ट्रांस फैट का जोखिम
चर्चा में क्यों?
हाल ही में WHO की ट्रांस फैट उन्मूलन पर जारी पहली वार्षिक वैश्विक प्रगति रिपोर्ट के अनुसार, यूरोपीय संघ सहित अन्य 24 देशों ने ट्रांस फैट नियमों को अपनाया है जिन्हें अगले दो वर्षों में लागू किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- उल्लेखनीय है कि विश्व के छह देशों ने ट्रांस फैट के औद्योगिक उत्पादन को वर्ष 2018 से प्रतिबंधित कर दिया है लेकिन अभी भी लगभग 110 से अधिक देशों में इस हानिकारक यौगिक के खिलाफ कोई नियम नहीं है।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, प्रतिदिन खाद्य पदार्थों में ट्रांस फैट के सेवन से लगभग पाँच अरब लोग खतरे में हैं।
- ट्रांस फैट के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग पाँच लाख लोगों की मौत हो रही है, ये आँकड़े तब पाए जा रहे हैं जब इस ट्रांस फैट को खाद्य आपूर्ति से हटा दिया गया है।
- इस रिपोर्ट में औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट के वैश्विक उन्मूलन के लिये वर्ष 2023 तक निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु सभी देशों में उचित कार्रवाई की सिफारिश की गई है।
- WHO ने REPLACE एक्शन पैकेज का चरण-दर-चरण कार्यान्वयन मॉड्यूल जारी किया, जिसमें देशों को उनके खाद्य पदार्थों से औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट को कम करने तथा लोगों के जीवन बचाने के बारे में उचित मार्गदर्शन है।
- औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट के वैश्विक उन्मूलन के लिये किये जाने वाले प्रयासों में तेज़ी आई है।
- वर्तमान में दुनिया के 28 देशों में से लगभग एक-तिहाई आबादी इसके हानिकारक प्रभाव से सुरक्षित है।
- इतने प्रयासों के बाद भी दुनिया की दो-तिहाई से अधिक आबादी में ट्रांस फैट से सुरक्षा का अभाव है।
- वार्षिक रिपोर्ट में शामिल कुछ मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
- जनवरी 2019 में इस वसा के उन्मूलन के लिये थाईलैंड ने सर्वोत्तम अभ्यास नियम लागू किये।
- यूरोपीय संघ ने खाद्य पदार्थों में इस वसा का उपयोग नहीं करने के लिये वर्ष 2018 के सर्वोत्तम अभ्यास नियमों को अपनाया। वर्ष 2021 तक नियम लागू किये जाएंगे।
- भारत ने भी इस वसा को 2% तक सीमित करने के लिये दिसंबर 2018 में मसौदा नियमों को जारी किया।
- तुर्की ने इस वसा के खिलाफ जनवरी 2019 में सर्वश्रेष्ठ अभ्यास नियमों का मसौदा जारी किया।
- 40 से अधिक देशों ने ट्रांस फैट को सीमित करने के लिये प्रयास शुरू किये।
- ट्रांस फैट के खिलाफ अधिकांश नीतिगत कार्रवाई उच्च आय वाले देशों में हुई है। किसी निम्न आय वाले देश और महज़ तीन निम्न-मध्य-आय वाले देशों (भारत, किर्गिज़स्तान और उज़्बेकिस्तान) में ही इसके लिये नीतियाँ नहीं हैं।
- हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय खाद्य और पेय पदार्थ गठबंधन की खाद्य कंपनियों ने वर्ष 2023 तक अपने सभी उत्पादों से औद्योगिक ट्रांस फैट को खत्म करने की प्रतिबद्धता जाहिर की है।
ट्रांस फैट
- तरल वनस्पति तेलों को अधिक ठोस रूप में परिवर्तित करने तथा खाद्य भंडारण एवं उपयोग अवधि (Shelf Life) में वृद्धि करने के लिये इन तेलों का हाइड्रोजनीकरण किया जाता है, इस प्रकार संतृप्त वसा या ट्रांस फैट का निर्माण होता है।
- ट्रांस फैट बड़े पैमाने पर वनस्पति, नकली या कृत्रिम मक्खन (Margarine), विभिन्न बेकरी उत्पादों में मौजूद होते हैं तथा ये तले हुए या पके हुए खाद्य पदार्थों में भी पाए जा सकते हैं।
- FSSAI वर्ष 2022 तक चरणबद्ध तरीके से औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट एसिड को 2% से कम करने के लिये प्रतिबद्ध है।
ट्रांस फैट के उन्मूलन की WHO की योजना
- मई 2018 में WHO ने वर्ष 2023 तक वैश्विक खाद्य आपूर्ति से औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट को खत्म करने के लिये एक व्यापक योजना REPLACE की शुरुआत की थी।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय पैमानों के अनुसार, Total Energy Intake में ट्रांस फैट्स की मात्रा 1 फीसदी से भी कम होनी चाहिये।
- REPLACE खाद्य आपूर्ति से औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट के त्वरित, पूर्ण और दीर्घकालीन उन्मूलन को सुनिश्चित करने के लिये छह रणनीतिक कार्रवाइयों का प्रावधान करता है:
- RE- (Review): औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस वसा के आहार स्रोतों और आवश्यक नीति परिवर्तन हेतु परिदृश्य की समीक्षा।
- P- (Promote): स्वस्थ वसा और तेलों के माध्यम से औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट के प्रतिस्थापन को बढ़ावा देना।
- L- (Legislate): औद्योगिक तौर पर उत्पादित ट्रांस फैट को खत्म करने के लिये कानून या विनियामक कार्यवाही को लागू करना।
- A- (Assess): खाद्य आपूर्ति में ट्रांस फैट सामग्री तथा लोगों द्वारा ट्रांस फैट के उपभोग का आकलन और निगरानी करना।
- C- (Create): नीति निर्माताओं, उत्पादकों, आपूर्तिकर्त्ताओं और जनता के बीच ट्रांस फैट के नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभाव के बारे में जागरूकता पैदा करना।
- E- (Enforce): नीतियों और विनियमों के अनुपालन को लागू करना।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशेष एजेंसी है, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य (Public Health) को बढ़ावा देना है।
- इसकी स्थापना 7 अप्रैल, 1948 को हुई थी। इसका मुख्यालय जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में है।
- WHO संयुक्त राष्ट्र विकास समूह (United Nations Development Group) का सदस्य है। इसकी पूर्ववर्ती संस्था ‘स्वास्थ्य संगठन’ लीग ऑफ नेशंस की एजेंसी थी।
- यह दुनिया में स्वास्थ्य संबंधी मामलों में नेतृत्व प्रदान करने, स्वास्थ्य अनुसंधान एजेंडा को आकार देने, नियम और मानक तय करने, प्रमाण आधारित नीतिगत विकल्प पेश करने, देशों को तकनीकी समर्थन प्रदान करने तथा स्वास्थ्य संबंधी रुझानों की निगरानी एवं आकलन करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- यह आमतौर पर सदस्य देशों के साथ उनके स्वास्थ्य मंत्रालयों के ज़रिये जुड़कर काम करता है।
नगालैंड के स्थानीय नागरिकों का रजिस्टर (-RINN)
चर्चा में क्यों?
असम सरकार की तर्ज़ पर नगालैंड सरकार ने भी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens-NRC) तैयार करने का निर्णय लिया है।
प्रमुख बिंदु
- नगालैंड के गृह आयुक्त ने स्थानीय निवासियों की पहचान के संदर्भ में नगालैंड के स्थानीय नागरिकों का रजिस्टर (Register of Indigenous Inhabitants of Nagaland-RIIN) तैयार करने हेतु एक अधिसूचना जारी की है।
- इसका लक्ष्य जाली निवास पत्रों की जाँच करना एवं भारतीय स्थानीय नागरिकों की पहचान कर एक सूची तैयार करना है।
- इस कार्य के लिये नामित टीम (Designated Teams) 10 जुलाई 2019 से शहरी एवं ग्रामीण वार्डों में सर्वेक्षण प्रारंभ करेगी तथा यह कार्य राज्य के गृह आयुक्त की निगरानी में संपन्न होगा। स्थानीय और गैर-स्थानीय लोगों के बारे में जानकारी एकत्र करने हेतु 60 दिनों की समय सीमा तय की गई है।
- इस सर्वेक्षण में ग्रामीण एवं वार्ड स्तर पर स्थानीय निवासियों संबंधी आधिकारिक रिकॉर्ड के आधार पर सूची तैयार की जाएगी। ग्राम एवं वार्ड स्तर पर इसका पर्यवेक्षण ज़िला प्रशासन द्वारा किया जाएगा।
- राज्य सरकार द्वारा सभी उपायुक्तों (Deputy Commissioners) को निम्नलिखित आदेश दिये गए हैं-
- अधिसूचना के प्रकाशन के एक सप्ताह के भीतर टीमों का नाम गठित किया जाए।
- टीमों के बारे में सभी जानकारियों को सार्वजनिक किया जाए।
- ग्राम परिषद के अध्यक्षों, ग्राम विकास बोर्ड सचिवों, वार्ड अधिकारियों,जनजातीय होहो (Tribal Hohos), चर्च अधिकारियों और गैर-सरकारी संगठनों से संवाद स्थापित किया जाए।
‘होहो ‘प्रत्येक नगा समूह का शीर्ष निकाय है।
- ग्रामीण एवं वार्ड स्तर पर प्रत्येक परिवार के सदस्य को मूल निवास के आधार पर सूचीबद्ध किया जाएगा और परिवार के ऐसे सदस्य, जो किसी अन्य स्थान पर रहते हैं, का उल्लेख भी सूची में किया जाएगा।
- सूची के प्रारूप में ‘स्थायी निवास और वर्तमान निवास’ का उल्लेख अलग-अलग किया जाएगा। अगर कही आधार नंबर उपलब्ध है तो उसे भी दर्ज़ किया जाएगा।
- ज़िला प्रशासन के पर्यवेक्षण में, ग्राम और वार्ड अधिकारियों द्वारा प्रमाणित सूची को संबंधित गाँवों और वार्डों में प्रकाशित किया जाएगा। साथ ही इस सूची पर शहरी एवं ग्रामीण अधिकारियों के अलावा संबंधित टीम के भी हस्ताक्षर होंगे।
दावे तथा आपत्तियों के लिये समय सीमा
- ये अस्थाई सूचियाँ गाँवों, वार्डों के साथ ही ज़िले और राज्य सरकार की वेबसाइटों पर भी प्रकाशित की जाएंगी। तत्पश्चात किसी भी दावे और आपत्तियों हेतु 10 अक्तूबर तक का समय दिया जाएगा।
- इसके बाद ज़िला प्रशासक आधिकारिक रिकॉर्ड और प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर दावे और आपत्तियों का निपटारा करेंगे। दावेदारों को सुनवाई का अवसर देने के बाद सूची को अंतिम रूप दिया जाएगा एवं प्रत्येक निवासियों को एक विशिष्ट पहचान पत्र दिया जाएगा।
- सरकार के अनुसार, RINN की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद किसी भी स्थानीय निवासी को प्रमाण-पत्र जारी नहीं किया जाएगा तथा राज्य के स्थानीय निवासियों से जन्म लेने वाले बच्चों को ही जन्म प्रमाण पत्र के साथ निवास प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा।
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर
National Register of Citizens (NRC)
- NRC वह रजिस्टर है जिसमें सभी भारतीय नागरिकों का विवरण शामिल है। इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था। रजिस्टर में उस जनगणना के दौरान गणना किये गए सभी व्यक्तियों के विवरण शामिल थे।
- इसमें केवल उन भारतीयों के नाम को शामिल किया जा रहा है जो कि 25 मार्च, 1971 के पहले से असम में रह रहे हैं। उसके बाद राज्य में पहुँचने वालों को बांग्लादेश वापस भेज दिया जाएगा।
- NRC उन्हीं राज्यों में लागू होती है जहाँ से अन्य देश के नागरिक भारत में प्रवेश करते हैं। एनआरसी की रिपोर्ट ही बताती है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं।
स्रोत : द हिंदू
14वाँ G-20 शिखर सम्मेलन
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में जापान के ओसाका शहर में G-20 का 14वाँ शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में G-20 के सभी सदस्य राष्ट्रों ने हिस्सा लिया।
मुख्य बिंदु
- G-20 सम्मेलन में मौजूदा समय में वैश्विक परिप्रेक्ष्य में उपस्थित चुनौतियों पर चिंतन किया गया। इस सम्मेलन में विभिन्न राष्ट्रों के मध्य व्यापार तनावों, जलवायु परिवर्तन, डेटा प्रवाह, आतंकवाद, भ्रष्टाचार तथा लैंगिक समानता जैसे मुद्दों पर विचार किया गया।
- इस शिखर सम्मेलन में भारत ने आर्थिक अपराधियों और भगोड़ों तथा जलवायु परिवर्तन से जुड़े कोष के लिये अधिक वैश्विक सहयोग की अपेक्षा की है। ज्ञात हो कि भारत में पिछले कुछ वर्षों में आर्थिक अपराधियों तथा भगोड़ों एक गंभीर मुद्दा उभर कर सामने आया है। हालाँकि इससे पूर्व पेरिस समझौते (2015) में भी जलवायु परिवर्तन कोष की स्थापना का प्रावधान किया गया था, इस कोष की सहायता से विकासशील देशों की आवश्यक मदद सुनिश्चित की जानी थी किंतु इस कोष का ठीक से क्रियांवयन नहीं किया जा सका।
- जहाँ तक बात है निर्बाध डेटा प्रवाह (Data Free Flow) की तो विकसित राष्ट्र इसके पक्ष में हैं। इसी संदर्भ में यदि डिजिटल अर्थव्यवस्था सम्मेलन (Digital Economy Summit) की बात करें तो इस सम्मेलन में विश्वास के साथ निर्बाध डेटा प्रवाह (Data Free Flow With Trust) के विचार को प्रसारित किया गया। यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि यह विचार भारत के डेटा-स्थानीयकरण के विचार के विपरीत है। यही कारण रहा कि भारत ने इस सम्मेलन से दूरी बनाकर अपनी नीति को पुनः स्पष्ट किया है।
- यह सम्मेलन भारत की विदेश नीति में संतुलन को इंगित करता है, जिसमें एक ओर अमेरिका के साथ अपने संबंधों को सुदृढ़ करना शामिल है तो दूसरी ओर ऐसी अमेरिकी नीतियाँ जो भारत के आर्थिक हितों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं, का विभिन्न मंचों जैसे- ब्रिक्स (BRICS), विश्व व्यापार संगठन (WTO), आदि पर विरोध करना शामिल हैं।
- भारतीय प्रधानमंत्री ने डिजिटल अर्थव्यवस्था और कृत्रिम बुध्दिमत्ता पर अपने अभिभाषण में डिजिटल तकनीक के अधिकतम उपयोग के लिये ‘5-I’ विज़न को प्रस्तुत किया। इस विजन में 5 ‘I’ समावेशी (Inclusiveness), देशीकरण (Indigenisation), नवाचार (Innovation) अवसंरचना में निवेश (Investment in infrastructure) तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग (International cooperation) का प्रतिनिधित्व करते हैं।
भारत, चीन और अमेरिका
- भारत ने 20 से अधिक बैठकों में हिस्सा लिया। इन बैठकों में भारत-अमेरिका-जापान, भारत-चीन-रूस तथा ब्रिक्स (BRICS) देशों के साथ बैठकें महत्त्वपूर्ण रही है।
- पिछले कुछ समय से भारत और चीन के साथ अमेरिका के व्यापार तनाव की खबरें चर्चा का विषय बनी हुई है। अमेरिका की भारत और चीन के साथ पृथक-पृथक द्विपक्षीय बैठकें इन तनावों के संदर्भ में किसी परिणाम पर नहीं पहुँच सकी। लेकिन ऐसी संभावना है कि ये वार्ताएँ निकट भविष्य में व्यापार को लेकर उपजे तनाव को कम करेगी। यदि ऐसा होता है तो यह वैश्विक GDP के साथ-साथ इन राष्ट्रों के भी हित में होगा।
- चीन और अमेरिका ने इस सम्मेलन में दोनों देशों के बीच संयुक्त द्विपक्षीय वार्ता के संबंध में सहमति व्यक्त की है कि जब तक आपसी व्यापारिक मुद्दे सुलझ नहीं जाते हैं तब तक किसी भी प्रकार के शुल्कों में और वृद्धि नहीं की जाएगी।
- भारत और अमेरिका के मध्य ईरान, रूस, व्यापार और 5G नेटवर्क जैसे मुद्दों को लेकर विवाद बना हुआ है। ऐसे में भारत-अमेरिका के संबंधों को संकट की दृष्टि से देखा जा रहा है। हालाँकि भारत और अमेरिका ने वार्ता के माध्यम से भविष्य में इन मुद्दों को सुलझाने हेतु मिलकर कार्य करने की योजना बनाई है।
G- 20 समूह
- वर्ष 1997 के वित्तीय संकट के पश्चात् यह निर्णय लिया गया कि दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को एक मंच पर एकत्रित होना चाहिये।
- G20 समूह की स्थापना 1999 में 7 देशों-अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, फ्राँस और इटली के विदेश मंत्रियों के नेतृत्व में की गई थी।
- G-20 का उद्देश्य वैश्विक वित्त को प्रबंधित करना था। संयुक्त राष्ट्र (United Nation), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) तथा विश्व बैंक (World Bank) के स्टाफ स्थायी होते हैं और इनके हेड क्वार्टर भी होते हैं, जबकि G20 का न तो स्थायी स्टाफ होता है और न ही हेड क्वार्टर, यह एक फोरम मात्र है।
- इस फोरम में भारत समेत 19 देश तथा यूरोपीय संघ भी शामिल है।
G20 समूह के उद्देश्य
- वैश्विक आर्थिक स्थिरता और सतत् आर्थिक संवृद्धि हासिल करने हेतु सदस्यों के मध्य नीतिगत समन्वय स्थापित करना।
- वित्तीय विनियमन (Financial Regulations) को बढ़ावा देना जो कि जोखिम (Risk) को कम करते हैं तथा भावी वित्तीय संकट (Financial Crisis) को रोकते हैं।
- एक नया अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय आर्किटेक्चर बनाना।
स्रोत- द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस
निर्भया फंड की असफलता
चर्चा में क्यों?
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत किये गए आँकड़ों के अनुसार, भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने निर्भया फंड के तहत आवंटित कुल बजट के 20 प्रतिशत से भी कम हिस्से का उपयोग किया है।
प्रमुख बिंदु
- उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 से 2018 के बीच केंद्र सरकार द्वारा निर्भया फंड के अंतर्गत महिलाओं की सुरक्षा के लिये कुल 854.66 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की गई थी।
- आँकड़ों के अनुसार, निर्भया फंड के लिये जारी की गई कुल राशि (854.66 करोड़ रुपए) में से मात्र 165.48 करोड़ रुपए ही राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा खर्च किये गए हैं।
- केंद्र तथा राज्य सरकारों ने विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत यह गई राशि खर्च की है।
- कुछ प्रमुख योजनाएँ, जिनके तहत राज्यों को यह राशि आवंटित की गई थी निम्नलिखित हैं-
- इमरजेंसी रिस्पॉन्स सपोर्ट सिस्टम (Emergency Response Support System)
- केंद्रीय पीड़ित मुआवजा निधि (Central Victim Compensation Fund)
- महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध रोकथाम (Cyber Crime Prevention against Women and Children)
- वन स्टॉप स्कीम (One Stop Scheme)
- महिला पुलिस वालंटियर (Mahila Police Volunteer)
- विभिन्न योजनाओं के तहत निर्भया फंड की आवंटित राशि को खर्च करने के मामले में चंडीगढ़ (59.83%) शीर्ष स्थान पर है।
- इसके बाद अन्य राज्यों जैसे- मिज़ोरम (56.32%), उत्तराखंड (51.68%), आंध्र प्रदेश (43.23%) और नगालैंड (38.17%) का स्थान आता है।
- तीन ऐसे राज्य और केंद्रशासित प्रदेश (मणिपुर, महाराष्ट्र और लक्षद्वीप) भी हैं जिन्होंने इस राशि के एक भी पैसे का प्रयोग इन योजनाओं के लिये नहीं किया है।
- वहीं दिल्ली और पश्चिम बंगाल ने इस राशि का सिर्फ 0.84% और 0.76% हिस्सा ही प्रयोग किया है।
- उल्लेखनीय है कि दिल्ली वर्ष 2012 सामूहिक बलात्कार के बाद देशव्यापी आंदोलन का मुख्य केंद्र था और दिल्ली में ही निर्भया फंड की नींव रखी गई थी। इसके बावजूद दिल्ली का प्रदर्शन बहुत ही निराशाजनक रहा है।
- प्रत्येक योजना पर खर्च की गई राशि के विश्लेषण से यह पता चलता है कि किसी भी राज्य और केंद्रशासित प्रदेश ने महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध रोकथाम (Cyber Crime Prevention against Women and Children) के लिये आवंटित राशि का एक भी पैसा खर्च नहीं किया है। आँकड़ों के अनुसार, केंद्र सरकार ने इस योजना के लिये वर्ष 2017 में कुल 93.12 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की थी।
‘निर्भया फंड’
- मानवता को शर्मसार कर देने वाली वर्ष 2012 की गैंग बलात्कार घटना के बाद महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2013 में निर्भया फंड की स्थापना की गई थी।
- इस फंड का मुख्य उद्देश्य बलात्कार पीड़ितों की सहायता करना और उनके पुनर्वास को सुनिश्चित करना था।
- इसके अतिरिक्त इस फंड से कई योजनाओं के क्रियान्वयन की भी योजना थी।
- निर्भया फंड महिलाओं की सुरक्षा पर केंद्रित योजनाओं को सहायता प्रदान करता है।
- शुरुआत में इसके तहत तत्कालीन वित्त मंत्री पी.चिदंबरम ने 1000 करोड़ की राशि आवंटित की थी।
- पिछले छह वर्षों में वित्त बजट में आवंटन के माध्यम से यह फंड 3,600 करोड़ रुपए तक पहुँच चुका है।
स्रोत : द हिंदू
जापान ने फिर से शुरू किया व्हेल का वाणिज्यिक शिकार
चर्चा में क्यों?
जापान ने 31 वर्षों के बाद एक बार फिर से व्हेल का वाणिज्यिक शिकार (Commercial Whaling) शुरू कर दिया है।
पृष्ठभूमि
- जापान ने दिसंबर 2018 में ही अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग (International Whalling Commission- IWC) की सदस्यता छोड़कर फिर से व्हेल का वाणिज्यिक शिकार शुरू करने की घोषणा की थी।
- जापान ने आधिकारिक तौर पर सदस्यता त्यागने के अपने फैसले के बारे में IWC को सूचित किया था जो 30 जून, 2019 से प्रभावी हुआ है।
- जापान ने आखिरी बार व्हेल का वाणिज्यिक शिकार वर्ष 1986 में किया था था, लेकिन शोध के उद्देश्यों से व्हेल का शिकार लगातार जारी रहा है।
- IWC से अलग होने के बाद भी जापान केवल जापान की समुद्री सीमा में ही व्हेल का शिकार कर सकेगा अन्य क्षेत्रों में नहीं।
जापान द्वारा IWC की सदस्यता त्यागने का कारण
- जानवरों के शिकार पर प्रतिबंध लगाने वाली संधि का हस्ताक्षरकर्त्ता होने के बावजूद ‘वैज्ञानिक अनुसंधान’ के लिये एक वर्ष में सैकड़ों व्हेल पकड़ने के कारण नियमित रूप से इसकी आलोचना की जाती रही है।
- जापान ने IWC से मांग की थी कि उसे व्हेल का वाणिज्यिक शिकार फिर से शुरू करने की अनुमति दी जाए लेकिन जापान की इस मांग को व्हेल के शिकार का विरोध करने वाले देशों जिनमें ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं, के विरोध के चलते स्वीकार नहीं किया गया। जिसके बाद जापान ने IWC की सदस्यता त्यागने का निर्णय लिया था।
IWC की सदस्यता त्यागने के मायने
- व्हेल का वाणिज्यिक शिकार जापान के क्षेत्रीय जल और विशेष आर्थिक क्षेत्रों तक सीमित होगा। वह अंटार्कटिक या दक्षिणी गोलार्द्ध में शिकार नहीं करेगा।
- IWC की सदस्यता छोड़ने का मतलब है कि जापान आइसलैंड और नॉर्वे जैसे देशों में शामिल हो जाएगा जो व्हेल के वाणिज्यिक शिकार पर IWC द्वारा लगाए गए प्रतिबंध का खुले तौर पर विरोध करते है।
- IWC की सदस्यता छोड़ने का तात्पर्य यह है कि IWC द्वारा वर्तमान में संरक्षित मिंक और अन्य व्हेल का जापान के तटीय क्षेत्रों में फिर से शिकार किया जा सकेगा।
- लेकिन जापान अंटार्कटिक में अपने तथाकथित वैज्ञानिक अनुसंधान हेतु किये जाने वाले शिकार को जारी रखने में सक्षम नहीं होगा क्योंकि अंटार्कटिक संधि (Antarctic Treaty) के तहत इसे यह अनुसंधान जारी रखने की अनुमति IWC का सदस्य होने के कारण दी गई है।
अंटार्कटिक संधि (Antarctic Treaty)
- अंटार्कटिक संधि को वाशिंगटन संधि के नाम से भी जाना जाता है।
- इस संधि पर शुरुआत में 12 देशों- अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, चिली, फ्राँस, जापान, न्यूज़ीलैंड, नॉर्वे, दक्षिण अफ्रीका, तत्कालीन सोवियत संघ, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका ने वाशिंगटन में हस्ताक्षर किये गए थे। बाद में 27 अन्य देशों ने इस संधि को स्वीकार किया और 23 जून, 1961 को यह संधि प्रभाव में आई।
जापान के लिये वाणिज्यिक व्हेलिंग का महत्त्व
- जापान ने सदियों से व्हेलों का शिकार किया है और द्वितीय विश्व के बाद जब यह देश बेहद गरीबी की स्थिति का सामना कर रहा था उस समय माँस ही यहाँ के निवासियों के लिये प्रोटीन का महत्त्वपूर्ण स्रोत था।
- जापान का तर्क है कि व्हेलिंग जापान की परंपराओं का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और IWC की सदस्यता त्यागने से मछुआरों को व्हेल का शिकार करने की अनुमति मिलेगी। इससे देश में व्हेल के वाणिज्यिक शिकार की संस्कृति को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।
अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग
(International Whaling Commission- IWC)
- अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग (IWC) एक वैश्विक निकाय है जिसे व्हेल के संरक्षण और शिकार संबंधी प्रबंधन का अधिकार प्राप्त है।
- IWC के सभी सदस्य व्हेलिंग के विनियमन पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय के (International Convention for the Regulation of Whaling) के हस्ताक्षरकर्त्ता हैं।
- यह अभिसमय एक प्रकार का कानूनी तंत्र है जिसके अंतर्गत वर्ष 1946 में IWC की स्थापना की गई थी तथा जापान वर्ष 1951 में इस संगठन का सदस्य बना था।
- वर्तमान में IWC के सदस्य देशों की संख्या 89 है।
स्रोत: द हिंदू
एक राष्ट्र एक राशन कार्ड’ योजना
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय (Ministry of Consumer Affairs, Food and Public Distribution) ने 30 जून, 2020 तक पूरे देश में ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ (One nation-one ration card) योजना लागू करने की घोषणा की है।
प्रमुख बिंदु
- सभी राशन कार्डों को आधार कार्ड से जोड़ने और पॉइंट ऑफ सेल (Point of Sale, PoS) मशीन के माध्यम से खाद्यान्न वितरण की व्यवस्था अपने अंतिम चरण में है।
- वर्तमान में आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान, तेलंगाना और त्रिपुरा ऐसे 10 राज्य हैं, जहाँ खाद्यान्न वितरण का 100 प्रतिशत कार्य PoS मशीनों के ज़रिये हो रहा है।
- साथ ही इन राज्यों में सार्वजनिक वितरण की सभी दुकानों को इंटरनेट से जोड़ा जा चुका है। इन राज्यों में लाभार्थी सार्वजनिक वितरण की किसी भी दुकान से अनाज प्राप्त कर सकते हैं ।
- संभवतः 15 अगस्त, 2019 से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना, गुजरात एवं महाराष्ट्र राज्यों के लाभार्थी दोनों राज्यों में स्थित किसी भी दुकान से अनाज प्राप्त कर सकेंगे।
- सभी सार्वजनिक वितरण प्रणालियों को डिपो ऑनलाइन प्रणाली (DOS) के साथ जोड़ा जा रहा है, ताकि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के लाभों को लोगों तक पहुँचाने में कोई अवरोध न हो।
पॉइंट ऑफ सेल
(Point of Sale, PoS)
- पॉइंट ऑफ सेल/बिक्री का एक बिंदु (PoS) वह स्थान है, जहाँ ग्राहक द्वारा वस्तुओं या सेवाओं हेतु भुगतान किया जाता है। यहाँ पर बिक्री कर भी देय हो सकते हैं।
- यह कोई बाह्य स्टोर हो सकता है जहाँ पर भुगतान के लिये कार्ड पेमेंट या वर्चुअल सेल्स पॉइंट, जैसे- कंप्यूटर या मोबाइल इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का उपयोग किया जाता है।
डिपो ऑनलाइन सिस्टम
- FCI के संचालन के प्रबंधन हेतु डिपो/गोदाम है जिसमें अनाजों का भंडारण किया जाता है।
- डिपो ऑनलाइन प्रणाली का मुख्य उद्देश्य भारत में खाद्य वितरण आपूर्ति शृंखला को परिवर्तन के लिये 'डिजिटल इंडिया' की दृष्टि से संरेखित करना है।
- खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के अंतर्गत (Food Corporation of India-FCI), केंद्रीय भंडारण निगम (Central Warehousing Corporation-CWC), राज्य भंडारण निगम (State Warehousing Corporations-SWC) एवं निजी गोदामों में भंडारित 612 लाख टन खाद्यान्न सालाना 81 करोड़ लाभार्थियों को वितरित किया जाता है। अधिकांश राज्यों में खरीद, भण्डारण एवं वितरण प्रणाली को किसी न किसी रूप में ऑनलाइन कर दिया गया है।
योजना का महत्त्व
- इस योजना के माध्यम से देश के सभी नागरिकों को एक कार्ड से पूरे देश में कहीं भी राशन उपलब्ध हो सकेगा तथा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत सभी लोगों को अनाज की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी।
- इस योजना से गरीब, मज़दूर और ऐसे लोग लाभांवित होंगे जो जीविका, रोज़गार या किसी अन्य कारण से एक राज्य से दूसरे राज्य प्रवास करते हैं।
आगे की राह
- खाद्यानों की खरीद के समय से लेकर इसके वितरण तक सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर फोकस किया गया है जो इसकी पारदर्शिता को बनाए रखते हुए एवं भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाकर पूरी प्रक्रिया की समग्र दक्षता को बढ़ाने में मदद करेगा।
- यह आवश्यक है कि FCI और राज्यों के बीच ऑनलाइन सूचना का निर्बाधित प्रवाह हो और इसलिये उन्हें समेकित किये जाने की आवश्यकता है जिससे कि पूरे देश में खरीद एवं वितरण पर सटीक सूचना उपलब्ध हो।
- ऐसी सभी गुणात्मक एवं मात्रात्मक सूचना के भण्डारण के लिये एक प्रणाली बनाई जानी चाहिये, जिसे ‘अन्नवितरण’ पोर्टल एवं विशेष रूप से डिज़ाइन किये गए डैश बोर्डों के ज़रिये एक्सेस किया जा सकें।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश एक ऐतिहासिक पहल है जिसके ज़रिये जनता को पोषण खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है। खाद्य सुरक्षा विधेयक का खास ज़ोर गरीब-से-गरीब व्यक्ति, महिलाओं और बच्चों की ज़रूरतें पूरी करने पर है।
- इस विधेयक में शिकायत निवारण तंत्र की भी व्यवस्था है। अगर कोई जनसेवक या अधिकृत व्यक्ति इसका अनुपालन नहीं करता है तो उसके खिलाफ शिकायत कर सुनवाई का प्रावधान किया गया है।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत गरीबों को 2 रुपए प्रति किलो. गेहूँ और 3 रुपए प्रति किलो. चावल देने की व्यवस्था की गई है। इस कानून के तहत व्यवस्था है कि लाभार्थियों को उनके लिये निर्धारित खाद्यान्न हर हाल में मिले, इसके लिये खाद्यान्न की आपूर्ति न होने की स्थिति में खाद्य सुरक्षा भत्ते के भुगतान के नियम को जनवरी 2015 में लागू किया गया।
- समाज के अति निर्धन वर्ग के हर परिवार को हर महीने अंत्योदय अन्न योजना में इस कानून के तहत सब्सिडी दरों पर यानी तीन रुपए, दो रुपए, एक रुपए प्रति किलो. क्रमशः चावल, गेहूँ और मोटा अनाज मिल रहा है।
- पूरे देश में इस कानून के लागू होने के बाद 81.34 करोड़ लोगों को 2 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से गेहूँ और 3 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से चावल दिया जा रहा है।
स्रोत- PIB
असम में जापानी इंसेफेलाइटिस (JE) की समीक्षा
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने जापानी इंसेफेलाइटिस (JE) के मामलों को ध्यान में रखते हुये असम राज्य में इसकी स्थिति की समीक्षा के लिये एक केंद्रीय दल भेजा है।
प्रमुख बिंदु:
- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय असम सरकार के निगरानी तंत्र और नैदानिक किट (Diagnostic Kits) कार्यक्रम को तकनीकी एवं वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है।
- JE के उन्मूलन के लिये सामुदायिक भागीदारी को भी सशक्त करने पर ज़ोर दिया जा रहा है।
- मंत्रालय ने राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण के विशेषज्ञों को भी केंद्रीय दल के साथ भेजा है।
- इसके अतिरिक्त केंद्रीय मंत्रालय असम सरकार की निम्नलिखित तरीके से सहायता कर रहा है-
- असम के सभी 27 ज़िलों को JE टीकाकरण अभियान (1-15 वर्ष के बच्चों के लिये) के तहत शामिल किया गया है।
- असम के दस गंभीर रूप से प्रभावित ज़िलों को JE की रोकथाम और नियंत्रण के लिये बहुपक्षीय कार्यनीति के तहत शामिल किया गया है। इन ज़िलों को वयस्क JE टीकाकरण अभियान के तहत कवर किया गया है।
- इन दस उच्च प्रकोप वाले ज़िलों में सात बाल चिकित्सा ICU की स्थापना के लिये धनराशि प्रदान की गई है।
- JE की जाँच के लिये अभी तक 28 निगरानी अस्पतालों की पहचान की गई है।
जापानी इंसेफेलाइटिस (JE)- यह एक वेक्टर-जनित इंसेफेलाइटिस है जो मच्छरों के क्यूलेक्स समूहों द्वारा फैलता है। ये मच्छर मुख्य रूप से चावल के खेतों और जलीय वनस्पतियों से समृद्ध बड़े जल निकायों में प्रजनन करते हैं। एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में JE के संचरण में सूअरों के साथ-साथ प्रवासी पक्षी भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
स्रोत: PIB
RCEP में कृषि और औषधि से संबंधी प्रावधान रद्द
चर्चा में क्यों ?
भारत और अन्य विकासशील देशो के लिये राहत के तौर पर औषधि और कृषि से संबंधित तीन हानिकारक प्रावधानों को RCEP से बाहर कर दिया गया है।
प्रावधान के रद्द होने के कारण
- भारत के नेतृत्व में RCEP देशों के पेटेंट के विस्तृत नियमों और डाटा विशिष्टता संबंधी प्रावधानों को हटाने के लिये प्रस्ताव लाया गया था क्योकि यह प्रावधान विकासशील देशो में सस्ती दवाओ के प्रसार पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एकाधिकार की स्थापना करता है।
- इस प्रावधान के कारण विकासशील देशों की घरेलू औषधीय कंपनियां विश्व में सस्ती जीवनरक्षक दवाओं के निर्यात में पीछे रह जाती हैं। बीज और रोपण सामग्री से संबंधित कठोर बौद्धिक संपदा अधिकार नियम जो विकासशील देशों के कृषि क्षेत्र के लिये हानिकारक हैं, को भी वापस ले लिया गया है।
प्रावधान के रद्द होने से लाभ
- डाटा की विशिष्टता और पेटेंट अवधि के विस्तार जैसे प्रावधानों को हटाने से वैश्विक स्तर पर दवाओं की आपूर्ति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
नये प्रकार के पौधों की सुरक्षा हेतु अंतर्राष्ट्रीय संघ (UPOV)
- नये प्रकार के पौधों की सुरक्षा हेतु अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union for the Protection of New Varieties of Plants -UPOV) के अंतर्गत भारत ने RCEP के उच्च-स्तरीय सुरक्षा प्रावधानों को रद्द करने की बात कही थी क्योंकि ये प्रावधान WTO के मानकों के अनुरूप नहीं हैं। चूँकि UPOV 91 के प्रावधानो को अपनाना भागीदार देशो के लिये ‘स्वैच्छिक’ है इसलिये भारत ने इसे नहीं अपनाया है।
- UPOV 91 के प्रावधान पूरी तरह बहुर्राष्ट्रीय कंपनियो के पक्ष में है क्योंकि इसको अपनाने से किसानों के बीज संग्रहण और उपयोग की स्वतंत्रता सीमित होगी।
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP)
- क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) एक प्रस्तावित मेगा मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement-FTA) है, जो आसियान के दस सदस्य देशों तथा छह अन्य देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड) के बीच किया जाना है।
- ज्ञातव्य है कि इन देशों का पहले से ही आसियान से मुक्त व्यापार समझौता है।
- वस्तुतः RCEP वार्ता की औपचारिक शुरुआत वर्ष 2012 में कंबोडिया में आयोजित 21वें आसियान शिखर सम्मेलन में हुई थी।
- RCEP को ट्रांस पेसिफिक पार्टनरशिप (Trans Pacific Partnership- TPP) के एक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
- RCEP के सदस्य देशों की कुल जीडीपी लगभग 21.3 ट्रिलियन डॉलर और जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का 45 प्रतिशत है।
- सदस्य देश: ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम। इनके अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड सहभागी (Partner) देश हैं।
विश्व व्यापार संगठन
- विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) विश्व में व्यापार संबंधी अवरोधों को दूर कर वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1995 में हुई थी।
- इसका मुख्यालय जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में है। वर्तमान में विश्व के 164 देश इसके सदस्य हैं।
- 29 जुलाई, 2016 को अफगानिस्तान इसका 164वाँ सदस्य बना।
- सदस्य देशों का मंत्रिस्तरीय सम्मेलन इसके निर्णयों के लिये सर्वोच्च निकाय है, जिसकी बैठक प्रत्येक दो वर्षों में आयोजित की जाती है।
निष्कर्ष: मेलबर्न में RCEP को लागू करने के संबंध में हो रही वार्ता के इस वर्ष पूर्ण होने की संभावना है। RCEP समझौते के लागू हो जाने के बाद यह विश्व का सबसे बड़ा व्यापारिक ब्लाक होगा जो विश्व की 50% जनसंख्या और 30% व्यापार का प्रतिनिधित्व करेगा।
स्रोत : TOI
नि:शुल्क कानूनी सहायता की गुणवत्ता
चर्चा में क्यों?
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली (The National Law University, Delhi (NLUD) ने 'कानूनी प्रतिनिधित्व की गुणवत्ता: भारत में मुफ्त कानूनी सहायता सेवाओं का एक अनुभवजन्य विश्लेषण' (Quality of Legal Representation: An Empirical Analysis of Free Legal Aid Services in India) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है जिसके अनुसार, लोगों को मुफ्त विधिक सेवाओं पर विश्वास नहीं है।
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम
(Legal Service Authorities-LSA, Act)
- वर्ष 1987 मे गरीबों को नि:शुल्क और सक्षम कानूनी सेवाएँ उपलब्ध कराने के उद्देश्य से विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम (Legal Service Authorities Act-LSA Act) को लागू किया गया था।
- इस अधिनियम ने राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (National Legal Service Authority-NALSA) तथा राज्य, ज़िला एवं तालुका स्तर पर अन्य कानूनी सेवा संस्थानों के गठन का मार्ग प्रशस्त किया।
- LSA अधिनियम के तहत दी जाने वाली नि:शुल्क कानूनी सेवाएँ अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति, बच्चों, महिलाओं, मानव तस्करी के शिकार लगों, औद्योगिक कामगारों, हिरासत में लिये गए व्यक्तियों और गरीबों के लिये उपलब्ध हैं।
महत्त्वपूर्ण तथ्य
- राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (Commonwealth Human Rights Initiative-CHRI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति व्यक्ति अधिवक्ता का अनुपात अन्य देशों के मुकाबले बेहतर है।
- भारत में लगभग 1.8 मिलियन अधिवक्ता हैं यानी प्रत्येक 736 लोगों पर एक अधिवक्ता उपलब्ध हैं।
- इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि देश में लगभग 61,593 अधिवक्ता पैनल हैं जिसका तात्पर्य यह है कि प्रति 18,609 की आबादी पर एक केवल एक विधिक सलाहकार या प्रति 1,00,000 की आबादी पर पाँच विधिक सलाहकार उपलब्ध हैं।
- NALSA द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2017 से जून 2018 तक पूरे भारत में लगभग 8.22 लाख लोग विधिक सहायता सेवाओं के से लाभान्वित हुए।
मुख्य निष्कर्ष
- अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार, लगभग 75% लाभार्थियों ने मुफ्त कानूनी सहायता का विकल्प इसलिये चुना क्योंकि उनके पास निज़ी अधिवक्ता को नियुक्त करने हेतु पर्याप्त संसाधन नहीं थे, यदि उनके पास पर्याप्त संसाधन (पूंजी) उपलब्ध होते तो वे LSA की सहायता नहीं लेते एवं निज़ी अधिवक्ता ही नियुक्त करते।
- 22.6% लाभार्थियों ने यह माना है कि वे दोबारा मुफ्त कानूनी सहायता सेवाओं का विकल्प नहीं चुनेंगे।
- नि:शुल्क कानूनी सहायता सेवाओं से अवगत 60% महिलाओं ने निज़ी अधिवक्ता का चयन किया क्योंकि कानूनी सहायता प्रणाली के तहत दी जाने वाली सेवाओं की गुणवत्ता पर उनकी विश्वसनीयता कम थी एवं अपने निजी अधिवक्ता पर वे बेहतर नियंत्रण रख सकती थी।
- 56% विधिक सेवा अधिवक्ता (Legal Aid Counsel- LAC) कानूनी सहायता के मामलों पर प्रति सप्ताह औसतन 1 से 10 घंटे का समय देते हैं। इसके विपरीत, लगभग 58% LAC निजी मामलों पर प्रति सप्ताह औसतन 20 घंटे या उससे अधिक समय व्यतीत करते हैं।
- लगभग 33% न्यायिक अधिकारियों ने दावा किया है कि LAC के खिलाफ लाभार्थियों से पैसे मांगने की शिकायतें भी सामने आई हैं।
- अधिकांश न्यायिक अधिकारियों (52%) का मानना है कि LAC की तुलना में निज़ी अधिवक्ता ज़्यादा योग्य होते हैं।
संवैधानिक प्रावधान
- संविधान के अनुच्छेद 39A में प्रावधान है कि- ‘राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि न्यायतंत्र इस प्रकार से काम करें कि सभी को न्याय का समान अवसर मिले एवं आर्थिक या किसी अन्य कारण से कोई नागरिक न्याय प्राप्ति से वंचित न रह जाए। इसके लिये राज्य निःशुल्क विधिक सहायता की व्यवस्था करेगा।’
- अनुच्छेद 14 और 22 (1) भी राज्य के लिये विधि के समक्ष समता सुनिश्चित करने का प्रावधान करते हैं जो सभी को न्याय के समान अवसर उपलब्ध कराने के आधार को बढ़ावा देता है।
NALSA द्वारा किये गए के प्रयास
- कानूनी सहायता की इच्छा रखने वाले लोगों के लिये वन-स्टॉप सेंटर के रूप में ज़िला स्तर पर न्यायिक सहायता कार्यालयों को आधुनिक बनाना।
- कानूनी सहायता प्राप्त मामलों के रिकॉर्ड को अद्यतन करना ताकि कानूनी सहायता प्राप्त करने वालों को उनके मामलों की प्रगति के बारे में बताया जा सके और मामलों की बेहतर निगरानी संभव हो सके।
- NALSA के जागरूकता कार्यक्रमों (जैसे डोर-टू-डोर कैंपेन) ने लोगों को कानूनी सलाह और अन्य प्रकार की कानूनी सेवाओं जैसे अनुप्रयोगों के प्रारूपण आदि के बारे में जागरूक बनाया है।
आगे की राह
- पूर्णकालिक मनोनयन: वर्तमान में LAC का अनुबंध आमतौर पर तदर्थ (Ad-Hoc) आधार पर होता है। ऐसे में लगभग 45% नियामकों का मानना है कि LAC को पूर्णकालिक बनाने से निश्चित रूप से उनकी प्रतिबद्धता के स्तर में सुधार होगा।
- मानदेय: अध्ययन में यह भी कहा गया है कि निजी मामलों की तरह ही कानूनी सहायता प्राप्ति के मामले में मानदेय निर्धारित किया जाना चाहिये, इससे LAC सहायता प्राप्त मामलों से पीछे नहीं हटेंगे या ऐसे मामलों पर सहायता प्रदान करने से इनकार नहीं करेंगे।
- पारिश्रमिक: मनोनीत अधिवक्ताओं का पारिश्रमिक प्रतिवर्ष बढ़ाया जाना चाहिये। यह उन अधिवक्ताओं के लिये महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा जो किशोर अपराध न्यायालयों (Juvenile Courts) में सेवारत हैं क्योंकि उन्हें अपनी निजी प्रैक्टिस करने की अनुमति नहीं है।
स्रोत: द हिंदू
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (01 July)
- 1 जुलाई को देशभर में डॉक्टर्स डे का आयोजन किया जाता है। विख्यात चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ. बिधान चंद्र रॉय की याद में यह दिवस मनाया जाता है। 1 जुलाई को डॉ. बिधान चंद्र रॉय का जन्मदिवस होता है। उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। डॉक्टर्स की उपलब्धियों और चिकित्सा के क्षेत्र में नए आयाम हासिल करने वाले डॉक्टर्स के सम्मान के लिये हर साल डॉक्टर्स डे का आयोजन किया जाता है। अन्य देशों में डॉक्टर्स डे अलग-अलग दिन आयोजित किया जाता है। डॉक्टर्स डे की शुरुआत दुनिया में सबसे पहले अमेरिका के जॉर्जिया से हुई थी। 30 मार्च, 1933 को फिजिशियन यानी डॉक्टर्स के सम्मान के लिये यह दिन तय करने का विचार यूडोरा ब्राउन एलमंड ने दिया था। इसके बाद 30 मार्च, 1958 को अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स ने यूडोरा ब्राउन एलमंड के विचार को स्वीकार कर लिया।
- 1 जुलाई को देशभर में GST दिवस का आयोजन किया जाता है। गौरतलब है कि 30 जून, 2017 की मध्य रात्रि में संसद के केंद्रीय कक्ष में इस नई टैक्स व्यवस्था का ऐलान किया गया था। इसे भारतीय टैक्स सिस्टम में अभूतपूर्व सुधार माना जाता है। GST का भारतीय अर्थव्यवस्था पर अभूतपूर्व प्रभाव पड़ा है और यह एक गेम चेंजर साबित हुआ है, क्योंकि इससे कई स्तरों पर लगने वाले अप्रत्यक्ष करों की जटिल व्यवस्था बदल गई है और उसकी जगह एक सरल, पारदर्शी और प्रौद्योगिकी से प्रेरित कर व्यवस्था लागू हो गई है। इसके अलावा अंतर्राज्यीय कारोबार की बाधाएँ दूर होने से भारत में एकल बाज़ार व्यवस्था कायम हो रही है। GST के तहत विभिन्न स्तरों पर लगने वाले कर समाप्त हो गए हैं तथा लेन-देन लागत भी कम हुई है।
- 29 जून को अर्थशास्त्र व सांख्यिकी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले प्रो. पी.सी. महालनोबिस के जन्मदिन पर 13वाँ सांख्यिकी दिवस मनाया गया। पी.सी. महालनोबिस प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक एवं सांख्यिकीविद् थे। सामाजिक-आर्थिक नियोजन व सरकारी क्षेत्र में सांख्यिकी के महत्त्व को लेकर उनके योगदान की याद में उनका जन्मदिन सांख्यिकी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य रोजाना के जीवन और योजना एवं विकास की प्रक्रिया में सांख्यिकी के महत्त्व के प्रति लोगों को जागरूक करना है। यह राष्ट्रीय सांख्यिकीय प्रणाली की स्थापना में उनके अमूल्य योगदान का भी परिचायक है। इस वर्ष इस दिवस की थीम सतत विकास लक्ष्य (SDG) रखी गई है।
- 30 जून को दुनियाभर में International Day of Parliamentarism का आयोजन किया जाता है। 30 जून को यह दिवस इसलिये मनाया जाता है क्योंकि वर्ष 1889 में इसी दिन संसदों के वैश्विक संगठन Inter-Parliamentary Union यानी अंतर-संसदीय संघ की स्थापना हुई थी। IPU का उद्देश्य विश्वव्यापी संसदीय संवाद कायम करना और शांति एवं सहयोग बनाए रखते हुए लोकतंत्र को मज़बूत बनाना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये यह सभी देशों की संसद तथा सांसदों के बीच समन्वय और अनुभवों के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करता है और अंतर्राष्ट्रीय हितों तथा सरोकारों के प्रश्नों पर विचार-विमर्श करता है। इसका मुख्यालय जिनेवा में है और इसके 164 सदस्य तथा 10 संबद्ध सदस्य हैं।
- केंद्र सरकार राशन कार्डधारकों की सुविधा के लिये ‘एक राष्ट्र-एक कार्ड’ शुरू करने की योजना बना रही है। इस योजना के लागू होने के बाद राशन कार्डधारक देश के किसी भी हिस्से से अपने कार्ड के ज़रिये राशन उठा सकेगा। इससे सबसे अधिक लाभ नौकरी की तलाश में एक राज्य से दूसरे राज्यों में पलायन करने वालों को मिलेगा। इस योजना से जुड़ी औपचारिकताओं को एक साल में पूरा करने का लक्ष्य है। इस योजना को लागू करने के लिये सभी जन वितरण योजना वाली दुकानों (PDS) पर POS मशीनों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। फिलहाल आंध्र प्रदेश, हरियाणा और कुछ अन्य प्रदेशों में सभी PDS पर POS सुविधा है, लेकिन देशभर में इस योजना का लाभ लेने के लिये 100 प्रतिशत उपलब्धता होना जरूरी है। इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट ऑफ PDS के तहत उपभोक्ता किसी भी राज्य से अपना राशन ले सकेंगे। वर्तमान में यह योजना आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान, तेलंगाना और त्रिपुरा में लागू है। PDS 81 करोड़ उपभोक्ताओं की जीवन रेखा है, जिनके माध्यम से हर साल 612 लाख टन अनाज FCI, CWC और SWCs तथा प्राइवेट गोदामों से हर साल वितरित होता है।
- नेपाल सरकार ने एक सप्ताह तक चले आंदोलन के बाद नेशनल असेंबली में प्रस्तुत विवादास्पद गुथी (न्यास) विधेयक को औपचारिक रूप से वापस ले लिया। गुथी अधिनियम में संशोधन के लिये रखे गए इस विधेयक के तहत सार्वजनिक और निजी दोनों प्रकार की गुथियों का राष्ट्रीयकरण किया जाना तथा एक शक्तिशाली आयोग के माध्यम से सभी धार्मिक स्थलों को विनियमित किया जाना प्रस्तावित था। पुरातन नेवार समुदाय का मानना था कि इस विधेयक के पारित होने के बाद सनातन हिदू परंपरा खतरे में आ जाएगी तथा प्रस्तावित विधेयक से सार्वजनिक न्यासों में नेताओं, सरकारी अधिकारियों और प्रभावशाली लोगों का प्रवेश संभव हो जाएगा और वे इसकी हज़ारों हेक्टेयर जमीन का गबन कर लेंगे।