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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

गणतंत्र दिवस 2025: 'स्वर्णिम भारत - विरासत और विकास' थीम का महत्त्व

  • 28 Jan, 2025

भारत देश में गणतंत्र दिवस केवल एक राष्ट्रीय उत्सव नहीं, बल्कि हमारी लोकतांत्रिक परंपराओं, संविधान और राष्ट्रीय एकता का उत्सव है। वर्ष 2025 का गणतंत्र दिवस विशेष है, क्योंकि यह भारतीय गणतंत्र की यात्रा के 75वें वर्ष में प्रवेश का प्रतीक है। यह वर्ष हमारे लिये एक ऐसा ऐतिहासिक क्षण है, जब हम न केवल अपने अतीत की उपलब्धियों का उत्सव मना रहे हैं, बल्कि भविष्य की योजनाओं और लक्ष्यों की रूपरेखा भी तैयार कर रहे हैं।

भारत ने 26 जनवरी 1950 को अपने संविधान को अंगीकृत कर गणतंत्र का मार्ग चुना था। इन 75 वर्षों में भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में अपार प्रगति की है। उसने लोकतंत्र को सुदृढ़ किया, सामाजिक न्याय की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाए और वैश्विक मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। गणतंत्रता के 75 वर्ष केवल समय का मापदंड नहीं, बल्कि उस यात्रा का प्रतिबिंब है जिसमें भारत ने चुनौतियों का सामना करते हुए विकास की राह बनाई है।

गणतंत्र दिवस 2025 की थीम 'स्वर्णिम भारत - विरासत और विकास' इन 75 वर्षों की यात्रा और भविष्य की दृष्टि दोनों को संयुक्त करती है। यह थीम भारत की गौरवशाली धरोहर का सम्मान करते हुए, आधुनिक प्रगति तथा विकास की आवश्यकता पर बल देती है। भारत की विविध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर हमें यह सिखाती है कि अपनी जड़ों से जुड़े रहना अत्यंत आवश्यक है, जबकि वर्तमान की चुनौतियाँ हमें सतत् विकास और नवाचार की ओर प्रेरित करती हैं। गणतंत्र के 75 वर्षों में, भारत ने न केवल राजनीतिक स्थिरता को बनाए रखा है, बल्कि आर्थिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों में नई ऊँचाइयों को छुआ है। यह थीम हमें याद दिलाती है कि हमारी विरासत और हमारे विकास के प्रयासों का संतुलन बनाए रखना हमारी पहचान एवं उन्नति का मूलमंत्र है।

भारत की विरासत: एक गौरवमयी अतीत 

भारत की विरासत विश्व में सबसे प्राचीन और समृद्ध विरासतों में से एक मानी जाती है। हज़ारों वर्षों से यह भूमि सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अनेक महान परिवर्तनों एवं प्रगतियों की साक्षी रही है। भारतीय संस्कृति का इतिहास अत्यंत विविधतापूर्ण और बहुआयामी है, जिसने न केवल भारत बल्कि समग्र मानवता को गहराई से प्रभावित किया है। 

  • सांस्कृतिक विरासत: भारत की सांस्कृतिक विरासत उसकी धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं से संबद्ध है। वेद, उपनिषद, महाभारत, रामायण, भगवद गीता और अन्य ग्रंथों ने भारतीय जीवन के विभिन्न पहलुओं को परिभाषित किया। भारतीय सभ्यता ने न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि कला, संगीत, साहित्य, नृत्य और वास्तुकला के क्षेत्र में भी अपने योगदान से विश्व को समृद्ध किया। प्राचीन भारतीय मंदिर और मठ भारतीय शिल्पकला एवं वास्तुकला की श्रेष्ठता को प्रदर्शित करते हैं। भारतीय चित्रकला, काव्य साहित्य और नृत्य रूप (जैसे- भरतनाट्यम, कथक, ओडिसी) ने सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भारत को वैश्विक पहचान दिलाई।
  • ऐतिहासिक विरासत: भारत का इतिहास महान साम्राज्यों और शक्तिशाली राजवंशों की गाथाओं से परिपूर्ण है। मौर्य साम्राज्य, गुप्त साम्राज्य से लेकर दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य तक भारतीय इतिहास में कई महत्त्वपूर्ण मील के पत्थर रहे हैं। सम्राट अशोक के शासनकाल में बौद्ध धर्म का विस्तार-प्रसार हुआ तो गुप्त साम्राज्य के दौरान भारतीय विज्ञान, गणित और खगोलशास्त्र में अद्वितीय योगदान दिया गया। दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य ने भारत में स्थापत्य कला का एक नया आयाम प्रस्तुत किया। भारत का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम से भी अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत ने अहिंसा के सिद्धांत को अपनाकर स्वतंत्रता प्राप्त की। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम उत्कृष्ट उदाहरण है कि किस प्रकार एक बड़े और विविध राष्ट्र ने एकता के साथ अपने अधिकारों के लिये संघर्ष किया। इसके साथ ही भारतीय समाज समय-समय पर नारी शिक्षा, अस्पृश्यता उन्मूलन और श्रमिक अधिकार आंदोलन जैसे सामाजिक आंदोलनों का साक्षी रहा है।
  • भाषाई और धार्मिक विविधता: भारतीय विरासत का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू उसकी भाषाई और धार्मिक विविधता है। भारत में 22 आधिकारिक भाषाएँ हैं और लगभग हर राज्य की अपनी विशेष भाषा एवं संस्कृति है। धार्मिक विविधता भी भारत की एक पहचान है, जहाँ हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और अन्य धर्मों के अनुयायी सहअस्तित्व में रहते हैं। भारत ने हमेशा धर्मनिरपेक्षता की नीति अपनाई है और समाज में सभी धर्मों का आदर किया जाता है।

भारत का विकास: आधुनिक युग में परिवर्तन 

भारत की विकास यात्रा का इतिहास रोमांचक और प्रेरणादायक रहा है। स्वतंत्रता के बाद देश को एक ऐसे रास्ते पर चलना था जहाँ उसे पुनर्निर्माण के साथ-साथ आधुनिकता की ओर कदम बढ़ाना था। वर्तमान में भारत विश्व की प्रमुख आर्थिक एवं प्रौद्योगिकीय शक्तियों में से एक है, लेकिन यह यात्रा आसान नहीं थी। स्वतंत्रता के बाद भारत को न केवल अपने सामाजिक और आर्थिक ढाँचे को पुनर्स्थापित करना था, बल्कि उसे एक ऐसे लोकतांत्रिक देश का निर्माण करना था जो अपने नागरिकों को समान अवसर और अधिकार प्रदान कर सके।

  • आर्थिक विकास: भारत की स्वतंत्रता के समय देश की आर्थिक स्थिति अत्यंत कमज़ोर थी। देश में अकाल, बेरोज़गारी और गरीबी का बोलबाला था। लेकिन धीरे-धीरे भारत ने अपनी आर्थिक नीतियों को सुदृढ़ किया और औद्योगिकीकरण की दिशा में कदम बढ़ाए। आरंभिक दशकों में औद्योगिकीकरण के साथ-साथ हरित क्रांति भी लाई गई, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई और देश खाद्यान्न में आत्मनिर्भर हो गया। 1980 के दशक में भारत ने आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम बढ़ाए। वर्ष 1991 में जब भारत ने आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाई, तब भारतीय अर्थव्यवस्था ने तेज़ी से विकास की दिशा में छलाँग लगाई। 
  • प्रौद्योगिकी और विज्ञान में प्रगति: भारत ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। इसरो के नेतृत्व में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम ने दुनिया में अपनी छाप छोड़ी है। चंद्र और मंगल का अन्वेषण भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र की क्षमता का प्रतीक है। भारतीय वैज्ञानिकों ने कई महत्त्वपूर्ण खोजें की हैं और औषधि, जैवप्रौद्योगिकी एवं परमाणु विज्ञान जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
  • शिक्षा और स्वास्थ्य: शिक्षा के क्षेत्र में भी भारत ने व्यापक प्रगति की है। हालाँकि आज भी ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की कमी है, लेकिन सरकार ने शिक्षा के अधिकार कानून को लागू कर यह सुनिश्चित किया है कि हर बच्चे को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा मिले। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) और अन्य संस्थानों ने विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। भारतीय चिकित्सा क्षेत्र ने न केवल देश में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई है। भारत में चिकित्सा शोध और उपचार विधियाँ लगातार उन्नत हो रही हैं तथा आयुर्वेद जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियाँ भी पुनः प्रचलन में आई हैं।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन: भारत में सामाजिक परिवर्तन की गति भी तेज़ हो रही है। महिलाओं और वंचितों के अधिकारों की ओर कई कदम बढ़ाए गए हैं एवं अब वे विभिन्न क्षेत्रों में समान अवसर प्राप्त कर रहे हैं। भारत का विकास केवल आर्थिक और प्रौद्योगिकीय दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता की दिशा में भी हो रहा है। एक ओर भारतीय समाज में सुधार हो रहा है तो दूसरी ओर पारंपरिक मूल्यों को सहेजने के प्रयास भी जारी हैं।

विरासत और विकास का संतुलन 

भारत की विरासत और विकास दोनों ही एक-दूसरे से गहरे रूप में जुड़े हुए हैं। जहाँ एक ओर हमारी विरासत हमारी सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरों को प्रदर्शित करती है, वहीं नए विचारों, प्रौद्योगिकी और सामाजिक बदलावों को स्वीकार करने के रूप में विकास भी आगे बढ़ रहा है। हालाँकि विकास की प्रक्रिया में तेज़ी के साथ कभी-कभी यह चिंता भी उत्पन्न होती है कि हमारी विरासत कहीं लुप्त न हो जाए। इसलिये यह आवश्यक है कि विरासत और विकास के बीच संतुलन बनाए रखा जाए, ताकि दोनों एक-दूसरे के पूरक बनें एवं देश का सर्वांगीण उत्थान हो सके।

  • विरासत के संरक्षण का महत्त्व: हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर एक अमूल्य धारा है, जिसे सहेजना तथा भविष्य की पीढ़ियों तक पहुँचाना हमारी ज़िम्मेदारी है। हमारे ऐतिहासिक स्थल हमारी गौरवमयी विरासत के प्रतीक हैं, जिन्हें संरक्षित रखना न केवल भारतीयता की पहचान के लिये आवश्यक है, बल्कि यह विश्व धरोहर के रूप में भी अहम है। सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारतीय संगीत, नृत्य, कला और साहित्य ने वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। 
  • विकास और पारंपरिक मूल्यों का संगम: विकास की प्रक्रिया के साथ-साथ पारंपरिक मूल्यों को संरक्षित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन यह असंभव नहीं है। विकास का अर्थ केवल भौतिक उन्नति नहीं है, बल्कि यह समाज के नैतिक और सामाजिक विकास का भी प्रतीक है। वर्तमान दौर में जब हम प्रौद्योगिकी और वैश्वीकरण की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिये कि हम अपनी सांस्कृतिक पहचान एवं मूल्यों को खो न दें। आजकल शिक्षा और तकनीकी विकास के क्षेत्र में भी यह संतुलन देखा जा सकता है। भारत ने अपने छात्रों को विश्वस्तरीय शिक्षा और तकनीकी कौशल से लैस किया है, लेकिन साथ ही अपनी ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक धरोहर से भी युवाओं को अवगत कराया है। 
  • सामाजिक और सांस्कृतिक संतुलन: भारत में विकास की दिशा में सामाजिक न्याय और समानता के मुद्दे भी महत्त्वपूर्ण हैं। भारतीय समाज ने हमेशा अपनी पारंपरिक संरचनाओं के भीतर सामूहिकता, बंधुत्व और सहिष्णुता को बढ़ावा दिया है। हालाँकि वर्तमान समाज में कई तरह के बदलाव हो रहे हैं, फिर भी हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि आदर्श पालन-पोषण, परिवार की भूमिका और सांस्कृतिक संबंधों की अहमियत जैसे हमारे पारंपरिक मूल्य समाज को एकजुट करने में सहायक हैं।

भारत का भविष्य: स्वर्णिम भारत की दिशा में कदम 

भारत का भविष्य अत्यंत उज्ज्वल और प्रतिबद्ध प्रतीत होता है। आज का भारत एक तेज़ी से उभरती हुई वैश्विक शक्ति है और इसके विकास की दिशा में अनेक नए अवसर एवं संभावनाएँ मौजूद हैं। 'स्वर्णिम भारत' की परिकल्पना में एक ऐसा भारत उपस्थित है जो अपनी समृद्ध विरासत के साथ-साथ आधुनिक विकास की ऊँचाइयों तक पहुँचने में सक्षम है। 

  • आर्थिक समृद्धि की दिशा: भारत के विकास की सबसे महत्त्वपूर्ण दिशा उसकी आर्थिक समृद्धि की दिशा है। हाल के वर्षों में भारत ने आर्थिक सुधारों की दिशा में कई कदम उठाए हैं और इसका परिणाम यह है कि भारत दुनिया की सबसे बड़ी और तेज़ी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन चुका है। आगामी वर्षों में भारत को अपने आर्थिक विकास को और बढ़ावा देने के लिये औद्योगिकीकरण, तकनीकी नवाचार एवं विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना होगा। 
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार: भारत के लिये सबसे बड़ी संभावना प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में निहित है। भारत ने सूचना प्रौद्योगिकी (IT) एवं स्टार्टअप्स के क्षेत्र में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है और यह प्रक्रिया आने वाले वर्षों में और भी तीव्र होगी। भारतीय युवा अपनी तकनीकी क्षमता के बल पर वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना रहे हैं और यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये एक शुभ संकेत है। भारत को आने वाले वर्षों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) एवं डाटा साइंस जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों में और प्रगति करनी होगी। 
  • सामाजिक समरसता और समृद्धि: 'स्वर्णिम भारत' की दिशा में एक और महत्त्वपूर्ण पहलू सामाजिक समरसता एवं समृद्धि है। जब तक समाज के हर वर्ग को समान अवसर नहीं मिलते, तब तक वास्तविक विकास संभव नहीं है। भारत का भविष्य एक ऐसे समाज की ओर अग्रसर होने में निहित है जो न केवल आर्थिक रूप से समृद्ध हो, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और भाईचारे का प्रतीक भी बने। 
  • वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका: आने वाले वर्षों में भारत का वैश्विक मंच पर प्रभाव और भी बढ़ेगा। भारत की विदेश नीति, कूटनीति और आर्थिक शक्ति उसे वैश्विक निर्णयों में प्रमुख भूमिका निभाने की स्थिति प्रदान करेगी। 'स्वर्णिम भारत' की दिशा में भारत को अपने रणनीतिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव को बढ़ाते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक सशक्त नेता के रूप में उभरना होगा। इसके साथ ही, भारत को सतत् विकास, शांति और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अपनी पहलें बढ़ानी होंगी, ताकि वह एक उत्तरदायी वैश्विक शक्ति के रूप में पहचाना जाए।

निष्कर्षतः 

भारत का भविष्य स्वर्णिम प्रतीत होता है और यह उसकी समृद्ध विरासत एवं निरंतर विकास यात्रा का परिणाम होगा। 'स्वर्णिम भारत - विरासत और विकास' की थीम न केवल हमारी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का सम्मान करने की आवश्यकता को उजागर करती है, बल्कि यह हमारे समृद्ध एवं उन्नत भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाने के महत्त्व को भी रेखांकित करती है। भारत का 'स्वर्णिम भविष्य' तभी संभव है जब हम अपनी धरोहर और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाए रखें, ताकि न केवल वर्तमान पीढ़ी, बल्कि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस समृद्ध विरासत का लाभ उठा सकें।


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