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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

क्या होगी भविष्य की ऊर्जा

पृथ्वी पर मौजूद जीवाश्म ईधन का भंडार अक्षय नहीं है। इसे भी खत्म होना है। अनुमान है कि वर्ष 2100 तक पृथ्वी पर प्राकृतिक ऊर्जा के स्रोत खत्म होने की कगार पर होंगे। पेट्रोल, कोयला, पेट्रोलियम पदार्थ, गैस के स्रोत पूरी तरह से खंगाले जा चुके होंगे। कोयले का इस्तेमाल पर्यावरण कारणों से अगले एक दो दशक में ही बंद करना होगा। तब पृथ्वीवासी क्या करेंगे। क्या होंगे हमारे भविष्य के ऊर्जा के स्रोत, जो पर्यावरण के अनुकूल भी हों और हमारी ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकें।

फिलहाल दुनिया में 14 ट्रिलियन वाट पॉवर का इस्तेमाल किया जा रहा है। वाशिंगटन डीसी के एनर्जी इनफारमेशन एडमिनिस्ट्रेशन का अध्ययन इंटरनेशनल एनर्जी आउटलुक 2011 कहता है कि वर्ष 2040 में वर्ष 2010 के मुकाबले बिजली की मांग में 80 फीसदी बढोतरी होगी। वर्ष 2030 तक ग्लोबल पावर जेनरेशन दोगुना होकर 35 ट्रिलियन वाट तक पहुंचेगा। कोयले का खपत हर हाल में घटाना ही होगा, क्योंकि ये ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करता है। ज्यादातर देश जो कोयला आधारित ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहे हैं, वो सभी इसका इस्तेमाल वर्ष 2020 से काफी हद तक घटाने लगेंगे। ऐसे में जबकि भविष्य में ऊर्जा का इस्तेमाल ज्यादा ही होना है, तो ये जानना जरूरी है कि वैज्ञानिक अब आने वाले सालों में किस वैकल्पिक ऊर्जा की ओर जाएंगे। क्या होगी हमारे उन साधनों की तस्वीर, जो ऊर्जा से संचालित होते हैं। अभी दुनियाभर में बिजली उत्पादन के तीन मुख्य स्रोत कोयला, नेचुरल गैस और नाभकीय हैं।  

अनुमान है कि वर्ष 2035-40 में ऊर्जा मांग की 50 फीसदी आपूर्ति पॉवर उत्पादन से ही होगी। लेकिन उसके बाद का काम नवीकरणीय ऊर्जा यानि हवा, सूर्य, तरंगों और बॉयोमास आदि से होगा। हालांकि मौजूदा दौर में इन संसाधनों का दोहन नाममात्र है। लेकिन इसमें तेजी से बढोतरी होने लगेगी। सौर ऊर्जा का महत्व बहुत बढ़ जायेगा। चुंबकीय लहरें एक खास ऊर्जा के तौर पर काम करेगी। अभी दुनिया में किस ऊर्जा का कितना इस्तेमाल होता है, वो इस तरह है- आयल 33 फीसदी, कोयला25 फीसदी, गैस 20 फीसदी, नाभिकीय 07 फीसदी, बॉयोमॉस 15 फीसदी, सोलर 05 फीसदी।  

आज से कोई 60 साल पहले अमेरिका में शैल आयल पेट्रोलियम में काम करने वाले इंजीनियर किंग हबर्ट का आंकलन था कि अगले 150 सालों में ऊर्जा के सभी प्राकृतिक संसाधन खत्म हो चुके होंगेे। उस समय उनकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। हालांकि तब उन्होंने अपनी पूरी अवधारणा को आंकड़ों के आधार पर साबित भी किया था। वाकई कितना मुश्किल और साहसिक रहा होगा 1956 में ये दावा करना कि पृथ्वी एक दिन कोयला, पेट्रोल, गैस आदि दूसरे जीवाश्म आधारित ऊर्जा स्रोतों से खाली हो जायेगी। 

अगर हम मौजूदा सदी को समय काल में बांटे तो ये देखना बेहतर होगा कि मौजूदा समय वर्ष 2030 तक और फिर 2030 से 2050 तक और फिर इसके आगे ऊर्जा के बदलते विकल्प और तकनीक किस तरह की होगी। 1900 में दो दोस्तों थामस अल्वा एडीसन और हेनरी फोर्ड के बीच शर्त लगी कि दुनियाभर में कौन सी ऊर्जा लंबे समय तक चलेगी। फोर्ड का ख्याल था कि कोयले का स्थान तेल ले लेगा। स्टीम इंजन खत्म हो जाएंगे। थामस एडीसन ने बिजली से चलने वाली कारों पर शर्त लगाई थी। जिस तरह पिछले कुछ दशकों में तेल का इस्तेमाल बढ़ा, उससे एकबारगी फोर्ड ही जीतते हुए लगे लेकिन समय की गति के साथ ऐसा लग रहा है कि अब अगर एडीसन सही साबित हों तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर तेजी से बढ़ रहा है। पिछले एक दशकों में पवन और सोलर ऊर्जा ने तेजी से जगह बनाई है। नई तकनीक के चलते सोलर पावर के उत्पादन की लागत भी कोयले की तुलना में घटने लगी है। 10-15 सालों में तस्वीर और बदल जाएगी। वैसा ही हाल विंड एनर्जी यानि हवा से उत्पादित ऊर्जा का है। वर्ष 2000 में जहां हवा से 17 बिलियन वाट ऊर्जा बनाई जाती थी, वही 2008 में 121 बिलियन वाट बिजली बनाई जाने लगी। विंड पावर एक बड़ी भूमिका में आ रही है। एनर्जी मार्केट में ये तेजी से उभरता हुआ सेक्टर भी है। एक विंड पावर जेनरेटर पांच मेगावाट पावर का उत्पादन कर सकता है, जो एक छोटे गांव के लिए काफी है। विंड टरबाइन ठीक उसी तरह बिजली जेनरेट करता है जिस तरह हाइड्रोलिक बांध में बिजली बनाई जाती है। सौ विंड मिल्स का एक बड़ा विंड फार्म 500 मेगावाट या इसके ज्यादा बिजली का उत्पादन कर सकता है, इसतरह देखें तो ये 500 से 1000 मेगावाट कोल आधारित या न्यूक्लियर प्लांट की क्षमता के आसपास होता है। माना जा रहा है कि चीन इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। चार साल पहले चीन अकेले 127 बिलियन वाट विंड एनर्जी का उत्पादन करने लगा था।

भविष्य की ऊर्जा की बात करें तो बेशक सोलर एनर्जी पर आंख बंद करके मुहर लगाई जा सकती है। पिछले एक दशक में पूरी दुनिया में अगर एनर्जी के सेक्टर में सबसे ज्यादा काम किसी क्षेत्र में हुआ तो ये सोलर एनर्जी का क्षेत्र था। खुद भारत में अब ये तेजी से बहुत तेजी से फैल रही है। कुछ साल पहले सोलर एनर्जी का उत्पादन दूसरी तकनीक से उत्पादित होने वाली बिजली से महंगा पड़ता था लेकिन इसकी क्षमता, तकनीक और लागत तीनों में काफी अंतर आ चुका है। खुद भारत में वर्ष 202२ तक सोलर ऊर्जा के लगाए जा रहे प्रोजेक्ट्स के जरिए एक लाख मेगावाट बिजली उत्पादन  का लक्ष्य है। देश में कई जगहों पर सोलर पार्क से बिजली का बडे़ पैमाने पर उत्पादन भी होने लगा है। अनुमान है कि वर्ष 2040 तक विश्व की कुल ऊर्जा खपत का पांच प्रतिशत भाग अकेले सौर ऊर्जा पूरा करेगी। 2020 तक सोलर थर्मल पावर उद्योग का सालाना कारोबार 7.6 अरब डॉलर का होगा। साथ ही तकनीक के ऐसे नये युग की शुरुआत होगी, जिसमें पर्यावरण का हित भी निहित होगा।

सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। धरती पर जहां सूर्य की किरणें अधिक पड़ती हैं, वह प्रकृति का बड़ा वरदान है। दुनिया में बिजली की सालाना खपत की 10,000 गुना अधिक बिजली सूर्य की किरणों से पैदा की जा सकती है। यूरोपियन सोलर थर्मल पावर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन की संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि सन् 2020 तक सूर्य पट्टिका में 10 करोड़ से अधिक लोगों को सोलर थर्मल पावर से बिजली आपूर्ति की जा सकती है। एक अनुमान के अनुसार सन् 2020 तक सौर ऊर्जा के उपयोग से 15 करोड़ 40 लाख टन कार्बन डाई ऑक्साइड को वायुमंडल में बनने से रोका जा सकता है। सौर ऊर्जा पृथ्वी की बदलती जलवायु को ठीक करने में सहायक हो सकती है। वैसे नवीकरणीय ऊर्जास्रोतों के बाद भी वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्ष 2050 तक नाभिकीय ऊर्जा का फैलाव ही ज्यादा होगा। 

जहां तक यातायात साधनों में ऊर्जा का सवाल है तो भविष्य में हाईब्रिड कारों का इस्तेमाल होगा, जो आमतौर पर बिजली और गैस आधारित होंगी। हाइड्रोजन ईंधन पर चलने वाली कारें भी विकसित की जा रही हैं। होंडा मोटर्स से लेकर निशान तक ऐसी कारों को विकसित करने में लगे हैं। कुछ कारें सडक़ों पर भी आ चुकी हैं, उम्मीद है कि समय के साथ इनका प्रचलन भी बढ़ेगा साथ ही इनकी मौजूदा कमियों को दूर किया जा सकेगा। हाईब्रिड कारों में एक तकनीक फ्यूल सेल कारों का होगा, जो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के मिश्रण से चलेंगी, इनसे कोई धुंआ या पर्यावरण के लिए हानिकारक अवशिष्ट नहीं निकलेंगे। नासा अपने अंतरिक्ष जाने वाले राकेटों में इसी तरह के उपकरणों का इस्तेमाल करता है। हालांकि हाइड्रोजन फ्यूल काफी विस्फोटक और संवेदनशील है लेकिन वैज्ञानिकों का दावा है कि इस जोखिम को भविष्य में और कम किया जा सकेगा। नाटकीय बदलाव वर्ष 2050 के बाद देखा जाने लगेगा। 

आयेगा चुंबकीय ऊर्जा का दौर 

वर्ष 2070२०७० के आसपास पृथ्वी पर ऊर्जा के अन्य वैकल्पिक स्रोतों की ओर देखा जाने लगेगा। आने वाला दौर चुंबकीय ऊर्जा का रहेगा। हजारों मील की यात्रा बिना किसी ईंधन के होगी। ट्रेनें, कार और लोग भी चुंबकीय तरंगों में तैरेंगे। सुपर कंडक्टर टैक्नॉलाजी नई सदी की प्रमुख ऊर्जा तकनीक होगी। सुपर कंडक्टिंग तारों से कोई एनर्जी क्षय नहीं होगा। इलैक्ट्रान बिना तारों के गति करेंगे। सुपर कंडक्टर्स में गजब की चमत्कारिक खासियतें होंगी। लेकिन उनके साथ एक ही दिक्कत होगी कि इन्हीं जीरो डिग्री तापमान तक हमेशा ठंडा रखना होगा, ये काम द्रवित हाइड्रोजन के जरिए होगा, जो काफी महंगा हो सकता है। 

हालांकि वैज्ञानिक सुपर कंडक्टर्स की ऐसी नई श्रेणी का पता लगाने में लगे हुए हैं, जो ज्यादा सुविधाजनक और सस्ती हो, जिन्हें निचले तापमान तक ठंडा करने की जरूरत नहीं होगी। हाल की रिसर्च ये बताती हैं कि सेरेमिक को भविष्य में सुपर कंडक्टर्स के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। सुपर कंडक्टर्स आने वाले समय में सबकुछ बदल देंगे। इनसे कोई प्रदूषण नहीं होगा और न ही ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या को ये और बढाएंगे। 

जर्मनी, जापान और चीन इस तकनीक में आगे हैं। मैंगलेव ट्रेनें चुबंकीय तरंगों पर तैरते हुए तेज रफ्तार में दूरी तय करती हैं और उनके ये चुंबकीय तरंगे सुपर कंडक्टर्स के जरिए पैदा की जाती है। शुरुआत में मैंगलेव ट्रेनों की गति धीमी थी लेकिन अब तो उनकी रफ्तार इतनी ज्यादा हो चुकी है कि वो वल्र्ड रेकार्ड भी तोड़ रही हैं। अब इनकी अधिकतम गति 361 मील प्रति घंटा तक है। इनसे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम होगा।

तो फिर अंतरिक्ष में तैरेंगे बिजलीघर और रेडिएशन से बनेगी बिजली!  

चूंकि धरती पर मौजूद वो प्राकृतिक संसाधन खत्म हो चुके होंगे, जिनसे अभी ऊर्जा उत्पादन करने का काम करते हैं लिहाजा इसके लिए हमें सौर ऊर्जा और अंतरिक्ष से मिलने वाली ऊर्जा पर भी निर्भर रहना होगा। तब अंतरिक्ष में घूमते हुए तब कृत्रिम उपग्रह बिजली घर का भी काम करेंगे। बड़ी संख्या में सेटेलाइट को सूर्य के विकिरण को सोखकर उन्हें बिजली में बदलने के लिए भेजा जायेगा। हर सेटेलाइट पांच से दस गीगावाट पावर का उत्पादन करने में सक्षम होगा, जो कोल आधारित परंपरागत प्लांट से ज्यादा होगा, ये बिजली सस्ती होगी। लेकिन इन सेटेलाइट का आकार मौजूदा सेटेलाइट की तुलना में खासा बड़ा होगा। इन्हें अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने करने के लिए या तो कई राकेटों की जरूरत होगी या फिर इनके टुकड़े अंतरिक्ष में ले जाकर उन्हें वहां जोड़ने का काम किया जायेगा। अमेरिका इसकी शुरुआत करने  वाली है, वो ऐसी सेटेलाइट अंतरिक्ष में भेजने वाले हैं, जिससे कम से कम 100 मेगावाट बिजली तैयार की जा सके। वैसे हाल ही में ये खबर भी आई है कि चीन और रूस मिलकर चांद पर बिजली घर बनाने की तैयारी कर रहे हैं. 

जापान भी स्पेस में पावर सेटेलाइट स्टेशन की संभावना देख रहा है। मित्सुबिसी इलैक्ट्रिक और कुछ दूसरी कंपनियां इस दिशा में काम कर रही हैं। जापान का अंतरिक्ष में तैनात होने वाले ये बिजलीघर डेढ मील में फैला होगा और दावा है कि ये एक बिलियन वाट पावर का उत्पादन करेगा। एक बात जो सबसे अहम होगी वो ये होगी नैनो टैक्नॉलाजी, यानि हम तकनीक के माइक्रो स्तर तक पहुंच सकेंगे।

  संजय श्रीवास्तव  

(संजय श्रीवास्तव सीनियर जर्नलिस्ट हैं। इन्हें प्रिंट, टी.वी. और डिजिटल पत्रकारिता का 30 सालों से ज़्यादा का अनुभव है। ये कुल 4 किताबों का लेखन कर चुके हैं।)

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