अंतर्राष्ट्रीय संबंध
G-7 समूह और भारत
प्रीलिम्स के लियेG-7, G20 मेन्स के लियेG-7 का महत्त्व व चुनौतियाँ, वैश्विक संस्थानों और संगठनों में सुधार की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने G-7 को एक ‘पुराना समूह’ बताते हुए इसमें भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और रूस को भी शामिल करने की बात कही है।
प्रमुख बिंदु
- डोनाल्ड ट्रंप ने G-7 के 46वें शिखर सम्मेलन को स्थगित करते हुए कहा कि यह अपने वर्तमान प्रारूप में विश्व की विभिन्न घटनाओं का सही ढंग से प्रतिनिधित्त्व नहीं करता है।
- उल्लेखनीय है कि 46वें शिखर सम्मेलन का आयोजन अमेरिका के कैंप डेविड (Camp David) में 10-12 जून के मध्य किया जाना था।
- बीते वर्ष 45वाँ G-7 शिखर सम्मेलन 24-26 अगस्त को फ्रांँस के बिआरित्ज़ (Biarritz) में आयोजित किया गया था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक विशेष अतिथि के रूप में भाग लिया था।
- डोनाल्ड ट्रंप के अनुसार, इस समूह को G-10 अथवा G-11 कहा जा सकता है।
G-7 समूह का अर्थ
- G-7 अर्थात ‘ग्रुप ऑफ सेवन’ (Group of Seven) फ्राँस, जर्मनी, इटली, यूनाइटेड किंगडम, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा जैसे देशों का एक समूह है।
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यह एक अंतर सरकारी संगठन है जिसे वर्ष 1975 में उस समय की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं द्वारा विश्व के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिये एक अनौपचारिक मंच के रूप में गठित किया गया था।
- कनाडा वर्ष 1976 में और यूरोपीय संघ (European Union) वर्ष 1977 में इस समूह में शामिल हुआ।
- आर्थिक मुद्दों पर चर्चा करने के लिये अमेरिका तथा उसके सहयोगियों द्वारा एक प्रयास के रूप में गठित G-7 समूह दशकों से वैश्विक समाज के समक्ष मौजूदा विभिन्न चुनौतियों जैसे- वित्तीय संकट, आतंकवाद, हथियारों पर नियंत्रण और मादक पदार्थों की तस्करी आदि पर विमर्श कर रहा है।
- वर्ष 1997 में रूस के इस समूह में शामिल होने के बाद कई वर्षों तक G-7 को 'G- 8' के रूप में जाना जाता था, हालाँकि वर्ष 2014 में रूस को क्रीमिया विवाद के बाद समूह से निष्कासित कर दिये जाने के पश्चात् समूह को एक बार पुनः G-7 कहा जाने लगा।
- G-7 देशों के राष्ट्राध्यक्ष वार्षिक शिखर सम्मेलन में मिलते हैं जिसकी अध्यक्षता सदस्य देशों के नेताओं द्वारा एक ‘रोटेशनल बेसिस’ (Rotational Basis) पर की जाती है।
- उल्लेखनीय है कि G-7 का कोई भी औपचारिक संविधान या एक निर्धारित मुख्यालय नहीं है। इसलिये वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान समूह द्वारा लिये गए निर्णय गैर-बाध्यकारी होते हैं।
- वर्ष 2016 में राष्ट्रपति के तौर पर अपने चुनाव के बाद से ही डोनाल्ड ट्रंप विभिन्न अवसरों पर रूस के वैश्विक रणनीतिक महत्त्व को देखते हुए उसे पुनः समूह में शामिल करने की बात पर ज़ोर दे चुके हैं।
G-7 और G-20 में अंतर
- G-20 समूह देशों का एक बड़ा समूह है, जिसमें G-7 समूह के सदस्य भी शामिल हैं। G-20 समूह का गठन वर्ष 1999 में वैश्विक आर्थिक चिंताओं से निपटने हेतु और अधिक देशों को एक साथ एक मंच पर लाने के उद्देश्य से से किया गया था।
- समग्र रूप से G-20 समूह वैश्विक अर्थव्यवस्था के तकरीबन 80 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्त्व करता है।
- G-7 के विपरीत, जो वैश्विक समुदाय से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करता है, G-20 में केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था और वित्तीय बाज़ारों से संबंधित मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाता है।
- भारत वर्ष 2022 में G-20 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करेगा।
G-7 के विस्तार के निहितार्थ
- G-7, जिसमें विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ पहले से ही शामिल हैं, में चार अन्य देशों को शामिल करने के कदम को चीन के लिये एक संकेत के रूप में देखा जा सकता है।
- अमेरिकी राष्ट्रपति का यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब अमेरिका और चीन के संबंधों में विभिन्न मुद्दों पर तनाव बना हुआ है, जिसमें हॉन्गकॉन्ग की स्वायत्तता, ताइवान, COVID-19 की उत्पत्ति, दक्षिण चीन सागर में तनाव और व्यापार जैसे विभिन्न पहलू शामिल हैं।
- विभिन्न विशेषज्ञ अमेरिका के इस निर्णय को आगामी भविष्य में चीन की नीतियों से निपटने के लिये सभी पारंपरिक सहयोगियों को एक साथ लाने की योजना के रूप में देख रहे हैं।
- आलोचकों का सदैव यह मत रहा है कि G-7 समूह की सदस्यता से भारत और ब्राज़ील जैसी महत्त्वपूर्ण उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को वंचित रखना इसकी एक बड़ी कमी है।
- G-20 (जो भारत, चीन, ब्राज़ील जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है) के उभार ने G-7 जैसे पश्चिमी देशों के वर्चस्व वाले समूह को चुनौती दी है। इस चुनौती से निपटना भी समूह के विस्तार का एक प्रमुख कारण हो सकता है।
- विदित हो कि बीते कुछ दशकों में भारत, चीन और ब्राज़ील जैसे देशों के आर्थिक उदय ने वैश्विक स्तर पर G-7 की प्रासंगिकता को कम कर दिया है और वैश्विक GDP में G-7 समूह की हिस्सेदारी लगातार कम होती जा रही है। ऐसे में समूह के अस्तित्त्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है।
भारत का पक्ष
- वर्ष 2019 में आयोजित 45वें G-7 शिखर सम्मेलन में फ्रांँस के राष्ट्रपति ने लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को बढ़ावा देने और महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय प्रभाव रखने वाले चार भागीदार देशों (ऑस्ट्रेलिया, चिली, भारत और दक्षिण अफ्रीका); पाँच अफ्रीकी भागीदारों [बुर्किना फासो, सेनेगल, रवांडा एवं दक्षिण अफ्रीका और अफ्रीकी संघ आयोग (AUC) के अध्यक्ष] तथा नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को इस सम्मेलन में आमंत्रित किया था।
- पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के शासनकाल के दौरान भी भारत ने पाँच बार G-7 (तत्कालीन G-8 समूह) में भाग लिया था।
- उल्लेखनीय है कि भारत लंबे समय से वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिये वैश्विक संस्थानों और समूहों में सुधार करने का आह्वान करता रहा है।
- भारत सदैव ही संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) जैसी संस्थाओं में सुधार का पक्षधर रहा है। ऐसे में यदि भारत G-7 समूह का हिस्सा बनता है तो उसे वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
यूरोपीय संघ का आर्थिक राहत पैकेज
प्रीलिम्स के लियेयूरोपीय संघ, प्रस्तावित योजना का विवरण मेन्स के लियेप्रस्तावित योजना का महत्त्व और चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
यूरोपीय संघ (European Union) ने कोरोना वायरस (COVID-19) के संकट से प्रभावित अर्थव्यवस्थाओं को संचालित करने के लिये 750 बिलियन यूरो (Euro) की योजना का अनावरण किया है।
प्रमुख बिंदु
- इस प्रस्ताव के तहत यूरोपीय आयोग (European Commission) बाज़ार से धनराशि उधार लेगा और फिर कोरोना वायरस जनित लॉकडाउन के कारण उत्पन्न हुई अभूतपूर्व मंदी को खत्म करने के लिये दो-तिहाई हिस्सा अनुदान (Grants) और शेष ऋण के रूप में वितरित करेगा।
- उल्लेखनीय है कि यूरोपीय संघ (European Union-EU) के सभी देश कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं और इस प्रस्ताव का अधिकांश हिस्सा इटली और स्पेन को दिया जाएगा।
- विदित है कि यूरोपीय संघ का यह प्रस्ताव संघ के वर्ष 2021-27 के दीर्घकालिक बजट से अलग है। यूरोपीय संघ (EU) के इस प्रस्ताव को सभी सदस्य देशों और यूरोपीय संसद द्वारा स्वीकृति प्रदान कर दी गई है।
प्रभाव
- यूरोपीय संघ (EU) द्वारा कोरोना वायरस (COVID-19) से प्रभावित अर्थव्यवस्थाओं को पुनः पटरी पर लाने के लिये जो ऋण लिया जा रहा है उसे यूरोपीय संघ द्वारा अंततः चुकाना पड़ेगा, जिसका अर्थ है कि यूरोपीय संघ के सदस्य देशों को अपने राष्ट्रीय योगदान में बढ़ोतरी करनी होगी।
महत्त्व
- यूरोपीय संघ (European Union) के विभिन्न देशों जैसे- इटली, स्पेन, ग्रीस, फ्राँस और पुर्तगाल की अर्थव्यवस्था के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इन देशों की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पर्यटन पर बहुत अधिक निर्भर है और महामारी के कारण पूरी तरह से रुक गई है।
- EU के नेतृत्त्वकर्त्ताओं का मानना है कि यदि वे मौजूदा समय में लगातार गिरती हुई अर्थव्यवस्था को संभालने में विफल रहते हैं तो अर्थव्यवस्था की स्थिति और भी खराब हो सकती है।
- ऐसे में यूरोपीय संघ (EU) का यह प्रस्ताव न केवल सदस्य देशों की अर्थव्यवस्था को सुधारने में मदद करेगा, बल्कि उन्हें भविष्य की चुनौतियों से निपटने की क्षमता भी प्रदान करेगा।
यूरोपीय संघ (European Union)
- यूरोपीय संघ (European Union- EU) कुल 27 देशों की एक आर्थिक और राजनीतिक सहभागिता है। ये 27 देश संधि के द्वारा एक संघ के रूप में जुड़े हुए हैं, जिससे कि व्यापार को आसान बनाया जा सके और विभिन्न देशों के मध्य विवाद उत्पन्न न हो।
- सैद्धांतिक रूप से जो देश आपस में जितना अधिक व्यापार करते हैं, उनके मध्य तनाव और युद्ध की संभावना उतनी ही कम हो जाती है।
- गौरतलब है कि यूरोपीय संघ के कुल 19 देश यूरो को अपनी आधिकारिक मुद्रा के रूप में प्रयोग करते हैं, जबकि शेष देशों की अपनी अलग मुद्रा है।
- यूनाइटेड किंगडम (UK) 31 जनवरी, 2020 को यूरोपीय संघ (EU) से अलग होने वाला अंतिम देश था, जिसके बाद सदस्यों की संख्या 27 रह गई।
- यूरोपीय संघ ने कानूनों की मानकीकृत प्रणाली के माध्यम से एक आंतरिक एकल बाज़ार विकसित किया है, जो कि सदस्य देशों के उन सभी मामलों पर लागू होती हैं, जिन सदस्य देशों ने सहमति व्यक्त की है।
- एकल बाज़ार सिद्धांत (Single Market Principle) अर्थात् किसी भी तरह का सामान और व्यक्ति बिना किसी टैक्स या बिना किसी रुकावट के कहीं भी आ-जा सकते हैं एवं लोग बिना रोक टोक के नौकरी, व्यवसाय तथा स्थायी तौर पर निवास कर सकते हैं। फ्री मूवमेंट ऑफ पीपल एंड गुड्स (Free Movement of People and Goods) यूरोपीय संघ की खासियत है।
यूरोपीय आयोग (European Commission)
- यह यूरोपीय संघ (EU) का एक कार्यकारी निकाय है, जो कानून का प्रस्ताव करने, निर्णयों को लागू करने, यूरोपीय संघ की संधियों को बरकरार रखने और यूरोपीय संघ के दिन-प्रतिदिन के कार्यों के प्रबंधन हेतु उत्तरदायी है।
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
छत्तीसगढ़ और झारखंड में संस्थागत प्रसवों की स्थिति
प्रीलिम्स के लिये:संस्थागत प्रसव मेन्स के लिये:संस्थागत प्रसव में कमी से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में छत्तीसगढ़ और झारखंड द्वारा जारी नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, COVID-19 के कारण इन राज्यों में संस्थागत प्रसवों (Institutional Deliveries) की संख्या में कमी आई है।
प्रमुख बिंदु:
- छत्तीसगढ़ में वर्तमान परिदृश्य:
- मार्च, 2020 के दौरान संस्थागत प्रसवों की संख्या की तुलना में अप्रैल, 2020 के दौरान 15.39% की कमी दर्ज की गई।
- फरवरी, 2020 में संस्थागत प्रसव की संख्या 37984 दर्ज की गई थी लेकिन देशभर में लागू लॉकडाउन के कारण अप्रैल, 2020 में संस्थागत प्रसव की संख्या घटकर 32,529 हो गई।
- गौरतलब है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3 और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के दौरान कुल संस्थागत प्रसव का प्रतिशत 44.9 से बढ़कर 70.2 हो गया था।
- झारखंड में वर्तमान परिदृश्य:
- मई 2020 में संस्थागत प्रसव के लिये 52000 महिलाओं को सूचीबद्ध किया गया था। लेकिन 21 मई 2020 तक केवल 5.1% प्रसव मेडिकल संस्थानों में हुआ है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3 और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 4 के बीच संस्थागत प्रसव का प्रतिशत 40.1 से बढ़कर 61.9 हो गया था।
अन्य बिंदु:
- पिछले दो दशक से भारत में संस्थागत प्रसव की संख्या में वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 4 (National Family Health Survey- NFHS) के अनुसार, वर्ष 2015-16 के दौरान कुल प्रसवों में संस्थागत प्रसवों की हिस्सेदारी 79% थी, जबकि यही आँकड़ा वर्ष 2005-06 में 39% था।
संस्थागत प्रसव में हालिया गिरावट के कारण:
- COVID-19 महामारी के प्रसार को रोकने के लिये देशभर में लागू लॉकडाउन के कारण सार्वजनिक परिवहन मुख्य रूप से प्रभावित हुए हैं अर्थात् सार्वजनिक परिवहन के आवागमन पर प्रतिबंध है, अतः गाँवों से अस्पतालों तक पहुँचना मुश्किल हो गया है।
- अस्पतालों में संक्रमण का डर होने के कारण लोग वहाँ जाने से बच रहे हैं।
- COVID-19 के संक्रमण से बचने के लिये कई प्रसव निजी नर्सिंग होम में हुए हैं।
- पूरी स्वास्थ्य मशीनरी COVID-19 से निपटने में व्यस्त होने की वज़ह से अन्य स्वास्थ्य सेवाओं में चिकित्सा कर्मचारियों की अत्यधिक कमी है।
संस्थागत प्रसव:
- संस्थागत प्रसव का अर्थ है चिकित्सा संस्थान में प्रशिक्षित और सक्षम स्वास्थ्य कर्मियों की देख-रेख में एक बच्चे को जन्म देना, जहाँ किसी भी स्थिति को संभालने तथा माँ एवं बच्चे के जीवन को बचाने के लिये उत्तम सुविधाएँ उपलब्ध हों।
- यदि बच्चे का जन्म घर पर होता है तो ख़राब वातावरण से संक्रमित होने की संभावना बढ़ जाती है तथा प्रसव जटिलताओं को संभालना बहुत कठिन और कभी-कभी असंभव भी हो जाता है।
आगे की राह:
- COVID-19 महामारी के इस दौर में भी अन्य स्वास्थ्य सेवाओं से समझौता नहीं किया जाना चाहिये।
- सरकार को मेडिकल स्टाफ, आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिये जैसे कि शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के लिये एम्बुलेंस, टीकाकरण, मातृत्त्व देखभाल, आदि।
- वर्तमान में COVID-19 के अलावा अन्य स्वास्थ्य सेवाओं के बीच समन्वय की आवश्यकता है साथ ही सरकार को भविष्य में इस तरह की चुनौतियों से निपटने के लिये हमेशा तैयार रहना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
उत्तर और दक्षिण कोरिया द्वारा कोरियाई युद्धविराम समझौते का उल्लंघन
प्रीलिम्स के लिये:‘यूनाइटेड नेशंस कमांड, प्योंगयांग संयुक्त घोषणा मेन्स के लिये:कोरियाई सैन्य संघर्ष, वैश्विक शांति और संयुक्त राष्ट्र |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच ‘गैर-सैन्य क्षेत्र’ (Demilitarised Zone- DMZ) में दोनों पक्षों में हुई गोलीबारी की एक घटना के बाद ‘यूनाइटेड नेशंस कमांड’ (United Nations Command- UNC) ने दोनों देशों को वर्ष 1953 के ‘कोरियाई युद्धविराम समझौते’ (Korean Armistice Agreement) के उल्लंघन का दोषी पाया है।
प्रमुख बिंदु:
- दक्षिण कोरिया के अनुसार, 3 मई 2020 को उत्तर कोरियाई सैनिकों ने DMZ के पास उसकी सुरक्षा चौकियों पर गोलीबारी की, जिसके जवाब में दक्षिण कोरियाई सैनिकों ने चेतावनी के रूप में उत्तर कोरियाई चौकियों की तरफ कुछ गोलियाँ चलाई थीं।
- दक्षिण कोरिया ने इस मामले में उत्तर कोरिया को एक प्रसारण संदेश के द्वारा भी चेतावनी दी है कि गोलीबारी की यह घटना वर्ष 2018 के ‘अंतर कोरियाई सैन्य समझौते’ (Inter-Korean Military Agreement) का उल्लंघन है।
- सितंबर, 2018 में उत्तर कोरिया के शीर्ष नेता ‘किम जोंग उन’ (Kim Jong Un) और दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति ‘मून जेई-इन’ (Moon Jae-in) के बीच हुई एक बैठक के बाद ‘प्योंगयांग संयुक्त घोषणा’ (Pyongyang Joint Declaration) नामक एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- इस समझौते की एक शर्त के तहत दोनों पक्षों के बीच सैन्य तनाव कम करने की बात पर सहमति जाहिर की गई थी।
- लगभग ढाई वर्षों (2.5 Years) के बाद दोनों देशों के बीच हुई गोलीबारी की यह घटना उस युद्ध विराम समझौते का उल्लंघन है, जो वर्ष 1953 में कोरियाई युद्ध को रोकने में बहुत ही महत्त्वपूर्ण रहा था।
गोलीबारी के पूर्व मामले और प्रतिक्रिया:
- दक्षिण कोरिया के अनुसार, गोलीबारी की इस घटना के बाद वह मामले की जाँच कर रहा है और इस पर अधिक जानकारी के लिये उत्तर कोरिया को एक संदेश भी भेजा गया है।
- इस मामले में अभी तक उत्तर कोरिया के द्वारा अलग से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।
- इससे पहले दिसंबर, 2017 में इसी सीमा क्षेत्र में गोलीबारी की एक घटना देखी गई थी, जब एक उत्तर कोरियाई सैनिक ने अपने देश से भाग कर दक्षिण कोरिया में प्रवेश करने का प्रयास किया था।
- गौरतलब है कि उत्तर कोरिया की प्रशासनिक सख्ती और देश में मूलभूत सुविधाओं के अभाव में अक्सर आम लोग (और कई मामलों में सैनिक भी) देश से भाग कर अन्य देशों में शरण लेने का प्रयास करते है, साथ ही कुछ आरोपों के अनुसार, पकड़े जाने पर उत्तर कोरियाई प्रशासन द्वारा ऐसे लोगों को कठोर सजा दी जाती है।
- नवंबर, 2019 में उत्तर कोरिया से भागे एक सैनिक पर उत्तर कोरियाई सैन्य चौकियों से गोलीबारी की गई, जिसके बाद उस सैनिक को दक्षिण कोरिया में चिकित्सीय सहायता प्रदान की गई।
- जनवरी, 2016 में इसी सीमा पर दक्षिण कोरिया द्वारा उत्तर कोरिया के एक संदिग्ध ड्रोन पर भी गोलीबारी की गई थी।
यूनाइटेड नेशंस कमांड की जाँच:
- यूनाइटेड नेशंस कमांड के अनुसार, इस मामले में दोनों ही देशों ने वर्ष 1953 के युद्ध विराम समझौते का उल्लंघन किया है।
- उत्तर कोरिया को इस मामले में अधिक जानकारी साझा करने के लिये आमंत्रित किया गया था परंतु जाँच दल को उत्तर कोरिया की तरफ से कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं प्राप्त हुई।
- हालाँकि जाँच दल यह स्पष्ट करने में सफल नहीं हो सका कि उत्तर कोरिया की तरफ से शुरू हुई गोलीबारी की यह घटना पूर्व नियोजित अथवा जानबूझकर की गई थी या नहीं।
- इस मामले में यूनाइटेड नेशंस कमांड की रिपोर्ट जारी होने के बाद दक्षिण कोरिया ने कहा कि वह इस रिपोर्ट और गोलीबारी में उत्तर कोरिया की भूमिका की समीक्षा के बगैर जाँच को बंद किये जाने से सहमत नहीं है।
- साथ ही दक्षिण कोरिया ने अपनी जवाबी कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा कि वह निर्धारित प्रोटोकॉल के तहत कार्य कर रहा था।
यूनाइटेड नेशंस कमांड:
- यूनाइटेड नेशंस कमांड बहुराष्ट्रीय सैन्य बलों की एकीकृत कमान है।
- इसकी स्थापना जून, 1950 में संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations) के आग्रह पर दक्षिण कोरिया पर उत्तर कोरिया के हमले को रोकने हेतु की गई थी।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council- UNSC) ने इस कमांड के नेतृत्व के लिये अमेरिका का नाम सुझाया था।
- 29 अगस्त, 1950 को ब्रिटिश राष्ट्रमंडल की 27वीं ब्रिगेड इस सेना में शामिल हुई।
- अमेरिका, कोरियाई गणतंत्र (दक्षिण कोरिया) और ब्रिटेन के अतिरिक्त इस कमांड में ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, कोलंबिया, इथियोपिया, फ्राँस, ग्रीस, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, थाईलैंड तथा तुर्की के सैनिकों ने अपना योगदान दिया था।
कोरियाई युद्धविराम समझौता:
- वर्ष 1953 का ‘कोरियाई युद्धविराम समझौता’ एक संघर्ष विराम समझौता था, हालाँकि यह दोनों देशों के बीच युद्धविराम की आधिकारिक घोषणा नहीं थी।
- गौरतलब है कि दक्षिण कोरिया ने राष्ट्रपति ‘सिंग्मैन री’ (Syngman Rhee) के नेतृत्त्व में आधिकारिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये थे।
- हालाँकि दिसंबर, 1991 में उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये जिसके तहत दोनों देशों ने सीमा पर आक्रामकता न बढ़ाने पर सहमति जाहिर की।
युद्ध विराम समझौते का परिणाम:
- युद्ध विराम समझौता लागू होने के बाद से कई मौकों पर दोनों देशों के द्वारा इस समझौते का उल्लंघन किया गया है, जिसके करण दोनों देशों के बीच सतत् रूप से तनाव की स्थिति बनी हुई है।
- हालाँकि इन घटनाओं के बाद भी हाल के वर्षों में दोनों देशों के संबंधों में काफी सुधार हुआ है।
आगे की राह:
- उत्तर और दक्षिण कोरिया की सीमा पर स्थित गैर-सैन्य क्षेत्र वर्तमान में विश्व के सबसे अधिक सक्रिय सैन्य बलों वाली सीमाओं में से एक है और कोरियाई युद्ध से लेकर आज तक इस सीमा पर तनाव की यह स्थिति संपूर्ण विश्व के लिये एक गंभीर चिंता का विषय रही है।
- उत्तर कोरिया द्वारा हाल में किये गए मिसाइल परीक्षणों से यह तनाव और भी जटिल हो गया है ऐसे में कोरियाई देशों के बीच संघर्ष में वृद्धि वर्तमान वैश्विक स्थिरता के लिये एक बड़ा संकट खड़ा कर सकता है, अतः संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सहयोग से विश्व के सभी देशों को कोरियाई संकट के शांतिपूर्ण समाधान के प्रयासों को मज़बूत करना चाहिये।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
चीन द्वारा ‘थाड’ का विरोध
प्रीलिम्स के लिये:टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस मेन्स के लिये:चीन द्वारा ‘थाड’ का विरोध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन ने दक्षिण कोरिया में अमेरिका की ‘थाड’ (Thaad) मिसाइल रक्षा प्रणाली की मौजूदगी को लेकर पुनः आपत्ति दर्ज कराई है।
प्रमुख बिंदु:
- उल्लेखनीय है कि दक्षिण कोरिया में स्थित अमेरिकी बेस में इस मिसाइल रक्षा प्रणाली के नए संस्करण की तैनाती किये जाने की सूचना के बाद चीन ने यह आपत्ति दर्ज दर्ज कराई है।
- चीन का पक्ष:
- चीन ने एक बयान जारी कर अमेरिका से आग्रह किया है कि वह चीन और दक्षिण कोरिया के बीच द्विपक्षीय संबंधों को नुकसान न पहुँचाए।
- दक्षिण कोरिया का पक्ष:
- दक्षिण कोरिया ने भी एक बयान जारी कर कहा है कि मिसाइलों की संख्या में वृद्धि नहीं की गई है। केवल उन्हें नए संस्करणों के साथ प्रतिस्थापित किया गया है।
पृष्ठभूमि:
- ध्यातव्य है कि दक्षिण कोरिया में तैनात अमेरिकी सेना द्वारा ‘थाड मिसाइल रक्षा प्रणाली’ को संचालित किया जाता है।
- उत्तर कोरिया द्वारा बैलिस्टिक मिसाइलों के परीक्षण के मद्देनज़र अमेरिका ने संभावित हमलों के खिलाफ एक जवाबी कार्रवाई के लिये दक्षिण कोरिया में ‘थाड मिसाइल रक्षा प्रणाली’ की तैनाती की थी।
- वर्ष 2017 में उत्तर कोरिया द्वारा जापान में स्थित अमेरिकी ठिकानों की दिशा में कुछ मिसाइलों का परीक्षण किये जाने के पश्चात् कोरियाई प्रायद्वीप में इस घटनाक्रम को लेकर चर्चा बढ़ गई थी।
- इस घटना के बाद अमेरिका ने अपनी योजनाओं में संशोधन कर दक्षिण कोरिया के ओसान में अपने सेना बेस को स्थानांतरित कर दिया था।
- तब से चीन अमेरिका की इस तरह की गतिविधियों को लेकर अपनी चिंता व्यक्त कर रहा है।
चीन द्वारा थाड के विरोध के कारण:
- द वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार, ‘थाड मिसाइल रक्षा प्रणाली’ में उन्नत रडार सिस्टम है जो चीन की सैन्य गतिविधियों पर नज़र रखने में सक्षम है।
- अमेरिका ‘जापान और दक्षिण कोरिया’ में अपने कई सैन्य ठिकानों के माध्यम से पूर्वी एशिया क्षेत्र में मौजूद है जिसको लेकर चीन चिंतित है।
- पूर्वी एशिया के कुछ पर्यवेक्षकों के अनुसार, चीन का मानना है कि अमेरिका ‘दक्षिण कोरिया और जापान’ पर अपना प्रभाव कायम कर रहा है और पूर्वी एशिया में चीन के दीर्घकालिक सैन्य, राजनयिक और आर्थिक हितों पर हस्तक्षेप कर सकता है।
पूर्व में थाड को लेकर चीन की प्रतिक्रिया:
- वर्ष 2017 में चीन ने ‘थाड’ के मद्देनज़र दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया था। दक्षिण कोरियाई व्यवसायों और एलजी, लोटे और सैमसंग जैसी बड़ी कंपनियों के विविध कार्यों में चीन द्वारा बाधा उत्पन्न की गई थी।
- कई चीनी पर्यटक कोरियाई मनोरंजन के प्रशंसक हैं और दक्षिण कोरिया की यात्रा करते हैं। इस घटनाक्रम के मद्देनज़र दक्षिण कोरिया के पर्यटन क्षेत्र में भारी गिरावट आई थी।
- दक्षिण कोरियाई सौंदर्य उत्पाद की मांग चीन में अत्यधिक है। सोशल मीडिया पर दक्षिण कोरियाई उत्पादों के बहिष्कार के आह्वान के कारण उनकी बिक्री पर भी असर देखा गया था।
थाड (THAAD) |
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) और भारत
प्रीलिम्स के लिये:क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी मेन्स के लिये:RCEP और भारत के स्थानीय हित, वैश्विक व्यापार में भारत की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार ने चीन के संदर्भ में अपनी चिंताओं के कारण आसियान (Association of Southeast Asian Nations-ASEAN) देशों के नेतृत्त्व में बने ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी’ (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) समझौते में न शामिल होने का फैसला किया है।
प्रमुख बिंदु:
- COVID-19 के अनुभव और चीन या किसी एक ही देश पर आयात हेतु निर्भर देशों के अनुभवों ने भारत के RCEP में न शामिल होने के विचारों को और अधिक मज़बूत किया है।
- पिछले महीने RCEP ‘व्यापार वार्ता समिति’ (Trade Negotiating Committee -TNC) के अध्यक्ष ने अपने पत्र में कहा था कि यदि भारत पुनः RCEP में शामिल होता है तो समूह भारत द्वारा की गई आपत्ति (कुछ ही उत्पादों को बाज़ार की पहुँच’ उपलब्ध कराने के संदर्भ में) पर पुनः विचार कर सकता है।
- गौरतलब है कि नवंबर, 2019 में भारतीय प्रधानमंत्री ने भारत के कृषि और कुछ अन्य क्षेत्रों के हितों की रक्षा को कारण बताते हुए RCEP से अलग होने की घोषणा की थी।
- RCEP से अलग होने के बाद भारत इस समूह की कम-से-कम दो अलग बैठकों (फरवरी में इंडोनेशिया के बाली में आयोजित बैठक और अप्रैल में आयोजित वर्चुअल RCEP बैठक) में नहीं शामिल हुआ है।
- अप्रैल में आयोजित RCEP व्यापार वार्ता समिति बैठक में वर्ष 2020 के अंत तक इस समझौते पर हस्ताक्षर करने को प्रतिबद्ध देशों के वार्ताकारों ने समूह के विधिक मामलों की त्रुटियों/आपत्तियों को दूर किया।
क्या है RCEP?
- ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी’ (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) एक मुक्त व्यापर की संधि है।
- इस समझौते का उद्देश्य आसियान और इसके मुक्त व्यापार समझौते में शामिल होना भारतीय औद्योगिक क्षेत्र के लिये लाभदायक हो सकता है।
- RCEP वार्ताओं की शुरुआत नवंबर, 2012 में कंबोडिया में आयोजित आसियान समूह के 21वें शिखर सम्मेलन में की गई थी।
- इस समझौते में 10 आसियान देशों के साथ 6 अन्य देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया और भारत) को शामिल करने का प्रस्ताव किया गया था।
- भारत सहित RCEP के सदस्य देश विश्व की लगभग आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं, साथ ही ये देश विश्व के एक चौथाई निर्यात तथा कुल वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 30% का योगदान देते हैं।
RCEP में भारत को शामिल करने की मांग :
- RCEP द्वारा 30 अप्रैल को जारी एक पत्र के अनुसार, यह समूह COVID-19 के कारण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर पड़े नकारात्मक प्रभावों को कम करने तथा निवेश में वृद्धि करने हेतु सदस्य देशों को एक स्थिर और पूर्वानुमान योग्य आर्थिक वातावरण उपलब्ध कराएगा।
- समूह के 15 सदस्यों ने भारत के साथ समूह के संदर्भ में असहमतियों को दूर करने की प्रतिबद्धता को दोहराया तथा कहा कि वे RCEP की वार्ता में भारत की वापसी का स्वागत करेंगे।
- ऑस्ट्रेलियाई नामित उच्चायुक्त के अनुसार, यदि भारत समूह में पुनः शामिल होना चाहता है तो यह सबसे बेहतर समय होगा, क्योंकि यह दुनिया को कि न सिर्फ भारत के निवेश का एक आकर्षक स्थान/बाज़ार होने का संदेश देगा बल्कि इससे लोगों को ‘मेक इन इंडिया' (Make In India) पहल के तहत उत्पादन केंद्र बनने की भारत की क्षमता के बारे में भी पता चलेगा।
- साथ ही भारत को समूह में चीन की उपस्थिति के बीच एक सकारात्मक संतुलन की तरह देखा जा रहा है।
भारत की चुनौतियाँ:
- नवंबर, 2019 के भारतीय प्रधानमंत्री के वक्तव्य के अनुसार, वर्तमान RCEP अपनी मूल भावना और इस समझौते के तहत मार्गदर्शक सिद्धांतों को प्रतिबिंबित नहीं करता है।
- भारत के लिये RCEP मुक्त व्यापार संधि में शामिल होने की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि समूह के 15 में से 11 देशों के साथ भारत का व्यापार घाटे में रहा है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के साथ मुक्त व्यापार संधि में शामिल होने से डेयरी उत्पाद से जुड़ी स्थानीय इकाईयों को भारी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ सकता है, साथ ही स्टील और कपड़ा उद्योग से जुड़े व्यवसाईयों ने भी इस संदर्भ में अपनी चिंताएँ व्यक्त की हैं।
- समूह में शामिल होने से पहले भारतीय उद्योग और व्यवसायी चीन जैसे देशों से उत्पादित सस्ते सामानों के आयात में वृद्धि को लेकर भी चिंतित थे।
आगे की राह:
- पिछले कुछ वर्षों में RCEP देशों ने तकनीकी और विनिर्माण जैसे में क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, ऐसे में इस समूह की आपूर्ति श्रंखला में शामिल होना भारतीय औद्योगिक क्षेत्र के लिये लाभदायक हो सकता है।
- हालाँकि वर्तमान परिस्थिति में चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के उत्पादकों को भारतीय बाज़ार की खुली पहुँच प्रदान करना स्थानीय उद्योगों के लिये एक बड़ी चुनौती का कारण बन सकता है।
- परंतु नवीन तकनीकी विकास में भाग लेने और वैश्विक बाज़ार में लाभ प्राप्त करने हेतु अधिक दिनों तक इस संरक्षणवादी नीति को नहीं बनाए रखा जा सकता अतः सरकार को स्थानीय क्षमता के विकास हेतु महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान कर नवोन्मेष, आर्थिक सहयोग जैसे माध्यमों से उनके विकास को बढ़ावा देना होगा।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
SpaceX का अंतरिक्ष कैप्सूल ISS पहुंचा
प्रीलिम्स के लिये:ड्रैगन क्रू कैप्सूल मेन्स के लिये:वाणिज्यिक अंतरिक्ष यात्रा |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन’ (National Aeronautical and Space Administration- NASA) ने निजी कंपनी SpaceX के रॉकेट से दो अंतरिक्ष यात्रियों को 'अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन' (International Space Station- ISS) भेजा है। इसी के साथ दुनिया में ‘वाणिज्यिक अंतरिक्ष यात्रा’ की शुरुआत हो गई है।
प्रमुख बिंदु:
- अंतरिक्ष यात्री डग हार्ले (Doug Hurley) और बॉब बेनकेन (Bob Behnken) SpaceX के रॉकेट Falcon 9 की मदद से ‘अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन‘ पहुँचे हैं।
- यात्रियों को जिस क्रू कैप्सूल के माध्यम से ले जाया गया है उसे ‘क्रू ड्रैगन’ (Crew Dragon) नाम दिया गया है।
अंतरिक्ष यान की यात्रा:
- SpaceX का फाल्कन- 9 दो चरणों वाला रॉकेट है जिसने ‘फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर’ (Florida's Kennedy Space Center) से यात्रा प्रारंभ की।
- SpaceX के कैप्सूल को ISS के साथ 'डॉकिंग प्रक्रिया' को पूरा करने में 28,000 किमी. प्रति घंटे की गति से 19 घंटे का समय लगा।
- डॉकिंग प्रक्रिया में दो अलग-अलग स्वतंत्र रूप से अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले वाहनों को एक साथ जोड़ा जाता है।
- ISS पहुँचने के साथ ही यात्रा का प्रथम चरण पूरा हो गया है परंतु मिशन को तभी सफल घोषित किया जाएगा जब अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर सुरक्षित लौट आएंगे।
अंतरिक्ष यात्रा का शरीर पर प्रभाव:
- पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की सीमा के ऊपर विकिरण के कारण कैंसर का खतरा बढ़ जाता है साथ में केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और संज्ञानात्मक क्रियाएँ (पहचान संबंधी समस्याएँ) भी प्रभावित हो सकते हैं।
- एक लंबे समय तक एक छोटी सी जगह में लोगों के समूहों को रखा जाता है, तो उनके बीच व्यवहार संबंधी मुद्दे उभर आते हैं चाहे वे कितने भी प्रशिक्षित क्यों न हों।
- एक अंतरिक्ष यात्री को संचार में देरी, उपकरणों की विफलता या चिकित्सा- आपातकाल जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
- मानक गुरुत्वाकर्षण में कमी या वृद्धि का हड्डियों, मांसपेशियों, हृदय प्रणाली सभी पर प्रभाव पड़ता है।
- रॉकेट में यात्रियों के लिये आवश्यक तापमान, दबाव, प्रकाश, ध्वनि आदि को मानव आवश्यकता के अनुसार अनुकूलित करना होता है
रूस पर अमेरिका की निर्भरता:
- नासा द्वारा वर्ष 2011 में 'अंतरिक्ष शटल कार्यक्रम’ (Space Shuttle Programme) समाप्त होने की घोषणा कर दी गई थी। इसके बाद से रूसी ‘सोयुज़’ एकमात्र ऐसे अंतरिक्ष यान हैं जो अंतरिक्ष यात्रियों को ISS में आवागमन की सुविधा देते हैं। NASA रूस के ‘सोयुज़ स्पेस शटल’ कार्यक्रम पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहता है।
निजी क्षेत्र का सहयोग:
- नासा ने अपने 'वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम' (Commercial Crew Programme- CCP) के तहत निजी क्षेत्र की कंपनियों SpaceX और बोइंग (Boeing) के साथ अंतरिक्ष यान निर्माण के लिये समझौते किया था। अमेरिका द्वारा भविष्य में अंतरिक्ष यान का उपयोग करने के लिये लगभग 7 बिलियन डॉलर का अनुबंध किया गया था।
- लेकिन बोइंग कंपनी, विगत वर्ष किये गए परीक्षण के असफल रहने के बाद SpaceX कंपनी से अलग हो गई।
- यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि अमेरिका ‘वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम’ के तहत ऐसी कंपनियों को निवेश के लिये आमंत्रित कर रहा है जो अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तथा पृथ्वी की निचली कक्षा में अंतरिक्ष परिवहन सेवाएँ प्रदान कर सकें।
मिशन की सफलता का महत्त्व:
- दोनों यात्रियों के प्रवास के दौरान व्यापक परीक्षण किये जाएंगे ताकि भविष्य में ISS की वाणिज्यिक यात्रा की दिशा में अमेरिका की दक्षता को प्रमाणित किया जा सके।
- इससे अमेरिका की ‘अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन’ आधारित मिशन के लिये रूस पर निर्भरता में कमी आएगी।
- निजी क्षेत्र के प्रवेश से अन्य ग्रहों पर आधारित अमेरिका के अंतरिक्ष मिशनों को पूरा करने में मदद मिलेगी।
रूस की प्रतिक्रिया:
- रूस का मानना है कि एक बार 'क्रू ड्रैगन' की सेवा प्रारंभ होने के साथ ही अमेरिका-रूस सहयोग समाप्त नहीं होगा।
- नासा अभी भी कुछ अंतरिक्ष यात्रियों को सोयुज रॉकेट से अंतरिक्ष भेजने की योजना बना रहा है, जिसमें प्रत्येक सीट की कीमत लगभग 80 मिलियन डॉलर है।
नासा के अन्य अंतरिक्ष यात्रा कार्यक्रम:
- अमेरिका वर्ष 1950 के दशक से मंगल ग्रह पर एक चालक दल मिशन भेजने की योजना बना रहा है। अनेक अध्ययनों के बावजूद अमेरिका द्वारा इस दिशा में परीक्षण नहीं किये गए। वर्तमान समय में वर्ष 2030 तक मंगल ग्रह पर मानव मिशन को भेजने की योजना है।
- अमेरिका वर्ष 2024 तक आर्टेमिस मिशन (Artimis mission) के माध्यम से चंद्रमा पर पुन: मानव मिशन भेजने की तैयारी कर रहा है।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
बैंड-टेल स्कॉर्पियन फिश
प्रीलिम्स के लिये:न्यूरोटॉक्सिन, बैंड-टेल स्कॉर्पियन फिश मेन्स के लिये:मन्नार की खाड़ी का जैव विविधीय महत्त्व |
चर्चा में क्यों
हाल ही में सेंट्रल मरीन फिशरीज़ रिसर्च इंस्टीट्यूट (Central Marine Fisheries Research Institute- CMFRI) के शोधकर्त्ताओं द्वारा मन्नार की खाड़ी में स्थित सेतुकराई तट पर एक दुर्लभ प्रजाति की मछली की खोज की गई है।
प्रमुख बिंदु:
- ऐसा पहली बार है कि जब भारतीय जल क्षेत्र में कोई विशेष जलीय प्रजाति जीवित खोज़ी गई हो।
- सेंट्रल मरीन फिशरीज़ रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा इस मछली की खोज़ मन्नार की खाड़ी में समुद्री घास के मैदान (Seagrass Meadows) का सर्वेक्षण करने के दौरान की गई।
- वैज्ञानिकों द्वारा बताया गया कि छिपकर रहने वाली यह ‘बैंड-टेल स्कॉर्पियन फिश’ मछली की एक दुर्लभ प्रजाति है जो ज़हरीले काँटों से युक्त है।
- इसका जूलॉजिकल नाम स्कोर्पेनोसप्सिस नेगलेक्टा (Scorpaenospsis neglecta) है।
- बैंड-टेल स्कॉर्पियन फिश शिकार करते समय तथा शिकार से बचने के लिये अपना रंग बदलने में भी सक्षम है।
- पानी के अंदर सर्वेक्षण के दौरान यह मछली एक भ्रामक स्थिति उत्पन्न करती है जोकि एक मूंगा कंकाल (Coral Skeleton) की तरह दिखाई देती है।
- मछली को 'स्कोर्पियन फ़िश' कहे जाने का प्रमुख कारण इसकी रीढ़ में न्यूरोटॉक्सिक विष (Neurotoxic Venom) की उपस्थिति है।
न्यूरोटॉक्सिन (Neurotoxic):
- न्यूरोटॉक्सिन एक विषाक्त पदार्थ हैं जो तंत्रिका ऊतक (Nerve Tissue) के लिये हानिकारक होता हैं।
- न्यूरोटॉक्सिन बहिर्जात रासायनिक न्यूरोलॉजिकल का एक विशाल वर्ग है।
- यह विकासशील और परिपक्व दोनों प्रकार के ऊतकों के कार्य को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है।
- जब मछली की रीढ़ किसी कठोर सतह या व्यक्ति के साथ लगती/चुभती है तो इसकी रीढ़ में उपस्थित विष तुरंत सतह में प्रवेश कर जाता है जो बहुत दर्द उत्पन्न कर सकता है।
मन्नार की खड़ी:
- यह इलाका समुद्री जैव विविधता के मामले में दुनिया के सबसे धनी क्षेत्रों में से एक है।
- यूनेस्को के मुताबिक मन्नार की खाड़ी में 4,223 समुद्री प्रजातियों का वास है तथा यह जैव विविधता के मामले में भारत के सबसे संपन्न तटीय क्षेत्रों में से एक है।
सेतुकराई(Sethukarai):
- सेतुकराई तमिलनाडु का प्रमुख तीर्थस्थल है।
- ऐसी मान्यता है कि भगवान राम ने लंका तक जाने के लिये सेतुकराई से ही पुल का निर्माण किया था।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
मिसाइल पार्क
प्रीलिम्स के लिये:आईएनएस कलिंग, मिसाइल पार्क मेन्स के लिये:मिसाइल पार्क का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 28 मई, 2020 को भारतीय पूर्वी नौसेना कमान (Eastern Naval Command-ENC) ‘आईएनएस कलिंग’ में एक मिसाइल पार्क (Missile Park) 'अग्निप्रस्थ' (Aganeeprastha) की आधारशिला रखी गई है।
प्रमुख बिंदु:
- इस पार्क को उन सभी अधिकारियों, नाविकों और सहायक कर्मचारियों को समर्पित किया जाएगा जिन्होंने वर्ष 1981 में ‘पूर्वी नौसेना कमान’ की स्थापना के बाद से आईएनएस के ‘ऑप-सपोर्ट बेस’(Op-Support Base) में अपनी सेवाएँ प्रदान की हैं।
- वर्ष 2018-19 में आईएनएस कलिंग को प्रतिष्ठित यूनिट प्रशस्ति पत्र का पुरस्कार भी दिया जा चुका है।
- पार्क की स्थापना का उद्देश्य वर्ष 1981 से अब तक INS कलिंगा के मिसाइल इतिहास से लोगों को परिचित कराना है।
- इस मिसाइल पार्क की स्थापना मिसाइलों और ग्राउंड सपोर्ट इक्विपमेंट (Ground Support Equipment- GSE) की प्रतिकृति के साथ की जाएगी जो यूनिट द्वारा नियंत्रित मिसाइलों के विकास को प्रदर्शित करता है।
- पार्क का मुख्य आकर्षण पी-70 'अमेटिस्ट'(P-70 Ametist) है, जो पुराने ‘(चार्ली-1 पनडुब्बी) शस्त्रागार से पानी के नीचे प्रक्षेपित एक एंटी-शिप मिसाइल है। यह एंटी-शिप मिसाइल वर्ष 1988-91 के दौरान भारतीय नौसेना में अपनी सेवाएँ प्रदान कर रही थी।
- यह पार्क स्कूली बच्चों से लेकर नौसेना कर्मियों तथा उनके परिवारों को मिसाइलों और संबंधित प्रौद्योगिकियों के बारे में जिज्ञासु प्रवृत्ति को प्रेरित करने के लिये एक स्थान प्रदान करेगा।
आईएनएस कलिंग:
- आईएनएस कलिंग भारतीय नौसेना का पूर्वी नौसेना कमान क्षेत्र है।
- यह स्टेशन 734.1 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है।
- आईएनएस कलिंग को 21 नवंबर 1985 में कमीशन किया गया था।
- आईएनएस कलिंग विशाखापट्टनम, भीमुनिपटनम बीच रोड पर स्थित है जो विशाखापट्टनम नेवल बेस से लगभग 40 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है।
- यह पूर्वी बेड़े के जहाज़ों के लिये उन्नत मिसाइलों को तैयार करने, भंडारण और वितरित करने के लिये ज़िम्मेदार है।
स्रोत: पीआईबी
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 01 जून, 2020
स्मार्ट बैंडेज
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science & Technology-DST) के अधीन स्वायत्त संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी (Institute of Advanced Study in Science and Technology) के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी स्मार्ट बैंडेज (Smart Bandage) विकसित की है, जो घाव तक दवा की सही डोज़ पहुँचाकर उसे ठीक कर सकती है। यह स्मार्ट बैंडेज घाव में संक्रमण की स्थिति के अनुरूप उसके PH स्तर को देखते हुए दवा की डोज़ जारी करती है। बैंडेज के निर्माण में वैज्ञानिकों ने कपास और जूट जैसी टिकाऊ और सस्ती सामग्रियों का इस्तेमाल किया है। जूट और सूती कपड़े से बनाई गई यह स्मार्ट बैंडेज घाव में बैक्टीरिया के संक्रमण के स्तर को देखते हुए कार्य करती है। इस बैंडेज में संक्रमण जिस स्तर का है, दवा भी बैंडेज से उसी के अनुरूप खुद-ब-खुद निकलती है। यदि घाव में बैक्टीरिया का स्तर बढ़ रहा हो तो बैंडेज से दवा का रिसाव कम PH स्तर पर होता है। उल्लेखनीय है कि किसी भी घाव के आसपास, बैक्टीरिया का संक्रमण होने पर उसके PH अर्थात अम्लीयता या क्षारीयता में बदलाव आ जाता है। इसलिये स्मार्ट बैंडेज में PH की स्थिति के अनुरूप दवा के रिसाव की प्रणाली विकसित की गई है। संक्रमण के अनुकूल दवा के रिसाव की इसकी यह विशेषता इस बैंडेज को अनूठा बनाती है। बैंडेज बनाने के लिये कपास और जूट जैसी सस्ती और टिकाऊ सामग्री का इस्तेमाल इसे जैविक रुप से दुष्प्रभाव रहित, विषाक्तता रहित, कम खर्चीला और टिकाऊ बनाता है।
वाजिद खान
बॉलीवुड के प्रसिद्ध संगीतकार और संगीत निर्देशक (Music Director) वाजिद खान का 01 जून, 2020 को 42 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। वाजिद खान प्रसिद्ध तबला वादक उस्ताद शराफत अली खान के पुत्र थे। वाजिद खान अपने भाई साजिद खान से दो वर्ष छोटे थे। बॉलीवुड में साजिद-वाजिद की जोड़ी काफी प्रसिद्ध थी, दोनों ही लोगों ने बॉलीवुड में अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1998 में प्रसिद्ध अभिनेता सलमान खान की फिल्म ‘प्यार किया तो डरना क्या’ के साथ की थी। इसके पश्चात् उन्होंने वर्ष 1999 में सोनू निगम की एल्बम 'दीवाना' के लिये संगीत दिया। वाजिद खान संगीत निर्देशक के साथ-साथ अच्छे गायक भी थे और उन्होंने बॉलीवुड की कई फिल्मों को अपनी आवाज़ दी। इसके अतिरिक्त वाजिद खान ने इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) के चौथे सीज़न के थीम सॉंग को भी अपनी आवाज़ दी थी। साजिद-वाजिद की जोड़ी द्वारा जीते गए कुछ पुरस्कारों में 'फिल्मफेयर अवार्ड', 'मिर्ची म्यूज़िक अवार्ड्स', 'ज़ी सिने अवार्ड्स', और ‘स्टार स्क्रीन अवार्ड' आदि शामिल हैं।
विश्व दुग्ध दिवस
वैश्विक स्तर पर दुग्ध (Milk) के महत्त्व को उजागर करने के लिये प्रतिवर्ष 1 जून को विश्व दुग्ध दिवस (World Milk Day) मनाया जाता है। वर्ष 2001 में पहली बार विश्व दुग्ध दिवस मनाया गया था। विश्व दुग्ध दिवस की शुरुआत सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation-FAO) द्वारा की गई थी। विश्व दुग्ध दिवस 2020 के लिये 'विश्व दुग्ध दिवस की 20वीं वर्षगांठ' (20th Anniversary of World Milk Day) को थीम के रूप में चुना गया है, विश्व दुग्ध दिवस 2019 की थीम- ‘ड्रिंक मिल्क टुडे एंड एवरीडे’ (Drink Milk: Today & Everyday) रखी गई थी। यह दिवस इस तथ्य को उजागर करने के लिये मनाया जाता है कि किस प्रकार डेयरी एक अरब लोगों की आजीविका का एक प्रमुख साधन है। भारत बीते कुछ वर्षों में 150 मिलियन टन से अधिक दुग्ध उत्पादन के साथ विश्व में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है। भारत में प्रत्येक वर्ष 26 नवंबर को ‘राष्ट्रीय दुग्ध दिवस’ (National Milk Day) मनाया जाता है। भारत में यह दिवस श्वेत क्रांति के जनक डॉ. वर्गीज़ कुरियन के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की स्थापना वर्ष 1945 में कृषि उत्पादकता और ग्रामीण आबादी के जीवन निर्वाह की स्थिति में सुधार करने और पोषण तथा जीवन स्तर को उन्नत बनाने के उद्देश्य के साथ की गई थी।
बॉबी जो मोरो
1956 के मेलबॉर्न (Melbourne) ओलंपिक में तीन स्वर्ण पदक जितने वाले धावक बॉबी जो मोरो (Bobby Joe Morrow) का 84 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। मेलबॉर्न ओलंपिक में वर्ष 1956 में मोरो ने 100 मीटर, 200 मीटर और 4 ×100 मीटर में स्वर्ण पदक जीता था और वे अमेरिका के प्रसिद्ध एथलीट (Athletics) जेसी ओवेन्स (Jesse Owens) के बाद ऐसा करने वाले दूसरे एथलीट बन गए थे। इसके बाद अमेरिका के कार्ल लुईस (Carl Lewis) और जमैका के उसैन बोल्ट (Usain Bolt) ने भी यह उपलब्धि प्राप्त की थी। बॉबी जो मोरो का जन्म 15 अक्तूबर, 1936 को अमेरिका के टेक्सास (Texas) में हुआ था। वर्ष 1956 से वर्ष 1958 के मध्य बॉबी जो मोरो विश्व के शीर्ष धावक रहे। बॉबी जो मोरो ने वर्ष 1958 में अंतर्राष्ट्रीय खेल से संन्यास ले लिया था, हालाँकि उन्होंने वर्ष 1960 में कुछ समय के लिये वापसी की थी, किंतु अमेरिका के ओलंपिक समूह में स्थान बनाने में विफल रहे। उन्हें वर्ष 1975 में नेशनल ट्रैक एंड फील्ड हॉल ऑफ फेम (National Track and Field Hall of Fame) के लिये चुना गया था।