भारत की ऊर्जा आपूर्ति- बड़ी चुनौतियाँ, नए अवसर | 17 Feb 2019
संदर्भ
ऊर्जा किसी भी देश के विकास का इंजन होती है। किसी देश में प्रति व्यक्ति होने वाली ऊर्जा की खपत वहाँ के जीवन स्तर का भी सूचक है। यही नहीं, आर्थिक विकास का भी ऊर्जा उपयोग के साथ मज़बूत संबंध होता है। इसलिये भारत जैसी तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिये ऊर्जा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बहुत ज़रूरी है।
- इन्हीं पहलुओं के मद्देनज़र बीते दिनों नई दिल्ली में एक सभा को संबोधित करते हुए भारत के प्रधानमंत्री ने तेल उत्पादक देशों से ऊर्जा की लागत को कम करने का आग्रह किया ताकि वैश्विक अर्थव्यवस्था को मदद मिल सके।
- कुछ समय पूर्व आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की पहली बैठक में भी 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित संसाधनों से 40 फीसदी बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।
इसमें दो राय नहीं कि तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या के भरण-पोषण और सुख-सुविधाओं के लिये संसाधनों की तेज़ी से खपत हो रही है। लेकिन इससे पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर समस्याओं का जन्म हो रहा है। ऐसे में सवाल है कि बढ़ती जनसंख्या और ऊर्जा आपूर्ति के बीच कैसे संतुलन बनाया जाए? सवाल यह भी है कि पर्यावण और भविष्य की पीढ़ी को ध्यान में रखकर भारत की आगे की रणनीति क्या होनी चाहिये। साथ ही वर्तमान में भारत की किन स्रोतों पर कितनी निर्भरता है और इसे कैसे बदला जा सकता है? इस लेख के ज़रिये हम इन्हीं कुछ मुद्दों पर चर्चा करेंगे।
नवीकरणीय ऊर्जा है बेहतर निदान
चाणक्य नीति कहती है कि ‘किसी समस्या का उपाय नहीं, निदान ढूंढो’। इसीलिये अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने, पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण फैलाने वाले कोयले पर निर्भरता कम करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत जैसे-सौर और पवन ऊर्जा क्षमता को बेहतरीन निदान के रूप में देखा जा सकता है।
- यह गौर करने वाली बात है कि पिछले 150-200 वर्षों में मनुष्य ने ऊर्जा ज़रुरतों को पूरा करने के लिये पृथ्वी की सतह के नीचे दबे संसाधनों पर भरोसा किया है। लेकिन अब वक़्त आ गया है कि सुरक्षित भविष्य के लिये सौर और पवन ऊर्जा जैसे उपलब्ध संसाधनों का ज़्यादा से ज़्यादा उपयोग किया जाए।
- इसके लिये एक मज़बूत नीतिगत ढाँचे की आवश्यकता होगी जिसमें भारत अहम् भूमिका निभा सकता है। इसके लिये भारत संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों को अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के मंच पर ले जाना चाहता है जिससे ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये सभी देशों का ध्यान नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर केंद्रित किया जा सके।
नवीकरणीय ऊर्जा में भारत की स्थिति?
- जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित हमारे योगदानों और एक स्वच्छ ग्रह के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए भारत ने संकल्प लिया है कि 2030 तक बिजली उत्पादन की हमारी 40 फीसदी स्थापित क्षमता ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों पर आधारित होगी।
- साथ ही यह भी निर्धारित किया गया है कि 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित की जाएगी। इसमें सौर ऊर्जा से 100 गीगावाट, पवन ऊर्जा से 60 गीगावाट, बायो-पावर से 10 गीगावाट और छोटी पनबिजली परियोजनाओं से 5 गीगावाट क्षमता शामिल है।
- इस महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के साथ ही भारत विश्व के सबसे बड़े स्वच्छ ऊर्जा उत्पादकों की जमात में शामिल हो जाएगा। यहाँ तक कि वह कई विकसित देशों से भी आगे निकल जाएगा।
- फिलहाल 2018 में देश की कुल स्थापित क्षमता में तापीय ऊर्जा की 63.84 फीसदी, नाभिकीय ऊर्जा की 1.95 फीसदी, पनबिजली की 13.09 फीसदी और नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी 21.12 फीसदी है।
- वहीं, भारत कुल स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता और सौर ऊर्जा के लिहाज़ से विश्व में पाँचवें स्थान पर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में चौथे स्थान पर है। इन सभी निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये सरकार अनेक सराहनीय कदम उठा रही है जिनकी चर्चा करना भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
सरकार द्वारा उठाए गए अहम कदम
गोबर्धन योजना
- महात्मा गांधी ने कहा था कि गाँव में बहुत प्रयोग किये जा सकते हैं। इसी की बानगी है सरकार द्वारा शुरू की गई गोबर्धन योजना।
- सभी जानते हैं कि भारत सबसे ज़्यादा पशुधन आबादी का क्षेत्र है। ऐसे में यह योजना पशुओं से प्राप्त गोबर और ठोस अपशिष्ट को उपयोगी कंपोस्ट, बायोगैस और बायो-सीएनजी में बदलने पर ही केंद्रित है।
- इस योजना का लाभ किसानों की आय बढ़ाने के साथ-साथ गाँवों को स्वच्छ रखने और ऊर्जा उत्पादन में भी मिलेगा।
बायोमास संसाधनों के उपयोग से बिजली उत्पादन
- नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय देश में बायोमास से बिजली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये कई कार्यक्रम चला रहा है। इसका उद्देश्य देश में उपलब्ध बायोमास संसाधनों जैसे- गन्ने की खोई, चावल की भूसी, पुआल, कपास के डंठल आदि का उपयोग बिजली उत्पादन में करना है।
मेथनॉल को बढ़ावा
नीति आयोग भी कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस को मेथनॉल (Methanol) में बदलने की योजना पर विचार कर रहा है। ऐसा होने पर घरेलू रसोई गैस की खपत कम होने की उम्मीद की जा सकती है।
- इसी क्रम में पूर्वी असम के डिब्रूगढ़ ज़िले के नामरूप में असम पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा पायलट परियोजना के हिस्से के रूप में मेथनॉल गैस पर आधारित खाना पकाने के स्टोव का निर्माण किया गया। यह परियोजना खाना पकाने वाले ईंधन से शुरू हुई है, जो महिलाओं के सशक्तीकरण के लिये एक नई पहल है।
- नीति आयोग के अनुसार, ‘मेथनॉल एक स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन’ है जिसके द्वारा 2030 तक कच्चे तेल के आयात में 10 फीसदी तक की कमी आ सकती है।
राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति
- वहीं, मई 2018 में राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति जारी की गई। इस नीति का मुख्य उद्देश्य बड़े ग्रिड से जुड़े पवन-सौर फोटो-वोल्टेइक हाइब्रिड प्रणाली को बढ़ावा देने के लिये एक ढाँचा प्रदान करना है।
- इसके द्वारा पवन व सौर संसाधनों से भूमि का कुशल और अधिकतम उपयोग कर अधिक ऊर्जा उत्पादित करने में मदद मिलेगी। इसी क्रम में देश में सौर पार्क स्थापित किये जा रहे हैं।
- गौरतलब है कि पिछले दिनों दुनिया का सबसे बड़ा सोलर पार्क ‘शक्ति स्थल’ कर्नाटक के पावागढ़ में बनाया गया है। साथ ही देश के 21 राज्यों में कुल 26,694 मेगावाट क्षमता के 47 सौर पार्क स्थापित करने को मंज़ूरी मिली है।
BS-IV मानक इंजन वाले मोटर वाहनों की बिक्री और पंजीकरण पर रोक
- यदि पर्यावरण की बात करें तो जलवायु परिवर्तन भूगर्भीय, जैविक और पारिस्थितिकीय प्रणालियों को प्रभावित कर रहा है जिससे प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने 1 अप्रैल, 2020 से BS-IV मानक इंजन वाले मोटर वाहनों की बिक्री और पंजीकरण पर रोक लगाने की बात कही है। इसके स्थान पर 2020 से BS-VI मानक लागू किये जाएंगे।
- इसी क्रम में दिल्ली सरकार प्रदूषण रोकने के लिये इलेक्ट्रिक बसों की ओर बढ़ने की योजना बना रही थी लेकिन नए स्वच्छ ईंधन का पता लगाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली सरकार ने सड़कों पर हाइड्रोजन आधारित CNG बसों को चलाने की योजना बनाई है।
- HCNG को आंतरिक दहन इंजन के ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे ईंधन का स्वच्छ और शक्तिशाली स्रोत माना जाता है। इसे भविष्य की ‘हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था’ की दिशा में एक सराहनीय कदम माना जा रहा है। यहाँ सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि HCNG आधारित बसें चलाने के लिये इंजन के ढाँचे में न्यूनतम संशोधन की आवश्यकता होगी।
कृषि-अपशिष्ट से जैव-सीएनजी उत्पादन
इन सबके अलावा, स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने अगले पाँच वर्षों में 5,000 संयंत्र बनाकर कृषि-अपशिष्ट से जैव-सीएनजी उत्पादन करने के लिये एक योजना शुरू की है। ये संयंत्र न केवल कृषि अपशिष्ट जलाने की समस्या से निपटने में मदद करेंगे बल्कि किसानों को मौद्रिक लाभ भी दिलाएंगे।
अन्य उपाय
- सरकार खाना पकाने, प्रकाश की व्यवस्था, रूम हीटर आदि हेतु बिजली की मांग को पूरा करने के लिये ऑफ-ग्रिड एवं विकेंद्रीकृत नवीकरणीय कार्यक्रम लागू कर रही है।
- साथ ही देश में सोलर लालटेन, सोलर स्ट्रीट लाइट, सोलर होम लाइट, सोलर पंप आदि की व्यवस्था किये जाने पर भी ज़ोर दिया जा रहा है।
- इन सब के साथ-साथ भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने की बात कही है।
भारत के संदर्भ में हाल ही में आयोजित ऊर्जा संबंधित अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम
नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने अक्तूबर 2018 में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की पहली सभा, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन की दूसरी ऊर्जा मंत्रिस्तरीय बैठक और दूसरी नवीकरणीय ऊर्जा-इन्वेस्ट मीटिंग और एक्स्पो की मेज़बानी की।
- इस तीन दिवसीय आयोजन में 77 से अधिक देशों ने हिस्सेदारी की। इस आयोजन ने विशेषज्ञों को संबंधित क्षेत्र के दायरे में ऊर्जा ज़रूरतों पर चर्चा करने, सहयोग में आ रही परेशानियों की पहचान करने और संबंधित एजेंसियों के बीच तालमेल पर चर्चा करने के लिये एक मंच प्रदान किया।
- इस कार्यक्रम ने हिंद महासागर रिम एसोसिएशन और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के बीच समझौते के ज़रिये रिश्तों को भी मज़बूत किया है।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन एक अंतर्राष्ट्रीय अंतर-सरकारी संगठन है।
- इसका मुख्यालय हरियाणा के गुरुग्राम में है।
- अब तक 71 देशों ने इस गठबंधन के फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। इनमें से 48 देशों ने इसे मंज़ूरी दे दी है।
- इस गठबंधन का प्राथमिक उद्देश्य जीवाश्म ईंधन पर ऊर्जा की निर्भरता को ख़त्म कर सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना है।
- इसके अलावा, सभी सदस्य देशों को सस्ती दरों पर सोलर टेक्नोलॉजी उपलब्ध कराना और इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास (Research & Development) को बढ़ावा देना आदि भी इसके उद्देश्यों में शामिल है।
- इससे इतर अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने हाल ही में चेतावनी दी है कि जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा का विकास बहुत धीमा रहा है। दरअसल, हाल के समय में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र पर ध्यान देने के बावजूद दीर्घकालिक जलवायु और स्थायी लक्ष्यों को पूरा करने के लिये इस दिशा में अभी तक की गई कवायद काफी नहीं मानी जा रही है।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का कहना है कि परिवहन और विद्युत क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा का कम उपयोग, एक स्वच्छ ऊर्जा वाले भविष्य को अंधकारमय कर सकता है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए भविष्य की रणनीति को तय करना बहुत ज़रूरी है।
आगे की राह
- दुनिया की आबादी लगभग 760 करोड़ है जो 2050 तक 900 करोड़ तक पहुँच सकती है। इस बढ़ती आबादी की ज़रुरतों को पूरा करने के लिये संसाधनों की तेज़ी से खपत हो रही है। संभावित तौर पर सभी गैर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत निकट भविष्य में समाप्त हो जाएंगे, इसलिये नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत और स्वच्छ ईंधन की खोज एक महत्त्वपूर्ण विषय बन गया है ।
- भारत की बात करें तो यह एक तेज़ी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है और किसी भी अर्थव्यवस्था में ‘ऊर्जा तथा वित्त’ ईंधन का काम करते हैं। वित्त के अभाव में ऊर्जा आर्थिक प्रगति को रफ़्तार नहीं दे सकती है। ऐसे में वैश्विक निवेशक उद्योग आज भारतीय ऊर्जा क्षेत्र को एक आकर्षक निवेश मंजिल के रूप में देख रहा है जिसका पूरा-पूरा लाभ उठाने के लिये और मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रम को सफल बनाने के लिये भारत को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के स्तर पर नए कीर्तिमान बनाने होंगे। इसमें भारत सरकार द्वारा ‘सूर्य मित्र एप’ के ज़रिये दी गई ट्रेनिंग और ‘अभिनव सोच-नई संभावना’ के नाम से दिया गया अवार्ड एक सराहनीय कदम है।
- भारत की ऊर्जा रणनीति के लिये ऊर्जा भंडारण भी काफी महत्त्वपूर्ण समझा जा रहा है। लिहाज़ा ऊर्जा भंडारण क्षेत्र में बेहतरी के लिये एक व्यापक राष्ट्रीय ऊर्जा भंडारण मिशन तैयार किया गया है। इसे और अधिक प्रभावी तरीके से नवाचार एवं नीतिगत समर्थन पर केंद्रित करना होगा। इसी के साथ हमें ऊर्जा क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास पर ज़ोर देना होगा जो नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में गुणवत्ता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करेगा।
- इसके अलावा, हमें बिजली की खपत भी कम करनी होगी जिसके लिये ‘हरित इमारत कार्यक्रम’ एक अहम भूमिका निभा सकता है। यह कार्यक्रम ऊर्जा परिदृश्य को बेहतर करने और आर्थिक बचत सुनिश्चित करने के अलावा संबंधित शहर की वायु की गुणवत्ता और स्वास्थ्य संबंधी दशाओं को भी बेहतर बना सकता है। यदि भारत वास्तव में कम ऊर्जा खपत वाले ‘इमारती’ बुनियादी ढाँचे का निर्माण करने में सफल हो जाता है, तो यह ढाँचा आगे चलकर भारत में समावेशी, हरित, स्वस्थ, सुरक्षित और सुदृढ़ शहरों का सफलतापूर्वक निर्माण करने में मददगार साबित हो सकता है।
निष्कर्ष
- इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि लगातार बढ़ते प्रदूषण ने अनेक बीमारियों को जन्म दिया है। इसलिये इसकी रोकथाम के लिये कार्बन उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को रोकने की बातें कही जाती रही हैं।
- ऐसे में हमें वैकल्पिक ईंधन के शोध पर ज़ोर देना होगा। इसमें मेथनॉल, हाइड्रोजन आधारित ईंधन, जेट्रोफा तेल और शेल गैस अहम् भूमिका निभा सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त दुनिया भर में नीति निर्माताओं और सरकारों के साथ-साथ नागरिकों को पृथ्वी पर पर्यावरण और संसाधनों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करना होगा।
‘भारत में ऊर्जा की खपत लगातार बढ़ रही है तो वहीं नवीकरणीय ऊर्जा में भी अपार संभावनाएँ देखी जा रही हैं।’’ ऐसे में आगे की रणनीति बताते हुए कथन की व्याख्या कीजिये।