अंतर्राष्ट्रीय संबंध
एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक और भारत
प्रीलिम्स के लिये:एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, एशियाई विकास बैंक मेन्स के लिये:एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक द्वारा भारत की विभिन्न परियोजनाओं के लिये आवंटित ऋण का महत्त्व क्षेत्रीय विकास के संदर्भ में |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जिन लिक्यून (Jin Liqun) को पाँच वर्षों के दूसरे कार्यकाल के लिये चीन स्थित ‘एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक’ (Asian Infrastructure Investment Bank- AIIB) के अध्यक्ष पद हेतु पुनः निर्वाचित किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- जिन लिक्यून के अनुसार, AIIB द्वारा एक 'गैर राजनीतिक संस्था' के रुप में भारत में परियोजनाओं को जारी रखा जाएगा।
- बैंक के प्रबंधन द्वारा राजनीतिक दृष्टि से नहीं बल्कि आर्थिक और वित्तीय दृष्टिकोण से प्रस्तावित परियोजनाओं का निरीक्षण किया जाएगा।
भारत और एआईआईबी:
- वर्ष 2016 में स्थापित AIIB के 57 संस्थापक सदस्यों में से भारत एक है।
- भारत, AIIB में चीन (26.06%) के बाद दूसरा सबसे बड़ा शेयरधारक (7.62% वोटिंग शेयर के साथ) है।
- भारत द्वारा AIIB से 4.35 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण प्राप्त किया गया है जो किसी भी देश द्वारा प्राप्त सबसे अधिक ऋण राशि है।
- AIIB द्वारा अब तक 24 देशों में 87 परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये 19.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण को मंज़ूरी दी है।
- तुर्की 1.95 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ ऋण प्राप्ति में दूसरे स्थान पर है।
- AIIB द्वारा भारत में ऊर्जा, परिवहन एवं पानी जैसे क्षेत्रों के अलावा बंगलुरु मेट्रो रेल परियोजना (USD 335 मिलियन), गुजरात में ग्रामीण सड़क परियोजना (USD 329 मिलियन) तथा मुंबई शहरी परिवहन परियोजना के चरण-3 (500 मिलियन अमेरिकी डॉलर) परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये मंज़ूरी दी गई है।
- हाल ही में एक आभासी बैठक में भारत द्वारा यह कहा गया कि COVID-19 संकट के दौरान AIIB से अपेक्षा की जाती है यह एआईआईबी पुनर्प्राप्ति प्रतिक्रिया (AIIB’s Recovery Response) अर्थात ‘क्राइसिस रिकवरी फैसिलिटी’ द्वारा सामाजिक बुनियादी ढाँचे को विकसित करने तथा जलवायु परिवर्तन एवं सतत् ऊर्जा संबंधी बुनियादी ढाँचे के विकास को एकीकृत करने के लिये नए वित्त संसाधनों को उपलब्ध कराए।
- इसका निहितार्थ यह है कि हाल ही में भारत द्वारा चीन के साथ अपने व्यापार और निवेश को कम किया गया है इसके बावजूद भारत का चीन के नेतृत्व वाले एशियाई इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक के साथ अपने सहयोग को बदलने या कम करने का कोई इरादा नहीं है।
चीन का दृष्टिकोण:
- जून 2020 में, AIIB द्वारा एशियन डेवलपमेंट बैंक (Asian Development Bank-ADB) के साथ मिलकर ‘COVID-19 इमरजेंसी रिस्पांस फंड और हेल्थ सिस्टम्स प्रिपेडनेस प्रोजेक्ट’ के लिये 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर तथा ‘COVID-19 एक्टिव रिस्पॉन्स और एक्सपेंडेचर सपोर्ट’ (COVID-19 Active Response and Expenditure Support) के लिये 750 मिलियन अमेरिकी डॉलर के वित्त को मंज़ूरी प्रदान की गई है।
- भारत-चीन सीमा के साथ लद्दाख की गलवान घाटी में झड़प के दो दिन बाद भी 750 मिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण को मंज़ूरी दी गई थी।
- AIIB द्वारा ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (Belt and Road Initiative- BRI) के तहत कई परियोजनाओं का समर्थन किया गया है, हालाँकि यह औपचारिक रूप से इस परियोजना से जुड़ा हुआ नहीं है।
- चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा जो BRI परियोजना का ही भाग है, भारत के लिये सामरिक दृष्टि से एक चिंता का विषय है।
एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक:
- एआईआईबी एशिया में सामाजिक और आर्थिक परिणामों को बेहतर बनाने के मिशन के साथ एक बहुपक्षीय विकास बैंक है।
- इसका मुख्यालय बीजिंग (चीन) में है।
- इसने जनवरी, 2016 में कार्य करना शुरू कर दिया था।
- विश्व में इसके कुल अनुमोदित सदस्यों की संख्या बढ़कर 103 हो गई है।
आगे की राह:
- भारत को AIIB के साथ अपने संबंधों को मज़बूती के साथ कायम रखना चाहिये क्योंकि यह राष्ट्रीय और सीमा पार बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये संसाधनों का उपयोग करने में सहायक होगा।
- जिस प्रकार विश्व बैंक में अमेरिका का वर्चस्व है तथा एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank- ADB) पर जापान का उसी प्रकार AIIB का भी महत्त्व है।
- भारत को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उसके हितों को सदस्य देशों द्वारा स्पष्ट के साथ रखा जाए साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि AIIB चीनी भू राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा नहीं है।
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
दासता पर CHRI की रिपोर्ट
प्रीलिम्स के लिये:राष्ट्रमंडल, राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल मेन्स के लिये:भारत में दासता की स्थिति एवं मानव तस्करी रोकने हेतु संवैधानिक प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 30 जुलाई को ‘वर्ल्ड डे अगेंस्ट ट्रैफिकिंग’ (World Day Against Trafficking in Persons) के अवसर पर ‘कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव’ (Commonwealth Human Rights Initiative- CHRI) तथा एक अंतर्राष्ट्रीय दासता विरोधी संगठन, वॉक फ्री (Walk Free) द्वारा दासता के संदर्भ में एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई।
प्रमुख बिंदु:
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु-
- इस रिपोर्ट में राष्ट्रमंडल देशों द्वारा वर्ष 2018 में बलपूर्वक श्रम, मानव तस्करी, बाल श्रम को समाप्त करने एवं सतत् विकास लक्ष्य (लक्ष्य 8.7) को प्राप्त करने तथा आधुनिक दासता की स्थिति को वर्ष 2030 तक समाप्त करने के लिये किये गए वादों की प्रगति का आकलन किया गया।
- राष्ट्रमंडल देशों में आधुनिक दासता से ग्रसित विश्व के लगभग 40% लोगों विद्यमान हैं।
- एक अनुमान के अनुसार, राष्ट्रमंडल देशों में 150 लोगों में से प्रत्येक एक व्यक्ति आधुनिक दासता की स्थिति में रह रहा है।
- रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रमंडल देशों द्वारा आधुनिक दासता के उन्मूलन के प्रति प्रतिबद्धता की दिशा में बहुत कम प्रगति की गई है तथा वर्ष 2030 तक आधुनिक दासता को समाप्त करने वाले कार्यों में भी कमी देखी गई है।
- राष्ट्रमंडल के ⅓ देश जबरन विवाह कराने के अपराध में संलिप्त है जबकि 23 देश ऐसे भी हैं जो बच्चों के व्यावसायिक यौन शोषण के अपराध में संलिप्त नहीं हैं।
- सभी राष्ट्रमंडल देश इस अंतराल को पीड़ित सहायता कार्यक्रमों में प्रस्तुत करते हैं।
भारत की स्थिति:
- रिपोर्ट के अनुसार, भारत द्वारा समन्वय के संदर्भ में सबसे खराब प्रदर्शन किया गया है। वर्तमान दासता की स्थिति से निपटने के लिये भारत के पास कोई राष्ट्रीय समन्वय निकाय (National Coordinating Body) या फिर कोई राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan) नहीं है।
- भारत में विश्व की बाल वधुओं का कुल संख्या का एक तिहाई हिस्सा मौजूद है।
- भारत द्वारा एशिया के अन्य सभी राष्ट्रमंडल देशों की तरह, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के 2011 के घरेलू कामगारों पर कन्वेंशन या 2014 के ‘फोर्सड लेबर प्रोटोकॉल’ (Forced Labour Protocol) की पुष्टि नहीं की गई है।
- वर्ष 2014 का ‘फोर्सड लेबर प्रोटोकॉल’ (Forced Labour Protocol) राज्य सरकारों को इस बात के लिये बाध्य करता है कि वे मुआवज़े सहित, बलात् श्रम से पीड़ितों को सुरक्षा और उचित श्रम प्रदान करने के लिए बाध्य करें।
- यह प्रोटोकॉल राज्य को एक राष्ट्रीय नीति विकसित करने एवं जबरन या अनिवार्य श्रम के प्रभावी तथा निरंतर दमन के लिये कार्य योजना तैयार करने के लिये भी बाध्य करता है।
भारत द्वारा इस दिशा में किये गए संवैधानिक प्रावधान:
अनुच्छेद-21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित है।
अनुच्छेद-23 बलात् श्रम पर प्रतिबंध लगाता है।
अनुच्छेद-24 कारखानों, आदि में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कार्य करने से प्रतिबंधित करता है।
अनुच्छेद-39 राज्य को श्रमिकों, पुरुषों तथा महिलाओं के स्वास्थ्य एवं सामर्थ्य को सुरक्षित करने के लिये निर्देशित करता है।
अनुच्छेद-42 राज्य को निर्देश देता है कि वह काम की उचित और मानवीय स्थितियों को सुरक्षित रखने एवं मातृत्व राहत के लिये प्रावधान करे।
कानूनी प्रावधान:
- भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) के विभिन्न खंड जैसे 366A, 366B, 370 और 374.
- भारतीय दंड संहिता की धारा 370 और 370A मानव तस्करी के खतरे का मुकाबला करने के लिये व्यापक उपाय प्रदान करती है जिसमें बच्चों का किसी भी रूप में शारीरिक शोषण, यौन शोषण, दासता या जबरन अंगों के व्यापार सहित किसी भी रूप में शोषण के लिये तस्करी शामिल है।
- किशोर न्याय अधिनियम, 2015, सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2000, अनैतिक यातायात अधिनियम, बाल श्रम अधिनियम 1956, बंधुआ मजदूरी (उन्मूलन) अधिनियम 1976, इत्यादि का उद्देश्य दासता के विभिन्न स्वरूपों को समाप्त करना है।
अन्य प्रावधान:
- भारत द्वारा ‘यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन ट्रांसनेशनल ऑर्गनाइज्ड क्राइम’ (United Nations Convention on Transnational Organised Crime-UNCTOC) की पुष्टि की गई है यह प्रोटोकॉल विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की तस्करी की रोकथाम से संबंधित है।
- भारत द्वारा महिलाओं एवं बच्चों की वेश्यावृत्ति के लिये तस्करी रोकने के लिये भारत द्वारा दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association for Regional Cooperation- SAARC) कन्वेंशन की पुष्टि की गई है।
- महिलाओं एवं बच्चों की मानव तस्करी की रोकथाम, बचाव, वसूली, प्रत्यावर्तन एवं पीड़ितों के पुन: एकीकरण के लिये जून, 2015 में भारत एवं बांग्लादेश के मध्य द्विपक्षीय सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
- मानव तस्करी के अपराध को रोकने के संदर्भ में राज्य सरकारों द्वारा किये गए विभिन्न फैसलों पर विचार-विमर्श करने एवं कार्रवाई करने के लिये वर्ष 2006 में गृह मंत्रालय ( Ministry of Home Affairs -MHA) द्वारा नोडल सेल की स्थापना की गई थी।
- न्यायिक सम्मेलन: ट्रायल कोर्ट के न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षित एवं संवेदनशील बनाने के लिये, उच्च न्यायालय स्तर पर मानव तस्करी पर न्यायिक सम्मेलन आयोजित किये जाते हैं। इन सम्मेलनों का उद्देश्य मानव तस्करी से संबंधित विभिन्न मुद्दों के बारे में न्यायिक अधिकारियों को संवेदनशील बनाना तथा शीघ्र न्यायिक प्रक्रिया सुनिश्चित करना है।
- केंद्र सरकार द्वारा देश भर में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमता निर्माण में वृद्धि करने एवं उनके माध्यम से जागरूकता उत्पन्न करने के लिये तथा पुलिस अधिकारियों एवं अभियोजकों के लिये ‘मानव तस्करी के उन्मूलन’ विषय पर क्षेत्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर संयुक्त प्रशिक्षण (टीओटी) कार्यशालाएँ आयोजित की गई हैं।
- गृह मंत्रालय द्वारा एक व्यापक योजना के तहत प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के माध्यम से भारत में मानव तस्करी के खिलाफ कानून प्रवर्तन प्रतिक्रिया को मज़बूत करने के लिये देश के 270 ज़िलों में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग इकाइयों (Anti Human Trafficking Units) की स्थापना के लिये फंड जारी किया गया है।
- एक एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (AHTU) का प्राथमिक कार्य कानून प्रवर्तन और पीड़ितों की देखभाल एवं पुनर्वास से संबंधित अन्य एजेंसियों के साथ संपर्क स्थापित करना है।
- गृह मंत्रालय द्वारा सभी राज्यों/संघ शासित प्रदेशों में नामित मानव तस्करी विरोधी इकाइयों के नोडल अधिकारियों के साथ समन्वय बैठकें आयोजित की जाती हैं।
आधुनिक दासता:
आधुनिक दासता शोषण की उन स्थितियों को संदर्भित करती है जिसमे कोई व्यक्ति धमकी, हिंसा, जबरदस्ती एवं बलपूर्वक या धोखे के दुरुपयोग से बच नहीं पाता है।
राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (Commonwealth Human Rights Initiative- CHRI)
- CHRI एक स्वतंत्र, गैर-पक्षपातपूर्ण, अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन है।
- इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
- यह राष्ट्रमंडल में मानव अधिकारों की व्यावहारिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये कार्य करता है।
- राष्ट्रमंडल 54 स्वतंत्र एवं समान संप्रभु राज्यों का एक स्वैच्छिक संघ है।
- यह विश्व के सबसे पुराने राजनीतिक संगठनों में से एक है। जिसकी जड़ें उन देशों की स्थापना से संबंधित हैं जिन देशों पर ब्रिटिश द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शासन किया गया था।
- वर्ष 1949 में, राष्ट्रमंडल के अस्तित्व में आने के साथ ही अफ्रीका, अमेरिका, एशिया, यूरोप और प्रशांत क्षेत्र के स्वतंत्र देश भी राष्ट्रमंडल के सदस्य बन गए।
- राष्ट्रमंडल की सदस्यता मुक्त और समान स्वैच्छिक सहयोग पर निर्भर करती है क्योंकि रवांडा और मोज़ाम्बिक ब्रिटिश साम्राज्य का अंग न होने के बावज़ूद भी राष्ट्रमंडल के सदस्य देशों में शामिल हैं।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
राजकोषीय घाटे में वृद्धि
प्रीलिम्स के लिये:राजकोषीय घाटा और उसका प्रभाव मेन्स के लिये:भारत के राजकोषीय घाटे पर COVID-19 का प्रभाव, राजकोषीय प्रबंधन |
चर्चा में क्यों?
कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के परिणामस्वरूप भारत के राजकोषीय घाटे में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिली है और यह जून, 2020 में समाप्त पहली तिमाही में बजटीय अनुमान के 83.2 प्रतिशत यानी 6.62 लाख करोड़ रुपए पर पहुँच गया है।
प्रमुख बिंदु:
- अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अर्थव्यवस्था को महामारी के प्रकोप से बचाने और महामारी के परिणामस्वरूप राजस्व की कमी को पूरा करने के लिये सरकार द्वारा लिये जा रहे अतिरिक्त ऋण के कारण देश का राजकोषीय घाटा 8 प्रतिशत के आस- पास जा सकता है।
- ज्ञात हो कि वित्तीय वर्ष 1999 से अब तक उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, यह किसी भी पहली तिमाही के लिये प्रतिशत के लिहाज़ से सबसे अधिक राजकोषीय घाटा है।
- वित्तीय वर्ष 2020-21 के केंद्रीय बजट में सरकार ने देश के राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 7.96 लाख करोड़ रुपए अथवा सकल घरेलू उत्पाद का 3.5 प्रतिशत निर्धारित किया था।
राजकोषीय घाटे में वृद्धि के कारण:
- अर्थशास्त्रियों के अनुसार, कोरोना वायरस महामारी के कारण सरकार के राजस्व में भारी कमी आई है, जो कि सरकार के राजकोषीय घाटे में वृद्धि का मुख्य कारण है।
- आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल से जून माह तक केंद्र सरकार को कर, गैर-कर राजस्व और ऋण वसूली आदि माध्यमों से 1.53 लाख करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं। उल्लेखनीय है कि यह पूरे वर्ष के बजट अनुमान के 7 प्रतिशत से भी कम है।
- नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General- CAG) द्वारा हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही के लिये केंद्र सरकार का कुल व्यय 8.15 करोड़ रुपए था, जो कि पूरे वर्ष के लिये बजट अनुमान का लगभग 27 प्रतिशत है।
- वहीं केंद्र सरकार ने करों के अपने हिस्से के रूप में राज्यों को 1.34 लाख करोड़ रुपए स्थानांतरित किये हैं, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 14,588 करोड़ रुपए कम है।
- इसके अलावा केंद्र सरकार ने अतिरिक्त उधार लेने की योजनाओं की घोषणा पहले ही कर दी है, जो जीडीपी का लगभग 5.7 प्रतिशत है इससे राजकोषीय घाटे में और अधिक वृद्धि हो सकती है।
कर राजस्व में कमी:
- वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) की अवधि में सरकार का शुद्ध कर राजस्व 2.69 लाख करोड़ रुपए था, जबकि इसी अवधि में बीते वर्ष कुल शुद्ध कर राजस्व 4 लाख करोड़ रुपए था।
- इस अवधि में प्रत्यक्ष कर संग्रह 1.19 लाख करोड़ रुपए रहा, जो कि बीते वर्ष के संग्रह से लगभग 51,460 करोड़ रुपए कम है। इस अवधि में कुल अप्रत्यक्ष कर 1.51 लाख करोड़ रुपए रहा है।
- इस वर्ष की पहली तिमाही में निगम कर संग्रह में बीते वर्ष की पहली तिमाही की अपेक्षा 23.2 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि लॉकडाउन के दौरान आय में कटौती और रोज़गार न होने कारण आयकर संग्रह में कुल 36 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।
प्रभाव:
- कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक ऐसे समय में प्रभावित किया है, जब अर्थव्यवस्था पहले से ही काफी तनाव का सामना कर रही थी।
- महामारी के प्रसार को रोकने के लिये लागू किये गए लॉकडाउन ने देश में सभी आर्थिक गतिविधियों और आवश्यक कार्यों को रोकने के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर मांग को काफी न्यून कर दिया है।
- उच्च राजकोषीय घाटे से सरकार को अधिक ऋण लेना पड़ता है, जिसमें उधार लेने पर ब्याज का भुगतान भी शामिल होता है और इससे देश पर सार्वजनिक ऋण का बोझ भी बढ़ जाता है।
- वर्ष-दर-वर्ष ब्याज भुगतान से जुड़े सार्वजनिक ऋण में भारी वृद्धि से देश के आर्थिक विकास की प्रक्रिया अस्थिर हो जाती है।
- इससे भुगतान संतुलन कमज़ोर पड़ता है और आने वाली पीढ़ियों पर कर्ज़ का बोझ बढ़ जाता है।
राजकोषीय घाटा:
- सरकार की कुल आय और उसके व्यय के अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। राजकोषीय घाटे के माध्यम से ही यह पता चलता है कि सरकार को अपने कामकाज के लिये कितने उधार की ज़रूरत है।
- कुल राजस्व की गणना करते समय ऋण को शामिल नहीं किया जाता है। राजकोषीय घाटा आमतौर पर राजस्व में कमी या पूंजीगत व्यय में अत्यधिक वृद्धि के कारण होता है।
- पूंजीगत व्यय का अभिप्राय कारखानों और इमारतों जैसी दीर्घकालीन संपत्तियों या लंबे समय तक उपयोग होने वाली संपत्तियों के सृजन पर होने वाले व्यय से होता है।
- राजकोषीय घाटे की भरपाई आमतौर पर या तो देश के केंद्रीय बैंक (भारत की स्थिति में रिज़र्व बैंक) से उधार लेकर की जाती है या फिर इसके लिये छोटी तथा लंबी अवधि हेतु बॉन्ड जारी करके फंड जुटाया जाता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजव्यवस्था
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव: स्थगित करना संभव नहीं
प्रीलिम्स के लियेअमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया मेन्स के लियेअमेरिका में राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के चुनाव संबंधी विभिन्न प्रावधान और भारत से उनकी तुलना |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह सुझाव कि नवंबर माह में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों को कुछ समय के लिये टाला जा सकता है, राष्ट्रपति के इस सुझाव के साथ एक नया विवाद शुरू हो गया है।
प्रमुख बिंदु
- अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा है कि देश में 3 नवंबर को आयोजित होने वाले चुनावों में तब तक देरी हो सकती है, जब तक आम मतदाता सुरक्षित रूप से मतदान नहीं कर सकते।
- ऐसे में यह प्रश्न चर्चा में आ गया है कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति को देश में होने वाले चुनाव स्थगित करने का अधिकार है अथवा नहीं?
इस संबंध में अमेरिकी राष्ट्रपति के अधिकार
- अमेरिकी कानूनों के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति को चुनाव स्थगित करने का अधिकार नहीं है।
- अमेरिकी संविधान के अनुसार, अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों की तारीख राष्ट्रपति नहीं, बल्कि अमेरिकी काॅॅन्ग्रेस द्वारा तय की जाती है।
- 25 जनवरी, 1845 को अनुमोदित एक संघीय कानून ने स्पष्ट रूप से चुनाव का समय निर्धारित किया है, निर्वाचक मंडल के चयन का ज़िक्र करते हुए संघीय कानून में कहा गया है कि ‘राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव हेतु निर्वाचकों को प्रत्येक अमेरिकी राज्य में उस वर्ष नवंबर माह के पहले सोमवार के बाद आने मंगलवार को नियुक्त किया जाएगा, जिस वर्ष राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति की नियुक्ति की जानी है।
- कानून के अनुसार, इस वर्ष अमेरिकी राष्ट्रपति के लिये निर्वाचक मंडल का चयन 3 नवंबर को किया जाएगा।
- हालाँकि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव संबंधी इस कानून को एक नया कानून पारित करके बदला जा सकता है, जिसे अमेरिका में हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव (House of Representatives) और सीनेट (Senate) दोनों की मंज़ूरी की आवश्यकता है, साथ ही इस नए कानून को न्यायालय के समक्ष चुनौती भी दी जा सकेगी।
क्या होगा यदि चुनाव स्थगित हो जाते हैं तो?
- हालाँकि चुनाव स्थगित होने की संभावना काफी कम है, किंतु यदि अमेरिका का नीति निर्माता कोरोना वायरस के प्रकोप के मद्देनज़र राष्ट्रपति के चुनावों को कुछ समय के लिये टालने का निर्णय भी लेते हैं तो भी अमेरिकी नियमों के अनुसार, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने कार्यकाल की अवधि से ज़्यादा व्हाइट हाउस में बतौर राष्ट्रपति कार्य नहीं कर सकेंगे।
- विदित हो कि राष्ट्रपति ट्रंप का कार्यकाल 20 जनवरी, 2021 को समाप्त हो रहा है।
- 23 जनवरी, 1933 को अमेरिकी संविधान में 20वाँ संविधान संशोधन किया गया था जिसके अनुसार, किसी भी स्थिति में अमेरिकी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का कार्यकाल चुनाव न होने की स्थिति में उनकी राष्ट्रपति अवधि की समाप्ति के बाद 20 जनवरी की शाम को समाप्त हो जाएगा।
- इस तिथि में बदलाव नहीं किया जा सकता है।
- आमतौर पर, यदि राष्ट्रपति पद खाली होता है, तो उपराष्ट्रपति पदभार ग्रहण करता है, किंतु इस स्थिति में चुनाव न होने कारण राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उपराष्ट्रपति माइक पेंस (Mike Pence) दोनों का कार्यकाल 20 जनवरी को समाप्त हो जाएगा।
- ऐसे में कानून के अनुसार, हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव (House of Representatives) का अध्यक्ष नए राष्ट्रपति के चुनाव तक पदभार संभालेगा।
- हालाँकि यहाँ भी एक समस्या है, अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव का दो वर्ष का कार्यकाल 3 जनवरी, 2021 को समाप्त हो रहा है। यह तारीख भी 20वें संविधान संशोधन में ही तय की गई थी। इस प्रकार हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव का अध्यक्ष पदभार ग्रहण कर सकता है।
- नियमों के अनुसार, हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव का अध्यक्ष मौजूद नहीं है तो अगला स्थान अमेरिकी सीनेट (Senate) के प्रेसिडेंट प्रो टेंपोर (President Pro Tempore) का होता है।
- यह सीनेट में दूसरा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पद होता है, हालाँकि यह पद काफी हद तक औपचारिक ही माना जाता है।
- अमेरिकी संविधान के अनुसार, सीनेट को अमेरिकी उपराष्ट्रपति की अनुपस्थिति में एक प्रेसिडेंट प्रो टेंपोर (President Pro Tempore) का चयन करना चाहिये।
अमेरिका में चुनाव का नया माध्यम
- अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों की तारीख तो संघीय कानून के माध्यम से चुनी जाती है, किंतु चुनाव में मतदान की प्रक्रिया राज्यों के स्तर पर निर्धारित की जाती है।
- इसलिये राज्यों के स्तर पर चुनाव मतदान की प्रक्रिया काफी जटिल बनी हुई है, जहाँ कुछ राज्यों ने मेल-इन वोटिंग (पोस्टल वोटिंग) का तरीका अपनाया है वहीं कुछ राज्यों ने व्यक्तिगत रूप से मतदान का तरीका अपनाया है, इसके अलावा कई अन्य राज्यों ने मतदान के अलग-अलग तरीके अपनाए हैं।
- नियमों के अनुसार, जिनके पास कोई निश्चित पता नहीं है वे या तो व्यक्तिगत रूप से मतदान कर सकते हैं या अपने स्थानीय चुनाव अधिकारियों से संपर्क कर सकते हैं।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
यूरोज़ोन अर्थव्यवस्था का संकुचन
प्रीलिम्स के लिये:यूरोज़ोन, यूरोपीय संघ मेन्स के लिये:यूरोपीय संघ का वर्तमान आर्थिक परिदृश्य |
चर्चा में क्यों?
पिछली तिमाही की तुलना में अप्रैल-जून 2020 की तिमाही में यूरोज़ोन का सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product-GDP) 12.1% कम हो गया है।
प्रमुख बिंदु:
- यह यूरोज़ोन की अर्थव्यवस्था में अभी तक की सबसे बड़ी गिरावट है, क्योंकि कोविड-19 में लॉकडाउन के चलते कारोबार बंद हो गया और उपभोक्ता खर्च में निरंतर कमी देखने को मिली है।
- यूरोज़ोन में यूरोपीय संघ (EU) के 19 सदस्य शामिल हैं, जो यूरो को अपनी आधिकारिक मुद्रा के रूप में उपयोग करते हैं। यूरोपीय संघ के 8 सदस्य (बुल्गारिया, क्रोएशिया, चेक गणराज्य, डेनमार्क, हंगरी, पोलैंड, रोमानिया और स्वीडन) यूरो का उपयोग नहीं करते हैं।
- यूरोपीय संघ के 27 देशों की अर्थव्यवस्था में इसी अवधि के दौरान 11.9% की गिरावट आई है।
- वर्तमान में विश्व का कोई भी देश महामारी के प्रभाव से बच नहीं पाया है। स्पेन ने इस क्षेत्र में सबसे अधिक आर्थिक गिरावट (18.5%) का सामना किया।
- यूरोपीय सरकारें बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन उपायों के साथ मंदी का मुकाबला कर रही हैं। उन्होंने व्यवसायों को जारी रखने के लिये ऋण जारी किये हैं और श्रमिकों के वेतन का भुगतान करने वाले कार्यक्रमों/योजनाओं का समर्थन कर रही हैं।
- यूरोपीय संघ के नेताओं ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बल देने के लिये वर्ष 2021 से 750 बिलियन यूरो के रिकवरी फंड (आम उधारी के माध्यम से) पर सहमति व्यक्त की है।
- यूरोपीय सेंट्रल बैंक अर्थव्यवस्था में नव मुद्रित 1.35 ट्रिलियन यूरो का प्रवेश करा रहा है, ताकि उधार की लागत को कम रखने में मदद की जा सके।
- यूरोपीय सेंट्रल बैंक (European Central Bank) यूरोपीय संघ का एक आधिकारिक संस्थान और यूरोज़ोन देशों का केंद्रीय बैंक है।
स्रोत: द हिंदू
कृषि
कृषि निर्यात के 'टर्म ऑफ रेफरेंस' पर रिपोर्ट
प्रीलिम्स के लिये:वित्त आयोग, कृषि निर्यात मेन्स के लिये:भारत में कृषि निर्यात |
चर्चा में क्यों?
'पंद्रहवें वित्त आयोग' (Fifteenth Finance Commission) के कृषि निर्यात पर स्थापित 'उच्च स्तरीय समूह' (High Level Group- HLEG) द्वारा हाल ही में आयोग को अपनी रिपोर्ट पेश की गई।
प्रमुख बिंदु:
- वित्त आयोग द्वारा HLEG की स्थापना, कृषि निर्यात को प्रोत्साहित करने तथा उच्च आयात को प्रतिस्थापन करने में सक्षम फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने तथा इस दिशा में राज्यों के लिये ‘मापने योग्य प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन’ (Measurable Performance Incentives) प्रणाली अपनाने के लिये सिफारिश करने के उद्देश्य से की गई थी।
- गहन अनुसंधान करने तथा विभिन्न हितधारकों से इनपुट लेने के बाद HLEG ने अपनी सिफारिशें वित्त आयोग को पेश की हैं।
'टर्म ऑफ रेफरेंस' (Terms of Reference- ToR)
- बदलते अंतर्राष्ट्रीय व्यापार परिदृश्य में भारतीय कृषि उत्पादों (वस्तुओं, अर्द्ध-प्रसंस्कृत और प्रसंस्कृत) के निर्यात और आयात प्रतिस्थापन अवसरों का आकलन करना और निर्यात को स्थिरतापूर्वक बढ़ाने और आयात निर्भरता को कम करने की दिशा में सुझाव देना।
- कृषि उत्पादकता बढ़ाने, उच्च मूल्य संवर्द्धन तथा कृषि अवशिष्ट में कमी को सुनिश्चित करने और कृषि से संबंधित लॉजिस्टिक अवसंरचना को मज़बूत करने की दिशा में आवश्यक सुझाव देना।
- कृषि मूल्य श्रृंखला में निजी क्षेत्र के निवेश के समक्ष बाधाओं की पहचान करना तथा तीन ऐसे नीतिगत उपायों और सुधारों का सुझाव देना ताकि इस क्षेत्र में निवेशों को आकर्षित किया जा सके।
- वर्ष 2021-22 से वर्ष 2025-26 की अवधि के लिये राज्य सरकारों के लिये उपयुक्त 'प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन' प्रदान करने के लिये सुझाव देना तथा कृषि क्षेत्र में तेज़ी से सुधारों को अपनाने की दिशा में अन्य नीतिगत उपायों को लागू करना।
HLEG की सिफारिशें:
कृषि मूल्य श्रंखला:
- 22 प्रमुख फसलों की मूल्य श्रृंखलाओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है तथा मांग संचालित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
- मूल्य श्रंखला क्लस्टरों (Value Chain Clusters-VCC) के संबंध में एकीकृत दृष्टिकोण को अपनाए जाने की आवश्यकता है तथा कृषि उत्पादों के 'मूल्य संवर्द्धन’ (Value Addition) पर मुख्यत: ध्यान देने की आवश्यकता है।
निजी क्षेत्र की भूमिका:
- निजी क्षेत्र को मांग अभिविन्यास को सुनिश्चित करने और मूल्य संवर्द्धन पर ध्यान केंद्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिये।
- मांग अभिविन्यास वह विधि है, जिसमें किसी उत्पाद की कीमत उसकी मांग के अनुसार बदल दी जाती है
- निजी क्षेत्र कृषि क्षेत्र में निर्यात की व्यवहार्यता, कार्यान्वयन, वित्त पोषण, प्रौद्योगिकी की उपलब्धता आदि के माध्यम से अपनी भूमिका निभा सकता है।
राज्य आधारित निर्यात योजना:
- विभिन्न हितधारकों की भागीदारी के साथ राज्यों के नेतृत्त्व में विशेष 'कृषि निर्यात योजनाएँ' बनाई जानी चाहिये।
राज्य आधारित निर्यात योजना (State-led Export Plan):
- यह किसी फसल की मूल्य श्रृंखला में वृद्धि की दिशा में क्लस्टर आधारित व्यावसायिक योजना होगी।
- यह मूल्य श्रृंखला आधारित निर्यात की मांग को पूरा करने के लिये आवश्यक अवसर, पहल और निवेश को पूरा करने की दिशा में कार्य करेगी।
- योजना क्रिया-उन्मुख, समयबद्ध और परिणाम-केंद्रित होंगी।
- योजना में निजी क्षेत्र को एंकर के रूप में तथा केंद्र को एक समर्थकारी (Enabling) के रूप में अपनी भूमिका निभानी चाहिये।
- योजना के कार्यान्वयन और सहायता के लिये संस्थागत तंत्र को मज़बूत किया जाना चाहिये।
- योजना का वित्तपोषण मौजूदा योजनाओं, वित्त आयोग के आवंटन और निजी क्षेत्र के निवेश के अभिसरण (Convergence) के माध्यम से किया जाना चाहिये।
कृषि निर्यात के समक्ष चुनौतियाँ:
आयात के कठोर मानदंड:
- ताजे फल और सब्जियों के साथ ही अन्य सेनेटरी तथा फाइटोसेनेटरी मानदंडों को अनेक देशों द्वारा कठोर बनाया जा रहा है।
- आयातक देशों के मानदंडों का पालन करने के लिये केवल पंजीकृत किसानों से ही उपज की खरीद करना आवश्यक है।
अवसंरचना संबंधी:
- कृषि उत्पाद जल्दी ही खराब हो जाते हैं अत: फसल कटाई के समय बंदरगाहों पर कंटेनरों की उपलब्धता होना महत्त्वपूर्ण है। कृषि निर्यात के लिये बंदरगाहों पर कोई समर्पित स्थान नहीं होता है।
फल-सब्जियों की गुणवत्ता:
- गुणवत्ता के लिहाज से (शेल्फ लाइफ, रंग, आकार, सुगंध, आदि) के अनुसार, कुछ भारतीय फल वैश्विक बाज़ार में गैर-प्रतिस्पर्द्धी हैं। कुछ फलों की किस्म निर्यात के लिये उपयुक्त नहीं है।
कृषि निर्यात संभावना (Potential):
- भारत का कृषि निर्यात में कुछ वर्षों में 40 बिलियन डॉलर से बढ़कर 70 बिलियन डॉलर हो सकता है, यदि इस दिशा में आवश्यक सुधारात्मक कदम उठाए जाएँ।
- कृषि निर्यात में वृद्धि से न केवल किसानों की आय बढ़ेगी अपितु अतिरिक्त निर्यात से अनुमानित 7-10 मिलियन नौकरियाँ पैदा होने की संभावना भी है।
- इसके लिये कृषि निर्यात में अनुमानित 8-10 बिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता है ताकि बुनियादी ढाँचे, खाद्य प्रसंस्करण और मांग पूर्ति क्षमता का निर्माण किया जा सके।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
कोर उद्योगों में संकुचन
प्रीलिम्स के लिये:औद्योगिक उत्पादन सूचकांक, कोर उद्योग मेन्स के लिये:कोर उद्योगों की वृद्धि में संकुचन का कारण एवं प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लगातार चौथे माह अर्थात जून 2020 तक, अनुबंधित आठ कोर उद्योगों (कोयला, कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली) के उत्पादन में 15 प्रतिशत की कमी दर्ज़ की गई है।
प्रमुख बिंदु:
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक ( Index of Industrial Production-IIP) में आठ कोर उद्योगों का योगदान 40.27 प्रतिशत है।
- उत्पादन में कुल संकुचन:
- पिछले वर्ष की समान अवधि अर्थात अप्रैल-जून 2019 में 3.4 प्रतिशत की सकारात्मक उत्पादन वृद्धि दर की तुलना में अप्रैल-जून 2020 की समयावधि में इन क्षेत्रों में 24.6 प्रतिशत की दर से उत्पादन वृद्धि में कमी दर्ज़ की गई है।
- मई 2020 तक उद्योगों के उत्पादन में 22 प्रतिशत की कमी देखी गई है। हालाँकि जून 2020 में यह संकुचन 15 प्रतिशत था, जो कुछ आर्थिक सुधार को इंगित करता हैं।
- अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि कोर उद्योगों के उत्पादन वृद्धि में यह नकारात्मक प्रवृत्ति कम से कम दो महीने और बनी रहेगी।
- क्षेत्रवार प्रदर्शन
- केवल उर्वरक उद्योग एक ऐसा उद्योग है जिसमें जून 2019 की तुलना में जून, 2020 में 4.2 प्रतिशत की वास्तविक वृद्धि दर्ज़ की गई है।
- हालाँकि, उर्वरक उद्योग में यह वृद्धि मई 2020 की 7.5 प्रतिशत की वृद्धि दर से कम है फिर भी कृषि क्षेत्र में यह सकारात्मक दृष्टिकोण को प्रदर्शित करती है जिसमें सामान्य मानसून में अच्छी खरीफ फसल की उम्मीद की जा सकती है।
- अन्य सभी सात सेक्टर/क्षेत्रों कोयला (-15.5 प्रतिशत), कच्चा तेल (-6.0 प्रतिशत), प्राकृतिक गैस (-12 प्रतिशत), रिफाइनरी उत्पाद (-9 प्रतिशत), स्टील (-33.8 प्रतिशत), सीमेंट (-6.9 प्रतिशत), और बिजली (-11प्रतिशत) में जून मे माह में नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई।
- इस्पात उद्योग का उत्पादन क्षेत्र में सर्वाधिक खराब प्रदर्शन रहा है। इस्पात उद्योग के उत्पादन में पिछले वर्ष की तुलना में 33 प्रतिशत की गिरावट दर्ज़ की गई है।
- केवल उर्वरक उद्योग एक ऐसा उद्योग है जिसमें जून 2019 की तुलना में जून, 2020 में 4.2 प्रतिशत की वास्तविक वृद्धि दर्ज़ की गई है।
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक:
- औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (Index of Industrial Production-IIP) अर्थव्यवस्था के विभिन्न उद्योग समूहों में एक निश्चित समय अवधि में विकास दर को प्रदर्शित करता है।
- इसका संकलन मासिक आधार पर राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office-NSO) सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation) द्वारा किया जाता है।
- IIP एक समग्र संकेतक है जो वर्गीकृत किये गए उद्योग समूहों की वृद्धि दर को मापता है जिनमें शामिल है:
- व्यापक क्षेत्र- खनन, विनिर्माण और बिजली।
- उपयोग आधारित क्षेत्र- मूलभूत वस्तुएँ, पूँजीगत वस्तुएँ और मध्यवर्ती वस्तुएँ शामिल हैं।
- IIP में शामिल आठ कोर उद्योग क्षेत्रों की वस्तुएँ अपने कुल भार का लगभग 40 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करती हैं।
- आठ कोर उद्योग घटते भारांश के क्रम में: रिफाइनरी उत्पाद> विद्युत> इस्पात> कोयला> कच्चा तेल> प्राकृतिक गैस> सीमेंट> उर्वरक।
- IIP के आकलन के लिये आधार वर्ष 2011-2012 है।
IIP का महत्व:
- IIP उत्पादन की भौतिक मात्रा पर माप है।
- इसका उपयोग नीति-निर्माण के लिये वित्त मंत्रालय, भारतीय रिजर्व बैंक सहित अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा किया जाता है।
- IIP, त्रैमासिक और अग्रिम सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के अनुमानों की गणना के लिये अत्यंत प्रासंगिक बना हुआ है।
आगे की राह:
- वर्तमान में कोरोना महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था को दी जा रही रियायतों के सकारात्मक प्रभाव लॉकडाउन के नकारात्मक प्रभाव के सापेक्ष प्रभावशाली नहीं है। अतः सरकार को आर्थिक सुधारों को स्थायी बनाने के लिये कोरोनोवायरस महामारी के प्रसार को रोकने के लिये प्राथमिकता दिखानी होगी।