशांत महासागर के जल की सतह के असामान्य तापमान से व्युत्पन्न अल-नीनो और ला-नीना जैसी मौसमी घटनाओं के कारण भारत में भयंकर सूखे, बाढ़ एवं तूफानों की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • LPA के माध्यम से भारतीय मौसम विभाग का वर्षा का पूर्वानुमान कई बार गलत भी हो जाता है जैसे वर्ष 2013 में सामान्य वर्षा की भविष्यवाणी की गई थी लेकिन वास्तविक वर्षा LPA के स्तर से 106% रही जो सामान्य वर्षा के औसत से काफी ऊपर है।
  • LPA के माध्यम से वर्षा के कई पूर्वानुमान गलत तो साबित हुए हैं लेकिन इस प्रकार के पूर्वानुमानों से सरकार और किसानों को बेहतर रणनीति बनाने में सहायता मिलती है सरकार इसके माध्यम से सूखा या बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिये सुरक्षात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए बेहतर तैयारियाँ कर सकती है।

भारतीय मौसम विभाग द्वारा वर्षा आँकड़ों का संग्रहण:

  • भारतीय मौसम विभाग द्वारा एकत्र वर्षा के आँकड़े 3,500 रेन-गेज स्टेशनों के माध्यम से 2,412 स्थलों पर दर्ज किये गए वास्तविक वर्षा पर आधारित हैं।
  • इन रेन-गेज स्टेशनों से प्राप्त दैनिक वर्षा के आँकड़ों के आधार पर, मानसून के आँकड़े प्रशासनिक क्षेत्रों जैसे- ज़िलों, राज्यों और देश के लिये तैयार किये जाते हैं।
  • ये आँकड़े 36 मौसम संबंधी उपखंडों, चार व्यापक क्षेत्रों- दक्षिण प्रायद्वीप, उत्तर-पश्चिम भारत, मध्य भारत एवं उत्तर-पूर्व भारत से प्राप्त आँकड़ों के संकलन के बाद समग्र देश के स्तर पर जारी किये जाते हैं।

वर्षा का क्षेत्रवार विवरण:

  • देशव्यापी आँकड़े के समान ही भारतीय मौसम विभाग देश के प्रत्येक सजातीय क्षेत्रों (Homogeneous Regions) के लिये एक स्वतंत्र LPA जारी करता है इन क्षेत्रों का औसत 71.6-143.83 सेमी. के मध्य होता है।
  • क्षेत्रवार LPA के आँकड़े इस प्रकार हैं-
    • पूर्व और पूर्वोत्तर भारत के लिये 143.83 सेमी.
    • मध्य भारत के लिये 97.55 सेमी.
    • दक्षिण प्रायद्वीपीय भारत के लिये 71.61 सेमी.
    • उत्तर-पश्चिम भारत के लिये 61.50
  • मानसून के सीज़न में LPA के माहवार आँकड़े इस प्रकार हैं-
    • जून 16.36 सेमी.
    • जुलाई 28.92 सेमी.
    • अगस्त 26.13 सेमी.
    • सितंबर 17.34 सेमी.
  • किसी क्षेत्र की औसत वर्षा के लिये उन क्षेत्रों की सामान्य वर्षा का पिछले 50 वर्षों की वर्षा के आँकड़ों के साथ तुलना की जाती है। इस प्रकार प्राप्त आँकड़ों के आउटपुट के अनुसार, वर्षा के स्तर को श्रेणीबद्ध किया जाता है।
  • भारतीय मौसम विभाग के अनुसार भारत में सामान्य वर्षा प्रतिरूप के आधार पर निम्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है-
    • सामान्य या निकट सामान्य (Normal or Near Normal): वास्तविक वर्षा सामान्य LPA से +/- 10% या 96-104%।
    • सामान्य से नीचे (Below Normal) : वास्तविक वर्षा सामान्य LPA से 10% कम या 90-96%।
    • सामान्य से ऊपर (Above Normal): वास्तविक वर्षा 104-110% के मध्य।
    • कमी (Deficient): वास्तविक वर्षा 90% से कम।
    • अतिरिक्त (Excess): वास्तविक वर्षा 110% से अधिक।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


15 सूत्रीय सुधार चार्टर

प्रीलिम्स के लिये:

संविधान की मूल संरचना

मेन्स के लिये:

संसदीय सुधारों की आवश्यकता तथा संभावित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में देश में संसदीय संस्थानों के कामकाज पर चिंता व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने 15-सूत्रीय सुधार चार्टर का अनावरण किया है।

15-सूत्रीय सुधार बिंदु:

  • संसदीय संस्थानों के प्रति जनता के विश्वास को बनाए रखा जाना चाहिये।
  • सदस्यों द्वारा सदन के नियमों का पालन किया जाना चाहिये।
  • सदनों की कार्यवाही में रोस्टर प्रणाली (Roster System) को अपनाते हुए सभी राजनीतिक दलों द्वारा अपने सांसदों की कम-से-कम 50% की उपस्थिति सुनिश्चित की जानी चाहिये।
  • संसद द्वारा सदन में कोरम की 10% की आवश्यक उपस्थिति को बनाये रखना चाहिये।
  • विधानसभाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्त्व को बढ़ाना चाहिये।
  • राजनीतिक दलों की व्हिप (Whip) प्रणाली की समीक्षा की जानी चाहिये जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो सके।
  • दल-बदल कानून की गहन समीक्षा की जानी चाहिये तथा पीठासीन अधिकारी द्वारा समय पर ऐसे मामलों का निपटारा किया जाना चाहिये।
  • विभागों से संबंधित स्थायी समितियों के प्रभावी कामकाज के लिये आवश्यक उपायों पर चर्चा की जानी चाहिये।
  • विधेयक पारित होने के पहले और बाद में सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय तथा प्रशासनिक स्तर पर विधायी प्रभावों का आकलन किया जाना चाहिये।
  • ‘संविधान की मूल संरचना' (Basic Structure of the Constitution) की विशेषताओं में से एक ‘सरकार के संसदीय स्वरूप' (Parliamentary Form of Government) को बनाये रखा जाना चाहिये।
  • आपराधिक पृष्ठभूमि वाले जन प्रतिनिधियों की बढ़ती संख्या की समस्या का विश्लेषण किया जाना चाहिये।
  • जन प्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक शिकायतों के समयबद्ध पालन के लिये विशेष अदालतों का गठन किया जाना चाहिये।
  • उपलब्ध संसदीय साधनों का सहारा लेते हुए सरकारों को पक्ष और विपक्ष के प्रति उत्तरदायी रहना चाहिये।
  • संसदीय संस्थानों में जन प्रतिनिधियों को बहस के दौरान ज़िम्मेदार व रचनात्मक रहना चाहिये।
  • फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली (First Past The Post System- FPTP) के दोषों को देखते हुए एक साथ चुनाव के प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त की जानी चाहिये।

स्रोत: PIB


राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल

प्रीलिम्स के लिये :

नेशनल हेल्थ प्रोफाइल ,केन्द्रीय स्वास्थ्य आसूचना ब्यूरो

मेन्स के लिये :

स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में नेशनल हेल्थ प्रोफाइल का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य आसूचना ब्यूरो (Central Bureau of Health Intelligence -CBHI) ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल (National Health Profile- NHP) का 14वाँ संस्करण और इसकी ई-बुक (डिजिटल संस्करण) जारी की है।

प्रमुख बिंदु

  • CBHI वर्ष 2005 से राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल और वर्ष 2015 से इसका डिजिटल संस्करण प्रकाशित कर रहा है।
  • इस प्रकाशन का उद्देश्य भारत की स्वास्थ्य सूचना का एक बहुउपयोगी डेटाबेस बनाना और इसे स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के सभी हितधारकों के लिये उपलब्ध कराना है।
  • इसका एक अन्य उद्देश्य समुदाय के स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करने में संलग्न योजनाकारों, नीति निर्माताओं, स्वास्थ्य प्रशासकों, अनुसंधानकर्त्ताओ और अन्य लोगों को सूचित आधार पर योजना बनाने एवं निर्णय-निर्माण के लिये प्रासंगिक जानकारी प्रदान करना है।
  • NHP निम्नलिखित प्रमुख संकेतकों के अंतर्गत महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य जानकारियों पर प्रकाश डालता है:
    • जनसांख्यिकीय संकेतक: जनसंख्या और महत्त्वपूर्ण आँकड़े
    • सामाजिक-आर्थिक संकेतक: शिक्षा, रोज़गार, आवास और अन्य सुविधाएँ, पेयजल एवं स्वच्छता।
    • स्वास्थ्य स्थिति संकेतक: सामान्य संचारी एवं गैर-संचारी रोगों का प्रसार और व्यापकता।
    • स्वास्थ्य वित्त संकेतक: स्वास्थ्य बीमा और स्वास्थ्य पर व्यय।
    • मानव संसाधनों की स्थिति: स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्य कर रहे मानव बल की उपलब्धता।
    • स्वास्थ्य अवसंरचना: मेडिकल और डेंटल कॉलेजों, आयुष संस्थानों, नर्सिंग पाठ्यक्रमों और पैरामेडिकल पाठ्यक्रमों का विवरण।

तथ्यात्मक बिंदु

  • जीवन प्रत्याशा: भारत में जीवन प्रत्याशा वर्ष 1970-75 के 49.7 वर्ष से बढ़कर वर्ष 2012-16 में 68.7 वर्ष हो गई है।
    • वर्ष 2012-16 में महिलाओं की जीवन प्रत्याशा 70.2 वर्ष और पुरुषों की 67.4 वर्ष थी।
  • शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate- IMR): शिशु मृत्यु दर में काफी गिरावट दर्ज की गई है (वर्ष 2016 में प्रति 1,000 जीवित शिशुओं में 33), हालाँकि ग्रामीण (37) और शहरी (23) के बीच अंतर अभी भी अधिक हैं।
  • जनसंख्या वृद्धि दर: भारत में वर्ष 1991 से वर्ष 2017 तक जन्म दर, मृत्यु दर और प्राकृतिक वृद्धि दर में निरंतर गिरावट दर्ज की गई है।
    • वर्ष 2017 के आकलन के अनुसार, भारत में प्रति 1,000 जनसंख्या पर जन्म दर 20.2 और मृत्यु दर 6.3. दर्ज की गई, जबकि प्राकृतिक विकास दर 13.9 थी।
  • जनसांख्यिकी: इसमें युवा और आर्थिक रूप से सक्रिय आबादी अपेक्षाकृत अधिक पाई गई।
    • रिपोर्ट के अनुसार 27% जनसंख्या 14 वर्ष से कम, 64.7% जनसंख्या 15 से 59 के आयु वर्ग में और 8.5% जनसंख्या 60 वर्ष से ऊपर है।
    • कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate-TFR): NHP के अनुसार देश की कुल प्रजनन दर 2.3 है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों के लिये प्रजनन दर 2.5 और शहरी क्षेत्रों के लिये 1.8 आँकी गई है।

सेंट्रल ब्यूरो ऑफ हेल्थ इंटेलिजेंस

Central Bureau of Health Intelligence (CBHI)

  • सेंट्रल ब्यूरो ऑफ हेल्थ इंटेलिजेंस की स्थापना वर्ष 1961 में स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय द्वारा "पूरे देश में एक मज़बूत स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (Health Management Information System-HMIS)" की स्थापना के उद्देश्य से की गई थी।

कुल प्रजनन दर: प्रजनन दर का अर्थ है बच्चे पैदा कर सकने की आयु (जो आमतौर पर 15 से 49 वर्ष की मानी जाती है) वाली प्रति 1000 स्त्रियों की इकाई पर जीवित जन्में बच्चों की संख्या।

शिशु मृत्यु दर: शिशु मृत्यु दर किसी भौगोलिक क्षेत्र में एक वर्ष में जन्मे प्रति 1,000 जीवित शिशुओं पर एक वर्ष के भीतर होने वाली शिशुओं की मृत्यु की संख्या है।

जीवन प्रत्याशा: जीवन प्रत्याशा तात्पर्य वर्षों की उस संख्या से है जो किसी व्यक्ति का सांख्यिकीय गणना द्वारा अनुमानित औसत जीवनकाल है।

जन्म दर: प्रतिवर्ष प्रति 1000 जनसंख्या पर जीवित जन्मों की संख्या।

मृत्यु दर: किसी समुदाय, क्षेत्र या समूह में प्रति हजार जनसंख्या पर प्रति वर्ष मृत्यु की संख्या।

प्राकृतिक वृद्धि दर: एक वर्ष में जन्म लेने वाले जीवित शिशुओं की संख्या एवं उस वर्ष होने वाली मौतों की संख्या के अंतर को उसी वर्ष के मध्य में मौजूद जनसंख्या से विभाजित कर 1000 से गुणा करने पर हमें प्राकृतिक वृद्धि दर ज्ञात होती है।

स्रोत: pib


यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन

प्रीलिम्स के लिये:

यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन

मेन्स के लिये:

यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन कार्य पद्धति, भारत-पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंधों से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पाकिस्तान ने यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (Universal Postal Union- UPU) के नियमों के विपरीत जाकर भारत से आदान-प्रदान होनी वाली डाक सेवा (Postal Exchange) को (भारत को सूचित किए बगैर) बंद कर दिया।

प्रमुख बिंदु

  • पाकिस्तान के इस कदम से पहले तक दोनों देशों के बीच लगभग दैनिक रूप से डाक का आदान-प्रदान किया जा रहा था। दोनों देशों के बीच कोई नियमित और सीधा हवाई संपर्क नहीं होने के कारण सऊदी अरब के हवाई मार्ग से डाक का आदान-प्रदान किया जा रहा था।
  • भारत में सभी अंतर्राष्ट्रीय डाकों को 28 अधिकृत डाकघरों के माध्यम से प्रबंधित किया जाता है, इनमें से दिल्ली और मुंबई के डाकघरों को पाकिस्तान के साथ आदान-प्रदान होने वाली डाकों के लिये नामित किया गया है।
  • UPU के अतिरिक्त तीन और समझौते- एक्सचेंज ऑफ वैल्यू पेबल आर्टिकल (Exchange of Value Payable Article), 1948; एक्सचेंज ऑफ पोस्टल आर्टिकल (Exchange of Postal Article), 1974 तथा इंटरनेशनल स्पीड पोस्ट एग्रीमेंट (International Speed Post Agreement), 1987 भारत एवं पाकिस्तान के बीच डाकों के आदान-प्रदान को विनियमित करते हैं।

यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन के बारे में:

  • यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (Universal Postal Union-UPU) अंतर्राष्ट्रीय डाकों के आदान-प्रदान को विनियमित करता है और अंतर्राष्ट्रीय डाक सेवाओं के लिये दरों को तय करता है।
  • इसका गठन वर्ष 1874 में किया गया था और इसका मुख्यालय स्विज़टरलैंड के बर्न में स्थित है।
  • वर्तमान में इसके सदस्य देशों की संख्या 192 हैं।
  • इसकी चार इकाइयाँ निम्नलिखित हैं-
  1. काॅन्ग्रेस।
  2. प्रशासन परिषद।
  3. अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो।
  4. डाक संचालन परिषद।
  • यह विश्व भर के 6.40 लाख पोस्टल आउटलेट को नियंत्रित करता है। भारत 1 जुलाई, 1876 और पाकिस्तान 10 नवंबर, 1947 को UPU में शामिल हुए थे।

यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन की क्रियाविधि:

  • UPU की एक इकाई अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो ने वर्ष 2018 में एक कन्वेंशन मैनुअल (Convention Manual) जारी किया, जिसके अनुच्छेद 17-143 में डाक सेवाओं के अस्थायी निलंबन और बहाली के लिये उठाए गए कदमों का विवरण दिया गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो के नियमों के तहत जब कोई देश किसी देश के साथ विनिमय को निलंबित करने का फैसला करता है तो उसे दूसरे देश (जैसे भारत) को इस बारे में सूचित करना चाहिये, साथ ही यदि संभव हो तो जिस अवधि के लिये सेवाएँ रोकी जा रही हैं उसका भी विवरण दिया जाना चाहिये। इसके अतिरिक्त सभी सूचनाएँ अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो के साथ भी साझी की जानी चाहिये।
  • भारत और पाकिस्तान के बीच संपन्न तीन द्विपक्षीय समझौतों के अनुसार भी पाकिस्तान को निलंबन की पूर्व सूचना भारत को देनी चाहिये थी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कॉप-25 जलवायु सम्मेलन

प्रीलिम्स के लिये:

UNFCCC, COP-25

मेन्स के लिये:

COP-25 के आयोजन से संबंधित समस्याएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चिली ने सेंटियागो में ‘संयुक्त राष्ट्र का जलवायु परिवर्तन पर फ्रेमवर्क कन्वेंशन’ (United Nations Framework Convention On Climate Change- UNFCCC) द्वारा आयोजित जलवायु परिवर्तन सम्मेलन COP-25 की मेज़बानी में असमर्थता जताई है।

मुख्य बिंदु:

  • चिली ने देश में बढ़ते विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए 2 दिसंबर से 13 दिसंबर तक होने वाले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन COP-25 के आयोजन में असमर्थता जताई है।
  • UNFCCC ने कहा है कि वह इस सम्मेलन की मेज़बानी के लिये वैकल्पिक स्थान की खोज कर रहा है।
  • यदि इस बार COP-25 का आयोजन दिसंबर में नहीं हो पाता है तो 1995 के बाद यह पहली बार होगा जब किसी कैलेंडर वर्ष में UNFCCC के COP सम्मेलन का आयोजन नहीं हुआ।

असमर्थता का कारण:

  • इस सम्मेलन का आयोजन हर वर्ष विश्व के अलग-अलग क्षेत्रों में किया जाता है। इस वर्ष COP-25 के आयोजन की जिम्मेदारी दक्षिण अमेरिका महाद्वीप में स्थित चिली को सौंपी गई थी।
  • चिली में दो सप्ताह पहले हुई उपनगरीय रेल के किराये में वृद्धि को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। यह विरोध प्रदर्शन अब एक बड़े जन आंदोलन में बदल गया है। जिसके माध्यम से अब चिली की जनता अधिक से अधिक समानता, बेहतर सार्वजनिक सुविधाओं तथा संविधान में परिवर्तन की मांग कर रही है।
  • चिली प्रारंभ से ही COP-25 की मेज़बानी को लेकर अनिच्छुक था परंतु दक्षिण अमेरिकी क्षेत्र में किसी अन्य देश द्वारा COP-25 की मेज़बानी स्वीकार नहीं किये जाने पर UNFCCC के आग्रह के बाद चिली ने COP-25 की मेज़बानी स्वीकार की थी।
  • आमतौर पर किसी भी मेज़बान स्थल का निर्धारण दो वर्ष पूर्व किया जाता है ताकि लगभग 20,000 प्रतिनिधियों की भागीदारी वाले सम्मेलन के आयोजन के लिये उचित समय मिल सके।
  • एक मुख्य कारण यह भी है कि दिसंबर 2018 में पोलैंड के कार्टोविस में आयोजित COP-24 सम्मेलन के अंत तक COP-25 के मेजबान का फैसला नहीं हो पाया था क्योंकि चिली और कोस्टारिका के बीच मेज़बानी को लेकर अनिश्चितता बनी रही।
  • चिली ने एक अन्य कारण बताते हुए कहा कि उसने इसी वर्ष नवंबर में ‘एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग’ (Asia Pacific Economic Cooperation- APEC) के प्रमुखों के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की है, अतः वह दिसंबर में एक और अन्य बड़े सम्मेलन के आयोजन के लिये स्वयं को तैयार नहीं कर सकता।

UNFCCC तथा COP सम्मेलन:

  • UNFCCC जलवायु परिवर्तन पर प्रथम बहुपक्षीय कन्वेंशन था।
  • वर्ष 1992 में आयोजित पृथ्वी शिखर सम्मेलन में तीन कन्वेंशन की घोषणा की गयी थी, उनमें से एक UNFCCC का उद्देश्य जलवायु तंत्र के साथ खतरनाक मानवीय हस्तक्षेप को रोकना है।
  • यह कन्वेंशन 21 मार्च, 1994 से प्रभाव में आया।
  • वर्तमान में 197 देशों ने कन्वेंशन को सत्यापित किया है, यही देश कॉन्फ्रेंस के पार्टीज़ (Parties of the Conference) कहलाते हैं तथा इन्हीं देशों की जलवायु परिवर्तन पर वार्षिक बैठक को COP सम्मेलन कहते हैं ।
  • UNFCCC का प्रथम COP सम्मेलन वर्ष 1995 में बर्लिन में हुआ था।
  • वर्ष 2015 में पेरिस में संपन्न हुए COP-21 में पेरिस समझौते के रूप में जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध एक नई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था ने जन्म लिया जिसके प्रावधान अगले वर्ष क्योटो प्रोटोकॉल की अवधि समाप्त होने के बाद लागू हो जाएंगे।

अन्य तथ्य:

  • वर्ष 2017 में फिजी ने भी इतने बड़े सम्मेलन के लिये संसाधनों की कमी बताते हुए इसके आयोजन से इनकार कर दिया था तथा उस वर्ष यह सम्मेलन जर्मनी के बॉन में आयोजित किया गया था।
  • अमीर देश आमतौर तौर पर इस सम्मेलन की मेज़बानी से कतराते रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, पश्चिमी यूरोप के कई देशों तथा ऑस्ट्रेलिया ने इस सम्मेलन की मेज़बानी कभी नहीं की है।
  • यूनाइटेड किंगडम वर्ष 2020 में पहली बार ग्लासगो में COP-26 की मेज़बानी करेगा।
  • COP-सम्मेलन की मेज़बानी पोलैंड चार बार तथा मोरक्को दो बार कर चुका है।

स्रोत-द इंडियन एक्सप्रेस


ऑर्गनॉइड

प्रीलिम्स के लिये:

ऑर्गनॉइड, स्टेम सेल

मेन्स के लिये:

ऑर्गनॉइड की उपयोगिता, नैतिक मुद्दे

चर्चा में क्यों?

21 अक्तूबर, 2019 को शिकागो में सोसाइटी फॉर न्यूरोसाइंस की 49वीं वार्षिक बैठक में कुछ तंत्रिका वैज्ञानिकों ने अपने साथी वैज्ञानिकों को चेतावनी दी कि वे लघु मस्तिष्क या ऑर्गनॉइड जैसे संवेदी अंगों के विकास के मामले में नैतिकता की सीमारेखा का उल्लंघन करने के खतरनाक रूप से नज़दीक हैं।

पृष्ठभूमि

  • पूर्व में वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में विकसित मस्तिष्क ऑर्गनॉइड को वयस्क जानवरों में प्रत्यारोपित किया है। इस प्रत्यारोपण के बाद ऑर्गनॉइड ने उनके मस्तिष्क के साथ एकरूपता स्थापित की और प्रकाश के प्रति प्रतिक्रिया भी प्रस्तुत की।
  • इसी प्रकार फेफड़े के ऑर्गनॉइड को चूहों में प्रत्यारोपित किया गया था, जिसने शाखित वायुमार्ग (Branching Airways) और प्रारंभिक वायुकोशीय संरचनाओं (Early Alveolar Structures) के निर्माण में सफलता हासिल की थी।
  • उल्लेखनीय है कि इसे मेज़बान जानवरों के संभावित मानवीकरण की दिशा में एक कदम माना जा रहा है।

ऑर्गनॉइड क्या है?

  • ऑर्गनॉइड एक पूर्ण विकसित अंग की कोशिका व्यवस्था की नकल करने वाली प्रयोगशाला में विकसित त्रि-आयामी, लघु संरचना की कोशिकाओं का समूह होता है।
  • ये छोटे (आमतौर पर मटर के आकार के) अंग होते हैं, जो मानव अंगों के सभी कार्यात्मक परिपक्वता को प्राप्त करने में सक्षम नही होते हैं लेकिन सामान्यतया एक विकासशील ऊतक के शुरुआती अवस्थाओं से मिलते-जुलते हैं।
  • ध्यातव्य है कि अधिकांश ऑर्गनॉइड किसी वास्तविक अंग में देखी गई सभी कोशिकाओं का उपसमूह होता है लेकिन इनमें पूरी तरह कार्यात्मक बनाने वाली रक्त वाहिकाओं की कमी होती है।
  • मस्तिष्क ऑर्गनॉइड के मामले में देखा जाए तो वैज्ञानिक तंत्रिकाओं को विकसित करने में सक्षम रहे हैं, साथ ही उन्होंने मानव मस्तिष्क के सादृश्य सेरेब्रल कॉर्टेक्स (Cerebral Cortex) जैसे विशिष्ट मस्तिष्क के भाग का निर्माण किया है।
  • उल्लेखनीय है कि प्रयोगशाला में विकसित मस्तिष्क के सबसे बड़े ऑर्गनॉइड का आकार लगभग 4 मिमी. व्यास का है।

organoid

प्रयोगशाला में ऑर्गेनॉइड्स का विकास

स्टेम सेल की सहायता से प्रयोगशाला में ऑर्गनॉइड का विकास किया जा सकता है जो मानव शरीर के किसी भी विशिष्ट कोशिका के समान हो सकता है अथवा स्टेम सेल की तरह व्यवहार करने के लिये प्रेरित किसी अंग या वयस्क कोशिका से लिये गए स्टेम सेल को वैज्ञानिक रूप से प्रेरित प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल (induced Pluripotent Stem Cells-iPSC) कहा जाता है।

  1. स्टेम सेल पोषक तत्त्वों और अन्य विशिष्ट अणुओं के सहयोग से एक विशिष्ट अंग के सदृश कोशिकाएँ बन जाती हैं।
  2. विकसित हो रही कोशिकाएँ एक विशिष्ट अंग के कोशिकीय संरचनाओं में स्वयं को व्यवस्थित करने में सक्षम होने के साथ-साथ आंशिक रूप से परिपक्व अंगों के जटिल कार्यों जैसे- रोगग्रस्त अवस्था एवं शारीरिक क्रियाओं के लिये पुनर्निर्माण आदि को दोहरा सकती हैं।
  3. ध्यातव्य है कि मस्तिष्क, छोटी आँत, वृक्क, हृदय, पेट, यकृत, अग्न्याशय, लार ग्रंथि और आंतरिक कान कुछ ऐसे अंगों के नाम हैं जिनके ऑर्गनॉइड पूर्व में ही प्रयोगशाला में विकसित हो चुके हैं।

बीमारियों को समझने में ऑर्गनॉइड की भूमिका:

  1. ऑर्गनॉइड प्रोटीन और जीन का अध्ययन करने के लिये नए अवसर प्रदान करते हैं जो किसी अंग के विकास के लिये महत्वपूर्ण हैं। साथ ही इससे यह जानने में मदद मिलती है कि किसी विशिष्ट जीन में उत्परिवर्तन किसी बीमारी या विकार का कारण कैसे बनता है।
  2. उदाहरण के लिये शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क के ऑर्गेनोइड का उपयोग यह अध्ययन करने के लिये किया कि जीका वायरस भ्रूण में मस्तिष्क के विकास को कैसे प्रभावित करता है।
  3. चूंकि ऑर्गनॉइड सूक्ष्मता से परिपक्व ऊतकों से मिलता-जुलता है, इसलिये यह नई संभावनाओं को खोलता है। इनमें तीन आयामों में कोशिकाओं की जटिल व्यवस्था का अध्ययन और उनके कार्य के बारे में विस्तार से यह समझना कि कोशिकाएं अंगों में कैसे एकत्रित होती हैं आदि शामिल हैं।
  4. नई दवाओं की सुरक्षा और प्रभावकारिता तथा मौजूदा दवाओं के ऊतकों की प्रतिक्रिया का भी परीक्षण के लिये भी ऑर्गनोइड्स का उपयोग किया जा सकता है।
  5. ऑर्गनॉइड यह अध्ययन करके कि किसी रोगी के लिये कौन-सी दवा सबसे संवेदनशील है, रोगी-विशिष्ट उपचार रणनीतियों को विकसित करके सटीक दवा को व्यावहारिक बनाने में मदद करेगा।

ऑर्गनॉइड की नैतिक चुनौतियाँ:

वैज्ञानिकों का तर्क है कि ऑर्गनोइड्स में संवेदी इनपुट नहीं होते हैं और मस्तिष्क से संवेदी संबंध सीमित होते हैं। मस्तिष्क के पृथक क्षेत्र अन्य मस्तिष्क क्षेत्रों के साथ संचार नहीं कर सकते हैं या मोटर सिग्नल उत्पन्न नहीं कर सकते हैं। इस प्रकार चेतना या अन्य उच्च-क्रम के बोधगम्य गुणों के उभरने की संभावना (जैसे- संकट महसूस करने की क्षमता) बहुत क्षीण लगती है।

स्रोत – the hindu


पेगासस स्पाइवेयर

प्रीलिम्स के लिये :

पेगासस स्पाइवेयर

मेन्स के लिये :

साइबर सुरक्षा से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकप्रिय मेसेजिंग प्लेटफोर्म व्हाट्सएप ने दावा किया कि इज़राइली स्पाइवेयर, पेगासस (Pegasus) द्वारा विश्व भर के लगभग 20 देशों में व्हाट्सएप प्रयोगकर्त्ताओं की गोपनीयता और व्यक्तिगत सूचनाओं की जासूसी की गई।

प्रमुख बिंदु:

  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में भी इस स्पाइवेयर द्वारा पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं को निशाना बनाया गया।
  • गौरतलब है की व्हाट्सएप ने पेगासस स्पाइवेयर विकसित करने वाली कंपनी एन.एस.ओ ग्रुप (NSO Group) पर संयुक्त राज्य अमेरिका के संघीय न्यायालय में मुकदमा दायर किया है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, यह स्पाइवेयर विश्व भर में लगभग 1400 मोबाइल उपकरणों पर भेजा गया।
  • जिसमे विश्व भर के कम-से-कम 100 मानवाधिकार कार्यकर्त्ता, पत्रकार और सिविल सोसाइटी के सदस्य शामिल हैं।

पेगासस स्पाइवेयर क्या है?

  • पेगासस एक स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर है, जिसे इजराइली साइबर सुरक्षा कंपनी NSO द्वारा विकसित किया गया है।
  • पेगासस स्पाइवेयर ऐसा सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है जो उपयोगकर्त्ताओं के मोबाइल और कंप्यूटर से गोपनीय एवं व्यक्तिगत जानकारियाँ को नुकसान पहुँचाता है।
  • इस तरह की जासूसी के लिये पेगासस ऑपरेटर एक खास लिंक उपयोगकर्त्ताओं के पास भेजता है, जिस पर क्लिक करते ही यह स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर उपयोगकर्त्ता की स्वीकृति के बिना स्वयं ही इंस्टाल हो जाता है।
  • इस स्पाइवेयर के नए संस्करण में लिंक की भी आवश्यकता नहीं होती सिर्फ एक मिस्ड विडियो काल के द्वारा ही इंस्टाल हो जाता है। पेगासस स्पाइवेयर इंस्टाल होने के बाद पेगासस ऑपरेटर को फोन से जुडी सारी जानकारियाँ प्राप्त हो जाती हैं।
  • पेगासस स्पाइवेयर की प्रमुख विशेषता ये है कि यह पासवर्ड द्वारा रक्षित उपकरणों को भी निशाना बना सकता है और यह मोबाइल के रोमिंग में होने पर डाटा नहीं भेजता।
  • पेगासस मोबाइल में संगृहीत सूचनाएँ, व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे कम्युनिकेशन एप्स के संदेश स्पाइवेयर ऑपरेटर को भेज सकता है।
  • यह स्पाइवेयर, उपकरण की कुल मेमोरी का 5% से भी कम प्रयोग करता है, जिससे प्रयोगकर्त्ता को इसके होने का आभास भी नहीं होता।
  • पेगासस स्पाइवेयर ब्लैकबेरी, एंड्रॉयड, आईओएस (आईफोन) और सिंबियन-आधारित उपकरणों को प्रभावित कर सकता है।
  • पेगासस स्पाइवेयर ऑपरेशन पर पहली रिपोर्ट 2016 में सामने आई, जब संयुक्त अरब अमीरात में एक मानवाधिकार कार्यकर्त्ता को उनके आईफोन 6 पर एक एसएमएस लिंक के साथ निशाना बनाया गया था।

स्रोत-द हिन्दू