भारत में रक्षा खरीद एवं ऑफसेट पॉलिसी | 26 Oct 2020
हाल ही में सरकार ने रक्षा खरीद में ‘ऑफसेट’ नीति को हटाने का निर्णय किया है। यह नीतिगत निर्णय रक्षा सौदों की लागत को कम करने एवं इसी मुद्दे पर नियंत्रक एवं महालेख परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के प्रतिक्रिया स्वरूप लिया गया है। इसके बाद से ऑफसेट क्लॉज़ द्विपक्षीय सौदों और एकल (एकाधिकार) विक्रेता के साथ लागू नहीं होगा। हालाँकि, भारत के प्रमुख रक्षा सौदे उपर्युक्त वर्णित मार्ग के तहत ही किये जाएंगे और रक्षा ऑफसेट नीति का परिमार्जन हो जाएगा।
कई विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम घरेलू क्षमताओं में वृद्धि या आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में रुकावट सिद्ध होगा। इसलिये सरकार को इससे होने वाले संबंधित लाभों को उठाने के लिये अपनी रक्षा ऑफसेट नीति पर पुनर्विचार करना चाहिये। गौरतलब है कि कैग ने संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में पूरी ऑफसेट पॉलिसी में बड़े परिवर्तन की मांग की है। कैग ने ऑफसेट पॉलिसी के तहत विदेशी रक्षा कंपनियों की तरफ से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं किये जाने पर नाराजगी प्रकट की थी। कैग ने फ्राँस के राफेल डील का हवाला देते हुए कहा था कि फ़ाइटर जेट बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट एविएशन और इसमें लगे हथियारों की सप्लाई करने वाली कंपनी एमबीडीए ने भारत को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं किये हैं। ध्यातव्य है कि राफेल डील में पॉलिसी के तहत 30% की जगह 50% कल-पुर्जे भारत में बनने थे।
ऑफसेट पॉलिसी
ऑफसेट पॉलिसी के तहत विदेशी रक्षा उत्पादन कंपनियों को 300 करोड़ रुपए से अधिक के सौदे हेतु कुल वैल्यू का कम-से-कम 30 प्रतिशत भारत में खर्च करना अनिवार्य था। विदेशी कंपनियों को यह खर्च कलपुर्जों की खरीद, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर या अनुसंधान और विकास (R&D) इकाइयों की स्थापना में करना होता था। ऑफसेट पॉलिसी के तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि भारत सरकार द्वारा रक्षा उपकरणों की खरीद पर टेक्नोलॉली ट्रांसफर का होना आवश्यक है, ताकि देश में रक्षा उपकरणों के निर्माण को बढ़ावा मिल सके और विदेशी निवेश भी हो सके।
हालाँकि यह अनुमान लगाया गया है कि 2005 में लाई गई इस ऑफसेट पॉलिसी से अब तक के रक्षा सौदों की लागत में वृद्धि ही हुई है एवं भारत को विदेशी कंपनियों से सैन्य तकनीक हस्तांतरण के संबंध में कोई खास उपलब्धि प्राप्त नहीं हुई है। नई रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया के तहत सशस्त्र बलों को ट्रांसपोर्ट प्लेन, हवा में ईंधन भरने वाले प्लेन, हेलिकॉप्टर, सिम्युलेट जैसे तात्कालिक ज़रूरत के रक्षा उपकरणों को तुरंत लीज़ पर लेने की अनुमति दी गई है।
ऑफसेट पॉलिसी रक्षा सौदे में अंतर्राष्ट्रीय पक्षकारों का एक दायित्व है, ताकि भारत के घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा मिल सके। चूँकि रक्षा अनुबंध महँगे होते हैं अतः सरकार उस पैसे का कुछ हिस्सा या तो भारतीय उद्योग को लाभ पहुँचाने या देश को तकनीकी संबंधी लाभ उठाने में करना चाहती है।
मुख्य उद्देश्य
रक्षा ऑफसेट पॉलिसी का मुख्य उद्देश्य भारतीय रक्षा उद्योग को विकसित करने हेतु पूंजी अधिग्रहण को निम्न तरीके से बढ़ावा देना है-
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी उद्यमों के विकास को बढ़ावा देकर।
- रक्षा उत्पादों और सेवाओं से संबंधित अनुसंधान, डिज़ाइन और विकास हेतु क्षमता के संवर्धन द्वारा।
- सिविल एयरोस्पेस और आंतरिक सुरक्षा जैसे सहक्रियाशील क्षेत्रें को बढ़ावा देकर।
आवश्यकता क्यों?
विकासशील देशों द्वारा की जाने वाली रक्षा खरीद में अक्सर औद्योगिक आधार और अनुसंधान एवं विकास (R&D) सुविधाओं का अभाव होता है। हालाँकि भारत जैसे बड़े खरीदार देश रक्षा सौदों को सुरक्षित करने के लिये अपनी ‘क्रय शक्ति’ का प्रयोग करने की कोशिश करते हैं, न कि सबसे कम कीमत को प्राप्त करने की कोशिश। उत्पाद को उन्नत करने और R&D क्षमताओं का निर्माण करने के लिये प्रौद्योगिकी के अधिग्रहण हेतु प्रयास भी करते हैं। ऑफसेट क्लॉज़ इन लक्ष्यों को प्राप्त करने का साधन है।
लाभ
- रक्षा ऑफसेट पॉलिसी ने बेंगलुरू के आसपास एक एयरोस्पेस क्लस्टर, जिसमें ज्यादातर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग थे, को विकसित करने में मदद की।
- संयुक्त राष्ट्र के कॉमरेड डेटाबेस के अनुसार, 2005 के 62.5 मिलियन डॉलर से भारत का निर्यात बढ़कर 2014 में 6.7 बिलियन डॉलर हो गया था।
- ऑफसेट क्लॉज़ ने भारत (एकमात्र ऐसा देश जो एक प्रमुख घरेलू एयरोस्पेस फर्म नहीं है)को दुनिया के शीर्ष 10 एयरोस्पेस निर्यातकों की लीग में शामिल होने में सक्षम बनाया ।
नई नीति से संबंधित मुद्दे
- कैग रिपोर्ट
- हालिया कैग रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2007 से 2018 के बीच सरकार ने कथित रूप से 46 ऑफसेट अनुबंधों पर हस्ताक्षर किये, जिसमें 66,427 करोड़ रुपए का निवेश किया गया था। हालाँकि रियलाइज्ड निवेश केवल 8% यानि 5,454 करोड़ का था।
- यह भी देखा गया कि एक भी ऐसा मामला नहीं था जिसमें किसी विदेशी विक्रेता ने भारतीय उद्योग को उच्च प्रौद्योगिकी हस्तांतरित की हो।
- नई नीति
- कैग की रिपोर्ट के प्रत्युत्तर में सरकार ने रक्षा उपकरणों की खरीद में ऑफसेट क्लॉज़ को न अपनाने का फैसला लिया है, यदि वह सौदा अंतर-सरकारी समझौते (IGA), सरकार से सरकार या एक एकल वेंडर के माध्यम से किया जाता है।
- सरकार ने स्वीकार किया कि लागत को संतुलित करने के लिये अनुबंध में ऑफसेट भार एक अतिरिक्त लागत है एवं ऑफसेट के इन क्लॉज़ को दूर करने से ऐसे अनुबंधों की लागत में कमी आ सकती है। हालाँकि, ऑफसेट क्लॉज़ के कारण समझौते की उच्च लागत, लंबी अवधि में उत्पादन के स्वदेशीकरण और घरेलू उद्योग के लिये संभावित प्रौद्योगिकी लागत में कमी लाते हुए, स्वयं भुगतान कर सकेगी।
- नई नीति का प्रभाव
- चूँकि अधिकांश रक्षा सौदे द्विपक्षीय होते है, या एक आपूर्तिकर्त्ता (प्रौद्योगिकी पर एकाधिकार प्राप्त) होता है, अतः-
- इस क्लॉज़ के कमजोर पड़ने का अर्थ होगा व्यवहारिक रूप से ऑफसेट क्लॉज़ को छोड़ना।
- यह रक्षा उत्पादन और तकनीकी आत्मनिर्भरता बढ़ाने के संबंध में भारत की संभावनाओं को प्रभावित करेगा।
- भारत ने उन्नत प्रौद्योगिकी प्राप्त करने हेतु स्वेच्छा से सौदेबाजी का एक शक्तिशाली साधन छोड़ दिया।
रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020
- विशेषताएँ
- भारतीय विक्रेताओं के लिये श्रेणियों में आरक्षण: नए प्रावधानों के तहत कई तरह की खरीद को विशेष तौर पर भारतीय निर्माताओं के लिये ही आरक्षित किया गया है। यह आरक्षण घरेलू भारतीय उद्योग में भागीदारी को विशिष्टता प्रदान करेगा।
- स्वदेशी सामग्री का संवर्द्धन: स्वदेशी सामग्री (Indigenous Content-IC) में समग्र वृद्धि, स्वदेशी सामग्री के सत्यापन की एक सरल और व्यावहारिक प्रक्रिया, स्वदेशी कच्चे माल का उपयोग, स्वदेशी सॉफ्टवेयर, जैसे- फायर कंट्रोल सिस्टम, रडार, एन्क्रिप्शन, कम्युनिकेशंस आदि को अपनाकर स्वदेशी सामग्री के संवर्द्धन के प्रावधान किये गए हैं।
- परीक्षण और जाँच प्रक्रियाओं का युक्तिकरण:
- उपयुक्तता और अन्य शर्तों पर परीक्षण उपकरण के लिये कार्यात्मक प्रभावशीलता की पुष्टि करने वाले उचित प्रमाण पत्र प्राप्त किये जा सकते हैं।
- परीक्षणों का दायरा प्रमुख ऑपरेशनल मापदंडों के भौतिक मूल्यांकन तक सीमित रहेगा।
- परीक्षणों के दोहराव से बचाव और छूट समनुरूपता प्रमाण पत्र के आधार पर दी जाएगी।
- निरीक्षण: निरीक्षण की कोई पुनरावृत्ति विशेष रूप से उपकरणों की स्वीकृति के दौरान नहीं की जाएगी। थर्ड पार्टी निरीक्षण भी किया जाएगा।
- निर्माण और नवाचार: आईडेक्स (An innovation ecosystem for Defence titled Innovations for Defence Excellence-iDEX), प्रौद्योगिकी विकास कोष और आंतरिक सेवा संगठनों जैसी विभिन्न पहलों के तहत 'नवाचार' के माध्यम से विकसित प्रोटोटाइप (Prototype) की खरीद की सुविधा दी गई है।
- डिज़ाइन और विकास: रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान (Defence Research and Development Organisation-DRDO)/DPSU (Defence Public Sector Undertakings)/OFB (Ordnance Factory Board) द्वारा डिज़ाइन और विकसित प्रणालियों के अधिग्रहण के लिये DAP-2020 में अलग से एक समर्पित अध्याय शामिल किया गया है। प्रमाणीकरण और सिमुलेशन के माध्यम से मूल्यांकन पर अधिक ज़ोर देने और समय में कमी लाने के लिये एकीकृत एकल चरण परीक्षणों के साथ एक सरल प्रक्रिया अपनाई जाएगी।
- उद्योग के अनुकूल वाणिज्यिक शर्तें:
- विक्रेताओं द्वारा प्रारंभिक मूल्यों को बढ़ाने से रोकने और परियोजना की वास्तविक कीमत पर बड़े अनुबंधों के लिये मूल्य बदलाव खंड शामिल किया गया है।
- विक्रेताओं को समय पर भुगतान सुनिश्चित करने के लिये तय समयसीमा के अंदर डिजिटल सत्यापन के प्रावधानों को शामिल किया गया है।
आगे की राह
- ऑफसेट क्लॉज़ की समीक्षा और उचित कार्यान्वयन।
- ऑफसेट नीति सफल हो सकती है, अगर इसे एयरोस्पेस उद्योग में समानांतर रूप से डिजाइन किया जाए एवं इसका निष्पादन सही तरीके से हो।
- हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के होने के बावजूद भारत वैश्विक नागरिक विमान निर्माण में अभी भी पीछे है, क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ज्यादातर रक्षा उत्पादन के लिये समर्पित है।
- बहुचर्चित राष्ट्रीय नागरिक विमान विकास (NCAD) परियोजना ने स्वदेशी रूप से डिजाइन किये गए क्षेत्रीय परिवहन विमान के अलावा अभी भी कोई खास उपलब्धि हासिल नहीं की।
- इस प्रकार वर्तमान ऑफसेट नीति की समीक्षा करने के अलावा, रक्षा ऑफसेट नीति के कार्यान्वयन हेतु एक औपचारिक तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है।
- बेहतर विनियमन और सुविधा
- साक्ष्यों के अनुसार घरेलू उद्योग ऑफसेट आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं। इस हेतु जरूरी है कि भारत ऑफसेट के क्रियान्वयन हेतु एक सक्षम निकाय की स्थापना के साथ-साथ उदारीकृत एफडीआई, लाइसेंसिंग नीतियाँ और बेहतर बैंकिंग प्रावधानों की व्यवस्था करें।
- स्पष्ट रोडमैप की आवश्यकता
- भारत के दीर्घकालिक सैन्य औद्योगिक उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए, ऑफसेट के माध्यम से प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण हेतु एक स्पष्ट रोडमैप की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
भारत को राष्ट्रीय हित में, सौदों के सख्त प्रवर्तन के साथ-साथ रक्षा अनुबंधों में ऑफसेट क्लॉज़ पर पुनः विचार करने की आवश्यकता है ताकि आत्मनिर्भर भारत अभियान की सफलता सिद्ध की जा सके।