'हम भारत के लोग...'
- 11 Feb, 2025
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“हम भारत के लोग...”—संविधान की प्रस्तावना का यह प्रारंभिक वाक्य लोकतंत्र की आत्मा को व्यक्त करता है। यह केवल शब्दों का समूह नहीं, बल्कि स्वतंत्र भारत की मूल भावना का परिचायक है। यह वाक्यांश देश के नागरिकों को उनके अधिकारों का बोध कराता है, साथ ही कर्त्तव्यों की भी याद दिलाता है। यह भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे में ‘जन’ की सर्वोच्चता को स्थापित करता है और यह सुनिश्चित करता है कि संप्रभुता का वास्तविक स्रोत जन या लोक ही है। संविधान निर्माण के समय यह स्पष्ट किया गया था कि भारत की शासन प्रणाली लोकतांत्रिक होगी और उसकी जड़ें नागरिकों की सहभागिता में निहित होंगी। इस प्रकार “हम भारत के लोग...” का विचार केवल विधिक दस्तावेज़ का अंग नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना का आधार भी है।
समय के साथ भारत में सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियाँ बदली हैं, लेकिन “हम भारत के लोग...” का महत्त्व यथावत बना हुआ है। आधुनिक भारत में नागरिक अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सामाजिक समता और लोकतांत्रिक आदर्शों पर जब भी संकट मँडराता है, यह वाक्यांश एक आह्वान की तरह उभरकर सामने आता है। नागरिक आंदोलनों से लेकर संवैधानिक सुधारों तक, यह भावना हर संघर्ष और रूपांतरण के केंद्र में रही है।
संविधान की प्रस्तावना: भारतीय लोकतंत्र का मूल मंत्र
भारतीय संविधान की प्रस्तावना वह आधारशिला है जो स्पष्ट करती है कि भारतीय गणराज्य किन मूल्यों और सिद्धांतों पर आधारित होगा। “हम भारत के लोग...” से आरंभ होने वाली यह प्रस्तावना लोकतंत्र के उस वृहद् दर्शन को परिभाषित करती है, जिसमें नागरिकों की संप्रभुता सर्वोपरि है। संविधान सभा की बहसों के दौरान, प्रस्तावना को केवल एक औपचारिक अनुच्छेद तक सीमित रखने के बजाय, भारतीय लोकतंत्र के मूल स्वरूप का प्रतीक बनाने पर ज़ोर दिया गया। इसमें उल्लेखित संप्रभुता, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और गणराज्य के आदर्श न केवल सरकार के संचालन के लिये दिशा-निर्देशक हैं, बल्कि नागरिकों के जीवन मूल्यों को भी परिभाषित करते हैं।
- संप्रभुता (Sovereignty): प्रस्तावना यह स्पष्ट करती है कि भारत किसी अन्य राष्ट्र या शक्ति के अधीन नहीं है। देश की नीतियाँ और निर्णय पूरी तरह से भारतीय संसद एवं जनता के नियंत्रण में हैं।
- समाजवाद (Socialism): यह सिद्धांत आर्थिक और सामाजिक समता पर बल देता है। संविधान यह सुनिश्चित करता है कि संसाधनों का वितरण ऐसा हो जिससे आर्थिक विषमताएँ कम हों और प्रत्येक नागरिक को समान अवसर प्राप्त हो।
- धर्मनिरपेक्षता (Secularism): भारतीय संविधान धर्म और राजनीति को पृथक करता है। यह सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखता है और प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण तथा प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है।
- लोकतंत्र (Democracy): भारतीय लोकतंत्र प्रतिनिधित्व पर आधारित है, जिसमें जनता को अपनी सरकार चुनने और उसके कार्यों पर निगरानी रखने का अधिकार प्राप्त है।
- गणराज्य (Republic): भारत में कोई भी पद वंशानुगत नहीं होगा। प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार प्राप्त हैं और सरकार का प्रमुख जनता द्वारा निर्वाचित होता है।
आधुनिक भारत में “हम भारत के लोग...” की प्रासंगिकता
वर्तमान समय में, जब भारत विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों से गुज़र रहा है, तब इस वाक्य की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। लोकतंत्र तभी सशक्त रहता है जब नागरिक अपने अधिकारों एवं कर्त्तव्यों को समझें, सरकार से जवाबदेही की मांग करें और समाज में समता एवं न्याय की स्थापना के लिये सतत् प्रयास करें।
- लोकतंत्र और जनता की संप्रभुता: भारत का संविधान एक प्रतिनिधिक लोकतंत्र की व्यवस्था करता है, जहाँ जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव कर शासन की बागडोर सौंपती है। लेकिन वास्तविक लोकतंत्र केवल चुनावों तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह सतत् नागरिक सहभागिता पर निर्भर करता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह देखा गया है कि जनता अधिक मुखर हो रही है—वह सरकार की नीतियों पर प्रश्न उठा रही है, न्याय की मांग कर रही है और अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिये विभिन्न मंचों का उपयोग कर रही है।
- सामाजिक समानता और न्याय की भावना: “हम भारत के लोग...” केवल राजनीतिक संप्रभुता का विचार नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की भावना को भी प्रकट करता है। संविधान ने सभी नागरिकों को समान अधिकार दिये हैं, लेकिन वास्तविक समानता अब भी एक चुनौती बनी हुई है। आधुनिक भारत में दलितों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों और हाशिये पर स्थित समुदायों के अधिकारों को लेकर कई आंदोलन हुए हैं। इन आंदोलनों ने संदेश दिया है कि नागरिक अधिकार केवल संवैधानिक घोषणा तक सीमित नहीं हो सकते, बल्कि इसे व्यवहार में लागू करना होगा।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकार: संविधान नागरिकों को विचार, अभिव्यक्ति और शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार देता है। हाल के वर्षों में विभिन्न कानूनों, मीडिया नियंत्रण और इंटरनेट सेंसरशिप ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस को जन्म दिया है। जब भी इस अधिकार पर कोई खतरा मँडराया, आम लोगों ने “हम भारत के लोग...” की भावना से प्रेरित होकर अपनी आवाज़ उठाई।
- तकनीकी युग में लोकतंत्र की नई चुनौतियाँ: डिजिटल क्रांति ने लोकतंत्र में जनता की भागीदारी को बढ़ाया है, लेकिन इसके साथ ही भ्रामक सूचना, अफवाह और घृणा फैलाने वाले अभियानों ने भी चुनौती उत्पन्न कर दी है। सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग, फेक न्यूज़ और राजनीतिक ध्रुवीकरण लोकतांत्रिक संवाद को प्रभावित कर रहे हैं। इस नई डिजिटल दुनिया में “हम भारत के लोग...” की भावना को बनाए रखना आवश्यक है ताकि नागरिक सचेत, जागरूक और ज़िम्मेदार बनें।
आधुनिक भारत में ‘हम भारत के लोग...’ द्वारा प्रेरित नागरिक आंदोलन
भारतीय लोकतंत्र की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि नागरिक अपने अधिकारों के प्रति कितने सजग हैं और कितनी सक्रियता से अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हैं। आधुनिक भारत में जब भी लोकतांत्रिक मूल्यों को चुनौती मिली है, तब जनता ने “हम भारत के लोग...” की भावना को अपना संबल बनाया और विभिन्न नागरिक आंदोलनों के माध्यम से अपने अधिकारों के लिये संघर्ष किया।
- आपातकाल (1975-77) और लोकतंत्र की पुनर्स्थापना: 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया, जिसके तहत नागरिक स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतंत्रता और राजनीतिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया। यह भारतीय लोकतंत्र की सबसे कठिन परीक्षा थी। इस कठिन दौर में “हम भारत के लोग...” की भावना ने जनता को प्रेरित किया और व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। इस आंदोलन में छात्रों, बुद्धिजीवियों, राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं और आम नागरिकों ने भाग लिया। इस घटना ने पुष्टि की कि भारतीय नागरिक अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिये तत्पर हैं।
- मंडल आयोग और सामाजिक न्याय आंदोलन (1990): वर्ष 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का निर्णय लिया, जिसके तहत पिछड़ी जातियों को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 27% आरक्षण दिया गया। इस निर्णय में भारतीय समाज को गहनता से प्रभावित करने की क्षमता थी और इसके समर्थन एवं विरोध में व्यापक आंदोलन हुए। इस आंदोलन ने परिलक्षित किया कि नागरिक आंदोलनों का प्रभाव केवल राजनीतिक नहीं होता, बल्कि वे सामाजिक संरचना को भी बदलने की क्षमता रखते हैं।
- भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन (2011) और लोकपाल कानून: वर्ष 2011 में भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हजारे के नेतृत्व में एक बड़ा जन-आंदोलन खड़ा हुआ। इस आंदोलन के प्रभाव में लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम पारित किया गया। यह आंदोलन भारतीय लोकतंत्र की उस शक्ति को प्रदर्शित करता है, जहाँ जनता की संगठित आवाज़ सरकार की नीतियों को प्रभावित कर सकती है।
- निर्भया आंदोलन (2012) और लैंगिक न्याय की मांग: 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में घटित नृशंस सामूहिक बलात्कार कांड ने देश की चेतना को झकझोर कर रख दिया। यह केवल अपराध की एक घटना भर नहीं थी, बल्कि इसने ध्यान दिलाया कि भारतीय समाज में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर अत्यंत गंभीर समस्याएँ मौजूद हैं। इस घटना ने देश में एक अभूतपूर्व आंदोलन को जन्म दिया और आपराधिक कानूनों में संशोधन के लिये बाध्य हुई।
- नागरिकता संशोधन कानून (CAA) विरोध प्रदर्शन (2019-20): वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पारित किया। इस कानून का विरोध करने वालों का मानना था कि यह भारत की धर्मनिरपेक्षता की नीति के विरुद्ध है और इससे संविधान में व्यक्त भावना का उल्लंघन होता है। इस कानून के विरुद्ध व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए।
- किसान आंदोलन (2020-21) और नीतिगत बदलाव: वर्ष 2020 में सरकार ने कृषि सुधार से जुड़े तीन नए कानून पारित किये, जिन्हें किसानों ने अपने हितों के विरुद्ध माना। इसके विरोध में हज़ारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर एकत्रित हुए और सरकार से इन कानूनों को वापस लेने की मांग की। लंबे संघर्ष के बाद अंततः सरकार ने नए कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया।
- डिजिटल युग में लोकतांत्रिक आंदोलन: वर्तमान युग डिजिटल क्रांति का युग है, जहाँ सोशल मीडिया, व्हाट्सएप ग्रुप, ऑनलाइन याचिकाएँ और डिजिटल अभियान नागरिक आंदोलनों का महत्त्वपूर्ण अंग बन गए हैं। ट्विटर ट्रेंड्स, वायरल वीडियो और डिजिटल विरोध प्रदर्शन अब लोकतंत्र में जनता की भागीदारी के नए माध्यम बन चुके हैं।
आधुनिक भारत में “हम भारत के लोग...” की भावना को सशक्त करने के उपाय
- नागरिकों में संवैधानिक जागरूकता बढ़ाना: लोकतंत्र की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि नागरिक अपने संवैधानिक अधिकारों और कर्त्तव्यों को कितना समझते हैं। इसके लिये स्कूलों, कॉलेजों और सार्वजनिक मंचों पर संविधान से संबंधित जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है।
- लोकतांत्रिक मूल्यों की शिक्षा: लोकतंत्र केवल चुनावों तक सीमित विषय नहीं है, बल्कि यह सहिष्णुता, संवाद, बहुलवाद और न्याय की भावना पर आधारित होता है। इसलिये शिक्षा प्रणाली में लोकतांत्रिक मूल्यों को व्यापक महत्त्व दिया जाना चाहिये। विद्यालयों में पाठ्यक्रम इस प्रकार हो कि विद्यार्थी केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित न रहें, बल्कि उन्हें चर्चा, वाद-विवाद और सार्वजनिक मंचों पर विचार व्यक्त करने का अवसर मिले।
- स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया का समर्थन: स्वतंत्र मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। वर्तमान समय में फेक न्यूज़, प्रोपेगेंडा और मीडिया के राजनीतिकरण ने एक गंभीर समस्या उत्पन्न की है, जिससे लोकतांत्रिक संवाद प्रभावित हो रहा है। इस चुनौती से निपटने के लिये नागरिकों को मीडिया साक्षरता (media literacy) का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये, जिससे वे सूचना को सत्यापित करना सीखें। इसके साथ ही, स्वतंत्र और शोधपरक पत्रकारिता को बढ़ावा देने के लिये ऐसे मंचों का समर्थन किया जाना चाहिये जो निष्पक्षता से जनता के मुद्दों को सामने रखते हैं।
- सामाजिक न्याय और समता की दिशा में प्रयास: “हम भारत के लोग...” की भावना तभी सशक्त होगी जब समाज में समानता होगी। भले ही संविधान ने सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान किये हैं, व्यावहारिक स्तर पर आज भी व्यापक विषमता बनी हुई है। सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के लिये सरकार और नागरिक समाज को मिलकर कार्य करना होगा।
- निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव प्रणाली को सुदृढ़ करना: यदि चुनाव प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी न हो तो लोकतंत्र की भावना कमज़ोर पड़ने लगती है। धनबल-बाहुबल के बढ़ते प्रभाव, चुनावी धाँधली और असमान प्रचार अवसरों से चुनाव प्रणाली प्रभावित होती है। इस समस्या को दूर करने के लिये चुनाव आयोग को और स्वतंत्र एवं सशक्त बनाया जाना चाहिये। इसके साथ ही, मतदाताओं को जागरूक किया जाना चाहिये ताकि वे जाति, धर्म या व्यक्तिगत लाभ के आधार पर नहीं, बल्कि देशहित में योग्य प्रत्याशी का चयन करें।
- डिजिटल युग में नागरिक भागीदारी बढ़ाना: यह डिजिटल क्रांति का युग है, जिसमें नागरिक आंदोलनों एवं जनभागीदारी के लिये सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म प्रभावशाली साधन बन चुके हैं। लेकिन इनके दुरुपयोग की संभावनाएँ भी उतनी ही अधिक हो गई हैं। इस परिदृश्य में डिजिटल साक्षरता बढ़ाना आवश्यक है ताकि नागरिक सोशल मीडिया पर उपलब्ध सूचना का विवेकपूर्ण उपयोग कर सकें। इसके साथ ही, ई-गवर्नेंस और ऑनलाइन जनभागीदारी के माध्यम से नागरिकों के सरकार से प्रत्यक्ष संवाद को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- युवा पीढ़ी को लोकतंत्र से जोड़ना: युवा पीढ़ी को लोकतंत्र में सक्रिय भूमिका निभाने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिये।
अंत में, “हम भारत के लोग...” की भावना हमें हमारे सामूहिक संकल्प, एकता और समानता की ओर प्रतिबद्ध करती है। स्वतंत्रता के बाद भारत ने एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में अनेक उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन संविधान में निहित यह भावना हमेशा मार्गदर्शक बनी रही है। वर्तमान समय में, जब सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियाँ हमारे लोकतंत्र की परीक्षा ले रही हैं, तब इस मूल भावना को और अधिक दृढ़ता से अपनाने की आवश्यकता है। आधुनिक भारत में नागरिक आंदोलनों, सामाजिक न्याय की मांग, डिजिटल लोकतंत्र और शिक्षा के माध्यम से इस भावना को पुनः सशक्त किया जा सकता है। भारत का लोकतंत्र तभी सशक्त होगा जब यह विचार महज़ एक नारे या वाक्यांश तक सीमित न रहे, बल्कि प्रत्येक नागरिक के चिंतन और कर्म का अभिन्न हिस्सा बने।