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क्यों छिड़ा है अशोक स्तंभ पर विवाद?

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 जुलाई को संसद भवन की छत पर अशोक स्तंभ का अनावरण किया। कांस्य धातु से निर्मित इस स्तंभ की चौड़ाई करीब 11-14 फीट और ऊँचाई 20 फीट है। इसका वजन 9500 किग्रा. है। यह अशोक स्तंभ सारनाथ के अशोक स्तंभ की प्रतिकृति है जिसका निर्माण मौर्य सम्राट अशोक के द्वारा करवाया गया था। मूल अशोक स्तंभ की भांति ही संसद भवन में स्थित अशोक स्तंभ में भी चार शेर बैठे हैं और सभी की पीठ एक-दूसरे से सटी हुई है। इन्हीं शेरों के चेहरे के हाव भाव और मुख की मुद्रा विवाद का विषय बनी हुई है।

इस विषय पर आलोचकों का मानना है कि संसद भवन की छत पर स्थापित अशोक स्तंभ के शेरों के मुँह ज्यादा खुले हुए हैं जबकि मूल अशोक स्तंभ के शेरों के मुँह कम खुले हुए हैं। इनका मानना है कि अशोक के काल में निर्मित स्तम्भों के शेर मोहक, राजसी वैभव, शांति और जिम्मेदारी के प्रतीक हैं जबकि नए संसद भवन की छत पर स्थित शेर क्रूर और आक्रामक दिख रहे हैं।

विपक्षी दलों का पक्ष

इसके अलावा विपक्षी दलों के राजनेताओं ने नए संसद भवन के इस अनावरण कार्यक्रम को प्रधानमंत्री द्वारा संपन्न किये जाने के सम्बंध में भी आपत्ति जाहिर की है। उनका कहना है कि ये 'शक्तियों के विभाजन' के सिद्धांत के विपरीत है। देश का प्रधानमंत्री कार्यपालिका का भाग है जबकि संसद विधायिका की प्रतीक है। इनका यह भी कहना है कि इस कार्यक्रम को लोकसभा के स्पीकर द्वारा संपादित किया जाना चाहिए था। संसद भवन के इस अनावरण कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा किये गए पूजा-पाठ पर भी कुछ लोगों ने सवाल उठाए हैं। इनका मानना है कि राजकीय कार्यक्रमों को धर्म से अलग रखना चाहिए।

शिल्पकार का पक्ष

नये संसद भवन स्थित इस अशोक स्तंभ के शिल्पकार सुनील देवड़े इस सम्बंध में अपनी अलग राय रखते हैं। उनका कहना है कि उन्हें इस स्तंभ को बनाते समय सरकार द्वारा किसी भी तरह की हिदायत नहीं दी गई थी। उन्हें ये प्रोजेक्ट 'टाटा प्रोजेक्ट लिमिटेड' नामक कंपनी से मिला था। सुनील देवड़े के मुताबिक मूल मूर्ति की ऊँचाई महज 3-3.5 फीट है जबकि नई मूर्ति की ऊँचाई 21.3 फीट है। ऊँचाई में वृद्धि होने की वजह से शेरों की देहबोली और उनके हाव-भाव थोड़ा-सा अलग किस्म के दिख रहे हैं और उनके मुख की चौड़ाई ज्यादा हो गयी है।

सरकार का पक्ष

सरकार ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने मूल राष्ट्रीय प्रतीक में कोई बदलाव नहीं किया है जो की 1.6 मीटर ऊंचा है। जबकि नये संसद भवन के ऊपर बनवाए गये अशोक स्तंभ का सांचा, मूल स्तंभ के मुकाबले लगभग 4 गुना अधिक है। इसलिए दोनों स्तंभों के शेर भिन्न दिखाई देते हैं।

ऐतिहासिक महत्व

अशोक स्तंभ के शेरों की देहबोली से संबंधित वर्तमान विवाद से परे अगर अशोक स्तंभ के अतीत पर नजर डालें तो ये एक समृद्ध भारतीय विरासत है। यही कारण है कि 26 जनवरी 1950 के दिन इसे राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में स्वीकारा गया था। कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन होता है और वह बौद्ध धर्म स्वीकारते हैं। बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु वह भारत देश के विभिन्न स्थानों पर अशोक स्तम्भों का निर्माण कराते हैं। मथुरा और चुनार के बलुआ पत्थरों से निर्मित ये एकाश्म स्तम्भ है। इन स्तम्भों के शीर्ष पर चारों दिशाओं में गर्जना करते हुए 4 शेर बैठे हुए हैं। इन शेरों के नीचे एक साँड़ और एक घोड़े की आकृति दिखाई पड़ती है। इन आकृतियों के बीच में एक चक्र है। इस चक्र को हमारे राष्ट्रीय ध्वज में भी शामिल किया गया है। इसके साथ ही इस स्तंभ के नीचे सत्यमेव जयते लिखा गया है जिसका अर्थ है सत्य की ही विजय होती है। इस प्रकार अशोक स्तंभ हमारी राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक है।

कानूनी दृष्टिकोण

जहाँ अशोक स्तंभ एक ऐतिहासिक विरासत है तो वही राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में ये संवैधानिक महत्त्व का भी है इसलिये अशोक स्तंभ के इस्तेमाल के संबंध में कुछ नियम-कानून भी है। इसका उपयोग संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति जैसे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री और उच्च अधिकारियों द्वारा ही किया जा सकता है। इसके अलावा किसी भी निजी व्यक्ति और संगठन द्वारा राष्ट्रीय चिन्ह यानी अशोक की लाट के उपयोग को प्रतिबंधित किया गया है। राष्ट्रीय चिन्ह के दुरुपयोग को रोकने के लिए एक कानून 'राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) अधिनियम, 2005' को भी लागू किया गया है।


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