भारत में बैंकों का बदलता स्वरूप | 27 Oct 2018
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक यानी IPPB को लॉन्च किया। इसकी वजह से पेमेंट्स बैंक एक बार फिर चर्चा में आ गये हैं। गौरतलब है कि 30 जनवरी 2017 को रायपुर और राँची से IPPB का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया था। मिनिस्ट्री ऑफ कम्युनिकेशंस के डिपार्टमेंट ऑफ पोस्ट्स के तहत IPPB भारत सरकार के शत-प्रतिशत स्वामित्व वाला पेमेंट बैंक है। आपको बता दें कि 'आपका बैंक आपके द्वार' टैगलाइन वाले इस भुगतान बैंक की करीब 650 शाखाएँ और 3250 सेवा केंद्र खोले गए हैं। उम्मीद है दिसंबर, 2018 तक देशभर के सभी एक लाख पचपन हजार पोस्ट ऑफिस IPPB सिस्टम से जुड़ जाएंगे। IPPB ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएँ मुहैया कराकर केंद्र सरकार के वित्तीय समावेशन के मकसद को पूरा करने में सहायता करेगा। इसके जरिये सेविंग्स और करेंट एकाउंट्स, मनी ट्रांसफर, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर और बिल पेमेंट जैसी सुविधाएँ 13 भाषाओं में मुहैया कराई जाएंगी। काउंटर सर्विसेज, माइक्रो एटीएम, मोबाइल बैंकिंग एप, एसएमएस और आईवीआर के माध्यम से ये सुविधाएँ आम जनता तक पहुँचाई जाएंगी। IPPB एक लाख रुपये तक की जमा राशि स्वीकार करेगा। एक लाख रुपये से अधिक राशि वाला खाता अपने आप पोस्ट ऑफिस सेविंग्स अकाउंट में तब्दील हो जाएगा। देशभर में फैले डाक विभाग के 3 लाख से अधिक डाकियों और ग्रामीण डाक सेवकों के विशाल नेटवर्क के माध्यम से IPPB को काम करने में आसानी होगी।
यह लेख इसी पर केन्द्रित है कि स्वतंत्र भारत में बैंकों का स्वरूप किस प्रकार से बदलता रहा है ? शुरुआत में केवल बैंकिंग का कार्य करने वाले बैंक आज पोस्ट पेमेंट्स बैंक के रूप में पहुँचने तक किस गति से आगे बढ़ते रहे हैं? इन बैंकों ने भारत की अर्थव्यवस्था और वित्तीय समावेशन को किस सीमा तक प्रभावित किया है ? इन सभी सवालों की परिधि में देश के बैंकिंग स्वरूप और इसके मायने की पड़ताल करते हैं।
पृष्ठभूमि
- बैंक किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं। देश में बैंकिंग व्यवस्था की शुरुआत को इतिहासकार लगभग 18वीं शताब्दी से ही मानते हैं| इसके बारे में कहा जाता है कि अंग्रेजों ने आधुनिक बैंकिंग प्रणाली को लाकर भारत की अर्थव्यवस्था में क्रांति कर दी थी। अंग्रेजों ने सुनियोजित तरीके से धन की उगाही के लिये तीनों प्रेसीडेंसियों मसलन मद्रास, बंबई और बंगाल में बैंकों की स्थापना की। इसके बाद तीनों प्रेसीडेंसी बैंकों को मिलाकर 1921 में इम्पीरियल बैंक की स्थापना हुई।
- भारत की स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1955 को इम्पीरियल बैंक की सभी संपत्तियों का अधिग्रहण करके स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने कार्य करना शुरू कर दिया। आपको बता दें कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया देश का सबसे पुराना और सबसे बड़ा व्यापारिक बैंक है| इसे राष्ट्रीयकृत बैंकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। राष्ट्रीयकृत बैंकों में उन बैंकों को रखा जाता है जो 1969 के राष्ट्रीयकरण और उसके बाद सरकार के अधीन आये हैं।
- यह तो बात थी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के बारे में| अब बात करते है केन्द्रीय बैंक यानी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के बारे में। 1926 हिल्टन यंग कमीशन ने इस बात का सुझाव दिया था कि इम्पीरियल बैंक से अलग एक केन्द्रीय बैंक को स्थापित किया जाना चाहिये जो विदेशी विनिमय कोष प्रबंधन के साथ-साथ नोट भी जारी कर सके। यहाँ यह भी जानना जरूरी है कि हिल्टन यंग कमीशन पहला कमीशन था जिसने रिजर्व बैंक को लाने की बात कही थी|
- 1934 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट के जरिये 1 अप्रैल,1935 से रिजर्व बैंक ने कार्य करना शुरू कर दिया। आपको बता दें कि वर्मा विभाजन के बाद रिजर्व बैंक ने 1942 तक वहाँ की करेंसी अथॉरिटी और 1947 तक वहाँ की सरकार के बैंकर के रूप में भी कार्य किया था। देश के विभाजन के बाद 1948 तक इसने पाकिस्तान के सेन्ट्रल बैंक के रूप में भी कार्य किया था। वर्ष 1949 में रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया और तब से यह देश का केन्द्रीय बैंक है।
- इस समय देश में RBI और SBI के अलावा भी कई अन्य व्यापारिक बैंक कार्य कर रहे थे। फिर भी ऐसा लगातार महसूस किया जा रहा था कि इन बैंकों के द्वारा कृषि, लघु एवं कुटीर उद्योग, गाँव और कस्बों की लगातार उपेक्षा की जा रही है। उस समय सरकार ने देश के आर्थिक विकास को बढ़ाने के लिये 1969 में 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया । इस कदम को और विस्तार देते हुए सरकार ने 1980 में 6 और बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इन सबके बावजूद भी इसके वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सका। इसलिए सरकार ने बैंक क्षेत्र में सुधार के लिये कई आयोगों का गठन किया।
बैंकिंग क्षेत्र में सुधार
- बैंकिंग क्षेत्र में सुधार करने के लिये सरकार ने 1991 में एम. नरसिंहम की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बैंकिंग क्षेत्र में चार स्तरीय ढाँचे की व्यवस्था की जाए जिसमें तीन या चार बड़े बैंक होंगे। SBI इसमें शामिल होगा और इसे शीर्ष स्थान प्राप्त होगा तथा यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपना कार्य कर सकेगा। इसने कहा कि बेसल समिति द्वारा सुझाये गये उपायों को धीरे-धीरे प्राप्त करने की जरूरत है।
- नरसिंहम समिति ने लाइसेंस प्रणाली को खत्म करने की भी बात कही थी। बैंकिंग क्षेत्र में सुधार के लिये दूसरी बार एम. नरसिंहम की अध्यक्षता में ही एक समिति का गठन किया गया। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में पूंजी खाते की परिवर्तनीयता को ध्यान में रखते हुए बैंकिंग प्रणाली को और अधिक मजबूत करने पर जोर दिया।
- इस समिति ने बड़े बैंकों को भी मिलाने पर बल दिया और कहा कि जहाँ पर कुछ अंतर्राष्ट्रीय और कुछ राष्ट्रीय स्तर के बैंक हों वहाँ पर छोटे स्थानीय बैंकों को खोलने पर भी बल दिया जाना चाहिये जिससे किसी राज्य के स्थानीय व्यापार, उद्योग तथा कृषि को बढ़ावा मिल सके। इस लिहाज से रिजर्व बैंक द्वारा नचिकेत मोर समिति का गठन किया गया।
- इस समिति ने छोटे व्यवसायों और कम आय वाले परिवारों के लिए व्यापक वित्तीय सेवाओं और भुगतान बैंकों को लाइसेंस देने संबंधी बात कही। इस समिति की अनुशंसा के आधार पर ही सरकार द्वारा इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक यानी IPPB को लॉन्च किया गया था।
- गौरतलब है कि बैंकों में सुधार के लिये बेसल 3 मानक को लाया गया। आपको बता दें कि बेसल 3 बैंकिंग प्रणाली के उन पक्षों को सुधारने का प्रयास करता है जिसके कारण पूरे विश्व को आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा। इसके पीछे का गणित यह है कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं को अपनी वित्तीय प्रणाली को बचाने के लिये बहुत धनराशि खर्च करनी पड़ती है। इसके लिये ये देश नहीं चाहते कि आने वाले समय में इस तरह की समस्या का सामना फिर से करना पड़े। इन सब वजहों से बैंकिंग व्यवस्था को कुछ इस प्रकार से नियंत्रित करना होगा जिससे न केवल बैंक की पूंजी में गुणात्मक सुधार हो बल्कि बैंकों की हानि सहने की क्षमता में भी बढ़ोतरी हो।
आज के समय में बैंकों का स्वरूप किस प्रकार से बदल रहा है ?
- आज के समय में बैंकिंग व्यवहार और उपभोक्ताओं की जरूरतों में परिवर्तन जिस तरीके से हो रहे हैं, वैसी स्थिति में बैंकों का भविष्य भी संकट के घेरे में है। अब तो यह भी माना जा रहा है कि परंपरागत बैंकिंग का दौर खत्म हो चुका है और बैंकलेस बैंकिंग अवधारणा मजबूत हुई है। इसी संबंध में एक बार बिल गेट्स ने कहा था कि बैंकिंग तो जरूरी है किन्तु बैंक नहीं।
- आज तकनीक ने बैंकों के स्वरूप को एकदम बदल दिया है। इसमें बिग डेटा, क्लाउड कंप्यूटिंग, स्मार्टफोन और ऐसे अन्य नवाचार शामिल हैं।
- मोबाइल बैंकिंग के आने से तो ग्राहकों और बैंक के बीच संवाद के तरीके में बहुत बदलाव आ गया है। मोबाइल बैंकिंग के द्वारा घर से दूर रहकर भी अपने बैंक के खातों की जानकारी ली जा सकती है। किसी भी समय खाते से पैसों को ट्रांसफर करना, बिलों का भुगतान इत्यादि किया जा सकता है। यह सुविधा 24 घंटे उपलब्ध होती है।
- इसी प्रकार एटीएम मशीनों ने बैंकिंग व्यवस्था को बहुत हद तक सरल, सुरक्षित और सुविधाजनक बना दिया है।
- कैशलेस अर्थव्यवस्था ने बैंकिंग स्वरूप में और बड़ा परिवर्तन किया है। इससे एक ओर जहाँ लोगों को लंबी कतारों से मुक्ति के साथ-साथ समय की बचत हुई तो वहीं दूसरी ओर कालेधन को रोकने में बहुत हद तक मदद भी मिली। इसके कारण अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता आयी। कैशलेस व्यवस्था आने के कारण रुपया लोगों के पास से तो हटा ही किन्तु उसका स्थान प्लास्टिक मुद्रा ने लिया।
- प्लास्टिक मुद्रा ने लोगों की समस्या के समाधान के साथ-साथ पर्यावरण को तो लाभ पहुँचाया ही इसके साथ ही साथ इससे अर्थव्यवस्था में तेजी भी आयी। कैशलेस अर्थव्यवस्था को पेमेंट्स बैंकों ने भी आगे बढ़ाने में मदद की है।
- लिहाज़ा समाज के हाशिये पर बैठे व्यक्तियों को आर्थिक विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के लिये बैंकों ने समुचित प्रयास किया है। इस प्रयास में माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी लिमिटेड बैंक यानि मुद्रा बैंक का गठन भी बहुत महत्त्व रखता है| यह सूक्ष्म इकाइयों के विकास तथा पुनर्वित्तपोषण से संबंधित गतिविधियों के लिये भारत सरकार द्वारा गठित एक नई संस्था है। इसी प्रकार स्वयं सहायता समूह भी वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया को मजबूत करते हैं जो कि समाज के पिछड़े तबके के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
गौरतलब है कि वैश्वीकरण के दौर में बैंकों का स्वरूप लगातार बदल रहा है। पहले जहाँ बैंकों में लंबी-लंबी कतारें लगी रहती थीं, वहीं अब तकनीक ने इस कार्य को सरल और सुगम बना दिया है। तकनीक का प्रयोग करके पेमेंट बैंकों ने इस कार्य को और आसान बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आधुनिक बैंकिंग विशेषकर कैशलेस अर्थव्यवस्था बैंकिंग लेन-देन के डिजिटलीकरण के दौर में चिंता का विषय जरूर है। परन्तु सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने आईआईटी जैसे संस्थानों के साथ मिलकर विभिन्न तरीकों से इससे निपटने के प्रयास किये हैं। जन-धन योजना और डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर जैसी योजनाओं के माध्यम से बैंकिंग के जरिये वित्तीय समावेशन पर सरकार बहुत जोर दे रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों की पहुँच न हो पाना भी चिंता का विषय है। क्योंकि दुर्गम और कठिन क्षेत्र होने के कारण कई क्षेत्रों में अभी भी बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध नहीं हैं। सरकार ने बड़ी संख्या में बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट की नियुक्ति कर इस समस्या का समाधान करने का प्रयास किया है। ये बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट बैंकों तथा ग्रामीण जनता के बीच कड़ी का काम करते हैं। इसी प्रकार बैंकिंग क्षेत्र में सुधार के लिये हाल ही में सरकार ने तीन बैंकों के विलय का फैसला लिया है। इसमें देना बैंक, विजया बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा शामिल हैं। कुल मिलाकर ,भारत का आज का बैंकिंग स्वरूप बदलते परिवेश में नए कलेवर अपना रहा है| ऐसे में जरूरत इस बात की है कि यह कलेवर भारतीय जनता के सामाजिक-आर्थिक विकास को और बेहतर बनाने में अपनी भूमिका निभाए|