वेतन संहिता विधेयक, 2019
चर्चा में क्यों?
पुराने एवं अप्रचलित श्रम कानूनों को विश्वसनीय तथा भरोसेमंद कानूनों में बदलने के लिये वेतन विधेयक, 2019 लोकसभा ने पारित कर दिया।
प्रमुख बिंदु
- वर्तमान में 17 श्रम कानून 50 से वर्ष से अधिक पुराने हैं तथा इनमें से कुछ तो स्वतंत्रता से पहले के दौर के हैं।
- वेतन विधेयक में शामिल किये गए चार अधिनियमों में से वेतन भुगतान अधिनियम, 1936 स्वतंत्रता से पहले का है तथा न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 भी 71 साल पुराना है। इसके अलावा बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 भी इसमें शामिल किया जा रहा है।
- वेतन विधेयक को 10 अगस्त, 2017 को लोकसभा में पेश किया गया था और वहाँ से इसे संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था, जिसने 18 दिसंबर, 2018 को अपनी सिफारिशें दे दी थीं।
- स्थायी समिति की 24 सिफारिशों में 17 को सरकार ने स्वीकार कर लिया था।
- संहिता सभी कर्मचारियों और कामगारों के लिये वेतन के समयबद्ध भुगतान के साथ ही न्यूनतम वेतन सुनिश्चित करती है।
- कृषि मज़दूर, पेंटर, रेस्टोरैंट और ढाबों पर काम करने वाले, चौकीदार आदि असंगठित क्षेत्र के कामगार जो अभी तक न्यूनतम वेतन की सीमा से बाहर थे, उन्हें न्यूनतम वेतन कानून बनने के बाद कानूनी सुरक्षा हासिल होगी।
- विधेयक में सुनिश्चित किया गया है कि मासिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों को अगले महीने की 7 तारीख तक वेतन मिल जाना चाहिये, वहीं जो लोग साप्ताहिक आधार पर काम करते हैं उन्हें सप्ताह के आखिरी दिन और दैनिक कामगारों को उसी दिन पारिश्रमिक मिलना चाहिये।
संहिता की मुख्य विशेषताएँ
- वेतन संहिता सभी कर्मचारियों के लिये क्षेत्र और वेतन सीमा पर ध्यान दिये बिना न्यूनतम वेतन और वेतन के समय पर भुगतान को सार्वभौमिक बनाती है।
- वर्तमान में न्यूनतम वेतन अधिनियम और वेतन का भुगतान अधिनियम दोनों को एक विशेष वेतन सीमा से कम और अनुसूचित रोज़गारों में नियोजित कामगारों पर ही लागू करने के प्रावधान हैं।
- इस विधेयक से हर कामगार के लिये भरण-पोषण का अधिकार सुनिश्चित होगा और मौजूदा लगभग 40 से 100 प्रतिशत कार्यबल को न्यूनतम मज़दूरी के विधायी संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।
- इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि हर कामगार को न्यूनतम वेतन मिले, जिससे कामगार की क्रय शक्ति बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था में प्रगति को बढ़ावा मिलेगा।
- न्यूनतम जीवन यापन की स्थितियों के आधार पर वेतन मिलने से देश में गुणवत्तापूर्ण जीवन स्तर को बढ़ावा मिलेगा और लगभग 50 करोड़ कामगार इससे लाभान्वित होंगे।
- इस विधेयक में राज्यों द्वारा कामगारों को वेतन का भुगतान डिजिटल तरीकों से करने की परिकल्पना की गई है।
- विभिन्न श्रम कानूनों में वेतन की 12 परिभाषाएं हैं, जिन्हें लागू करने में कठिनाइयों के अलावा मुकदमेबाजी को भी बढ़ावा मिलता है।
- परिभाषा को सरल बनाया गया है, जिससे मुकदमेबाजी कम होने और नियोक्ता के लिये इसका अनुपालन सरलता करने की उम्मीद है।
- इससे प्रतिष्ठान भी लाभान्वित होंगे, क्योंकि रजिस्टरों की संख्या, रिटर्न और फॉर्म आदि न केवल इलेक्ट्रॉनिक रूप से भरे जा सकेंगे और उनका रख-रखाव किया जा सकेगा, बल्कि यह भी कल्पना की गई है कि कानूनों के माध्यम से एक से अधिक नमूना (Specimen) निर्धारित नहीं किया जाएगा।
- वर्तमान में अधिकांश राज्यों मेंअलग-अलग न्यूनतम वेतन हैं। वेतन संहिता के माध्यम से न्यूनतम वेतन निर्धारण की प्रणाली को सरल और युक्तिसंगत बनाया गया है।
- ज़गार के विभिन्न प्रकारों को अलग करके न्यूनतम वेतन के निर्धारण के लिये एक ही मानदंड बनाया गया है।
- न्यूनतम वेतन निर्धारण मुख्य रूप से स्थान और कौशल पर आधारित होगा।
- इससे देश में मौजूद 2000 न्यूनतम वेतन दरों में कटौती होगी और न्यूनतम वेतन की दरों की संख्या कम होगी।
- निरीक्षण प्रक्रिया में अनेक परिवर्तन किये गए हैं। इनमें वेब आधारित रेंडम कम्प्यूटरीकृत निरीक्षण योजना, अधिकार क्षेत्र मुक्त निरीक्षण, निरीक्षण के लिये इलेक्ट्रॉनिक रूप से जानकारी मांगना और जुर्मानों का संयोजन आदि शामिल हैं।
- सभी परिवर्तनों से पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ श्रम कानूनों को लागू करने में सहायता मिलेगी।
- ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि कम समयावधि के कारण कामगारों के दावों को आगे नहीं बढ़ाया जा सका। अब सीमा अवधि को बढ़ाकर तीन वर्ष किया गया है और न्यूनतम वेतन, बोनस, समान वेतन आदि के दावे दाखिल करने को एक समान बनाया गया है। फिलहाल दावों की अवधि 6 महीने से 2 वर्ष के बीच है।
- इसलिये यह कहा जा सकता है कि न्यूनतम वेतन के वैधानिक संरक्षण करने को सुनिश्चित करने तथा देश के 50 करोड़ कामगारों को समय पर वेतन भुगतान होने के लिये यह एक ऐतिहासिक कदम है। यह कदम जीवन सरल बनाने और व्यापार को ज्यादा आसान बनाने के लिये भी वेतन संहिता के माध्यम से उठाया गया है।
स्रोत: PIB
अंतर्राष्ट्रीय समाधान समझौतों पर संयुक्त राष्ट्र संधि
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अंतर्राष्ट्रीय समाधान समझौतों पर संयुक्त राष्ट्र संधि (United Nations Convention on International Settlement Agreements-UNISA) पर हस्ताक्षर को मंजूरी दे दी है।
क्या है UNISA?
- संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसंबर, 2018 को अंतर्राष्ट्रीय समाधान समझौतों पर संयुक्त राष्ट्र संधि को अपनाया था।
- महासभा ने यह अधिकृत किया था कि यह कन्वेंशन 7 अगस्त, 2019 को सिंगापुर में होने वाले एक समारोह तक हस्ताक्षर के लिये खुला रहेगा और इसे ‘सिंगापुर कन्वेंशन ऑन मिडिएशन’ (Singapore Convention on Mediation) के रूप में जाना जाएगा।
- यह संधि मध्यस्थता के परिणामस्वरूप होने वाले अंतर्राष्ट्रीय समाधान समझौतों को लागू करने के लिये एक समान और कुशल तंत्र उपलब्ध कराती है।
संधि पर हस्ताक्षर करने के लाभ
इस संधि पर हस्ताक्षर से निवेशकों का आत्मविश्वास बढ़ेगा और विदेशी निवेशकों में वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution-ADR) पर अंतर्राष्ट्रीय प्रक्रिया के पालन में भारत की प्रतिबद्धता को लेकर विश्वास पैदा होगा।
भारत में ADR तंत्र को मजबूत करने के लिये उठाए जा रहे कदम
- अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता (International Commercial Arbitration) को प्रोत्साहन देने और मध्यस्थता के लिये एक व्यापक तंत्र विकसित करने के उद्देश्य से सरकार एक वैधानिक संस्था के रूप में नई दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (New Delhi International Arbitration Centre-NDIAC) स्थापित करने जा रही है।
- इसके अतिरिक्त वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 में संशोधन कर दिया गया है और मध्यस्थता व सुलह अधिनियम, 1996 में संशोधन के लिये वैधानिक प्रक्रिया फिलहाल जारी है।
- कुछ चुनिंदा श्रेणी के मामलों में पूर्व-संस्थान स्तर पर मध्यस्थता को अनिवार्य बनाने के उद्देश्य से वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 में एक नया अध्याय (3A) भी शामिल किया गया है।
- उपरोक्त सभी पहलों का उद्देश्य भारत में मध्यस्थता के ADR तंत्र के माध्यम से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक विवादों के समाधान को प्रोत्साहन देना है।
क्या होता है वैकल्पिक विवाद समाधान या ADR?
वैकल्पिक विवाद समाधान से अभिप्राय ऐसे तंत्र से है जिसमें सुलह या मध्यस्थता के माध्यम से विवाद का निपटारा किया जा सकता है।
स्रोत: पीआईबी
भारतीय अर्थव्यवस्था सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था: विश्व बैंक
चर्चा में क्यों?
विश्व बैंक के वर्ष 2018 के आँँकड़ों के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था 2.73 ट्रिलियन डॉलर के साथ विश्व की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, विदित हो कि वर्ष 2017 के आँँकड़ों के अनुसार भारत का स्थान छठा था।
प्रमुख बिंदु:
- वर्ष 2017 के आँँकड़ों में भारत को छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बताया गया था, लेकिन नवीनतम आँँकड़ों के अनुसार उस वर्ष भारत वास्तव में पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया था।
- वर्ष 2017 में भारत की अर्थव्यवस्था का आकार 2.65 ट्रिलियन डॉलर था, वहीं ब्रिटेन और फ्राँँस की अर्थव्यवस्था का आकार क्रमशः 2.64 ट्रिलियन डॉलर और 2.59 ट्रिलियन डॉलर था।
- भारत की अर्थव्यवस्था में वर्ष 2017 में 15.72% की तुलना में वर्ष 2018 में डॉलर के संदर्भ में मात्र 3.01% की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई।
- दूसरी ओर इसी अवधि के दौरान ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था 0.75% के संकुचन के साथ 6.81% बढ़ी और फ्राँँस की अर्थव्यवस्था 4.85% की तुलना में 7.33% बढ़ी।
- अर्थशास्त्रियों ने इस प्रकार की स्थिति के लिये डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए की अस्थिरता को ज़िम्मेदार ठहराया।
- भारत की अर्थव्यवस्था रुपए के संदर्भ में वर्ष 2017-18 की 11.3% वृद्धि की तुलना में वर्ष 2018-19 में 11.2% रह गई।
- IHS मार्किट (Markit) की हालिया रिपोर्ट ने भारत की अर्थव्यवस्था के इस वर्ष विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की संभावना व्यक्त की है। इस प्रकार भारत, ब्रिटेन से आगे निकल जाएगा।
- इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भारत की अर्थव्यवस्था वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की क्षमता के साथ जापान की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़कर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है।
- वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लिये आर्थिक सर्वेक्षण ने अनुमान लगाया है कि भारत को एक वर्ष में चालू कीमतों (Current Prices) पर 12% की वृद्धि करनी होगी। भारतीय रिज़र्व बैंक की मुद्रास्फीति की वृद्धि दर के अनुमानों को 4% मानते हुए सर्वेक्षण में कहा गया है कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये एक वर्ष में अर्थव्यवस्था की स्थिर कीमतों (Constant Prices) में 8% की वृद्धि की आवश्यकता होगी।
- स्थिर कीमतों (Constant Prices) पर भारत की अर्थव्यवस्था में वर्ष 2018-19 के दौरान 6.8% की वृद्धि देखी गई है। चालू वित्त वर्ष में स्थिर कीमतों में 7% तक की वृद्धि का अनुमान है।
विकास दर
- भारत की विकास दर वर्ष 2018-19 में 6.8% रही। वर्ष 2017-2018 के दौरान भारत की विकास दर 7.2%थी।
- वैश्विक स्तर पर विकास दर वर्ष 2017-18 के दौरान 3.8% थी, जो 2018-19 के दौरान घटकर 3.6% हो गई।
- यह वैश्विक गिरावट उभरते बाज़ार और विकासशील देशों में मंदी, अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वार, चीन की कठोर ऋण नीति और अधिकांश उन्नत देशों में मौद्रिक नीति सामान्य होने के पश्चात् आई है।
भारत की विकास दर कम होने के कारण
- भारत की विकास दर में कमी कृषि, व्यापार, होटल, परिवहन, भंडारण, लोक प्रशासन और रक्षा के क्षेत्रों में कम वृद्धि के कारण हुई।
- रबी फसल के दौरान कम फसल क्षेत्र का उपयोग हुआ, साथ ही खाद्यान्नों कीमतों में कमी आने के कारण किसानों ने कम फसल उपजाई।
- चुनाव प्रक्रिया ने भी भारत की विकास दर को प्रभावित किया।
- कृषि और उद्योग क्षेत्रों में शुरुआती तिमाहियों के बाद अंतिम तिमाहियों में वृद्धि दर कम हो गई।
- विनिर्माण क्षेत्र ऑटो क्षेत्र की मंदी के कारण प्रभावित हुआ और अंततः विनिर्माण क्षेत्र ने उद्योग क्षेत्रों को भी प्रभावित किया।
- गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के क्षेत्र में दबाव ने भी उपभोग वित्त पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। उपभोग की कमी ने विकास दर को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया।
- भारत का चालू खाता घाटा वर्ष 2017-18 में GDP के 1.9% से बढ़कर दिसंबर 2018 में 2.6% पर आ गया। चालू खाता घाटा बढ़ने का मुख्य कारण अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि थी।
- भारत का व्यापार घाटा वर्ष 2017-18 में 162.1 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 184 बिलियन डॉलर हो गया।
- बैंकिंग क्षेत्र में दोहरी बैलेंस शीट समस्या ने भी कॉर्पोरेट क्षेत्र को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया।
उपरोक्त कारणों की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर धीमी रही; लेकिन भारत की विकास दर को प्रभावित करने वाले ये कारण अस्थायी प्रकृति के हैं। इसलिये जल्द ही इन समस्याओं के निदान के बाद भारत वर्ष 2025 में 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर हो जाएगा।
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ट
कंपनी (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित
चर्चा में क्यों?
हाल ही में में राज्यसभा ने कंपनी (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित कर दिया। यह विधेयक कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility-CSR) के मानदंडों को कठोर बनाने और कंपनी कानून के नियमों का पालन न करने वालों के लिये सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करता है।
प्रमुख बिंदु
- उल्लेखनीय है कि लोकसभा ने इस विधेयक को 26 जुलाई, 2019 को ही पारित कर दिया था।
- इस विधेयक में वर्ष 2018 के अध्यादेश के सभी प्रावधानों के साथ ही नए संशोधन भी शामिल किये गए हैं।
- इस विधेयक में मुख्य परिवर्तन कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के व्यय से संबंधित प्रावधान में किया गया है जिसके अनुसार, कंपनी को CSR का बचा हुआ पैसा एक विशेष खाते में रखना अनिवार्य होगा।
- यह विधयेक कंपनी रजिस्ट्रार को अधिकार देता है कि वह कंपनियों के रजिस्टर से उस कंपनी का नाम हटाने के लिये कार्रवाई शुरू करे, जो कंपनी कानून के अनुसार किसी भी व्यवसाय या कार्य को नहीं कर रही है।
- यह विधेयक 16 छोटे अपराधों को फिर से सिविल डिफ़ॉल्ट की श्रेणी में रखने और केंद्र सरकार को वित्तीय वर्ष बदलने के लिये प्राप्त आवेदनों के निस्तारण हेतु कार्यों के हस्तांतरण का भी प्रावधान करता है।
- यह प्रावधान विदेशी कंपनियों की सहायक कंपनियों को एकाउंटिंग सुविधा के लिये अपने वित्तीय वर्ष को भारत के वित्तीय वर्ष के अतिरिक्त उक्त विदेशी कंपनी के अनुसार किसी अन्य देश के वित्तीय वर्ष को अपनाने की अनुमति प्रदान करेगा।
- यह विधेयक सार्वजनिक कंपनी को निजी कंपनी में परिवर्तित करने हेतु आवश्यक शक्तियों को NCLT से केंद्र सरकार को स्थानांतरित करने के साथ-साथ राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (NFRA) की कुछ शक्तियों के संबंध में अधिक स्पष्टता प्रदान करता है।
स्रोत: द हिंदू
पोषक तत्त्वों पर आधारित उर्वरक सब्सिडी
चर्चा में क्यों?
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने वर्ष 2019-20 के लिए फॉस्फोरस और पोटाश उर्वरकों के लिये पोषण आधारित सब्सिडी (NBS) दरों के निर्धारण हेतु उर्वरक विभाग के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है।
प्रमुख बिंदु
- NBS में अनुमोदित दरें नाइट्रोजन के लिये 18.90 रुपए प्रति किलोग्राम, फॉस्फोरस के लिये 15.21 रुपये प्रति किलोग्राम, पोटाश के लिये 11.12 रुपये प्रति किलोग्राम और सल्फर के लिये 3.56 रुपये प्रति किलोग्राम होंगी।
- इससे विनिर्माता और आयातक उर्वरकों और उर्वरक सामग्रियों के लिये आपूर्ति अनुबंध देने में और वर्ष 2019-20 के दौरान किसानों को उर्वरक उपलब्ध कराने में समर्थ होंगे।
- पोटाश और फॉस्फोरस युक्त उर्वरकों पर वर्ष 2019-20 के दौरान सब्सिडी जारी करने के लिये अनुमानित व्यय 22875.50 करोड़ रुपए होगा।
- सरकार उर्वरक विनिर्माताओं/आयातकों के माध्यम से किसानों को रियायती दरों पर उर्वरक, यूरिया और 21 ग्रेड के पोटाश और फॉस्फोरस उर्वरक उपलब्ध कराती है।
- पोटाश और फॉस्फोरस उर्वरकों पर सब्सिडी 4 अप्रैल, 2010 से प्रभावी NBS योजना द्वारा नियंत्रित की गई हैं।
पोषक तत्त्वों पर आधारित सब्सिडी (NBS) योजना
- यह योजना उर्वरक और रसायन मंत्रालय के उर्वरक विभाग द्वारा अप्रैल 2010 से लागू की जा रही है।
- NBS के तहत वार्षिक आधार पर तय की गई सब्सिडी की एक निश्चित राशि सब्सिडी वाले फॉस्फेट और पोटाश आधारित उर्वरकों के प्रत्येक ग्रेड पर उसके पोषक तत्त्व के आधार पर प्रदान की जाती है।
स्रोत: PIB
अटल समुदाय नवाचार केंद्र कार्यक्रम की शुरुआत
चर्चा में क्यों?
भारत में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए नीति आयोग के कार्यक्रम अटल नवाचार मिशन के तहत अटल समुदाय नवाचार केन्द्र ( Atal Community Innovation Centre- ACIC) कार्यक्रम की शुरुआत हुई।
प्रमुख बिंदु:
- इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य देश के कम विकसित क्षेत्रों में सामुदायिक नवाचार को प्रोत्साहित करना है।
- ACIC कार्यक्रम विभिन्न समुदायों में उपलब्ध ज्ञान और आधुनिक प्रौद्योगिकी पारितंत्र के बीच एक सेतु का कार्य करेगा, साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था को वर्ष 2024-25 तक 5 ट्रिलियन डॉलर बनाने के लिए नवाचार के प्रयोग पर पर भी जोर दिया जाएगा।
- एक अनुमान के अनुसार भारत अगले 15 वर्षों में जीवाश्म ईंधन का सबसे बड़ा उपभोक्ता होगा, भारत कच्चे तेल के आयात के लिये प्रतिवर्ष 6 लाख करोड़ रुपये खर्च कर रहा है।
- अटल समुदाय नवाचार केंद्र की नवाचार प्रक्रियाओं के माध्यम से जीवाश्म ईंधन के उपयोग तथा इस पर खर्च होने वाले धन में कमी लाई जाएगी।
- वेस्ट टू वेल्थ (Waste to Wealth) विज़न के माध्यम से भी गैर-जीवाश्म और नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग से घरेलू क्षेत्र की ऊर्जा की आवश्यकता को पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है ।
- ACIC कार्यक्रम को पंचायती राज के सभी संस्थानों के साथ जोड़ा जाएगा ताकि ज़मीनी स्तर की रचनात्मकता से उत्पादों/सेवाओं को बेहतर बनाया जा सके। इसके क्रियान्वयन के लिए CSR फंड्स का भी उपयोग किया जाएगा।
- नई पहल से आकांक्षी जिलों, स्तर-2 और स्तर-3 शहरों, जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर राज्यों समेत पूरे देश के प्रतिभाशाली युवाओं व अनुसंधानकर्त्ताओं को नऐ अवसर प्राप्त होगें, साथ ही यह कार्यक्रम देश के 484 अल्प विकसित जिलों पर विशेष ध्यान केन्द्रित करेगा।
यह कार्यक्रम देश को नवाचार और प्रौद्योगिकी आधारित स्टार्टअप राष्ट्र के रूप में स्थापित करेगा। इससे भारत की वैश्विक नवाचार सूचकांक में स्थिति और बेहतर होगी।
अटल नवाचार मिशन:
- अटल नवाचार मिशन (AIM) देश में नवाचार और उद्यमिता की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार द्वारा की गई एक प्रमुख पहल है।
- AIM का उद्देश्य देश में नवाचार परितंत्र पर नज़र रखना और नवाचार परितंत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिये एकछत्र या बृहद संरचना को सृजित करना है, ताकि विभिन्न कार्यक्रमों के ज़रिये समूचे नवाचार चक्र पर विशिष्ट छाप छोड़ी जा सके।
- अटल टिंकरिंग लैबोरेटरीज़ (ATL) अन्वेषकों और अटल इन्क्यूबेशन केंद्रों का सृजन करने के साथ-साथ पहले से ही स्थापित इन्क्यूबेशन केंद्रों को आवश्यक सहायता मुहैया कराती है, ताकि नवाचारों को बाज़ार में उपलब्ध कराना और इन नवाचारों से जुड़े उद्यमों की स्थापना करना सुनिश्चित हो सके।
स्रोत: PIB
कैंसर के उपचार में सहायक उचित आहार प्रबंधन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘नेचर’ नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि उचित आहार प्रबंधन से कैंसर के उपचार में सहायता मिल सकती है।
प्रमुख बिंदु :
- कैंसर से संबंधित इस अध्ययन में यह पाया गया कि ‘रेड मीट’ और अंडों में पाए जाने वाले अमीनो एसिड का सेवन बंद कर देने से चूहों में कैंसर के उपचार में काफी मदद मिलती है और यह ट्यूमर के बढ़ने की गति पर भी अंकुश लगाता है।
- हम जो भोजन करते हैं वह हमारे उपापचय (Metabolism) को कैसे परिवर्तित करता है और इन परिवर्तनों का हमारे कोशिकीय उपापचय में इस परिवर्तन का ट्यूमर के विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है, ये दोनों ही बातें एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।
- कीमोथेरेपी (Chemotherapy) की कम मात्रा का कोलोरेक्टल कैंसर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन अध्ययन में पाया गया कि यदि इसके साथ एक निश्चित मात्रा में अमीनो एसिड मिलाया जाए तो यह ट्यूमर कोशिकाओं के विकास क्रम को रोक सकता है।
- कोलोरेक्टल कैंसर पेट या मलाशय का कैंसर है, जो पाचन तंत्र के निचले सिरे पर स्थित होता है।
- इसी तरह, नरम ऊतक वाले सारकोमा (Sarcoma) कैंसर के मामले में भी अमीनो एसिड की निश्चित मात्रा और विकिरण उपचार (Radiation Therapy) को एक साथ मिला दिया जाए तो यह भी ट्यूमर के आकार को कम करने में मदद कर सकता है।
क्या होता है कैंसर?
- कैंसर से अभिप्राय शरीर के भीतर कुछ कोशिकाओं का अनियंत्रित होकर बढ़ना है।
- अनुपचारित कैंसर आसपास के सामान्य ऊतकों या शरीर के अन्य हिस्सों में फैल सकता है तथा इसके कारण बहुत से गंभीर रोग, विकलांगता यहाँ तक कि मृत्यु भी हो सकती है।
- मूलतः कैंसर को प्राथमिक ट्यूमर कहा जाता है।
- शरीर के दूसरे हिस्से में फैले कैंसर को मेटास्टैटिक या माध्यमिक कैंसर कहा जाता है।
- मेटास्टैटिक कैंसर में प्राथमिक कैंसर के समान ही कैंसर कोशिकाएँ पाई जाती हैं।
- आमतौर पर मेटास्टैटिक कैंसर शब्द का प्रयोग ठोस ट्यूमर को इंगित करने के लिये किया जाता है जो शरीर के दूसरे हिस्सों में फैलता है।
स्रोत: द हिंदू
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (1 अगस्त)
- रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 28 से 30 जुलाई तक मोजाम्बिक की आधिकारिक यात्रा पर गए थे। रक्षा मंत्री बनने के बाद राजनाथ सिंह की यह पहली विदेश यात्रा और भारत के किसी रक्षा मंत्री की पहली मोजाम्बिक यात्रा थी। भारत के रक्षा मंत्री ने मोजाम्बिक की राजधानी मापुतो में प्रधानमंत्री कार्लोस अगोस्तिन्हो डो रोसैरियो से वार्ता की तथा अपने समकक्ष अटान्सिओ सल्वाडोर एम. तुमुके के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता में हिस्सा लिया। वार्ता के बाद भारत और मोजाम्बिक के बीच असैन्य पोत नौवहन से जुड़ी जानकारी साझा करने तथा जल सर्वेक्षण (हाइड्रोग्राफी) में सहयोग पर दो समझौते हुए। दोनों समझौतों से भारत-मोजाम्बिक के बीच जारी रक्षा सहयोग को और मज़बूती मिलेगी तथा साथ ही इस यात्रा से मोजाम्बिक और भारत के बीच रक्षा सहयोग बढ़ेगा और ऐसी संभावित भागीदारियों से हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा। इस दौरान भारत के रक्षा मंत्री ने संचार उपकरण सहयोग का ऐलान किया तथा तस्करी, आतंकवाद, पायरेसी, अवैध शिकार आदि गैर पारंपरिक चुनौतियों से बचने के लिये मिलकर काम करने और समुद्री क्षेत्र में व्यापक सहयोग के महत्त्व का उल्लेख किया। भारत ने मोजाम्बिक को दो फास्ट इंटरसेप्टर बोट्स भी प्रदान कीं।
- इंटरनेशनल यूनियन ऑफ जियोलॉजिकल साइंस (IUGS) की कार्यकारी समिति ने ग्लोबल हैरिटेज स्टोन रिसोर्स के भारतीय शोध दल के प्रस्ताव को मानते हुए मकराना के मार्बल को विश्व विरासत का दर्जा दे दिया। मकराना मार्बल भूगर्भीय दृष्टि से पूर्व केम्ब्रियन काल की कायांतरित चट्टान है, जो मूलत: चूना पत्थर के कायांतरण से बनती है। इसे आम बोलचाल में संगमरमर कहते हैं। मकराना का संगमरमर विश्व की सबसे उत्कृष्ट श्रेणी में से एक माना जाता है। यह विशुद्ध रूप से केल्साइट खनिज से बना होता है। इसमें अशुद्धियाँ बिल्कुल नहीं होने के कारण यह पूर्णत: सफेद होता है और समय के साथ बदरंग नहीं होता। IUGS ने मकराना मार्बल के अलावा स्पेन के एल्पेड्रेट ग्रेनाइट और मेकिइल मार्बल, UK के बाथ स्टोन, इटली के पिएट्रा सिरेना और रोजा बीटा ग्रेनाइट को इस सूची में शामिल किया है। ज्ञातव्य है कि पृथ्वी को बचाने और ज़मीन के नीचे खोज के लिये वैश्विक सहयोग से वर्ष 1961 में IUGS का गठन किया गया था तथा 121 देश इसके सदस्य हैं।
- ओडिशा को अपने ‘रसगुल्ले’ के लिये बहुप्रतीक्षित भौगोलिक संकेत (GI) टैग मिल गया है। चेन्नई स्थित भौगोलिक संकेत रजिस्ट्रार ने वस्तु भौगोलिक संकेत (पंजीकरण एवं संरक्षण), कानून 1999 के तहत इस मिठाई को ‘ओडिशा रसगुल्ला’ के तौर पर दर्ज करने का प्रमाणपत्र जारी किया। यह प्रमाणपत्र 22 फरवरी, 2028 तक वैध रहेगा। गौरतलब है कि GI टैग किसी वस्तु के किसी खास क्षेत्र या इलाके में विशिष्टता होने की मान्यता देता है। वर्ष 2015 से ओडिशा और पश्चिम बंगाल के बीच रसगुल्ले का मूल स्थान होने को लेकर विवाद चलता रहा है। पश्चिम बंगाल को वर्ष 2017 में उसके ‘रसगुल्ले’ के लिये GI टैग प्राप्त हुआ था। इसके अगले साल, ओडिशा लघु उद्योग निगम लिमिटेड (OAIC) ने रसगुल्ला कारोबारियों के समूह उत्कल मिष्ठान व्यवसायी समिति के साथ मिलकर ‘ओडिशा रसगुल्ले’ को GI टैग देने के लिये आवेदन किया था। ओडिशा में ‘रसगुल्ला’ भगवान जगन्नाथ के लिये निभाई जाने वाली राज्य की सदियों पुरानी परंपराओं का हिस्सा रहा है और इसका उल्लेख 15वीं सदी के उड़िया काव्य ‘दांडी रामायण’ में भी है।
- देश में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) ने उर्वरक क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों की उनके पर्यावरण संबंधी प्रदर्शन के लिये पहली बार ग्रीन रेटिंग जारी की है। देश में काम कर रही 28 उर्वरक कंपनियों में से जगदीशपुर की इंडो-गल्फ फर्टिलाइजर्स को पर्यावरण के प्रति सबसे अच्छा प्रदर्शन के लिये चार-पत्ती अवार्ड दिया गया है। गुजरात की कृषक भारती को-ऑपरेटिव कंपनी सहित 15 कंपनियों को तीन-पत्ती अवार्ड तथा बठिंडा की नेशनल फर्टिलाइज़र्स लिमिटेड सहित तीन कंपनियों को दो-पत्ती और पानीपत की नेशनल फर्टिलाइज़र्स लिमिटेड सहित चार कंपनियों को एक-पत्ती अवार्ड दिया गया है। इन कंपनियों को छह श्रेणियों में बाँटा गया और इनके लिये 50 पैरामीटर तय किये गए। ग्रेन-बाई-ग्रेन नामक इस रिपोर्ट में भारत के उर्वरक उद्योग के पर्यावरण संबंधी परफॉरमेंस का व्यापक आकलन किया गया है। ग्रीन रेटिंग का यह सातवाँ प्रोजेक्ट है। इससे पहले पल्प एवं पेपर, ऑटोमोबाइल, क्लोरिक क्षार, सीमेंट, लौह तथा इस्पात एवं थर्मल पावर सेक्टर को ग्रीन रेटिंग जारी की गई है। आपको बता दें कि वर्ष 1997 में पहली बार ग्रीन रेटिंग जारी की गई थी, जिसका उद्देश्य भारतीय कंपनियों द्वारा पर्यावरण के प्रति निभाई जा रही ज़िम्मेवारियों का स्वतंत्र एजेंसी के तौर पर आकलन करना था।
- छत्तीसगढ़ में माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च, ट्रिपल IT नया रायपुर और सीजीनेट स्वर फाउंडेशन ने एक साल तक काम करने के बाद एक आदिवासी रेडियो एप का विकास किया है। इस एप में टेक्स्ट टू स्पीच तकनीक का उपयोग किया गया है, जिसमें लिखे हुए समाचार को मशीन की मदद से सुना भी जा सकेगा। गोंडी जैसी आदिवासी भाषाओं, जिसे बहुत से लोग पढ़ नहीं सकते, उनके लिये यह एप बहुत उपयोगी होगा। माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च की टीम हिंदी एवं अन्य भाषाओं में मशीन की मदद से अनुवाद करने की विधि बनाने पर भी काम कर रही है। इस कार्य की शुरुआत के लिये सीजीनेट स्वर ने गोंडी में बच्चों की 400 कहानियों का अनुवाद किया है। हिंदी से गोंडी में अनुवाद की गई कहानियों के इन 10 हजार वाक्यों को अब मशीन से अनुवाद करने के लिये कम्प्यूटर में फीड किया जाएगा। इस प्रयोग के सफल होने के बाद मशीन हिंदी और अन्य भाषाओं से गोंडी में तथा गोंडी से अन्य भाषाओं में अनुवाद कर सकेगी, जैसा कि अन्य उन्नत भाषाओं में होता है।