कुवैत एक्सपेट कोटा बिल | 17 Jul 2020

प्रीलिम्स के लिये:

कुवैत एक्सपेट कोटा बिल

मेन्स के लिये:

भारत का खाड़ी देशों के साथ संबंध

संदर्भः

तेल की कीमतों में भारी गिरावट और कोरोना महामारी संकट की वजह से खाड़ी देश कुवैत में विदेशी श्रमिकों की संख्या को कम करने की मांग लगातार की जा रही थी। इसे देखते हुए हाल ही में नेशनल असेंबली की कानूनी और विधायी समिति ने इस एक्सपेट कोटा बिल को संवैधानिक मानते हुए इसे सहमति प्रदान की है। इसके कारण अब खाड़ी देश कुवैत में करीब 8 लाख भारतीयों को देश छोड़ना पड़ सकता है।

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प्रमुख बिंदुः

  • इस बिल के मुताबिक खाड़ी देश में भारतीय नागरिकों की आबादी 15 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिये। वर्तमान में कुवैत की जनसंख्या3 मिलियन है, जिसमें से कुवैत की आबादी 1.3 मिलियन है। शेष 3 मिलियन आबादी दूसरे देशों की है, जो यहाँ निवास करते हैं। इस देश में करीब 1.45 मिलियन भारतीय रहते हैं। चूँकि कोरोना महामारी की वजह से विश्व में करोड़ों लोगों की नौकरी जा चुकी है। इसे देखते हुए कानूनविद और सरकारी अधिकारियों ने कुवैत में विदेशियों की संख्या को कम करने का सरकार से आह्वान किया था।
  • इस बिल के अनुसार, भारतीयों की आबादी कुवैत में 15% से अधिक नहीं होनी चाहिये। मसौदा कानून के तहत प्रवासियों की संख्या पर एक सीमा आरोपित की जाएगी तथा प्रवासियों की संख्या में प्रतिवर्ष लगभग 5% की कमी की जाएगी। गौरतलब है कि कोविड-19 के संक्रमण के मामले विदेशी प्रवासियों में देखने को मिले है क्योंकि ये प्रवासी श्रमिक भीड़-भाड़ वाले आवासों में निवास करते हैं, जिससे उनके मध्य वायरस संक्रमण आसानी से प्रसारित हो जाता है।
  • कुवैत, विदेशी श्रमिकों पर अपनी निर्भरता को कम करने की दिशा में कार्य कर रहा है। कुवैती नागरिक अपने ही देश में अल्पसंख्यक के रूप में रहते हैं। बड़ी संख्या में प्रवासियों के कारण कुवैत को अपनी जनसंख्या संरचना में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। लगभग एक-तिहाई प्रवासी या तो अनपढ़ है या बहुत कम पढ़े-लिखे हैं। उनका कुवैत के विकास में नगण्य योगदान है, अतः कुवैत को और अधिक प्रवासियों की आवश्यकता नहीं है।

कुवैत की जनसांख्यिकीः

  • कुवैत की जनसांख्यिकी में अगर भारत की स्थिति पर गौर किया जाए तो कुवैत में भारतीय प्रवासी समुदाय की जनसंख्या45 मिलियन है। यह कुवैत का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है। लगभग 28,000 भारतीय विभिन्न सरकारी नौकरियों जैसे नर्स, राष्ट्रीय तेल कंपनियां में इंजीनियर और वैज्ञानिक के रूप में कार्य करते हैं। अधिकांश भारतीय (लगभग 5 लाख) निजी क्षेत्र में कार्यरत है। कुल भारतीय प्रवासियों में लगभग 1.16 लाख लोग आश्रित हैं, जिनमें लगभग 60,000 छात्र भी शामिल हैं।

अन्य खाड़ी देशों पर नज़रः

  • कुवैत के इस फैसले के बाद अब दूसरा प्रश्न यह उठता है कि अगर कुवैत के फैसले की ही तरह अन्य खाड़ी देश भी निर्णय लेते हैं तो 40-45 लाख भारतीया प्रवासियों का भविष्य क्या होगा? कुवैत के प्रधानमंत्री शेख अल-सवाह के अनुसार, कुवैत की जनसंख्या संबंधी आदर्श स्थिति में विदेशी 30 प्रतिशत और कुवैती 70 प्रतिशत होंगे। अगर कुवैती संसद द्वारा इस कानून का निर्माण होता है तो 7-8 लाख भारतीयों को अपनी नौकरियाँ छोड़ वापस देश आना पड़ेगा। इन भारतीयों द्वारा अकेले कुवैत से लगभग 5 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष भारत को प्राप्त होता था।
  • वर्तमान समय में खाड़ी के देशों में 80 लाख भारतीय काम कर रहे हैं। कोरोना के कारण बेरोजगारी से प्रभावित सैकड़ों भारतीय इन देशों से वापस लौट रहे हैं। चिंता की बात यह है कि इन देशों के शासनाध्यक्षों पर दबाव पड़ रहा है कि वे विदेशी कार्मिकों को वापस भेजे ताकि स्थानीय लोगों के रोजगार में बढ़ोतरी हो सके।
  • यदि कुवैत कोई सख्त निर्णय लेता है तो उसे देखते हुए बहरीन, यूएई, सऊदी अरब, ओमान और कतर आदि देश भी वैसी ही घोषणाएँ कर सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो वहाँ से लौटे इतने लाख भारतीयों को भारत में रोजगार कैसे मिल पाएगा। सिर्फ केरल के 21 लाख लोग खाड़ी देशों में कार्यरत है। कुवैत भारत के लिये प्रेषण (Remittance) का एक शीर्ष स्रोत रहा है। 2018 में भारत ने कुवैत से प्रेषण के रूप में लगभग 4-8 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्राप्त किये थे।
  • वर्तमान में अमेरिका, ऑस्टेलिया, ब्रिटेन सहित अनेक देश भी संरक्षणवादी नीतियों को अपना रहे हैं। यह कदम संयुक्त राज्य अमेरिका के उस निर्णय के समान है, जिसके तहत अप्रवासी और गैर-अप्रवासी श्रमिकों के वीजा पर 60 दिवसीय प्रतिबंध का विस्तार किया गया है।

कुवैत के निर्माण में भारतीयों का योगदानः

  • कुवैत के संबंध अगर भारतीयों के योगदान की बात की जाए तो भारत-कुवैत द्विपक्षीय संबंधों के निर्धारण में भारतीय समुदाय हमेशा से ही एक महत्त्वपूर्ण कारक रहा है। वर्तमान में कुवैत के लगभग सभी सामाजिक क्षेत्रों में भारतीय अपना योगदान दे रहे हैं।
  • भारत-कुवैत संबंधों का हमेशा से एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक और व्यापारिक आयाम रहा है। हाल के वर्षों में इसमें और अधिक विविधता आई है जिसमें संस्कृति, विज्ञान, तकनीक, नागरिक विमानन एवं युवा मामले भी शामिल हो गए हैं।
  • भारत लगातार कुवैत के शीर्ष व्यापार भागीदार देशों में से एक रहा है। कुवैत भी भारत के लिये हमेशा से एक विश्वसनीय कच्चा तेल आपूर्तिकर्त्ता रहा है। वर्ष 2017-18 के दौरान कुवैत भारत का 9वाँ सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्त्ता था जो कि भारत की ऊर्जा जरूरतों के63 प्रतिशत की पूर्ति करता था। कुवैत के साथ वित्तीय वर्ष 2019 में द्विपक्षीय व्यापार 2.7 प्रतिशत वृद्धि कर 8.76 बिलियन डॉलर पर पहुँच गया था, जबकि भारतीय निर्यात 1.33 बिलियन डॉलर एवं आयात 7.43 बिलियन डॉलर था। भारत से कुवैत को किये जाने वाले निर्यात मद में खाद्य पदार्थ, टेक्सटाइल, इलेक्ट्रिकल एवं इंजीनियरिंग उपकरण, ऑटोमोबाइल, ज्वैलरी वगैरह शामिल थे।
  • कुवैत के भारतीय डॉयस्पोरा ने इस मरुस्थलीय देश को एक आधुनिक, विलासितापूर्ण एवं कल्याणकारी देश में परिवर्तित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • चाहे बात बड़े पॉवर स्टेशन्स के निर्माण या संचालन या समुद्र के जल को पीने योग्य बनाने की हो, हर जगह भारतीय प्रवासियों की भूमिका ध्यान देने योग्य है।

निष्कर्ष

भारत को खाड़ी देशों के साथ सहयोग के नए क्षेत्रों यथा- स्वास्थ्य सेवा, दवा-अनुसंधान और उत्पादन, पेट्रोकेमिकल, कम विकसित देशों में कृषि, शिक्षा और कौशल में सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है। खाड़ी देश वर्तमान में अर्थव्यवस्था में बदलाव की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। ये वर्तमान में पेट्रोलियम उत्पादन के अलावा अन्य क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था को दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं, ऐसे में भारत यहाँ विभिन्न क्षेत्रों में निवेश को बढ़ाकर प्रमुख भूमिका निभा सकता है। हालाँकि भारत को इसे एक ‘अस्थायी घटनाक्रम’ के रूप में देखने की जरूरत है क्योंकि जैसे ही उत्पादन में तीव्र गति आएगी उन्हें हमारे लोगों की विशेषज्ञता की पुनः आवश्यकता पड़ेगी।

स्रोत: द हिंदू