अफगानिस्तान : परिभाषित और पुनर्परिभाषित होते नागरिकता के आयाम | 01 Jan 2020

संदर्भ:

भारतीय संसद द्वारा पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (Citizenship Amendment Act-2019) ने तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से आए गैर-मुस्लिम धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिये भारतीय नागरिकता प्राप्त करने संबंधी प्रावधानों को आसान बना दिया है।

  • विदित है कि ऐतिहासिक रूप से भारत और अफगानिस्तान के मध्य द्विपक्षीय संबंध मज़बूत और मैत्रीपूर्ण रहे हैं। दोनों देशों के मध्य न केवल फिल्मों और खेल के क्षेत्र में बल्कि संगीत एवं भाषा के क्षेत्र में भी गहरे सांस्कृतिक संबंध मौजूद रहे हैं। इस चर्चा के क्रम में हमारे लिये भारत के पड़ोसी देश अफगानिस्तान में नागरिकता से संबंधित प्रावधानों के विकास क्रम को समझना आवश्यक हो जाता है।

संवैधानिक इतिहास:

  • संघर्ष और कई आक्रमणों के बावजूद कोई भी साम्राज्य अफगानिस्तान को लंबे समय तक नियंत्रित नहीं कर सका। ब्रिटिश साम्राज्य वर्ष 1839 के बाद हुए तीन युद्धों के उपरांत भी अफगानिस्तान को अपने नियंत्रण में नहीं ले सका। अफगानिस्तान कभी भी ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं रहा।
  • दीर्घकाल तक चली राजनीतिक अस्थिरता के बाद वर्ष 1964 में अफगानिस्तान की महासभा या लोया जिरगा द्वारा संविधान को अपनाया गया।
  • संविधान के शीर्षक तीन में अधिकारों और कर्त्तव्यों के बारे में बात की गई है ( भारत में मौलिक कर्त्तव्यों को वर्ष 1976 में अपनाया गया था)। संविधान के अनुच्छेद-1 में बिना किसी भेदभाव या वरीयता के अफगानिस्तान के लोगों को कानून के समक्ष समान अधिकार और दायित्व दिए जाने की घोषणा की गई।
  • अनुच्छेद-2 ने इस्लाम को राज्य धर्म घोषित किया और पाकिस्तान तथा बांग्लादेश के विपरीत यह उल्लिखित किया कि राज्य के धार्मिक संस्कार सुन्नी हनफी संप्रदाय के सिद्धान्तों के अनुसार किये जाएंगे। इसी अनुच्छेद ने यह भी प्रावधान किया कि गैर-मुस्लिम संप्रदाय सार्वजनिक शिष्टाचारऔर शांति के अधीन रहते हुए विधि द्वारा निर्धारित सीमा के भीतर अपने अनुष्ठान करने के लिये स्वतंत्र होंगे।
  • वर्ष 1995 में इस्लामिक मिलिशिया तालिबान सत्ता में आया तथा इसने महिला शिक्षा और पुराने हो चुके इस्लामिक कानूनों और दंडों पर प्रतिगामी प्रतिबंध लगा दिया।
  • 22 दिसंबर, 2001 को हामिद करज़ई ने अंतरिम सरकार के प्रमुख के रूप में पदभार संभाला। वर्तमान संविधान को जनवरी 2004 में अपनाया गया और इसकी पुष्टि की गई।

धर्म और अल्पसंख्यक अधिकार:

  • पाकिस्तान और बांग्लादेश के संविधान के विपरीत अफगानिस्तान का संविधान “अल्लाह की प्रशंसा” एवं अंतिम पैगंबर तथा उनके अनुयायियों के आशीर्वाद के साथ प्रारंभ होता है। प्रस्तावना में स्पष्ट है कि अफगानिस्तान का संविधान अपने सभी जनजातियों और लोगों से संबंधित है। यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर के साथ-साथ मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का उल्लेख करता है। इस तरह यह गैर-मुस्लिमों के अधिकारों और गैर-भेदभाव के दायरे को बढ़ाता है।
  • अनुच्छेद-3 के अनुसार, कोई भी विधि इस्लाम के सिद्धांतों और प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करेगी।
  • अनुच्छेद-22 के अंतर्गत प्रथम मौलिक अधिकार नागरिकों एवं राज्य के बीच किसी भी भेदभाव और विशिष्टता को प्रतिबंधित करता है तथा सभी नागरिकों के लिये समान अधिकार और कर्तव्य सुनिश्चित करता है। ध्यातव्य है कि भारत ने गैर-नागरिकों को भी समानता का अधिकार दिया है। अफगानिस्तान संविधान का अनुच्छेद-57 प्रावधान करता है कि विदेशियों के पास विधि के अनुसार अधिकार और स्वतंत्रता होगी।
  • संविधान का अनुच्छेद-58 स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग को संवैधानिक दर्जा देता है।
  • संविधान के अनुसार केवल अफगान माता-पिता से पैदा हुआ एक मुस्लिम नागरिक ही राष्ट्रपति बन सकता है ( भारत में देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त व्यक्ति भी राष्ट्रपति बन सकता है )। लेकिन अफगानिस्तान के मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीश और मंत्री देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त व्यक्ति भी हो सकते हैं।

नागरिकता संबंधी प्रावधान:

  • अफगानिस्तान का नागरिकता कानून, 1922 मूलरूप से हस्तलिखित था। वर्ष 1923 के संविधान के अनुच्छेद-8 ने सभी निवासियों को बिना धार्मिक भेदभाव के नागरिकता प्रदान की ।
  • इसका मुख्य उद्देश्य नागरिकता नहीं बल्कि तज़किरा (Tazkira) या राष्ट्रीय पहचान-पत्र जारी करना था। संविधान के अनुच्छेद-8 ने सिर्फ पुरुषों को नागरिकता दी और यह जूस सैन्गीनिस (Jus Sanguinis) या रक्त संबंध के संकीर्ण सिद्धांत पर आधारित था।
  • 7 नवंबर, 1936 को एक नया नागरिकता कानून बनाया गया जो राष्ट्रीयता पर वर्ष 1930 के हेग कन्वेंशन पर आधारित था। इसके अनुसार जूस सॉलि (Jus Soli) या जन्म से नागरिकता के सिद्धांत को अपनाया गया और अनुच्छेद-2 के अनुसार देश या विदेश में अफगान माता-पिता से जन्म लेने वाले सभी बच्चों को अफगान नागरिक माना गया ।
  • अनुच्छेद-12 के अनुसार यदि किसी बच्चे ने अफगानिस्तान में जन्म लिया है और माता-पिता के दस्तावेज़ उनकी नागरिकता को प्रामाणित नहीं करते हैं, तब भी बच्चे को अफगान नागरिक माना जाएगा।
  • संयुक्त राष्ट्र के राइट्स ऑफ स्टेटलेस पर्सन, 1954 अभिसमय के अनुसार, सभी राज्यहीन व्यक्तियों को अफगान नागरिक माना जाता है। वहीं देशीयकरण द्वारा नागरिकता किसी भी ऐसे व्यक्ति को प्रदान की जा सकती है, जो पाँच वर्षों तक वहाँ निवास करता है।
  • वर्तमान संविधान के अनुच्छेद-4 में घोषणा की गई है कि अफगानिस्तान राष्ट्र उन सभी व्यक्तियों से बना है जिनके पास अफगान नागरिकता है तथा अफगान शब्द प्रत्येक नागरिक पर लागू होगा।
  • अनुच्छेद-28 में नागरिकता को एक मौलिक अधिकार के रूप में उल्लिखित किया गया है और प्रावधान किया गया है कि किसी भी अफगान नागरिक को नागरिकता से वंचित नहीं किया जाएगा और न ही उसे आतंरिक या वाह्य निर्वासन की सज़ा दी जाएगी।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस