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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

अशांत मणिपुर

महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। सभी कौरव मारे जा चुके थे और युधिष्ठिर को छोड़कर सभी पाण्डव जीत के मद में चूर थे। दुःखी मन से युधिष्ठिर शर-शैय्या पर जीवित भीष्म पितामह से मिलने पहुँचे तथा अब राज-काज सम्भालने व चलाने के सन्दर्भ में अपनी चिंता व्यक्त की। भीष्म ने उनसे स्पष्ट कहा "प्रत्येक राजा का यह सर्वप्रथम कर्त्तव्य है कि अपने राज्य की हर समस्या, हर असंतोष को बिना धर्म, जाति, लिंग, वर्ण आदि का ध्यान किये तत्काल ही हल करने का प्रयास करे, उसे प्रतीक्षा-सूची में न डाले। अनुभव यही बताता है कि समस्या को टालने से धीरे-धीरे उसे सुलझाना कठिन से कठिनतर होता जाता है और कालांतर में यह राष्ट्र हेतु अत्यंत ही कष्टकारी सिद्ध होता है।"

भारतीय सेना में 40 वर्षों तक सेवा देने के उपरांत 2018 में सेवानिवृत्त हुये व वर्तमान में इम्फाल में रह रहे लेफ्टिनेंट जनरल (सेवा.) एल. निशिकांत सिंह ने पिछले दिनों जब ट्विटर पर अपने छोटे व अति सुन्दर राज्य की दुर्दशा को इस प्रकार व्यक्त किया "मैं एक सामान्य शहरी हूँ जो नौकरी के बाद रिटायर्ड व्यक्ति का जीवन बिता रहा हूँ। मणिपुर अब राज्य-विहीन हो चुका है। लोगों का जीवन व सम्पत्ति कहीं भी और कभी भी, किसी के द्वारा भी समाप्त कर दी जा रही है मानो हम लेबनान, सीरिया, या लीबिया में रह रहे हों। ऐसा लगता है कि मणिपुर को उसी के हाल पर सुलगने के लिये छोड़ दिया गया है। क्या कोई सुन रहा है?" - तो वास्तव में वह देश की सरकार को क्या यही बताने की चेष्टा नहीं कर रहे थे?

देश की सेना में इतने उच्च पद पर सेवा दे चुके व्यक्ति की अपनी जन्मभूमि के प्रति असहाय व कातर शब्दों में व्यक्त इस वेदना को समझना सहज ही है जब यह दिख रहा हो कि पिछले 2 माह से भी अधिक समय से मणिपुर जल रहा है व सांसदों तथा केन्द्रीय मंत्रियों के आवास तक उपद्रव में नष्ट किये जा चुके हैं। स्थिति यहाँ तक भयावह है कि अति उग्र जनाक्रोश को देखते हुये भारतीय सेना को एक सैन्य कार्यवाई में गिरफ्तार 12 आतंकवादियों को छोड़ना भी पड़ा।

देश के उत्तर-पूर्वी भाग के जनजातीय राज्य मणिपुर में लम्बे समय से जारी इस हिंसा और उपद्रव के मूल मे वस्तुतः 'पहचान की राजनीति (Identity politics)' है जो दुर्भाग्यवश कुछ निहित स्वार्थी तत्वों और कुछ देश-विरोधी अराजक तत्वों के साथ जुड़कर अत्यंत विद्रूप अवस्था में प्रकट हो रही है। पिछले 2 माह से अधिक समय से मणिपुर में अशांति अपने चरम पर है जो वास्तव में बहुसंख्यक हिन्दू मतानुयायी मेतेयी जनजातीय समुदाय और राज्य में अल्पसंख्यक ईसाई मतानुयायी कुकी जनजातीय समुदाय के मध्य वर्चस्व की लड़ाई की परिणति है। लेकिन क्या बात केवल इतनी सीधी सी है?

मणिपुर समस्या : -

मणिपुर की समस्या वास्तव में कई समस्याओं का एक बेहद जटिल मिश्रण है।

वैसे यदि ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो जो कुछ मणिपुर में हो रहा है, वहाँ के लिहाज से यह कोई नयी बात बिल्कुल नहीं है। पहले भी समय-समय पर विभिन्न जनजातीय समुदायों के बीच छोटी-छोटी बातों पर तलवारें खिंचती रहीं हैं। इसके अलावा एक ऐसा वर्ग भी हमेशा से रहा है जो सदैव से ही स्वयं को पीड़ित समझता आया है तथा भारत सरकार से असंतुष्ट होकर अलगाववाद के रास्ते पर चलने का समर्थक है। साथ ही राज्य की विशेष भौगोलिक स्थिति की भी इसमें विशिष्ट भूमिका हो जाती है। इन सबके अलावा कुछ मौकापरस्त अराजक तत्वों की उपस्थिति भी यहाँ बनी रहती है। इन बातों को कुछ इस प्रकार से समझा जा सकता है –

1. उथल-पुथल भरा इतिहास व निहित स्वार्थी तत्वों की मौजूदगी – मणिपुर आरम्भ से ही एक स्वतंत्र राज्य रहा था। 1824-26 में एक संक्षिप्त ब्रिटिश-बर्मा युद्ध के पश्चात इसे अंग्रेजों ने अपने संरक्षित राज्य (protectorate) के तौर पर ब्रिटिश भारत में शामिल किया। तब यह एक रियासत हुआ करती थी और मेतेयी राजवंश सत्ता में था। 1891 में हुये ब्रिटिश-मणिपुर युद्ध के परिणामस्वरूप अंग्रेजों ने इसका पूर्ण अधिग्रहण कर लिया और मेतेयी राजवंश से दूरस्थ सम्बन्धित एक बालक चूरचंद्र सिंह को सिंहासन पर बिठाया किन्तु असल बागडोर ब्रिटिश रेजिडेंट के हाथ में ही रही।

1917 के बाद से वहाँ लोकतंत्र बहाली की माँग जोर पकड़ने लगी। 1940 तक आते-आते रियासत ने तत्कालीन ब्रिटिश सत्ता के साथ भारत में शामिल होने के संबंध में बातचीत आरंभ कर दी। 1947 में राजा बुद्धचंद्र सिंह ने भारत से विलय के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किये तथा 1949 में मणिपुर रियासत का भारतीय गणराज्य में विलय हुआ और इसे भाग-C राज्य (एक प्रकार का विशिष्ट केंद्र शासित प्रदेश) के रूप में रखा गया। इस विलय का वहाँ के कई सारे जनजातीय समुदायों द्वारा कड़ा विरोध हुआ और यह कहा गया कि इस विलय का निर्णय बिना उनकी सलाह लिये, बिना उनसे बातचीत किये, बलपूर्वक ढंग से लिया गया। तब से लेकर अब तक वहाँ की जनता का एक हिस्सा नाराज रहा है और भारत से स्वतन्त्रता हासिल करने के लिये सशस्त्र हिंसा का प्रयोग भी करने का पक्षधर रहा है। तब से ही राज्य में लगातार कई आतंकी संगठन अस्तित्व में आते गये और भारत सरकार के विरुद्ध सशस्त्र प्रतिरोध जारी रखा है।

1972 में इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिये जाने के बाद भी यह टकराव खत्म नहीं हुआ जिसके चलते 1980 में इसे 'अशांतिग्रस्त क्षेत्र (Disturbed area)' घोषित कर दिया गया और यहाँ 'सशस्त्र बल (विशेष शक्ति) अधि. -1958 (AFSPA,1958) लागू कर दिया गया। आज भी यह कानून वहाँ लागू है और जनता के असंतोष का एक बड़ा कारण भी है।

वर्तमान अशांति अवश्य ही दो जनजातीय समुदायों के बीच वर्चस्व की लड़ाई से उपजी है, तथापि इस पर अपनी रोटियां सेंकने में ये उग्रवादी संगठन भी कहीं से पीछे नहीं हैं।

2. जनसंख्या की संरचना व परस्पर विरोधी वर्चस्व की भावना– मणिपुर की जनसंख्या में छोटे-बड़े करीब 50 से अधिक जनजातीय समूह शामिल हैं जिनमे मेतेयी, कुकी, नागा आदि जनजातियां प्रमुख है। इन जनजातियों में भी अनेकों जनजातीय उप-विभाजन हैं। प्रत्येक जनजातीय समूह अथवा उप-समूह की अपनी विशिष्ट भाषा व सांस्कृतिक-सामाजिक परंपराएं हैं और ये उसको लेकर काफी संजीदा रहते हैं तथा उनको सुरक्षित रखने के लिये किसी भी सीमा तक जाने में गुरेज नहीं करते। साथ ही इन जनजातीय समूहों में जातीय गौरव व सर्वोच्चता की भावना भी अति प्रबल होती है व प्रत्येक समूह स्वयं को अन्य समूहों से श्रेष्ठ ही मानता है। इस क्षेत्र में जब-तब हिंसा भड़कने का यह भी मुख्य कारण है।

एक काफी अहम बिंदु यह भी है कुल आबादी में लगभग 53% हिन्दू मतावलंबी मेतेयी समुदाय है। राज्य की आधिकारिक भाषा व लिपि भी मेतेयी रखी गयी है। मेतेयी भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में भी दर्ज है। राज्य का राजचिन्ह भी कांगला-शा (मेतेयी दंतकथाओं में वर्णित सिंह) है। राज्य के अब तक के अधिकांश मुख्यमंत्री मेतेयी जनजाति से ही रहे हैं। अन्य जनसमुदाय अपेक्षाकृत अल्पसंख्यक हैं जिसके कारण उनमें मनोवैज्ञानिक संशय रहता है और मेतेयी समुदाय अक्सर उनके निशाने पर रहता है।

3. पहाड़ी बनाम मैदानी जनसमुदाय तथा जनजाति (ST) का दर्जा – मणिपुर में हालिया हिंसा भड़कने का प्रमुख कारण यही है। राज्य का लगभग 40% हिस्सा मैदानी व घाटी क्षेत्र है, जिसमें राज्य की 53% मेतेयी आबादी रहती है। राज्य का 60% भाग पहाड़ी है जिसमें कुकी, नागा व अन्य जनजातियां रहती हैं। पहाड़ी भागों में रहने वाली जनजातियों को संविधान के अनुसार जनजाति (ST) का दर्जा प्राप्त है और उनके विशिष्ट भूमि व सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार भी हैं। बहुसंख्यक मेतेयी जनजाति को जनजाति (ST) का दर्जा नहीं प्राप्त है। उनको पहाड़ी क्षेत्रों में बसने की भी मनाही है।

मेतेयी समुदाय की यह पुरानी माँग रही है कि उसे भी जनजाति (ST) का दर्जा दिया जाये, पहाड़ी क्षेत्रों में बसने की छूट दी जाये व अन्य जनजातियों जैसे ही भूमि व सम्पत्ति सम्बन्धी विशेष अधिकार दिये जायें। मेतेयी समुदाय की इस माँग का पहाड़ी जनजातीय समुदाय कड़ा विरोध करते आये हैं क्योंकि इसे वे अपने अस्तित्व के लिये खतरा मानते हैं। इसके विपरीत पहाड़ी जनसमुदाय की माँग है कि पहाड़ी क्षेत्रों को संविधान की छठवीं अनुसूची में शामिल किया जाये।

मेतेयी समुदाय के संगठनों ने इम्फाल हाईकोर्ट में एक अर्जी दाखिल की थी जिसमें उन्होंने माँग की थी कि उन्हें जनजाति (ST) का दर्जा दिया जाये। उन्होंने दस्तावेजी सबूत देते हुये कहा कि भारत में विलय से पूर्व उनके पास जनजाति का दर्जा था जो विलय के पश्चात समाप्त कर दिया गया। अब उन्हें वह दर्जा फिर से वापस दिया जाये। इस पर हाईकोर्ट ने अप्रैल के आखिरी हफ्ते में निर्णय देते हुये राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह मेतेयी समुदाय को जनजाति का दर्जा देने की सिफारिश केंद्र सरकार से करे।

हाइकोर्ट के इसी आदेश के खिलाफ कुकी सहित अन्य आदिवासी संगठनों और छात्रसंघों ने राज्य में व्यापक विरोध प्रदर्शन आरम्भ कर दिया जिसके विरोध में मेतेयी समुदाय भी सड़कों पर आ गया है। केवल इतना ही नहीं, मई के प्रथम सप्ताह में इसी से जुड़े एक अन्य मामले में हाईकोर्ट ने कुछ कुकी जनजाति संगठनों के नेताओं और छात्र संगठनों के पदाधिकारियों को राज्य में कानून व्यवस्था बिगाड़ने और लोगों को भड़काने का दोषी पाते हुये सजा भी सुना दी। इस प्रकार की बातों से यह अन्तर-जनजातीय टकराव काफी हिंसक रूप ले चुका है।

यद्यपि इसके तत्काल बाद कुकी व नागा जनजातियों के प्रतिनिधियों ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी जिस पर कदम उठाते हुये सुप्रीम कोर्ट ने इम्फाल हाईकोर्ट के फैसले को अमान्य घोषित कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने साफ कहा कि किसी समुदाय को जनजाति (ST) का दर्जा दिया जाये या नहीं इस सम्बन्ध में कोई हाईकोर्ट किसी राज्य सरकार को कतई निर्देशित नहीं कर सकता। यह हाईकोर्ट के दायरे के बाहर है और ऐसा निर्णय देते हुये सर्वोच्च न्यायालय ने इम्फाल हाईकोर्ट की, और मेतेयी याचिकाकर्ताओं की कड़ी आलोचना भी की।

किन्तु राज्य में स्थिति अभी भी काफी संवेदनशील बनी हुई है।

4. राज्य की भौगोलिक स्थिति – मणिपुर भौगोलिक दृष्टि से एक चुनौतीपूर्ण राज्य है। इसके उत्तर में नागालैंड, दक्षिण में मिज़ोरम, पश्चिम में असम और पूर्व में अंतरराष्ट्रीय सीमा म्यांमार से लगती है। ये सभी सीमाएं अति दुरूह पहाड़ी भूमि, घने जंगलों और तीव्रगामी नदी-नालों से आच्छादित हैं जहाँ निगरानी का कार्य बहुत कठिन हैं। इन्हीं का लाभ उठाते हुये उग्रवादी संगठन राज्य में घुसपैठ करते हैं। अपहरण और फिरौती इनके मुख्य हथकंडे हैं। यही नहीं, कई स्थानों पर ये इतने मजबूत भी हैं कि मंदिरों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों आदि से अवैध कर वसूली भी करते हैं। इनकी सर्वाधिक अवैध कर वसूली NH-39, व NH-53 राजमार्गों पर माल ढुलाई कर रहे ट्रकों, विशेषतः तेल कंपनियों के ट्रकों से होती है।

एक यह बात भी अहम है कि मणिपुर के पड़ोसी राज्यों और म्यांमार में भी बड़ी तादाद मेतेयी, नागा व कुकी जनजातियों की है जहाँ से मणिपुर के लोगों के नजदीकी पारिवारिक सम्बन्ध भी हैं। ऐसे में कोई छोटी सी शरारतपूर्ण घटना भी आस-पास के क्षेत्रों से उपद्रवियों को अपनी ओर आसानी से आकर्षित करती है और राज्य में स्थिति खराब होती है। हाल की हिंसा में भी पड़ोसी राज्यों व म्यांमार से आये मेतेयी, नागा और कुकी समुदाय के लोगों के शामिल होने के सबूत मिले हैं। इसी प्रकार, पड़ोसी क्षेत्रों में भी ऐसी किसी घटना की तीव्र प्रतिक्रिया भी मणिपुर में देखी जाती है।

म्यांमार और चीन सीमा से निकटता के कारण कई राष्ट्र-विरोधी अराजक तत्व भी राज्य में दाखिल होकर अव्यवस्था फैलाने की ताक में रहते हैं।

5. जनता का अपनी राज्य सरकार पर भरोसा न होना – मणिपुर एक सीमावर्ती राज्य है अतः यहाँ केंद्र सरकार की मजबूत पकड़ होना चाहिये लेकिन जनता के मन में ऐसी कोई बात नहीं बैठना चाहिये कि उनकी अपनी चुनी हुई राज्य सरकार कमजोर और केंद्र पर निर्भर है। दुर्भाग्य से मणिपुर की जनता में यह बात बैठी है कि उनका अपना मुख्यमंत्री व सरकार बेहद कमज़ोर हैं। हाल की हिंसा के बाद राज्य के मुख्यमंत्री के इस्तीफे को लेकर जो नाटकीय घटनाक्रम हुआ, वह यही बताता है।

6. असम के मुख्यमंत्री की गैर-जरूरी सक्रियता – पूर्वोत्तर में असम सबसे बड़ा राज्य है। असम को लेकर अन्य पड़ोसी राज्यों में मनोवैज्ञानिक दबाव प्रायः बना रहता है। ऐसी स्थिति में यदि असम के मुख्यमंत्री की तरफ से गैर-जरूरी बयान दिये जायेंगे तो इस से स्थिति खराब ही होगी। जनता के बीच यह अविश्वास फैल रहा है कि मणिपुर की हाल की हिंसा के बीच असम के मुख्यमंत्री, केंद्र सरकार के परोक्ष समर्थन से पूर्वोत्तर क्षेत्र के "सुपर सी.एम." की तरह कार्य कर रहे हैं। इससे भी अपनी राज्य सरकार के प्रति विश्वास कम होता है। जनजातीय समाज अपने मामलों में बाहरी व्यक्ति का दखल सहन नहीं करेगा।

उपरोक्त कारणों से मणिपुर की स्थिति जटिल हो गयी है। किंतु जैसा कि श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी लिखते हैं –

"यदि तुम्हारे घर के
एक कमरे में आग लगी हो;
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में सो सकते हो?
यदि तुम्हारे घर के
एक कमरे में लाशें सड़ रहीं हों;
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो?"

मणिपुर भारत का अखंड भूभाग है, किंतु केवल भूभाग ही नहीं, वहाँ रहने वाले लोग भी इस देश का अभिन्न हिस्सा हैं। देश जमीन, नदी, पहाड़ों से नहीं बल्कि अपने लोगों से बनता है। इस समय मणिपुर के लोग संकट में हैं और वहाँ तत्काल सभी संबद्ध पक्षों द्वारा शांति स्थापित करने हेतु सार्थक पहल करने और साफ नीयत से बातचीत की मेज पर आने की आवश्यकता है। सरकार की जिम्मेदारी जाहिर तौर पर यहाँ सबसे अधिक हो जाती है। इसके अतिरिक्त जो अलगाववादी व उग्रवादी संगठन हैं, उनको साफ शब्दों में बताने की जरूरत है कि देश की एकता-अखंडता व संप्रभुता के साथ कभी कोई समझौता करना संभव नहीं है और न ही उनकी मौकापरस्त व हिंसक गतिविधियों को बर्दाश्त किया जायेगा।

एक अन्य अहम बिंदु यह भी होना चाहिये कि समस्या का समाधान राज्य की चुनी हुई सरकार और मुख्यमंत्री के नेतृत्व में और राज्य की जनता को विश्वास में लेकर किया जाये। केंद्र सरकार को यहाँ रेफरी की ही भूमिका में होना चाहिये, न कि खिलाड़ी की। जनता को यह बताने की जरूरत है कि जनजाति (ST) का दर्जा देने, छठवीं अनुसूची में शामिल होना जैसी बातों से उनके दीर्घकालिक विकास की समस्या का समाधान नहीं होगा। ऐसे तो फिर हर समूह इसी प्रकार की माँग करने लग जायेगा।

राज्य की जनता और देश के व्यापक हित में यह अत्यावश्यक है कि प्राथमिकता के आधार पर मणिपुर में शांति बहाली की ईमानदार कोशिशें की जायें।

  हर्ष कुमार त्रिपाठी  

हर्ष कुमार त्रिपाठी ने पूर्वांचल विश्वविद्यालय से बी. टेक. की उपाधि प्राप्त की है तथा DU के दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स से भूगोल विषय में परास्नातक किया है। वर्तमान में वे शिक्षा निदेशालय, दिल्ली सरकार के अधीन Govt. Boys. Sr. Sec. School, New Ashok Nagar में भूगोल विषय के प्रवक्ता के पद पर कार्यरत हैं।


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