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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

खौफ़ में क्यों जी रहीं अफ़गानी महिलाएं?

15 अगस्त 2021 से अफगानिस्तान में तालिबान के दोबारा कब्जे के बाद से सबसे ज़्यादा कोई खौफ में है तो वो हैं वहां की महिलाएं और बेटियां। बीते तीन सालों में तालिबानी सरकार ने उनकी ज़िंदगी को नर्क बना दिया है। 21वीं सदी में दुनिया की कोई महिला वो सोच भी नहीं सकती जो अफगानिस्तान की महिलाएं इस वक्त भुगत रही हैं। वो एक जिंदा लाश मात्र बनकर रह गई हैं। एक बार फिर वे 18वीं सदी में जीने को मज़बूर हो गई हैं। भले ही तालिबान दुनिया के सामने उदारवादी बनने का दिखावा कर रहा है; वह महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करने, उन्हें शिक्षा से वंचित न करने के वादे कर रहा है लेकिन उसकी असलियत किसी से छिपी नहीं है। उसकी कथनी और करनी में कितना अंतर है, उससे पूरी दुनिया वाकिफ़ है। साल 1996 से 2001 तक, जब अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन था तो महिलाओं की स्थिति कैसी थी इसका अंदाजा इन घटनाओं से लगाया जा सकता है।

बरकजई को बुखार था और उसे डॉक्टर को दिखाने जाना था, पति काम पर गए थे। वहां के नियमों के मुताबिक कोई भी महिला बिना पुरुष संरक्षक के घर से बाहर नहीं निकल सकती थी। बरकजई ने अपने दो साल की बेटी के सिर से बाल हटाकर उसे लड़कों के कपड़े पहनाए और उसे ही अपना संरक्षक बनाकर डॉक्टर को दिखाने चली गई, जब वह लौट रही थी तभी तालिबान लड़ाकों ने रास्ते में उसे रोक लिया और उसे कोड़ों से तब तक पीटा जब तक वह जमीन पर गिर नहीं गई।

कुछ साल पहले ऐसी ही एक भयावह घटना गजनी प्रांत की खतेरा के साथ हुई । एक रोज खतेरा काम से लौट रही थी तभी तालिबानी लड़ाकों ने खतेरा की आईडी चेक की और कई बार गोली मारी। इतना ही नहीं शरीर पर चाकू से कई वार किए और क्रूरता की सीमा पार करते हुए खतेरा की दोनों आंखें फोड़ दी। इसके बाद खतेरा अपना इलाज करवाने के लिये दिल्ली आ गईं और यहीं अपने परिवार के साथ रह रही हैं। पीड़ित खतेरा कहती हैं कि "वे (तालिबान) पहले महिलाओं को प्रताड़ित करते हैं और फिर सजा के नमूने के रूप में दिखाने के लिये हमारे शरीर के साथ बर्बरता करते हैं। कभी-कभी हमारे शरीर को कुत्तों को खिलाया जाता है, मैं भाग्यशाली थी कि मैं इससे बच गई।"

ये जानकर रूह कांप जाएगी कि अफगानिस्तान में पिछले तालिबानी शासन के दौरान नियमों का उल्लंघन करने पर सार्वजनिक पत्थरबाजी, सार्वजनिक जगहों पर कोड़ों से मारना, अपराधियों को फांसी देकर बीच बाजार में लटका देना, चोरी करने वालों के हाथ-पैर काट देना जैसी सजा का प्रावधान था।

इस प्रकार की यातनाएं सह चुकी और अति कठोर नियमों के दायरे में रह चुकी वहां की महिलाओं और बेटियों को आज की तालिबान सरकार से बहुत ज़्यादा उम्मीदें तो नहीं थीं लेकिन कहीं न कहीं ये आशा थी कि आधुनिक समय में जब बेटियां चांद तक पहुंच रही हैं; पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं तो उन्हें इतने अधिकार तो मिलेंगे ही जितने किसी भी मनुष्य को जीने के लिये ज़रूरी हैं। लेकिन अफसोस की बात है कि दो दशक बाद भी तालिबानियों की सोच में कोई बदलाव नहीं आया है। तभी तो 2021 में सत्ता की कुर्सी संभालते ही तालिबान ने पिछले संविधान को निलंबित कर दिया और कहा कि वह शरिया कानून के हिसाब से ही देश पर शासन करेंगे।

इसी कानून का हवाला देते हुए तालिबान ने अपने कब्जे के महज एक महीने बाद सितंबर 2021 में महिला मंत्रालय को समाप्त कर दिया। इसके बाद दिसंबर 2022 को देश के सभी महिला विश्वविद्यालय और दूसरे विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाली महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा पर रोक लगा दी। फिर जनवरी 2022 में लड़कियों और महिलाओं की खेल प्रतियोगिताओं पर रोक लगा दी गई। अब वहां की महिलाएं किसी भी खेल में हिस्सा नहीं ले सकती हैं। हद तो तब हो गई जब मार्च 2022 में लड़कियों के माध्यमिक विद्यालय भी बंद कर दिए गए। अब वहां लड़कियों को सिर्फ छठी कक्षा तक पढ़ने की ही इजाजत है। इतना ही नहीं, उनके हाई हील्स पहनने पर रोक लगा दी गई और एक आदेश जारी कर देश के तमाम ब्यूटी पार्लरों को बंद करा दिया गया। इस आदेश का असर ये हुआ कि हज़ारों महिलाएं जो इन पार्लरों के ज़रिये अपने घर की रोज़ी-रोटी चला रही थीं, वे दो जून की रोटी की मोहताज हो गईं। हालांकि उस दौरान तालिबान द्वारा ये सारे नियम-कानून अनौपचारिक रूप से बनाए गए थे यानी आधिकारिक तौर पर इन्हें कहीं प्रकाशित नहीं किया गया था लेकिन फिर भी इन नियम-कानूनों का उल्लंघन करने वाली महिलाओं के लिये सख्त सजा का प्रावधान है। चिंता की बात यह है कि अब अफगानिस्तान के सद्गुण प्रचार, दुराचार निवारण और शिकायत सुनवाई मंत्रालय ने 114 पृष्ठों की संहिता प्रकाशित की है जिसमें इनमें से कई कानूनों को औपचारिक रूप से लागू करने की बात कही गई है।

संहिताबद्ध किए गए नए नैतिकता कानून के मुताबिक-

  • सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को ऐसी पोशाक पहनना ज़रूरी है जो उनके शरीर और चेहरे को पूरी तरह से ढकती है।
  • महिलाएं घर से बाहर अकेले नहीं जा सकती हैं उनके साथ घर का कोई पुरुष जैसे- बेटा, पिता या शौहर का होना ज़रूरी है।
  • उन महिलाओं और पुरुषों के एक साथ मिलने पर प्रतिबंध जो रिश्तेदार नहीं हैं।
  • महिलाओं और पुरुषों को एक-दूसरे को देखने पर भी रोक अगर वे रक्त या विवाह से संबंधित नहीं हैं।
  • महिलाओं की फोटो खींचना या विज्ञापन में महिलाओं को दिखाने की मनाही।
  • सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के बोलने पर प्रतिबंध।
  • घर में भी महिलाओं के ज़ोर से पढ़ने व गाना गाने पर मनाही है।
  • बहुत ज़रूरी होने पर ही महिलाएं घर से बाहर निकल सकती हैं।
  • कार में महिला और पुरुष के अगल-बगल बैठने पर पाबंदी है।
  • महिलाओं द्वारा पहने गए कपड़े कसे नहीं होने चाहिए।

साथ ही, पुरुषों पर भी कुछ पाबंदियां लगाई गई हैं जैसे-

  • पुरुषों को शरीयत के हिसाब से हेयर स्टाइल रखना होगा।
  • पुरुषों को घुटनों से ऊपर शार्ट्स पहनने व टाई पहनने पर प्रतिबंध।
  • उन्हें दाढ़ी बढ़ानी होगी वह इसे काट या बारीकी से ट्रिम नहीं कर सकते।
  • पुरुषों को नमाज और धार्मिक उपवास रखना अनिवार्य है।

इतना ही नहीं, नए कानून में कुछ अन्य प्रतिबंध इस प्रकार हैं-

  • जीवित प्राणियों की तस्वीरें बनाना या उन्हें प्रकाशित करने पर भी प्रतिबंध है। ऐसे में किसी पक्षी, जानवर या परिवार के सदस्य की तस्वीर बनाने पर पाबंदी है।
  • जीवित प्राणियों की मूर्तियां खरीदने और बेचने पर भी रोक है।
  • कानून के मुताबिक, मॉरलिटी पुलिस रेडियो और टेप रिकॉर्डर का गलत इस्तेमाल करने से भी रोकेगी।
  • किसी जीवित प्राणी को लेकर बनाई गई फिल्म देखने पर भी पाबंदी।
  • संगीत बजाने पर भी रोक।
  • मीडिया को भी शरिया कानूनों का पालन करने का आदेश।

इस प्रकार इन कानूनों की सूची बहुत लंबी है। संहिताबद्ध किए गए ये सभी कानून महिलाओं व बेटियों के साथ LGBTQ समुदाय के लोगों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के शोषण और दमन को बढ़ावा देते हैं। जिसका परिणाम यह होगा कि समाज स्तर पर अब तक जो भी प्रगति हासिल हुई देश उसमें और भी पिछड़ जाएगा।

मॉरलिटी पुलिस कराएगी इन कानूनों का पालन

इन कानूनों को जानने के बाद हममें से कई लोग यह सोच रहे होंगे कि कोई भी महिला या पुरुष अगर इन कानूनों का उल्लंघन कर ही देगा तो कौन उन्हें देखने आ रहा है? तो आपको बता दें कि तालिबान शासकों ने उसका भी इंतजाम कर रखा है। इसके लिये उन्होंने मॉरलिटी पुलिस (धार्मिक पुलिस) बना रखी है। यानी इन कानूनों को लागू कराने की ज़िम्मेदारी मॉरलिटी पुलिस की ही है। ये पुलिस देखेगी की नए कानून का पालन सभी जगह हो रहा है या नहीं। और जो भी कानून का उल्लंघन करता हुआ पाया जाएगा उसे दंडित किया जाएगा। यही नहीं, अब मॉरलिटी पुलिस की शक्तियां भी पहले से बढ़ा दी गई हैं। उन्हें मनमाने ढंग से व्यक्तियों को हिरासत में लेने और दंडित करने का व्यापक अधिकार मिल गया है। साथ ही, आम नागरिकों को भी ये अधिकार दिया गया है कि अगर वे अपने आस-पास या किसी को भी इन कानूनों का उल्लंघन करते हुए देखें तो इसकी रिपोर्ट कर सकते हैं। और उसके बाद अधिकारियों द्वारा उस पर कार्रवाई की जाएगी।

कानूनों का उल्लंघन करने पर मिलेगी ये सजा

तालिबान सरकार के न्याय मंत्रालय के मुताबिक, इन कानूनों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों को दंड में सलाह, दैवीय सजा की चेतावनी, मौखिक धमकी, संपत्ति की जब्ती, सार्वजनिक जेल में एक घंटे से तीन दिन की हिरासत और उचित समझी जाने वाली कोई भी अन्य सजा शामिल है। अगर इनसे भी आरोपी नहीं सुधरता तो उसे अदालत में ले जाया जाएगा।

संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक प्रतिक्रियाएं

तालिबान सरकार द्वारा बनाए गए इन कानूनों की देश ही नहीं दुनिया में भी आलोचना की जा रही है। ऐसे में ये जानना बेहद ज़रूरी है कि विश्व भर में मानवाधिकारों के संवर्धन और संरक्षण को मजबूती प्रदान करने के लिये उत्तरदायी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की प्रतिक्रिया क्या है? तो बता दें कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की मुख्य प्रवक्ता रवीना शमदासानी ने कहा कि ‘यह कानून महिलाओं को प्रभावी रूप से ‘’चेहराविहीन, आवाजविहीन छाया (Faceless, Voiceless Shadows)’’ बना देता है।’

वहीं ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक, ‘इनमें से कई नियम पहले से ही मौजूद थे लेकिन अब उन्हें औपचारिक रूप दिया जा रहा है जो तालिबान शासन के तहत दमन में वृद्धि को दर्शाता है।’

हालांकि, तालिबानियों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि दुनिया उनके बारे में क्या कहती है; कौन उनके खिलाफ है और कौन उनके समर्थन में है। इसके प्रत्यक्ष उदाहरण के तौर पर कुछ माह पहले तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुंदजादा द्वारा जारी किए गए उस संदेश को लिया जा सकता है जिसमें उन्होंने साफ तौर पर ऐलान किया था कि अफगानिस्तान में महिलाओं को व्यभिचार के लिये सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे जाएंगे। इतना ही नहीं, पत्थर मारकर उस स्त्री की हत्या कर दी जाएगी। उन्होंने ये भी कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा समर्थित महिलाओं के अधिकार तालिबान के इस्लामिक शरिया कानून के विरोधाभासी हैं। महिलाओं के अधिकार शरिया और हमारी राय के खिलाफ हैं।

जबकि इस्लामी धार्मिक नेताओं के मुताबिक, शरिया कानून में पुरुषों की तरह महिलाओं को भी अधिकार हैं। महिलाओं को अपनी इच्छा के अनुसार जितना चाहें उतना पढ़ने और बाहर निकलकर काम करने व अपना करियर बनाने का अधिकार है। यही नहीं, शरिया में महिलाओं को पिता की संपत्ति में अधिकार प्राप्‍त है। महिलाओं को शरीयत में सजने-संवरने की भी पूरी आजादी है। वे कुछ भी शौक-शृंगार कर सकती हैं। बस कुछ भी करने से पहले महिलाओं को ये देखना होगा कि उनकी गरिमा कितनी सुरक्षित है।

साफ जाहिर है कि तालिबान महिलाओं के खिलाफ धर्म को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। वह अपने हिसाब से शरिया कानूनों का मेनिपुलेशन करके बंदिशे लगा रहा है। उसके लिये अपने देश की आधी आबादी को घर की चार दीवारों पर कैद करना; उन्हें भूखे मारना; उन्हें जानवरों से भी बदतर जिंदगी जीने पर मजबूर करना पाप नहीं है, लेकिन किसी महिला का पुरुष डॉक्टर से इलाज करवाना पाप है, भले ही उसकी ज़िंदगी दांव पर लगी हो। तालिबान सरकार को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि अगर महिलाओं को पढ़ाई करने की अनुमति नहीं दी जाएगी, तो डॉक्टरों, दाइयों और नर्सों की अगली पीढ़ी कहां से आएगी? वैसे भी अफगानिस्तान में मातृ मृत्यु दर दुनिया में सबसे ज़्यादा है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, हर दो घंटे में एक अफगान महिला गर्भावस्था के दौरान या बच्चे को जन्म देते समय मर जाती है। जिनके कारणों में कम उम्र, विटामिन की कमी और गर्भावस्था के दौरान उचित चिकित्सकीय देखभाल का न मिलना है। इसके अलावा, जो महिलाएं विधवा हैं या जिनके घर में कोई पुरुष नहीं है वे अपनी रोजी-रोटी के लिये कहां जाएंगी? सड़कों पर भीख मांगने वाले अफ़गानों की बढ़ती संख्या इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि देश में जीविका का संकट कितना गहरा रहा है।

फिलहाल, तालिबान सरकार से इन कानूनों में संशोधन करने की भी कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही है क्योंकि तमाम आलोचनाओं के बाद भी उन्होंने इन कानूनों को उचित ठहराया है और कहा है कि उसके तीन साल के शासन के तहत महिलाओं के जीवन में सुधार हुआ है और महिलाओं पर ये प्रतिबंध उनकी सुरक्षा के लिये ही हैं।

  शालिनी बाजपेयी  

(शालिनी बाजपेयी यूपी के रायबरेली जिले से हैं। इन्होंने आईआईएमसी, नई दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा करने के बाद जनसंचार एवं पत्रकारिता में एम.ए. किया। वर्तमान में ये हिंदी साहित्य की पढ़ाई के साथ-साथ लेखन का कार्य कर रही हैं।)

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