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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

टूरिज़्म बनाम टेररिज़्म

  • 24 Apr, 2025

22 अप्रैल, 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए नृशंस आतंकवादी हमले ने घाटी में व्याप्त शांति की उम्मीदों को भारी क्षति पहुँचाई है। इस घटना पर कश्मीर सहित पूरे भारत में और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिक्रियाएँ आई हैं और आतंकवाद की पुरज़ोर निंदा की गई है। उल्लेखनीय है कि कश्मीर का पर्यटन उद्योग लंबे समय से राज्य की आर्थिक धारा का महत्त्वपूर्ण अंग रहा है और पर्यटकों पर हमले की इस घटना ने न केवल इस उद्योग के लिये प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न किये हैं बल्कि कश्मीर की वैश्विक छवि को भी आघात पहुँचाया है। इस हमले ने ‘टूरिज़्म बनाम टेररिज़्म’ के विमर्श को पुनः केंद्र में ला दिया है, जहाँ एक ओर पर्यटन है, जो कश्मीर की सांस्कृतिक धरोहर, प्राकृतिक सुंदरता और वैश्विक छवि को प्रस्तुत करता है तो दूसरी ओर आतंकवाद है, जो भय एवं हिंसा का प्रतीक है और घाटी के विकास में अवरोध उत्पन्न करता है। 

कश्मीर में आतंकवाद की पृष्ठभूमि

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 1989 से प्रारंभ हुआ उग्रवाद
    • कश्मीर घाटी में अलगाववादी भावना और आतंकवाद की संगठित शुरुआत वर्ष 1989 से मानी जाती है, जब चुनावी प्रक्रिया में धांधली, राजनीतिक अस्थिरता और जन असंतोष के कारण बड़ी संख्या में युवाओं ने हथियार उठाए।
    • इस समय जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) जैसे संगठनों ने घाटी में अलगाववादी आंदोलन को 'आज़ादी’ के आंदोलन के रूप में प्रचारित किया।
    • पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI द्वारा प्रशिक्षित और वित्तपोषित चरमपंथियों ने स्थानीय युवाओं को भारत-विरोधी गतिविधियों में शामिल करना प्रारंभ किया।
    • तत्कालीन राज्य शासन की प्रशासनिक शिथिलता, भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी ने इन आंदोलनों को जनसमर्थन दिलाने में मदद की।
  • धर्म और राजनीति का दुरुपयोग
    • कश्मीर संकट को सांप्रदायिक और धार्मिक रंग देने का षड्यंत्र भी इसी काल में तीव्र हुआ।
    • कुछ अलगाववादी नेताओं ने इसे ‘इस्लामिक जिहाद’ का रूप देने की कोशिश की, जिससे अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी संगठनों से वैचारिक और आर्थिक समर्थन प्राप्त किया गया।
    • स्थानीय मस्जिदों, मदरसों और मीडिया के माध्यम से धार्मिक भावना को उकसाया गया।
    • यह वैचारिक उग्रवाद धीरे-धीरे मूलत: राजनीतिक संघर्ष को धार्मिक संघर्ष में परिवर्तित करने लगा।
  • युवाओं का कट्टरपंथ की ओर भटकाव
    • कश्मीर में उच्च बेरोज़गारी दर, शिक्षा की सीमित पहुँच और राजनीतिक अनिश्चितता ने युवाओं को असंतोष की ओर धकेला।
    • कट्टरपंथी प्रोपेगेंडा का युवाओं में तेज़ी से प्रसार हुआ।
    • उग्रवादी संगठनों ने ‘शहादत’ को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया और धार्मिक आदर्श के रूप में इसका प्रचार किया।
    • वर्ष 2010 के बाद से ‘लोकल मिलिटेंसी’ की व्यापकता बढ़ी, जहाँ आम ग्रामीण युवा बंदूक उठाने लगे।
  • सीमापार आतंकवाद और पाकिस्तान की भूमिका
    • पाकिस्तान ने वर्ष 1947 से ही जम्मू-कश्मीर में एक ‘प्रॉक्सी वॉर’ छेड़ रखी है।
    • लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिज्बुल मुजाहिद्दीन से संबद्ध आतंकी सीमापार से प्रशिक्षित एवं हथियारबंद होकर भारत में घुसपैठ करते रहे हैं।
    • नियंत्रण रेखा (LOC) पर पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ, गोलीबारी और ड्रोन से हथियार आपूर्ति एक नियमित रणनीति बन चुकी है।
    • हाल के वर्षों में ‘हाइब्रिड टेररिज़्म’ का नया रूप सामने आया है, जहाँ आम नागरिक को उकसाकर या प्रलोभन देकर आतंकी कृत्यों में संलग्न किया जाता है।

शांति बहाली के प्रयास और चुनौतियाँ 

प्रमुख प्रयास

  • अनुच्छेद 370 की समाप्ति और राज्य का पुनर्गठन (2019)
    • 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त कर जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया। इसके साथ ही राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों — जम्मू-कश्मीर और लद्दाख  में विभाजित किया गया। यह निर्णय राजनीतिक रूप से ऐतिहासिक और विवादास्पद तो था, किंतु इसका उद्देश्य राज्य को राष्ट्रीय मुख्यधारा में पूर्णतः एकीकृत करना, प्रशासनिक पारदर्शिता बढ़ाना और आर्थिक विकास को गति देना बताया गया। इसके उपरांत जम्मू-कश्मीर में विभिन्न केंद्रीय कानून लागू हो सके, जिससे शासन में सुगमता और जवाबदेही बढ़ी।
  • व्यापक निवेश को प्रोत्साहन और अवसंरचना विकास
    • शांति बहाली के लिये आर्थिक स्थिरता आवश्यक है। इसी उद्देश्य से केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में 70,000 करोड़ रुपए से अधिक के निवेश प्रस्तावों को स्वीकृति दी है।
    • औद्योगिक नीति 2021 के तहत निजी उद्योगों को भूमि आवंटन शुरू हुआ।
    • नई सड़कें, टनल्स (जैसे जोजिला सुरंग), रेलवे संपर्क और एयरपोर्ट्स का विस्तार किया गया।
    • कुलगाम, पुलवामा और बारामुला जैसे ज़िलों में आईटी पार्क्स, मेडिकल कॉलेज और कौशल केंद्र विकसित किये जा रहे हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय आयोजन – G20 की बैठक (2023)
    • वर्ष 2023 में श्रीनगर में G20 टूरिज़्म वर्किंग ग्रुप की बैठक का सफल आयोजन किया गया। यह पहली बार था जब इस स्तर का कोई आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।
    • पर्यटन पर केंद्रित इस आयोजन से कश्मीर की सकारात्मक छवि दुनिया के सामने आई।
    • स्थानीय व्यवसायियों, होटलों और कलाकारों के लिये वैश्विक स्तर पर पहचान मिलना सुनिश्चित हुआ।
    • यह आयोजन राजनयिक आत्मविश्वास और सुरक्षा के प्रति अंतर्राष्ट्रीय विश्वास का प्रतीक भी बना।
  • लोकतंत्र का सुदृढ़ीकरण – सफल विधानसभा चुनाव और स्थानीय शासन
    • राज्य में विधानसभा के चुनाव सफलतापूर्वक आयोजित हुए, जहाँ रिकॉर्ड मतदान दर्ज किया गया। नेशनल कांफ्रेंस की जीत और सरकार निर्माण के दौरान दिल्ली के अधिक हस्तक्षेप की आशंका को दूर किया। 
    • इससे पूर्व, शांति स्थापना के लिये स्थानीय लोकतंत्र की भूमिका को महत्त्वपूर्ण मानते हुए पंचायत, बीडीसी (ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल) और डीडीसी (डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल) के चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न कराए गए। इन्हें राज्य में लोकतांत्रिक ढाँचे के पुनर्निर्माण की दिशा में बड़ा कदम माना गया।
    • लोगों की व्यापक भागीदारी से विश्वास बहाली और राजनीतिक संलग्नता को बल मिला।
  • युवाओं और समाज का सशक्तीकरण
    • सरकार ने आतंकवाद की जड़ों को समाप्त करने के लिये युवाओं को केंद्र में रखते हुए कई योजनाएँ लागू कीं।
    • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, हुनर हाट, यूथ क्लब और ‘मिशन यूथ’ जैसे कार्यक्रम सफलतापूर्वक कार्यान्वित किये गए।
    • खेल प्रतियोगिताओं, कला शिविरों और सांस्कृतिक उत्सवों के माध्यम से युवाओं को रचनात्मक मंच उपलब्ध कराए गए।
  • पर्यटन और सांस्कृतिक पुनर्जागरण
    • पर्यटन को पुनर्जीवित करने के लिये नए होम-स्टे स्कीम, फिल्म शूटिंग गाइडलाइंस और विंटर टूरिज़्म पैकेज लागू किये गए।
    • गुलमर्ग, सोनमर्ग, पहलगाम में स्नो फेस्टिवल, शिकारा फेस्टिवल और कश्मीर साहित्य महोत्सव जैसे आयोजन हुए, जिससे घाटी का सकारात्मक पक्ष सामने आया।
  • सुरक्षा बलों की पेशेवर और मानवीय रणनीति
    • तकनीक-आधारित आतंकवाद विरोधी अभियान, ड्रोन निगरानी और हाई-टेक नियंत्रण कक्ष स्थापित किये गए।
    • ‘मिनिमल डैमेज पॉलिसी’ और आम जनता से संवाद कायम रखने की नीति अपनाई गई। इससे लोगों और सुरक्षा एजेंसियों के बीच भरोसे की नई बुनियाद बनी।

प्रमुख चुनौतियाँ

  • वैचारिक कट्टरता और उग्रपंथी नेटवर्क
    • घाटी में कई वर्षों से एक संगठित उग्रपंथी वैचारिक तंत्र सक्रिय रहा है जो युवाओं के बीच धार्मिक भावनाओं और अलगाववादी विचारधारा को भड़काता रहता है।
    • डिजिटल युग में सोशल मीडिया और वर्चुअल मंचों के माध्यम से आतंकी संगठन द्वारा युवाओं को लक्षित करना अधिक सरल हो गया है।
    • मदरसा शिक्षा और कुछ धार्मिक संगठनों को निगरानी की आवश्यकता है, जो गुप्त रूप से इस कट्टरता को पोषित कर सकते हैं।
  • सीमा पार आतंकवाद और ड्रोन घुसपैठ
    • पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी समूह (जैसे लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद आदि) लगातार नई रणनीतियों से हमलों की योजना बनाते रहते हैं।
    • ड्रोन के माध्यम से हथियार, नकदी और ड्रग्स घाटी में भेजे जाते हैं, जिससे स्थानीय मॉड्यूल सक्रिय बने रहते हैं।
    • LOC और IB (अंतर्राष्ट्रीय सीमा) पर सतत् निगरानी एवं आधुनिकतम सुरक्षा प्रौद्योगिकी की आवश्यकता हमेशा बनी रहती है।
  • राजनीतिक अंतर्विरोध और असमान प्रतिनिधित्व 
    • विधानसभा चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न तो हो गए, लेकिन विभिन्न राजनीतिक धड़ों के बीच विश्वास की कमी, नीति-निर्माण में असमान प्रतिनिधित्व और संवेदनशील मुद्दों पर स्पष्ट नीति की अनुपस्थिति अब भी चुनौतियों के रूप में बनी हुई हैं। 
    • डीडीसी और पंचायत चुनावों के बावजूद स्थानीय राजनैतिक नेतृत्व के भीतर अंतर्विरोध कायम है।
    • अलगाववादी और मुख्यधारा के नेताओं के बीच की दूरी अब भी व्यापक है, जिससे सर्वसमावेशी संवाद प्रक्रिया कठिन सिद्ध होती है।
  • सामाजिक मनोविज्ञान : भय और अविश्वास
    • आम नागरिक अब भी अतीत के अनुभवों को लेकर संदेह और असुरक्षा की भावना रखते हैं।
    • एक ओर उन्हें आतंकवादियों का भय है तो दूसरी ओर अत्यधिक सुरक्षा उपस्थिति से वे निजता और नागरिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप महसूस करते हैं।
    • कश्मीर में अभी भी ‘We vs. They’ की एक मानसिकता मौजूद है जिससे एकीकरण की भावना बाधित होती है।
  • आर्थिक विषमता और रोज़गार की गंभीर समस्या
    • पर्यटन, हस्तशिल्प और कृषि जैसे मुख्य उद्योगों में अस्थिरता मौजूद है।
    • घाटी के युवाओं के लिये स्थायी और सम्मानजनक रोज़गार के अवसर अभी सीमित हैं।
    • कई बार सरकारी योजनाएँ ज़मीनी स्तर पर प्रभावी रूप से नहीं पहुँचतीं, जिससे विकास में भागीदारी की भावना कमज़ोर होती है।

कश्मीर की अर्थव्यवस्था : पर्यटन की प्रमुख भूमिका

  • पर्यटन का आर्थिक प्रभाव:
    • कश्मीर में प्रति वर्ष लाखों पर्यटक आते हैं, जिनसे होटल, टैक्सी, रेस्तरां, गाइड और हस्तशिल्प उद्योग को प्रत्यक्ष रूप से लाभ होता है।
    • गुलमर्ग में स्कीइंग, पहलगाम में ट्रैकिंग, डल झील की शिकारा सवारी — ये सब स्थानीय लोगों के लिये रोज़गार के बड़े स्रोत हैं।
    • कश्मीर का लुगदी शिल्प, कालीन, कश्मीरी शॉल और मेवे पर्यटकों के माध्यम से वैश्विक बाज़ार तक प्रचार पाते हैं।
  • पर्यटन से सामाजिक-सांस्कृतिक लाभ:
    • पर्यटन स्थानीय लोगों को बाहरी दुनिया से जोड़ता है, जिससे सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक संवाद को बल मिलता है।
    • नई पीढ़ी को होटल मैनेजमेंट, ट्रैवल गाइडिंग और डिजिटल मार्केटिंग जैसे क्षेत्रों में करियर बनाने का अवसर मिलता है।
  • सरकारी प्रोत्साहन:
    • हाल के वर्षों में सरकार ने ‘फिल्म नीति’, ‘विंटर टूरिज़्म’ और ‘होम-स्टे स्कीम’ जैसे नवाचार किये हैं।
    • निवेश सम्मेलन आयोजित किये जा रहे हैं, जिससे देश-विदेश के निवेशक पर्यटन क्षेत्र में अवसर देख रहे हैं।

आतंकी घटनाओं के प्रभाव

  • पर्यटन पर प्रत्यक्ष और तात्कालिक प्रभाव
    • पर्यटकों में भय: पहलगाम जैसे प्रमुख पर्यटन स्थलों पर आतंकी हमले के बाद पर्यटकों के भरोसे को भारी धक्का लग सकता है और वे पर्यटन के लिये कश्मीर की उपेक्षा कर सकते हैं। 
    • स्थानीय व्यवसायों पर प्रतिकूल प्रभाव: पर्यटकों पर निर्भर स्थानीय व्यवसाय और रोज़गार गतिविधियों में कमी आएगी, जिससे स्थानीय आय में अप्रत्याशित गिरावट आएगी। अस्थिरता का यह माहौल आबादी को संवेदनशील बना सकता है और उनका असंतोष बढ़ सकता है।
  • व्यापार और निवेश को आघात
    • निवेश गतिविधियों का स्थगन: आतंकवादी घटनाओं के कारण घाटी में आहूत निवेश बैठकें और व्यावसायिक योजनाएँ स्थगित हो सकती हैं। 
    • अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों का संकोच: यदि अंतर्राष्ट्रीय कंपनियाँ कश्मीर को ‘उच्च जोखिम क्षेत्र’ मानने लगेंगी तो वहाँ अपने प्रसार के लिये अनिच्छुक होंगी, जिसके कारण आर्थिक विकास की गति धीमी हो जाएगी।
    • आपूर्ति शृंखला में व्यवधान: आतंकवाद और सुरक्षा संबंधी कारणों से उत्पादन एवं आपूर्ति शृंखलाएँ बाधित हो सकती हैं, जिससे कश्मीर के पारंपरिक उद्योगों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
  • मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव
    • बच्चों और युवाओं पर मानसिक दबाव: हिंसा और आतंकवादी हमलों के पुनः प्रसार से कश्मीर के बच्चों और युवाओं के मन में असुरक्षा, आक्रोश एवं भय की भावना बढ़ सकती है। यह मानसिक दबाव उनकी पढ़ाई, सामाजिक जीवन और समग्र विकास को प्रभावित करता है।
    • शिक्षा प्रणाली पर असर: स्कूलों और कॉलेजों को सुरक्षा कारणों से बार-बार बंद किया जाता है, जिससे विद्यार्थियों की शिक्षा में विघ्न उत्पन्न होता है और एक लंबी अवधि के लिये शैक्षिक क्रियाकलाप स्थगित हो जाते हैं।
    • सामाजिक विघटन: हिंसा और असुरक्षा की स्थिति में नागरिकों में सामाजिक विघटन की स्थिति उत्पन्न होती है। स्थानीय लोग सुरक्षा बलों की उपस्थिति और उनकी कठोर कार्यवाहियों के कारण अधिकारों के हनन का अनुभव करते हैं, जिससे समाज में विश्वास और सामूहिक साझेदारी का संकट पैदा होता है।
  • कश्मीर की वैश्विक छवि पर असर
    • अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में नकारात्मक प्रचार: आतंकवादी घटनाओं को अंतर्राष्ट्रीय मीडिया प्रमुखता से प्रसारित करता है, जिससे कश्मीर की छवि पुनः एक ‘संघर्ष क्षेत्र’ की बन सकती है। 
    • सांस्कृतिक और पर्यटन सहयोग में रुकावट: कश्मीर की सांस्कृतिक धरोहर और पर्यटन की दुनिया भर में पहचान होने के बावजूद, आतंकवाद की ऐसी घटनाएँ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अवसरों को सीमित कर सकती है।
  • राजनीतिक अस्थिरता और सुरक्षा चिंताएँ
    • राजनीतिक स्थिरता पर प्रभाव: आतंकवाद घाटी में राजनीतिक अस्थिरता को पुनः बढ़ावा दे सकता है, जिससे राज्य और केंद्र सरकार के बीच निर्णयों में विलंब एवं कार्यान्वयन में कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं। यह अस्थिरता प्रशासनिक प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकती है और नागरिकों के जीवन में निरंतर अनिश्चितता का प्रसार कर सकती है।
    • सुरक्षा बलों की बढ़ती जिम्मेदारी: आतंकी घटनाओं के बाद सुरक्षा बलों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है, जिससे घाटी में सैन्य और पुलिस बलों की संख्या में वृद्धि होती है। इससे नागरिकों के लिये दैनिक जीवन में प्रतिबंध और दबाव बढ़ जाता है।

आगे की राह

  • आतंकवाद पर नियंत्रण के उपाय
    • आधुनिक सुरक्षा उपायों का संवर्द्धन: आतंकवाद पर नियंत्रण के लिये सरकार को तकनीकी नवाचारों का अधिकतम उपयोग करना होगा। ड्रोन सर्विलांस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित निगरानी और कनेक्टेड इंटेलिजेंस नेटवर्क से आतंकवादी गतिविधियों पर कड़ी नज़र रखी जा सकती है। इसके अलावा, सीमा पर सुरक्षा को और कठोर किया जाए, ताकि घुसपैठियों की गतिविधियों को पहले ही रोका जा सके।
    • स्थानीय पुलिस और सुरक्षा बलों की भूमिका को बढ़ाना: स्थानीय पुलिस और सुरक्षा बलों को अधिक सबल करना होगा; साथ ही उन्हें स्थानीय समुदाय से और गहनता से जुड़ने के लिये प्रेरित किया जाए। यह क्षेत्रीय सुरक्षा में विश्वास बनाए रखेगा और आतंकवादियों की पहचान में मदद करेगा।
    • पाकिस्तान पर दबाव: कश्मीर में आतंकवाद को प्रश्रय देने में पाकिस्तान की किसी भी भूमिका पर नियंत्रण के लिये सरकार को कड़े सुरक्षात्मक एवं कूटनीतिक उपाय करने होंगे। पाकिस्तान पर किसी भी कार्रवाई के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना भारत के लिये आवश्यक है। कश्मीर में सामान्य स्थिति की वापसी के वर्तमान दौर में पाकिस्तान और पाकिस्तान-समर्थित आतंकियों की किसी भी गलत मंशा को दृढ़तापूर्वक चुनौती देना महत्त्वपूर्ण है।
  • सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों को और गहन करना
    • स्थानीय प्रशासन का सशक्तीकरण: सरकार को स्थानीय प्रशासन की भूमिका को और सबल करने की ज़रूरत है, ताकि स्थानीय समस्याओं का त्वरित समाधान किया जा सके और लोगों का भरोसा प्रशासन पर बढ़े।
    • सामाजिक और आर्थिक समावेशन की योजना: रोज़गार, कौशल विकास और शिक्षा के क्षेत्र में जारी ठोस प्रयासों को आगे बढ़ाना होगा। युवाओं के लिये विशेष कार्यक्रम चलाए जा सकते हैं, जो उन्हें हिंसा के बजाय विकास की दिशा में प्रेरित करें और घाटी में आतंकियों के लिये मौजूद किसी भी सहयोगी भावना को समाप्त करें। 
  • पर्यटकों में भरोसा बहाल करने के लिये कदम
    • सुरक्षा के साथ पर्यटन को पुनः प्रोत्साहित करना: ऐसी आतंकी घटनाओं के बाद पर्यटकों के विश्वास को पुनः प्राप्त करने के लिये यह आवश्यक है कि सुरक्षा व्यवस्था को और सख्त किया जाए। पर्यटकों के लिये सशक्त सुरक्षा तंत्र और सूचना प्रणाली स्थापित की जाए, ताकि उन्हें सुरक्षित यात्रा का आश्वासन दिया जा सके। इसके साथ ही स्थानीय आबादी की ओर से सक्रिय प्रयास करना होगा कि वे आतंकियों को कड़े संदेश दें कि उनके कुत्सित प्रयास कश्मीरी समाज में किसी प्रकार से स्वीकार्य नहीं होंगे। 
    • प्रचार और विपणन अभियानों का आरंभ: शांति स्थापना के आरंभिक प्रयासों के बाद ‘सुरक्षित कश्मीर’ जैसे अभियान शुरू किये जा सकते हैं, जहाँ पर्यटकों को आश्वस्त किया जा सकता है कि प्रशासन और स्थानीय आबादी की ओर से ऐसी आतंकी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होने देने के सबल प्रयास किये गए हैं। केंद्र सरकार की ओर से ऐसी घटनाओं पर भविष्य में पूर्ण रोक की इच्छाशक्ति का प्रदर्शन भी पर्यटकों के भरोसे की पुनर्बहाली में अहम योगदान निभाएगा।
  • कश्मीर के आम नागरिकों को साथ लेना
    • स्थानीय समुदाय के साथ विश्वास निर्माण: कश्मीर के नागरिकों को साथ लेने के लिये उन्हें शांति प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल किया जाना चाहिये। इस संदर्भ में, पंचायतों और स्थानीय समुदायों को अधिक स्वतंत्रता और अधिकार दिये जाएँ, ताकि वे अपने क्षेत्र की सुरक्षा और विकास में सहायक बन सकें।
    • समाज में संवाद और एकता का प्रचार: कश्मीर में आतंकवाद के विरुद्ध सक्रिय सामाजिक जागरूकता अभियान चलाए जाएँ, जिसमें समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट किया जाए। इससे यह संदेश जाएगा कि कश्मीर के लोग आतंकवाद के विरुद्ध हैं और शांति एवं विकास की राह पर अग्रसर होना चाहते हैं। इसके लिये सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी में कार्य किये जा सकते हैं।
  • शिक्षा और युवा सशक्तीकरण के माध्यम से समाधान
    • समावेशी और जागरूक शिक्षा प्रणाली: कश्मीर में समावेशी शिक्षा नीति को बढ़ावा दिया जाए, जिसमें बच्चों और युवाओं को न केवल शैक्षिक ज्ञान बल्कि सामूहिक सह-अस्तित्व, सहिष्णुता और मानवाधिकार के महत्त्व की शिक्षा भी दी जाए। यह कट्टरपंथी विचारधाराओं से मुकाबला करने का सबसे प्रभावी तरीका सिद्ध हो सकता है।
    • युवाओं के लिये विकास के अवसर: शिक्षा और कौशल विकास के साथ-साथ युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिये रोज़गार के अवसर बढ़ाए जाएँ। विशेष रूप से उनके लिये तकनीकी, कृषि, हस्तशिल्प और अन्य क्षेत्रीय व्यवसायों में प्रशिक्षण एवं रोज़गार योजनाओं का प्रसार किया जाए, ताकि वे हिंसा की बजाय समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें।

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एसएमएस अलर्ट
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