युवा और कृषि
- 27 Apr, 2023 | राहुल कुमार
एक कहावत है- “उत्तम खेती, मध्यम बान : अधम चाकरी, भीख निदान।” अर्थात् खेती करना सबसे अच्छा कार्य है। खेती के बाद व्यापार करना अच्छा कार्य है। इसके बाद चाकरी यानी नौकरी को स्थान दिया गया है और अंत में जब कुछ नहीं कर सकते तो भीख माँगना ही अंतिम विकल्प है, जिन्हें सबसे बेकार काम माना गया है। यानी कृषि कार्य बेकार नहीं है। यदि कृषि से युवा जुड़ जाए तो देश का काया-पलट हो सकता है।
असल में किसी भी देश के मानव संसाधन को उत्पादक बनाने में युवाओं का बड़ा योगदान रहा है। कुल जनसंख्या में युवाओं का प्रतिनिधित्व जितना ज़्यादा होता है समाज उतना ही ज़्यादा तरक्की की राह पर रफ़्तार भरता है क्योंकि समाज का सबसे सक्रिय और क्षमतावान वर्ग युवाओं का होता है। युवाओं की आत्मनिर्भरता का सीधा संबंध देश की खुशहाली से है। यदि एक युवा गलत रास्ता अपना ले तो वह सम्पूर्ण समाज के लिए समस्या बन जाता है। इसलिए युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, उम्दा कौशल और टिकाऊ रोजगार देना समय की माँग बन गई है। “कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें रोजगार की कोई कमी नहीं है और जहाँ युवा अपने नवाचार के द्वारा न केवल अपना भविष्य उज्ज्वल कर सकते हैं बल्कि देश की दशा और दिशा भी तय कर सकते हैं।”
भारत की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि से ही जीविकोपार्जन करती है। जबकि आर्थिक दृष्टि से कृषि का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान मात्र 16% है। यानी कृषि को फिर से एक नई क्रांति की आवश्यकता है। युवाओं के द्वारा कमोबेश कृषि क्रांति का वह आधार तैयार हो चुका है जो भारत की तस्वीर बदल सकती है। दिक्क़त केवल इस बात की है कि किसान का बेटा किसान नहीं बनना चाहता और किसान स्वयं अपने बच्चों को कृषि कार्य में नहीं रखना चाहता है। इसी तरह कृषि की पढ़ाई करने वाले युवा भी वापस गाँव में जाकर खेती नहीं करना चाहता है। युवा जोखिम लेने के लिए जाने जाते हैं किंतु कृषि और किसान को भारत में ऐसे ट्रीट किया जाता रहा है जैसे वह समाज के मुख्यधारा से अलग हो। यानी “कृषि को बेकारों, बेगारों और निरक्षरों का पेशा मानने की मानसिकता पर पूर्ण-विराम लगाने की आवश्कता है।” यदि एक बार आत्मसम्मान और आर्थिक सुरक्षा की भावनाएँ युवा किसानों में आ गया तो न केवल युवाओं के अच्छे दिन आ सकते हैं बल्कि भारत फिर से बुलंदी पर चढ़ सकता है। क्योंकि “विकसित भारत का रास्ता युवाओं, खेतों और खलिहानों से होकर ही गुजरेगा।”
आसपास गौर करें तो मालूम पड़ेगा कि फल-फूलों की खेती, मशरूम की खेती, पशुपालन एवं दुग्ध उत्पादन, मिल्क प्रोडक्ट तैयार करना, क्राफ्टेड फल के पौधे तैयार करना, खाद-बीज की दुकान लगाना, कुक्कुटपालन, मधुमक्खी पालन, सजावटी पौधों की नर्सरी खोलना, खाद्य प्रसंस्करण और आँवला, तिलहन, दलहन की प्रोसेसिंग यूनिट लगाना युवाओं को खूब भा रहा है। इस ओर युवाओं का रुझान बढ़ा है। कोरोना के बाद गाँवों में ही रोजगार की ओर आकर्षण का बढ़ना, देश और अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत है। यदि वैज्ञानिक पद्धति से कॉलेज स्तर पर प्रशिक्षण दिया जाए, कुटीर एवं कृषि आधारित घरेलू उद्योगों को बढ़ावा मिले तो पैसे की चाहत में युवा वर्ग भी खेती की ओर जूनून के साथ रुख करेंगे।
“लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था जय जवान, जय किसान। उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान का नारा बुलंद किया था। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान।” यानी कृषि क्षेत्र में भी अनुसंधान बहुत ज़रूरी है। युवाओं को कृषि से जोड़ने के लिए वर्तमान में देशभर में 73 कृषि विश्वविद्यालय प्रयासरत हैं। जहाँ कृषि की पढ़ाई गुणवत्तापूर्ण तरीके से हो रही है। भारत का इजरायल के साथ कृषि शोध को लेकर करार हुआ है। अंतरिक्ष विज्ञान, नैनो टेक्नोलॉजी, जेनेटिक्स, आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस, इनफॅार्मेशन टेक्नोलॉजी और अन्य क्षेत्रों से जुड़े वैज्ञानिकों को यदि एक प्लेटफॉर्म पर लाया जाए तो कृषि क्षेत्र के लिये बेहतरीन शोध हो सकते हैं। जिससे कृषि के तकनीकीकरण, बाजारीकरण, डिजिटलीकरण और औद्योगिकरण को बल मिलेगा। और युवाओं को कृषि से जुड़ाव महसूस होगा।
दरअसल युवा और कृषि दो ऐसी विशेषताएँ हैं जो भारत को विशिष्टता प्रदान करती है। ‘यूथ इन इण्डिया 2022’ रिपोर्ट के अनुसार भारत के कुल जनसंख्या का 27.3% युवा आबादी है। यानी 37.14 करोड़ युवाओं के साथ भारत सबसे अधिक युवाओं वाला देश है। और किसे नहीं पता कि भारत को कृषि प्रधान देश बोला जाता है! इस तरह युवा और कृषि भारत के लिए चुनौती नहीं बल्कि अवसर है। स्वरोजगार के तरफ युवाओं को आकर्षित करने में कृषि क्षेत्र सबसे आगे है। शून्य बजट प्राकृतिक कृषि, कार्बनिक कृषि और व्यापारिक कृषि कुछ ऐसे कृषि के चुनिंदा प्रकार हैं जो युवाओं को खूब आकर्षित कर रहे हैं। युवा इस क्षेत्र में उद्यमशीलता और नवाचार के द्वारा आमूलचूल परिवर्तन ला रहे हैं।
यदि किसान पढ़े-लिखे हो तो मौसम, मिट्टी, जलवायु, बीज, उर्वरक, कीटनाशक और सिंचाई से संबंधित सटीक जानकारी रखेंगे। फसलों को सही दाम कैसे मिले, कोल्ड स्टोरेज में फलों और सब्जियों को सुरक्षित कैसे रखा जाए और कृषि से प्राप्त कच्चे माल का निर्यात संबंधी गतिविधियों के बारे में ख़बर युवा किसान भलीभांति रखते हैं। जिससे ज़्यादा लाभ मिलने की संभावना बढ़ जाती है। दरअसल अब कृषि कार्य भी आधुनिक हो गया है। “एक जागरूक, शिक्षित, कर्मठ और दूरदर्शी किसान ही अपने खेत का सदुपयोग कर सकते हैं। फसलों की पैदावार और गुणवत्ता का कनेक्शन किसानों के मस्तिष्क से होता है।” निर्णय लेने की अच्छी क्षमता, विपरीत परिस्थियों में भी संयमता न खोना, फसल बीमा की सही जानकारी, कृषि ऋण की प्रक्रिया से अवगत होना, मजदूरों से समानुभूति बनाए रखना और बाजार के अनुकूल कल्पना करना; ये कुछ ऐसे गुण हैं जो युवा किसानों में कमोबेश पाए ही जाते हैं। जिससे कृषि कार्य रचनात्मक और आसान लगने लगता है। विकसित देशों में युवा दशकों से खेती-किसानी कर रहे हैं, और लगातार मानक स्थापित करते आ रहे हैं।
यदि युवा खेती नहीं करेंगे तो भविष्य के किसान कहाँ से आएँगे! युवा गाँव से शहर की ओर पलायन कर रहे हैं। सरकारी नौकरी से लगाव इतना ज़्यादा है कि इन्हें जीवन-मरण का प्रश्न मान बैठते हैं। दरअसल युवाओं को कृषि से जोड़ने के लिए कुछ बदलाव की आवश्यकता है। इसी संदर्भ में एमएस स्वामीनाथन की अगुआई वाले राष्ट्रीय किसान आयोग का जिक्र ज़रुरी है। अन्न की आपूर्ति को भरोसेमंद बनाने और किसानों की आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के उद्देश्य से साल 2004 में केंद्र सरकार ने एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया था। इसने कुल पाँच रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कृषि क्षेत्र में युवाओं की रुचि बनाई रखने की ज़रूरत पर ज़्यादा जोर दिया था। इसके रिपोर्ट में भूमि बंटवारा, भूमि सुधार, सिंचाई सुधार, उत्पादन सुधार, ऋण और बीमा, खाद्य सुरक्षा, वितरण प्रणाली में सुधार, प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाना तथा रोजगार सुधार जैसे विषयों पर ध्यान आकर्षित किया गया था। यदि इन तमाम मुद्दों पर सही से ध्यान दिया जाए तो इसमें कोई दो राय नहीं कि एक दिन अधिकांश भारतीय युवाओं का लक्ष्य किसान बनने का हो सकता है!
कृषि में युवाओं के आने से कई लाभ हैं जैसे- ज़्यादा से ज़्यादा युवा स्वरोजगार कर पाएँगे, उपभोगता अथवा डिमांड के मुताबिक कच्चा माल का उत्पादन समय पर हो सकेगा, लघु मध्यम एवं कुटीर उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा, रोजगार संबंधी मुद्दे का काफी हद तक हल हो जाएगा, गाँवों का सतत और टिकाऊ विकास होगा और साक्षर किसान होने के नाते जमीन की उर्वरता बनी रहेगी। कृषि कार्य में समय का काफी महत्व है, सही समय पर और सही तरीके से खेतों की जुताई, फसलों की बुआई, रोपाई, निराई, सिंचाई और कटाई न हो तो सही लाभ किसानों को नहीं मिल पाता है। युवा किसान इन सभी चुनौतियों का सामना ठीक से कर लेते हैं जिससे उन्हें विशेष समस्याएँ नहीं झेलनी पड़ती हैं। आजकल तो बड़े-बड़े शैक्षणिक संस्थानों जैसे- IIT, IIM और सेंट्रल यूनिवर्सिटी से पढ़े-लिखे युवा कृषि में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
क़ायदे से पढ़ा भारतीय युवा फूड प्रोसेसिंग, वेल्यू एडिशन, टेक्नोलॉजी और मार्केंटिंग को भलीभांति जानते हैं। गाँव में ही प्रोसेसिंग हो, गाँव में ही पैकेजिंग हो और वहीं से सीधे बाजार तक सामान पहुँचे तो युवाओं को खेती-किसानी से कोई परहेज न होगा। आजकल तो कई युवा किसान ऐसे हैं जिनका अंतर्राष्ट्रीय बाजार में लिंक स्थापित हो गया है और वे ठीक-ठाक लाभ कमा रहे हैं। अधिक से अधिक युवा कृषि कार्य से जुड़ें इसके लिए भागीरथ प्रयास की आवश्कता है। क्योंकि “हमारे सामने यह चुनौती है कि किसानों की अगली पीढ़ी कैसे तैयार हो। अगर युवा इसमें नहीं आएंगे तो हम किसान कहाँ से लाएंगे।” देश के नीति निर्धारणकर्ताओं के सामने चुनौती है कि ऐसी नीतियाँ बनाएँ कि गाँवों में युवा रह सके और खेती-किसानी कर सके। इससे युवाओं के साथ-साथ भारत का भी उद्धार होगा। तब बेरोजगारी का समाधान यूँ ही हो जाएगा। “कृषि में युवाओं के आने से युवा आत्मनिर्भर होंगे, युवाओं के आत्मनिर्भर होने से देश आत्मनिर्भर होगा। अंततोगत्वा राष्ट्र का कल्याण होगा।”
गौरतलब है कि भारत में कृषि को कमतर आँका गया है। जो कुछ नहीं करता वही किसान बनता है, इस प्रकार की अवधारणा को इतना बल मिला कि आज़ादी के 75 साल बाद भी भारतीय कृषि उस मुकाम को हासिल नहीं कर पाई जिनकी वह हकदार है। चूँकि अब दुनिया स्टार्टअप युग में है इसलिए कृषि क्षेत्र में भी युवा बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। भारत के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों में फसलों के बीज, फलों के बीज और जैविक उर्वकों पर शोध कार्य हो रहे हैं। कई खाद्य पदार्थों को GI टैग दिया जा रहा है। विदेश में भारत के कई कृषि उत्पाद डिमांड में रहते हैं जैसे- बासमती चावल, जर्दालू आम, शाही लीची, दार्जिलिंग चाय और दरभंगा मखाना इत्यादि। इसलिए युवा धीरे-धीरे ही सही, कृषि को रोजगार के रूप में अपना रहे हैं।
भारत के पास युवाओं की अच्छी जनसंख्या है, बड़ा बाजार है, उत्पादों को खपाने के लिए करोड़ों की संख्या में उपभोगता वर्ग हैं और विविध फसलों के लिए विभिन्न प्रकार की मिट्टियाँ और मौसम हैं। फसलों को सिंचित करने के लिए सैकड़ों कलकल करती नदियाँ हैं, सस्ता श्रम है। आवश्यकता सिर्फ ऊर्जावान शिक्षित युवा किसानों की है, जो खेत-खलिहानों में नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाए। इसलिए युवा सोच ले तो भारत के खेतों को नवाचार और कर्मठता से लहलहा सकता है। यूँ ही नहीं कहा गया है-
'मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती,
मेरे देश की धरती...'
राहुल कुमारराहुल कुमार, बिहार के खगड़िया जिले से हैं। इन्होंने भूगोल, हिंदी साहित्य और जनसंचार में एम.ए., हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा तथा बीएड किया है। इनकी दो किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। ये IIMC से पत्रकारिता सीखने के बाद लगातार लेखन कार्य कर रहे हैं। |