राजकोषीय परिषद की आवश्यकता क्यों? | 23 Jul 2020
प्रीलिम्स के लिये:राजकोषीय परिषद, 13वाँ एवं 14वां वित्त आयोग, एन.के. सिंह समिति मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था, सरकारी बजट, राजकोषीय प्रबंधन |
संदर्भ:
हाल ही में पूर्व आर.बी.आई. गर्वनर डी. सुब्वारॉव द्वारा राजकोषीय परिषद की स्थापना की आवश्यकता के संबंध में विचार व्यक्त किये गए। वर्तमान समय में कोरोना महामारी के आर्थिक दुष्प्रभावों को देखते हुए भी इसकी चर्चा प्रासंगिक हो जाती है।
सरकार चाहती है कि वह उधारी (Borrowing) एवं व्यय (Expenditure) को निम्नलिखित कारणों हेतु प्रबंधित करे-
- सुभेद्य परिवारों की सहायता हेतु
- आर्थिक पुनर्बहाली हेतु
उधार में वृद्धि से उत्पन्न होने वाली चुनौतियाँ
- ऋण में वृद्धि से मध्यम अवधि की विकास संबंधी संभावनाओं के लिये खतरा उत्पन्न होगा।
- इंटर-जेनेरेशल इक्विटी (Inter-generational Equity) की हानि: उधार में वृद्धि होने से भावी पीढ़ी पर ब्याज का बोझ बढ़ जाता है और उधार लेने की उनकी क्षमता कम हो जाती है।
- सॉवरेन रेटिंग (Sovereign Ratings) में कमी आने से देश में विदेशी निवेश के मामले में मंदी आ सकती है।
- निकट अवधि में महंगाई की आशंका।
- सरकार की राजकोषीय गैर-जिम्मेदारी के कारण बाजार विश्वास की हानि
बाजार विश्वास (Market Confidence) को बनाए रखते हुए उधार में वृद्धि कैसे हो?
- सरकार को कोविड-19 के पश्चात् राजकोषीय समेकन हेतु भरोसेमंद योजना के साथ सामने आना होगा जो बाजार के भरोसे को बनाए रखे।
- सरकार कुछ नए संस्थागत तंत्रों (उदाहरणस्वयप राजकोषीय परिषद) की स्थापना के संकेत दे सकती है ताकि राजकोषीय अनुशासन को लागू किया जा सके।
राजकोषीय परिषद
- पहली बार इसकी अनुशंसा 13वें वित्त आयोग द्वारा की गई थी और बाद में 14वें वित्त आयोग में इसे समर्थन प्राप्त हुआ एवं उसके बाद FRBM (राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन) समीक्षा समिति से इसे समर्थन प्राप्त हुआ था जिसकी अध्यक्षता एन.के. सिंह द्वारा की गई थी।
- राजकोषीय परिषद मूल रूप में एक स्थायी एजेंसी है जिसे सरकार के राजकोषीय योजना एवं आर्थिक स्थिरता संबंधी मापदंडों के संबंध में किए गए अनुमानों का स्वतंत्र रूप से मूल्यांकन करने का जनादेश प्राप्त है।
- इसके पश्चात् निष्कर्ष को पब्लिक डोमेन में डालना होगा।
- इस प्रकार की खुली जांच सरकार को राजकोषीय नैतिकता संबंधी सही मार्ग अपनाने को प्रेरित करेगी और इसे किसी भी डिफाल्ट के लिये जिम्मेदार भी ठहरा सकती है।
- यह सरकार के राजकोषीय रुख का स्वतंत्र और विशेषज्ञतापूर्ण मूल्यांकन करेगी जिससे संसद के सूचित बहस में मदद मिलेगी।
राजकोषीय परिषद के कार्य
- बहु-वर्षीय राजकोषीय अनुमान (Projections) और राजकोषीय स्थिरता विश्लेषण तैयार करना।
- केंद सरकार के राजकोषीय प्रदर्शन का स्वतंत्र मूल्यांकन करना और राजकोषीय नियमों का अनुपालन करना।
- वार्षिक वित्तीय विवरण की स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु राजकोषीय समिति में उपयुक्त परिवर्तन की सिफारिश करना।
- राजकोषीय आँकड़ों की गुणवत्ता में सुधार हेतु आवश्यक कदम उठाना।
- सार्वजनिक रूप से जारी करने हेतु एक वार्षिक राजकोषीय रणनीति रिपोर्ट तैयार करना।
राजकोषीय परिषद की चुनौतियाँ
- राजनैतिक इच्छा में कमी से गंभीर राजकोषीय गैर-जिम्मेदारियों में वृद्धि होगी-
- 2003 में जब FRBM को कानून के दायरे में लाया गया था, तब इस पर वित्तीय समस्याओं के उपाय के रूप में विचार किया गया था।
- FRBM सरकार को पूर्व-निर्धारित राजकोषीय लक्ष्यों के अनुरूप तथा इसमें विफल रहने पर विचलन संबंधी कारणों की व्याख्या करने में मदद करता है।
- सरकार को अपने राजकोषीय उद्देश्यों की विश्वसनीयता प्रदर्शित करने हेतु राजकोषीय नीति रणनीति विवरण (FPSS) को संसद में प्रस्तुत करना आवश्यक होता है।
- हालाँकि राजकोषीय उद्देश्यों पर संसद में गहन चर्चा का अभाव है और FPSS का प्रस्ताव अक्सर बगैर किसी सूचना के हो जाता है।
- इसके कार्यों से भ्रम की स्थिति उत्पन्न होना
- राजकोषीय परिषद व्यापक आर्थिक पूर्वानुमान प्रदान करेगी जिसे वित्त मंत्रालय द्वारा बजट हेतु उपयोग किये जाने की उम्मीद है और यदि मंत्रालय उन अनुमानों से अलग जाने का निर्णय लेता है तो यह व्याख्या करनी आवश्यक होगी कि अलग जाने की जरूरत क्या थी।
- इसके अलावा वित्त मंत्रालय को किसी अन्य अनुमान को उपयोग में लाने हेतु मजबूर करना इसकी जवाबदेहिता को कम करेगा।
- कार्यों का दोहराव
- अब तक केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) और RBI दोनों विकास और अन्य वृहद आर्थिक चरों (Variables) का पूर्वानुमान देते हैं, परंतु अब राजकोषीय परिषद के अनुमानों के बारे में सवाल उठाए जाएंगे।
- राजकोषीय परिषद निगरानी तंत्र के रूप में कार्य करेगी और सरकार को रचनात्मक लेखांकन के माध्यम से राजकोषीय नियमों के उल्लंघन से रोकेगी।
- हालाँकि सरकारी खर्चों की लेखा परीक्षा और राजकोषीय निगरानी का काम करने के लिये कैग के रूप में पहले से ही एक संस्थागत तंत्र है।
एन.के. सिंह समिति
जनवरी 2017 में एन.के. सिंह की अध्यक्षता में गठित FRBM पैनल ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट को अप्रैल, 2017 में सार्वजनिक किया गया जिसमें निम्नलिखित सिफारिशें की गई थीं-
- वित्तीय ढाँचे के भीतर नीति-निर्माताओं को लचीलापन प्रदान करने के उद्देश्य से पैनल ने सुझाव दिया है कि वित्त वर्ष 2018-20 तक राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) को 3% पर स्थिर कर लिया जाए एवं वर्ष 2023 तक इसे घटाकर 2.5% तक लाया जाए।
- राजस्व घाटा- GDP अनुपात (Revenue deficit to GDP ratio) में प्रतिवर्ष 0.25% अंको तक कमी की जाए एवं वर्ष 2023 में इसे 0.8% तक लाया जाए।
- पैनल ने एक राजकोषीय परिषद (Fiscal Council) के गठन का सुझाव दिया है जो एक स्वतंत्र निकाय होगी एवं किसी भी दिये गए वर्ष के लिये सरकार की राजस्व घोषणाओं की निगरानी करेगी।
- इनके अलावा ‘राहतकारी अनुच्छेद (Escape Clause) का भी प्रावधान है जो सरकार को राजकोषीय दिशा-निर्देशों से एक वर्ष में अधिकतम 0.5% विचलन की अनुमति प्रदान करेगा। इस प्रावधान को राष्ट्रीय सुरक्षा के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए रखा गया है। (जैसे- युद्ध की स्थिति, राष्ट्रीय स्तर की आपदाएँ एवं कृषि को हानि जिससे कि कृषि उत्पादन एवं आय गंभीर रूप से प्रभावित होती हो।)
किंतु इन सिफारिशों से मुख्य आर्थिक सलाहकार अरबिद सुब्रमण्यम ने एक नोट प्रस्तुत कर असहमति जताई है क्योंकि उनका मानना है कि ये सिफारिशें नीति-निर्माण के कार्य को मुश्किल बना देगी, अत: नीति निर्माताओं का ध्यान राजकोषीय घाटे के बजाय प्राथमिक घाटे को कम करने पर होना चाहिये।
आगे की राह
- निर्धारित बजट की प्रस्तुति से एक सप्ताह पहले सीएजी को पाँच सप्ताह की अवधि हेतु तीन सदस्यीय समिति की नियुक्ति करनी चाहिये जिसमें बजट की जाँच के सीमित आदेश होने चाहिये।
- समिति सरकार के राजकोषीय रुख की जाँच करते हुए एक सार्वजनिक रिपोर्ट देगी।
- कैग कार्यालय अपने संसाधनों के तहत समिति को सचिवीय और रसद सहायता प्रदान करेगा।
- वित्त मंत्रालय, आरबीआई, सीएसओ और नीति आयोग प्रत्येक सचिवालय में सेवा देने हेतु एक अधिकारी की प्रतिनियुक्ति करेंगे।
- अपनी रिपोर्ट देने के उपरांत समिति समाप्त हो जाएगी।