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शहरी नियोजन

  • 22 Sep 2018
  • 22 min read

संदर्भ

हाल ही में केरल में आई विनाशकारी बाढ़ और कुछ समय पहले दक्षिणी मुंबई के सिंधिया हाउस में लगी भीषण आग ने नीति निर्माताओं को एक समन्वित शहरी नियोजन की आवश्यकता पर फिर से सोचने के लिये मजबूर किया है। बात चाहे सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट द्वारा 14 शहरों के प्रदूषण संबंधित किये गए सर्वेक्षण की हो या फिर विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के कारण शहरों के बुरे तरीके से प्रभावित होने की, इनके ठोस समाधान के लिये एक शहरी नियोजन की जरूरत काफी समय से महसूस की जा रही है। इसी को देखते हुए हम लेख में शहरी नियोजन के कमजोर पक्षों पर प्रकाश डालने के साथ-साथ उसके बेहतर प्रबंधन से संबंधित तथ्यों पर भी नजर डालेंगे।

शहरी नियोजन क्या है और भारत को एक व्यापक एवं एकीकृत शहरी नियोजन की आवश्यकता क्यों है?

  • शहरी नियोजन एक प्रक्रिया है जिसके तहत स्थानीय स्तर पर नियोजन सीधे हस्तक्षेप द्वारा शहर के विकास से संबंधित विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित किया जाता है। इसकी सहायता से निवासियों की मोबिलिटी, गुणवत्तापूर्ण जीवन एवं धारणीयता जैसे उद्देश्यों को पूरा किया जाता है। शहरी नियोजन आज के इस बढ़ते शहरीकरण का एक महत्त्वपूर्ण पहलू हो गया है।
  • हम जानते हैं कि इस समय भारत भी तीव्र नगरीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहा है। यू.एन. अर्बनाइज़ेशन प्रोस्पेक्टस, 2018 रिपोर्ट के अनुसार भारत की जनसंख्या का करीब 34 फीसदी हिस्सा शहरी क्षेत्रों में निवास करता है। इसमें 2011 की जनगणना की तुलना में 3 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गयी है।
  • मेगासाइज़ अर्बन क्लस्टर की संख्या कई वर्षों से स्थिर बनी हुई है जबकि स्मॉलर अर्बन क्लस्टर की संख्या तेजी से बढ़ रही है। आपको बताते चलें कि मेगासाइज अर्बन क्लस्टर उन्हें कहा जाता है जिनकी जनसंख्या 50 लाख से ऊपर होती है। नगरीकरण में हो रही इस वृद्धि के कारण शहरों की मांग-आपूर्ति अंतर में भी बढ़ोतरी हो रही है। यह अंतर आवास के अलावा जल, स्वच्छता एवं सफाई, परिवहन और संचार सेवाओं में भी दिखायी देता है।
  • गाँवों और शहरों के बीच सुविधाओं को लेकर जो अंतर देखने में आता है उसके कारण गाँवों से शहरों की ओर प्रवसन होता है। ऐसे में जहाँ एक तरफ सवाल है कि क्या ये शहरी क्षेत्र नए निवासियों को आत्मसात करने के लिये पूरी तरह से तैयार हैं? तो वहीं दूसरी तरफ हम यह भी देखते हैं कि भारत प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों वाला देश है।
  • भारत के ग्रामीण तथा शहरी दोनों ही इलाके इन आपदाओं के प्रति सुभेद्यता रखते हैं। लेकिन भारतीय शहर ज्यादा जनसंख्या घनत्व के कारण इन आपदाओं के प्रति अधिक सुभेद्यता रखते हैं। हर आपदा तेजी से हो रहे शहरीकरण की प्रक्रिया में हुई गलतियों को उजागर कर देती है। इन समस्याओं को देखते हुए देश के शहरों के लिये एक ठोस शहरी नियोजन की आवश्यकता है जिसमें वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण पर आधारित मास्टर प्लान की व्यवस्था की गयी हो।

खराब शहरी नियोजन किस प्रकार से शहर में आपदा एवं विभिन्न गंभीर परिस्थितियों को जन्म देता है?

  • जनसंख्या का बढ़ता दबाव शहरों के विकासात्मक कार्यों पर भी दबाव डालता है। मानवीय जरूरतों को पूरा करने के लिये किए गए कार्य बुनियादी पारिस्थितिकीय तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं जिनकी क्षतिपूर्ति करना एक समय-सीमा के बाद संभव नहीं हो पाता है। साथ ही शहरी नियोजन में व्याप्त कमियाँ इन आपदाओं को और गंभीर बना देती हैं।
  • शहरी नियोजन, मास्टर प्लान या डेवलपमेंट प्लान पर आधारित होते हैं। ये प्लान भूमि उपयोग पर भी आधारित होते हैं यानी विभिन्न मानवीय गतिविधियों के आधार पर भूमि को कई वर्गों मसलन रेसिडेंशियल, कमर्शियल, ट्रांसपोर्टेशन, पब्लिक और गवर्मेंट ऑफिस इत्यादि में बाँटा जाता है। इन योजनाओं को संबंधित राज्य विधायिका से मंजूरी प्राप्त होती है जिन्हें लगभग 20-25 वर्षों की अवधि में पूरा करना होता है; लेकिन ये मास्टर प्लान फंड की कमी के कारण ठीक ढंग से लागू नहीं हो पाते।
  • देश की वर्तमान शहरी नियोजन व्यवस्था के साथ महत्त्वपूर्ण चिंता यह है कि यह भूमि उपयोग के पुराने तरीकों पर आधारित है। हमें इससे आगे बढ़ते हुए ऐसी योजना और प्रक्रिया अपनानी होगी जो लोगों की जरूरतों के मुताबिक हो।
  • आपको बता दें कि शहरी नियोजन और स्थानीय शासन के बीच आपसी तालमेल का न होना भी हमारी नियोजन प्रक्रिया की एक बेसिक कमी है। हालाँकि 74वें संवैधानिक संशोधन में शहरी और स्थानीय सरकारों को सशक्त बनाने की बात कही गयी थी ताकि वे सेल्फ-गवर्मेंट संस्थान के रूप में कार्य कर सकें। लेकिन, शहरी नियोजन के संबंध में उनकी प्रभावशीलता अभी भी सीमित है। 1985 में केंद्र सरकार मॉडल क्षेत्रीय और शहर नियोजन एवं विकास कानून लेकर आई थी। पर, ज्यादातर राज्य अपने नियोजन कानूनों में इसके प्रावधानों को शामिल करने में नाकाम रहे हैं।
  • दूसरी ओर, भारत में मोटराइजेशन यानी मोटर-वाहनों की संख्या अपनी विस्फोटक स्थिति में है। सड़क परिवहन ,ग्रीन हाउस गैसों में बढ़ोतरी का बड़ा कारण बना है। दरअसल,शहरी आवागमन द्वारा पार्टिकुलेट मैटर और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे टॉक्सिक उत्सर्जन में वृद्धि हुई है। ऐसे में शहरी नियोजन का कुप्रबंधन शहरी ताप द्वीप एवं प्रदूषण की मुख्य वजहों में से एक बनता जा रहा है।
  • डब्लू.एच.ओ. और यूएन-हैबिटेट के एक अध्ययन से पता चला है कि शहरों की इमारतों और घरों के बल्बों, एयरकंडीशनर, रेफ्रिजरेटर और वाटर कूलर इत्यादि के इस्तेमाल से शहरी इलाकों के तापमान में 2-3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो जाती है। स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर गौर करें तो स्लम पुनर्वास प्राधिकरण द्वारा बनाई गई बसावटें और बहुत छोटे घर जहाँ दिन की रोशनी और हवा का संचार सुचारू रूप से नहीं होता, वहाँ टी.बी. जैसी बीमारियों का फैलाव देखने को मिलता है। यह तथ्य साबित करता है कि टी.बी. जैसी बीमारियों की वृद्धि एवं कमी में हाउसिंग की डिजाइनिंग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    प्रदूषण के कारकों के अलावा भवनों में आग लगना एवं विभिन्न शहरी अवसंरचनाओं और बिल्डिंग्स का गिरना भी शहरी नियोजन के कुप्रबंधन को दर्शाता है। बढ़ती जनसंख्या की आधारभूत जरूरतों को पूरा करने के क्रम में भवन निर्माण संबंधी विभिन्न मानकों और नीतियों का अनुपालन सही तरीके से नहीं हो रहा है। आमतौर पर भवनों के डिज़ाइन में अग्नि सुरक्षा संबंधी प्रावधान ही नदारद रहते हैं। फायर डिपार्टमेंट के पास भी आग के खतरों का आकलन करने के लिये तकनीकी ज्ञान का अभाव होता है। संबंधित विभाग शायद ही अग्निशमन अनुभव के आधार पर नो-ऑव्जेक्शन सर्टिफिकेट जारी करते हैं।
  • अब अगर हम आपदाओं पर नजर दौराएँ तो कैग ने 2005 की चेन्नई बाढ़ को मानव निर्मित आपदा घोषित किया था। कैग की रिपोर्ट के अनुसार, चेम्बरम्बकम झील से अंधाधुंध पानी छोड़े जाने के कारण अड्यार नदी पर जल का दबाव बढ़ा जिससे शहर एवं उपनगरों में बाढ़ आई। नदियों का तलछटीकरण नहीं होना भी इसकी प्रमुख वजहों में से एक था।
  • इसी प्रकार, 2014 में जम्मू-कश्मीर में बाढ़ का कारण भी झेलम नदी के किनारे शहर का अनियोजित विकास था जिसने आपदा के स्तर में बढ़ोतरी ला दी थी। जम्मू-कश्मीर का आपदा प्रबंधन तंत्र भी अल्पविकसित अवस्था में है एवं इसके पास कोई बाढ़ पूर्वानुमान तंत्र भी नहीं है। एक रिपोर्ट के अनुसार मुंबई शहर की मीठी नदी जो कचरे के कारण अवरुद्ध हो गयी है उसने शहर के विकास में अपने 60 प्रतिशत जलग्रहण क्षेत्र को खो दिया है। जबकि हम जानते हैं कि एक साफ और स्वच्छ नदी बाढ़ के पानी को तेजी से निकालने का कार्य करती है।
  • केरल की बाढ़ की बात करें तो माधव गाडगिल कमिटी ने 2011 में पश्चिमी घाट की संवेदनशीलता पर एक रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें जैव-विविधता के संरक्षण के संबंध में बातें कही गयी थीं। इस क्षेत्र में कुछ नए औद्योगिक और खनन क्रियाओं पर रोक लगाते हुए कड़े विनियमन की बात कही गयी थी। इस रिपोर्ट को गंभीरता से नहीं लेने के कारण, विभिन्न मानव हस्तक्षेपों जैसे अनियंत्रित पत्थर खनन, निर्माण संबंधी गतिविधियों एवं दोषपूर्ण बाँध प्रबंधन केरल बाढ़ का कारण बने।

शहरी नियोजन के बेहतर प्रबंधन हेतु कुछ महत्त्वपूर्ण सरकारी नीतियाँ और अंतर्राष्ट्रीय प्रयास

  • भारत के पहले नेशनल कमीशन ऑन अर्बनाइजेशन ने 1988 में शहरी नीति पर रिपोर्ट सौंपी थी। उसके बाद 1992 में 73वाँ एवं 74वाँ संवैधानिक संशोधन लाया गया जिसे पंचायती राज एक्ट एवं नगरपालिका एक्ट के नाम से जाना जाता है। इसका उद्देश्य आर्थिक एवं स्थानीय नियोजन द्वारा गाँव एवं शहरों का विकास करना था। चूँकि भूमि राज्य का विषय है इसलिए सिर्फ कुछ राज्यों ने ही इसे अपनाया। इससे इसके क्रियान्वयन में धीमापन आ गया।
  • इसके बाद भारत सरकार ने जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन, 2005 अपनाया जो अपनी तरह का पहला कदम था।
  • 2015 में भारत सरकार ने स्मार्ट सिटी मिशन शुरू किया जिसका उद्देश्य 5 वर्षों के अंदर 100 शहरों की स्थिति में सुधार लाना था। 2015 में ही, आधुनिक सुविधाओं के साथ अधिक से अधिक शहरों के विकास के लिए AMRUT योजना यानी Atal Mission For Rejuvenation And Urban Transformation लायी गयी। इन सबके अलावा, हाल ही में केन्द्र सरकार पूरे देश के लिये एक राष्ट्रीय शहरी नीति लाना चाह रही है।
  • चूँकि शहरी विकास राज्य का विषय है इसलिए अभी तक ऐसी कोई व्यापक राष्ट्रीय नीति नहीं बन पाई है जो शहरीकरण से संबंधित योजनाओं को बताए। बहरहाल, देश की यह प्रथम नेशनल अर्बन पॉलिसी 10 मुख्य क्षेत्रों पर केन्द्रित है, जिनमें से प्रमुख हैं - सहकारी संघवाद, समावेशी वृद्धि, धारणीयता, स्थानीय संस्थाओं का सशक्तिकरण, शहरी अवसंरचना वित्त प्रणाली, सशक्त शहरी सूचना प्रणाली आदि।
  • यहीं पर आपको बता दें कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ‘यू.एन. हैबिटेट’ संयुक्त राष्ट्र का एक कार्यक्रम चल रहा है जो वैश्विक स्तर पर एक बेहतर शहरी भविष्य की दिशा में काम कर रहा है। इसका लक्ष्य सामाजिक और पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ मानव बस्तियों का विकास और सभी के लिये समुचित आश्रय प्राप्त करवाना है।
  • गौरतलब है कि 2016 में हैबिटेट 3 का आयोजन किया गया था, जो आवास और टिकाऊ शहरी विकास पर हरेक दो दशकों पर होने वाला संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन है। हैबिटेट 3 में जारी न्यू अर्बन एजेंडे में बताया गया है कि 2016 से 2030 के बीच धारणीय शहरी विकास को प्राप्त करने के लिये देशों को क्या किये जाने की आवश्यकता है। भारत भी इसी एजेंडे को आधार बना कर अपने शहरी नियोजन को आकार दे रहा है। वहीं हम पाते हैं कि यू.एन. के सतत् विकास लक्ष्य-11 के अनुसार,शहरों एवं मानव बसावटों को समावेशी, सुरक्षित, लोचपूर्ण एवं धारणीय भी होना चाहिये।

शहरी नियोजन के बेहतर प्रबंधन के लिये और क्या किये जाने की जरूरत है?

  • शहरी नियोजन के बेहतर प्रबंधन के लिये सबसे पहले प्रभावी शहरी नियोजन में नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है तभी विश्व स्तरीय शहरी भारत का निर्माण हो सकेगा। संविधान की 12वीं अनुसूची के तहत सूचीबद्ध कार्यों में शहरी नियोजन, भूमि उपयोग का विनियमन और आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिये योजना का निर्माण करना शामिल है। इसलिए राज्यों से उम्मीद की जाती है कि वे इन कार्यों को नगर-निगम को सौंप दें।
  • 74वें संविधान संशोधन के अनुसार मेट्रोपोलिटन सिटी में मेट्रोपोलिटन प्लानिंग कमिटी के गठन की व्यवस्था की गयी है। जो स्थानीय निकायों द्वारा तैयार योजनाओं को मेट्रोपोलिटन क्षेत्र में एकीकृत करेंगे। आपको बता दें कि मेट्रोपोलिटन सिटी उन शहरों को कहा जाता है जिनकी जनसंख्या दस लाख से ऊपर होती है।
  • 3 लाख से ऊपर वाले प्रत्येक शहर के लिये वार्ड कमिटी के गठन की बात भी की गयी है जो नगरपालिका संबंधी कार्यों को देखेगा। इन सभी संस्थानों को नियोजन प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग बनाना आवश्यक है। वहीं हम दूसरी तरफ देखते हैं कि शहरी स्थानीय निकायों के ऊपर विकेन्द्रीकरण के नाम पर बहुत अधिक जिम्मेदारियाँ सौंपी गयी हैं।
  • स्थानीय निकायों के पास निरीक्षण कार्यों के लिये श्रम शक्ति की भी कमी रहती है। इसलिए पेपर वर्क में कमी लाते हुए सिस्टम को ऑनलाइन बनाने पर ध्यान देने की जरूरत है। वर्तमान की अप्रूवल संबंधी प्रक्रियाओं का आधुनिकीकरण भी जरूरी है।
  • शहरीकरण को देश के आर्थिक विकास का अभिन्न अंग मानते हुए भारत सरकार के थिंक टैंक ‘नीति आयोग’ ने कुशल एवं टिकाऊ सार्वजनिक परिवहन को नीति में शामिल करने की बात कही है। नीति आयोग ने 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों के लिये एक एकीकृत महानगर परिवहन प्राधिकरण के गठन का सुझाव भी दिया है। ये समन्वित सार्वजनिक परिवहन योजना को तैयार करेंगे।
  • हाल की एक रिपोर्ट में यह बात सामने आयी है कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन एवं ऊर्जा उपभोग के मामले में मेट्रोपोलिटन सिटीज ने मेगासिटीज के बनिस्पत बेहतर प्रदर्शन किये हैं। इसका कारण यहाँ जनसंख्या, यात्रा अनुपात एवं वाहनों की संख्या का निम्न होना बताया गया है। कोलकाता एवं मुंबई दोनों ने भूमि उपयोग के साथ सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को अच्छे तरीके से एकीकृत किया है। 2004 में नॉन-मोटराइज्ड ट्रांसपोर्ट अपनाने वाला मुंबई पहला शहर बन चुका है। इसका उद्देश्य साइकिल ट्रैक और ग्रीन-वे का नेटवर्क तैयार कर वॉकिंग एवं साइक्लिंग करने वालों की संख्या में वृद्धि करना था।
  • शहरी ताप द्वीप संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिये दक्षिणी भारत में सड़कों को उत्तर-दक्षिण दिशा में बनाने पर जोर दिया जा रहा है ताकि सीधी पड़ने वाली सूर्य की रोशनी को टाला जा सके। शहरी नियोजन में सड़कों के विभिन्न हिस्सों, छतों के ऊपरी हिस्से को सफेद पेंट करने जैसे कार्यों को शामिल किया गया है जिससे सूर्य विकिरण को अधिक से अधिक परावर्तित किया जा सके।
  • अगर सड़कें सँकरी हैं तो भवनों की ऊँचाई को सड़कों की चौड़ाई के बराबर करना भी बताया गया है, इससे ताप नियंत्रण में मदद मिलती है। निर्माणकारी गतिविधियों के समय हर 7 वर्ग किमी. पर जल निकाय और खुले स्थान के लिये 1 वर्ग किमी का क्षेत्र छोड़ना भी इसमें शामिल है। फुटपाथों का निर्माण कुछ इस तरह से करने की बात हुई है कि बारिश के मौसम में ये जल अवशोषण में भी सहायक भूमिका निभाएँ।
  • प्लानिंग के समय आर्थिक असमानता के मुद्दे को भी ध्यान में रखना आवश्यक है ताकि समाज का कोई भी वर्ग हाशिये पर न चला जाए। क्योंकि, आपदा के समय इन वर्गों के प्रभावित होने की सबसे ज्यादा संभावना होती है। आवासीय सुविधाओं में गरीबों के रहने के लिये ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये जहाँ आधारभूत सुविधाओं की कमी न हो। इंडोनेशिया में इसी प्रकार का एक सोशल हाउसिंग प्रोजेक्ट लाया गया है जो बेहतर वायु संचार और गुणवत्तापूर्ण जीवन का अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करता है।
  • भारत की जियो-टेक्टॉनिक्स स्थिति में भी बदलाव आ रहा है। ऐसी स्थिती में दिल्ली में अगर एक मध्यम तीव्रता का भूकंप भी आता है तो आपदा की भयंकरता का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। राजधानी की नयी निर्मित इमारतों में शायद ही नेशनल बिल्डिंग्स कोड, भारत का सुभेद्यता एटलस 2006 और भवन उप-नियमों का पालन किया गया है ।
  • जहाँ एक तरफ शहरी बुनियादी ढाँचे के निर्माण के समय भवन मानकों को भूकंप प्रतिरोध संबंधित सुरक्षा मानकों का पालन करना चाहिये वहीं दूसरी तरफ बाढ़ आपदा प्रबंधन के समय हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि भवनों और सड़कों के निर्माण के लिये शहरों में स्थित परंपरागत जल निकासी तंत्रों तथा विभिन्न जल निकायों मसलन झील, तालाब और आर्द्रभूमियों का अतिक्रमण न हो। नदी तल और बाढ़ मैदानों के अतिक्रमण को रोकने के लिये River Regulation Zone नोटिफिकेशन को प्रभावी बनाये जाने की आवश्यकता है। इसे पर्यावरण मंत्रालय ने राज्यों के लिये जारी
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