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वेबर का नौकरशाही सिद्धांत

इस लेख में हम मैक्स वेबर के नौकरशाही सिद्धांतों के बारे में जानेंगे।

नौकरशाही किसी भी संगठन का एक ज़रूरी हिस्सा है। प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह छोटा हो या बड़ा किसी न किसी रूप में नौकरशाही संरचना से जुड़ा हुआ है। बीते कई सालों से नौकरशाही की कड़ी आलोचना हो रही है। कई व्यक्ति इसे नकारात्मक संदर्भ में देखते हैं। स्पष्ट कमियों और उजागर बुराइयों के बावजूद कोई भी सरकारी, सार्वजनिक या निजी संगठन नौकरशाही ढाँचे के बिना नहीं चल पाया है।

कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ में नौकरशाही के बारे में विस्तार से बताया गया है, लेकिन आज हम जिस रूप में नौकरशाही को देखते हैं उसका विकास औद्योगीकरण के साथ-साथ हुआ है। प्राचीन मिस्र और रोम में भी नौकरशाही की मौजूदगी के प्रमाण मिलते हैं, लेकिन यह प्राचीन नौकरशाही पैतृक प्रशासन पर आधारित थी, जहाँ शासक के निजी विचार व भावनाओं पर शासन होता था। किंतु आज की नौकरशाही पूरी तरह से एक अवैयक्तिक व्यवस्था है। मैक्स वेबर ने आधुनिक नौकरशाही को अपने अध्ययन का विषय बनाया। नौकरशाही के संबंध में मैक्स वेबर की धारणाओं को समाजशास्त्र चिंतन के इतिहास में एक शास्त्रीय उपलब्धि के तौर पर देखा जाता है इसलिये नौकरशाही को बेहतर तरीके से समझने के लिये वेबर के नौकरशाही संबंधी विचारों को समझना बहुत ज़रूरी है। तो आइये जानते हैं-

वेबर के नौकरशाही संबंधी विचारों को बताने से पहले हम नौकरशाही के अर्थ और उसके संबंध में विभिन्न विद्वानों के मत के बारे में जानेंगे।

नौकरशाही का अर्थ

bureaucracy

नौकरशाही शब्द का आविष्कार 1745 में फ्राँसीसी अर्थशास्त्री विन्सेट डी गोर्नी (Vincent de Gournay) ने किया था। नौकरशाही को अंग्रेज़ी में ‘ब्यूरोक्रेसी’ कहते हैं, जो लैटिन भाषा के ‘ब्यूरो’ जिसका अर्थ होता है ‘मेज’ और ग्रीक भाषा के ‘क्रेसी’ जिसका अर्थ होता है ‘शासन’ से मिलकर बना है। इस प्रकार ‘ब्यूरोक्रेसी’ का तात्पर्य ‘मेज का शासन’ या ‘मेज सरकार’ से है। नौकरशाही को कर्मचारीतंत्र, अधिकारीतंत्र या लाल फीताशाही भी कहते हैं।

यह कोई नई व्यवस्था नहीं है। वास्तव में इसका जन्म तो उसी समय हो गया था जब प्राचीन काल में विशाल साम्राज्यों की स्थापना हुई थी। विशाल साम्राज्य में प्रशासन की सभी क्षेत्रों पर पकड़ बनाए रखने के लिये अधिकारियों की औपचारिक नियुक्तियों, उनकी पदोन्नति, उनके दायित्वों और अधिकारों के स्पष्ट विभाजन आदि के निर्धारण की संगठित पद्धति का विकास हुआ, जो कि नौकरशाही का ही एक रूप था। पूँजीवाद और प्रजातंत्र के विस्तार ने आधुनिक नौकरशाही को संगठन का अनिवार्य रूप बना दिया है।

नौकरशाही के संबंध में विभिन्न विद्वानों के मत

कुछ लोग नौकरशाही को कुशल, कुछ अकुशल, कुछ लोक सेवा का पर्यायवाची तो वहीं कुछ लोग इसे अधिकारी समूह के रूप में देखते हैं। लेकिन मूल रूप से नौकरशाही कार्यों एवं व्यक्तियों का एक ऐसा व्यवस्थित संगठन है, जो सामूहिक प्रयास के जरिये वांछित लक्ष्यों या उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से प्राप्त करने की आकांक्षा रखता है।

जॉन स्टुअर्ट मिल के अनुसार, नौकरशाही का अर्थ समाज में सरकार के व्यावसायिक रूप से दक्ष प्रशासकों से है। हैरोल्ड जोसेफ लॉस्की ने बताया कि, एक सरकारी व्यवस्था में अधिकारियों का शासन ही नौकरशाही है। हर्मन फाईनर ने बताया कि, प्रशासकों या अधिकारियों द्वारा किया गया शासन ही नौकरशाही है। वहीं, मार्शल ई. डिमॉक का कहना है कि, नौकरशाही एक वृहत रूप में केवल संस्थावाद का नाम है। यह किसी संस्था के खून में मिलाया हुआ कोई बाहरी पदार्थ नहीं है। यह केवल सभी में पाई जाने वाली विशेषताओं का एक बढ़ा हुआ रूप है।

नौकरशाही के संबंध में मैक्स वेबर का मत

जर्मन समाजशास्त्री मैक्स वेबर ने नौकरशाही के आदर्श रूप का वर्णन किया है। वेबर पहले ऐसे विद्वान हैं जिन्होंने नौकरशाही के नकारात्मक पहलुओं के बजाय सकारात्मक पहलुओं पर ज़्यादा बल दिया और नौकरशाही के आदर्श मॉडल का प्रतिपादन किया। वेबर ने नौकरशाही के बारे में बताया कि, नियुक्त किये गए अधिकारियों का समूह नौकरशाही कहलाता है अर्थात् प्रत्येक वह व्यक्ति जो नियुक्त है, नौकरशाह है। साल 1920 में वेबर की किताब ‘’विर्टशॉफ्ट एंड गेसलशॉफ्ट’’ (Wirtschaft und Gesellschaft) प्रकाशित हुई, जिसमें उन्होंने सत्ता के सिद्धांत के बारे में बताया है। वेबर के अनुसार सत्ता के तीन रूप हैं और वे हैं- परंपरावादी सत्ता, चमत्कारिक सत्ता एवं कानूनी सत्ता।

परंपरावादी सत्ता

परंपरावादी सत्ता का इस्तेमाल करने वाले लोगों को आमतौर पर ‘मालिक’ कहा जाता है। उन्हें यह सत्ता ‘वंश विरासत’ की सामाजिक परंपरा के कारण हासिल होती है जिसमें उनका कोई निजी प्रयास शामिल नहीं होता है, लेकिन इस ओहदे का आनंद वे निजी रूप से ही उठाते हैं। ऐसे प्रभुत्वसंपन्न मालिकों का निर्णय उनकी व्यक्तिगत इच्छाओं पर निर्भर होता है। उन्हें इसके लिये किसी तार्किक आधार की ज़रूरत नहीं होती है। उनकी आज्ञाएँ रिवाजों की आड़ में निजी संतुष्टि का एक जरिया होती हैं। इस तरह के मालिकों के आदेश का पालन करने वाले लोगों को ‘अनुचर’ कहते हैं। ये अनुचर अपने मालिकों के आदेशों का पालन पूरी ईमानदारी व आदर भाव के साथ करते हैं। इस पुश्तैनी सत्ता में जो व्यक्ति आदेशों का पालन करते हैं, वे निजी सेवक, घरेलू कर्मचारी और मालिक के चहेते होते हैं। यही कारण है कि ये लोग अपनी तमाम गतिविधियों और व्यवहार के लिये अपनी बुद्धि के बजाय मालिक की इच्छा पर निर्भर होते हैं। मालिक की इच्छा के अनुसार इन्हें अपने तौर-तरीकों में बदलाव लाना पड़ता है। ऐसे में किसी मामले को लेकर उनकी राय बनती-बदलती रहती है। फिर भी इनकी तमाम गतिविधियों को रिवाजों और परंपरा के नाम पर वैधता हासिल होती है।

चमत्कारी सत्ता

‘चमत्कार’ शब्द ईसाई धर्म की प्राचीन शब्दावली से लिया गया है। इस व्यवस्था के तहत किसी नेता, जादूगर, पैगंबर या कुशल वक्ता के द्वारा अपनी शक्ति का प्रयोग अलौकिक दैवीय या असाधारण गुणों के बल पर किया जाता है। इसमें लोग सत्ता प्राप्त व्यक्ति की आज्ञा का पालन उसकी असाधारण क्षमताओं के चलते करते हैं, न कि वे किसी नियम या पद मर्यादा के बंधन में बंधकर करते हैं। चमत्कारिक नेता अपने शासन को चलाने के लिये जो व्यवस्था बनाता है, उसमें वह अधिकारों, पदोन्नति आदि का विभाजन अनुचरों की योग्यता व क्षमता के आधार पर नहीं करता, बल्कि उनके निजी समर्पण को देखकर करता है। और इस प्रकार सभी अनुचर पूरी तरह से अपने मालिक की इच्छा और अनिच्छा के अधीन काम करते हैं।

वैधानिक सत्ता

वेबर, नौकरशाही व्यवस्था को वैधानिक सत्ता का सबसे प्रमुख उदाहरण मानते हैं। वैधानिक सत्ता का स्रोत व्यक्ति की निजी प्रतिष्ठा में निहित नहीं होता, बल्कि उन नियमों में निहित होता है जिनके तहत वह एक विशिष्ट पद पर आसीन होता है। इस सत्ता का स्रोत स्वयं राज्य के कानून होते हैं और इनका अधिकार क्षेत्र सीमित होता है। उस अधिकार क्षेत्र से बाहर कोई भी शासक अपनी सत्ता का प्रयोग नहीं कर सकता है।

सत्ता के इन तीन प्रकारों में से वेबर कानूनी सत्ता प्रणाली को उसमें निहित तार्किकता के कारण ज़्यादा पसंद करते हैं। इतना ही नहीं, वेबर ज़ोर देकर कहते हैं कि, सिर्फ कानूनी सत्ता प्रणाली ही है, जो आधुनिक सरकारों के लिये उपयुक्त है।

तो इस प्रकार वेबर ने सत्ता के तीन प्रकारों को विस्तृत ढंग से समझाया है। वेबर यह भी मानते हैं कि, तीनों प्रकार की सत्ताएँ अलग-अलग होने के बावजूद आपस में एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं और इनकी वैधता तभी तक बनी रहती है जब तक शासित लोग इन्हें स्वीकृति प्रदान करते हैं। चमत्कारिक सत्ता की कुर्सी तब हिलती है जब करिश्माई व्यक्ति निरंकुशता की सभी हदें पार कर जाता है और परंपराओं का खुलेआम उल्लंघन करता है।

वेबर के अनुसार नौकरशाही की विशेषताएँ

वेबर ने अपने सिद्धांत में नौकरशाही की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं-

  • पदसोपान- नौकरशाही में विशिष्ट कार्य, विशेष पदों के लिये ही निर्धारित होते हैं। यहाँ कार्य, योग्यता, अधिकार व उत्तरदायित्व में एक अंतर रहता है। प्रत्येक अधीनस्थ कार्यालय अपने ऊपर के कार्यालय के नियंत्रण व देखरेख में होता है।
  • व्यवसायिक योग्यता- सभी कर्मचारियों को एक वस्तुनिष्ठ कसौटी के आधार पर चुना जाता है, जिसके चलते उनमें व्यवसायिक योग्यता होती है। वे अपने संबंधों, खर्चों व अन्य चीज़ों को लेकर दूसरों के साथ औपचारिक तरीके से व्यवहार करते हैं। साथ ही, उनकी आमदनी में स्थायित्व होता है और उन्हें उन्नति के पर्याप्त अवसर उपलब्ध होते हैं।
  • नियम व प्रक्रिया- किसी भी संगठन में कर्मचारियों के कर्तव्य व अधिकार तथा काम करने की पद्धति स्पष्ट रूप से कुछ निश्चित नियमों द्वारा तय व प्रशासित होती है, जो लिखित, तार्किक व अवैयक्तिक होते हैं। ये भी कहा जाता है कि, इन नियमों का पालन स्वेच्छाचारिता को रोकता है और कार्यकुशलता को बढ़ावा देता है।
  • विशेषीकरण- किसी भी संगठन में प्रत्येक कर्मचारी की भूमिका उसके काम के अनुसार तय कर दी जाती है और निर्धारित किये गए उन्हीं कामों की सीमा के भीतर उससे अपेक्षाएँ की जाती हैं।
  • संगठनात्मक संसाधन- नौकरशाह, संगठन के संसाधनों को निजी तौर पर उपयोग नहीं कर सकते हैं। जैसे- आधिकारिक कर व निजी आमदनी पूरी तरह से अलग होती है।
  • लिखित दस्तावेज़- लिखित दस्तावेज़ वेबेरियन नौकरशाही के केंद्र में हैं। सभी प्रशासनिक कार्य, निर्णय और नियम लिखित रूप में रिकॉर्ड किये जाते हैं। ये दस्तावेज प्रशासन को लोगों के प्रति उत्तरदायी बनाते हैं।
  • एकतंत्री प्रारूप- इसका अर्थ यह है कि, नौकरशाही के कुछ कार्यों को अन्य संगठनों द्वारा नहीं किया जा सकता है। कुछ कार्यों पर उनका एकाधिकार होता है और केवल प्राधिकृत अधिकारी ही उस कार्य को संपन्न कर सकते हैं।

नौकरशाही के सामाजिक परिणाम

वेबर ने कर्मचारीतंत्र के सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों पक्षों पर गहनता से विचार किया है। यहाँ पर हम वेबर द्वारा बताए गए दोनों पक्षों पर चर्चा करेंगे-

सकारात्मक परिणाम

मैक्स वेबर के अनुसार, नौकरशाही ने निम्नलिखित रूप से समाज के विकास में योगदान दिया है-

विश्वास बनाए रखने में

नौकरशाही अवैयक्तिक नियमों द्वारा संचालित होती है, जिसके चलते लोगों का प्रशासन पर विश्वास बना रहता है। इस प्रणाली के अंतर्गत कार्य अधिक सूक्ष्मता, तेजी, मितव्ययिता और बिना किसी विवाद के संपन्न होता है।

प्रजातंत्र के लिये अनिवार्य

मैक्स वेबर कहते हैं कि, जैसे-जैसे प्रजातंत्र का विस्तार होता है वैसे-वैसे नौकरशाही पर आधारित प्रशासन व्यवस्था की ज़रूरत भी बढ़ती जाती है। वेबर की इन भावनाओं के लिये जूलियन फ्रायड ने लिखा है, ‘’यह सामान्यत: स्वीकार कर लिया गया है कि प्रजातंत्रीकरण और नौकरशाही साथ-साथ चलते हैं।’’

शिक्षा के स्वरूप में बदलाव

नौकरशाही की ज़रूरतों ने शिक्षा के स्वरूप को भी प्रभावित किया है। विभिन्न क्षेत्रों में कर्मचारियों की माँगों को देखते हुए स्कूलों, कॉलेज़ों और विश्वविद्यालयों में शिक्षण के पाठ्यक्रम व प्रशिक्षण के तरीके बदले जा रहे हैं। आज के समय में डिप्लोमा, सर्टिफिकेट्स, डिग्री आदि का महत्त्व बढ़ गया है।

सामाजिक अंतरों को कम करना

नौकरशाही एक ऐसी संगठन प्रणाली है जो आर्थिक और सामाजिक भेदों को दूर करती है और सामाजिक समानता लाने का प्रयास करती है। वस्तुनिष्ठ शैक्षिक प्रमाणपत्रों व औपचारिक परीक्षाओं के आधार पर विभिन्न पदों पर नियुक्तियाँ की जाती हैं। इन नियुक्तियों को परिवार, वंश या आर्थिक संपन्नता प्रभावित नहीं करती है। इस प्रकार नौकरशाही सामाजिक अंतरों को पाटने का भी कार्य करती है।

नौकरशाही के नकारात्मक परिणाम

मैक्स वेबर द्वारा बताए गए नौकरशाही के नकारात्मक परिणाम निम्नलिखित हैं-

रचनात्मक निजी पहल में बाधक

नौकरशाही में कर्मचारी औपचारिक नियमों व अपने पद के दायित्वों से बंधे होते हैं जिससे उनकी निजी रचनात्मकता, सूझ-बूझ एवं पहल करने के साहस जैसी शक्तियों का गला घूंट जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि, व्यक्ति केवल एक कर्मचारी के रूप में अपनी नौकरी को सुरक्षित रखने के बारे में सोचने लगता है और वह एक नीरस और उबाऊ दिनचर्या में फंसा रहता है।

आत्मविहीन विशेषज्ञों का उदय

नियमों एवं विधियों की अवैयक्तिकता ऐसे विशेषज्ञों को जन्म दे सकती है, जो अपने सीमित कार्यक्षेत्र में सिमटे समग्र संगठन के लक्ष्यों को भूल जाएँ। यह भी संभावना हो सकती है कि नियमावली व प्रक्रिया ही उनके लिये साध्य बन जाए। इस संबंध में वेबर का कहना है कि, दफ्तरी आचरण की अवैयक्तिकता की प्रवृत्ति ‘आत्मविहीन विशेषज्ञों’ को जन्म देने की होती है।

शांति, व्यवस्था और सुरक्षा के आदी

नौकरशाही में अधिकारी जनता से दूर बड़े-बड़े भवनों में काम करते हैं जिससे वे शांति, व्यवस्था और सुरक्षा के आदी हो जाते हैं। इसलिये वेबर का कहना है कि, हम जान-बूझ कर ऐसे व्यक्ति बन जाते हैं जिसे व्यवस्था या शांति की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है और यदि एक क्षण के लिये भी यह व्यवस्था नष्ट हो जाए तो हम घबरा जाते हैं तथा खुद को निस्सहाय समझने लगते हैं।

परंपरागत मूल्यों का ह्रास

वेबर का मानना है कि, युक्तिकरण या तार्किकता (Rationalization) की एक प्रमुख अभिव्यक्ति नौकरशाही है, जो कि वस्तुत: अतार्किक है। तार्किकता हमें उन परंपरात्मक मूल्यों से अलग कर देती है जो मानव जीवन को अर्थ और लक्ष्य प्रदान करते हैं।

इस तरह से, हम वेबर द्वारा बताए गए नौकरशाही के नकारात्मक परिणामों से भी परिचित होते हैं। इसके आधार पर हम यह भी कह सकते हैं कि, वेबर नौकरशाही के अन्धपुजारी नहीं थे, जैसा कि कुछ लोग उन्हें समझने की भूल करते हैं।

निष्कर्ष

कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि, मैक्स वेबर का नाम एक तरह से नौकरशाही के पर्यायवाची के तौर पर प्रयोग किया जाता है, क्योंकि समाज विज्ञान के जिन विद्वानों ने नौकरशाही की अवधारणा को बताने का प्रयास किया है, उनमें वेबर का स्थान अद्वितीय है। हालाँकि, अनेक विद्वानों ने नौकरशाही की कड़ी आलोचना की है, किंतु इसके बावजूद न तो हम इस व्यवस्था को छोड़ पाए हैं और न ही संगठन के कार्य संपादन के लिये कोई दूसरा विकल्प ही प्रस्तुत कर पाए हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि नौकरशाही में कुछ गुण अंतर्निहित हैं।

  शालिनी बाजपेयी  

शालिनी बाजपेयी यूपी के रायबरेली जिले से हैं। इन्होंने IIMC, नई दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा करने के बाद जनसंचार एवं पत्रकारिता में एम.ए. किया। वर्तमान में ये हिंदी साहित्य की पढ़ाई के साथ साथ लेखन का कार्य कर रही हैं।

स्रोत:

MPA-012, प्रशासनिक सिद्धांत (Ignou Book For Masters Degree Programme)

BLOCK-3, नौकरशाही (Ignou Book For Bachelor's Degree Programmes)


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