प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 29 जुलाई से शुरू
  संपर्क करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 01 Sep, 2018
  • 19 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत ने पाकिस्तानी जलविद्युत के विशेषज्ञों को आमंत्रित किया

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच लाहौर में भारत-पाकिस्तान स्थायी सिंधु आयोग (पीआईसी) की 115वीं बैठक संपन्न हुई। इस बैठक के परिणामस्वरूप भारत ने पाकिस्तान को पाकल दुल और लोअर कलनाई जलविद्युत परियोजनाओं के स्थलों का मुआयना करने के लिये आमंत्रित किया है।

प्रमुख बिंदु

  • इस बैठक में सिंधु जल समझौता 1960 के प्रावधानों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में पाकल दुल (1000 मेगावाट) और लोअर कलनाई (48 मेगावाट) सहित विभिन्न जलविद्युत परियोजनाओं के कार्यान्वयन पर तकनीकी चर्चाएँ आयोजित की गईं।
  • विदेश मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है कि दोनों देश सिंधु बेसिन में संधि द्वारा आदेशित सिंधु आयुक्तों की यात्रा के लिये सहमत हुए। संधि के तहत मामलों के लिये स्थायी सिंधु आयोग की भूमिका को और मज़बूत करने पर विचार-विमर्श किया गया।
  • नियमित तौर पर होने वाली यह वार्ता इमरान खान के पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच लाहौर में हुई पहली द्विपक्षीय वार्ता है। 
  • इससे पहले स्थायी सिंधु आयोग की पिछली वार्ता मार्च में नई दिल्ली में आयोजित की गई थी। 

सिंधु जल समझौता

  • लगभग एक दशक तक विश्व बैंक की मध्यस्थता में बातचीत के बाद 19 सितंबर, 1960 को समझौता हुआ। इस संधि पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने हस्ताक्षर किये। 
  • इस समझौते के तहत छह नदियों—व्यास, रावी, सतलज, सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी को दोनों देशों के बीच बाँटा गया था। 3 पूर्वी नदियों का नियंत्रण भारत के पास है; इनमें व्यास, रावी और सतलज आती हैं तथा 3 पश्चिमी नदियों का नियंत्रण पाकिस्तान के पास है; इनमें सिंधु, चिनाब और झेलम आती हैं।
  • पश्चिमी नदियों पर भारत का सीमित अधिकार है। भारत इन 6 नदियों का 80% पानी पाकिस्तान को देता है और 20% पानी भारत के हिस्से आता है।

शासन व्यवस्था

अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने पर विधि आयोग की रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विधि आयोग ने “अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने (न्याय की हत्या): कानूनी उपाय’’ नामक शीर्षक से एक रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। उल्लेखनीय है कि मई 2017 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने बबलू चौहान@डबलू बनाम दिल्‍ली सरकार, 247 (2018) डीएलटी 31 के मामले में निर्णय देते हुए निर्दोष व्यक्ति के खिलाफ अनुचित मुकदमा चलाने पर चिंता व्यक्त की थी।

प्रमुख बिंदु :

  • इस संदर्भ में दिल्ली उच्च न्यायालय ने अनुचित तरीके से चलाए गए मुकदमे के शिकार लोगों को राहत और पुनर्वास प्रदान करने के लिये एक कानूनी रूपरेखा तैयार करने की तत्‍काल आवश्‍यकता बताई थी तथा विधि आयोग से कहा था कि वह इस मुद्दे की विस्‍तृत जाँच कर सरकार को अपनी सिफारिशें दे। 
  • अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने, निर्दोष व्यक्तियों को दोषी ठहराने और जेल में बंद करने जैसे मुद्दे को ‘न्याय की हत्या’ (miscarriage of justice) के रूप में चिह्नित किया गया है। ध्यातव्य है कि ऐसा किसी व्यक्ति को अनुचित तरीके से दोषी ठहराने पर होता है लेकिन बाद में नए तथ्यों के उजागर होने से व्यक्ति को निर्दोष पाया जाता है।
  • नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्‍ट्रीय नियम (The International Covenant on Civil and Political Rights - ICCPR) भी ‘न्याय की हत्या’ के शिकार लोगों को मुआवज़ा देने के लिये सदस्य राष्ट्रों के दायित्वों की बात करता है। उल्लेखनीय है कि भारत ने भी नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्‍ट्रीय नियम की पुष्टि की है।
  • यह रिपोर्ट भारतीय आपराधिक न्‍याय प्रणाली के संदर्भ में इस मुद्दे को देखती है और सिफारिश करती है कि ‘न्याय की हत्या’ के मानकों में अनुचित तरीके से मुकदमा चलाना, गलत तरीके से कैद करना और गलत तरीके से दोष साबित करना आदि शामिल होंगे।
  • जबकि अनुचित मुकदमों में वे मामले शामिल होंगे जिसमें निर्दोष व्यक्ति हो तथा पुलिस/अभियोजन पक्ष ने जाँच में किसी प्रकार की अनियमितता बरती हो तथा व्यक्ति को अभियोजन के दायरे में लाया गया हो। इसमें उन दोनों मामलों को शामिल किया जाएगा जिसमें व्यक्ति द्वारा जेल में समय बिताया गया हो या नहीं बिताया गया हो और जिन मामलों में अभियुक्त को निचली अदालत द्वारा दोषी नहीं पाया गया था या जहाँ आरोपी को एक या एक से अधिक अदालतों द्वारा दोषी पाया गया था लेकिन अंततः उच्च न्यायालय द्वारा दोषी नहीं पाया गया था।
  • आयोग ने अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने के मामलों के निपटारे के लिये विशेष कानूनी प्रावधानों को  लागू करने की सिफारिश की है, ताकि अनुचित तरीके से चलाए गए मुकदमें के शिकार लोगों को मौद्रिक और गैर-मौद्रिक मुआवज़े (जैसे परामर्श, मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएँ, व्‍यावसायिक/रोज़गार, कौशल विकास आदि) के मामले में वैधानिक दायरे के भीतर राहत प्रदान की जा सके।
  • रिपोर्ट में अनुशंसित रूपरेखा के प्रमुख सिद्धांतों - ‘अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने’ की परिभाषा  और जिन मामलों में मुवाजे का दावा किया गया है उनके फैसले के लिये विशेष अदालतें बनाने, कार्यवाही की प्रकृति – दावों के फैसले के लिये सामयिकता आदि, मुआवज़ा निर्धारित करते समय वित्‍तीय और अन्‍य कारक, कुछ मामलों में अंतरिम मुआवज़े का प्रावधान, गलत तरीके से मुकदमा चलाने/दोषी ठहराने आदि को देखते हुए अयोग्‍यता हटाने जैसी बातों का उल्लेख करता है।

सामाजिक न्याय

परिवार कानून सुधार पर विधि आयोग का परामर्श पत्र

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विधि आयोग ने एक परामर्श पत्र ज़ारी करते हुए कहा है कि वर्तमान समय में समान नागरिक संहिता न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय।

प्रमुख बिंदु:

  • अपनी सिफारिशों में विधि आयोग ने कहा कि सांस्कृतिक विविधता से इस हद तक समझौता नहीं किया जा सकता है कि समानता के प्रति हमारा आग्रह क्षेत्रीय अखंडता के लिये ही खतरा बन जाए।
  • साथ ही  यह भी कहा कि एक एकीकृत राष्ट्र को "समानता" की आवश्यकता नहीं होती है। इस तरह हमें मानव अधिकारों पर सार्वभौमिक और निर्विवाद तर्कों के साथ अपनी विविधता को सुलझाने का  प्रयास करना चाहिये।
  • चूँकि अंतर किसी मज़बूत लोकतंत्र में हमेशा ही भेदभाव नहीं दर्शाता है। 'धर्मनिरपेक्षता' शब्द का अर्थ केवल तभी चरितार्थ होता है जब यह किसी भी प्रकार के अंतर की अभिव्यक्ति को आश्वस्त करता है।
  • धार्मिक और क्षेत्रीय दोनों ही विविधता को बहुमत के शोरगुल में कम नहीं किया जा सकता है, साथ ही धर्म के भीतर भेदभावपूर्ण प्रथाओं को वैधता प्राप्त करने के लिये उसे विश्वास के जामा के पीछे छिपाना नहीं चाहिये।

सभी व्यक्तिगत कानूनों को संहिताबद्ध करना:

  • आयोग ने आगे के लिये रास्ता बताते हुए कहा कि समान नागरिक संहिता समस्या का समाधान नहीं है बल्कि सभी व्यक्तिगत कानूनी प्रक्रियाओं को संहिताबद्ध करने की आवश्यकता है ताकि उनके पूर्वाग्रह और रूढ़िवादी तथ्य प्रकाश में आ सकें और संविधान के मौलिक अधिकारों पर इनके नकारात्मक प्रभाव का परीक्षण किया जा सके।
  • क्योंकि कानूनों को संहिताबद्ध करने के परिणामस्वरूप व्यक्ति कुछ हद तक सार्वभौमिक सिद्धांतों तक पहुँच सकता है जो समान संहिता की बजाय समानता को लागू करने को प्राथमिकता देता है। 
  • यह देखते हुए कि विवाह और तलाक के मामलों को अतिरिक्त न्यायिक रूप से सुलझाया जा सकता है, यह कानून के पूरी तरह से उपयोग करने के कई रूपों को हतोत्साहित करेगा।
  • इसने विवाह और तलाक के लिये कुछ उपायों का भी सुझाव दिया जो सभी धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों में समान रूप से स्वीकार किया जाना चाहिये।
  • इनमें लड़कों एवं लड़कियों के विवाह लिये 18 वर्ष की आयु को न्यूनतम मानक के रूप में स्वीकार करना ताकि वे बराबरी की उम्र में विवाह कर सकें, व्यभिचार को पुरुष एवं महिलाओं के तलाक के लिये आधार बनाना और तलाक की प्रक्रिया को सरल बनाने जैसे सुझाव शामिल हैं।

प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स :1 सितंबर,2018

कृष्ण कुटीर

  • कृष्ण कुटीर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा मंत्रालय की स्वाधार गृह योजना के तहत 1000 विधवाओं के लिये निर्मित एक विशेष गृह है और किसी सरकारी संगठन द्वारा सृजित अपनी तरह का अब तक का सबसे बड़ा सुविधा केंद्र है।
  • विधवाओं हेतु गृह ‘कृष्ण कुटीर’ का निर्माण उत्तर प्रदेश स्थित मथुरा के वृंदावन में राष्ट्रीय भवन निर्माण निगम (NBCC) द्वारा 57.48 करोड़ रुपए (भूमि की लागत सहित) की लागत से 1.4 हेक्टेयर भूमि पर किया गया है।
  • इसके निर्माण हेतु वित्तपोषण केंद्र सरकार द्वारा किया गया है और इसका प्रबंधन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किया जाएगा।
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

चौथा अंतर्राष्ट्रीय आयुर्वेद कॉन्ग्रेस

  • आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री श्रीपद येस्सो नाइक नीदरलैंड में चौथे अंतरराष्ट्रीय आयुर्वेद कॉन्ग्रेस का उद्घाटन करेंगे।
  • 1-4 सितंबर, 2018 तक चलने वाली इस कॉन्ग्रेस का आयोजन अंतर्राष्ट्रीय महर्षि आयुर्वेद फाउंडेशन, नीदरलैंड; अखिल भारतीय आयुर्वेदिक कॉन्ग्रेस, नई दिल्ली एवं अंतर्राष्ट्रीय आयुर्वेद अकादमी, पुणे द्वारा नीदरलैंड में भारतीय दूतावास के सहयोग से संयुक्त रूप से किया जा रहा है
  • यह कॉन्ग्रेस नीदरलैंड एवं यूरोप को उसके पड़ोसी देशों में आयुर्वेद के संवर्द्धन एवं प्रचार पर फोकस करेगी। 
  • भारतीय दूतावास द्वारा ‘आयुर्वेद सहित स्वास्थ्य देखभाल में भारत-नीदरलैंड सहयोग’ विषय पर एक विशेष संगोष्ठी का आयोजन 3 सितंबर, 2018 को किया जाएगा।
  • इस संगोष्ठी को आयुष मंत्री और नीदरलैंड के मेडिकल केयर एवं स्पोर्ट मंत्री ब्रुनो ब्रुनीस द्वारा संयुक्त रूप से संबोधित किया जाएगा।
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

प्रधानमंत्री ने किया पशुपतिनाथ धर्मशाला का उद्घाटन

  • प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल के प्रधानमंत्री श्री के.पी. ओली के साथ काठमांडू में संयुक्त रूप से पशुपतिनाथ धर्मशाला का उद्घाटन किया।
  • यह धर्मशाला भारत-नेपाल मैत्री की प्रतीक है।
  • प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में पशुपतिनाथ, मुक्तिनाथ एवं जानकी धाम के मंदिरों का उल्लेख किया।
  • उल्लेखनीय है कि ये तीनों मंदिर नेपाल में अवस्थित हैं। 
  • वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली नेपाल यात्रा के दौरान इस धर्मशाला के निर्माण का ऐलान किया था।
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

वर्ष 2018-19 की प्रथम तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत

  • केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने वित्त वर्ष 2018-19 की प्रथम तिमाही के लिये जीडीपी के अनुमान जारी किये।
  • जीडीपी वृद्धि दर वर्ष 2018-19 की प्रथम तिमाही में 8.2 प्रतिशत रही जो वित्त वर्ष 2017-18 की अंतिम तिमाही में दर्ज की गई 7.7 प्रतिशत के मुकाबले और ज्यादा बेहतरी को दर्शाती है।
  • इस विकास का आधार काफी व्यापक है और यह उपभोग व्यय में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि तथा नियत (फिक्स्ड) निवेश में 10.0 प्रतिशत की बढ़ोतरी की बदौलत संभव हो पाया है।

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO)

  • विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों एवं राज्य सरकारों के सांख्यिकीय गतिविधियों के मध्य समन्वयन एवं सांख्यिकीय मानकों के संवर्द्धन हेतु मई 1951 में ‘केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय’ (CSO) की स्थापना की गई थी।
  • यह राष्ट्रीय खातों को तैयार करने, औद्योगिक आँकडों को संकलित एवं प्रकाशित करने के साथ-साथ ही आर्थिक जनगणना एवं सर्वेक्षण कार्य भी आयोजित करता है।
  • यह देश में सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) की सांख्यिकीय निगरानी के लिये भी उत्तरदायी है।
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

प्रधानमंत्री विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार सलाहकार परिषद (PM-STIAC)

हाल ही में केंद्र सरकार ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार से संबंधित नीतिगत मामलों पर सलाह देने के लिये  एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है।

  • PM-STIAC (Prime Minister’s Science, Technology and Innovation Advisory Council) के रूप में नामित 21 सदस्यीय समिति, जिसमें एक दर्जन सदस्य विशेष रूप से आमंत्रित हैं, की अध्यक्षता मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. के. विजय राघवन करेंगे।
  • इस परिषद के 9 प्रमुख सदस्य - वी.के. सारस्वत (DRDO के पूर्व प्रमुख, तथा नीति आयोग के सदस्य), ए.एस. किरण कुमार (ISRO के पूर्व अध्यक्ष), बाबा कल्याणी (भारत फोर्ज के MD), प्रो. संघमित्र बंदोपाध्याय (भारतीय सांख्यिकी संस्थान के निदेशक), मंजुल भार्गव (प्रिंसटन यूनिवर्सिटी अमेरिका के प्रोफेसर तथा गणित के फील्ड मेडल विजेता), प्रो. अजय कुमार सूद (भारतीय विज्ञान संस्थान बंगलूरू के प्रोफ़ेसर), मेजर जनरल माधुरी कानितकर (आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल कॉलेज की डीन), सुभाष काक (ओक्लाहोमा यूनिवर्सिटी, अमेरिका के प्रोफेसर) शामिल हैं। 
  • आधिकारिक अधिसूचना के अनुसार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित सभी मंत्रालयों के सचिव विशेष आमंत्रितों के रूप में शामिल होंगे। इनमें परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष, जैव प्रौद्योगिकी, नवीन तथा नवीकरणीय ऊर्जा, पर्यावरण एवं वन, कृषि, स्वास्थ्य और उच्च शिक्षा शामिल हैं।
  • यह समिति नीतियों और निर्णयों के निर्माण और कार्यान्वयन की सुविधा प्रदान करेगी, कार्रवाई-उन्मुख और आने वाले समय के अनुकूल सलाह प्रदान करेगी तथा देश में सामाजिक आर्थिक समस्याओं को हल करने के लिये विज्ञान और तकनीकी को निर्देशित करने में सहायता करेगी।
  • यह शिक्षा, अनुसंधान, उद्योग इत्यादि में नवाचार लाने पर भी ध्यान केंद्रित करेगी।
  • PM-STIAC प्रभावी रूप से SAC-कैबिनेट और SAC-PM (2014 से चल रही वैज्ञानिक सलाहकार समितियाँ) को भंग कर देगा।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow