भारतीय इतिहास
भीमा-कोरेगाँव युद्ध-1818
प्रीलिम्स के लिये:
भीमा-कोरेगाँव युद्ध
मेन्स के लिये:
भीमा-कोरेगाँव युद्ध की ऐतिहसिक पृष्ठभूमि तथा वर्तमान परिदृश्य
चर्चा में क्यों?
1 जनवरी, 2020 को वर्ष 1818 में हुए भीमा-कोरेगाँव युद्ध को 202 वर्ष पूरे हो गए हैं।
मुख्य बिंदु:
- महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित पेरने गाँव में भीमा -कोरेगाँव युद्ध के सैनिकों की स्मृति में रणस्तंभ का निर्माण किया गया है, जहाँ प्रत्येक वर्ष 1 जनवरी को इस युद्ध की वर्षगाँठ मनाई जाती है।
भीमा-कोरेगाँव युद्ध?
- 1 जनवरी, 1818 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया के 500 सैनिकों की एक छोटी कंपनी, जिसमें ज़्यादातर सैनिक महार समुदाय से थे, ने पेशवा शासक बाजीराव द्वितीय की लगभग 28,000 हज़ार सैनिकों वाली सेना को लगभग 12 घंटे तक चले युद्ध में पराजित किया था।
- भीमा-कोरेगाँव के युद्ध में जिन महार सैनिकों ने लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की, उनके सम्मान में वर्ष 1822 में भीमा नदी के किनारे काले पत्थरों से एक रणस्तंभ का निर्माण किया गया।
स्रोत- द हिंदू
भारतीय राजनीति
बेलगाम विवाद
प्रीलिम्स के लिये:
बेलगाम का ऐतिहासिक महत्त्व
मेन्स के लिये:
भाषायी आधार पर राज्यों का विलय एवं एकीकरण
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कर्नाटक-महाराष्ट्र राज्य की सीमा पर स्थित बेलगाम पर अधिकार को लेकर दोनों राज्यों में तनाव की स्थिति देखी गई है।
मुख्य बिंदु:
- बेलगाम कर्नाटक और महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित है, जहाँ मराठी भाषी बहुसंख्यक निवास करते हैं।
क्या है विवाद?
- बेलगाम पर महाराष्ट्र अपना दावा करता रहा है क्योंकि यहाँ मराठी भाषी लोगों की बड़ी आबादी रहती है लेकिन यह ज़िला कर्नाटक के अंतर्गत आता है।
- हाल ही में एक कन्नड़ संगठन की ओर से महाराष्ट्र एकीकरण समिति पर की गई टिप्पणी के बाद बेलगाम को लेकर जारी दशकों पुराना यह विवाद फिर से गरमा गया।
- महाराष्ट्र एकीकरण समिति कर्नाटक के मराठी भाषी आबादी वाले इलाकों को महाराष्ट्र में सम्मिलित करने के लिये संघर्ष कर रही है।
- महाराष्ट्र सरकार ने दिसंबर, 2019 की शुरुआत में कर्नाटक सरकार के साथ सीमा विवाद से संबंधित मामलों पर बातचीत तेज़ करने के प्रयासों की समीक्षा के लिये दो मंत्रियों को ‘समन्वयक’ बनाया है।
बेलगाम का ऐतिहासिक महत्त्व:
- कर्नाटक के बेलगाम शहर का ऐतिहासिक महत्त्व है।
- बेलगाम में 1924 में कॉन्ग्रेस का अधिवेशन हुआ जिसकी अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की।
- लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने वर्ष 1916 में बेलगाम से ही अपना ‘होम रूल लीग‘ आंदोलन शुरु किया था।
बदलते परिदृश्य में सरकारों को क्षेत्रवाद के स्वरूप को समझना होगा। यदि यह विकास की मांग तक सीमित है तो उचित है, परंतु यदि क्षेत्रीय टकराव को बढ़ावा देने वाला है तो इसे रोकने के प्रयास किये जाने चाहिये। वर्तमान में क्षेत्रवाद संसाधनों पर अधिकार करने और विकास की लालसा के कारण अधिक पनपता दिखाई दे रहा है। इसका एक ही उपाय है कि विकास योजनाओं का विस्तार सुदूर तक हो। सम-विकासवाद ही क्षेत्रवाद का सही उत्तर हो सकता है।
स्रोत- द हिंदू
भारतीय राजनीति
आंध्र प्रदेश की तीन राजधानियाँ
प्रीलिम्स के लिये:
राजव्यवस्था, सामयिकी
मेन्स के लिये:
राजव्यवस्था
चर्चा में क्यों?
27 दिसंबर, 2019 को आंध्र प्रदेश मंत्रिमंडल ने राज्य की राजधानी को तीन अलग स्थानों पर स्थानांतरित करने का निर्णय लिया।
मुख्य बिंदु:
- आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने 17 दिसंबर, 2019 को घोषणा की थी कि दक्षिण अफ्रीका मॉडल पर राज्य की तीन विकेंद्रीकृत राजधानियाँ हो सकती हैं।
- ध्यातव्य है कि आंध्र प्रदेश की नई राजधानी के रूप में अमरावती शहर को प्रस्तावित किया गया था और जिसका निर्माण वर्ष 2015 से चल रहा है।
- नई घोषणा के अनुसार, निर्माणाधीन अमरावती विधायी राजधानी, तटवर्ती विशाखापत्तनम कार्यकारी राजधानी और कर्नूल न्यायिक राजधानी के रूप में स्थापित हो सकती है।
- यह निर्णय रिटायर्ड IAS जी. एन. राव की अध्यक्षता में बनी समिति के सुझावों के आधार पर लिया गया।
राजधानी को विकेंद्रीकृत करने का कारण:
- समिति के अध्यक्ष जी. एन. राव ने कहा कि राजधानी का विकेंद्रीकरण करना राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में संतुलन बनाए रखने में सहायक होगा।
- राज्य के आंचलिक क्षेत्रों तक सरकार की पहुँच बढ़ेगी।
दक्षिण अफ्रीका की विकेंद्रीकृत राजधानी :
- दक्षिण अफ्रीका की राजधानी आधिकारिक रूप से तीन शहरों में विभाजित है-
- विधायिका- केपटाउन
- कार्यपालिका - प्रिटोरिया
- न्यायपालिका - ब्लूमफ़ोनटेन
- दक्षिण अफ्रीका की यह व्यवस्था द्वितीय बोर-युद्ध Second Boer War (1899-1902) का परिणाम है, जिसमें ब्रिटेन ने दो अफ्रीकी भाषी राज्यों द ऑरेंज फ्री स्टेट (The Orange Free State) और दक्षिण अफ्रीकी गणतंत्र (ट्रांसवाल गणतंत्र) को जीत लिया था।
- इस दौरान वर्ष 1872 में स्वशासित राज्य बनने तक केप ऑफ गुड होप (Cape of Good Hope) ब्रिटिश साम्राज्य में ही रहा तथा अन्य तीनों उपनिवेशों के साथ मिलकर वर्ष 1910 में दक्षिण अफ्रीकी संघ का हिस्सा बना।
एक से अधिक राजधानियों के अन्य उदाहरण:
- श्रीलंका की आधिकारिक राजधानी श्री जयवर्धनेपुरा कोट्टे है और यहीं पर राष्ट्रीय विधायिका भी है परंतु वास्तविक कार्यपालिका और न्यायपालिका कोलम्बो में स्थित है।
- मलेशिया की आधिकारिक और राजकीय राजधानी कुआलालंपुर में है और यहीं पर देश की विधायिका भी स्थित है तथा कार्यपालिका एवं न्यायपालिका पुत्रजया से कार्य करती हैं।
भारत के अन्य एक से अधिक राजधानी वाले अन्य राज्य:
- भारतीय राज्यों में महाराष्ट्र की दो राजधानियाँ मुंबई और नागपुर हैं (राज्य विधानसभा का शीतकालीन सत्र नागपुर विधानसभा में होता है)।
- हिमाचल प्रदेश की दो राजधानियाँ शिमला और धर्मशाला (शीतकालीन) हैं।
- पूर्व राज्य जम्मू और कश्मीर की दो राजधानियाँ श्रीनगर एवं जम्मू (शीतकालीन) थीं।
विकेंद्रीकृत राजधानी के लाभ:
- प्रशासन के प्रमुख तंत्रों के विकेंद्रीकृत होने से राज्य के सुदूर हिस्सों में सरकार की पहुँच बढ़ती है।
- प्रमुख सरकारी संस्थानों के विकेंद्रीकृत होने से एक ही स्थान के बजाय कई क्षेत्रों में निवेश के नए अवसर उत्पन्न होते हैं।
- जनता के मध्य सांस्कृतिक मेलजोल को बढ़ावा मिलता है।
विकेंद्रीकृत राजधानी के दुष्प्रभाव:
- प्रशासन के प्रमुख तंत्रों के विकेंद्रीकृत होने से संस्थानों में आपसी सामंजस्य की समस्या।
- शासन में नौकरशाही का दखल बढ़ता है।
- समय की हानि आदि।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
SDGs की प्राप्ति हेतु नीति आयोग का प्रयास
प्रीलिम्स के लिये:
सतत् विकास लक्ष्य, नीति आयोग, सतत् विकास लक्ष्य भारत सूचकांक
मेन्स के लिये:
सतत् विकास लक्ष्य और भारत, लैंगिक समानता से संबंधित मुद्दे
चर्चा में क्यों?
सरकार के थिंकटैंक नीति आयोग (NITI Aayog) ने नियत समय में सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals-SDG) की प्राप्ति सुनिश्चित करने हेतु विकास के क्षेत्र में ऐतिहासिक रूप से पिछड़े राज्यों के साथ वित्तपोषण अभ्यास (Financing Exercise) शुरू करने की योजना बनाई है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- नीति आयोग ने अपने सतत् विकास लक्ष्य भारत सूचकांक (Sustainable Development Goal India Index) रिपोर्ट में यह चिंता ज़ाहिर की है कि यदि राज्य उल्लेखनीय प्रगति नहीं करते हैं तो भारत सतत् विकास लक्ष्यों को नियत समय में प्राप्त करने में पीछे रह जाएगा।
- नीति आयोग ने सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु पिछड़े राज्यों के साथ मिलकर काम करना शुरू कर दिया है, जिससे वे SDG निगरानी प्रणाली स्थापित करने में सक्षम हो गए हैं और साथ ही नीति आयोग संस्थानों के निर्माण, क्षमता, ज्ञान और अभिसरण में साझेदारी हेतु उनका समर्थन भी कर रहा है।
- सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में बिहार, झारखंड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, उत्तर प्रदेश और असम का प्रदर्शन सबसे खराब था।
- नीति आयोग ने पहले ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के सहयोग से मुख्य SDGs को प्राप्त करने की वित्तीय लागत का अनुमान लगाना शुरू कर दिया है। सहयोग के अगले चरण के रूप में, विकास की दिशा में पिछड़े राज्यों के साथ वित्तपोषण अभ्यास शुरू करने की योजना है।
- संयुक्त राष्ट्र प्रणाली (United Nation System) के साथ साझेदारी में राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और स्थानीय सरकारों के लिये एक व्यापक क्षमता निर्माण कार्यक्रम बनाया जा रहा है।
- प्रशिक्षण मॉड्यूल (Training Modules) बड़े पैमाने पर SDGs निगरानी ढाँचे को विकसित करने, संकेतकों की पहचान और डिज़ाइन तैयार करने के साथ ही स्थानीयकरण एवं डैशबोर्ड को कवर करेगा।
SDGs भारत सूचकांक के अनुसार SDGs की प्राप्ति में चुनौतियाँ
- सतत् विकास लक्ष्य भारत सूचकांक, 2019 की रिपोर्ट में सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय मानकों पर राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों की प्रगति का मूल्यांकन किया गया है। इस रिपोर्ट में पाया गया है कि भारत पाँच लक्ष्यों में सुधार के आधार पर अपने औसत स्कोर में सुधार करने में कामयाब रहा है।
- हालाँकि रिपोर्ट में कहा गया है कि दो लक्ष्यों- पोषण और लैंगिक असमानता- समस्या का विषय बने हुए हैं और रिपोर्ट में इन क्षेत्रों में विशेष ध्यान देने की मांग की गई है। रिपोर्ट के अनुसार, अकुशल आपूर्ति शृंखला प्रबंधन के कारण खाद्य अपव्यय और हानि चिंता का एक प्रमुख विषय बना हुआ है।
- रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ अपराधों में वृद्धि हुई है, गौरतलब है कि वर्ष 2017 में महिलाओं के खिलाफ लगभग 3.60 लाख आपराधिक घटनाएँ हुईं, जबकि अपराध दर वर्ष 2014 में 56.6 % से बढ़कर वर्ष 2017 में 57.9 % हो गई है।
- लैंगिक समानता प्राप्त करने के क्षेत्र में अभी भी कई समस्याएँ हैं जो कि निम्नलिखित हैं-
- विभिन्न क्षेत्रों में लैंगिक समानता (विशेषकर ट्रांसजेंडर लोगों के लिये) से संबंधित आँकड़ों का अभाव।
- श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी में कमी। ध्यातव्य है कि वर्तमान में महिलाओं की श्रमशक्ति में भागीदारी केवल 17.5% है।
- देश में वेतन के मामले में भी लैंगिक अंतराल बना हुआ है, गौरतलब है कि पुरुषों के वेतन और महिलाओं के वेतन में यह अंतराल विभिन्न क्षेत्रों में 50-75% तक है।
- कृषि क्षेत्र में अभी भी महिलाओं की भागीदारी अधिक है, इसके अतिरिक्त देश की अधिकांश जनसंख्या अनौपचारिक क्षेत्र में बहुत कम या बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के संलग्न है जिसमें महिलाओं की भी काफी अधिक भागीदारी है।
- भूमि तक महिलाओं की पहुँच और स्वामित्व में भी असमानता है। ग्रामीण भारत में 75 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएँ कृषि कार्यों में लगी हुई हैं किंतु परिचालन भूमि में महिलाओं की भागीदारी केवल 13.96 प्रतिशत है। भूमि स्वामित्व का अभाव इनपुट, बीज, उर्वरक, ऋण और कृषि विस्तार सेवाओं तक उनकी पहुँच को सीमित करता है।
- ग़ौरतलब है कि फसल में खाद्य पदार्थों का महत्त्वपूर्ण स्तर ऊपर की ओर होता है और कटाई के बाद, कटाई के दौरान एवं वितरण और उपभोग के चरणों में खाद्यान्न की काफी मात्रा नष्ट या बर्बाद हो जाती है।
- जलवायु अनुकूल टिकाऊ कृषि प्रथाओं, नई तकनीक के साथ-साथ कृषि विकास योजनाओं को व्यापक रूप से अपनाना एक बड़ी चुनौती है क्योंकि कृषि विकास योजनाओं में उन छोटे किसानों द्वारा धारित भूमि का बड़ा हिस्सा शामिल होता है, जिनके पास अक्सर वित्त और संसाधनों की कमी होती है तथा ऐसे किसान 82 प्रतिशत से अधिक हैं।
आगे की राह
- केंद्र एवं राज्य के मध्य परस्पर समन्वय के आधार पर सतत् विकास को बढ़ावा देना।
- सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु केंद्र एवं राज्य सरकारों के मध्य सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
सामुदायिक संसाधनों के हस्तांतरण पर प्रतिबंध
प्रीलिम्स के लिये:
सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रीय हरित अधिकरण
मेन्स के लिये:
सामुदायिक संसाधनों का महत्त्व
चर्चा में क्यों ?
सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय के अनुसार, देश के कई क्षेत्रों में लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ता है, ऐसी स्थिति में सरकार को संपत्ति के व्यवसायीकरण के लिये गाँव के तालाब जैसे “अमूल्य” सामुदायिक संसाधनों को शक्तिशाली व उद्योगपति वर्ग को हस्तांतरित करने का कोई अधिकार नहीं है।
प्रमुख बिंदु:
- सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय बेंच के अनुसार, गाँव के सार्वजनिक स्थल (Common) गाँव के समुदाय की जीवन-रेखा है जो जीवन-निर्वाह के लिये विभिन्न आवश्यक संसाधन प्रदान करते हैं। संविधान के अनुच्छेद-21 द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार के अनुपालन हेतु इन सार्वजनिक स्थलों का संरक्षण आवश्यक है।
- न्यायालय के अनुसार, राज्य किसी अन्य स्थल पर जल स्रोत निर्माण के वायदे के बावजूद ग्रामीण लोगों को उनके प्राथमिक जल स्रोत के प्रयोग से वंचित नही कर सकता। सरकार का यह रवैया “पर्यावरण के यांत्रिक अनुप्रयोग” को बढ़ावा” देगा।
- न्यायालय ने कहा है कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि मौजूदा जल निकाय को नष्ट करने का प्रतिकूल प्रभाव लोगों को मीलों की यात्रा कर वैकल्पिक स्थल तक पहुँचने के लिये बाध्य करेगा ।
- पुरातन समय में कुछ सार्वजनिक स्थल सामूहिक लाभ के लिये ग्रामीण समुदाय के प्रयोग हेतु सूचीबद्ध थे । वस्तुतः स्वतंत्रता के बाद शक्तिशाली लोगों की एक भ्रष्ट व्यवस्था ने इन सार्वजनिक स्थलों को व्यक्तिगत कृषि के लिये विनियोजित किया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal-NGT) के निर्णय को पलटते हुए ग्रेटर नोएडा के अधिकारियों व उद्योगपतियों को तीन माह के भीतर सभी अवरोधों को समाप्त करने और जल निकायों को बहाल करने का आदेश दिया है।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal - NGT) की स्थापना 18 अक्तूबर, 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम (National Green Tribunal Act), 2010 के अंतर्गत की गई थी।
- NGT की स्थापना के साथ ही भारत विशेष पर्यावरण अधिकरण (Specialised Environmental Tribunal) स्थापित करने वाला दुनिया का तीसरा (और पहला विकासशील) देश बन गया। इससे पहले ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में ही ऐसे किसी अधिकरण की स्थापना की गई थी।
- NGT का मुख्यालय नई दिल्ली में है, जबकि अन्य चार क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल, पुणे, कोलकाता एवं चेन्नई में स्थित हैं।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय स्वच्छता रैंकिंग
प्रीलिम्स के लिये:
राष्ट्रीय स्वच्छता रैंकिंग, केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय
मेन्स के लिये:
राष्ट्रीय स्वच्छता रैंकिंग और इसके निहितार्थ, स्वच्छता और स्वास्थ्य
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs) ने 31 दिसंबर, 2019 को स्वच्छता सर्वेक्षण 2020 की पहली और दूसरी तिमाही के परिणामों की घोषणा की।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- स्वच्छता रैंकिंग पहली बार लीग प्रारूप में आयोजित की जा रही है। गौरतलब है कि रैंकिंग को तीन तिमाहियों (अप्रैल से जून, जुलाई से सितंबर और अक्तूबर से दिसंबर, 2019) एवं शहर की जनसंख्या के आधार पर अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित किया गया है। ध्यातव्य है कि यह सर्वेक्षण जून, 2019 में शुरू किया गया था।
- इंदौर और जमशेदपुर लगातार दो तिमाहियों में क्रमशः 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों और 1 लाख से 10 लाख तक की आबादी वाले शहरों की श्रेणियों में स्वच्छता चार्ट में सबसे ऊपर हैं।
- कोलकाता दोनों तिमाहियों में 49 बड़े शहरों की रैंकिंग में सबसे नीचे रहा क्योंकि पश्चिम बंगाल ने इस देशव्यापी अभ्यास में भाग नहीं लिया। किंतु पश्चिम बंगाल के अधिकारियों ने तीसरी तिमाही में स्वच्छता सर्वेक्षण में भाग लेने का आश्वासन दिया है।
- 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों में इंदौर पिछले स्वच्छता सर्वेक्षणों की तरह वर्ष 2019 की पहली दो तिमाहियों के लिये स्वच्छता सर्वेक्षण में भी प्रथम स्थान पर बना हुआ है, जबकि पहली तिमाही में भोपाल और दूसरी तिमाही में राजकोट दूसरे स्थान पर और पहली तिमाही में सूरत जबकि दूसरी तिमाही में नवी मुंबई तीसरे स्थान पर काबिज़ है।
- 1 लाख से 10 लाख तक की जनसंख्या वाले शहरों में पहली व दूसरी तिमाही में जमशेदपुर प्रथम स्थान पर बना रहा, जबकि पहली तिमाही में नई दिल्ली नगरपालिका परिषद क्षेत्र दूसरे और खरगौन (मध्य प्रदेश) तीसरे स्थान पर और दूसरी तिमाही में चंद्रपुर (महाराष्ट्र) दूसरे और खरगौन तीसरे स्थान पर काबिज़ रहे हैं। गौरतलब है कि नई दिल्ली दूसरी तिमाही में दूसरे स्थान से खिसक कर छठे स्थान पर पहुँच गई है।
- शहरों की स्वच्छता का एक राष्ट्रीय स्तर का सर्वेक्षण 4 जनवरी से शुरू होगा जो कि स्वच्छ भारत 2020 की रैंकिंग के लिये अंतिम होगा।
- इसके अलावा छावनी क्षेत्र वर्ग में पहली तिमाही में तमिलनाडु के सेंट थॉमस माउंट छावनी और दूसरी तिमाही में दिल्ली छावनी बोर्ड क्षेत्र पहले स्थान पर रहे।
पृष्ठभूमि
- शहरों में बेहतर स्वच्छता सुनिश्चित करने हेतु प्रोत्साहित करने की दिशा में कदम उठाते हुए आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने पहली बार जनवरी 2016 में ‘स्वच्छ सर्वेक्षण-2016’ आयोजित किया था। इसके अंतर्गत 73 शहरों की रैंकिंग की गई थी।
- इसके बाद जनवरी-फरवरी 2017 के दौरान ‘स्वच्छ सर्वेक्षण-2017’ कराया गया था जिसके तहत 434 शहरों की रैंकिंग की गई।
- सर्वेक्षण के तीसरे चरण अर्थात् ‘स्वच्छ सर्वेक्षण-2018’ का बड़े पैमाने पर आयोजन किया गया। इसके तहत 4203 शहरों एवं कस्बों में सर्वेक्षण कराया गया जिसे 66 दिनों की रिकॉर्ड अवधि में पूरा किया गया।
- इसके साथ ही यह विश्व में अब तक का सबसे व्यापक स्वच्छता सर्वेक्षण बन गया है जिसके दायरे में लगभग 40 करोड़ लोग आते हैं।
- गौरतलब है कि पिछले तीनों स्वच्छता सर्वेक्षणों की रैंकिंग में इंदौर (मध्य प्रदेश) प्रथम स्थान पर रहा।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
एक्सटर्नल बेंचमार्क-बेस्ड रेट
प्रीलिम्स के लिये:
एक्सटर्नल बेंचमार्क-बेस्ड रेट
मेन्स के लिये:
एक्सटर्नल बेंचमार्क-बेस्ड रेट में परिवर्तन से भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
चर्चा में क्यों?
हाल ही में देश के सबसे बड़े वाणिज्यिक बैंक ‘स्टेट बैंक ऑफ इंडिया’ (State Bank of India-SBI) ने एक्सटर्नल बेंचमार्क बेस्ड-रेट (External Benchmark-based Rate) को 8.05 प्रतिशत से घटाकर 7.80 प्रतिशत कर दिया है।
मुख्य बिंदु:
- SBI ने अपने एक्सटर्नल बेंचमार्क-बेस्ड रेट में 25 आधार अंकों (Basis Points) की कमी की है।
- SBI द्वारा कम किया गया यह एक्सटर्नल बेंचमार्क-बेस्ड रेट 1 जनवरी, 2020 से लागू होगा।
- वहीं SBI ने आवास ऋण पर भी ब्याज दर को 8.15 प्रतिशत से घटाकर 7.90 प्रतिशत कर दिया।
क्या था RBI का दिशा-निर्देश:
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने 1 अक्तूबर, 2019 से बैंकों के लिये सभी नए पर्सनल या रिटेल ऋण (Personal or Retail Loan) तथा आवास एवं ऑटो ऋण जैसे फ्लोटिंग रेट (Floating Rate) पर आधारित ऋण को एक्सटर्नल बेंचमार्क (External Benchmark) से लिंक करना अनिवार्य कर दिया है।
- फ्लोटिंग रेट ऋण वे ऋण होते हैं जिनके ब्याज की दर परिवर्तनशील होती है।
- इससे पहले बैंकों की ऋण दरें या तो फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट (Funds based Lending Rate) या मार्जिनल कॉस्ट (Marginal Cost) पर आधारित होती थीं।
बैंकों द्वारा प्रयुक्त विभिन्न ब्याज दरें:
प्रधान उधार दर:
(Prime Lending Rate-PLR):
- ‘प्रधान उधार दर’ वह ब्याज दर होती है जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपने सबसे विश्वसनीय ग्राहकों को ऋण देने के लिये तैयार होते हैं, अतः इस प्रकार के ऋणों में जोखिम बहुत ही कम होता है।
- यह वह न्यूनतम दर होती है जिस पर बैंक अपनी सभी लागतें और व्यय को पूरा कर लेता है और कुछ प्रतिफल भी प्राप्त कर सकता है।
- प्रधान उधार दर को ही बेंचमार्क प्रधान उधार दर (Benchmark Prime Lending Rate-BPLR) कहते हैं।
आधार दर:
(Base Rate):
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने PLR आधारित उधार देय प्रणाली के स्थान पर जुलाई 2010 से आधार दर प्रणाली को लागू किया है।
- आधार दर वह ब्याज दर है जिससे कम दर पर कोई भी अनुसूचित बैंक अपने ग्राहकों को कोई भी ऋण प्रदान नहीं करेंगे।
- इससे पूर्व BPLR में बैंक PLR से नीचे भी ऋण दे सकते थे, इससे कर्ज़दाता बैंकों के साथ सौदेबाजी एवं मोल-भाव करते थे जिसके कारण अलग-अलग कर्ज़दाताओं के लिये ब्याज की दरें भी अलग-अलग हो जाती थीं।
सीमांत निधि लागत पर आधारित उधार दर:
(Marginal Cost of Funds based Lending Rate-MCLR):
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने व्यापारिक बैंकों द्वारा उधार देने हेतु इस नई दर को अपनाया। यह 01 अप्रैल, 2016 से प्रभावी है।
- यह अवधि आधारित आंतरिक बेंचमार्क होगा जिसका पुनर्निर्धारण एक वर्ष या उससे कम अवधि के लिये किया जाता है।
- सभी बैंक प्रत्येक माह में पहले से घोषित तिथि को विभिन्न परिपक्वता अवधि वाली अपनी MCLR की समीक्षा करते हैं और उन्हें जारी करते हैं।
- मौजूद कर्ज़धारकों को पारस्परिक रूप से ‘सहमत शर्तों’ पर MCLR से संबद्ध ऋण में परिवर्तन करने का विकल्प होगा।
एक्सटर्नल बेंचमार्क-बेस्ड रेट में परिवर्तन से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- एक्सटर्नल बेंचमार्क-बेस्ड रेट कम करने से बाज़ार में मुद्रा प्रवाह बढ़ता है, अतः बाज़ार में तरलता बढ़ने से उत्पादन में वृद्धि होती है, जिसके फलस्वरुप रोज़गार के नए अवसर पैदा होते हैं और अंततः देश की विकास दर बढ़ती है।
- भारतीय अर्थव्यवस्था में अवसंरचना की कमी सबसे बड़ी समस्या है जिसको दूर करने के लिये बड़े स्तर पर वित्त की आवश्यकता है। अतः ब्याज दर कम होने से तरलता की स्थिति के चलते लोगों को आसानी से वित्त उपलब्ध होगा।
- भारत आर्थिक विकास के साथ ही पर्यावरण को लेकर बेहद संवेदनशील रहा है, इसलिये सतत् और संधारणीय विकास के लिये बेहतर तकनीक तथा नीतियों के निर्माण एवं क्रियान्वयन हेतु वित्त की अधिक आवश्यकता है।
- कौशल और तकनीक के क्षेत्र में स्वयं को और अधिक विकसित करने के लिये भी बड़ी मात्रा में वित्त की आवश्यकता है।
स्रोत- द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
रूसी एवनगार्ड मिसाइल
प्रीलिम्स के लिये:
एवनगार्ड मिसाइल सिस्टम
मेन्स के लिये :
भारत-रूस द्विपक्षीय संबंध
चर्चा में क्यों?
27 दिसंबर, 2019 को रूसी सेना में एक नए अंतर महाद्वीपीय मिसाइल सिस्टम को शामिल किया गया। रूसी सेना के अनुसार, एवनगार्ड नामक यह हाइपरसोनिक मिसाइल ध्वनि की गति से 27 गुना अधिक तेज़ी से चलकर हमला करने में सक्षम है।
क्या है एवनगार्ड मिसाइल सिस्टम?
- एवनगार्ड, हाइपरसोनिक श्रेणी का मिसाइल सिस्टम है।
(हाइपरसोनिक श्रेणी = ध्वनि की गति से 5 गुना या उससे अधिक तेज़)
- एवनगार्ड मिसाइल सिस्टम दो हिस्सों से मिलकर बना है जिसमें हमलावर मिसाइल को एक अन्य बैलिस्टिक मिसाइल पर री-एंट्री बॉडी की तरह ले जाया जाता है।
- यह मिसाइल हमले से पूर्व के अंतिम क्षणों में तेज़ी से अपना मार्ग बदले में सक्षम है जिसके कारण इसके लक्ष्य का पूर्वानुमान लगाना और इसे निष्क्रिय करना लगभग असंभव है।
- यह मिसाइल सिस्टम 6000 किमी. दूर स्थित लक्ष्य को सफलतापूर्वक नष्ट कर सकता है और लगभग 2000 किग्रा. भार के परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है।
- इसके साथ ही यह मिसाइल 2000°C तक तापमान सहन कर सकती है।
- इस मिसाइल में स्क्रैमजेट इंजन का प्रयोग किया गया है जिससे यह MACH-27 या ध्वनि की गति से 27 गुना अधिक तेज़ गति से हमला करने में सक्षम है।
- औपचारिक अनावरण से पहले इसे “Project 4202” के नाम से भी जाना जाता था।
- मार्च 2018 में रूसी राष्ट्रपति ने घोषणा की थी कि रूस अगली पीढ़ी की मिसाइलों का परीक्षण कर रहा है। एवनगार्ड भी इसी कार्यक्रम का हिस्सा है।
रूस-अमेरिकी संबंधों पर एवनगार्ड का प्रभाव:
- मार्च 2018 की सैन्य परेड में रूसी राष्ट्रपति ने एवनगार्ड के साथ कई अन्य मिसाइलों के निर्माण की योजना को साझा किया था। रूसी राष्ट्रपति ने इस कार्यक्रम को अमेरिका (USA) के एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल संधि से 2002 में पीछे हटने से जोड़कर प्रस्तुत किया था।
एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल संधि (Anti-Ballistic Missile Treaty-ABM)- वर्ष 1972 में शीत युद्ध की पृष्ठभूमि में अमेरिका और सोवियत संघ (USSR) के बीच एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल संधि पर हस्ताक्षर किये गए। इस संधि के अंतर्गत दोनों पक्षों को आपसी सहमति से अपनी मिसाइलों की संख्या में कमी करना और उनके निर्माण पर रोक लगाना था। 1997 में USSR के विघटन के बाद रूस इस संधि से पुनः जुड़ गया था।
- रूसी राष्ट्रपति ने इस मौके पर अमेरिका पर आरोप लगाया कि अमेरिका अनियंत्रित रूप से नई एंटी-बैलिस्टिक मिसाइलों के निर्माण की सहमति, उनकी क्षमता में सुधार और नए मिसाइल लॉन्चिंग क्षेत्रों का निर्माण कर रहा है।
- रूसी राष्ट्रपति के अनुसार, ये एंटी-बैलिस्टिक मिसाइलें रूस की किसी भी मिसाइल का पूर्वानुमान लगाने में सक्षम थीं, ऐसे में रूसी राष्ट्रपति ने नई और बेहतर मिसाइलों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया था।
- हालाँकि अमेरिकी पक्ष के अनुसार, पहले से ही रूसी सेना में शामिल मिसाइलों के पूर्वानुमान के लिये जिस क्षमता की आवश्यकता होती है उस श्रेणी की एंटी-बैलिस्टिक मिसाइलों की तैनाती अमेरिका द्वारा अब तक नहीं की गई है।
- अमेरिकी पक्ष के अनुसार, नए एवनगार्ड सिस्टम से अमेरिका और रूस के बीच शक्ति संतुलन में कोई परिवर्तन नहीं होगा क्योंकि इसमें रूस का पलड़ा पहले से ही भारी था।
निष्कर्ष :
पिछले वर्ष अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा मध्यम दूरी परमाणु शक्ति संधि (Intermediate-Range Nuclear Forces-INF Treaty) से अमेरिका के अलग होने की घोषणा किये जाने के बाद विश्व के विभिन्न देशों में मिसाइलों और अन्य हथियारों की प्रतिस्पर्द्धा अब खुलकर सामने आने लगी है। चीन और उत्तर कोरिया के बाद अब रूस द्वारा किये गए मिसाइल परीक्षण विश्व शांति के लिये सही संकेत नहीं हैं। भविष्य में किसी बड़ी अप्रिय घटना से बचने के लिये यह आवश्यक है कि विश्व के सभी देश एक बार इस प्रतिस्पर्द्धा के दुष्परिणामों पर विचार करें ताकि विश्व शांति के लिये इस पर आपसी सहमति से रोक लगाई जा सके।